Thursday, June 25, 2020

काँटा

एक लघुकथा

काँटा

एक चूहा बड़ा सा काँटा लिए दौड़ा चला जा रहा था। रास्ते में मेंढक ने पूछा कि, "अरे मूषक भाई ये काँटा लिए कहाँ दौड़ लगा रहे हो?"

"अरे भाई! साँप को काँटा चुभा है, तो मेरे पास आया था मदद माँगने। बस वही निकालने के लिए ले जा रहा हूँ", चूहे ने चलते-चलते जवाब दिया।

"लेकिन काँटा तो तुम अपने तेज़ दाँतो या नुकीले नाखूनों से भी निकाल सकते हो?" मेंढक ने सवाल किया।

"बिल्कुल निकाल सकता हूँ मित्र, लेकिन फिर उसे याद कैसे रहेगा", चूहे ने मुस्कुराकर कहा और दौड़ लगा दी।

नृपेन्द्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
9045548008

Friday, June 19, 2020

#कहानी/ प्रेम और बदला

भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा के पास माठ तहसील है, जहाँ पर राधा रानी का मंदिर है। 
वहीं की एक सच्ची घटना है ये , बात साल 2012 या 13 की है, मंदिर के चबूतरे पर कुछ बंदर बैठे थे, उनके 3,4 छोटे- छोटे बच्चे वहीं खेलने में मगन थे। 
तभी कहीं से एक नाग निकल आया और बंदर के एक बच्चे को डस लिया।
सारे बन्दर क्रुद्ध क्रंदन करने लगे ,और नाग वहीं एक बिल में घुस कर छिप गया। 
बंदरों ने अपनी भाषा मे न जाने क्या संदेश प्रसारित किया कि ,देखते ही देखते सैकड़ों बंदर वहाँ इकट्ठा हो गए। कुछ बन्दरों ने उस बच्चे को चबुतरे पर लिटाया ओर नीम की टहनियां तोड़ तोड़ कर लाने लगे। 
कुछ बंदर, नाग की सरणस्थली की ओर लपके। 
बंदरों की फौज देखकर आते -जाते राहगीर, अपनी गाड़ी रोक कर तमाशा देखने लगे।
देखते ही देखते हजारों लोगों का हुजूम उक्त द्रश्य देखने के लिए एकत्र हो गया। 
बंदर इस सब से बेपरवाह अपने काम मे मगन थे। कुछ बंदर नीम की डाली से बच्चे का जहर उतार रहे थे, वे उसके सर से पाव की ओर टहनी घुमाते और कुछ बुदबुदाते, फिर टहनी बदल कर उक्त क्रिया दोहराते।
कुछ बंदर नाग का बिल अपने नाखूनों से खोदने लगे ,और दो तीन बंदर बिल पर घात लगाए बैठ गए, एकदम मुस्तेद चौकन्ने अपने लक्ष्य पर सम्पूर्ण ध्यान्द्रष्टि।
तभी कुछ बंदर नल से अपनी हथेलियों में पानी भरकर लाने लगे ओर बिल में भरने लगे। ये देख कर एक दर्शक ने बोतल में पानी भरकर छोड़ दिया ओर दूर हट गया। 
बंदर ने झट से बोतल उठाई ओर बिल में उड़ेलने लगा।

एक बोतल दो बोतल तीन बोतल ,,,,
नाग ने जैसे ही बिल से सर निकाला कि एक बंदर ने जो कि घात लगाए बैठा था झट से उसे दबोच लिया, और लगा बिल से बाहर खींचने।
नाग ने बहुत शक्ति प्रयास किया किन्तु बंदर ने उसे बिल से बाहर खींच कर धरती पर पटक ही लिया। किन्तु उसका मुंह बंदर ने अपनी मज़बूत पकड़ में दबाए रखा।
नाग को बाहर आया देख सारे बंदर क्रोध में चीखने लगे जैसे कह रहे हों पटको इसको मार डालो छोड़ना मत।।। 
और उधर बच्चे का इलाज चालू , इधर लगे बंदरों को जैसे उधर से कोई मतलब नही। या कहो कि पूर्ण विस्वास कि, ये अपना काम पूर्ण कर ही लेंगे।
नाग को पकड़े बंदर ने इसे जमीन में रगड़ना शुरु किया और तीन चार बार रगड़ कर उसे देख कर सूंघा और खीं ख ख खी खीं,,, की आवाज निकलने लगा। जैसे कह रहा हो कि अब भुगतो सजा अपने कृत्य की।
और बाकी के बंदर भी क्रोध में खिखिखिखिकरें कर के उस बंदर का उत्साहबर्धन करने लगे।

