Saturday, July 24, 2021

ताबूत की कीलें

ताबूत की कीलें



1.

वह एक तांत्रिक था, मुर्दों पर तन्त्र करता था। रात-रात भर श्मशान भूमि की राख में ना जाने क्या खोजता रहता था। कई बार कब्रिस्तानों के गड्ढों में रात बिताता था। 

एक बार उसे चर्चयार्ड के एक गड्ढे से एक पुराना ताबूत मिला। 

उसने अपनी शक्तियों से देखा कि इसके अंदर जो कंकाल है, उसकी आत्मा बहुत शक्तिशाली है। 

उसे अपने कब्जे में करके वह दुनिया का सबसे शक्तिशाली तांत्रिक बन सकता है और दुनिया पर राज कर सकता है।

  उसने दूर घने जंगल में उस ताबूत को ले जाकर जैसे  ही उसे खोलने के लिए हाथ लगाया, तो उसे बहुत जोर का झटका लगा। जैसे किसी ने उसे लात मारकर उछाल दिया हो।

यह देखकर वह तांत्रिक समझ गया कि इस ताबूत को खोलना उसके बस की बात नहीं है।

लेकिन वह शक्तिशाली बनने का लोभ भी नहीं छोड़ पा रहा था।

उसने कई दिन सोचा और फिर धीरे-धीरे आस-पास के गाँव में एक खबर फैलयी गयी कि जो भी जँगल में पड़े ताबूत की कील अपने दरवाजे पर लगाएगा उसका घर हमेशा बुरी शक्तियों से बचा रहेगा।

धीरे-धीरे उस ताबूत की कीलें एक-एक करके कम होने लगीं। 

एक दिन उस तांत्रिक ने देखा कि ताबूत की आखिरी कील भी उखड़ चुकी है, तो वह बहुत खुश हुआ और उसने उस ताबूत के कंकाल की खोपड़ी लेने के लिए उसका ढक्कन खोल दिया।

अभी तांत्रिक ताबूत में झाँकने के लिए झुका ही था कि उस ताबूत में लेटे हुए कंकाल की लम्बी होती उँगलियाँ उसकी गर्दन के गिर्द लिपट गयीं और उस कंकाल की आँखों के दिये जलने लगे।

अभी वह तांत्रिक आश्चर्य और भय से उन आँखों को देख ही रहा था कि तभी वह कंकाल उठ खड़ा हुआ और बहुत तेज़ अट्ठहास करते हुए बोला, "हा!हा!हा!!!... आज तेरे लालच ने पूरे दो सौ साल बाद फिर एक बार मुझे जिंदा होकर दुनिया पर कब्जा करने का अवसर दिया है।

मुझे जब उन पादरियों ने इस ताबूत में बंद किया था तब सात अलग-अलग पुजारियों ने अलग-अलग मन्त्र से अभिमंत्रित करके सात कीलें इस ताबूत में यह कहकर ठोकी थीं कि जब तक कोई सात लोग अनजाने में इन कीलों को नहीं निकालेंगे, तब तक मैं इस कैद से मुक्त नहीं होऊँगा और आज सात लोगों ने सातों कीलें निकाल दीं, अब मैं मुक्त हूँ। लेकिन अब मुझे एक शरीर चाहिए जो तेरे जैसा हो...।"

और यह कहकर उस कंकाल ने अपने हाथ को जोर का झटका दिया। इस झटके से वह तांत्रिक निर्जीव होकर लुढ़क गया।

कंकाल ने उसे एक और उछाला और देखते ही देखते वह कंकाल धुआं होने लगा। 

कुछ देर बाद वह सारा धुआँ तांत्रिक के मुँह में चला गया और वह तांत्रिक एक झटके से उठकर जंगल की ओर चल दिया।


2.

फादर विलियम अभी प्रार्थना करके चर्च से बाहर आये थे। उन्होंने चर्च का गेट बंद किया उसकी कड़ियों को ठीक से खींचकर देखा और ताला लगा दिया।

दिसम्बर का महीना था, शाम गहरा चुकी थी, अँधेरा बढ़ता ही जा रहा था।

मौसम ऐसे तो साफ ही था लेकिन सर्द हवा बर्फ गिरने का अहसास करवा रही थी। फ़ादर विलियम ने अपने ओवर कोट के कॉलर को खड़ा करके अपने कानों को ढकने का प्रयास किया और अपने हेट को आगे से थोड़ा सा छुकाकर आगे कदम बढ़ा दिए। फादर की गोरी नाक ठंडी हवा से लाल हो चुकी थी इसलिए वे जल्द से जल्द घर पहुँचना चाहते थे।

फादर की उम्र कोई पैंसठ से अड़सठ के बीच रही होगी। ऊँचा लम्बा कद और मजबूत कदकाठी उन्हें अभी जवान ही दिखाते थे।

ये चर्च मुख्य शहर से कोई दो किलोमीटर दूर जंगल के बीच में बना हुआ था साथ ही चर्च से कुछ ही दूरी पर पक्का कब्रिस्तान भी था जहाँ ना जाने कितने शसन्त हो चुके लोग शान्ति से सो रहे थे अपने ताबूतों में।

इस कब्रिस्तान में आम आदमी तो अकेले जाते हुए दिन में भी डरता था लेकिन फादर विलियम रोज सुबह उजाला होने से पहले चर्च आने और शाम को अंधेरा होने के बाद वापस घर जाने के लिए इसी कब्रिस्तान के बीच से होकर जाते थे। इससे उनका रास्ता कोई आधा किलोमीटर छोटा हो जाता था।


