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Friday, September 18, 2020

आजादी

15 अगस्त को 11 साल की शाइस्ता स्कूल से घर आयी उसके हाथ में लड्डू की थैली है, घर आते ही चहकते हुए अम्मी (कौसरजहां) से बोली "अम्मी अम्मी देखो हमें कितने लड्डू मिले ओहो अम्मी कहाँ हैं आप देखिए ना।"
"अरे मेरा बच्चा अम्मी के लिए भी लड्डू लाया", कहते हुए अम्मी ने शाइस्ता को गोद में उठा लिया।

"अच्छा अम्मी ये आज़ादी क्या होती है, स्कूल में मेम बता रही थीं कि आज के दिन हमें आज़ादी मिली थी इसी लिए आज के दिन हम खुशिया मनाते हैं मिठाइयां बांटते हैं।"शाइस्ता ने सवाल किया।।

"बेटा आज़ादी का मतलब होता है अपने मन मुताबिक जीने के लिए छूट होना।

बरसों पहले हमारा हिंदुस्तान अंग्रेजों का गुलाम था, तब हम लोग कोई काम भी अपनी मर्जी का नहीं कर पाते थे।
हमें हर काम में उनका हुक्म मानना होता था नहीं तो वे लोग जुल्म करते थे मारते थे जेल में बंद कर देते थे।
तब हमारे देश के नेताओ ने, युवाओं ने आंदोलन छेड़ दिया बहुत से लोग धरने पर बैठ गए , कुछ युवा उनके खिलाफ युद्ध करने लगे तब बहुत कोशिशों के बाद हमारा देश अंग्रेजों की जुल्म की हुकूमत से आज़ाद हुआ।"अम्मी ने शाइस्ता को समझाया।

"लेकिन अम्मी जब उस दिन अब्बू ने कहा था कि 'जाओ बेगम मैं तुम्हे अपने मुताल्लिक हर फ़र्ज़ से आज़ाद करता हूँ, मैं तुम्हे तलाक देता हूँ,' तब तो आप बहुत रोई थीं तब तो आपने कोई खुशी नहीं मनाई थी?", मासूम शाइस्ता कुछ सोचते हुए बोली।

कौसर जहाँ का चेहरा उदासी से फक्क पड़ गया उसकी आँखों की कोरें गीली हो गयी, अभी वह कुछ कह पाती तब तक शाइस्ता फिर बोलने लगी,"अम्मी अम्मी, क्या अंग्रेज भी हिंदुस्तान को तलाक देकर गए थे अम्मी जैसे अब्बू ने आप को आजाद कर दिया अंग्रेजो ने भी कहा होगा, जाओ हिंदुस्तान आज से तुम आजाद हो हम तुम्हे तलाक देते हैं।"

"चुप कर तू, कुछ भी अनाप शनाप बकती है", अम्मी दुख एवं गुस्से से बोली।

"क्यों अम्मी क्या हुआ, बताइये ना आप उस दिन इतना दुखी इतना उदास क्यों थी अपने दो दिन तक खाना भी नहीं खाया था बस आप लगातार रोती ही रही और हमसे भी ठीक से बात नहीं की, बोलो ना अम्मी क्या आज़ादी बुरी बात होती है अम्मी।
अम्मी अब्बू क्यों नहीं आते वे अब कहाँ चले गए", शाइस्ता मासूमियत से कहते कहते खुद भी उदास हो गई।।

"बेटा आज़ादी बुरी बात नहीं होती लेकिन तलाक अच्छी बात नहीं है तलाक का मतलब होता है सारे रिश्ते तोड़ कर अजनबी बन जाना।
तलाक का लफ्ज़ भी जुबान पर लाना नापाक है इसे तो अल्लाह ने भी बुरा ही कहा है।
अब आप ही सोचो अगर हम आपसे कहें कि आज से हम आपकी अम्मी नहीं रहे तो आपको कैसा लगेगा।"कौसर ने रोते हुए कहा।

