Friday, June 19, 2020

#प्रेम/ भ्रम

नवीन ने गांव से दूर शहर के कालेज में एडमिशन लिया और एक परिचित के प्रयास से उसे पेइंग गेस्ट के रूप में रहने की जगह भी मिल गयी।
जब क्योंकि खाने बनाने की झंझट नहीं थी तो उसने समय का सदुपयोग करते हुए दो तीन ट्यूशन भी पढ़ाने शुरू कर दिए जिससे उसका जेब खर्च निकलने लगा।
यूँ तो नवीन शुरू से ही बहुत शर्मीला था लेकिन नई जगह आकर वह और भी झिझकने लगा वह किसी से भी ज्यादा बात नही करता औऱ लड़कियों से तो ऐसे शर्माता जैसे उसे खा जाएंगी।
नवीन पढ़ाई में बहुत तेज़ था अतः कॉलेज में जल्दी ही उसके बहुत से दोस्त बन गए, यूँ तो कई लड़कियां भी उससे मित्रता करना चाहती थी लेकिन यसज रूखा व्यवहार और शर्मीलापन हमेशा उसे लड़कियों से दूर ही रखता।
नवीन ज्यादातर समय पढ़ने और पढ़ाने में ही लगाता था अतः वह ज्यादा लोगों से घुल मिल ही नही पाता था।
उसके मकान मालिक बुजुर्ग दम्पत्ति थे उनके बच्चे दूर शहरों में सेटल थे इसी लिए अपना अकेला पन दूर करने के लिए उन्हीने नवीन को रखा था।
नवीन भी उनकी हर जरूरत का पूरा ध्यान रखता था कुछ ही दिनों में नवीन उनका चहेता बन गया।
दिन भर कॉलेज उसके बाद टयूशन की थकान के बाद शाम को दो घण्टे छत पर खुली हवा में बैठना पढ़ना नवीन की नियमित दिनचर्या का हिस्सा बन गया था।
एक दिन उसने सुना की पड़ोस में कोई नए किरायेदार आये हैं, ये कोई नई बात नहीं थी क्योंकि शहर में तो अक्सर किरायेदार आते जाते रहते हैं तो उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया यूँ भी वह किसी से ज्यादा मतलब भी नही रखता था।
उस दिन भी नवीन रोज की तरह छत पर बैठ कर चाय पीते हुए अपनी किताब में खोया हुआ था, अचानक उसकी नज़र सामने की छत पर पड़ी जहां एक लड़की बैठी कुछ पढ़ रही थी।
अचानक उसने चेहरा उठाया और अनायास ही उसकी नज़रे नवीन की नज़रों से मिली, नवीन तो बस उसे देखता ही रह गया, उसका गोरा रंग ऐसा मानो दूध में ऊषाकाल के सूर्य की छाया पड़ रही हो उसकी बड़ी बड़ी काली आंखे, पतले गुलाबी होंठ ओर सुंदर गोल नाक।
उसकी लम्बी पत्नी गर्दन और काले घने लंबे बाल कुछ यूं बिखरे थे जैसे घने बादल चाँद को अपने आगोश में लेने की कोशिश कर रहे हों या कहो कि उसके रूप को छिपाने का प्रयास कर रहे हों।
उसकी सुंदरता देखकर नवीन सुधबुध भूल का एकटक उसे देखता रह गया, उसे लगा मानो स्वर्ग से साक्षात अप्सरा ही उतर आई हो।
यूँ तो नवीन कभी किसी लड़की से ठीक से बात नहीं करता था लेकिन इस अप्सरा ने उसकी वह साधना भंग कर दी थी,यूँ तो कितनी ही लड़कियां नवीन से बात करना उस से दोस्ती करना चाहती थीं किन्तु नवीन तो अब....