काफी देर ये द्रश्य चलता रहा,,, बंदर ने सांप को रगड़ रगड़ कर मार डाला। उधर सांप ने आखिरी सांस ली, इधर वह बच्चा उछल कर अपनी मां से लिपट गया। 
बंदर सांप की मृत देह को घसीटकर हर्ष ध्वनि के साथ अपना विजय उत्सब मनाने लगे। और दर्शक आश्चर्य व्यक्त करते हुए अपने अपने गंतव्य स्थलों की ओर जाने लगे।

©नृपेन्द्र शर्मा "सागर"

#प्रेम/ भ्रम

नवीन ने गांव से दूर शहर के कालेज में एडमिशन लिया और एक परिचित के प्रयास से उसे पेइंग गेस्ट के रूप में रहने की जगह भी मिल गयी।
जब क्योंकि खाने बनाने की झंझट नहीं थी तो उसने समय का सदुपयोग करते हुए दो तीन ट्यूशन भी पढ़ाने शुरू कर दिए जिससे उसका जेब खर्च निकलने लगा।
यूँ तो नवीन शुरू से ही बहुत शर्मीला था लेकिन नई जगह आकर वह और भी झिझकने लगा वह किसी से भी ज्यादा बात नही करता औऱ लड़कियों से तो ऐसे शर्माता जैसे उसे खा जाएंगी।
नवीन पढ़ाई में बहुत तेज़ था अतः कॉलेज में जल्दी ही उसके बहुत से दोस्त बन गए, यूँ तो कई लड़कियां भी उससे मित्रता करना चाहती थी लेकिन यसज रूखा व्यवहार और शर्मीलापन हमेशा उसे लड़कियों से दूर ही रखता।
नवीन ज्यादातर समय पढ़ने और पढ़ाने में ही लगाता था अतः वह ज्यादा लोगों से घुल मिल ही नही पाता था।
उसके मकान मालिक बुजुर्ग दम्पत्ति थे उनके बच्चे दूर शहरों में सेटल थे इसी लिए अपना अकेला पन दूर करने के लिए उन्हीने नवीन को रखा था।
नवीन भी उनकी हर जरूरत का पूरा ध्यान रखता था कुछ ही दिनों में नवीन उनका चहेता बन गया।
दिन भर कॉलेज उसके बाद टयूशन की थकान के बाद शाम को दो घण्टे छत पर खुली हवा में बैठना पढ़ना नवीन की नियमित दिनचर्या का हिस्सा बन गया था।
एक दिन उसने सुना की पड़ोस में कोई नए किरायेदार आये हैं, ये कोई नई बात नहीं थी क्योंकि शहर में तो अक्सर किरायेदार आते जाते रहते हैं तो उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया यूँ भी वह किसी से ज्यादा मतलब भी नही रखता था।
उस दिन भी नवीन रोज की तरह छत पर बैठ कर चाय पीते हुए अपनी किताब में खोया हुआ था, अचानक उसकी नज़र सामने की छत पर पड़ी जहां एक लड़की बैठी कुछ पढ़ रही थी।
अचानक उसने चेहरा उठाया और अनायास ही उसकी नज़रे नवीन की नज़रों से मिली, नवीन तो बस उसे देखता ही रह गया, उसका गोरा रंग ऐसा मानो दूध में ऊषाकाल के सूर्य की छाया पड़ रही हो उसकी बड़ी बड़ी काली आंखे, पतले गुलाबी होंठ ओर सुंदर गोल नाक।
उसकी लम्बी पत्नी गर्दन और काले घने लंबे बाल कुछ यूं बिखरे थे जैसे घने बादल चाँद को अपने आगोश में लेने की कोशिश कर रहे हों या कहो कि उसके रूप को छिपाने का प्रयास कर रहे हों।
उसकी सुंदरता देखकर नवीन सुधबुध भूल का एकटक उसे देखता रह गया, उसे लगा मानो स्वर्ग से साक्षात अप्सरा ही उतर आई हो।
यूँ तो नवीन कभी किसी लड़की से ठीक से बात नहीं करता था लेकिन इस अप्सरा ने उसकी वह साधना भंग कर दी थी,यूँ तो कितनी ही लड़कियां नवीन से बात करना उस से दोस्ती करना चाहती थीं किन्तु नवीन तो अब....