नहीं!!!, ऐसा नही हो सकता अम्मी हम तो मर ही जायेंगे आप ऐसा सोचना भी मत।

लेकिन उस दिन आपके अब्बू ने यही किया था मेरे बच्चे उस दिन उन्होंने कहा था कि वे अब हमारे शौहर नहीं रहे अब से वे आपके अब्बू नहीं रहे ,उन्होंने हमें आज़ादी नहीं दी थी बल्कि वे खुद अपनी ज़िम्मेदारियों से आज़ाद हुए थे।
हम दोनों उन्हें बोझ लग रही थी तो उन्होंने इंसानियत का गला घोंट कर हमें इन्सान ना मानते हुए खुद को हमारी जिम्मेदारी से आज़ाद कर लिया था"। कौसर अब जोर जोर से रो रही थी।

"अम्मी अम्मी आप रोईए मत, हम हैं ना आपके साथ हम कभी आपसे दूर नहीं जाएंगे , शाइस्ता अम्मी के गले लग कर उनके आंसू पोंछने लगी।

शाइस्ता स्कूल से लौट रही थी, उसे किसी से पता लगा की उसके अब्बू एक दूकान पर काम करते हैं वह जान बूझ कर उस तरफ आ गयी, उसने दूर से देखा कि उसके अब्बू (शमशाद) एक गाड़ी को खोले उसके अंदर देख रहे हैं।
शाइस्ता एक दम उनके पास पहुंच कर लहरा कर गिरी ओर जोर से चीखी, आहह!! अम्मी,

उसकी चीख से शमशाद का ध्यान इधर गया और वह दौड़ कर उधर आया उसने शाइस्ता को गोद में उठा लिया और उसके कपड़े झाड़ने लगा।

अरे शाइस्ता आप, आप इधर कैसे बच्चे? शमशाद उसे देखकर हैरान होकर बोला।
आप हमें जानते है?? शाइस्ता बड़े भोले पन से बोली।
अरे हम आपके अब्बू हैं शाइस्ता केसी बात कर रही हो आप हम भला आपको क्यों नहीं जानेंगे आप हमारी अपनी बच्ची हो जान हो हमारी।

अच्छा!! जान हैं हम ??, फिर आप हमें तलाक देकर क्यों आ गए? शाइस्ता गुस्से से बिफरी।

"क्या कहा आपने? तलाक आपको? आपसे किसने कहा ये नामुराद लफ्ज? कहाँ से सीखा आपने? शमशाद एकदम गुस्सा हो गया।
"

"क्यों अब्बू आप ही ने तो उस दिन अम्मी से कहा था जब आप घर छोड़कर आये थे कि", जाओ कौसर मैं तुम्हे आज़ाद करता हूँ तलाक देता हूँ मैं तुम्हे और आप तब से घर बापस नहीं आये।"शाइस्ता कुछ याद करते हुए बोली।

"लेकिन वह तो मैं तुम्हारी अम्मी की रोज रोज की चिक चिक से तंग आकर उसे... "शमशाद धीरे से बोला।

"लेकिन अब्बू आप तो अम्मी को भी जान कहते थे ना और अम्मी आपको? अब अगर किसी की जान उसे तलाक दे दे, उसे छोड़ दे तो भला वह जिंदा कैसे रह सकता है?
और फिर आप अम्मी से नाराज़ थे! लेकिन मेरा क्या कसूर था? जो बिना खता मुझे मेरे ही अब्बू से तलाक मिल गया, मैं क्यों अब्बू की मोहब्बत उनके लाड़-प्यार और सरपरस्ती से महरूम हूँ, मेरी क्या गलती है??", शाइस्ता रोने लगी- "और बेचारी अम्मी!!, आपको पता है, अम्मी लगातार दो दिन तक दीवार में सर मारती रही और रोती रही उन्होंने खाना भी नहीं पकाया, मैं दो दिन घर में रखे बिस्कुट खाती रही और आपको याद करती रही कि अब्बू अभी आएंगे और हम फिर से मिठाइयां खाएंगे....
लेकिन अब्बू इतने दिन हो गए आप आये ही नहीं", शाइस्ता की आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे।

"मेरे बच्चे अब सब ठीक हो जाएगा, मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है। आप घर जाओ और अपनी अम्मी का ख्याल रखना वे थोड़ी बुध्दू हैं", शमशाद ने शाइस्ता के माथे पर बोसा दिया और एक रिक्शा बुलाकर उसे घर का पता समझकर शाइस्ता को घर छोड़ने को कहा।
"और हाँ शाइस्ता अपनी अम्मी को मत बताना की आप हमसे मिले थे", शमशाद ने शाइस्ता को एक बार ओर गले लगाया और रिक्शा में बैठा दिया।

