दिसम्बर का महीना था, ठिठुरती सर्दी का मौसम था। दिल्ली से ट्रेन कोई शाम आठ-सवा आठ पर चली थी। सर्दी के कारण ट्रेन लगभग खाली थी और शाम छः बजे सूरज डूबने से आठ बजे तक भरपूर रात का अहसास होने लगा था।
रिजर्वेशन कोच में चार दोस्त- मनोज, रोहन, शकील और नौशाद एक साइड की तीनों और सामने की एक नीचे बाली सीट पर लेटे हुए थे जिन पर उनका रिज़र्वेशन था।
अभी ट्रेन सीटी दे कर धीरे-धीरे खिसकने लगी थी तभी एक महिला बुर्का डाले, जल्दी से ट्रेन में चढ़ी और उसके पीछे उसके शौहर ने एक अटैची ओर दो बैग लगभग फेंक कर मारे। महिला की गोद में एक छोटा बच्चा था। वह एक हाथ से उसे संभाले, दूसरे से बैग खिसकाने लगी। तभी एक बच्चे को पकड़े बड़बड़ाते हुए उसके शौहर ने ट्रेन में एंट्री ली-
"सब तुम्हारी बजह से हुआ रुखसाना!! आज तो ट्रेन छूट ही गयी थी", वह लगभग चिल्लाते हुए समान घसीटने लगा।
"अब इसमें मेरी क्या गलती है मियां? मैने तो कहा था रिक्शा कर लीजिए, लेकिन आप ही ने तो कहा चार कदम पर ही तो स्टेशन है", बेगम ने धीरे से कहा।
"अच्छा-अच्छा! हमेशा मैं ही गलत होता हूँ, चार पैसे बचाने की सोचूं तब भी और तुमसे मुतालिक कोई बात कहूँ तब भी। तुम थोड़ा तेज़ भी तो चल सकती थीं। अच्छा अब आओ ये रही हमारी सीटें, एक ये बीच बाली और दूसरी सबसे ऊपर की", वह समान इकट्ठा करते हुए बोला।
इनकी बक -बक से, ये सारे दोस्त भी नीचे की सीट पर आकर बैठ गए थे और इनकी बातों का मज़ा ले रहे थे।
"क्या हुआ भाई जान कोई परेशानी है क्या?" नौशाद ने पूछा।
"कुछ नहीं भाई,बस थोड़ा लेट हो गए थे पहुंचने में; ट्रेन बस चलते-चलते पकड़ी।अब छोटे बच्चों के साथ ऊपर की सीटें!!एक और मुसीबत है। बैसे आप लोग कहाँ तक जाएँगे?" उसने पूछा।
"बंगलौर तक", नौशाद ने कहा।
"मेरा नाम शमशाद है, और ये मेरी बेगम रुखसाना है। हम भी बंगलौर जाएंगे, भाई जान अगर आप लोगों को दिक्कत ना हो तो क्या नीचे वाली सीटें आप लोग हमारे साथ बदल सकते हैं? अब देखिए न रात का मुआमला है, नींद आनी लाजमी है, ऐसे में कोई बच्चा अगर गिर गया तो....? ऐसे तो हम पूरी एहतियात रखेंगे लेकिन फिर भी.... " शमशाद ने इल्तिजा की।
नौशाद ने अपने साथियों की ओर देखा और उनकी आंख का इशारा समझ कर हाँ कर दी।
"हाँ हाँ क्यों नही भाई जान, इसमें क्या मुश्किल है", बैसे मैं हूँ नौशाद अहमद, ये मेरा दोस्त शकील हुसैन, ये मनोज और ये हैं रोहन।
आप आराम से नीचे सो जाना हम लोग ऊपर शिफ्ट हो जाएंगे, नौशाद ने सबका तार्रुफ़ कराते हुए कहा।
ट्रेन पूरी रफ्तार में चल रही थी और साथ ही जारी थी शमशाद और रुखसाना की नोकझोंक-
"अरे रुखसाना तुम बिस्किट के कितने पैकट लायी थी?अब एक भी नही मिल रहा", शमशाद बैग में टटोलते हुए बोला।
"चार लायी थी जी, अब खत्म हो गए होंगे! पूरे दो घण्टे से तुम दोनों अब्बू-बेटा खाये जो जा रहे हो", रुखसाना झल्ला कर बोली।