फादर विलियम अभी कब्रिस्तान के बीच में पहुँचे होंगे अपनी धुन में चलते हुए। अचानक उन्हें ऐसा लगने लगा जैसे कोई उनके पीछे चल रहा है।

फादर ने एक दो बार आँखें टेढ़ी करके बिना पीछे मुड़े देखने की कोशिश भी की लेकिन उन्हें अपने पीछे कोई भी आता हुआ नजर नहीं आया। अलबत्ता अपने पीछे किसी के कदमों की आहट वे बराबर सुनते रहे।

  ऐसे ही फादर विलियम जब एक पुरानी, टूटी-फूटी, कच्ची कब्र के पास पहुँचे तो उन्हें ऐसा लगा जैसे किसी ने उनके कन्धे पर अपना हाथ रखा है और वह उन्हें आगे बढ़ने से रोक रहा है।

  फादर ने अब पलटकर देखा उनके पीछे एक साँवले  रँग का औसत कदकाठी वाला व्यक्ति खड़ा था। उसके चेहरे पर घनी दाढ़ी और मूँछे थीं। गले में तरह-तरह की ढेरों मालाएं पहन रखी थीं। उसने नीचे एक खाल को लपेटा हुआ था और कंधों पर एक काला दुशाला डाला हुआ था।

माथे पर उसने काले ही रँग का लंबा तिलक  लगाया हुआ था और उसकी आँखें मद से लाल हो रही थीं।

फादर उस तांत्रिक को देखकर चौंके और तेज़ आवाज़ में बोले, "कौन हो तुम और ऐसे मेरा रास्ता रोकने का क्या मतलब है? छोड़ो मुझे और अपने रास्ते जाओ।"

  "तूने मुझे पहचाना नहीं फादर!!! ध्यान से देख ये मैं हूँ, तेरा पुराना मित्र! हा...हा...हा...हा...हा!!!

पहचान मुझे विलियम मुझे तुझसे अपना हिसाब लेना है।" वह जोर से हँसता हुए बोला।

उसकी आवाज इस सर्दी में भी विलियम के कानों पर पसीना ले आयी थी फिर भी फादर ने कड़क कर कहा, "मैं नहीं जानता तुम्हें, क्या इससे पहले हम कभी मिले हैं??"


उनके इतना कहते ही उस तांत्रिक का चेहरा एक पल को बिल्कुल बदल गया। जितनी देर में एक बार बिजली चमककर लोप हो जाती है बस उतनी ही देर के लिए। और शायद उससे भी दुगुनी चमक के साथ बिजली की गर्जन सा ही अट्टहास करते हुए।

और इस एक झलक ने जैसे विलियम के प्राण हलक में ला दिए। विलियम पीछे भागने की कोशिश करते हुए मिनमिनाये हुए स्वर में कहने लगा, "त...!त...! तुम..??? तुम फिर जाग उठे?? लेकिन कैसे?? क्या हुआ 'ताबूत की कीलों का??  कहाँ गयीं वह कीलें?

और तुम तो उस ताबूत के साथ इस क़ब्र में...!!"

"हा.हा.हा.हा...!!! इसी सड़ी हुई बदबूदार कब्र में दफनाया था तुम पादरियों ने मुझे....यही ना।

और तुम विलियम..?? तुम रोज मुझे इस कब्र में कैद रखने के लिए अपने खुदा से प्रार्थना करते थे। लेकिन इस शरीर का लालच जिसमें मैं हूँ तुम सब पर भारी पड़ गया। ये ले गया उस ताबूत को तुम्हारी ऑंखों के नीचे से निकालकर और मुझे आजाद....!! हाहाहाहाहा!! मुझे आज़ाद किया उन्हीं सातों पवित्र पादरियों ने...अपने हाथों से।

हाँ विलियम उन्होंने ही निकाली हैं इस ताबूत की सातों कीलें।

  लेकिन ये बात जानकर तुम्हें कोई लाभ नहीं होगा।

पादरी विलियम मुझे सात अलग-अलग शरीर चाहियें किसी काम के लिए। एक तो मुझे मिल गया इस लालची तांत्रिक का। लेकिन इसका मुझपर उपकार है तो इसे तो मैं बहुत संभाल कर रखूंगा। लेकिन तुम..!!!तुम सदा मुझे इस गन्दी कब्र  में कैद रखना चाहते थे ना  विलियम??? तो अब तैयार हो जाओ इसी कब्र में लंबे समय तक रहने के लिए।

अब जो भी मेरे मकसद के बीच आएंगे उन्हें इसी कब्र में कैद होकर रहना होगा। मेरे इस दुनिया पर राज करने तक।"

और ये कहकर तांत्रिक ने अपने हाथ उस पादरी की गर्दन पर रख दिये।

अब पादरी को वह तांत्रिक नहीं बल्कि उस शैतान का चेहरा नज़र आ रहा था। वही भयानक चेहरा जो कुछ देर पहले उसके सामने बिजली सा चमका था।

शैतान की पकड़ पादरी की गर्दन पर एकदम से कसी और उसके प्राणों ने शरीर छोड़ दिया।

लेकिन शैतान ने पादरी की गर्दन नहीं छोड़ी और उसे लेकर उस टूटी-फूटी पुरानी कब्र में चला गया।



3.