शाइस्ता आज बहुत खुश थी, कौसर ने कई बार पूछा किन्तु उसने कुछ नही बताया।
शाम को बेल बजी तो दरवाजा शाइस्ता ने खोला देखा सामने अब्बू .. तब तक कौसर भी आ गयी वह शमशाद को देखकर चौंक गई।

"अरे शाइस्ता ये लो मिठाइयां", शमशाद ने डिब्बा शाईस्ता को पकड़ाया- "और ये आप दोनों के लिए कुछ कपड़े.... मुझे माफ़ कर दो कौसर मैं गुस्से में भूल कर बैठा था। अब मुझे समझ आ गया है कि पति पत्नी की असली आज़ादी एक दूसरे का ख्याल रखने में है, एक दूसरे को समझने में है।
वो तो शुक्र है खुदा का जो उस दिन मेने बस एक ही तलाक बोला था बरना हमारी जिंदगी...", शमशाद की आवाज भर्रा रही थी।

"कुछ मत बोलिये आप, अब आप लौट आये हमे ओर कुछ नहीं चाहिए" कौसर ने शमशाद के होंटो पर हाथ रख दिया और शमशाद ने कौसर को गले लगा लिया।
"अरे भई हम भी आप दोनों की ही जान हैं", कहते हुए शाईस्ता बीच में घुस गई और दोनों हँसने लगे।

©नृपेंद्र शर्मा "सागर"

Tuesday, July 14, 2020

#स्वप्न्न

स्वप्न्न:-

आज चौधरी हरपाल सिंह की हवेली पर बहुत रौनक हो रही है।
हो भी कियूं न ,उनका बेटा' चेतन 'आज डॉक्टरी पास कर के गांव लौट कर आ रहा है।
उन्होंने पूरे गांव के जलपान की व्यवस्था कर रखी है, और मन मे एक विचार भी रखा है कि, किस शान से वह अपने चेतन को गांव बालो से मिलायेगे ।
"मिलिए मेरे बेटे डाक्टर चेतन चौधरी से जो अपने गांव वालों की सेवा खातिर डॉक्टर बन कर आया है , अब कोई लाइलाज न मरेगा गांव में।"
उन्होंने तो अपनी एक एकड़ जमीन जो राजमार्ग से बस 500 मीटर अंदर है ,उस पर अस्पताल निर्माण की योजना भी बना रखी है।
क्या शान होगी गांव की जब दूर दूर से लोग उनके गांव आएंगे इलाज़ के लिए ।
बड़े शहर की सारी सुबिधा रखाएँगे हम अपने अस्पताल में, और गांव बालों से बस दवाई का मूल्य लिया जाएगा।
बाहर के लोगों के आवाजाही से गांव के कई लोगन को रोजगार भी तो मिलेगा।

अभी हरपाल सिंह अपने मधुर दिवास्वप्न में खोये थे कि किसी ने उनको झिंझोड़ा अरे चौधरी साब ,"भैया आ गए" आएं स्वागत करें।
एक हर्ष मिश्रित शोरगुल उठा डाक्टर साब आ गए डाक्टर साब आ गए।
आ गया बेटा ,,,देख सारा गांव तेरे स्वागत को आया है।
ओ डैड ये क्या जाहिलों की भीड़ इकट्ठा कर रखी है आपने ।
कितने डर्टी-डर्टी लोग है जर्म्स से भरे।
उफ्फ !!!मुझे तो घुटन होती है।
चेतन ने कहा और हवेली में अंदर चला गया उसने किसी को सम्मान या अभिवादन तक भी न किया।
चौधरी साब भी उसके पीछे पीछे अंदर आये।ये क्या व्यभार है ,चेतन !!??
गांव के सारे मौजूद बुजुर्ग और गणमान्य लोग तुम्हें आशीर्वाद देने आए थे ओर तुमने किसी को राम राम तक भी न की।
ओह्ह!! डैडी क्या है ये सब ,मुझे अभी निकलना है आज रात 10 बजे मेरी फ़्लाइट है अमेरिका की।
बाहर गाड़ी में आपकी बहु मेरा इंतज़ार कर रही है ,
मैं तो आपको कहने आया था कि आप भी यहां का सारा कारोबार समेट लो मैं अगले महीने आऊंगा और आपको भी हमेशा के लिए अपने साथ ले जाऊँगा।

