Showing posts with label #हॉरर. Show all posts
Showing posts with label #हॉरर. Show all posts

Friday, February 21, 2025

वो साया



1.वो साया


साल 2010 स्थान देहरादून के पास कहीं,

पूनम  अपनी देवरानी के साथ कुछ फोटो बनबाने के लिए आई थी, कुछ पासपोर्ट फोटो उन्हें बैंक एकाउंट के लिए चाहिए थे और कुछ वे ऐसे ही यादगार के लिए चाहती थीं।
पूनम, जैसा नाम वैसा ही रूप, सिंदूरी दूध सा गोरा रंग, पतले खूबसूरत गुलाबी होंठ, सुंतबा नाक और गहरी काली पनीली आंखे उस दिन गुलाबी साड़ी में वह बिल्कुल अप्सरा ही लग रही थी हर युवा दिल उसे देखकर तेज़ी से धड़कने लगा था।
ऐसे तो पूनम पैंतीस की उम्र पार कर चुकी थी उनके दो बच्चे भी हैं, लेकिन उनका छरहरा जिस्म ओर प्राकृतिक सुंदरता उनकी उम्र को कभी पच्चीस पार ही नहीं करने देती।
अभी पूनम और उनकी देवरानी रास्ते में ही थीं कि अचानक तेज हवा के साथ जोर की बारिश शुरू हो गयी, ये दोनों भीगने से बचने की कोशिश में दौड़ते हुए एक बाग में आकर खड़ी हो गईं लेकिन इस भाग दौड़ में दोनों पूरी तरह भीग चुकी थीं।
पूनम की गुलाबी साड़ी भीगकर उसके गोरे बदन से कस कर लिपट गयी थी, अब उसकी जवानी के सारे चिन्ह स्प्ष्ट उभर आये थे, वह जितना अपनी साड़ी की सही करने की कोशिश कर रही थी वह उतना ही और कसती जा रही थी।
ये दोनो बारिश से बचकर एक पेड़ के नीचे खड़ी अपने गीले बालों को झटक रही थीं।
पूनम के लंबे काले बाल उसके चाँद जैसे मुखड़े को बादल बनकर खुद में समेट लेना चाहते थे जिन्हें वह बड़ी अदा से झटक कर अपने चेहरे से अलग कर देती थी।
अपनी इस वेख्याली में की गई लुभाविनी अदाएं करते वक्त वह ये नहीं देख पाई की बाग में कुछ दूर एक मज़ार के पास खड़ा धुएं जैसा 'साया' उसकी हर अदा को बड़े गौर से देख रहा था।

पूनम बचपन से ही बहुत सुंदर थी, और सोलह सत्रह तक आते-आते तो उसकी सुंदरता कई हीरोइनों को मात देने लगी थी।

उसका पूनम के पूर्ण चाँद से भी गोरा मुख किसी को भी अपनी तरफ आकर्षित कर लेता था।

जो उसे एक बार देख लेता उसका जहन कई दिनों तक पूनम के पास गिरवी हो जाता।

स्कूल और कॉलेज में हमेशा पूनम की सुंदरता चर्चा के शिखर पर रही हर युवा दिल पूनम के नाम से आहे भरता रहा।
इक्कीस की उम्र तक आते आते पूनम की शादी देहरादून के पास कहीं पहाड़ी इलाके में हो गयी।
पूनम के पति ऐसी सुंदर पत्नी पाकर बहुत खुश थे वे पूनम को खुश करने का कोई मौका नही चूकते थे, इधर पूनम भी पहाड़ी गाँव की आवोहवा में रहकर ओर ज्यादा निखर गयी थी।
दो बच्चे होने पर भी उसके बदन की कसावट में कोई फर्क नहीं पड़ा था बल्कि वह दिनों दिन ओर निखरती जाती थी।

जबसे पूनम भीगकर बापस आयी उसे कुछ अजीब लग रहा था, उसके पति और सास को लगा कि भीगने से तबियत खराब हुई होगी तो उन्होंने पास के ही एक डॉक्टर से उसे दवाई दिला दी जिसे खाकर पूनम को नींद आ गई किन्तु नींद में या कहो उनींदी में उसे लगा कोई साया सफेद घोड़े पर बैठा उसे अपनी ओर बुला रहा है।
इस साये की उमर इकीस बाइस के जैसे लग रही थी, बहुत सुंदर गठीला नौजवान मुस्कुरा कर हाथ बढ़ाये पूनम को पुकार रहा था, ओर पूनम ना जाने क्यों खुद पर काबू न रख कर उसके आकर्षक में उसकी ओर खींची चली जा रही थी।

अगले दो तीन दिन पूनम बिस्तर पर लेटी रही उसका बदन निस्तेज, शक्तिहीन बना रहा उसे हर वक्त वो साया अपने आसपास महसूस हो रहा था।
एक खूबसूरत नौजवान अब पूनम को स्पस्ट दिखने लगा था, वह उसे देखकर प्यार से मुस्कुराता उसकी आंखों में देखता रहता, कभी वह सफेद घोड़े पर बैठकर आता पगड़ी पहने दूल्हा जैसे सजा हुआ।
वह बार बार पूनम को अपने साथ चलने का इशारा करता और पूनम अपना सर झटक कर खुद को उसके ख्याल से मुक्त करने का प्रयास करती, हां केवल प्रयास ही क्योंकि पूनम जिधर भी मुंह करती, उसकी आंखें जिस दिशा में भी देखती उसे वही साया मुस्कुराता नज़र आता।
पूनम अपने हाथ पांव हिला नही पाती थी ना ही उसके मुंह से शब्द निकलते थे, वह बहुत चाहती कि चीखकर सबको उसकी उपस्थिति बताए लेकिन उसे लगता कि किसी माया ने उसके सारे अंगों को जकड़ कर जड़ कर दिया गया है।
कभी उसे लगता कि ये सब बस एक सपना है, .. लेकिन इतना लंबा सपना।

पूनम के परिजनों ने कई डॉक्टर बुलाये जो आते, उसकी जांच करते और कहते "इन्हें कोई बीमारी नही है बस थोड़ी कमज़ोरी है", और एकाध ताकत का इंजेक्शन लगाकर कुछ दवाइया दे जाते।

किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है।
तीसरे दिन पूनम उठी, उसने थोड़ा सा खाना भी खाया उसके बाद उसने सभी परिवार को अपने आसपास किसी अनजान साये के होने की बात बताई ,लेकिन किसी ने भी उसकी बात पर विस्वास नहीं किया उसके पति और सास ने कहा कि बीमारी और कमजोरी की वजह से उसे वहम हो गया है।

उसी रात में आधी रात को जब पुनम की आंख खुली तो उसने देखा, वह साया उसके पति की छाती पर बैठा पूनम को बड़े मनुहार से देख रहा है उसकी उंगलियां पूनम के बालों से खेल रही हैं।
पूनम बहुत घबरा गई, उसने डरते डरते मरी आवाज में पूछा,"कौन हो तुम? ओर ऐसे मेरे पीछे क्यों पड़े हो??"

"सय्यद" उसने मुस्कुराकर कहा, याद है उसदिन बाग में बारिश से भीगी हुई तुम अपने बाल खोलकर उन्हें झटक रही थी।
वहीं पास ही मेरी मज़ार है, मैं वहीं बैठा हुआ था तुम्हारी खूबसूरती देख कर मुझसे रहा नही गया मुझे तुमसे मोहब्बत हो गयी और मैं तुम्हारे खुले बालों की खुश्बू में बंध कर तुम्हारे साथ आ गया।
तुम्हारी खूबसूरती का दीवाना हो गया हूँ मैं, अब तुम्हे अपना बनाना चाहता हूं, बस अपना", उसने कुटिलता से मुस्कुराकर कहा।
"नहीं" पुनम ने चिल्लाने की कोशिश की लेकिन उसकी आवाज उसके गले से ऐसे निकल रही थी जैसे वह किसी गहरे कुएं में कैद हो।
पूनम छटपटा रही थी उसकी आँखों से आंसू छलक रहे थे।

पूनम ने अपनी पूरी शक्ति समेट कर अपना एक हाथ उठा कर उसे अपने पति की छाती से परे धकेला, उसकी इस हरकत से जैसे वहाँ कोई जलजला आ गया, पूनम का पलंग बहुत तेज़ी से ऊपर उठ कर गोल घूमने लगा।

अब वह साया उसके पति की छाती पर पैर रखे खड़ा था उसकी आंखें गुस्से से लाल हो रही थी अचानक उसके चेहरे से मांस धुआं बनकर उड़ने लगा और दिखने लगा हड्डियों का भयानक ढांचा।
पूनम भय से मरी जा रही थी तभी उसे एक आवाज सुनाई दी ऐसी तीखी भयानक आवाज जैसे हज़ारो भौंरे एक साथ बिल्कुल उसके कान के अंदर गुंजार रहे हों।
वह कह रहा था, "तुम्हे मेरी होने से अब कोई नही रोक सकता, अब या तो तुम मेरे साथ चलो, नहीं तो तुम्हारे पति को मारकर मैं यहीं तुम्हारे साथ रहूंगा तुम चुन लो तुम्हे क्या मंज़ूर है।", ये कहकर वह जोर से हँसने लगा जिससे उसके मांस रहित डरावने हड्डी के ढांचे में जमे दांत चमकने लगे।
पूनम अपनी चेतना खोकर निढाल हो गयी अब वह हिल भी नही रही थी लेकिन उसकी भययुक्त आंखे अभी भी उसे देख रही थीं।

अचनक वह साया फिर से सुंदर नोजवान बनकर पूनम के सिरहाने बैठ गया, उसकी उंगलियां पूनम के बालों से खेलने लगी, वह पूनम के सर, माथे और गालों को सहला रहा था, अचानक वह झुका और पूनम के होंठो पर अपनी जीभ फिराने लगा, वह उसके होंठ चूम रहा था, अनायास पूनम का मुंह न चाहते हुए भी खुल गया अब वह उसके होंठो को पूरे जोर से चूस रहा था, अचानक पूनम को लगा कि वह साया धुंए में बदल रहा है, ओर देखते ही देखते वह धुआं बनकर उसके मुंह के रास्ते पूनम के पेट में चला गया।
उसके बाद से पूनम के पेट में बहुत दर्द रहने लगा, उसे भूख भी बहुत लगती लेकिन इतना खाने के बाद भी उसकी सेहत दिन प्रतिदिन गिरती जा रही थी।
पूनम का चाँद सा चेहरा जैसे पूनम से अमावस्या में तब्दील होता जा रहा था, उसकी सुंदरता को जैसे कोई ग्रहण लग गया था।
पूनम की सुंदर आंखें गढ्ढो में धंस गयी थीं, आंखों के चारों ओर काले घेरे अपना डेरा जमा चुके थे, पूनम का उजला रंग स्याह पड़ता जा रहा था।
कमजोरी के चलते पूनम अब ज्यादा समय बिस्तर पर ही लेटी रहती थी।
पूनम को लगता था की 'वह साया' हर वक़्त उसके साथ है, वह पूरी तरह से सय्यद के वश में हो चुकी थी सय्यद जब चाहता था मनमानी करता , पूनम असहाय होकर बस सबकुछ सहती रहती।
वह जब किसी को कुछ बताती तो कोई उसकी बात पर विश्वास नहीं करता।
अब तो लोग उसे मानसिक विक्षिप्त तक कहने लगे थे।


पूनम को याद आता था वह दिन जब वह साया उसके होंठो को चूमते हुए उसके पेट मे चला गया था , उसने पूनम के अंगों को बुरी तरह कुचला था जैसे अपने रहने की जगह बना रहा हो, पूनम को असहनीय पीड़ा हुई थी उसे ऐसा लग रहा था जैसे प्रसव की पीड़ा होती है, उसके कमर की हड्डियां तक चरमरा गई थीं।
लेकिन पूनम न तो हाथ पांव हिला पाई और न ही किसी को कुछ बता पाई बस उसकी आँखों से आंसू छलकते रहे।