नवीन अब रोज शाम होते ही छत पर जाकर बैठ जाता, किताब के पीछे से उसकी नजरें किसी को खोजती रहती, अब वह उस से बात करने को बैचेन होने लगा था।
दोनों घरों के बीच में बस एक पतली गली ही तो थी दोनों छतें आमने सामने थीं अब कई बार दोनों छत के एकदम कोने पर आ जाते और अमन सामने आकर नज़रे मिलाकर शरमाकर नज़रे झुका लेते दोनों ही एक जैसे हाल में थे।
उस दिन जब वह एकदम सामने आई तो नवीन ने हिम्मत करके बोल ही दिया ,"हेल्लो माय सेल्फ 'नवीन' एंड उअर स्वीट नेम?"
'सीमा' एक छोटा सा जबाब मिला इर साथ में ढेर सारी हंसी की खनक। वह हंसी हुई भाग गई थी और रह गया था जड़वत मूर्ति बना नवीन, नीचे से आई मांजी की आवाज से वह अपनी चेतना में लौटा ओर नीचे दौड़ गया।

"सीमा"!! हिहिहि
रात भर उसके कानों में यह खनक गूंजती रही, सारी रात वह उसी के विषय में सोचता रहा, और उसी के सपनो में खोया सो गया।

अगले दिन वह बहुत खोया खोया से था, "ये क्या हो रहा है मुझे" वह अपने आप से पूछ रहा था।
"कहीं मुझे प्यार"?? फिर खुद ही मुस्कुरा उठता ओर शरमाकर नज़रे चुराने लगता।
आज वह शाम को बहुत जल्दी छत पर आ गया उसकी नज़रे बड़ी शिद्दत से सामने की छत पर कुछ ढूंढ रही थीं।
घण्टों हो गए लेकिन उधर कोई आहट तक ना हुई,  अब नवीन बहुत परेशान हो गया आज वह पूरा मन बनाकर आया था कि आज वह उस से अपने मन की बात कहेगा।
किन्तु आज तो वह आयी ही नहीं, नवीन का दिल बैठा जा रहा था वह सोच रहा था कि क्या वह भी उसे प्यार...
या ये सिर्फ उसका एक भ्रम है?
नवीन इंतज़ार करके थक गया था, वह उसे प्यार नही करती यह सच मे उसका भ्रम ही था उसने सोचा और नीचे जाने के लिए मुड़ा।
अभी वह दो कदम ही चला था कि पीछे से आवाज आई,
"रुको, न वी न,,"
मुझे आपसे कुछ कहना है।
नवीन को तो जैसे कोई खज़ाना ही मिल गया,वह तेज़ी से मुड़ा," सीमा", वह दौड़ता हुआ उसके पास आया।
कब से इंतज़ार कर रहा था कितनी देर कर दी आज अपने सीमा सब ठीक तो है, नवीन ने पूछा।

सब ठीक है नवीन मैं पढ़ाई कर रही थी और मैथ्स में ऐसी उलझी की समय का ध्यान ही नही दिया फिर भी मुझे बहुत कम समझ आया, अच्छा क्या आप मुझे घर आकर मेथ्स पढ़ा सकते हो ? सीमा ने मुस्कुराकर पूछा।
हाँ जरूर लेकिन तुम्हारे पैरेंट्स?? नवीन सकुचाया अच्छा मैं उनसे बात करके कल बताती हूँ सीमा मुस्कुरादी और चली गयी।
आज फिर नवीन को नींद नही आई वह कल सीमा क्या जबाब देगी इसी विषय पर खुद के बनाये सवालों के जबाब रात भर खुद को देता रहा।
अगले दिन सीमा ने उसे खुशखबरी सुनाई की वह कल से उसके घर आकर उसकी मेथ्स समझने में हेल्प करेगा इसके लिए सीमा के परेंट्स मान गए।
अगला दिन नवीन का बहुत बेचैनी में निकला, यार ये शाम क्यों नही हो रही आज, वह खुद से कई बार पूछ चुका था।
शाम होते ही वह सीमा के घर पहुंच गया वहां उसने शिष्टाचार में उसकी माँ के पांव छुए, सीमा के पिताजी शाम को देर से ही आते थे तो.. 

अच्छा तुम दोनों पढ़ाई करो मैं चाय बनाती हूँ कहकर सीमा की माताजी रसोई में चली गयीं।
इससे पहले की नवीन कुछ कहे सीमा ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसकी आँखों में देखकर मुस्कुराने लगी।
"क्या सच" नवीन ने खुश होकर पूछा बदले में सीमा ने मुस्कुराकर उसका हाथ दबाया और पलके झुका लीं।

अच्छा मैं किताबे लाती हूँ सीमा ने धीरे से कहा और हाथ छुड़ाकर तेज़ी से हंसती हुई चली गई।