नवीन अब रोज शाम होते ही छत पर जाकर बैठ जाता, किताब के पीछे से उसकी नजरें किसी को खोजती रहती, अब वह उस से बात करने को बैचेन होने लगा था।
दोनों घरों के बीच में बस एक पतली गली ही तो थी दोनों छतें आमने सामने थीं अब कई बार दोनों छत के एकदम कोने पर आ जाते और अमन सामने आकर नज़रे मिलाकर शरमाकर नज़रे झुका लेते दोनों ही एक जैसे हाल में थे।
उस दिन जब वह एकदम सामने आई तो नवीन ने हिम्मत करके बोल ही दिया ,"हेल्लो माय सेल्फ 'नवीन' एंड उअर स्वीट नेम?"
'सीमा' एक छोटा सा जबाब मिला इर साथ में ढेर सारी हंसी की खनक। वह हंसी हुई भाग गई थी और रह गया था जड़वत मूर्ति बना नवीन, नीचे से आई मांजी की आवाज से वह अपनी चेतना में लौटा ओर नीचे दौड़ गया।

"सीमा"!! हिहिहि
रात भर उसके कानों में यह खनक गूंजती रही, सारी रात वह उसी के विषय में सोचता रहा, और उसी के सपनो में खोया सो गया।

अगले दिन वह बहुत खोया खोया से था, "ये क्या हो रहा है मुझे" वह अपने आप से पूछ रहा था।
"कहीं मुझे प्यार"?? फिर खुद ही मुस्कुरा उठता ओर शरमाकर नज़रे चुराने लगता।
आज वह शाम को बहुत जल्दी छत पर आ गया उसकी नज़रे बड़ी शिद्दत से सामने की छत पर कुछ ढूंढ रही थीं।
घण्टों हो गए लेकिन उधर कोई आहट तक ना हुई,  अब नवीन बहुत परेशान हो गया आज वह पूरा मन बनाकर आया था कि आज वह उस से अपने मन की बात कहेगा।
किन्तु आज तो वह आयी ही नहीं, नवीन का दिल बैठा जा रहा था वह सोच रहा था कि क्या वह भी उसे प्यार...
या ये सिर्फ उसका एक भ्रम है?
नवीन इंतज़ार करके थक गया था, वह उसे प्यार नही करती यह सच मे उसका भ्रम ही था उसने सोचा और नीचे जाने के लिए मुड़ा।
अभी वह दो कदम ही चला था कि पीछे से आवाज आई,
"रुको, न वी न,,"
मुझे आपसे कुछ कहना है।
नवीन को तो जैसे कोई खज़ाना ही मिल गया,वह तेज़ी से मुड़ा," सीमा", वह दौड़ता हुआ उसके पास आया।
कब से इंतज़ार कर रहा था कितनी देर कर दी आज अपने सीमा सब ठीक तो है, नवीन ने पूछा।

सब ठीक है नवीन मैं पढ़ाई कर रही थी और मैथ्स में ऐसी उलझी की समय का ध्यान ही नही दिया फिर भी मुझे बहुत कम समझ आया, अच्छा क्या आप मुझे घर आकर मेथ्स पढ़ा सकते हो ? सीमा ने मुस्कुराकर पूछा।
हाँ जरूर लेकिन तुम्हारे पैरेंट्स?? नवीन सकुचाया अच्छा मैं उनसे बात करके कल बताती हूँ सीमा मुस्कुरादी और चली गयी।
आज फिर नवीन को नींद नही आई वह कल सीमा क्या जबाब देगी इसी विषय पर खुद के बनाये सवालों के जबाब रात भर खुद को देता रहा।
अगले दिन सीमा ने उसे खुशखबरी सुनाई की वह कल से उसके घर आकर उसकी मेथ्स समझने में हेल्प करेगा इसके लिए सीमा के परेंट्स मान गए।
अगला दिन नवीन का बहुत बेचैनी में निकला, यार ये शाम क्यों नही हो रही आज, वह खुद से कई बार पूछ चुका था।
शाम होते ही वह सीमा के घर पहुंच गया वहां उसने शिष्टाचार में उसकी माँ के पांव छुए, सीमा के पिताजी शाम को देर से ही आते थे तो.. 

