पुरानी कहानी (ये कहानी मैने गांव में किसी से सुनी थी)
बहुत पहले किसी गांव में एक किसान रहता था, उसके पास बहुत खेत थे इसीलिए गांव के लोग उन्हें चौधरी कहते थे।
पुराने जमाने में लोग सुबह जल्दी उठ कर दिशा मैदान(शौच)
आदि के लिए जंगल जाते थे।
चौधरी साब भी रोज सुबह मुंह अंधेरे ही जंगल चले जाते थे।
चौधरी साब ऐसे भी घर से कुछ दूरी पर बनी बैठक पर ही रहते थे।
उस दिन भी चौधरी साब सुबह चार बजे ही जंगल के लिए चल दिये।
जुलाई के महीने शुरू हो चुका था एकाध बार हल्की बारिश भी हुई थी फिर भी सुबह चार बजे उषाकाल का हल्का उजाला दिखने लगता था।
चौधरी साब ने जेजे ही गांव के बाहर बने कुएं को पर किया उन्हें एक बहुत सुंदर स्त्री गहनों से लदी कुएं की जगत (कुएं के ऊपर जो दीवार का घेरा होता है) पर बैठी दिखी।
उसके गहने अँधेरे में भी दूर से चमक रहे थे, उसे देखकर पहले तो चौधरी साब डरे क्योंकि उन्होंने बहुत लोगों से सुना था कि उक्त कुएं में माया रहती है।
लोग कहते थे कि माया लोगों को आवाज लगाती है मिंटू अगर कोई तीन बार पुकारने पर भी नहीं सुनता तो बापस कुएं में कूद जाती है।
चौधरी ने सोचा कि वह भी उसे अनसुना करके निकल जाएंगे, और चुपचाप चलने लगे, जैसे ही वे उसके पास पहुंचे उस स्त्री ने आवाज लगायी," सुन मुसाफिर जाने वाले धन दौलत से घर भर दूंगी, बदले में पहला फल लूँगी"।
चौधरी ने विचार किया माया है अब इसके पहले फल का क्या मतलब है ये पता नही बदले में क्या मांगले, तो उन्होंने उसे अनसुना कर दिया और चलने लगे।
जैसे ही चौधरी ने एक और कदम बढ़ाया फिर आवाज आई ," सुन मुसाफ़िर जाने वाले धन और माया नहीं घटेगी पुस्तें बैठी खाएंगी पहले फल से सोडा कर ये घड़ी न वापस आएगी।
चौधरी का दिमाग बहुत तेज़ी से काम कर रहा था उसने फिर आगे कदम बढ़ाया।
माया ने फिर आवाज लगाई मुसाफिर ये अंतिम पुकार है अपर सम्पदा को तेरी हां का इंतज़ार है।
अब तक चौधरी सोच चुका था कि उसे क्या करना है वह तपाक से बोला मेरी एक शर्त है।
क्या? माया ने पूछा।
आप मेरे घर चली जाए और मेरे लौट कर आने टास्क इंतज़ार करें उसके बाद आप जो मांगेंगी मैं आकर दे दूँगा।
ठीक है, माया ने जबाब दिया।
ऐसे नहीं, चौधरी ने हंस कर कहा।
फिर कैसे? माया ने पूछा।
आप वचन दीजिये मुझे की आप मेरे घर से तब तक कहीं नहीं जाएंगी जब तक मैं लौट कर घर नहीं आता, और मेटे आने तक मेरे घर मे किसी को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगी। चौधरी ने हाथ बढ़ाकर कहा।
ठीक है हमने वचन दिया, कहकर माया ने अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया।
माया चौधरी के घर आ गयीं किन्तु चौधरी कभी घर लौट कर नहीं आया, वह वहीं से तीर्थ धाम करने निकल गया और अपनी यात्रा में ही कहीं मर गया।
माया आज भी चौधरी के घर पर उसके आने का इंतज़ार कर रही है, और चौधरी की पुस्तें माया की धन माया से सम्पन्न बनी हुई हैं।
नृपेंद्र शर्मा "सागर"