उसके बाद शुरू हो गया रोज का सिलसिला,"कल कब मिलेंगे, आज इतनी देर कहाँ लगा दी,  कल आप आये नही सब ठीक तो है मेरा तो मन ही नही लग रहा था,
कल थोड़ा जल्दी आना, आपके बिना दिल नही लगता,,, आदि आदि का सिलसिला।
अब नवीन बहुत खुश था उसे बिन मांगे संसार की सारी दौलत मिल गयी थी, इसी तरह तेज़ी से गुजरते समय के साथ उनके इस प्यार को तीन साल हो गए जिसमे आंखों से बातें करने हाथ पकड़ने ओर मुस्कुराने से आगे कभी कुछ नही हुआ, लेकिन दोनों ही को लगता था कि वे एक दूसरे में बिना अधूरे हैं।
नवीन का कॉलेज खत्म होते ही उसे एक कम्पनी में जॉब मिल गयी, और अब उसपर घरवालों की ओर से शादी करने के लिए दबाव भी पड़ने लगा।
किन्तु वह हमेशा कोई न कोई बहाना बनाकर उन्हें टालने लगा लेकिन कब तक??
अब उसे लगने लगा कि वह ज्यादा दिन परिवार वालो को रोक नही पायेगा अतः उसने सीमा से शादी के लिए बात करने का निर्णय किया।

आज नवीन बहुत खुश था क्योंकि वह सीमा से शादी के लिए बात करने जाने वाला था, उसे पूरा भरोसा था की सीमा उसे ना नहीं करेगी उसे अपने प्यार पर विश्वास था।
यूँ तो कई बात बातों बातों में सीमा ने भी शादी के लिए इशारा किया था लेकिन तब वह तैयार नही था किंतु आज उसके पास जॉब है वह शादी की जिम्मेदारी के लिए तैयार है अतः अब वह सीमा से बात कर सकता है, उसे यकीन था कि सीमा के पेरेंट्स उनकी शादी के लिए मान जाएंगे।
आज नवीन अच्छे से तैयार हुआ और पहुंच गया सीमा के घर, उसने बेल बजायी दरवाज़ा सीमा ने ही खोला और उसे देखकर बिना मुस्कुराए बोली, "अरे नवीन तुम, आओ अंदर आओ"। 
आज न जाने क्यों नवीन को सीमा कुछ बदली हुई लगी, वह और दिनों की तरफ नवीन को देखकर न तो मुस्कुराई और ना ही उसकी आँखों में चमक दिखी।
नवीन अंदर आकर बैठ गया उसे घर में कोई भी नज़र नही आया।
"कहो नवीन कैसे आना हुआ?" सीमा ने पूछा।
"तुम्हारे परेंट्स कहाँ हैं सीमा?" नवीन ने पूछा।

"क्यों, कुछ खास काम" सीमा ने उल्टा सवाल किया।
"आज मैं उनसे हम दोनों के लिए बात करने आया था सीमा" नवीन ने मुस्कुराकर जबाब दिया।
"क्या बात?" फिर वही रूखा से सवाल सीमा के मुँह से निकला।
"सीमा मैने शादी करने का फैसला कर लिया है", नवीन चहककर बोला।
"किसके साथ?" सिमा ने सपाट स्वर में पूछा।

"तुम्हारे साथ भई ओर कौंन, आज मैं तुम्हारे मम्मी पापा से इस विषय में बात करने आया हूँ", नवीन उसकी आँखों में देखकर मुस्कुराया।
ये बात सुनकर भी सीमा के चेहरे पर कोई खुशी नहीं आयी।

"क्या बात है सीमा तुम खुश नहीं हो?" नवीन अब परेशान हो गया था उसका दिल अब अनजाने भय से डर रहा था।
"कुछ नहीं" सीमा ने वही रूखा सा जबाब दिया।
" क्या बात है सीमा तुम कुछ अपसेट लग रही हो, सब ठीक तो है?" नवीन ने उदास होकर पूछा।

"नवीन हमारी शादी नहीं हो सकती", सीमा के इस एक वाक्य ने नवीन का दिल उसकी उम्मीदे सब चकनाचूर कर दिए।
उसके चाहते पर गहरी उदासी और आँखों में बेचैनी झलक रही थी।

"क्यों!!, क्या हुआ?" बड़ी मुश्किल से उसके मुंह से ये शब्द निकले।
"क्योंकि मैं नही चाहती", सीमा ने बहुत रूखे पन से जबाब दिया।