अच्छा तुम दोनों पढ़ाई करो मैं चाय बनाती हूँ कहकर सीमा की माताजी रसोई में चली गयीं।
इससे पहले की नवीन कुछ कहे सीमा ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसकी आँखों में देखकर मुस्कुराने लगी।
"क्या सच" नवीन ने खुश होकर पूछा बदले में सीमा ने मुस्कुराकर उसका हाथ दबाया और पलके झुका लीं।

अच्छा मैं किताबे लाती हूँ सीमा ने धीरे से कहा और हाथ छुड़ाकर तेज़ी से हंसती हुई चली गई।

उसके बाद शुरू हो गया रोज का सिलसिला,"कल कब मिलेंगे, आज इतनी देर कहाँ लगा दी,  कल आप आये नही सब ठीक तो है मेरा तो मन ही नही लग रहा था,
कल थोड़ा जल्दी आना, आपके बिना दिल नही लगता,,, आदि आदि का सिलसिला।
अब नवीन बहुत खुश था उसे बिन मांगे संसार की सारी दौलत मिल गयी थी, इसी तरह तेज़ी से गुजरते समय के साथ उनके इस प्यार को तीन साल हो गए जिसमे आंखों से बातें करने हाथ पकड़ने ओर मुस्कुराने से आगे कभी कुछ नही हुआ, लेकिन दोनों ही को लगता था कि वे एक दूसरे में बिना अधूरे हैं।
नवीन का कॉलेज खत्म होते ही उसे एक कम्पनी में जॉब मिल गयी, और अब उसपर घरवालों की ओर से शादी करने के लिए दबाव भी पड़ने लगा।
किन्तु वह हमेशा कोई न कोई बहाना बनाकर उन्हें टालने लगा लेकिन कब तक??
अब उसे लगने लगा कि वह ज्यादा दिन परिवार वालो को रोक नही पायेगा अतः उसने सीमा से शादी के लिए बात करने का निर्णय किया।

आज नवीन बहुत खुश था क्योंकि वह सीमा से शादी के लिए बात करने जाने वाला था, उसे पूरा भरोसा था की सीमा उसे ना नहीं करेगी उसे अपने प्यार पर विश्वास था।
यूँ तो कई बात बातों बातों में सीमा ने भी शादी के लिए इशारा किया था लेकिन तब वह तैयार नही था किंतु आज उसके पास जॉब है वह शादी की जिम्मेदारी के लिए तैयार है अतः अब वह सीमा से बात कर सकता है, उसे यकीन था कि सीमा के पेरेंट्स उनकी शादी के लिए मान जाएंगे।
आज नवीन अच्छे से तैयार हुआ और पहुंच गया सीमा के घर, उसने बेल बजायी दरवाज़ा सीमा ने ही खोला और उसे देखकर बिना मुस्कुराए बोली, "अरे नवीन तुम, आओ अंदर आओ"। 
आज न जाने क्यों नवीन को सीमा कुछ बदली हुई लगी, वह और दिनों की तरफ नवीन को देखकर न तो मुस्कुराई और ना ही उसकी आँखों में चमक दिखी।
नवीन अंदर आकर बैठ गया उसे घर में कोई भी नज़र नही आया।
"कहो नवीन कैसे आना हुआ?" सीमा ने पूछा।
"तुम्हारे परेंट्स कहाँ हैं सीमा?" नवीन ने पूछा।

"क्यों, कुछ खास काम" सीमा ने उल्टा सवाल किया।
"आज मैं उनसे हम दोनों के लिए बात करने आया था सीमा" नवीन ने मुस्कुराकर जबाब दिया।
"क्या बात?" फिर वही रूखा से सवाल सीमा के मुँह से निकला।
"सीमा मैने शादी करने का फैसला कर लिया है", नवीन चहककर बोला।
"किसके साथ?" सिमा ने सपाट स्वर में पूछा।