उसी रात पूनम जब सोई तो उसे लगा कि अचानक उसके सारे वस्त्र अपने आप हट गए हैं और वह साया मुस्कुराते हुए उसके सामने खड़ा मुस्कुरा रहा है।
यूँ तो पूनम को अपने कपड़े बदन पर ही दिख रहे थे किंतु उसे न जाने क्यों ऐसा लग रहा था कि वह निर्वस्त्र है।
अचनक सय्यद उसके पास बैठ कर उसके बालों में उंगलियां घुमाने लगा।
"अब तुम पूरी तरह से मेरी हो लेकिन जो एक कमी रह गई उसे मैं आज पूरी कर लूंगा, फिर चाहे कोई कितनी  भी कोशिश करे तुम मेरी होकर रहोगी, मैं तुम्हारी सुंदरता पर आशिक हूँ, तुम्हारा हुस्न मुझे दीवाना कर देता है आज इस हुस्न को मैं जी भर कर प्यार करूँगा ओर तू सदा-सदा के लिए मेरी हो जाएगी", सय्यद पूनम की आंखों में देखते हुए बोला।
पूनम ना में सर हिलाने लगी वह जैसे आंखों ही आंखों में उस से छोड़ देने को कह रही हो।
सय्यद मुस्कुराया और पूनम के माथे को चूम लिया, उसने बड़े  प्यार से उसके आंसू पोंछे और पूनम के बदन को सहलाने लगा।
पूनम को उसका स्पर्श अपने सारे बदन पर हो रहा था उसकी उंगलियां उसके होंठ पूनम के जिस्म से खेल रहे थे। पूनम खुद को बहुत असहाय महसूस कर रही थी ।
पूनम को लग रहा था कि वह उसके अंग से खेल रहा है।

पूनम को अपने बदन पर उसकी उंगलियां मचलती महसूस हो रही थी।
पूनम उसे हटाना चाहती थी लेकिन वह कुछ नही कर पा रही थी, वह ना चाहते हुए भी बिना मर्जी उसके इस काम में साथ थी, सय्यद घण्टों पूनम के साथ जिस्मानी होता रहा और पूनम उसे ना चाहते हुए भी बर्दाश्त करती रही पूनम का 'जिस्म' फोड़े की तरह दुख रहा था अब वह बेहोश सी होने लगी थी।
पूनम को याद नही की सय्यद कब तक उसके जिस्म से खेलता रहा लेकिन उसके दर्द और निजी अंगों का गीलापन इस बात के गवाही दे रहे थे कि सय्यद ने पूनम से कई बार जिस्मानी सम्बन्ध बनाये थे, और रात के तीसरे पहर के खत्म होते ही वह उसके मुंह के रास्ते उसके पेट में चला गया था।

अब तो ये जैसे रोज का काम हो गया था दिन भर वह उसके पेट में रहता और रात होते ही बाहर आकर पूनम के जिस्म से खेलता उसकी बिना मर्जी उसके साथ सम्बन्ध बनाता।
ऐसे ही छः सात महीने बीत गए पूनम की हालत एकदम मरणासन्न ही गई, सभी को लगने लगा की पूनम को कोई मानसिक बीमारी हो गयी है, तभी वह अजीब बातें करती है और हर समय अजीब सी आंखे चढ़ाये रहती है।

अब पूनम अपने पति को अपने पास नही आने देती थी, वह उनको कुछ भी फेंक कर मार देती थी, वह कई बार उनपर हिंसक हो चुकी थी।
तभी लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि पूनम पागल हो गयी है।
लेकिन केवल पूनम ओर वह साया जानते थे कि ये सब कौन कर रहा है।
पूनम असहाय थी, बेवस थी ऊपर से कोई भी उसकी बातों पर यकीन नहीं करता था।

एक दिन पूनम की जेठानी की लड़की राधिका उसको देखने आयी, राधिका सोलह साल की समझदार लड़की थी, पूनम ने उसे सारी बात बताई, राधिका को पूनम के हालात और उसकी बातों पर यकीन आ रहा था।
राधिका अपने कुल देवता की पूजा करती थी, कुल देवता का राधा पर विशेष आशीर्वाद था उसमें थोड़ी अलौकिक शक्ति भी थी।
रात को राधा पूनम के साथ ही सो गई, राधिका की उपस्थिति से सय्यद पूनम से दूर हो गया वह राधिका की ऊर्जा का मुकाबला नही कर पा रहा था ।

सय्यद आंखे चढ़ाये गुस्से से पूनम को देख रहा था, वह बार बार पूनम से राधिका को अपने पास से हटाने को बोल रहा था ,वह बहुत परेशान था बहुत गुस्से में था आज इतने दिन में पहली बार इसे पूनम का जिस्म भोगने को नहीं मिल रहा था ।

सय्यद दूर से अपने चेहरे को विकृत करके पूनम को डराने की कोशिश कर रहा था लेकिन वह इसके पास नही जा पा रहा था।

अगले पंद्रह दिन राधिका पूनम के साथ ही रही और इन पंद्रह दिनों में सय्यद एक बार भी पूनम के पास नहीं आ पाया था वह बस दूर से उसे  डराने की कोशिश करता था ।

पूनम की हालत में थोड़ा सुधार आने लगा था , अब वह थोड़ा चलने फिरने भी लगी लगी थी और सेहत भी सुधर रही थी।
सब सही होने लगा था कि अचानक उस दिन राधिका की स्कूटी ट्रक से टकरा गई और उसकी दोनों टांगो में फ्रेक्चर हो गया जिससे उसके पैरों का ऑपरेशन करना पड़ा और राधिका को अस्पताल में रहना पड़ा।

उस रात सय्यद ने पूनम को बहुत प्रताड़ित किया , वह क्रूर हँसी हंसते हुए बोला," जो भी हमारे बीच अएगा उसका यही हाल होगा।
फिर वह पूनम के जिस्म को नोचने लगा आज सय्यद प्यार से नही बल्कि गुस्से और वासना से पूनम का बलात्कार कर रहा था वह उसे यातनाएं दे रहा था।

सुबह होते होते पूनम बिल्कुल बेहोश होकर पड़ गई उसका जिस्म सफेद पड़ गया था जैसे किसी ने उसका सारा खून निचोड़ कर पी लिया हो।
अब पूनम को भी अस्पताल में भर्ती करना पड़ा जहाँ राधिका भर्ती थी।
अस्पताल में पूनम और राधिका को इनके परिवार ने मिन्नत करके एक ही कमरे में शिफ्ट करवा दिया, जिससे दोनों की एक साथ देखभाल में उन्हें आसानी रहे।
उस रात फिर से सय्यद पूनम को छू नहीं पाया हालांकि वह एकदम उसके नज़दीक खड़ा था क्यूंकि राधिका की ऊर्जा उसके बीमार होने से कुछ कमज़ोर हो गयी थी अतः वह कमरे में तो आ गया लेकिन वह पूनम को छू नहीं पा रहा था।
सय्यद फिर से चिढ़ गया, वह अजीब सी डरावनी गुर्राहट निकालने लगा  जैसे बहुत सारे भेड़िये एक साथ गुर्रा रहे हों जिनके हाथ से शिकार निकल गया हो।

सय्यद को पूनम के जिस्म की आदत हो गयी थी, वह इसके बिना बहुत वेचैन था सय्यद लगभग बाबला होकर पूनम को डरा रहा था।
पूनम खुली आँखों से उसे देख रही थी सय्यद का चेहरा देखते ही देखते बहुत बड़ा और विकृत होने लगा उसके दांत लंबे होकर मुंह से बाहर दिखने लगे।
वह पूनम से कह रहा था, "चल यहां से नहीं तो अभी तुझे मार दूंगा ओर साथ ही तेरी इस रक्षक को भी, ये बड़ी भगतनी बनी है ना, मैं चाहूँ तो अभी इसका खून पी जाऊंगा लेकिन मैं फालतू लोगों पर अपनी ताकत बर्बाद भी करना चाहता।
तू चुपचाप चल मेरे साथ", और बोलते समय उसकी आवाज ऐसी गुर्राहट के साथ निकल रही थी जैसे कोई भेड़िया किसी आदमी की आवाज में बोल रहा हो।

पूनम चुपचाप मुंह बंद किये लेटी रही, पूनम को ये बात समझ आ गयी थी कि राधिका के आस-पास सय्यद उसका कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा।
किन्तु बाद में!!?
पूनम जानती थी कि दो चार दिन में उसे अस्पताल से छुट्टी मिल ही जाएगी...उसके बाद..!
पूनम उसकी वहशत को याद करके सिहर उठी की कैसे इसने पूनम के जिस्म को अंदर ओर बाहर पूरा रौंद डाला था पिछली रात, वह जानती थी कि अब इसका गुस्सा फिर से पूनम पर बरसेगा।
किन्तु वह बेबस थी क्योंकि उसे पता था कि घर में कोई भी पूनम की बात नहीं समझता उनमें से कोई ये मानने को तैयार नहीं कि ये किसी ऊपरी साये का काम है।
उन्हें तो बस यही लगता था कि पूनम पर पागलपन के दौरे पड़ते हैं।

इधर सय्यद दो तीन दिन फिर पूनम से दूर रहा तो दवाइयां अपना काम करने लगीं और पूनम ठीक होने लगी।

चौथे दिन डाक्टर ने कहा कि अब पूनम पहले से वेहतर है तो आप इन्हें घर ले जा सकते हैं और कुछ दवाइयां खाने के लिए दे दीं।
पूनम अस्पताल से या कहो राधिका के पास से जाना नही चाहती थी लेकिन वह कुछ बोल नहीं पाई।

घर आने के बाद पूनम सामान्य थी उसका पूरा दिन आराम से बीत गया।
रात को वह अपने पति के साथ सोई।
कोई आधी रात को पूनम को लगा कि उसके कपड़े अपने आप उतर रहे हैं वह निर्वस्त्र होती जा रही है।
पूनम ने आंख खोल कर देख तो उसके पति पलंग से नीचे पड़े थे और सय्यद उनके सीने पर पैर रखे खड़ा था।
सय्यद ने बहुत सुंदर चमकीले कपड़े पहने थे और सर पर पगड़ी पहनी हुई थी।
वह हाथ बढ़ाकर पूनम से कह रहा था," ऐ हुस्न की तस्वीर, तू क्यों मुझे तड़फाती है, आ मेरे साथ चल मेरी दुनिया में मैं तेरे साथ  निकाह करके तुझे अपनी दुनिया में ले चलता हूँ हमेशा के लिए।
पूनम ने गुस्से से उसे घूर कर देखा और इनकार में सर हिलाकर मुंह फेर लिया।

पूनम की इस हरकत से जैसे वह फिर गुस्से से पागल हो उठा उसने अपना पांव पूनम के पति के गले पर रख दिया और अपना आकर बढ़ाने लगा। धीरे-धीरे वह बहुत विशाल होने लगा था, पूनम के पति के गले से गूँ गूँ की आवाजें आ रही थीं,  उनकी आंखे बाहर उबलने लगी, ये देखकर पूनम ने उसके आगे हाथ जोड़ दिए ये पूनम का उसे मनमानी करने के लिए बेमन से किया 'हाँ' का इशारा था।

सय्यद फ़ौरन उसके पास आकर बैठ गया और पूनम के बदन से खेलने लगा, वह फिर पूनम से बड़ी बेरहमी से पेश आ रहा था पूनम उसके इस वहशियत से बहुत दर्द महसूस कर रही थी।
"चलो मेरे साथ तुम्हारे सारे दर्द दूर हो जाएंगे और तुम मेरी मल्लिका बनकर रहोगी", वह पूनम के कान में बोला।

"मार डालो मुझे अब दर्द बर्दास्त नहीं होता, तुम कहते हो कि तुम मुझसे इश्क़ करते हो और दर्द ऐसे देते हो कि कोई दुश्मन भी किसी को ना दे, हाँ तुम मार डालो मुझे", पूनम बहुत हिम्मत करके उससे गुस्से में बोली।

"नहीं, ऐसे नहीं तुम मुझे कुबूल करलो फिर मैं तुम्हे अपने साथ ले चलूंगा, लेकिन ऐसे नही जब तुम्हें मुझसे मोहब्बत हो जाएगी तब" सय्यद मुस्कुरा कर बोला और अगले ही पल किसी हिंसक जानवर की तरह उसे नोचने लगा।

पूनम को लग रहा था कि उसके नाजुक अंग में कुछ असहनीय पीड़ा हो रही है, उसने बड़ी मुश्किल से सर उठा कर देखा और उसकी सांस ही अटक गई।
सय्यद पूनम के अंग से उसके अंदर प्रवेश कर रहा था और देखते ही देखते सय्यद पूनम के शरीर में समा गया।

इसके बाद फिर शुरू हो गया सिलसिला।

 सय्यद अब फिर रोज रात भर पूनम के साथ मनमानी करता और सुबह होने से पहले कभी मुंह से तो कभी किसी दूसरे अंग से उसके अंदर प्रवेश कर जाता।
अब वह पूनम से प्यार से पेश आने लगा था, वह इससे बहुत प्यार भरी बातें करता और रात भर पूनम के शरीर को भोगता।

धीरे-धीरे पूनम को भी इसकी आदत होने लगी, वह ना चहते हुए भी सय्यद को पसंद करने लगी थी।
पूनम को सय्यद का प्यार से पेश आना प्यार की बाते करना और भरपूर प्यार करना न जाने कैसे लेकिन अच्छा लगने लगा था।

अब पूनम सामान्य रहने लगी लेकिन उसके बदन से पूरा खून जैसे सूख सा गया था अब वह केवल हड्डियों का ढांचा मात्र रह गयी थी।
उसका दूधिया गोरा रंग काला पड़ गया था,  उसकी आंखें गहरे गड्ढे में धंस गयीं थी।

एक दिन पूनम अपनी देवरानी के साथ दवाई लेने जा रही थी तभी उन्हें उनकी कोई परिचित महिला रास्ते में मिल गयी।
वे पूनम को देखते ही चौंक पड़ीं और बोलीं, "अरे ये पूनम के चाँद को ग्रहण कैसे लग गया क्या हो गया तुम्हे पूनम?"