"और वे सब बातें वो प्यार के वादे वह सब क्या था?" नवीन धीरे से बोला।

"'भ्रम", हां भ्रम था वो हमारा नवीन वह प्यार नही था केवल एक कच्ची उम्र का आकर्षण था वह केवल एक अहसास था जो हमें एक दूसरे के साथ अच्छा लगता था जिसमें हम अपना बचपन शेयर करते थे लड़ते झगड़ते थे लेकिन प्यार, बोलो प्यार जैसा हमारे बीच कब हुआ नवीन हम केवल अच्छे दोस्त थे बस और हमेशा रहेंगे, मेरे जीवन में तुम्हारी वह जगह कोई नहीं ले सकता लेकिन शादी, नहीं नवीन मुझे तुममे अपना जीवनसाथी नही दिखता बस हम दोस्त ही हो सकते हैं", सीमा एक सांस में सब कह गयी।
" लेकिन मैं तुम्हे सच्चा प्यार करता हूँ सीमा", नवीन ने कुछ कहना चाहा।

"नहीं नवीन मुझे भूल जाओ", सीमा ने बेरुखी से कहा और अंदर चली गयी।
नवीन जैसे जड़ हो गया उसमे अब उठने की ताकत ही नही बची थी।
उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था की सीमा ने यह सब कहा है।
वह ना जाने कितनी देर वहां बैठा उस दरवाजे को देखता रहा जहां से सीमा अंदर गयी थी, इसे यकीन था कि अभी सीमा हंसती हुई आएगी और कहेगी की क्यों केस बुद्धू बनाया लेकिन यह भी केवल उसका भ्रम ही निकला वह नही आई और नवीन थके थके कदमो से बापस लौट आया।
नवीन अंदर तक टूट गया था, वह कई दिन तक इस उमीद में छत पर जाता रहा कि शायद सीमा लौट आये किन्तु उसका ये भ्रम भी नही टूटा।

अब नवीन समझ गया था कि यह प्यार एक धोखा है एक भ्रम है बाकी कुछ नहीं।

अब उसने घरवालों की मर्जी से शादी कर ली।
उसकी पत्नी सुंदर, सुशील एवं पढ़ी लिखी है, वह एक अच्छी पत्नी के सभी गुण रखती है, लेकिन नवीन उसमें भी सीमा को ही खोजता है क्योंकि पहला प्यार भुलाना कोई आसान काम है क्या फिर चाहे वह कोई भ्रम ही क्यों न हो।।
समाप्त।।।

नृपेंद्र शर्मा "सागर"

#हॉरर/ छलावा

बाजार से लौटते समय बच्चों के लिए खरीदी पॉपकॉर्न की थैली कब तालाब के किनारे गिर गयी हरिसिंह को पता भी नहीं चला।
घर आकर वह कुछ उदास हुए की बच्चों को कुछ नही खिला पाया।

अगले दिन फिर बाजार से बच्चों के लिए लाया गया लायी चना तालाब के किनारे सरक गया।
हरि को समज़ह नही आया कि क्या हो रहा है।

आज हरि को बाजार से लौटते समय थोड़ी देर हो गयी थी तो वह बच्चों के लिए कुछ नहीं खरीद पाया।
जैसे ही हरि तालाब के किनारे पहुंचे उसे पीछे से कुछ भिनभिनाहट जैसी आवाज सुनाई दी,
"आज कुछ नहीं खिलायेगा हरिया!!??"
हरि ने पलट कर देखा एक विशाल चौपाया इंसानी खोपड़ी के साथ इसे देख कर खिलखिला कर हंस रहा था,,,, "रोज तो खिला कर जाता है हरिया आज भूल गया मुझे",उसने कहा।

हरिया उसे देख कर भय से बेसुध होकर गिर पड़ा,,,

#हॉरर/ डर

सुबह के चार बजे 'वीरेंद्र' झांसी रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से उतरा और पैदल ही अपने बड़े भाई के घर की तरफ चल दिया।
यूँ तो वीरेंद्र इधर कई बार आता जाता है किंतु इतनी जल्दी सुबह कभी नही पहुंच।

वीरेंद्र के भाई ने झांसी में ये नया मकान बनाया था सारी कॉलोनी अभी नई ही बन रही थी जगह भी शहर से बाहर ही थी।
वीरेंद्र ने जल्दी पहुंचने के चक्कर में पटरी के किनारे का शार्ट कट पकड़ा और चल दिया अकेला मस्ती में गुनगुनाता।

नवम्बर का महीना था सर्दी शुरू हो चुकी थी, सुबह चार बजे भी ऐसा लग रहा था जैसे आधी रात ही हो रही हो।

वीरेन्द्र अकेला इस सुनसान रास्ते पर तेज़ी से चला जा रहा था  तभी उसे लगा कोई सात-आठ साल का बच्चा बनियान पहने दौड़ कर इसके आगे निकल गया और आगे आगे चलने लगा, तभी एक और बच्चा दौड़ कर उसके पीछे पीछे चलने लगा।

