उत्तरप्रदेश का एक छोटा सा गांव है जिसमें बस दो ही विरादरी के लोग रहते हैं।
गांव में सभी भाईचारा रखते हैं सुखदुख में सभी एक दूसरे के साथी हैं।
पूरे गाँव की आबादी होगी यहि कोई सात आठ सौ।
गांव की अपनी एक पंचायत है जिसमें दोनों जाती के लोग समान संख्या में पंच हैं।
पंचायत का निर्णय किसी के भी लिए ईस्वर वाक्य होता है, जो निर्णय एक बार हो गया वह बदल नहीं सकता गांव में रहने की यही शर्त है।
गांव में चारों ओर खुशहाली है, अधिकतर लोग सब्जी उगाते हैं , बाकी अन्य अनाज ,दलहन, तिलहन आदि भी भरपूर पैदा होता है लेकिन मुख्यतः सब्जी की खेती ही प्राथमिकता होती है।
कुछ बर्ष पूर्व तक,
गांव के पूर्व में कल्लू का घर था, कुछ कच्चा ,कुछ पक्का, कल्लू एक अल्हड़, जवान और मेहनती नौजवान था।
उसकी मेहनत से इसकी फसलें गांव भर में चर्चा पाती थीं।
उसकी दुधारू भैंसे देखकर हर कोई ईर्ष्या करता था।
वहीं गांव के पश्चिमी छोर पर घर था माधोसिंग का, कच्चा मकान, छोटा लेकिन व्यवस्थित।
माधोसिंग के पास ज्यादा जमीन नहीं थी अतः वह दूसरे किसानों की जमीनों में मजदूरी करता था।
माधोसिंग की एक बेटी थी 'नीला' अठारह उन्नीस वर्ष की, अल्हड़, बेफिक्र, हवा में बादल सी उड़ती, चिड़िया सी चहकती, सांवली, सुंदर और खूब हंसमुख थी नीला।
नीला काम मे माधोसिंग का हाथ बंटाती खुद भी खेतों में मटर तोड़ने, गाजर उखाड़ने या निराई गुड़ाई करने का काम करती थी।
आज माधोसिंग को कल्लू( कालीचरण सिंह) ने बुलाया था कुछ आलू निकालकर और मटर तोड़ कर मंडी भेजना था।
लेकिन माधोसिंग को अचानक कहीं बाहर जाना पड़ा, तो उसने नीला से कहा था कि वह जाकर मटर की तुड़ाई कर दे। बाकी आलू कल्लू खुद निकाल लेगा और माधोसिंग लौटकर मंडी छोड़ आएगा।
उछलती, कूदती, नीला जब खेतों पर पहुंची तो कल्लू खेत में दण्ड पेल रहा था, नीला उसके सामने जाकर खड़ी हो गयी।
"आज पिताजी को कहीं जाना पड़ गया तो वे तो नई आएंगे मैं फली तोड़ दूंगी तुम आलू खोद लो", नीला जोर से बोली।
कल्लू ने मुंडी उठाकर नीला को देखा तो देखता ही रह गया, नीला का सांवरा मुखड़ा लंबे काले बाल गुलाबी होंठ, गहरी काली चमकदार आंखे, कल्लू उनमें डूबकर ही रह गया वह सब कुछ भूलकर एकटक नीला को देख रहा था।
नीला भी कल्लू को यूं बाबला हुए उसे घूरते देख शरमा गयी,उसकी जबानी के अरमान कल्लू की इन नज़रों का अर्थ अच्छी तरह समझ रहे थे।
नीला को आज कल्लू का इस तरह सुध-बुध भूल कर उसे देखना अच्छा लग रहा था, वह खुद कल्लू के भरपूर जवान अल्हड़ रूप पर मुग्ध थी।
"क्या हुआ ऐसे क्या देख रहे हो कालीचरण??" नीला धीरे से मुस्कुरा कर बोली।
"क.. क ..कुछ नहीं नीलू , तेरे बापू कहाँ गए ? सब ठीक तो है?"