बहु!!!!!!!!@!! अमेरिका!!!????
हरपाल सिंह पर तो जैसे वज्रपात ही हो गया हाथ पांव सुन्न हो गए।
कितने अरमान से उन्होंने अपने एकलौते बेटे चेतन को पाला था ।अकेले मां और बाप दोनो बन कर।
उनकी पत्नी सरिता देवी की 16 साल पहले डेंगू से मौत हो गई थी , तब से बस यही एक सपना एक उम्मीद पल रही थी उनके मन मे कि," उनका चेतन डाक्टर बनेगा और किसी गांव बाले को लाइलाज नही मरने देगा"।
लेकिन ये क्या ,,,,, चेतन डाक्टर तो बन गया लेकिन हरपाल सिंह का सपना,,,,,, !!!
और बहु,,,!!
,यानी तुमने बिना पूछे शादी भी कर ली ??
कौन है लड़की? किस खानदान की है,?, क्या कुछ भी मायने नही रखता तुम्हारे लिए,,,??
क्लासमेट है डैड ,और हमने शादी नही की बस हम 2 साल से साथ रहते हैं लिवइन में।
और आजकल शादी का झंझट कोन करता है डैडी।
अच्छा छोड़ो आप नहीं समझोगे ये सब ,मैं और रश्मि एक साथ डॉक्टरी पढ़े हैं ।
और और दो साल से लिवइन रिलेशन में हैं सोच था आपको बता दूं ,लेकिन रश्मि ने कहा कि पढ़ाई पूरी होने पर बताएंगे।

हमे अमेरिका में जॉब और हायर स्टडी दोनो का आफर है आज ही निकलना है ।
आपको बताने आये है कि अब हम वहीं अमेरिका में सैटल हो जाएंगे ,आपभी इधर का जमीन जायदाद बेचकर अगले महीने हमारे साथ ही आकर रहो।
अच्छा डैड अब चलते हैं अभी रश्मि के घर भी जाना है।

तो क्या बहु !गाड़ी से भी नही उतरेगी??
अरे डैड उसे गांव के पॉल्युशन से एलर्जी है इसलिए गाड़ी में ही (ऐ सी )चला कर बैठी है ,अच्छा अब निकलता हूँ बहुत लेट हो गया।
कहकर चेतन ने अपना सामान उठा लिया,,,,,।
बेटा!!!!!
हरपाल सिंग ने दबी आवाज से पुकारा ।
"जी डैड कहो।"
क्या "तुम और बहु "यहीं रहकर एक अस्पताल नही खोल सकते ??मेरे सपनों का अस्पताल ।
मे तुम्हारी शादी भी स्वीकृत कर लूंगा, लड़की की जाती कुल खानदान भी नही पूछूंगा , बस तुम मुझे छोड़कर मत जाओ। ये देखो घर का आंगन जो तुम्हारी माँ ने अपने हाथों से लीपा था ,मैने आज तक उसे बैसा ही रखा है। बहुत गहरी यादें जुड़ी हैं मेरी इस मिट्टी से । मुझसे अलग ना हुआ जाएगा उन यादों से। मैं तेरे हाथ जोड़कर भीख मांगता हूं तू यहीं रह कर अस्पताल खोल ले। मैं अपना सब बेच कर शहर से ज्यादा सुबिधायें तुझे यहीं उपलब्ध करा दूँगा मेरे बेटे।