सारांश:-अब तक की कहानी में आपने पढ़ा कि कैसे एक तांत्रिक के लालच के चक्कर में 200 साल पुराना ताबूत खुल गया और उसमें से एक शैतान मुक्त हो गया।

अब वह शैतान जगह-जगह लोगों को मारकर उन्हें शरीर इकट्ठे कर रहा है लेकिन क्यों???

कौन है वह शैतान? किसने बन्द किया था उसे ताबूत में? क्या रहस्य है ताबूत में लगी कीलों का??

क्या वह शैतान दुनिया पर राज करेगा या फिर से होगा कैद? जानने के लिए पढ़ें प्रतिलिपि पर मेरा धारावाहिक उपन्यास, 'ताबूत की कीलें'


भाग:-3


रात पूरी तरह गहराई हुई थी, आसमान में इक्का-दुक्का तारे-तारी लुकाछिपी सी खेल रहे थे।

सर्दी की कोहरे वाली रात थी। और चारों तरफ सन्नाटा ऐसे में कब्रिस्तान की उस मिट्टी पर बिखरे सूखे पत्तों की किसी भारीभरकम शै के द्वारा कुचले जानी की चरर...चरर्रर!! वातावरण में गूंजने लगी। आसपास पेड़ों पर छिपे पक्षी-परिंदों ने कूकक करके संकेत किया तो जुगनुओं ने अपने दिए कि बत्ती उभारी और अब सामने का दृश्य कुछ धुंधला सा छाया जैसा कोहरे में उभरने लगा।

कोई अपने दोनों कन्धों पर दो लोगों को लादे हुए धीरे-धीरे उस टूटी कब्र की ओर बढ़ रहा था।

थोड़ा और नज़दीक आने पर उसका चेहरा थोड़ा और साफ हुआ...अरे!!! ये तो  वही तांत्रिक था। उसने अपने दोनों कन्धों पर दो मुर्दा जिस्म लाद रखे थे। इन दोनों को देखकर ऐसा लगता था जैसे दोनों बिल्कुल ताज़ा ताज़ा मुर्दा बने हों। 

तान्त्रिक उस कब्र के पास आकर रुका और उन दोनों को गठरी की तरह कब्र के अंदर लुढ़का दिया।


तांत्रिक ने रुककर कुछ देर इधर-उधर देखा और फिर अपने दोनों हाथ फैलाकर ऊपर देखते हुए कुछ मन्त्र पढ़ने लगा 

मन्त्र पढ़कर उसने अपने दोनों हाथों की मुट्ठी बन्द करके फिर कुछ पढ़ा और जोर से गरज कर कहने लगा- "उठे मेरे प्यारे साथियों, मेरे सिपाहियों। बहुत नींद ले चुके अब कुछ काम कर लिया जाए। जागो और देखो मैं तुम लोगों के लिए क्या लाया हूँ।

जिस्म!!! हाँ मेरे बेटों, नए जिस्म  तुम सभी  के लिए।"

उसके बाद उसने अपनी मुट्ठियाँ खोलकर फूँक मार दी।

अचानक उस कब्रिस्तान में हलचल होने लगी जमीन काँपने लगी। डरावनी आवाजें आने लगीं।

देखते ही देखते चार कब्रें झटके से फटीं और उनमें से चार कंकाल उछलकर बाहर आ गए।

चारों कंकाल हो हो करते हुए उस तांत्रिक की ओर बढ़ रहे थे और वह खुश होकर बहुत जोर से हँस रहा था।

"आ जाओ बच्चों इधर आओ मेरे पास! आज पूरे दो सौ साल बाद तुम लोग नींद से जागे हो। तुम्हें तो भूख भी लगी होगी ना? चलो मैं तुम्हें नए जिस्म देता हूँ। फिर जम  कर अपनी भूख शांत करना। आज ही कि रात जितने चाहे शिकार करो, लेकिन ध्यान रहे पुरुषों के जिस्मों की मुझे मेरे कार्य के लिए बहुत आवश्यकता है इसलिए उन शवों को यहाँ मेरे पास लेकर आना बाकी औरतें और जानवर...हा...हा...हा...हा!!! उनके साथ जो चाहे करना वह तुम्हारे लिए मेरी तरफ से इनाम है।

आखिर दो सौ साल पहले तुम लोगों ने मेरे लिए अपनी जान दी थी और फिर इन गन्दी कब्रों में कैद किये गये थे। अब समय आ गया है मेरे बच्चों हमारे प्रतिशोध का। हमें एक-एक पादरी से अपना बदला लेना है, आओ चलो मेरे साथ।" तांत्रिक ने कहा और फिर कब्र के अंदर जाने लगा। उसके साथ ही ये चारों कंकाल भी उसके पीछे उस टूटी पुरानी कब्र के अंदर चले गए।


सारे पक्षी-परिंदे और कीट साँसे रोके उस कब्र को देख रहे थे जहाँ सारी दुनिया से बदला लेने की तैयारियाँ चल रही थीं।  कुछ ही देर बाद उस कब्र से फादर विलियम और उनके पीछे चार युवा बाहर निकले। 

फादर विलियम के पास ना तो क्रास था और ना ही बाइबिल। उनके चेहरे पर एक बीभत्स कुटिल मुस्कान अवश्य थी। और वे चार लोग...!!! उनमें से दो तो वही थे जिन्हें कुछ ही देर पहले वह तांत्रिक मुर्दों की भाँति लादकर लाया था लेकिन बाकी दो??? हो सकता है वे दोनों पहले से ही अंदर हों या उन्हें तांत्रिक पहले लाया हो।