कल्लू की आंखें अब भी नीला के मुखड़े पर ही जमी हुई थीं।
"हां सब ठीक है, बस उन्हें कुछ काम आ गया तो जाना पड़ा, तीन चार घण्टे में आ जाएंगे पिताजी।" नीलू मुस्कुरा कर बोली।
"अच्छा, फिर तू अकेली मटर तोड़ेगी?" कल्लू ने उसकी आँखों में देखते हुए पूछा।
"हां तब तक तुम आलू खोदो", नीला मुस्कुरा कर बोली।
"क्यों ना पहले हम मिलकर मटर तोड़ें, उसके बाद मैं आलू खोदूँगा तुम बीनना", कल्लू बराबर उसकी आँखों में देखते हुए बोला।
"ठीक है लेकिन ये आज तुम मुझे ऐसे क्यों घूर रहे हो जैसे पहले कभी देखा ना हो मुझे", नीलू मन ही मन खुश होते हुए बोली।
"आयें,, ह हाँ, आज तुम बहुत अलग लग रही हो नीलू,, बहुत सुंदर", कल्लू ने धीरे से कहा।
"सच??", नीलू ने शरमा कर धीरे से कहा।
"सच तेरी कसम, आज जाने क्यों तुझे देखते रहने का मन कर रहा है नीलू", कल्लू मुस्कुरा कर बोला।
नीला और कल्लू दोनों एक साथ मटर की फलियां तोड़ने लगे जिसमें न जाने कितनी बार इनकी उंगलियां आपस में टकराई या कहो टकरायी गयीं।
और आंखे तो ऐसे चिपकी रहीं मानो बरसों की बिछड़ी हों।
नीला के बापू शाम को आये तब तक दोनों(नीला और कल्लू) आँखों ही आंखों में एक रिश्ता जोड़ चुके थे।
कल्लू ओर नीला इस एक ही मुलाकात में एक दूसरे के हो गए,ऐसा नहीं था कि दोनों पहली बार मिले थे लेकिन असज की मुलाकात ही कुछ अलग थी।
रात भर दोनों एक दूसरे के बारे में ही सोचते रहे और सुबह फिर दौड़े खेत में जहां उन्हें मटर तोड़ने की नहीं आंखे जोड़ने की जल्दी थी।
अब नीला कल्लू के अलाबा किसी ओर के खेतों में काम नहीं करती,,काम ना रहने पर भी रोज नीला कल्लू के खेतों में जाती है ,दोनों देर तक कभी अरहर तो कभी तिल की फसल से घास निकालते हैं।
आज उनके पहले मिलन को साल से ज्यादा हो गया, अब तो दबी जुबान में लोग इनकी चर्चा भी करने लगे हैं।
आज सरपंच जी ने कल्लू को बुलाया और पूछा ," कल्लू ये जो तुम्हारे ओर माधो की लड़की के बारे में फैली है क्या ये बात सच है?"
देखो हमारा छोटा सा गांव है सभी लोगों में भाई चारे के माहौल है।
ओर फिर माधो ओर तुम तो विरादरी के भी हो तो तुम्हारा ओर नीला का रिश्ता भाई बहन से ज्यादा नहीं हो सकता मुखे यकीन है तुम गांव की परंपरा और अपनी मर्यादा का ध्यान रखोगे।
सरपंच से मिलकर लौट कर कल्लू बहुत परेशान हो गया।
क्यों वह दिल के हाथों मजबूर हुए क्यों उनका रिश्ता दोस्ती से आगे ,,,
ओर फिर अब तो ये चाहकर भी भाई बहन नहीं बन सकते, उसे याद आ गयी वह बरसात जब दोनों अरहर की घास निकाल रहे थे।
उस दिन बारिश ने इनके तन के साथ मन को भी भिगो दिया था , ये दोनों अपने प्यार में सीमाएं लांघ गए थे उस दिन।
कल्लू ने उसी दिन नीला की मांग में खेत की मिट्टी से निशानी लगा कर इसे प्रकृति को साक्षी मान कर रिश्ता मजबूत कर लिया था, और उसके बाद बारिश में भीगते हुए दोनों पिघल कर एक दूसरे में समा कर बरसात से बह गए थे।
नीला के आते ही कल्लू ने उदास होकर सारी बात उसे बतायी।
तो!! अब। क्या होगा जी?? नीला तो लगभग रोने ही लगी।।
चल,, कल्लू ने नीला का हाथ कसकर पकड़ लिया और चल दिया नीला के घर।
घर जाकर उसने माधोसिंग के पांव छूकर कहा," हम प्रेम करते हैं चाचा विवाह भी कर लिया हमने इंदर देवता के सामने अब बस तुम इसे गांव के सामने मान लो"।
अब हमारा रिश्ता बहुत आगे बढ़ गत है चाचा, कल्लू आंखों में पानी भर लाया।
मेरे मानने से कुछ नही होगा बच्चों, हमारी पनचेत इस बात को नई मानती , गांव के सारे लड़के लड़की भाई बहन हो सके है बस बाकी कुछ नई।
सरपंच ने मुझे भी धमकी दी कि मैं अपनी लड़की को समझा दूँ, नहीं तो मुझे भी सज़ा मिलेगी।
पंचेत की नज़र में एक गांव के लोगो की शादी पाप है, ओर ऐसे पाप से गांव पे मुशीबत अस सकती है।
लेकिन चाचा हमतो गांव के अलग अलग छोर पर रहते हैं इर फिर एक ही जाती बिरादरी,,,
वो सब ठीक है बेटा लेकिन पंचेत नही मानेगी।
तो चाचा मैं गांव छोड़के शहर में??