ओह डैड !!
आप तो बेकार में सेंटी हो रहे हो, मैं लेट हो रहा हूँ आप आराम से सोचना पूरा एक मंथ है आपके पास ,बता देना मुझे सोच समझ कर ।
अच्छा चलता हूँ बाय।
कह कर चेतन झटके से निकल गया।
हरपाल सिंह एकदम सुन्न पड़ गए ,जैसे उन्हें लकवा मार गया हो।
बाहर गाड़ी स्टार्ट होने की आवाज आई , गांव बालों को कुछ समझ नहीं आया कि क्या हुआ डाक्टर बाबू यूं अचानक आये और अचानक चले गए। अंदर जाकर देखा तो हरपाल सिंह जमीन पर उनकी पत्नी के हाथ से लीपे आंगन के कोने में जमीन पर बैठे है एकदम जड़, उनकी आंखों से अश्रु धारा अनवरत वह रही है ।
गांव बाले सन्न रह गए।
करीब तीन दिन बाद चौधरी साब कुछ संयमित हुए और उन्होंने एक वकील बुलाया। और बोले, वकील बाबू मैं अपनी सारी जायदाद से चेतन को बेदखल करके अपनी सारी चल अचल पूंजी से एक ट्रस्ट बनाना चाहता हूं , जिसमे एक अस्पताल और एक धर्मशाला हो ,जहां सस्ते में लोगों को इलाज़ की सारी सुबिधायें मिलें बहुत कम खर्चे पर।
उसका नाम हो ,सरितादेवी आयुष ट्रस्ट।
वकील ने वसीयत तैयार कराई और अस्पताल का काम सुरु हो गया ।
इस बीच चैधरी साब ने चेतन से कोई बात नही की, आज महीने का आखिरी दिन है ,चेतन आज उन्हें लेने आने वाला है।
चैधरी साब अभी अस्पताल के दफ्तर कक्ष का उदघाटन करके लौटे हैं । जहां उनकी पत्नी और उनकी मूर्तियां बनी हैं। उनकी ही इच्छा थी कि ये काम एक महीने में हो जाये। और अब उनके मुख पर उदासी मिश्रित गर्व है।
चौधरी साब पत्नी के लीपे आंगन में आकर बैठ गए ,जैसे कोई मुसाफिर मंज़िल पाने पर थक कर प्रसन्नता से बैठ जाता है।
उनके मुख पर प्रसन्नता और गर्व है।
चेतन आ गया , ,,,
डैड चलो मैं आपको लेने आया हूँ , अब आप हमारे साथ ही रहेंगे।
लेकिन उधर से कोई प्रतिक्रिया न पाकर उसने चैधरी साब के कन्धे पर हाथ रखा ,,,, लेकिन ये क्या मुख पर विजय मुस्कान लिए उनकी निष्प्राण देह इनकी पत्नी की याद से लिपट गई। और उनकी निस्वार्थ आत्मा अपना स्वप्न्न पूरा करके अपनी आत्मा अपनी प्राण प्रिया के पास चिरलोक में चली गई। रह गए तो उदास गांव वाले, और पछतावे के भाव लिए निष्ठुर चेतन।
एक ऐंसा पछतावा लिए जो ताउम्र उसके मन पर बोझ रहेगा।
"नृपेंद्र"

Thursday, June 18, 2020

#कहानी/ रुखसार

साल 1992 उत्तरप्रदेश का एक छोटा सा गांव -
अम्मी,, अम्मी आप समझाइये ना अब्बू को,,, रुखसार अपनी बड़ी-बड़ी काली आंखों में मोटे-मोटेआंसू लिए अपनी अम्मी के पीछे-पीछे डोल रही थी।
अम्मी में एक बार उसकी तरफ देखा और मुंह घुमा लिया, अम्मी के चेहरे पर बेचारगी के निशान साफ नजर आ रहे थे।

अम्मी,, हम अपने हर दर्ज़े में अब्बल आते रहे हैं पढ़-लिख कर हम कुछ बनना चाहते है हम अपनी ज़िंदगी मे कुछ अच्छा करना चाहते हैं,, रुखसार लगभग रोते हुए बोली।

हम कुछ मदद नहीं कर सकते मेरी बच्ची,, जमीला(अम्मी) की आवाज़ बेबशी से भीगी हुई थी।
तुम्हारे अब्बू तो प्राइमरी के बाद ही तुम्हारा स्कूल छुड़ाना चाहते थे ,,,
तब भी हमने रो रो कर तुम्हारी शिफारिश कर दी थी लेकिन उसी वक़्त उन्होंने साफ बोल दिया था ,,
"बस जूनियर हाईस्कूल तक जहां तक गांव में स्कूल है, आगे शहर जाने की जिद ना करे तुम्हारी लाडली" 
हमने उस वक़्त ही कह दिया था कि आगे तुम्हारी तालीम के वास्ते हम बात नहीं करेंगे।
अम्मी!!!, रुखसार अब बाकायदा रोने लगी, एक बार बात तो करो आप, रुख़रास धीरे से बोली।