"जी मुझे लगता है मेरे ऊपर कोई ऊपरी साया है, लेकिन हमारे ये ओर परिवार वाले मानते ही  नहीं बस डॉक्टर से दवाई लेने जा रही हूं", पूनम ने उन्हें धीरे से कहा।

तभी वह महिला पूनम की देवरानी को अलग ले जाकर बोली, "मुझे भी लगता है कि पूनम किसी ऊपरी साये की चपेट में है, देखो तीन दिन बाद पड़ोस के गांव में जागर है तुम लोग पूनम को वहां लेकर आ जाओ, जागर में देवता सब बात बता देंगे कि क्या हुआ है।
ओर हाँ पूनम से कुछ मत कहना नही यो वह साया तुम्हे उधर जाने से रोकने के लिए कुछ अनहोनी  भी कर सकता है।"
"ठीक है, हम आ जाएंगे", पूनम की दोरानी ने कहा और मुस्कुराते हुए चली गयी।

तीन दिन बाद जागर में पूनम की देवरानी, उसकी जेठानी, उसकी सास और उसके पति पूनम के साथ आये।

जागर में जब 'नरसिंह देवता' अपने पुजारी पर आए तो उन्होंने पूनम की तरफ इशारा करके जोर से कहा,  "बचालो इसे, वह शैतान जिन्न इसे अंदर ओर बाहर दोनों तरफ से खत्म कर रहा है, अब बस पंद्रह दिन बचे हैं इसके पास दूर करदो उस शैतान को इस से, वह बहुत दुष्ट आत्मा है।
वह इसे अपने साथ अपनी दुनिया में ले जायेगा, उसने तुम्हारे  घर की लड़की का भी एक्सीडेंट कर दिया था क्योंकि वह इसके रास्ते में रुकावट बन रही थी।"

जागर में कई मठों के पुजारी भी थे, उनमें से एक पुजारी ने इन्हें इशारा किया कि वह इनकी मदद करेगा।

पुजारी ने अगले ही दिन इनके घर आकर पूजा की इनके घर को गोमूत्र एवं गङ्गा जल से शुद्ध किया, फिर उन्होंने पूजा करके एक नारियल और कुछ दूसरा समान एक लाल कपड़े में बांध कर पूनम के पलंग में सिरहाने दायीं तरफ बांध दिया। उन्होंने इनके घर के चारों तरफ भी सुरक्षा घेरा बना दिया।

रात को फिर सय्यद ने पूनम को धमकाना शुरू किया वह बार-बार उसे वह पोटली फेंकने को बोल रहा था, वह तरह-तरह के भेष बनाकर अजीब सी डरावनी शक्ल करके पूनम को डरा रहा था किंतु पूनम को छू भी नही पा रहा था।
अब पूनम समझ गयी थी कि पूजन सामग्री सय्यद को उसके पास आने से रोक रही है।

अगले दिन पूनम कुछ सामान्य थी उसने पण्डित जी को रात की घटना बताई।
पण्डित जी ने पूनम के पलंग के सुरक्षा कवच बनाने के साथ ही पूनम को भी कई ताबीज बनाकर दिए।

कुछ दिन तो सय्यद नियमित आता और पूनम को धमकाता किन्तु पूजा एवं रक्षा कवच (ताबीज) की शक्ति के आगे बेबस होकर धीरे-धीरे उसने आना बंद कर दिया।
पूनम आज भी सय्यद को याद करके सिहर जाती हैं।
यह उनके जीवन का एक काला अध्याय है जो पूरे दो साल तक चला।


2 . पान का बीड़ा



1995राजस्थान कोटा,

सन्तोष बाइस-चौबीस साल का मजबूत जवान लड़का एक ट्रक पर ड्राइवर था।
उसका समान लाद कर कभी जयपुर तो कभी मंदसौर(मध्यप्रदेश) आना जाना होता रहता था।
उसके साथ एक लड़का रवि खलासी का काम करता था, उस दिन भी इन्होंने कोटा से मन्दसौर का कोई समान ट्रक में भरा और निकल पड़े सुबह-सुबह।
सन्तोष को पान खाने का बहुत शौक है तो उसने रास्ते से एक पान मुँह में डाल लिया  और एक जोड़ा बंधवाकर अपनी जेब में रख लिया, सुबह का सुहाना मौसम ओर खाली सड़क सन्तोष मस्ती में गुनगुनाता सरपट गाड़ी दौड़ा रहा था, अभी ये लोग एक घने निर्जन जंगल से गुजर रहे थे कि अचानक 'भम्म' की तेज़ आवाज के साथ गाड़ी का एक (पिछला)टायर फट गया ।
सन्तोष ने गाड़ी साइड लगाई और लगा देखने, "ओ साला अंदर का टायर है यार, औए रवि चल जैक निकाल टायर फट गया यार, बदलना पड़ेगा चल जैक लगा मैं स्टेपनि उतरता हूँ", उसने खलासी से कहा।
आधे घण्टे अथक मेहनत के बाद पसीना बहाते हुए पहिया बदल कर ये लोग अपने साफर पर निकल पड़े सब कुछ सामान्य था।
कुछ आगे जाने पर सन्तोष की पान खाने की इच्छा हुई किन्तु ये क्या पान तो जेब से नदारद था।
"औए रवि मेने पान लियो थो ना, मिल काएँ नीं रयो", उसने खलासी से कहा।

"उस्ताद जी बठे पहियों बदलो थो अपन ने, बठे गिर गयो होगो", खलासी ने याद करके बताया।
"हाँ यार हो सकता है", संतोष ने गाड़ी की रफ्तार बढ़ाते हुए कहा।

 दोनो अपना काम खत्म करके शाम तक घर आ गये सब सामान्य ही था।

रात को सन्तोष अकेला छत पर सोता था, उस दिन भी खा पीकर सोया था। रात का कोई बारह एक बजा होगा , सन्तोष को लगा कि कोई उसकी चादर खेंच रहा है, अभी ये कुछ समझ भी नही पाया था तभी एक सुरीली आवाज आई, "उठो सा एक पान नही खिलाओगे? मीठा पान।"
सन्तोष ने एक झटके से आंखें खोल दी एक बहुत सुंदर लड़की उसकी खटिया पर पैरों की ओर बैठी मुस्कुरा रही थी।

सन्तोष के तो तिरपन कांप गए उसे देख कर,
"क.क.क..क!!को!! कौन!! हो थम??", उसका हलक सुख गया जबान तालु से चिपक कर रह गई।

और वह अनजाने भय से बदहवास हो कर चीखने की कोशिश करने लगा किन्तु उसकी चीखें उसके गले में ही घुटकर रह गयी और सन्तोष बेहोश हो गया।
सुबह उठकर उसे लगा कि रात को उसने एक डरावना सपना देखा होगा और वह अपने सामान्य दिनचर्या में लग गया किन्तु उसे लगा कि आज उसकी तबियत कुछ खराब है, शायद बुखार हो रहा है।
किन्तु सन्तोष अपने काम में लगा रहा।  अगले दिन संतोष गाड़ी लेकर फिर उसी रास्ते पर जा रहा था, कि उसकी पान खाने की इच्छा हुई उसने जेब से पान निकल कर उसका कागज उतारा ही था कि एक आवाज सुनी, "अकेले खाओगे सा? मन्ने ना दोगे?", और एक मधुर हंसी 

 
उसने पलट कर देखा वही रात वाली लड़की उसके साथ हाथ पसारे बैठी थी। सन्तोष डर कर सिहर गया और हड़बड़ाहट में पान उसके हाथ से नीचे गिर गया,  वह ये नहीं देख पाया कि यह वही जगह थी जहां इन्होंने टायर बदला था।

सन्तोष को फिर लगा कि ये उसके मन का वहम होगा और वह इस घटना को भी भूल गया।

उस रात सब सामान्य रहा और सुबह से उसे अपनी तबियत में भी कुछ सुधार लगा।
अगले दिन सन्तोष का चक्कर जोधपुर का था और कोई अप्रत्याशित घटना नहीं हुई।
रात को फिर से सन्तोष छत पर सोया था। समय यही कोई बारह एक का था उसकी चादर फिर सरक गयी, उसने आंख खोल कर देखा तो वही लड़की उसके सामने खड़ी मुस्कुरा रही थी,
"आज पान खिलाने नहीं आये सा", उसने मिनमिनाते हुए कहा और  अपना हाथ इसके सामने फैला दिया।

सन्तोष ने उठकर भागना चाहा किन्तु उसे लगा की किसी ने उसे चारपाई पर चिपका दिया है। उसने चीखना चाहा किन्तु उसकी आवाज बस गूँ गूँ बनकर रह गई, सामने खड़ी लड़की उसकी हालत पर जोर से हंस रही थी और सन्तोष की चेतना उसे छोड़कर जा चुकी थी।
सन्तोष सुबह देर तक नहीं उठा तो उसकी माँ उसे उठाने आ गई किन्तु ये क्या, सन्तोष तो खटिया से नीचे पड़ा था और कांप रहा था।
उसे ऐसे देख कर उसकी माँ की चीख निकल गई ।
उसके परिजन सन्तोष को नीचे आंगन में ले आये, संतोष का पूरा बदन बुखार की आग में जल रहा था और ये जोर से कराह रहा था, आसपास के लोग भी इकट्ठा हो गए, डॉक्टर-वैद्य भी बुलाये गए किन्तु किसी को कुछ समझ में नही आया। तभी किसी ने सुझाया,"ऊपर का चक्कर लगता है भैरों मठ के बाबा जी को बुला लो।"
और एक आदमी दौड़ा भैरो गढ़ी, 'भैरो नाथ बाबा जी' ने आते ही कहा, "हट जाओ सब यहां से।" और वे कुछ मन्त्र पढ़कर फूंकने लगे, शांत हो जाओ ये कोई खतरनाक चुड़ैल नहीं है, बस एक अतृप्त भटकती आत्मा है। और उन्होंने आसन लगा कर कोई पूजा शुरू कर दी, कुछ ही देर में सन्तोष स्थिर होकर बैठ गया और अनजानी मुस्कान बिखेरने लगा,
"कोन है तू और क्या चाहती है?" बाबा भैरोनाथ ने कड़क कर पूछा।
"कुछ नहीं ,कुछ भी नहीं, मैं किसी को सताने नहीं आई। मुझे इन्होंने उस दिन पान खिलाया था, बस उसी के मीठे स्वाद के लालच में यहां आ गई,  एक दिन और इन्होंने पान खिलाया उसके बाद मुझे भूल गए", उसके मुंह से पतली आवाज निखली और सन्तोष लड़की की तरह हँसने लगा।
"कौन है तू??" बाबा जी ने फिर पूछा।