नही होगा बेटा कोई नहीं मानेगा तब भी।
तू नीला को भूल जा कल्लू छोड़ दे अपनी जिद।
नही चाचा मैं पंचयात से बात करूंगा कल्लू कहकर चला गया।
पंचयात बैठी हुई थी सभी एक ही बात कह रहे थे," एक गांव के लड़के लड़की की शादी, मतलब भाई बहन की शादी मतलब महापाप।
हम गांव में ये पाप हरगिज नहीं होने देंगे, इस रक्षा बंधन को नीला पंचात के सामने कल्लू को राखी बांधेगी बस , सरपंच ने फैसला सुना दिया।
चार दिन बाद ही तो रक्षाबंधन है, कल्लू सोच रहा था इधर नीला का रो रोकर बुरा हाल था, माधोसिंग उसे समझा रहा था, पंचायत के फैसले से माधो भी दुखी था, वह कहीं न7 कहीं चाहता था कि उसकी इकलौती बेटी उसकी आँखों के सामने रहे,, ओर फिर कल्लू जैसा खुशाल मेहनती किसान उसे कहाँ मिलेगा।
लेकिन पंचयात से विरोध करके भी तो,,, माधोसिंग की आंखे गीली थीं।
हम आज रात ही गांव छोड़ देंगे चाचा कल्लू ने अपना फैसला सुनाया,, जबाब में माधोसिंग कुछ नही बोला बस उसे जाते देखता रहा।
रात को कल्लू रात भर नीलू का इंतज़ार करता रहा सड़क पर जहां से बस पकड़कर उन्हें शहर जाना था लेकिन नीलू नहीं आयी।
सुबह हो चली थी कल्लू उदास परेशान धीरे धीरे गांव लौट रहा था तभी उसे उसका दोस्त बिल्लू दौड़ता आता दिखा,,
बो नीला,, नीला!! मर गयी रात कल्लू। बिल्लू हाँफते हुए बोला।
क्या मेरी नीलू!! कल्लू सर पकड़कर बैठ गया।
माधोसिंग जोर जोर से रो रहा था छाती पीट रहा था तभी कल्लू दौड़ता हुआ आया और माधोसिंग से लिपट कर रोने लगा,, क्या हुआ तंग चाचा नीलू को??ऐसे अचानक कैसे??
उल्टी दस्त लगे थे उसे रात भर में पेट का पानी खत्म हो गया इर दवाई इलाज न होने से मर गयी।
सरपँच ने कहा उसके चाहते पर इस वक़्त दुख नहीं बल्कि कुटिल मुस्कान थी।
चलो चलो रोने धोने से कुछ नहीं होगा लाश को ठिकाने लगाओ जल्दी पूरा गांव तब तक कुछ नहीं खायेगा जब तक इसकी चिता नहीं जलेगी।
नीलू की लाश को अर्थी में रखते समय कल्लू ने धीरे से उसकी मांग में सिंदूर लगा दिया, और श्मशान में माधो की मदद करने के बहाने अग्नि भी कल्लू ने ही,,,
कल्लू ने धीरे से अपने पति होने के कर्तव्य निभा लिए।
कल्लू ने उसके बाद शादी नहीं की, अब माधोसिंग ओर कल्लू साथ ही रहते हैं, कल्लू माधोसिंग के लिए उसका बेटा ही है।
माधोसिंग ने कल्लू को कब का बता दिया की नीलू को उस दिन किसी ने जहर,,, लेकिन दोनों पंचायत के डर से खामोश ही रहते हैं।
©नृपेन्द्र शर्मा"सागर"