जमीला बिना कुछ बोले अपने आँसू पोंछते हुए चली गयी।

रुखसार आगे पढ़ना चाहती है,, जमीला ने रात को शमशाद का सर सहलाते हुए बड़े मनुहार से धीरे से कहा।
हमने आपसे पहले ही कहा था बेगम, की रुखसार को छूट मत दो हमें पता था ये दिन आएगा इसी लिए हमने पहले ही कह दिया था कि रुखसार गाँव में पढ़ाई खत्म करके घर के काम में हाथ लगाएगी।
आप तो जानती हो बेगम बिरादरी का हाल ज्यादा पढ़ने लिखने के बाद लड़की के लिए रिश्ता भी नहीं आएगा बिरादरी से, अरे यहां तो लड़के भी बस अलिफ बे पढ़कर मौलवी साब से दीन की तालीम लेकर हैण्डलूम पर बैठ जाते हैं सारी अंसारी बिरादरी जुलाहे का काम करती है।
ओर आपकी लाडली बड़े स्कूल जाकर सबको मुंह चिढ़ाने पर लगी है।
बेगम आप समझाओ रुख़सार को हमें की बिरादरी के साथ चलना है  फिर आगे  बच्चों के शादी बियाह बी करने हैं।
दो हैण्डलूम हैं हमारे कुछ तुम दरी बुनती हो , सारा दिन धागों से उलझने के बाद भी जिंदगी की मुश्किलें नहीं सुलझती ऊपर से शहर की पढ़ाई का खर्च।
ओर फिर लड़की ऐसे मुंह खोले फिरेगी तो आपको पता है कितनी बातें बनेंगी लोग जीना मुश्किल कर देंगे मोहल्ले में।
मैं नहीं चाहता कि मेरे घर की औरतें बिना हिज़ाब बिना पर्दे के घूमें।
जमीला चुप होकर सो गई हालांकि वो चाहती थी कि रुखसार को आगे पढ़ने की इजाज़त मिले लेकिन वह भी लाचार थी।

अब्बू मैं कोई खर्च नहीं मांगूंगी आपसे मैं अपनी दरी की आमदनी से अपना खर्च निकाल लुंगी घर मे भी सारे काम में हाथ लगाउंगी बस मुझे आगे पढ़ने दीजिये,, अब्बू मैं हमेशा बुर्के में रहूँगी मुंह खोलकर नहीं घूमूंगी अब्बू शहर के स्कूल में बहुत सी लड़किया बुर्के में आती हैं ,मैं आपको कभी शिकायत का मौका नहीं दूंगी।
मान जाईये ना अब्बू मेरे प्यारे अब्बू मेरे अच्छे अब्बू रुखसार ने रोते रोते शमशाद को मस्का लगाते हुए कहा।
आप चलकर देख लीजिए ना अब्बू एक बार ,,शहर में लड़कियों के लिए अलहदा स्कूल है सारी लड़कियां ही पढ़ती हैं उसमें अब्बू मैं पढ़ना चाहती हूं रुखसार बराबर आंसू बहाते हुए बोली।

आज तीन दिन से रुखसार बिना खाये पिये रोये जा रही थी घर के काम तो वह बराबर कर रही थी लेकिन निवाला उसने कतई मुंह के अंदर नहीं डाला था।
जमीला लगातार शमशाद से इल्तजा कर रही थी कि वह रुखसार को इज़ाज़त देदे चाहे अपनी शर्तें लगा ले नहीं तो रुखसार गम में बीमार हो जाएगी एक ही तो बेटी है उनकी उसके बाद तीन बेटे,,,
अरे ना आये कोई रिश्ता यहां से हम अपनी बेटी शहर में बियाह देंगे शहर में तो पढ़ाई लिखाई की बहुत कद्र है।

ठीक है रुखसार चली जाओ शहर पढ़ने लेकिन जिस दिन किसी ने तुम्हारी गलत शोहबत या बेपर्दा निकलने की शिकायत की उसी दिन से बिना कुछ बात सुने स्कूल बंद।

रुखसार शहर में कन्या इण्टर कॉलेज जाने लगी,, उसने घर की मजबूरी बता कर बुर्के में रहने की इजाज़त ले ली थी।