"चलो मेरे बेटों, आज की ये रात तुम्हारे लिए जश्न की रात है और मेरे लिए दुनिया वालों से बदले की रात।

आज इतना आतंक मचा दो की सारी दुनिया को ये पता लग जाये कि मैं जाग चुका हूँ। उन्हें अपने राजा के स्वागत की तैयारी कर लेनी चाहिए क्योंकि अब देवताओं का नहीं बल्कि दुनिया पर शैतान जा राज शुरू होने का समय आ गया है।

हा.हा.हा.हा.हा.हा...!!! शैतान का बेटा लौट आया। 

तुम सब 'सेड्रिक' की फौज के कमांडर हो आओ चलो और अपनी फौज तैयार करो, हमें पूरी दुनिया को जीतकर उस पर राज करना है। और साथ ही देनी है हमारे साथ किये गए गुनाहों की सज़ा भी।" फादर विलियम ने कहा और पाँचों लोग जंगल की तरफ निकल गए।


सुबह का उजाला धीरे-धीरे फैल रहा था। गाँव के लोग उठकर दिशा मैदान को निकल रहे थे। अचानक किसी की दिल दहला देने वाली चीख सुनकर सारे लोग उस दिशा में दौड़ पड़े।

गाँव के बाहर जँगल में कई महिलाओं की निर्वस्त्र लाशें पड़ी हुई थीं।

सारे गाँव वाले घेरा बनाकर उन शवों को देख रहे थे।

"लगता है भेड़ियों के झुंड का काम है।"मुखिया जी ने अधखायी लाशों की तरफ देखते हुए कहा।

"नहीं मुखिया जी!! भेड़िये कुकर्म करने के लिए शिकार नहीं करते और आपने शायद इन शवों को ठीक  से नहीं देखा। इनके अंगों से बहता लहू इस बात की गवाही दे रहा है कि दरिंदों ने सिर्फ माँस ही नहीं खाया है बल्कि वे तो इनकी इज़्ज़त भी नोचकर ले गए।" तभी एक अधेड़ गुस्से से भरा हुआ लेकिन दुखी आवाज में बोला।

"ऐसा कौन कर सकता है हमारे इलाके में? इससे पहले तो कभी ऐसा सुना नहीं हमने। लेकिन ये जो भी हैं निश्चित ही बहुत क्रूर और बीभत्स लोग हैं। हमें जल्द से जल्द इनका पता लगाकर राजा को इसकी सूचना देनी होगी।" मुखिया जी कुछ सोचते हुए बोले।

"सेड्रिक!!! हाँ यही कहा था उसने के 'सेड्रिक' लौट आया अपना इंतकाम लेने।" लोगों ने झाड़ी में से आती चीख की आवाज सुनी और उधर दौड़ लगा दी।


झाड़ियों में बुरी तरह घायल एक युवक पड़ा कराह रहा था। लोग जल्दी से उसे उठाकर बाहर लाये और कुछ लोग हकीम को लाने के लिए गाँव की और दौड़ गए।

"अरे!!! ये तो जॉन है, हमारे ही गाँव का। इसकी ये हालत कैसे हुई?" तभी किसी ने कहा।

"रात में आये थे वे शैतान, पाँच लोग थे वे और आश्चर्य की बात ये है कि उनके मुखिया थे फादर विलियम। लेकिन फादर खुद को 'सेड्रिक' कह रहे थे और सबसे बदला लेने की बात कर रहे थे। उन्होंने लड़कों को गला दबाकर मार दिया और लड़कियों के साथ बहुत गन्दे काम किये। उसके बाद वे लोग लड़कों के शव उठाकर अपने साथ ले गए।" उस लड़के ने अटक-अटक कर बताया और फिर एक झटके से उसकी गर्दन लुढ़क गयी।

"सेड्रिक...!! कहीं ये वही तो नहीं जिसका नाम शैतान की जगह लिया जाता है? जिसे दो सौ साल पहले दफन कर दिया गया था? अगर हाँ तो दुनिया पर तबाही टूटने वाली है। चलो सब बड़े गिरिजाघर।"मुखिया जी ने काँपती आवाज में कहा और सारे गाँव वाले इकट्ठे होकर मुख्य चर्च की ओर चल दिये।


4.


बड़े गिरिजाघर में बहुत भीड़ हो रही थी, कई गांव के लोग और आस-पास के बहुत सारे गिरिजाघरों के पादरी वहाँ पर इकट्ठा हुए थे। सभी के चेहरों पर गहरी चिंता और भय के भाव फैले हुए थे।

"जैसा कि गाँव के लोगों ने बताया कि शैतानों के मुखिया जो कि फादर विलियम की तरह दिख रहा था, खुद को सेड्रिक कहकर संबोधित किया था।

'सेड्रिक' का नाम हम सभी लोग अपने बचपन से सुनते आ रहे हैं। और जिन्होंने नहीं सुना तो वे भी जान लें कि आज से दो सौ साल पहले उसी गाँव में सेड्रिक का जन्म हुआ था जहाँ के चर्च में फादर विलियम प्रेयर करा रहे थे आजकल। सेड्रिक जब चौदह साल का हुआ तभी उसने एक दिन ये घोषणा कर दी कि वह शैतान का बेटा है। उसके नाम का अर्थ है 'मुखिया होना' और शैतान ने उसे इस सारी दुनिया पर राज करने के लिए भेजा है। उसके बाद सेड्रिक घर से चला गया और काली शक्तियों की उपासना और सिद्धियाँ करने लगा।