वीरेंद्र ने उनपर ध्यान नहीं दिया किन्तु वह आगे बाला बच्चा बार बार पलट कर इसे देखता ओर कुछ अजीब ढंग से मुस्कुराता कभी चेहरा टेढ़ा करता।
अचानक वीरेंद्र ने पलट कर देखा, पीछे बाला बच्चा कुछ ज्यादा ही लंबा लग रहा था और एकदम बांस जैसा पतला।

वीरेंद्र को अब कुछ शक होने लगा उसने अपनी चाल को तेज कर दिया, किन्तु दोनो बच्चे बराबर उसके साथ चल रहे थे।
वीरेंद्र अब दौड़ने लगा किन्तु ये बच्चे सामान्य गति से चल रहे थे और बीभत्स हंसी हंस रहे थे।
इनके बीच की दूरी अभी भी उतनी ही थी।
वीरेंद्र को अब भय लगने लगा उसे समझ आ गया कि ये अवश्य कोई छल है, उसने आस पास देखा वह उनके चक्कर में शहर से बाहर श्मशान के रास्ते पर बढ़ रहा था।
वीरेंद्र कांपने लगा उसको उस भरी सर्दी में भी पसीना आने लगा था वह दौड़ रहा था।

तभी रास्ते में एक पीपल का बड़ा पेड़ आया, जैसे ही वीरेंद्र ने उस पेड़ को पार किया अचानक एक आदमी दौड़ता हुआ इसके पीछे से आया और जोर से बोला, हमारे पीछे आओ।
वीरेंद्र बिना सोचे उसके पीछे चलने लगा, वह आदमी शरीर में बहुत बड़ा था उसने एकदम सफेद कपड़े पहने थे और बिना रुके बिना मुड़े तेजी से चल रहा था।
वीरेंद्र को उसके साथ चलने के लिए लगभग दौड़ना पड़ रहा था।

कॉलोनी के पास पहुंच कर वह व्यक्ति ना जाने कहाँ गायब हो गया।
ओर वह बच्चे कब पीछे छूट गए, वीरेंद्र इस सब से बेखबर दौड़ता दौड़ता अपने भाई के घर पहुंच गया, वह बहुत डर गया था इस सब से।
कई दिन तक वीरेन्द्र को बुखार आया रहा वह कांपता रहा घबराहट में।
बाद में जब वीरेंद्र ने सभी  को ये बात बताई तब कुछ लोगों ने बताया की किसी महिला ने अपने दो बच्चों के साथ पटरी के किनारे आत्म हत्या कर ली थी,, तभी से वहां इस तरह की घटना अक्सर होती रहती हैं।

वो तो तुम्हारी किस्मत अच्छी थी जो पीपल की किसी अच्छी आत्मा ने तुम्हे उनसे बचा लिया , एक व्यक्ति ने बताया।

अब ये उसका डर था या कोई छलाबा वीरेंद्र आज तक नहीं समझ पाया किन्तु उसके बाद वह दोबारा कभी उस रास्ते पर नहीं गया।

©नृपेन्द्र शर्मा "सागर"

#कहानी/नई राह

मोहित बचपन से ही मनमौजी था कभी किसी की बात सुनना या घर के कोई काम करना उसकी शान के खिलाफ था।
दिन भर दोस्तों के साथ घूमना  इधर उधर टाइम बर्बाद करना उसके दिनचर्या का हिस्सा था ; लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ कि मोहित बिल्कुल ही बदल गया।
मोहित अपने किसी जानने वाले को अस्पताल देखने गया था, जब वह अस्पताल से बाहर निकल रहा था तभी उसने देखा ,एक बूढ़ा घायल पड़ा हुआ था और उसके पास बैठी एक बूढ़ी महिला रो रही थी।
उनका हाल देखकर पहली नज़र में ही लग रहा था कि दोनों बहुत गरीब हैं।
कभी किसी की बात न सुनने वाला मोहित आज उन्हें देख कर न जाने कैसे उनके पास चला गया, " क्या हुआ अम्मा इन्हें??", मोहित ने बूढ़ी से पूछा।
फिसल कर गिर गए बेटा सर में चोट लगी है कित्ता खून बह गया।
फिर आपने इनका इलाज?? 
क्या करूँ बेटा डॉक्टर कह रहे हैं पहले रपट लिखा के आओ अक्सीडेंट का मामला है या क्या पता किसी ने मारने के लिए,, अब तुम्ही बताओ जब हम कह रहे हैं फिसल कर गिर गए फिर भी भर्ती नहीं करते,, औरत रोने लगीं।