रुख़सार की लगन और मेहनत से वह बहुत कम समय में ही कॉलेज में सारे टीचर्स की चहेती बन गयी ।
वह घर से निकल के बस में कॉलेज तक पूरी एहतियात बरतती की कोई शिकायत किसी को ना रहे।
रुख़सार की  मेहनत का नतीजा था कि दसवीं में उसने सारे कॉलेज में सबसे ज्यादा नम्बर पाए थे।

स्कूल से उसे कई ईनाम मिले ओर साथ ही साथ उसका वजीफा भी शुरू हो गया स्कूल में फीस तो ऐसे भी नही देनी पड़ती थी।
आगे उसने  और ज्यादा मेहनत की घर पर वह देर रात तक दरी बनाने का काम करती, अब्बू के हैण्डलूम का ताना कर देती उनकी धागे की नालियां ठीक से रखती।
उसकी बनाई दरियां इतनी सुंदर होतीं की उसे ऊंची कीमत मिलती।

अब्बू को रुख़सार से कोई शिकायत नहीं थी, अलबत्ता बिरादरी वाले ज़रूर दबी जुबान में कहते, " भाई शमशाद तो अपनी लड़की को कलेट्टर बनाएगा शहर में पढ़ने भेज दिया अकेली लड़की को,,कुछ ऊंच नीच हो जाये तो नाक तो सारी बिरादरी की कटेगी,,," 
लेकिन सामने कोई कुछ नहीं बोलता।

आज रुख़सार के पास दो खुशखबरी थीं लेकिन वह कशमकश में थी कि दूसरी बाली अब्बू को कैसे बताए, उसे पता था अब्बू फिर गुस्सा करेंगे बहुत नराज होंगे लेकिन रुख़सार बहुत खुश थी ,,

अब्बू मैंने बारहवीं में सारे जिले में टॉप किया है रुख़सार चहक कर बोली,, मैं जिले में अब्बल आयी हूँ अब्बू।
शमशाद ने कुछ नहीं बोला बस हल्के से मुस्कुराकर झटके से हैण्डलूम की नली इधर से उधर सरका दी।

अब्बू वो,,, अब्बू मुझे आपको कुछ और भी बताना है उम्मीद है आप गुस्सा नहीं करेंगे।
शमशाद ने आंखे टेढ़ी करके उसे देखा जैसे पूछा हो क्या? 
वो अब्बू हमने मेडिकल की पढ़ाई के लिए इम्तिहान,,, हमारा नम्बर उसमें आ गया अब्बू हमें सबसे अच्छा कॉलेज मिला है अब्बू ओर हमें फीस वी ज़्यादा नहीं पड़ेगी,,, मैं कर लूंगी अपने पास से अब्बू,, मुझे स्कोलरशिप भी मिली है,,आप बस जाने की इजाज़त दे दीजिए,, रुख़सार एक सांस में सारी बात बोल गई।

घर में कोहराम मचा हुआ था,, रुख़सार कहीं नहीं जाएगी जमीला, शमशाद ने चिल्ला कर कहा।
रुख़सार पर्दे के पीछे बैठी जोर जोर से रो रही थी उसकी सिसकियों की आवाज बादस्तूर आ रही थी उसके छोटे भाई जिन्हें उसकी वजह से आगे पढ़ने को मिल रहा था इसके गले लगे उसके आंसू पोंछ रहे थे।
आपकी बजह से ये लड़की बहुत आगे बढ़ गयी हमने समझाया था आपको की इसे ज्यादा शह मत दो लेकिन बेटी की मोहब्बत में तुम्हारी तो आंखें ओर कान बन्द थे,,
अब इतनी दूर पराये शहर!! अरे क्या अकेली लड़की का ऐसे दूसरे राज्य में जाकर अकेले रहना ठीक है!??
ऐसे ही सारी बिरादरी थू थू कर रही है हमपर किसी के लड़के ने भी कभी बारहवीं के बाद आगे पढ़ाई नहीं की,, ओर तुम्हारी लाडली,,, नहीं नहीं अब हम इज़ाज़त नहीं देंगे।