 "मैं अमुक गांव की लड़की हूँ, अपने पति के साथ मोटरसाइकिल पर ससुराल जा रही थी। रास्ते में हमने मुंह में मीठा पान डाला था, हम लोग अपनी मंजिल पर जा रहे थे कि एक ट्रक ने हमें कुचल दिया। बस तभी से मैं उस स्थान पर भटक रही हूँ।
उस दिन इन्होंने पान खिलाया तो मुझे बहुत अच्छा लगा और मैं इनके साथ आ गई", सँतोष लड़की की आवाज़ में बोला।
"ऐसे किसी को परेशान करना ठीक है क्या?", बाबाजी कड़क कर बोले और धूने में लोबान डाल दिया जिस से उस आत्मा को कष्ट होने लगा।
"मुझे छोड़ दो, मुझे जाने दो, मैं किसी को नहीं सताती", सन्तोष के मुँह से पतली आवाज में निकला और वह सुबकने लगा।
"अच्छा बोल तुझे क्या चाहिए और हाँ उसके बाद कभी परेशान किया तो समझ ले जला दूँगा तुझे", भैरोनाथ जी ने पूछा।
"बस पान, नए कपड़े और श्रंगार", उसने मिनमिनाते हुए कहा।
"ठीक है तेरे स्थान पर दे देंगे अब यहां मत आया करना कभी, चल नाक रगड़ और वचन दे", बाबा जी ने कहा।


 सन्तोष ने नाक रगड़ी और ह

हाथ उठाकर कहा, " दिया वचन, नहीं आऊँगी कभी।" और सन्तोष सामान्य होने लगा।
सन्तोष की माँ ने दो जोड़े लहंगा ओढ़नी, पूरे एक सौ एक मीठे पान और श्रंगार का सारा सामान, उस स्थान पर रखवाया जहां सन्तोष का पान गिरा था।
सन्तोष अब इस रास्ते से भूल कर भी नहीं गुजरता और जब भी उस लड़की को याद जरते है सिहर जाता है।


Saturday, September 18, 2021

झूले पर मौत

अक्टूबर का महीना था, मौसम अधिकतर सुहाना ही होता था। लेकिन अक्सर शाम जल्दी ढलने लगती थी और पर्वतीय इलाकों में शाम के बाद सर्द लहर चलना भी आम बात थी।
सुहानी और सुरेश अपने पारिवारिक मित्र पंकज और प्रेरणा के साथ नैनीताल टूर पर आए हुए थे। सुरेश के पास मारुति जिप्सी थी जो पहाड़ी यात्राओं के लिए बिल्कुल उपयोगी थी। ऊपर से सुरेश ने उसे मोडिफाइड करवाकर छत को एक फाइबर ग्लास से बनबाया था और पीछे की सीट सीधी करवाकर अगली सीटों के पैरलर करवा ली थी। जिप्सी की फाइबर ग्लास रूफ केवल चार पिलर के सहारे टिकी हुई थी जिसे कभी भी एक साइड से खोलकर पीछे डिक्की में रख कर जिप्सी को फूल ओपन बनाया जा सकता था।
दो दिन और एक रात की फुल मस्ती के बाद ये चारों लोग शाम ढलने से पहले नैनीताल से वापस आने के लिए निकल पड़े। लेकिन उस दिन शाम कुछ जल्दी ही ढलने लगी थी और सात बजते-बजते अंधकार पूरी तरह पसर गया था। यूं तो ठंड बहुत ज्यादा नहीं थी लेकिन कहते हैं ना कभी कभी वक़्त पूरी तरह मज़ाक के मूड में होता है। तो शायद आज का दिन भी इन चारों के लिए कुछ ऐसा ही बन गया था। वातावरण में धीरे-धीरे घना सफेद कोहरा फैलने लगा था जो बस बीस पच्चीस फुट की ऊँचाई तक ही था लेकिन पूरी तरह सफेद रंग की चादर जैसे उनके आगे उनका रास्ता रोके खड़ी थी।
"मैंने कहा था ना कि या तो जल्दी निकलो नहीं तो कल सुबह चलेंगे। अब देखो कैसा डरावना मौसम हो गया है। सामने का कुछ भी नज़र नहीं आ रहा है। ऐसा लगता है कि ऊपर वाला भी हमें वापस जाने से रोकने का संकेत दे रहा है।" प्रेरणा घबराई हुई आवाज में बोली।
"अरे कुछ नहीं भाभी जी! ये तो बस पहाड़ी आबोहवा का असर है। पहाड़ों में ऊपर ठंड होने लगी है और नीचे मौसम गर्म है। बस इसी लिए ये कोहरा आ गया है। हम लोग बस आधे घण्टे में ही कालाढूंगी से आगे निकल जाएँगे उसके बाद सड़क सीधी और एरिया प्लेन होगा। फिर हम आराम से दो घण्टे में मुरादाबाद पहुँचकर अपने बिस्तर में होंगे।" सुरेश ने लापरवाही से गाड़ी चलाते हुए कहा, लेकिन कोहरे और लापरवाही में वह ये नहीं देख पाया कि गाड़ी कबकी सड़क से उतर कर नीचे कच्चे रास्ते पर चलने लगी है।
कोहरे की उस चादर पर पड़कर गाड़ी की लाइट्स भी घेरे के रूप में फैल जाती थीं। उन्हें नज़र आते थे तो बस पेड़ों के साये जो सामने रास्ता होने की पुष्टि करते इनके साथ-साथ चल रहे थे।
ऐसे ही चलते-चलते कोई एक घण्टा गुजर गया था। गाड़ी की स्पीड भी बहुत कम थी। प्रेरणा को हैरानी हो रही थी कि पिछले एक घण्टे से ना तो कोई गाड़ी इनके सामने से आई थी और ना ही पीछे से। लेकिन वह ये सोचकर चुप थी कि ये लोग फिर डरपोक कहकर उसकी मज़ाक बनाएँगे। लेकिन अंदर ही अंदर वह बुरी तरह घबरा रही थी और हनुमान जी को याद कर रही थी।
कुछ ही दूर और चलने के बाद इनकी गाड़ी झटके खाने लगी और फिर एकदम खररर!! की तेज आवाज करके बन्द पड़ गयी।
"अब??" प्रेरणा और प्रशांत ने लगभग एक साथ ये सवाल किया।
"लगता है चढ़ाई पर चढ़ने की वजह से इंजन गर्म हो गया।" सुरेश ने फिर उसी बेपरवाही से जवाब दिया और  गाड़ी से नीचे कूद गया।
"लेकिन हम तो नीचे उतर रहे हैं फिर चढ़ाई कहाँ से आ गयी? और ये रास्ता भी कुछ अनजान सा नहीं लग रहा? प्रेरणा ने नीचे देखते हुए कहा।
"हाँ यार हम तो नैनीताल से वापस लौट रहे हैं तो फिर हम चढ़ाई क्यों चढ़ रहे हैं? और ये तो कोई कच्चा रास्ता है यार सुरेश। क्या हम लोग रास्ता भटककर कहीं और निकल आये हैं?" पंकज ने डरते हुए पूछा।
"अरे यार चुप करो तुम दोनों डरपोक लोग! पहले मुझे गाड़ी देखने दो की इसमें क्या हुआ है। तबतक तुम लोग नेट खोलकर लोकेशन और रास्ता देखने की कोशिश करो।" सुरेश ने कहा और आगे बढ़कर गाड़ी का बोनट उठा दिया। बोनट उठते ही उसमें से उठते धुएँ से सुरेश जलते-जलते बचा।
गाड़ी इतनी बुरी तरह गर्म हुई थी कि घुएँ में आग की लपटें नज़र आ रही थीं।
"ओह्ह!! ओवर हीट होने के कारण इंजन जाम हो गया लगता है। अब बिना इंजन ठंडा करे गाड़ी स्टार्ट नहीं होगी यार!" सुरेश पहिये पर लात मारकर झुंझलाहट उतरते हुए बोला।
"फिर अब क्या करें?" सुहानी जो अभी भी सीट पर बैठी हुई थी, नीचे उतरते हुए बोली।
"पंकज देखो पीछे डिक्की में एक कैन में पानी होगा जरा ले आओ तो।" सुरेश ने धीरे से कहा।
"यार सुरेश यहाँ कैन तो है लेकिन इसमें पानी की एक बूंद भी नहीं है।" पंकज कैन को हिलाते हुए बोला।
"धत्त!!! इसे कहते हैं मुसीबत में और मुसीबत।
अब जाओ और कहीं से पानी ढूंढकर लेकर आओ।" सुरेश ने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा।
"अरे यार अब इस अनजान जँगल में मैं कहाँ से पानी ढूँढ़ के लाऊँ?" सुरेश डरते हुए बोला।
"अच्छा चल हम दोनों चलते हैं। और तुम दोनों गाड़ी में ही बैठी रहना हमारे लौटने तक।" सुरेश ने प्रेरणा और सुहानी को देखते हुए कहा।
"यार सुरेश मुझे इन दोनों को ऐसे अकेले इस घने जंगल में छोड़कर जाना ठीक नहीं लग रहा। मेफे विचार से या तो हम चारों को चलना चाहिए या फिर यहीं रुककर रात बितानी चाहिए। ऐसे भी ये रास्ता बिल्कुल सुनसान है। तुमने देखा है कि पिछले दो घण्टे से हमने इस रास्ते पर ना तो कोई गाड़ी देखी है और ना ही कोई आदमी।" पंकज ने कुछ सोचते हुए कहा।
"पंकज जी ठीक कह रहे हैं सुरेश, और ऐसे भी इस घने अँधेरे में पानी खोजना आसान नहीं होगा।
क्या तुम्हें याद है कि पीछे इस रास्ते पर पानी का कोई पॉइंट दिखा हो या कोई बस्ती ही मिली हो। फिर आगे भी अंधेरे में ही हाथ-पांव मारने होंगे।" सुहानी ने सुरेश को समझाते हुए कहा।
"ठीक है आओ कुछ सोचते हैं।" सुरेश ने गाड़ी से बोतल निकालते हुए कहा और पैग बनाने लगा।
"यार रात भर यहाँ रुकना भी सही नहीं होगा! ये जँगल जँगली जनवरों से भरा हो सकता है औऱ यदि कोई तेंदुए या हाथी इधर आ गया तो हमारे लिए जान का खतरा हो जाएगा। वैसे इस रास्ते की बनाबट कुछ ऐसी नहीं लगती जैसे ये किसी रिसोर्ट का रास्ता हो? अभी समय क्या हुआ है? और तुमने नेट से लोकेशन देखने की कोशिश की?" सुरेश ने कई सवाल एक साथ कर दिए।
"समय तो अभी नो बजे हैं और नेटवर्क यहाँ है नहीं तो बाकी हम लोकेशन तो छोड़ किसी को कॉल तक नहीं कर सकते।" पंकज ने जवाब दिया।
"ओह्ह!! फिर अब?"  प्रेरणा ने घबराहट भरी आवाज में पूछा।
"चलो चारों लोग एक साथ चलते हैं शायद सुरेश का अनुमान ठीक हो और आगे कोई रिसोर्ट मिल जाये। नहीं तो कोई पहाड़ी गाँव तो अवश्य होना चाहिए क्योंकि इस रास्ते पर घास बिल्कुल नहीं है और गाड़ियों के पहियों के निशान भी हैं।" सुरेश ने कहा और चारों लोग उस रास्ते पर आगे बढ़ गए।
कोई आधा घण्टा चलने के बाद इन्हें सामने एक बहुत बड़ा घास का मैदान दिखाई दिया जिसके बीच में लोहे के दो झूले लगे हुए थे। उसके पीछे एक बड़ी सी बिल्डिंग थी जिसका शीशे के दरवाजा दूर से ही चमक रहा था। उसे देखकर इनकी आँखो में चमक आ गयी और इनके कदमों की गति खुद ब खुद बढ़ गयी।
थोड़ा आगे बढ़ने पर इनके कानों में झूले की करर्रर!! करर्रर!! की तेज आवाज आने लगी। इन्होंने ध्यान से देखा सामने झूलों पर दो बच्चे लगभग अर्धनग्न मस्त होकर झूला झूल रहे थे।
"अरे यार कौन लोग हैं ये जो इतनी सर्दी में भी बच्चों को इतनी रात में झूला झूलने के लिए छोड़ रखा है और खुद मस्त होकर कमरों में पड़े हैं।" सुरेश उन बच्चों को देखकर कुछ जोर से बोला।
तभी उन्हें बच्चो के तेज खिलखिला कर हँसने की आवाज आने लगी।
"शहशशस!!!, मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा, इतनी रात में ये बच्चे बाहर कैसे हैं। जरा देखो उन बच्चों को इतने नाज़ुक से दिख रहे हैं लेकिन झूला ऐसी आवाज कर रहा है जैसे ये हाथी के बच्चे हों। और इनकी हँसी कितनी डरावनी है।" प्रेरणा पंकज का हाथ पकड़कर रोकते हुए बोली।
"अरे कुछ नहीं भाभी ये बस आपका वहम है, अभी समय ही क्या हुआ है जो बच्चे बाहर नहीं हो सकते। और रही बात झूले की आवाज की तो हो सकता है झूला बाहर होने की बजह से जंग खा रहा हो और आवाज कर रहा हो।" सुरेश उन बच्चों की ओर बढ़ते हुए बोला।
ये लोग अभी कुछ ही दूर आगे बढ़े थे कि एक आदमी तेज़ी से दौड़ता हुआ आया और बोला, "साब जी उधर मत जाइए ये अच्छा होटल नहीं है। आप लोग मेरे पीछे आइए। उधर मुड़कर मत देखना साब जी बस मेरे पीछे चले आइए।"
पता नहीं ये उसकी आवाज का जादू था या कोई दैवीय प्रेरणा की ये लोग उस आदमी के पीछे हो लिए चुपचाप।
ये लोग अपनी तरफ से लगभग दौड़ ही रहे थे लेकिन फिर भी उस आदमी को पकड़ नहीं पा रहे थे। लेकिन बस बिना पीछे देखे ये लोग उस आदमी के पीछे भागे जा रहे थे।
इनके कानों में पीछे की तरफ से बहुत भयानक चीखें गूँजती महसूस हो रही थीं जैसे कोई इनके इधर भाग आने से बहुत नाखुश हो।
कुछ ही देर में सामने कुछ दिए से जलते दिखने लगे।
"उधर साब जी!!" उस आदमी ने इशारा करके कहा और अचानक गायब हो गया।
ये लोग अब और तेज़ी से दौड़ रहे थे इन्हें कुछ-कुछ समझ आ रहा था। कुछ ही देर में ये उस गाँव में थे और एक घर का दरवाजा पीट रहे थे।
"कुछ ही देर में दरवाजा खुला, सामने एक बूढ़ा और एक लड़की खड़े थे।
"हम लोग मुसाफिर हैं और रास्ता भटक गए हैं, क्या आज रात के लिए हम यहाँ रह सकते हैं?" सुरेश ने घबराए स्वर में पूछा।
"आ जाइये आप लोग।" बूढ़े ने कहा और सामने से हट गया।
कुछ ही देर में ये लोग उस बूढ़े को सारी कहानी सुना चुके थे कि कैसे ये लोग नैनीताल से निकलकर रास्ता भटक गए और इनकी गाड़ी खराब हो गयी। फिर इन्हें झूले पर बच्चे दिखे और ये उधर जा रहे थे तो कोई बूढ़ा बाबा इन्हें इधर ले आया।
इनकी कहानी सुनकर बूढ़े ने बस इतना ही कहा कि, "झूले पर मौत!!
बच गए तुम लोग देवता के आशीर्वाद से। चलो अब खाना खाकर सो जाओ बाकी बातें मैं सुबह बताऊँगा।"
इसी बीच बूढ़े की पोती ने इनके लिए भात परोस दिया और ये लोग खाकर बिस्तर पर लेट गए।
सुबह बूढ़े ने बताया कि "जिस जगह से देवता ने तुम्हे बचाया वह कोई रिसोर्ट नहीं बल्कि अंग्रेजों के जमाने का कब्रिस्तान है और जो झूले पर झूलते हुए तुम्हे दिखाई दिए वह कोई बच्चे नहीं बल्कि दुस्ट आत्माएँ हैं। अगर तुम लोग दो कदम और आगे बढ़ जाते तो फिर तुम्हें कोई नहीं बचा सकता था।
इन लोगों की पूरी बस्ती को आज़ादी की लड़ाई में जला दिया गया था और अब ये लोग आत्मा बनकर उसी का बदला लेने के लिए लोगों को भ्रमित करके इधर बुलाकर डराकर मार डालते हैं।  हमारे ग्राम देवता कई बार लोगों को बचा लेते हैं लेकिन कई बार ग्राम देवता को भी ये लोग भ्रमित कर देते हैं और फिर उन्हें वहाँ पहुँचने में देर हो जाती है। एक बार जब कोई इनकी सीमा में कदम रख देता है तो फिर उसे कोई नहीं बचा सकता। तुम लोग भाग्यशाली हो जो समय रहते ग्रामदेवता तुम्हें बचा लाये।"
फिर ये लोग बूढ़े को धन्यवाद देकर वहाँ से चले आये इन्होंने दूर से वह जगह देखी जहाँ रात में इन्हें झूले पर मौत दिखी थी। वह बहुत डरावनी जगह थी एक सदियों पुराना टूटाफूटा कब्रिस्तान जिसका लोहे का टूटा हुआ गेट लटक रहा था और रात में वे आत्माएँ इन्ही दरवाजे के पल्लों पर झूल रहे थे। ये देखकर इनके रोएं खड़े हो गए और ये लोग बिना पीछे देखे वापस लौट आये।
अब इनकी गाड़ी आराम से चालू हो गयी और ये लोग घर आ गए।
लेकिन लौटने के बाद भी कई दिन इन्हें वही झूले पर मौत नज़र आती रही और ये लोग बुखार में काँपते रहे।