"तो क्या भूखे रहें? मुंह को ताला लगा कर बैठ जाएं? तुम्हे पता था रास्ता लंबा है, इतने में चार पैकेट से क्या होता है?तुम्हे ज्यादा लेने चाहिए थे रुखसाना; अब बोलो मुझे या गुड्डू को भूख लगी तो क्या खाएंगे?" शमशाद गुस्से से चीखा।
"मुझे ही खा लो तुम!! भुक्कड़ लोगो, हर वक्त बकरी की तरह मुंह चलता है तुम्हारा! अरे ले लेंगे किसी हॉकर से, या किसी टेशन से।
अब क्या घर से बोझा लादकर भागना सही था? तुमसे तो ये भी न हुआ की इतना समान है, दो मासूम बच्चे हैं; तो रिक्शा ही बुला लो। आखिर कितने रुपए बचे होंगे,बीस-तीस ही ना? उससे ज्यादा का नुकसान हो जाता अगर ट्रेन छूट जाती तो; या जल्दबाजी में किसी को चोट लग जाती", रुखसाना ताने मारती हुई बोली।
"तुम न रुखसाना! खुद इतनी लापरवाह हो, और तुम्हे कुछ कहो तो लड़ने लगती हो। अरे तुम्हे पता है यहाँ ट्रेन में दो की चीज़ नो में मिलती है। लेकिन तुम्हे क्या, रुपए तो हमे कमाने पड़ते हैं; तुम्हे रुपए की कीमत क्या पता! कभी रुपए देखे हो खानदान ने तब तो जानो, सब तो साले कंगले हैं तुम्हारे खानदान में। सफर में जाते हो तब तो पता हो कि कैसे जाना चाहिए! और फिर सफर में खाने-पीने को लेने के लिए पैसे भी तो होने चाहिए", शमशाद ताने मारने लगा।
"अच्छा मेरा खानदान कंगला है....! और जनाब तो जैसे निज़ाम के वारिस हैं, बड़ा याकूत का खजाना भरा है आप के खानदान की तिजोरियों में तो। सब पता है मियां आपके खानदान का मुझे! अब मेरा ज्यादा मुंह मत खुलबाओ; देखा था हुजूर की बारात में कैसे बिरयानी और यखनी में घुसे जा रहे थे लोग- गोया हफ़्तों से ग़िज़ा नसीब ना हुई हो।
और गुलाबजामुन तो मुंह के साथ-साथ जेबों में भी भर रहे थे; जैसे जिंदगी में पहली दफा देखी हो। आये बड़े खानदान के बारे में कहने बाले, अरे तुम्हारे अब्बा-अम्मी छः दफा आये थे दामन फैला कर, तब जाकर हमने निकाह के लिए हाँ की थी। हम नहीं मरे जा रहे थे आपके खानदान में आने को", रुखसाना बाकायदा नाराज़ हो गयी।
"अच्छा हम मरे जा रहे थे? और वो जो तुम्हारे बड़े-अब्बू रोज पार्क में हमारे बड़े मियां से तुम्हारी तारीफें करते थे! कोई लायक लड़का पूछते थे?" शमशाद मियां भी चुप ना रहे।
" लड़का पूछ भी लिया अगर तो इसका मतलब ये कब से हो गया कि अपने ही पोते का रिश्ता भेज दो? अरे हमारे बड़े अब्बू ने तो दोस्ती की खातिर अपनेपन में उन्हें बता दिया और बडे मियां खुद के पोते के लिए ही लार टपकाने लगे। मुझे तो ये रिश्ता रत्तीभर भी पसन्द नहीं था; वो तो बस घर वालो की इज़्ज़त रखने के लिए कुबूल बोल दिया," रुखसाना शमशाद को चिढ़ाते हुए बोली।
"अच्छा तुम्हे पसंद नहीं था??" शमशाद बिफर गया। हमे लगा था तुम हमसे मोहबत करती हो रुखसाना लेकिन अगर तुम मज़बूरी में ये निकाह निभा रही हो तो ये तो गलत है, और जबरदस्ती किसी को अपने साथ रिश्ते में बांध कर रखना गुनाह है। तो मैं आज! अभी! तुम्हे तुम्हारी सारी ज़िम्मेदारी से आज़ाद करता हूँ ।मैं तुम्हे अपनी बेगम होने के हर फ़र्ज़ से आज़ाद करता हूँ।
मैं तुझे तलाक देता हूँ रुखसाना-
तलाक!
तलाक!!
तलाक!!!"