धीरे-धीरे सेड्रिक सचमुच का शैतान बन गया। वह लोगों का खून पीने लगा और क़त्लेआम मचाने लगा। उस समय के राजा को जब सेड्रिक के बारे में पता लगा तो उसने अपनी सेना को सेड्रिक को खत्म करने के लिए भेजा। लेकिन आप लोग जानते हैं कि सेड्रिक ने क्या किया? उसने मुर्दों की सेना खड़ी कर दी राजा की सेना से लड़ने के लिए।

राजा की सेना की एक ना चली सेड्रिक की उस पिचाशनी से ना के आगे और सेड्रिक जीत के जोश में चारों तरफ तबाही मचाने लगा। उसकी सेना के पिशाच आदमियों को मारकर उनके शरीर पर कब्जा करते और फिर औरतों के साथ घृणित कार्य। वे नर पिशाच औरतों को बहुत वीभत्स तरीके से यातनाएँ देते, उनका खून पी जाते और दुष्कर्म  करके उन्हें मार देते थे।

जब राजा के पास ये सब सूचनाएँ पहुँची तो राजा  ने आध्यात्मिक शक्तियों का सहारा लिया।

राज ने सभी धर्मो के मांत्रिकों को बुलवाया और सेड्रिक का कोई उपाय करने का आग्रह किया। तब मांत्रिकों ने अपने मन्त्र शक्ति से सेड्रिक को बाँधकर एक ताबूत में बंद कर दिया और उसपर सात महामंत्रों से अभिमंत्रित करके सात कीलें ठोकी गयीं जिनके प्रभाव से सेड्रिक कभी उस ताबूत से बाहर ना आ सके। मांत्रिकों ने सेड्रिक के उस ताबूत को बस्ती से दूर, जँगल में बने एक चर्च के कब्रिस्तान में ये सोचकर दफन किया था कि यहाँ कभी कोई नहीं आएगा और यदि कोई उसे निकालने आ भी गया तब भी वह तबतक मुक्त नहीं हो सकता था जबतक की सात पवित्र आत्माएं उस 'ताबूत की कीलें' ना निकाल दें।

किन्तु ना जाने वह ताबूत बाहर आ गया और सेड्रिक उसमें से आज़ाद हो गया। और अब उसने कब्जा किया है उसी चर्च के पादरी, फादर विलियम के शरीर पर। हमें जल्दी ही उसको वापस कैद करने का कुछ तरीका सोचना होगा नहीं तो तबाही का वह ख़ौफ़नाक मंजर देखना पड़ेगा कि सबकी रूह कांप उठेगी।" मुख्य पादरी ने चिंता और उदासी भरे स्वर में सेड्रिक के बारे में सबको बताया।

"जैसा कि फादर जॉनाथन ने हमें बताया कि सेड्रिक एक शैतान है और अब फादर विलियम के शरीर में उसका डेरा है। इसका अर्थ ये हुआ की फादर विलियम की पवित्र आत्मा बिना शरीर के घूम रही होगी। तो क्यों ना हम 'आत्मा-आवाहन' विधि से फादर विलियम की आत्मा को बुलाएँ और उनसे सेड्रिक के बारे में पूछें। मेरा विचार है कि फादर विलियम को अवश्य ही कुछ ऐसा मालूम होगा जो हमें नहीं पता है और मेरा ये भी मानना है कि फादर विलियम की पवित्र आत्मा सेड्रिक के खिलाफ ज़रूर हमारा साथ देगी।" एक बूढ़े पादरी जो पीछे बैठे थे  खड़े होकर बोले और सारे लोग मुख्य पादरी की तरफ देखने लगे।

"सुझाव बहुत अच्छा है फादर डिसूजा, हम अवश्य ही इस पर और विचार करेंगे। किन्तु उससे पहले हमें सारे गाँव वालों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने होंगे। क्योंकि जैसे ही हम सेड्रिक के खिलाफ कोई कदम उठाएंगे वह सबसे पहले गाँव वालों को ही अपना शिकार बनाएगा। इसलिए कुछ मांत्रिक पादरी गाँव वालों की सुरक्षा के लिए सभी गाँव के चारों ओर सुरक्षाकवच बनाएँ और वह भी आज ही रात होने से पहले। फिर आज की रात हम यहीँ फादर विलियम की पवित्र आत्मा से सम्पर्क करने की विधि करेंगे।" मुख्य पादरी ने कहा और सभी लोग सहमति में सिर हिलाकर उठा गए।

"ठीक है फादर जॉनाथन, हम लोग एक सुरक्षा कवच बनाकर उससे अभिमन्त्रित जल को आसपास के सभी गाँव में छिड़कते हैं। तब तक आप फादर विलियम की पवित्र आत्मा को बुलाने की तैयारियाँ कीजिये।" एक पादरी ने कहा और कुछ लोगों को इशारे से अपने साथ लेकर बाहर निकल गए। 

सभी गाँव वाले भी अपने घरों को लौट गए।

चर्च में रह गए थे फादर जॉनाथन, फादर डिसूजा, फादर जोसफ और तीन-चार अन्य युवा पादरी।