©नृपेंद्र शर्मा "सागर"


Wednesday, June 17, 2020

#हॉरर/क्या था

अर्जुन या पंडित कभी कहीं अकेले गए हों बहुत कम होता था।
मौसी, मामा या बुआ के घर भी दोनो हमेशा साथ ही जाते थे, लेकिन उस दिन अर्जुन को अकेले सीता पुर जाना पड़ा।

सीता पुर नदी पर इनके गांव से कोई सात-आठ किलोमीटर दूर छोटा सा गांव था जहां अर्जुन की कोई रिश्ते की मौसी रहती थी, अर्जुन को किसी काम से जल्दी में उनके घर जाना पड़ा।
वह सुबह अकेला सायकल लेकर चल गया, लौटने में उसे रात हो गयी वह कोई दस ग्यारह बजे उधर से जंगल के रास्ते अकेला लौट रहा था।

अर्जुन जैसे ही नदी पार करके अपने गांव की सीमा में पहुंचा उसे सड़क पर कुछ लोग सामने से दौड़ते हुए आते दिखाई दिए जिन्होंने एक ही जैसे सफेद कपड़े पहन रखे थे।

इससे पहले की अर्जुन कुछ समझता या अलग बचकर चलता ये दौड़ते हुए उसे पार करके निकल गए और पीछे कुछ दूर जाकर सड़क पर घेरा बना कर सिर नीचे किये बैठ गए।

उफ़्फ़फ़!! ये क्या ? ये लोग ऐसे बिना टकराए कैसे मुझे पार कर गए जैसे मानो इंसान न हों हवा के झोंके हों,,
हवा!!?, अर्जुन सोचते हुए चोंका,, उसने इधर उधर देखा 

ये बिल्कुल उस जगह खड़ा था जहां धबल की भूत से कुश्ती हुई थी, अर्जुन का दिल धक-धक करने लगा,, 
तो क्या ये सच में भूत, कहीं छलाबा तो नहीं??,

सोचते हुए अर्जुन सायकल पकड़े गए बढ़ने लगा।

आगे कुछ ही दूर चला होगा  कि सामने सड़क पर राख का ऊंचा पहाड़ जैसा ढेर पड़ा था।

अब ये बीच सड़क पर रख किसने डाल दी यार, सारा रास्ता ही बन्द कर दिया थोड़ा बचाकर नहीं डाल सकता था,, सा,,,
अर्जुन गालियां देता हुआ बड़बड़ाने लगा।

अभी वह किधर से निकलूं ये सोच ही रहा था कि अचानक उस रख में हलचल होने लगी ।

देखते ही देखते राख ने एक बड़े मोटे सांप की आकृति ले ली और फन उठाकर उसके ठीक सामने खड़ा होकर फुफकारने लगा सांप कोई तीन चार फुट मोटा और करीब बीस तीस मीटर लंबा उसके ठीक सामने एक साथ कई फन लहराता फुंकार रहा था और हर फुंकार में भयानक गर्जना के साथ आग की लपटें भी निकल रही थी।

अर्जुन को मार्च की ठंडी रात में भी जेठ की दुपहरी जैसा पसीना आने लगा,, वह धीरे धीरे पीछे हटने लगा।

तभी उसे पीछे बैठे भूतों का ख्याल आता और उसके कदम रुक गए।

उसका दिल धुकधुकी और फेफड़े धौंकनी बने हुए थे, भय से उसके पैर कांप रहे थे।
वह ना आगे जा सकता था और न ही पीछे जा सकता था उसने निराशा में अपनी आंखें बंद कर लीं।
तभी उसके कानों में पंडित की आवाज गूँजी,, "हमारा डर ही छलाबे कि असली ताकत है और एक निश्चित दायरा उसकी सीमा रेखा जहां से वह हमें डराता है।

अर्जुन ने मुट्ठी भींचते हुए झटके से आंखे खोल दीं अब उसकी आँखों में डर के स्थान पर विस्वास और क्रोध था।

वह अपनी सायकल पर बैठा ओर बिना डरे उसने सायकल उस सांप की तरफ बढ़ा दी।
सांप बिल्कुल किसी बैल जैसी आवाज निकलते हुए फुंकारने लगा आग फेंकने लगा,, लेकिन वह अर्जुन को छू भी नहीं रहा था और अर्जुन बिना डरे आगे निकल आया।

थोड़ा ही आगे बढ़ा होगा कि वह भूतों की टोली उसे फिर से बीच सड़क पर नज़र आयी, उन्होंने कुछ हथियार लिए हुए थे और एक आदमी की गर्दन रेत रहे थे,, उनके बीच कुछ सर कटी लाशें पड़ी हुए थीं और उनमें से कुछ के मुंह पर खून भी लगा हुआ था।
सड़क पर भी खून फैला हुआ था उनके चेहरे बीभत्स नज़र आ रहे थे।

अर्जुन के कदम एक बार फिर ठिठके लेकिन फिर ना जाने क्या सोच कर उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गयी और उसने सायकल आगे बढ़ा दी।

उसके बढ़ते ही उनके चेहरे बदलने लगे और ये लोग उसका रास्ता छोड़कर सड़क के दोनों ओर खड़े हो गए।
अर्जुन ने देखा वे लोग इसे देख कर मुस्कुरा रहे थे।

लौट कर अर्जुन घर आ गया लेकिन अब फिर से इसका दिल जोरों से धड़क रहा था।
अर्जुन ने सुबह सबसे पहले दौड़ कर पंडित को रात की सारी आपबीती सुनाई।
पंडित मुस्कुरस्ते हुए बोला चलो देख कर आते हैं उधर ही दिशा मैदान भी निबट लेंगे।

दोनो दोस्त सुबह सुबह नदी किनारे टहलते रहे और घटना से जुड़ी कोई संभावित चीज़ ढूंढते रहे लेकिन नाकाम रहने पर मुस्कुरस्ते हुए लौट आये।

नृपेन्द्र शर्मा "सागर"
9045548008

#हॉरर/माया की माया

बात पुरानी है, कोई तीस साल या उससे भी अधिक समय पहले की, रघुवरदयाल तीन भाइयों में सबसे छोटे थे।
सभी भाइयों के साथ संयुक्त परिवार में ही रहते थे।

उस समय उनकी आयु कोई चालीस बयालीस के आसपास रही होगी।
उनका घर बहुत बड़ा था घर के बाहर गुड़ बनाने का कोल्हू लगा था सामने पूरा बगीचा जिसमें आम अमरूद आड़ू ओर नाशपाती के पेड़ लगे थे, इसके बाद था उनका चार एकड़ का खेत।
घर के दरवाजे के दूसरी ओर बनी थी एक बड़ी सी दुआरी(दो कच्ची मिट्टी की दीवारों पर फूंस के छप्पर डाल कर बनी झोंपड़ी।) दुआरी गर्मी में स्वर्ग थी उसमें आज के a. c. से भी ज्यादी ठंडी हवा आती थी।
दुआरी में रखे बड़े घड़ों का पानी बिल्कुल ठंडा ओर मीठा।