शमशाद एक झटके में कह गया।
रुखसाना चीखती हुए उसे रोकती रह गयी।
उनकी इस हरकत से, उनका सारा झगड़ा सुनकर मज़ा ले रहे, ये चारों भी सन्न रह गए।
अब वहां पूरी तरह से सन्नाटा था सारे लोग जैसे इस घटना से जम से गये थे।
रुखसाना सुबकते हुए सिसकियां ले रही थी, शमशाद का चेहरा ऐसे हो रहा था जैसे किसी जुआरी का-अपना सब कुछ हार जाने पर होता है। वह बार-बार अपना सर पीट रहा था।
"ये आपने क्या किया शमशाद भाई, अरे पति-पत्नी की इस मीठी नोक-झोंक से तो जिंदगी मज़ेदार बनती है, और आपने तो आप दोनों की ही जिंदगी एक सज़ा सी बना कर रख दी। अब आपके गुस्से ने आपकी जिंदगी को गुनाह में धकेल दिया; अरे आपने ये कुफ़्र तोड़ने से पहले अपने मासूम बच्चों के बारे में भी नहीं सोचा?" नौशाद शमशाद के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला।
"ये क्या हो गया मुझसे!! खुदा कसम! मुझे तो पता भी नहीं चला कि कब मैं ये गुनाह कर गया। उफ्फ मेरे मौला! तू तो जनता है ये गुनाह मुझसे बिल्कुल बेख्याली में हुआ है। मैं अपने बच्चों की कसम! खाकर कहता हूं मैने जान बूझकर कुछ नही किया।
अरे मैं तो उन नापाक-लफ़्ज़ों को अपनी जुबान पर भी कभी लाना नहीं चाहता। फिर भी खुदा जाने कैसे मेरे मुंह से निकल गए।
मैं तो अपनी रुखसाना से बेइंतहा मोहब्बत करता हूँ। ये तो बस उसे छेड़ने में मुझे मज़ा आता है", शमशाद की आँखें आँसुओं से भर गयीं और वह सुबकते हुए आगे बोला-
"अरे रुखसाना! तेरे बिना मैं मर ही जाऊंगा; अल्लाह कसम!! तू ही तो जिंदगी है मेरी। अरे पागल तू तो जानती है, मैं बचपन से तुझ पर मरता था। या मेरे खुदा!! मुझे मुआफ़ करदे।
मैं अपनी मोहब्बत से अलग नहीं रह पाऊंगा।
लेकिन 'शरीयत' उसके मुत्तालिक तो अब... हलाला...उफ्फ!! ..हमें मौलवी साब को बताना पड़ेगा; या खुदा! मेरी रुखसाना को दूसरे मर्द के साथ, नहीं-नहीं, ये मेरी इज़्ज़त है", ओर शमशाद वाकायदा रोने लगा।
इधर रुखसाना पागलों की तरह बस रोये जा रही थी। ट्रेन के इस कूपे में इनके इलावा कोई शख्स नहीं था
रात का कोई बारह का टाइम हो रहा था, ठंड में बाहर चाँद-तारे भी ठिठुर रहे थे। या खुद को कोहरे की चादर में लपेट लिए थे। लेकिन ऐसी सर्दी की रात में इस डब्बे में मौजूद, हर शख्स के माथे पर पसीना छलक रहा था और उनके दिल धौकनी बने हुए थे।
"भाई जान कुरान हमने भी पढ़ी है, शरीयत हम भी समझते हैं, और उसमें जानबूझ कर हलाला को भी कुफ़्र ही माना गया है।
उसके मुतालिक तो ऐसे तलाक के बाद औरत अगर दूसरा निकाह करती है और संयोग से अगर दूसरा शौहर भी तलाक दे देता है, तो वह पहले पति से दोबारा निकाह कर सकती है। लेकिन ऐसा संयोग से ही होना चाहिए , जानबूझ कर पैसे लेकर हलाला कराना भी गलत ही है।" नौशाद और शकील ने शमशाद को समझाया।
"लेकिन भाई हमें दीन के मुतालिक तो चलना ही पड़ेगा। और कोई रास्ता है क्या हमारे पास?" , शमशाद बहुत उदास होकर बोला।
"फिर अब आप क्या करेंगे?" अबकी रुखसाना रोते हुए बोली।
"सीधे जाकर मौलवी साब को बताएंगे और उनसे इल्तिजा करेंगे कि वे हमारे साथ-साथ रहने की कोई राह निकालें, शरीयत के मुताल्लिक।" शमशाद ने जैसे फैसला कर लिया।
" यानी हलाला", रुखसाना अनजाने भय से सिहर उठी, उसकी आंखें आंसुओं से भर गईं।
"आप बच्चों को संभाल लेना, अब मैं तो खुदकुशी कर लुंगी; क्योंकि मेने भी हमेशा से बस तुमसे ही मोहब्बत की है शमशाद।
मुझे तुम्हारे अलाबा कोई कोई छुए, ये मुझे हरगिज गवारा नहीं होगा। किसी गैर मर्द के साथ.....! नहीं-नही चाहे वह कोई मेरे निकाह में ही कियूं न हो; मेरा दिल किसी ओर को कबूल नहीं करेगा शमशाद।
