Wednesday, June 17, 2020

#हॉरर/माया की माया

बात पुरानी है, कोई तीस साल या उससे भी अधिक समय पहले की, रघुवरदयाल तीन भाइयों में सबसे छोटे थे।
सभी भाइयों के साथ संयुक्त परिवार में ही रहते थे।

उस समय उनकी आयु कोई चालीस बयालीस के आसपास रही होगी।
उनका घर बहुत बड़ा था घर के बाहर गुड़ बनाने का कोल्हू लगा था सामने पूरा बगीचा जिसमें आम अमरूद आड़ू ओर नाशपाती के पेड़ लगे थे, इसके बाद था उनका चार एकड़ का खेत।
घर के दरवाजे के दूसरी ओर बनी थी एक बड़ी सी दुआरी(दो कच्ची मिट्टी की दीवारों पर फूंस के छप्पर डाल कर बनी झोंपड़ी।) दुआरी गर्मी में स्वर्ग थी उसमें आज के a. c. से भी ज्यादी ठंडी हवा आती थी।
दुआरी में रखे बड़े घड़ों का पानी बिल्कुल ठंडा ओर मीठा।

दुआरी में हमेशा दो चार खटिया पड़ी होती थीं और वह सभी के लिए सदा खुली थी ।
कोई भी बिना रोकटोक वहां लेट जार थकान मिटा सकता था और पानी से प्यास बुझा सकता था।
अक्सर ताज़ा गुड़ भी वहां रखा ही रहता था जिसे चखने के लिए किसी को भी अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं थी।
दुआरी के सामने ही सड़क पर खड़े थे दो नीम और पाकड़ के बड़े पेड़।
गर्मी की रात में अक्सर पेड़ के नीचे ही सोने का आनंद लिया जाता था।
दयालु जी(रघुवरदयाल जी) अक्सर रात में दुआरी या पेड़ो के नीचे ही खटिया पर अपना बिस्तर लगाते थे।

रात के कोई ग्यारह साढ़े ग्यारह का समय रहा होगा, दयालु जी भरी नींद सो रहे थे ।

अचानक किसी ने उन्हें झिंझोड़ कर उठाया,
दयालु,, अरे उठो सोते रहोगे,,,देखो गांव के बाहर बड़े बड़(बरगद)के नीचे तुम्हारे लिए माया दबी है, है निकाल लाओ।
अकेले जाना और किसी को बताना मत वो सिर्फ तुम्हारे ही लिये है,,,।

दयालु जी आंखे मलते हुए उठे और बिना ये देखे की उठाने बाला कौन था, कहाँ गायब हो गया वह ,दयालु जी ने दुआरी से खुरपी और फावड़ी उठायी और चल पड़े पूर्व के रास्ते पर।

पूर्व का रास्ता बहुत गहरा पतला चकरोड का रास्ता था जिसके दोनो ओर बड़ी घनी झाड़ियां और फूंस उगा रहता था उधर दिन में भी अकेला आदमी जाते डरता था।
ऐसे में दयालु जी रात में अकेले चुपचाप चले जा रहे थे बरगद की ओर जो गांव से बाहर कोई एक किलोमीटर दूर होगा ।

रास्ते में स्यार झींगुर की आवाज गूंज रही थी जिससे बहुत डरावना माहौल हो रहा था किंतु दयालु जी के दिमाग में तो माया घूम रही थी और चल रही थीं योजनाएं।

अगर बहुत सी माया निकली तो वे एक ट्रेक्टिर लेंगे,, नही नहीं पहले पक्का मकान बनाएंगे,, बड़े भाई की बेटियां शादी लायक हो रही हैं उनकी शादी करा देंगे इस पैसे से,,, ऐसी कितनी योजनाएं कितने सपने बुनते दयालु जी पहुंच गए बरगद के पास।

बरगद का वह पेड़ सैकड़ो साल पुराना था और उसकी जटाओं बाद आसपास ऐसे कई पेड़ बना दिए थे,अब ये बरगद का पूरा बाग नज़र आता था किंतु वास्तव में ये एक ही पेड़ था।
दयालु जी ने इधर उधर खोजा बहुत देखने पर उन्हें एक जटा की जड़ में कुछ उभरा हुआ स्थान दिखाई दिया जहां खोदने पर इन्हें एक बड़ा मटका मिला जिसका मुंह कपड़े से बंधा था।
दयालु जी खिल उठे मटकी देखकर, उन्होंने मटकी अपनी धोती में छिपाई ओर तेज़ी से घर की तरफ लौट आये।
घर पहुंच कर दयालु जी जोर से आवाज लगाने लगे,, उठो सभी जागो,, देखो मुझे क्या मिला,, देखो,, वह चहकते हुए बोले,, ।

सभी हड़बड़ा कर उठे और पूछने लगे , क्या है??

श श श!!, अंदर चलो दयालु जी सभी को अंदर लेकर आये और मटकी सामने रखकर सारी बात बता दी।

खोलो,, उनके पिताजी ने कहा।

दयालु जी ने कांपते हाथों से मटके का कपड़ा हटाया,,, उसके नीचे मिट्टी का ढक्कन(पाला)  लगाया हुआ था उन्होंने धड़कते दिल के साथ ढक्कन खोल, सभी ने झांक कर देखा,, पूरा मटका कोयले से भरा था।

दयालु जी के कानों में वह आवाज गूंजने लगी,, 
वह सिर्फ तुम्हारे लिए है, ,, किसी को मत बताना,,
और वे सर पर हाथ रखकर बैठ गए।

आज भी वे ये नहीं समझ पाते कि क्या वह माया की कोई माया थी या किसी का गंभीर मज़ाक।

नृपेन्द्र शर्मा "सागर"

9045548008

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