आपके साथ ओर कोई नहीं है क्या??  आज ना जाने किस प्रभाव से मोहित द्रवित हो रहा था उसे उन लोगों पर तरस आ रहा था।

कोई नहीं है हमारा दुनिया में, हम दोनों ही रहते हैं अपनी झोंपड़ी में।
ये छोटा मोटा काम करके कुछ कमा लेते हैं उसी में दोनों गुजारा कर लेते हैं।
पर कई दिन से इन्हें कोई काम ना मिला अब काम नहीं तो रोटी भी नहीं बस इसी से कमज़ोरी में चक्कर खा कर गिर गए,, बुढ़िया माई लगातार रोये जा रही थी।

मोहित ने अस्पताल में हंगामा कर दिया, उसने लापरवाही के लिए सभी को झाड़ लगाई और उनकी शिकायत करने की धमकी दी।
अस्पताल बालो ने जल्दी ही बूढ़े व्यक्ति को भर्ती कर लिया,, मोहित ने अपने खर्चे पर उनका अच्छा इलाज करवाया, कोई दो तीन घण्टे में बूढ़े को होश आया गया इस बीच मोहित एक बोतल अपना ओर दो बोतल दोस्तों का खून बूढ़े को चढ़वा चुका था।
बुढ़िया न जाने कितनी आशीष मोहित पर वार रही थी जमाने की सारी दुआएँ उसके मुंह से मोहित के लिए निकल रही थी।
ओर इसी से हो रहा था मोहित का ह्रदय परिवर्तन।
मोहित बूढ़े के पूरी तरह ठीक होने तक रोज सुबह शाम अस्पताल का चक्कर लगाता रहा।
उसके बाद उसने अपने कुछ दोस्तों को साथ मिला कर उनके खाने की व्यवस्था भी कर दी।
मोहित अब सबकी मदद करने लगा, जब कोई उसे मदद के बदले आशीष दुआ देता है मोहित और विनम्र बन जाता है।
मोहित को ये सेवा कार्य बहुत आत्मसंतुष्टि देता है।
जल्द ही मोहित ने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर एक सेवा ट्रस्ट बना लिया जिसमें असहाय बीमार कमज़ोर लोगों का सही इलाज और खाने पीने की व्यवस्था की जाती है।
मोहित अभी भी उस बूढ़ी माई का आशीर्वाद लेने जाता रहता है जिसने इसकी जिंदगी बदल कर उसे एक नई राह दे दी।

©नृपेन्द्र शर्मा "सागर"

#कहानी/दादी

चिंटू अरे ओ चिंटू,,,, 
अस्सी बरस की रामकली बिस्तर पर लेटे लेटे अपने पोते को पुकार रही है। 
रामकली बूढी अवश्य हो गई है किंतु जीवन जीने की आशा ने उसे कभी जीर्ण होने नहीं दिया। खाल सिकुड़ अवश्य गई है किंतु मन की तरुणाई कहीं उसके मनन करते मन के किसी कोने में अभी भी जीवित है। और जीवन की इसी आशा ने कभी उसके हाथ पांव को जड़ करने की जुर्रत नहीं की। किन्तु अब हाथ पांव में कम्पन अवश्य होने लगा है। 
क्या हुआ जो चन्द कदम चलने के प्रयास में साँस चढ़ जाती है। इस से उसके मन के दौड़ते मनोभावों को तो विराम नहीं लगता। 
वह पुनः अपनी खटिया में लेट कर मन की कल्पना के अश्व पर सवार हो चल पड़ती है, अपनी विचार यात्रा पर। 

उसका साठ साल का बेटा रामधन जो खुद भी बूढ़ा हो चला है , किन्तु माँ की दृष्टि उसे अभी भी तरुण ही समझती है , और अपनी नसीहत न मान ने पर ,मन ही मन खीझती है।

