सुबह के चार बजे 'वीरेंद्र' झांसी रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से उतरा और पैदल ही अपने बड़े भाई के घर की तरफ चल दिया।
यूँ तो वीरेंद्र इधर कई बार आता जाता है किंतु इतनी जल्दी सुबह कभी नही पहुंच।
वीरेंद्र के भाई ने झांसी में ये नया मकान बनाया था सारी कॉलोनी अभी नई ही बन रही थी जगह भी शहर से बाहर ही थी।
वीरेंद्र ने जल्दी पहुंचने के चक्कर में पटरी के किनारे का शार्ट कट पकड़ा और चल दिया अकेला मस्ती में गुनगुनाता।
नवम्बर का महीना था सर्दी शुरू हो चुकी थी, सुबह चार बजे भी ऐसा लग रहा था जैसे आधी रात ही हो रही हो।
वीरेन्द्र अकेला इस सुनसान रास्ते पर तेज़ी से चला जा रहा था तभी उसे लगा कोई सात-आठ साल का बच्चा बनियान पहने दौड़ कर इसके आगे निकल गया और आगे आगे चलने लगा, तभी एक और बच्चा दौड़ कर उसके पीछे पीछे चलने लगा।
वीरेंद्र ने उनपर ध्यान नहीं दिया किन्तु वह आगे बाला बच्चा बार बार पलट कर इसे देखता ओर कुछ अजीब ढंग से मुस्कुराता कभी चेहरा टेढ़ा करता।
अचानक वीरेंद्र ने पलट कर देखा, पीछे बाला बच्चा कुछ ज्यादा ही लंबा लग रहा था और एकदम बांस जैसा पतला।
वीरेंद्र को अब कुछ शक होने लगा उसने अपनी चाल को तेज कर दिया, किन्तु दोनो बच्चे बराबर उसके साथ चल रहे थे।
वीरेंद्र अब दौड़ने लगा किन्तु ये बच्चे सामान्य गति से चल रहे थे और बीभत्स हंसी हंस रहे थे।
इनके बीच की दूरी अभी भी उतनी ही थी।
वीरेंद्र को अब भय लगने लगा उसे समझ आ गया कि ये अवश्य कोई छल है, उसने आस पास देखा वह उनके चक्कर में शहर से बाहर श्मशान के रास्ते पर बढ़ रहा था।
वीरेंद्र कांपने लगा उसको उस भरी सर्दी में भी पसीना आने लगा था वह दौड़ रहा था।
तभी रास्ते में एक पीपल का बड़ा पेड़ आया, जैसे ही वीरेंद्र ने उस पेड़ को पार किया अचानक एक आदमी दौड़ता हुआ इसके पीछे से आया और जोर से बोला, हमारे पीछे आओ।
वीरेंद्र बिना सोचे उसके पीछे चलने लगा, वह आदमी शरीर में बहुत बड़ा था उसने एकदम सफेद कपड़े पहने थे और बिना रुके बिना मुड़े तेजी से चल रहा था।
वीरेंद्र को उसके साथ चलने के लिए लगभग दौड़ना पड़ रहा था।
कॉलोनी के पास पहुंच कर वह व्यक्ति ना जाने कहाँ गायब हो गया।
ओर वह बच्चे कब पीछे छूट गए, वीरेंद्र इस सब से बेखबर दौड़ता दौड़ता अपने भाई के घर पहुंच गया, वह बहुत डर गया था इस सब से।
कई दिन तक वीरेन्द्र को बुखार आया रहा वह कांपता रहा घबराहट में।
बाद में जब वीरेंद्र ने सभी को ये बात बताई तब कुछ लोगों ने बताया की किसी महिला ने अपने दो बच्चों के साथ पटरी के किनारे आत्म हत्या कर ली थी,, तभी से वहां इस तरह की घटना अक्सर होती रहती हैं।
वो तो तुम्हारी किस्मत अच्छी थी जो पीपल की किसी अच्छी आत्मा ने तुम्हे उनसे बचा लिया , एक व्यक्ति ने बताया।
अब ये उसका डर था या कोई छलाबा वीरेंद्र आज तक नहीं समझ पाया किन्तु उसके बाद वह दोबारा कभी उस रास्ते पर नहीं गया।
©नृपेन्द्र शर्मा "सागर"
No comments:
Post a Comment