"आप सभी लोग बहुत ध्यान से सुनें, हम ये नहीं जानते  कि वास्तव  में शैतान सेड्रिक जाग उठा है या फिर खुद फादर विलियम ही ताकत के लालच  में सेड्रिक के नाम की आड़ लेकर दुनिया पर राज करने की मंशा पाले हुए घूम रहे हैं। क्योंकि पहली बात तो ये है की सेड्रिक का ताबूत जहाँ दफन किया गया था फादर विलियम को ही उस चर्च में प्रार्थना और सेड्रिक की कब्र पर नज़र रखने की जिम्मेदारी दी गयी थी। दूसरे उन सात कीलों को निकालने वाली सात पवित्र आत्मा कौन हैं और विलियम के बाकी चार साथी कौन हैं। 

यदि ये सेड्रिक कोई और नहीं बल्कि खुद विलियम ही है तब आत्मा-आवाहन में क्या मुसीबत आ सकती है इसका अनुमान भी आप लोग नहीं लगा सकते।

और यदि शैतान का बेटा सेड्रिक जाग गया है तो भी वह अपने राज छिपाने के लिए कभी नहीं चाहेगा कि हम फादर विलियम की पवित्र आत्मा से वार्तालाप करें।" फादर जॉनाथन ने सभी को समझाते हुए कहा। 

"क्यों ना हम इधर भी एक सुरक्षा कवच बना लें और उसमें रखकर विलियम की आत्मा से बात करें?" फादर डिसूजा ने सलाह दी।

"यही सही रहेगा, आओ चलकर तैयारियाँ करें।" फादर  जॉनाथन ने कहा सभी लोग एक ओर चल दिये....


5.

शाम हो चली थी, गाँव वालों की सुरक्षा के लिए कवच बनाकर और लोगों को घेरे के अंदर ही रहने की चेतावनी देकर सारे पादरी लौट आये थे।

 फादर जॉनाथन, फादर डिसूजा एवं फादर जोसफ ने आत्मा को बुलाने की सारी तैयारियां कर ली थीं।

 चर्च के बरामदे में ही फर्श पर कुछ रंगीन आकृतियां बनाई हुई थीं और बाकी सारे लोग उसके चारों ओर एक दूसरे का हाथ पकड़े मोमबत्तियां लिए खड़े हुए थे। फादर जोसफ ने फर्श पर बनी उस आकृति के चारों ओर भी मोमबत्तियां लगा दीं।

 जैसे ही घण्टे ने दस बजाए फादर जॉनाथन ने सारी मोमबत्तियां जलाने का संकेत किया।

 सारी मोमबत्तियां जलने के बाद फादर डिसूजा ने कहा, "चाहे कुछ भी हो जाये हमें हाथ और साथ नहीं छोड़ना है और लगातार पवित्र मन्त्रों का उच्चारण करते रहना है। हो सकता है यहाँ कुछ बहुत डरावना दृश्य देखने को मिले, लेकिन वह हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ पायेगा बस हमें अपनी शक्ति को संयुक्त रखना होगा। क्योंकि शैतान के सामने यदि हमारी एकता टूटी तो हम सभी खत्म हो जाएंगे।"

 "हम सब तैयार हैं।" सारे पादरी एक साथ बोले और फादर जॉनाथन ने फादर डिसूजा और जोसफ को विधि शुरू करने को कहा।

 फादर जॉनाथन ने मोमबत्ती लेकर कहना शुरू किया, "है पादरी विलियम, मैं ईश्वर का नाम लेकर आपकी पवित्र आत्मा का आवाहन करता हूँ। मानवता को बचाने के लिए मैं तुम्हे गॉड का वास्ता देकर यहाँ आने के लिए कहता हूँ। हे विलियम की पवित्र आत्मा यहाँ आकर हमें हमारे सवालों के जवाब दो।" फादर जॉनाथन बहुत तेज़ आवाज में पुकार रहे थे तथा उनके साथ ही बाकी सारे पादरी भी मोमबत्तियां पकड़कर फादर जॉनाथन की बात दोहरा रहे थे। 

 अचानक बहुत तेज़ हवा चलने लगी, सारी मोमबत्तियां ऐसे फड़फड़ाने लगीं मानों अभी बुझ जाएँगी। फादर जॉनाथन ने सभी को सावधान करते हुए फिर से आवाहन मन्त्र बोलना शुरू कर दिया। अचानक फर्श पर बनी आकृति ऐसे चमकने लगी जैसे वहाँ आग जल रही हो। 

 फादर जॉनाथन ने आवाहन जारी रखा देखते ही देखते उस आकृति में फादर विलियम की छवि बनने लगी। 

 बाहर पूरा चर्च डरावनी चीखों से गूंज रहा था। तेज हवाएं जैसे चर्च को ही गिराने की चेष्टा कर रही थीं। 

आसपास के पेड़ जैसे जमीन को छू रहे थे। और शैतानी आत्माएँ दिल दहला देने वाला शोर कर रही थीं।

 लेकिन चर्च के अंदर होने वाली कार्यवाही पर इस सब का कोई प्रभाव नहीं हो रहा था। और चर्च की दीवारों को छूते ही ये सब शैतानी आत्माएँ भी डरकर पीछे हट जाती थीं।

 चर्च के अंदर अब फादर विलियम की चमकदार अग्नि जैसे जलती हुई आत्मा उस पवित्र आकृति पर बैठी हुई स्पष्ट नज़र आती थी।

