रात के कोई 10 बजे होंगे ब्रजेश माल उतार कर घर पहुंचने की जल्दी में ट्रक बहुत तेज़ चला रहा था।
उसके साथ था खलासी बिट्टू।
जैसे ही गाड़ी खूनी नाले को पार करके थोड़ी आगे बढ़ी, उन्हें गाड़ी की लाइट में कोई बुर्खे बाली महिला हाथ हिला कर गाड़ी रूकवाने का प्रयास करती नज़र आयी।
"वो देखो उस्ताद औरत, अकेली इतनी रात में!! रोक लो उस्ताद किसी मुसिबत में लगती है। कहीं जाना होगा इसे," बिट्टू चहकते हुए बोला।
"अरे यार इतनी रात को अकेली औरत...? कहीं कोई मुसीबत ना हो," बृजेश ने ब्रेक पर पैर जमाते हुए कहा।
"अरे उस्ताद! क्या मुसीबत करेगी? ऐसे भी हम दो हैं और वह अकेली, और अगर पट गयी तो रास्ता मस्ती में....! बिठा लो न उस्ताद", बिट्टू ने कुछ अर्थपूर्ण बात कही।
"चर्रर्र!!", ब्रजेश ने उस औरत के पास जाकर जोर से ब्रेक मारकर गाड़ी रोक दी।
"क्या है?? कहाँ जाना है?", बिट्टू ने मुंह खिड़की से बाहर निकल कर पूछा।
"बस अगले गांव तक," उसने धीरे से जबाब दिया।
"आजाओ ऊपर", बिट्टू थोड़ा खिसककर जगह करते हुए बोला।
और गाड़ी आगे चल दी।
"अरे इतनी गर्मी है और आप मुंह ढक कर बैठी हो? आराम से बैठो", ब्रजेश ने उसे कनखियों से देखते हुए कहा।
"हाँ-हाँ!! नकाब उलट दो मोहतरमा", बिट्टू उत्साहित होकर बोला।
"नही !! तुम बस चलते रहो", उसने दृढ़ता से कहा।
"अरे उठा भी दो ये नकाब आज हम भी चाँद देख लें," ब्रजेश वहशत से हँसते हुए बोला।
"नहीं..!!", उसने दोबारा थोड़ा ज़ोर देते हुए कहा।
"अरे हटा भी दे इतना क्या भाव खाती है", बिट्टू ने कहा और उसका नकाब उलटने की कोशिश करने लगा।
"अच्छा गाड़ी रोको हटाती हूँ नकाब, आराम से देखना", उसने हँसकर कहा।
और ब्रजेश ने गाड़ी रोक दी।
"ठीक से देखना", उसने नकाब उलटते हुए कहा,,,
"नहीं...!!"
उसके नकाब उलटते ही इन दोनो की चीख निकल गयी।
उसके चेहरे पर मांस के लोथड़े लटके हुए थे। लंबे-लंबे खूनी दांत बाहर दिख रहे थे और आंखें जैसे आग की बनी हुई थीं।
बहुत डरावना भूतिया चेहरा था उसका।
इन दोनों के चेहरे भय से पीले पड़ गए और इनकी आवाज इनके गले में घुट कर गों गों!! बनकर रह गयी।
"देख लिया??", अब सीधे चलते रहो और जहां मैं कहूँ चुपचाप गाड़ी रोक देना", उसने सर्द स्वर में कहा और नकाब डाल लिया।
ब्रजेश ने डरते डरते गाड़ी आगे बढ़ाई, अब वह दोनों उसकी तरफ देखने में भी घबरा रहे थे।
थोड़ा आगे जाकर उसने एक तालाब के किनारे गाड़ी रुकवायी और खिलखिलाते हुए गाड़ी से तालाब में छलांग लगा दी और पानी में गायब हो गयी।
ब्रजेश किसी तरह गाड़ी घर तो ले आया लेकिन तभी से एक महीने तक ये दोनों बुखार में पड़े रहे।
लेकिन वे किसी को कभी नही बता पाए कि,
कौन थी वह.....?
नृपेन्द्र शर्मा "सागर"
९०४५५४८००८
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