हम नही मानते ऐसे शरीयत के कानून को, जो किसी के जज्बातों को ना समझकर अपने जबरदस्ती के कानून चलाये।
हम या तो सीधे घर चलेंगे और भूल जाएंगे की इधर ट्रेन में क्या हुआ। नहीं तो हम खुदकुशी करेंगे बस, आप सोच लीजिये की आपको क्या करना है। अगर आप मौलवी के पास गए तो हम खत्म कर लेंगे खुद को बस," रुकसाना ने अपना फैसला सुना दिया।
"लेकिन रुखसाना खुदकुशी को भी तो गुनाह माना गया है। और हम गुनाह से बचने के लिए....", शमशाद ने कुछ कहना चाहा।
"खुदकुशी नहीं है ये शमशाद मियां!! ये तो कत्ल है मेरा, जो आपने वे मनहूस लफ्ज बोल कर किया है। और ना जाने कितने शौहर अपनी नादानी में अपनी बीबियों का करते हैं, ये नापाक लफ्ज बोलकर।
और फिर अपना होश! आने पर, अपना गुनाह छिपाने के लिए हलाला के नाम पर फिर उस औरत का कत्ल करते हैं, बार-बार करते हैं।
अरे कोई उस औरत से कियूं नही पूछता की वह क्या चाहती है? क्या औरत कोई बेजान चीज है? जिसे जो चाहे, जैसे चाहे, इस्तेमाल करे और जब मन भर जाए तो दूसरों को दे दे।
अरे हम भी अल्लाह की पाक रूह हैं, हम भी मर्दो की ही तरहा इंसान हैं। हमारे भी दिल हैं, जज्बात हैं और पसंद ना पसंद है।
और फिर कैसे कोई इंसान अपनी मोहब्बत को ऐसे बेजार कर सकता है।
नहीं-नहीं शमशाद!! हम ये बेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे। हम सच कह रहे हैं शमशाद हम मर जायेंगे", रुखसाना बदस्तूर रोते हुए बोली लेकिन अबकी उसकी आवाज में गुस्सा था, नाराज़गी थी।
"कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या करूँ?" शमशाद इन दोस्तों को देखते हुए उदास होकर बोला।
"हमारे पास तरकीब है, अगर आप राजी हो तो? आपकी शरीयत की शर्त भी पूरी हो जाएगी और आप सुबह साथ-साथ घर भी जा पाएंगे। आपके मन पर बोझ भी नही रहेगा कि आप दीन के खिलाफ गए", मनोज कुछ सोचते हुए बोला।
"क्या"!!??
शमशाद ओर रुखसाना एक साथ बोले।
"देखिए हमारे शकील मियाँ आलिम हैं और नोसाद भाई कुँआरे। बाकी हम दोनों हो जाएंगे गवाह। तो अगर आप चाहें तो हम रुखसाना भाभी जान का निकाह अभी नौशाद भाई से पढ़ा देते हैं और तीन घण्टे बाद ये उनको तलाक दे देंगे, उसके बाद आप उनसे दोबारा निकाह कर लेना। इस तरह आपकी शरीयत की बात भी रह जाएगी और आप साथ-साथ घर भी जा पाएंगे," चारों दोस्त मुस्कुराकर बोले।
"लेकिन इद्दत की मुद्दत?" शमशाद कुछ सोचते हुए बोला।
"देखिए मियां हमने कहीं पढ़ा था कि नेकी करने वालों और ईमान लाने वालों की सजा को साल से महीनों में महीनों से दिनों में और दिनों से घण्टों में तब्दील कर दिया जाएगा। तो मियां हम तीन महीने की इद्दत को तीन घण्टों में पूरा हुआ मान लेंगे और ऐसा करने के लिए हम सब उस परवरदिगार से मुआफ़ी भी मांग लेंगे।
और हमें पता है, मोहब्बत करने बालों को खुदा! हमेशा पसंद करता है।
तो इतनी हेराफेरी के लिए अल्लाह हमें जरूर मुआफ़ कर देगा", शकील मियां ने अपनी दलीलें देकर सबकी बोलती बंद कर दी।
जल्द ही रुखसाना ओर नौशाद का निकाह पढ़ाया गया और अगले तीन घण्टे रुखसाना नौशाद के साथ उसकी सीट पर बैठी, जहाँ उन्होंने कई बार प्यार से नौशाद का सर सहलाया।
अगले तीन घण्टे बाद फिर एक बार रुखसाना का तलाक हो गया लेकिन इस बार वह दुखी या उदास नहीं बल्कि खुश थी।
अगले तीन घण्टे बाद, सुबह सात बजे फिर से रुखसाना और शमशाद का निकाह पढ़ाया गया। उसके बाद अगले स्टेशन पर शमशाद ने सभी को चाय नास्ता कराया और अपने घर आने की दावत दी।
समाप्त