दुआरी में हमेशा दो चार खटिया पड़ी होती थीं और वह सभी के लिए सदा खुली थी ।
कोई भी बिना रोकटोक वहां लेट जार थकान मिटा सकता था और पानी से प्यास बुझा सकता था।
अक्सर ताज़ा गुड़ भी वहां रखा ही रहता था जिसे चखने के लिए किसी को भी अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं थी।
दुआरी के सामने ही सड़क पर खड़े थे दो नीम और पाकड़ के बड़े पेड़।
गर्मी की रात में अक्सर पेड़ के नीचे ही सोने का आनंद लिया जाता था।
दयालु जी(रघुवरदयाल जी) अक्सर रात में दुआरी या पेड़ो के नीचे ही खटिया पर अपना बिस्तर लगाते थे।

रात के कोई ग्यारह साढ़े ग्यारह का समय रहा होगा, दयालु जी भरी नींद सो रहे थे ।

अचानक किसी ने उन्हें झिंझोड़ कर उठाया,
दयालु,, अरे उठो सोते रहोगे,,,देखो गांव के बाहर बड़े बड़(बरगद)के नीचे तुम्हारे लिए माया दबी है, है निकाल लाओ।
अकेले जाना और किसी को बताना मत वो सिर्फ तुम्हारे ही लिये है,,,।

दयालु जी आंखे मलते हुए उठे और बिना ये देखे की उठाने बाला कौन था, कहाँ गायब हो गया वह ,दयालु जी ने दुआरी से खुरपी और फावड़ी उठायी और चल पड़े पूर्व के रास्ते पर।

पूर्व का रास्ता बहुत गहरा पतला चकरोड का रास्ता था जिसके दोनो ओर बड़ी घनी झाड़ियां और फूंस उगा रहता था उधर दिन में भी अकेला आदमी जाते डरता था।
ऐसे में दयालु जी रात में अकेले चुपचाप चले जा रहे थे बरगद की ओर जो गांव से बाहर कोई एक किलोमीटर दूर होगा ।

रास्ते में स्यार झींगुर की आवाज गूंज रही थी जिससे बहुत डरावना माहौल हो रहा था किंतु दयालु जी के दिमाग में तो माया घूम रही थी और चल रही थीं योजनाएं।

अगर बहुत सी माया निकली तो वे एक ट्रेक्टिर लेंगे,, नही नहीं पहले पक्का मकान बनाएंगे,, बड़े भाई की बेटियां शादी लायक हो रही हैं उनकी शादी करा देंगे इस पैसे से,,, ऐसी कितनी योजनाएं कितने सपने बुनते दयालु जी पहुंच गए बरगद के पास।

बरगद का वह पेड़ सैकड़ो साल पुराना था और उसकी जटाओं बाद आसपास ऐसे कई पेड़ बना दिए थे,अब ये बरगद का पूरा बाग नज़र आता था किंतु वास्तव में ये एक ही पेड़ था।
दयालु जी ने इधर उधर खोजा बहुत देखने पर उन्हें एक जटा की जड़ में कुछ उभरा हुआ स्थान दिखाई दिया जहां खोदने पर इन्हें एक बड़ा मटका मिला जिसका मुंह कपड़े से बंधा था।
दयालु जी खिल उठे मटकी देखकर, उन्होंने मटकी अपनी धोती में छिपाई ओर तेज़ी से घर की तरफ लौट आये।
घर पहुंच कर दयालु जी जोर से आवाज लगाने लगे,, उठो सभी जागो,, देखो मुझे क्या मिला,, देखो,, वह चहकते हुए बोले,, ।

सभी हड़बड़ा कर उठे और पूछने लगे , क्या है??

श श श!!, अंदर चलो दयालु जी सभी को अंदर लेकर आये और मटकी सामने रखकर सारी बात बता दी।

खोलो,, उनके पिताजी ने कहा।

दयालु जी ने कांपते हाथों से मटके का कपड़ा हटाया,,, उसके नीचे मिट्टी का ढक्कन(पाला)  लगाया हुआ था उन्होंने धड़कते दिल के साथ ढक्कन खोल, सभी ने झांक कर देखा,, पूरा मटका कोयले से भरा था।

दयालु जी के कानों में वह आवाज गूंजने लगी,, 
वह सिर्फ तुम्हारे लिए है, ,, किसी को मत बताना,,
और वे सर पर हाथ रखकर बैठ गए।

आज भी वे ये नहीं समझ पाते कि क्या वह माया की कोई माया थी या किसी का गंभीर मज़ाक।

नृपेन्द्र शर्मा "सागर"

9045548008

#हॉरर/डर पर जीत

एक दिन अर्जुन और पंडित जेठ की भरी दोपहरी में किसी काम से जंगल गए थे।

सूरज की गर्मी से  तप कर जमीन भी पिघलती महसूस हो रही थी, सामने दूर देखने पर हवा में कुछ लहराता हुआ सा लग रहा था।
लोग कहते हैं ऐसी दोपहरी में सुनसान स्थानों तालाबों या नदी के किनारे अक्सर छलाबा या भूत मिल जाता है।

अर्जुन और पंडित दोनो मित्र भूत को मानते तो थे किंतु भूत से डरते नहीं थे ।
जैसे ही ये दोनों चिरागबाली तालाब के पास पहुंचने लगे इन्हें तालाब में कुछ बिचित्र हलचल दिखाई देने लगी इन्हें लगा तालाब में कोई जानवर पानी पी रहा है।
(चिरागबाली तालाब वह जगह है जहां लोगों के मरने के बाद उनके नाम का दिया जलाया जाता है। रात में अक्सर वहां बहुत सारे चिराग जलते दिखाई दे जाते हैं।)

थोड़ा आगे बढ़ने पर इन्होंने देखा कि वह एक बहुत बड़ी भैंस है, लेकिन ये क्या इतनी बड़ी भैंस,, यार ये तो हाथी से भी बड़ी लग रही है, अर्जुन बोला।

हाँ यार ओर इसका मुंह तो देख किसी घोड़े के जैसा लग रहा है, पंडित ने कहा।

क्या है ये यार, अर्जुन कुछ घबराते हुए बोला।
छलाबा है यार, डर मत बस इसे नजरअंदाज करता चल फिर ये खुद भाग जाएगा, पंडित चलते चलते बोला।

कैसे नजरअंदाज करू यार इतनी बडी चीज़ को, अर्जुन घबराते हुए बोला।

चुप चाप चलता रह इधर उधर मत देख, पंडित ने कहा।

और आगे चलता रहा।

अभी कुछ ही कदम बढ़ाए होंगे कि वह छलाबा बहुत तेज़ गधे की सी हिनहिनाहट करने लगा और देखते ही देखते, वह एक गधे के मुंह बाला बहुत लंबा आदमी बन गया जो तालाब के बीच में पानी मे खड़ा होकर भयानक घुर्राहट कर रहा था।

अर्जुन बहुत घबरा रहा था और पंडित के पीछे छिपने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसका बड़ा शरीर छोटे से पंडित के पीछे छिप नहीं पा रहा था।
फिर भी ये आगे बढ़ते हुए चलने लगे।

अब वह छलाबा बहुत तेज़ आवाज करते हुए अपने हाथ लंबे करके आसपास के पेड़ों की मोटी-मोटी डालियां तोड़कर तालाब में डालने लगा।
अर्जुन पंडित को डर लगने लगा था लेकिन पंडित जनता था कि उनका डर ही छलावे का सबसे बड़ा हथियार है और ये तालाब का पानी उसकी सीमा रेखा।

पंडित थोड़ा घूम कर तालाब से थोड़ा और दूर हो गया क्योंकि जाना तो इन्हें आगे ही था।

अचानक उन्हें किसी गाय के रंभाने की आवाज आई जैसे गाय रो रही हो।

इन्होंने देखा वह छलाबा बहुत बड़ा भेड़िया जैसा लग रहा था और उसने एक गाय को पकड़ा हुआ था।

इसकी तो साल निरीह गाय पर जोर दिखता है,,, कहते हुए अर्जुन ये भूल कर की वह छलावा है उस पर झपट पड़ा ।

अर्जुन रुक अरे रुक जा पहलवान,,, कहते हुए पंडित  भी उसके पीछे दौड़ा,, इधर छलाबा किसी आदमी की तरह जोर से हंसते हुए और लंबा होने लगा,,,
पंडित ने तालाब में पहुंचने से पहले ही अर्जुन के कंधे पर हाथ रख कर उसे रोक लिए ओर आंख से कुछ इशारा किया।

अब ये दोनों खेत से मिट्टी के ढ़ेले उठा कर उसे मारने लगे हर ढ़ेले की मार के बाद वह छोटा होने लगा और रोने जैसी आवाज निकलता हुआ तालाब में गायब हो गया।

ये दोनों दोस्त हंसते हुए आगे बढ़ गए,, इन्होंने अपने डर को हराकर, एक खतरनाक छलाबे को हरा दिया था।

नृपेन्द्र शर्मा "सागर"

9045548008

#हॉरर/मैं नहीं डरता

हमारे गांव में एक व्यक्ति थे यही कोई पैंसठ वर्ष के, बड़ी डींगें मारते थे जैसे:-
अरे लल्ला तुम्हे क्या पता हमने तो शेरों के पंजे गिने हैं,, या बालकों एक बार तो रात में  भूत हुक्का पीने आ गया।
हम सभी बच्चे, तरुण ओर युवा शाम को खाना खाकर उनकी  कहानियां सुनने उनके चबूतरे पर इकट्ठे हो जाते थे।

दादा कोई नई बात बताओ आज, अर्जुन ने पूछा ओर मुझे देखकर धीरे से मुस्कुराया।

अरे लल्ला तुम्हे क्या पता एक बार तो रात को एक औरत मेरी  सायकल पर बैठ कर घर तक आ गई, वे अपने चिरपरिचित अंदाज़ में बोले।

कब! कैसे दादा सुनाओ ना, मैंने धीरे से कहा और बाकी सारे बच्चे हाँ  सुनाओ दादा की रट लगाने लगे।

अच्छा सुनो बे अपने हुक्के में दम लगाकर गुड़गुड़ करने के बाद बोले।
एक बार रात को मैं फेक्ट्री से आ रिया था रात को लौट कर ड्यूटी के बाद (दादा फैक्ट्री में शिफ्ट की ड्यूटी करते थे)
सायकल से घर आ रिया था।
अचानक नहर पर करते ही मेरी सायकल भारी चलन लगी।
मुझे लगा कोई मेरी सायकल पे  पिच्छे बैठा है पर मैं बिना पीछे देखे पैडल मरता रिया।
बीच बीच में मुझे किसी औरत के हँसने जैसी नवाब बी आ रई थी पर मैने पिच्छे देखना ठीक ना समझा बस सायकल भगाता हुआ घर आ गया सुबह रिंकू की दादी ने बसंती(उनकी पत्नी) से बूझा कौन आयी रात तुमारे घर पधान की सायकल पे बैठ के।
बसंती ने मुझसे पूछा नाराज़ होकर किसे लाये कल रात को।
तो मैने समझाया अरे कोई ना थी रात एक चुड़ैल बैठ आई सायकल पे।
दादा चुड़ैल???? सब ने एक साथ पूछा।
हाँ ओर मैं  तनक सा बी ना डरा।
सब बच्चे रोज उनके ऐसे ही भूत मिलने और ना डरने के किस्से सुनते औऱ चूहा सरकने पर भी उनके चेहरे का भय मैं और अर्जुन आसानी से पढ़ लेते।

होली आने वाली थी, सभी बच्चों को  होली के कुछ दिन पहले रात में बाहर रहने और होली खेलने की छूट मिल जाती थी और पूरी बालक टोली हुड़दंग मचाती आधी रात तक फाग गाती थी उसी की आड़ में होली के लिए लकड़ियां चुराने का भी काम होता था।
एक दिन टोली की योजना बनी की आज फेंकू दादा की हिम्मत की परीक्षा की जाए और रात को उस योजना को अंजाम दिया गया।