 "फादर विलियम हमें माफ कर देना जो हमने आपकी आत्मा को यहाँ बुलाकर कष्ट दिया। किन्तु हमारे पास दूसरा कोई रास्ता नहीं था इस शैतान 'सेड्रिक' के बारे में जानने का।

 लोगों ने सेड्रिक को आपके शरीर में देखा था फादर तो अब आप हमें गॉड के वास्ते ये बताएं कि हक़ीक़त क्या है?" फादर जॉनाथन ने विलियम से पूछा।

 "सेड्रिक जाग चुका है, वह लोगों को मारकर उनके शरीर इकठा कर रहा है जिसमें वह और उसकी मुर्दा सेना कब्जा करके अपना राज्य स्थापित करने के लिए लड़ाई लड़ सके। उसने मुझे भी मारकर मेरे शरीर पर कब्जा कर रखा है। सबसे पहले उसने एक तांत्रिक के शरीर पर कब्जा किया था जिसके लालच की बजह से सेड्रिक उस ताबूत से आज़ाद हुआ। उसी तांत्रिक को पता है कि ताबूत की सातों कीलें कहाँ और किन लोगों के पास हैं।

 आप लोगों को उस तांत्रिक की आत्मा को बुलाकर उससे पूछना चाहिए इससे पहले कि सेड्रिक उन लोगों तक पहुँचकर उन कीलों को नष्ट करवा दे, आप लोगों को ताबूत की सभी सातों कीलें प्राप्त करके सेड्रिक को वापस ताबूत में बन्द करके वे सभी कीलें लगानी होंगी। नहीं तो सेड्रिक की शैतानी शक्ति को तबाही मचाने से कोई नहीं रोक पायेगा। वह सैकड़ों मुर्दा शव उसी कब्र में इकट्ठे कर चुका है जिसमें वह वर्षों से कैद था। 

 आप लोग जल्दी ही उसे रोकने के उपाय करें और इस काम में मेरी जो भी सहायता की जरूरत हो मैं तैयार हूँ।" फादर विलियम की आत्मा यह कहकर चुप हो गयी।

 "तांत्रिक की आत्मा? उसे बुलाने के लिए तो हमें किसी तांत्रिक की ही आवश्यकता पड़ेगी।" फादर जॉनाथन ने फादर डिसूजा को देखते हुए कहा।

 "हाँ और उसके लिए हमें देवी मंदिरों और श्मशान में खोजना होगा क्योंकि ऐसे तांत्रिक ऐसे ही स्थानों पर मिलते हैं।" फादर डिसूजा ने जवाब दिया। ठीक है अभी सुबह तक हम लोग यहीँ रहेंगे और कल से तांत्रिकों से सम्पर्क करने का प्रयास करेंगे।" फादर जॉनाथन ने फादर विलियम से वापस जाने को कहते हुए सभी पादरियों को बैठ जाने का संकेत किया।

 "मैं भी अब आप लोगों के साथ ही रहूँगा और आप लोगों को सेड्रिक की कार्यवाही और उसके खतरों से आगाह करता रहूँगा।" फादर विलियम ने यह कहते हुए वापस जाने से इनकार कर दिया।

 अगले दिन पाँच पादरियों का एक दल किसी योग्य तांत्रिक की खोज में निकल गया और फादर जॉनाथन एवं फादर डिसूजा के साथ ही फादर विलियम की आत्मा वहीं चर्च में रुक गए।

 


6.


तांत्रिक की आत्मा को बुलाने की प्रकिया के लिए पादरियों ने तन्त्र-मन्त्र के सभी प्रसिद्ध क्षेत्रों में सम्पर्क किया। उन्हें योग्य तांत्रिक सेड्रिक को फिर से बन्धन में बंधने के लिए भी चाहिए थे क्योंकि दो सौ साल पहले भी सेड्रिक को सभी धर्मों के साथ मांत्रिकों ने मिलकर ताबूत में बंद किया था।


चर्च में फादर जॉनाथन, फादर डिसूजा एवं अन्य कई पादरी बैठे हुए थे। उन्हें साथ थे कामख्या क्षेत्र के सिद्ध मांत्रिक 'कापालिक' एवं बंगाल के महाकाली क्षेत्र के अघोरी मांत्रिक 'भैरोनाथ'। फादर जॉनाथन ने दोनों मांत्रिकों को सेड्रिक की सारी कहानी बताकर एक तांत्रिक के लालच से उसके फिर से आ जाने की बात बताई।

"अब केवल वह तांत्रिक ही हमें बता सकता है कि ताबूत की वह कीलें कहाँ हैं। क्योंकि बिना उन कीलों के ना तो हम सेड्रिक का सामना कर सकते हैं और ना ही उसे फिर से कैद या खत्म कर सकते हैं ।" फादर जॉनाथन ने मांत्रिकों से कहा।

"समझ गए हम सारी बात, तन्त्र मन्त्र का प्रयोग निजी स्वार्थ के लिए करके उस तांत्रिक ने जो गलती की है उसकी सजा तो उसे हम देंगे ही किन्तु पहले उसकी आत्मा को यहाँ आकर यह बताना ही होगा कि वह कीलें कहाँ और किसके पास हैं। क्योंकि कीलें उसके लालच के चलते चोरी हुई हैं तो अब उन्हें खोजने का काम भी उसे ही करना होगा।

