हमारे गांव में एक व्यक्ति थे यही कोई पैंसठ वर्ष के, बड़ी डींगें मारते थे जैसे:-
अरे लल्ला तुम्हे क्या पता हमने तो शेरों के पंजे गिने हैं,, या बालकों एक बार तो रात में भूत हुक्का पीने आ गया।
हम सभी बच्चे, तरुण ओर युवा शाम को खाना खाकर उनकी कहानियां सुनने उनके चबूतरे पर इकट्ठे हो जाते थे।
दादा कोई नई बात बताओ आज, अर्जुन ने पूछा ओर मुझे देखकर धीरे से मुस्कुराया।
अरे लल्ला तुम्हे क्या पता एक बार तो रात को एक औरत मेरी सायकल पर बैठ कर घर तक आ गई, वे अपने चिरपरिचित अंदाज़ में बोले।
कब! कैसे दादा सुनाओ ना, मैंने धीरे से कहा और बाकी सारे बच्चे हाँ सुनाओ दादा की रट लगाने लगे।
अच्छा सुनो बे अपने हुक्के में दम लगाकर गुड़गुड़ करने के बाद बोले।
एक बार रात को मैं फेक्ट्री से आ रिया था रात को लौट कर ड्यूटी के बाद (दादा फैक्ट्री में शिफ्ट की ड्यूटी करते थे)
सायकल से घर आ रिया था।
अचानक नहर पर करते ही मेरी सायकल भारी चलन लगी।
मुझे लगा कोई मेरी सायकल पे पिच्छे बैठा है पर मैं बिना पीछे देखे पैडल मरता रिया।
बीच बीच में मुझे किसी औरत के हँसने जैसी नवाब बी आ रई थी पर मैने पिच्छे देखना ठीक ना समझा बस सायकल भगाता हुआ घर आ गया सुबह रिंकू की दादी ने बसंती(उनकी पत्नी) से बूझा कौन आयी रात तुमारे घर पधान की सायकल पे बैठ के।
बसंती ने मुझसे पूछा नाराज़ होकर किसे लाये कल रात को।
तो मैने समझाया अरे कोई ना थी रात एक चुड़ैल बैठ आई सायकल पे।
दादा चुड़ैल???? सब ने एक साथ पूछा।
हाँ ओर मैं तनक सा बी ना डरा।
सब बच्चे रोज उनके ऐसे ही भूत मिलने और ना डरने के किस्से सुनते औऱ चूहा सरकने पर भी उनके चेहरे का भय मैं और अर्जुन आसानी से पढ़ लेते।
होली आने वाली थी, सभी बच्चों को होली के कुछ दिन पहले रात में बाहर रहने और होली खेलने की छूट मिल जाती थी और पूरी बालक टोली हुड़दंग मचाती आधी रात तक फाग गाती थी उसी की आड़ में होली के लिए लकड़ियां चुराने का भी काम होता था।
एक दिन टोली की योजना बनी की आज फेंकू दादा की हिम्मत की परीक्षा की जाए और रात को उस योजना को अंजाम दिया गया।
रात को चार मज़बूत कंधे दादा को चारपाई समेत उठा ले गए और रख दिया ले जाकर श्मशान में।
उसके बाद बाकी छिपी टोली ने भूतिया,
हुहुबुभुहूहूहूहू!!!, की भूतिया ध्वनि निकाली
दादा चोंक कर उठे और थर थर कांपने लगे।
बचाओ,,,!!< भूत,,,!! बे जोर से चीखे ओर बेहोश होकर चारपाई से नीचे गिर गए।
टोली ने उन्हें उठाया और जिस खामोशी से उन्हें ले गए थे उसी सफाई से वापस ला कर उनके चबोतरे पर सुला कर हंसते हुए चले गए।
दादा को तीन दिन में होश आया और हफ़्तों बुखार में कांपते रहे।
टोली रोज जाकर उन्हें सपने में श्मशान और भूत की कहानी सुनाती रही।
अब दादा को सच्चाई पता है और बे कभी भूत देखने की डींग नहीं मरते।।
(कृपया कहानी को मनोरंजन के लिए ही पढ़े और किसी के साथ ये खेल न खेलें फिर चाहे वह कितना ही बड़ा फेंकू हो।)
नृपेंद्र "सागर"
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