"तुम्हारे साथ भई ओर कौंन, आज मैं तुम्हारे मम्मी पापा से इस विषय में बात करने आया हूँ", नवीन उसकी आँखों में देखकर मुस्कुराया।
ये बात सुनकर भी सीमा के चेहरे पर कोई खुशी नहीं आयी।

"क्या बात है सीमा तुम खुश नहीं हो?" नवीन अब परेशान हो गया था उसका दिल अब अनजाने भय से डर रहा था।
"कुछ नहीं" सीमा ने वही रूखा सा जबाब दिया।
" क्या बात है सीमा तुम कुछ अपसेट लग रही हो, सब ठीक तो है?" नवीन ने उदास होकर पूछा।

"नवीन हमारी शादी नहीं हो सकती", सीमा के इस एक वाक्य ने नवीन का दिल उसकी उम्मीदे सब चकनाचूर कर दिए।
उसके चाहते पर गहरी उदासी और आँखों में बेचैनी झलक रही थी।

"क्यों!!, क्या हुआ?" बड़ी मुश्किल से उसके मुंह से ये शब्द निकले।
"क्योंकि मैं नही चाहती", सीमा ने बहुत रूखे पन से जबाब दिया।

"और वे सब बातें वो प्यार के वादे वह सब क्या था?" नवीन धीरे से बोला।

"'भ्रम", हां भ्रम था वो हमारा नवीन वह प्यार नही था केवल एक कच्ची उम्र का आकर्षण था वह केवल एक अहसास था जो हमें एक दूसरे के साथ अच्छा लगता था जिसमें हम अपना बचपन शेयर करते थे लड़ते झगड़ते थे लेकिन प्यार, बोलो प्यार जैसा हमारे बीच कब हुआ नवीन हम केवल अच्छे दोस्त थे बस और हमेशा रहेंगे, मेरे जीवन में तुम्हारी वह जगह कोई नहीं ले सकता लेकिन शादी, नहीं नवीन मुझे तुममे अपना जीवनसाथी नही दिखता बस हम दोस्त ही हो सकते हैं", सीमा एक सांस में सब कह गयी।
" लेकिन मैं तुम्हे सच्चा प्यार करता हूँ सीमा", नवीन ने कुछ कहना चाहा।

"नहीं नवीन मुझे भूल जाओ", सीमा ने बेरुखी से कहा और अंदर चली गयी।
नवीन जैसे जड़ हो गया उसमे अब उठने की ताकत ही नही बची थी।
उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था की सीमा ने यह सब कहा है।
वह ना जाने कितनी देर वहां बैठा उस दरवाजे को देखता रहा जहां से सीमा अंदर गयी थी, इसे यकीन था कि अभी सीमा हंसती हुई आएगी और कहेगी की क्यों केस बुद्धू बनाया लेकिन यह भी केवल उसका भ्रम ही निकला वह नही आई और नवीन थके थके कदमो से बापस लौट आया।
नवीन अंदर तक टूट गया था, वह कई दिन तक इस उमीद में छत पर जाता रहा कि शायद सीमा लौट आये किन्तु उसका ये भ्रम भी नही टूटा।

अब नवीन समझ गया था कि यह प्यार एक धोखा है एक भ्रम है बाकी कुछ नहीं।

अब उसने घरवालों की मर्जी से शादी कर ली।
उसकी पत्नी सुंदर, सुशील एवं पढ़ी लिखी है, वह एक अच्छी पत्नी के सभी गुण रखती है, लेकिन नवीन उसमें भी सीमा को ही खोजता है क्योंकि पहला प्यार भुलाना कोई आसान काम है क्या फिर चाहे वह कोई भ्रम ही क्यों न हो।।
समाप्त।।।

नृपेंद्र शर्मा "सागर"

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