रात को चार मज़बूत कंधे दादा को चारपाई समेत उठा ले गए और रख दिया ले जाकर श्मशान में।
उसके बाद  बाकी छिपी टोली ने भूतिया,
हुहुबुभुहूहूहूहू!!!, की भूतिया ध्वनि निकाली
दादा चोंक कर उठे और थर थर कांपने लगे।
बचाओ,,,!!< भूत,,,!! बे जोर से चीखे ओर बेहोश होकर चारपाई से नीचे गिर गए।
टोली ने उन्हें उठाया और जिस खामोशी से उन्हें ले गए थे उसी सफाई से वापस ला कर उनके चबोतरे पर सुला कर हंसते हुए चले गए।

दादा को तीन दिन में होश आया और हफ़्तों बुखार में कांपते रहे।
टोली रोज जाकर उन्हें सपने में श्मशान और भूत की कहानी सुनाती रही।

अब दादा को सच्चाई पता है और बे कभी भूत देखने की डींग नहीं मरते।।

(कृपया कहानी को मनोरंजन के लिए ही पढ़े और किसी के साथ ये खेल न खेलें फिर चाहे वह कितना ही बड़ा फेंकू हो।)

नृपेंद्र "सागर"

Tuesday, February 5, 2019

#हॉरर/31 की पार्टी (16+)