लेकिन आपी तो लड़कियों के हॉस्टल में रहेगी अब्बू,, अबकी नुशरत थोड़ा तेज़ होकर बोला, नुशरत खुद अबकी दसवीं में था और पढ़ई की कीमत समझने लगा था।
तुम खामोश रहो नुशरत तुम्हे कुछ नहीं पता बाहर के माहौल का, अब्बू ने उसे डांट कर चुप करते हुए कहा।


पूरे एक हफ्ते की जद्दोजहद के बाद आखिर रुख़सार मेडिकल की पढ़ाई के लिए चली गयी।
सारा घर रुख़सार के पक्ष में शमशाद मियां के खिलाफ हो गया था खाना पीना बन्द था कोई बात भी नहीं कर रहा था,, 
ठीक है जो तुम लोगों को सही लगे करो,, शमशाद ने हथियार डालते हुए कहा।


आज पूरे सात साल हो गए शमशाद ने रुख़सार से कोई बात नहीं की, वह छुट्टियों में घर आती सब उससे बात करते लेकिन शमशाद मियां की नाराजगी जारी रहती,, जमील ने कई बार उन्हें समझाने की कोशिशें की लेकिन वह नहीं माने।

mbbs  के बाद रुख़सार ने ms में दाखिला लिया और उसके बाद अस्पताल में ,,,

आज उसके सम्मान में एक पार्टी थी कॉलेज में जहां इसके जिला अस्पताल में मुख्य सर्जन के रूप में नियुक्त होने की खुशी मनाई जा रही थी।
आज हमारे कॉलेज की पहचान हमारी ब्रिलियंट रुख़सार अंसारी को अपने ही जिले के जिला अस्पताल में प्रमुख सर्जन के तौर पर अपॉइंट होने पर हम सबको उनपर गर्व है, ओर हम उनकी मंजिल दर मंजिल कामयाबी की दुआ करते हैं ,, कहकर उसे उसके साथी डॉक्टरों ने एक बॉक्स थमाया ओर सभी तालियां बजाने लगे,, रुख़सार का चेहरा आज भी हिज़ाब में केद था।
पार्टी के बाद रुख़सार गिफ्ट खोल रही थी तभी उसकी नज़र कपड़े में बंधे एक बॉक्स पर पड़ी,,
अरे ये कौन देकर गया वह चोंकते हुए उठी और उसे खोलने लगी,, कपड़े के नीचे एक ख़त था वह उसे खोलकर पढ़ने लगी उसमें लिखा था,
"खुदा तुझे सलामत रखे और तुझे तेरा सोचा हर मुकाम हाशिल हो मेरी बच्ची।
उम्मीद करता हूँ तू मेरी ज्यादतियों के लिए मुझे ज़रूर मुआफ़ कर देगी, मैं गलत था जो बिरादरी ओर समाज की सोचता रहा और आपकी बच्ची के सपनों की उड़ान पहचान नहीं पाया लेकिन अब मुझे फक्र है की तुमने अपना नाम इतना बड़ा कर लिया अब सारी बिरादरी को तुमने दिखा दिया की लड़कियां भी कुछ भी कर सकती हैं।

अब मैं तुमसे नहीं खुद से नाराज़ हूँ कि मैंने तुम्हें दुःख दिया, लेकिन मेरी बच्ची मैं तुमसे मुआफ़ी मांगते हुए कहता हूं की मैं तुम्हारी कामयाबी से बहुत खुश हूं।
मुझे बहुत फख्र होता है जब लोग अदब से कहते है,", वो देखो डॉक्टर रुख़सार के अब्बू" 
और हाँ अब तुम्हे ये हिज़ाब ये नकाब में अपना चेहरा छिपाने की कोई ज़रूरत नहीं लोगों को पता लगना चाहिए की शमशाद अंसारी की दुखतर रुख़सार अंसारी बिल्कुल उन्ही की तरह दिखती है और उन्ही की तरहा जिद्दी भी है।

आगे उसने बॉक्स खोला तो उसकी पसंद का नीले रंग का रेशम का सलवार कुर्ता था और एक सफेद कोट जिसपर गिरी एक आँसू की बूंद अपना निशान छोड़ गई थी।

रुख़सार की आँख से निकला एक आँसू अपने अब्बू के आँसू में जज्ब हो गया लेकिन ये खुशी का आँसू था।

©नृपेंद्र शर्मा"सागर"
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