रामकली की कल्पना कभी उसे खेत पर ले जाती है जहाँ, रामधन अपने खुद की तरह जीर्ण होते बैलों के कंधे पर जुआ रखे, उसमे हल बांधे  इनके पीछे-पीछे हाथ में लकड़ी लिए कभी पुचकरता कभी भद्दी गालियां देता कभी मारता हुआ चल रहा है। 
रामकली सोचती कितने निकम्मे बैल हो गए हैं । मार से भी नहीं बढ़ते ,बेचारा 'रामधन' इस गति से कैसे इतने बड़े खेत को जोत पायेगा ,अभी तो तीन हिस्सा बाकि है। 
यही बैल रामधन के बापू की एक हांक पर कैसे हवा से आंधी बन जाते थे और आज देखो,,,!!!
रामधन के बापू का ख्याल आते ही रामकली के झुर्रियो भरे गाल लाल हो गए और कुछ क्षण के लिए झुर्रियों के बीच से बीस वर्ष की लजाती हुई सोहनलाल को छिप कर देखती हुई रामकली प्रकट हो गई। 
जो दोपहर को मटकती लहराती रोटी की पोटली बांधे पतली मेड़ो से होकर रास्ता छोटा करते हुए खेत पर जा रही है। उसे मन मीत से मिलने की शिघ्रता है या उन्हें जल्दी खाना खिलाने की लालसा ये तो उसका मन ही बेहतर जाने।
इसे दूर से आता देख सोहन भी बैलों को हल से मुक्त कर पेड़ के नीचे घास पर बैठ जाता।
बैल भी शायद उसके आने से प्रसन्न हो जाते ,ये कार्य मुक्ति की प्रसन्नता है,,, 
"नहीं नहीं" रामकली बैलों के लिए गुड़ के ढेले लेकर आती है उसी लालच में बैल पूंछ पटकते हैं। 
सोहन जब तक भोजन करता रामकली उसके मुख को तकती लजाती रहती। कितना प्यार करते थे रामधन के बापू उसे।
और बो खो जाती प्रेम मिलन की उस अद्भुत कल्पना में जिसमे उसके पूरे बदन में जोश और लज्जा के साझा रक्त संचार से ,कुछ पल को जवान रामकली लौट जाती। उस कल्पना में रामकली कभी मुस्कुराती कभी लजाती कभी खुद में ही सिमट जाती। कितने भाव उसके मुख की भाव भंगिमा की बदलते रहते। 
अब रामकली अपने मन की कल्पना के घोड़े को एड लगाती चली जाती मोहन की दुकान पर । 
मोहन रामकली का पोता और रामधन का लड़का है ,पैंतीस बरस का मजबूत सुंदर जवान। 
रामकली को उसमे सोहन की छवि दिखती है वो उसे देख कर बलिहारी जाती है ।
जुग-जुग जिए मेरा मोहन बिलकुल अपने दादा पर गया है। आज अगर बो होते तो देखते रत्ती भर का बी फर्क नई पडा सूरत में बोही नयन नक्शा बैसे ही चौड़े कंधे।
काश !!!  वह होते आज ,,,
सोचकर रामकली की आँखे गीली हो गईं ।
यही मोहन दो बरस का था जब इसे बरसात की उस  रात उलटी दस्त लग गए थे । 
गांव के हकीम जी ने कहा सोहन शहर ले जा बच्चे को यहाँ इलाज़ ना है अब इस बीमारी का। सारे गांव में बीमारी फैली है साफ सफाई बी ना है गांव में जल्दी कर । 

और सोहन रात में ही मोहन की छाती से लगाए दौड़ गया था शहर की और ।
कोई सवारी का साधन नहीं था बस बही बैल गाड़ी। 
और सोहन ने कहा बैलगाड़ी से जल्द तो मैं पहुंच जाऊंगा बटिया से दौड़ कर । 
ओर भीगते भागते दौड़ते उसने मोहन को तो बचा लिया, शहर ले जा कर, लेकिन खुद को म्यादि बुखार से न बचा पाया ,और छोड़ गया रामकली को बेसहारा । 
तब से मोहन को रामकली ने अपना साया देकर पाला । अपनी सारी शक्ति अपना सारा सुख और मन के सारे कोमल भाव लगा दिए रामकली ने परिवार को पालने में।
चिंटू उसी मोहन का सात बरस का बेटा है आजकल रामकली सोच रही है रामधन के बापू ने जन्म लिया है चिंटू के रूप में । 
और अपना संपूर्ण बत्सल्य लुटा रही है ,अपने इस पड पोते पर। 
आज कोई उसे लड्डू दे गया था सुबह बस बही पल्लु के कोने में बांधे पुकार रही है,, 
चिंटू अरे ओ चिंटू कहाँ है रे,,, 

तभी कहूँ से चिंटू लौट आया,, क्या है दादी,, ?
हर बक्त चिंटू- चिंटू बोल क्या काम है,,??

ये बत्सल्य के परदे से बंद आँखे सब अनदेखा करती टटोल कर पल्लु खोलती लड्डू निकलती है।
हैं !!लड्डू,, 
कहाँ से लाई दादी ,
मेरी प्यारी दादी कहते हुए चिन्टू उसकि गोद में घुसकर लड्डू में मुह मरने लगता है।

©नृपेन्द्र शर्मा "सागर"