2010 के 31 दिसंबर की कोहरे वाली रात थी, जगह जगह नए साल की पार्टी से शहर भर के होटल ढावे गेस्ट हाऊस रौनकमय होकर झूम रहे थे।
शहर तो शहर आसपास के फार्महाउस उससे भी ज्यादा रंगीनी में डूबे हुए थे।
युवाओं की पार्टी हो और शराब का दौर ना चले ऐसा होना असम्भव ही होता है ऐसे ही शहर से दूर सूनसान में एक बड़ा फार्म हाउस था उसके मालिक के बेटे रोहन ने अपने दोस्तों को न्यू ईयर पर्टी दी थी।
पार्टी में उसके पाँच दोस्त- विकास, प्रिया, रजनी, सुरेश और मनोज शामिल हुए, आधी रात तक शराब और नाच गाने का दौर चलने के बाद मनोज, प्रिया और रजनी के साथ वापस लौट आया लेकिन रोहन, विकास और सुरेश बची हुई शराब खत्म करते वहीं पर रुक गए।
कोई एक घण्टा लगातर पीने के बाद तीनों की आंखे मुंदने लगी, उन्हें नशे ने पूरी तह अपनी गिरफ्त में ले लिया अब उनकी बातों में बातें कम और गाली ज्यादा निकल रही थीं।
अरे यार सुरेश शराब हो गयी पार्टी खत्म हो गयी लेकिन 'मूड' नहीं बना, रोहन सिगरेट सुलगाते हुए बोला।
हाँ यार जब तक फड़कता हुस्न और शबाब ना हो पार्टी का मज़ा अधूरा ही रहता है भ,,,का विकास ने भी एक भद्दी सी गाली से उसकी बात का समर्थन किया।
आओ फिर चलते हैं शायद कोई मिल जाये, कोई आइटम हमारी तरह प्यासी पार्टी से लौटती हुई, क्यों सुरेश? रोहन हंसते हुए बोला।
नहीं!!, तुम लोग हर बार ऐसा ही करते हो अच्छी बात है क्या यार, ओर फिर इतनी रात में इतने कोहरे के बीच,,, सुरेश कुछ सहमते हुए बोला।
फट्टू साला, विकास हंसने लगा, अरे किस्मत आजमाने में क्या जाता है और कुछ नहीं तो कुछ हैंगओवर ही कम हो जाएगा, आओ चलते हैं यार एक राउंड मार कर आते हैं, विकास ने सुरेश को हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा और उसका दूसरा हाथ रोहन ने पकड़ लिया और उसे खींच कर बाहर ले आये।
मरोगे सालो तुम ठंड में अब भ**वालो इतने कोहरे में अपनी उंगलिया तक महसूस नहीं हो रही ऐसे में तुम्हे छमिया की सूझ रही है, जाने को र**तुम्हारा इन्तज़ार कर रही है इस कोहरे में बैठी की आओ राजा मुझे,,,सुरेश उन्हें लगातार लौटने को कह रहा था।
अबे ओ ग*** साले कभी तो अच्छा सोच लिया कर, क्या पता मिल ही जाए, ऐसे भी आज की रात कई कालगर्ल घूमती हैं फार्म हाउस के आसपास मोटे माल की उम्मीद में कोई मिल गयी तो साली जो मांगे हाँ कर देना हमें कौनसा कुछ देना है उसे सुबह ग** पर लात मारकर भगा देंगे भो**वाली र** को, रोहन गन्दी हंसी हँस रहा था।
अभी ये लोग कोई आधा किलोमीटर ही चले होंगे कि तभी इन्हें किसी मधुर धुन में निकलती मुंह से बजती हल्की हल्की सीटी की आवाज सुनाई दी।
इसस्सशः !!!कोई है आगे रोहन मुंह पर हाथ रखकर चुपचाप चलने का इशारा करते हुए बोला।
कोई लड़की है यार इतनी मीठी आवाज में सीटी बजा रही है खुद कितनी स्वाद होगी साली, विकास अपने होंठों पर जीभ फिराता हुआ वहशियाना हँसी धीरे से हँसा।
चलो जल्दी देखते हैं कौन है पक्का कोई चालू माल होगी यार काम बन गया अपना बस जितने भी मांगे एक दो बात करके मान लेना, रोहन की आंखों में कामुकता की चमक थी और होंठो पर वहशियत की हँसी।
थोड़े और आगे बढ़ने पर इन्होंने देखा एक पतली छरहरी अल्हड़ जवान लड़की जीन्स टॉप पहने उछलती गाती सीटी बजाती मस्ती में चल रही थी।
कौन है वहाँ विकास ने जोर से पुकारा।
तभी वह लड़की पलटी रात के अंधेरे और घने कोहरे में भी उसका गोरा रंग चान्दनी जैसा चमक रहा था और उसके गुलाबी होंठो पर खिली हंसी दूर से दिख रही थी।
कककोंन!!! हो आप? सुरेश घबराते हुए बोला क्योंकि उसने ज्यादा नहीं पी थी, ऐसे भी वह  हमेशा गलत काम का विरोध करता था लेकिन दोस्ती निभाना उसके स्वभाव में था।
मैं परी, उस लड़की ने मुस्कुरा कर कहा जो दिसम्बर की कड़क ठंड और घने कोहरे के बावजूद स्लीवलेस टॉप ओर चुस्त जीन पहनी थी, उसके आस पास जाने कैसा प्रकाश फैला था, जिसमें उसका गोरा रंग ज्यादा ही सफेद लग रहा था और उसकी आंखें बिल्ली जैसी चमक रही थीं।
उसके आने के बाद वातावरण में अजीब सी सिहरन महसूस हो रही थी, उल्लू ओर चमगादड़ बार बार उसके पैरों के पास से उड़ रहे थे, जैसे उसके पैर छू रहे हों।
चलो यार वापस चलते हैं, सुरेश वातावरण के संकेत समझकर विकास को कोहनी मारते हुए धीरे से बोला।
सुरेश उस वातावरण में ख़ौफ़  जदा हो रहा था उसने कोहनी मारकर विकास और रोहन को लौट चलने के लिए कहा लेकिन वे दोनों तो उसकी खूबसूरती में खोए थे तो उन्होंने सुरेश की बात पर ध्यान नहीं दिया।
आप किसके साथ हो ?? सुरेश ने परी से सवाल किया।
अकेली। उसने संक्षिप्त उत्तर दिया, और हँसने लगी।
आपको डर नहीं लगता इतनी रात में यूँ अकेले??
डर! किससे??
इंसानो से ??
कुछ लुटने का,??
जो मेरे पास था वो तो पहले ही तुम लोग,,,,परी का चेहरा गुस्से में लाल हो गया लेकिन अगले ही पल वह होंठो पर मुस्कान ला कर बोली, हम तो "उसे" बेचती हैं ,तो किसी को लूटने की क्या ज़रूरत और फिर कोई कोशिश भी करे लूटने की तो मैं ऐसे ही तैयार हो जाती हूँ।
बाकी रही जंगली जानवरों की बात तो वे हमला तो करते हैं लेकिन केवल पेट की भूख लगने पर, ऐसे वासना में अंधा होकर तो बस कोई इंसान,,,, नहीं नहीं कोई वहसी दरिंदा ही हो सकता है जो वासना की खातिर किसी मासूम लड़की को शिकार बनाये, वह घृणा से देख रही थी।
लेकिन तुम लोग?? वह उनकी और देखती हुई बोली।
हम भी वही खरीदने निकले हैं जो तुम बेचती हो, विकास उसे घूरते हुए बोला।
ओह्ह!! ठीक है चलो फिर, परी बोली।
लेकिन आप?? सुरेश ने कुछ बोलना चाहा।
लेकिन परी ने उसे चुप कराते हुए कहा," अरे चलो यहां से कोई और आ जायेगा तो मुश्किल हो जाएगी ऐसे भी आजकल पुलिस बहुत परेशान करती है बाकी तुम जो दोगे हो जाएगा, चलो मेरे साथ।
परी एक तरफ चल दी और  ये तीनों उसके पीछे चलने लगे।
लगभग बीस मिनट चल कर ये लोग एक ऐसी जगह आ गए जहां बहुत ऊंचे और घने पेड़ों के बीच आठ दस गज का एक गोल मैदान था जो चाँद की रोशनी में एकदम साफ दिखाई दे रहा था।
ये हमें कहाँ ले जा रही है यार इधर तो हमारा फार्म हाउस नहीं है, सुरेश रोहन का हाथ पकड़कर रोकते हुए बोला, मुझे तो बहुत डर लग रहा है यार देखो इसे,  लगता है जैसे इसे इस अंधेरे में इतना साफ दिखाई दे रहा है जितना हमें दिन के उजाले में।
अरे चुप कर डरपोक रोहन उसकी खिल्ली उड़ाते हुए बोला।
आओ दोस्तों तभी उसका खनकता स्वर गुंजा।
आसपास का वातावरण कुछ ज्यादा ही सर्द हो रहा, हवा के झोंके रह रह कर पेड़ों को झुका रहे थे , चमगादड़ ओर उल्लू भी उस लड़की से डर रहे थे ,उसका चेहरा ऐसे चमक रहा था जैसे चँदा अपनी सारी चान्दनी बस उसी पर लुटा रहा हो।
आस पास गहन अंधकार फैला था लेकिन उसकी देह दूध सी चमक रही थी और आंखे दिए सी जल रही थीं।
चारों ओर भयंकर डरावना शोर हो रहा था, सुरेश ने विकास और रोहन को इशारा करके समझाया।
रोहन उस लड़की के चेहरे को ध्यान से देखने लगा, उसके चेहरे की जगह बस एक काला घेरा था, उसमें उसकी डरावनी आंखें दिए कि लौ जैसे चमक रहीं थी,अभी रोहन विकास की ओर पलटा तभी, परी के मुंह से दो दांत लम्बे होकर बाहर आने लगे ,,,,
उफ़्फ़फ़!!! भागो चुड़ैल है ये धोखा देकर लायी है हमें यहाँ,  कहकर रोहन एक ओर दौड़ा लेकिन अचानक विकास और सुरेश की दर्दभरी चीत्कार सुनकर रुक गया।
उसने पलट कर देखा, सुरेश और विकास के सामने की जमीन फ़टी हुई थी और ये दोनों कमर तक जमीन में धँसे हुए थे।
नहीं!!! रोहन के हलक से भय चीख बन कर निकला और वह उनकी ओर दौड़ा ,अभी मुश्किल से दो कदम बढ़ाए होंगे कि बिछुओं की पूरी फ़ौज उन दोनों पर झपटी काले काले बड़े बड़े बिछु अपने डंक उठाये उधर लपक रहे थे।
ओ गॉड,,,, नहीं!! नहीं! कहता हुए वह नीचे बैठने लगा तभी परी ने अपने हाथ को घुमाया और जहाँ रोहन बैठ रहा था उसी जगह एक नुकीला खूंटा जमीन से निकला और रोहन के 'जिस्म' में घुसता चला गया,वह तड़फ उठा उसकी दर्दनाक चीख निकल गई।
कौन है तू क्या कर रही है हमारे साथ,, रोहन दर्द से तड़फते हुए चीखा।
अचानक परी उसके ठीक सामने आकर खड़ी हो गयी अब उसका  चेहरा बिल्कुल अलग लग रहा था बहुत मासूम पहले से भी बहुत ज्यादा खूबसूरत।
ले पहचान मुझे कुत्ते, उसने रोहन के सर पर हाथ रख कर थोड़ा नीचे दबाया जिससे खूंटा उसके अंदर सरकने लगा।
नही  मत करो छोड़ दो हमें हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है रोहन के हाथ आपस में जुड़ गए।
गौर से देख मुझे पहचान मुझे क्योंकि जब तक तू मुझे ना पहचाने तुझे तड़फते देखने में कतई मज़ा नहीं आएगा।
याद कर इस जगह को मा***द याद  कर 31 की रात आज ही का दिन यही जगह,,, पूरे एक साल इंतज़ार किइस मैंने तुम दरिन्दों का परी ने जोर से उसके सर को झटका दिया।
रोहन आंखे फाड़ कर उसे देखने लगा उसके चेहरे को देखते देखते वह पिछले साल की 31 की पार्टी की याद में चला गया ,,,
उस दिन भी ये तीनों आज ही की तरह नशे में डूबे किसी कालगर्ल की तलाश में घूम रहे थे, अचानक किसी ने इनकी गाड़ी को हाथ देकर रुकने का इशारा किया।
गाड़ी की लाइट की रौशनी में रोहन ने देखा सामने एक बहुत ही खूबसूरत लड़की खड़ी थी,उसे देखकर रोहन का पांव गाड़ी के ब्रेक पेर जम गया गाड़ी चरररर की जोरदार आवाज करती हुए घिसटकर एकदम उस लड़की के सामने जाकर रुकी।
कोन हो कहाँ जाना है? रोहन ने पूछा।
शहर ,उसने धीरे से कहा।
शहर तो नहीं जा रहे हम लेकिन आपको छोड़ देंगे, रोहन पास बैठे विकास को पीछे जाने का इशारा करते हुए बोला।
ओर वह लड़की आगे उसके पास आकर बैठ गई।
क्या नाम है आपका? रोहन ने मुस्कुरा कर पूछा।
परीधी, उसने धीरे से मुस्कुरा कर जबाब दिया।
वाओ परी धी,, ब्यूटीफुल नेम, बिल्कुल आपही की तरह स्वीट,,।
थैंक यू उसने मुस्कुरा कर जबाब दिया।
लेकिन इतनी रात को आप इस सुनसान में अकेले??,
नहीं मैं अपने दोस्त के साथ थी लेकिन साले ने पार्टी में ज्यादा पी ली और यहाँ सुनसान जंगल में मेरे साथ जबरदस्ती करने लगा मुझे बहुत गुस्सा आया तो मैने उसको थप्पड़ मार दिया और हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ने को कहा।
तब वो कमीना,, मुझे यहाँ अकेले छोड़कर भाग गया।
भड़वा साला, भ***का परी ने अजीब मुंह बनाकर एक भद्दी गली दी और गुस्से से थूकने लगी।
तो अब? रोहन ने मुस्कुरा कर पूछा।
मूड ऑफ हो गया यार अब घर जाकर सोऊंगी, परी गुस्से में बोली।
क्यों ना आप हमारे फॉर्म हाउस पर चलें ??जो नज़दीक ही है, वहाँ हम जल्दी पहुंच जाएंगे आप आराम से आराम करना और हम आपका साथ देंगे, रोहन ने अर्थपूर्ण शब्द कहे।
नहीं अब तो बस घर जाकर सोना है, अब मन नहीं है पार्टी का।
जितने कहेगी उतने पैसे दे देंगे यार आज रात हमारी पार्टी बना दे, रोहन गन्दी नज़रो से उसे घूरते हुए कहा।
नहीं, आयी अम नॉट आ प्रॉस्टिट्यूट  एंड नॉट आ कॉलगर्ल सो प्ल्ज़ डोंट टॉक लाइक आ डर्टी माइंड विध मी।
रेट बोल साली ज्यादा पवित्र मत बन तभी विकास ने उसे घूरते हुए कहा।
डोंट टॉक लाइक दिस, आयी एम ऑलरेडी हर्ट बैडली, प्ल्ज़ ड्राप मी इन सिटी आयी थिंक यू बोथ आर गुड़ फेलो, आयी नीड तो बे एट होम एज सून एज पॉसिबल,,उसने मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा।
चरररर अचानक रोहन ने गाड़ी रोक दी,उतर ,,चल नीचे आ, रोहन गाड़ी से उतरते हुये बोला।
य यहाँ!!, क्यों रोक दी गाड़ी, क्या तुम भी मुझे छोड़कर,,?? उसने आंखों में आंसू भरकर कहा।
हम उस लौंडे की तरह चूतिया नहीं हैं जो ऐसे माल की यूँही छोड़ कर चले जाएं, रोहन जोर से हंसते हुए बोला।
नहीं!!, हटो ,,, परी रोहन को धक्का मारकर एक तरफ भागी लेकिन विकास ने दौड़ कर उसे पकड़ कर जमीन पर पटक दिया और दोनों जोर जोर से हँसने लगे।
इसे जाने दो यार ऐसे जबरदस्ती करना ठीक नहीं,  सुरेश बहुत धीरे से बोला, ऐसे जबरदस्ती करके क्या मिलेगा हमें रोहन? सुरेश ने डरते हुए बोला।
ओ, फट्टू फिर फट गई तेरी? रोहन ने उसे झिड़का और परी का टॉप पकड़ कर खींच दिया जो चरररर कि आवाज करता फट गया और परिधि मुंह के बल जमीन पर गिर पड़ी।
तुम्हे भगवान का वास्ता मुझे जाने दो,मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है प्ल्ज़ छोड़ दो मुझे।
परी रोते हुए अपने हाथ सीने से चिपकाने लगी।
छोड़ देंगे परेशान क्यों हो रही है तू बस हमें खुश कर दे, विकास हँसते हुए बोला।
नहीं !!! परी जोर से चीखी, बचाओ बचाओ,, और विकास ने उसके मुंह पर हाथ रखकर उसकी आवाज दबा दी।
परिधि?? रोहन काँपती आवाज में बोला ,,
लेकिन तुम तो।
हाँ मर गई थी मैं तुमने मार दिया था मुझे तड़फा तड़फा कर, कितना रोई थी मैं लेकिन तुम दरिन्दों ने,,, कहते हुए परी ने रोहन के सर पर रखे हाथ को जोर से दबाया, जिससे खूंटा एक झटके में उसके अंदर सरकने लगा।
देख इस जगह को ध्यान से दरिंदे  यही वह जगह है जहाँ उस दिन तुमने मेरी इज्जत,,, परी क्रोध में जलने लगी उसका गोरा रंग क्रोधाग्नि से लाल हो गया उसने रोहन के सर को जोर से दबाया।
आहहहहहहह!! रोहन के मुँह से बहुत तेज़ चीख निकली, परी मुझे माफ़ कर दो मर जाऊंगा मैं बहुत पेन हो रहा है,, रोहन रोने लगा।
अर्रे यार कुछ नहीं होगा बस थोड़ा ही तो ओर है उसके बाद बहोत मज़ा आएगा मेरी जान,,, परी जोर से हँसी।
रोहन को फिर वह मंजर याद आ गया  जब वे लोग परिधि के साथ जबरदस्ती,,
मुझे छोड़ दो मर जाऊंगी मैं , परी अपने ऊपर से रोहन को धक्का देते हुए बोली।
चटाख!! साली नखरे करती है रोहन उसके गाल पर जोर से मार कर बोला, अरे बस थोड़ा और फिर तुझे भी मज़ा आएगा ऐसे भी कोई नहीं मरता इस खेल से और वह गन्दी हंसी हंसते हुए जबरदस्ती परी में समाने की कोशिश करने लगा।
नहीं!!!!, छोड़ दो कमीनो परी ने अपनी टांग पकड़े विकास के मुंह पर जोर से लात मारी जिससे वह चिढ़कर उसके मुंह पर नाखून गड़ा कर चिल्लाया, साली ज्यादा मर्द बन रही है, रोहन कर जल्दी साली बहुत उछल रही है,
और विकास ने उसके मुंह मे ****वह तड़फ उठी उसकी चीखें उसके गले में घुट कर रह गईं।
थोड़ा और,,, परी जोर से हंसते हुए रोहन को जोर से दबाने लगी।
रोहन दर्द से तड़फते हुए रोता रहा, तभी परी ने हाथ से इशारा किया उसका इशारा पाते ही सारे बिच्छू एक साथ विकास और सुरेश पर झपटे,,,
नहीं,,!!!,सुरेश और विकास एक साथ चीखे,,,
कई बिछु दौड़ कर एक साथ विकास के मुंह में घुस गए और उसके होंठों पर डंक मारने लगे।
कुछ बिछु सुरेश के पैरों पर चढ़ गए।
मैंने क्या किया??? सुरेश चीखा, मैं तो इन्हें मना कर रहा था परी और मैने तुम्हे हाथ भी नहीं लगाया था, सुरेश गिड़गिड़ाया।
हुँह!! बचाया भी तो नहीं था तूने मुझे कितना तड़फ रही थी मैं तू भी तो देख कितना दर्द होता है कहकर परी ने इशारा किया और एक बिच्छु ने उसके पैर पर अपना डंक गड़ा दिया
आहहहहहहहह नहीं ,,!!, सुरेश दर्द से तड़फ उठा।
इधर बिछुओं ने डंक मार मार कर विकास के होंठ सुजा दिए थे वह चीख रहा था रो रहा था उसकी आवाज गले में घुट रही थी, वह हाथ जोड़ कर इशारे से छोड़ देने की गुहार लगा रहा था।
ऐसा,!< बिल्कुल ऐसा ही लग रहा था मुझे भी उस वक्त जब तू मेरे मुंह मे,,, परी गुस्से से चीखी,अब समझ आया तुझे की कैसा लगता होगा जब  किसी की बिना मर्जी तुझ जैसे घिनोने लोग अपनी जबरदस्ती,  और परी ने इशारा किया तो सारे बिच्छू एक साथ विकास के मुँह, आँख, कान और नाक में घुंस गए और थोड़ी ही देर में दम घुटने से उसकी मौत हो गई, परी ने घृणा से मुँह बिगाड़ कर उसके मुंह पर थूक दिया।
अब तो तेरा बदला पूरा हो गया चुड़ैल अब हमें छोड़ दे, रोहन फिर गिड़गिड़ाया।
नही!!ं अभी नहीं कहते हुए परी ने भरपूर ताकत से उसके सर को दबाया जिससे खूँटा पूरा उसके पेट में घुस गया और उसकी आँते फट कर बाहर आ गयीं,उसी के साथ बाहर आ गई उसकी आखिरी सांस भी।
अब परी सुरेश की तरफ पलटी , सुरेश चेहरे पर दर्द लिए हाथ जोड़े कातर नजरों से उसे ही देख रहा था।
नहीं!! मुझे मत मारो ,मैने तो कई बार इनसे तुम्हे छोड़ने को कहा था लेकिन इन्होंने मेरी बात नहीं सुनी ।
लेकिन इन्होंने तुम्हे जान से तो नहीं मारा था फिर तुम कैसे मरी? सुरेश ने पूछा।
उस दुष्कर्म के बाद मैं क्या मुंह लेकर जीती??
तो मैंने पुल से कूद कर अपनी उस घिनोनी जिंदगी का अंत कर दिया और फिर जब मुझे मुक्ति नहीं मिली तो मेरे मन में अपना बदला लेने की चाहत होने लगी और आज मेरा बदला पूरा हुआ आज खत्म हुआ मेरी जिंदगी का आखिरी साल, अब आएगा मेरी मुक्ति का नया साल, और देखते ही देखते वह सफेद धुंआ बनकर उड़ गई, सुरेश भरी आंखों से उसे जाता देखता रहा।
समाप्त
©नृपेंद्र शर्मा'सागर'
नोट:-  मेरी नई किताब निकली है, तिलिशमी खजाना जिसकी बुकिंग शुरू हो चुकी है आप अपना ऑर्डर बुक करने के लिए नीचे दिया लिंक नोट करके गूगल में या किसी भी ब्राउज़र में खोल लें धन्यवाद।