यदि वह भी सेड्रिक के साथ मिलकर शैतान का उपासक बन गया होगा तो हम उसे ऐसी सज़ा देंगे कि वह लाखों वर्षों तक अग्नि गोलार्ध में कैद रहेगा।" अघोरी भैरोनाथ जी ने आँखें लाल करते हुए कहा।

"हमें उस दुष्ट की आत्मा को बुलाते समय बहुत सावधानी से काम करना होगा क्योंकि एक तो वह खुद तन्त्र मन्त्र जानता है उसपर अब सेड्रिक का साथ भी उसे मिल रहा है।" मांत्रिक कापालिक ने कुछ सोचते हुए कहा।

"ठीक है तो विधि के लिए आवश्यक तैयारियां करो और इस सारे क्षेत्र की आध्यात्मिक सुरक्षा के लिए देवी कवच से सुरक्षा चक्र का निर्माण करो।" बाबा भैरोनाथ जी ने कुछ समझाते हुए कहा।


चर्च के आँगन के फर्श पर एक के अंदर एक उल्टे-सीधे दो बड़े त्रिभुज बने हुए थे जो किसी सितारे की आकृति बना रहे थे। उनको विभिन्न रंगों से संयोजित किया गया था।

उस सितारे के बीच में एक काले रंग का गोला बनाया गया था।

सितारे के सभी छः कोनों पर दिए जल रहे थे। और बीच के काले गोले पर एक बिना चला हुआ दिया रखा हुआ था।

दोनों मांत्रिक फादर डिसूजा, फादर जोसफ, फादर जॉनाथन एवं एक युवा पादरी के साथ फादर विलियम की आत्मा उस सितारे के एक-एक कोने पर अपने दाएँ हाथ की तर्जनी उँगली रखे हुए बैठे थे।

"सभी लोग ध्यान से सुनें चाहे कुछ भी हो जाये कोई भी अपनी उँगली इस चक्र से नहीं उठाएगा। और जो भी मन्त्र हम लोग बोलेंगे सभी लोग  जोर से उसे दोहराएंगे।" सिद्ध मांत्रिक 'कापालिक ने कहा और सभी ने हाँ में सिर हिला दिया।

दोनों मांत्रिक जिन्होंने आमने-सामने बैठकर त्रिभुजों के शीर्ष कोणों पर उँगलियाँ रखी हुई थीं मन्त्र पढ़ने शुरू किए।

पहले  उन्होंने देवी कवच और उत्कीलन पढ़ा फिर आत्मा आवाहन मन्त्र- "ॐ ह्रीं क्लीं तांत्रिक आत्मा स्थापयामि फट" जा जोर-जोर से जाप करने लगे।

इक्कीस मन्त्र जाप होते ही उनके चारों ओर जल रहे दिए फड़फड़ाने लगे। बहुत तेज़ हवाएं चलने लगीं और पूरा चर्च थरथराने लगा। ऐसा लग रहा था मानों हजारों चील एक साथ चिल्ला रही हों या लाखों चमगादड़ एक साथ उड़ रही हों।

"वह आ रहा है लेकिन उसके पीछे सेड्रिक की मुर्दा सेना की अपवित्र आत्माएँ भी हैं।" फादर विलियम की पवित्र आत्मा ने संकेत किया।

"कोई भी मत घबराना, ये सारी दुष्ट आत्माएँ  सुरक्षा चक्र के अंदर नहीं आ सकती। लेकिन यदि तांत्रिक सेड्रिक से मिल चुका है तो उसकी शैतानी शक्ति का सामना हम लोगों को करना होगा।" बाबा भैरूनाथ जी ने सभी को शांत करते हुए कहा और फिर से आत्मा आवाहन मन्त्र पढ़ने लगे। सभी लोग जोर-जोर से पढ़ रहे थे - "ॐ ह्रीं क्लीं तांत्रिक आत्मा स्थापयामि फट्..

अचानक सितारे के बीच काले गोले पर रखा दिया जल उठा और बाकी सारे दिए बुझ गए। बाहर अभी भी डरावना शोर हो रहा था।

"कौन हो तुम?" मांत्रिक कापालिक ने अपना प्रश्न तीन बार दोहराया।

"मैं तांत्रिक मंगलनाथ हूँ, आपने मुझे यहाँ क्यों बुलाया है?" गोले के बीच से हल्की मिनमिनाती हुई सी आवाज आयी।

"तुम्हें नहीं पता 'मंगलनाथ' की हमने तुम्हें यहाँ क्यों बुलाया है? अरे मूर्ख तेरे लालच ने दो सौ साल से सोये शैतान 'सेड्रिक' की ताबूत से बाहर निकाल दिया जो अब मौत और बीभत्सता का घिनोना खेल खेल रहा है। बाबा भैरोनाथ जी ने कड़क कर कहा और होंठों ही होंठों में कोई मन्त्र पढ़ने लगे।

"ठहरो!!! मुझे मत जलाओ मैं सब बता दूंगा जो आप पूछोगे। और रही मेरे लालच की बात तो उसकी सजा मैं अपनी जान देकर भुगत रहा हूँ।  मुझे मारने के बाद मेरे शरीर पर भी उस शैतान सेड्रिक ने कब्जा कर लिया। मैं चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पाया। अब मैं भी उस सेड्रिक से बदला लेना चाहता हूँ। इसके लिए मैं आप लोगों के साथ हूँ। आप लोग जो कहोगे मैं करने को तैयार हूँ।" तांत्रिक मंगलनाथ की आवाज सुनाई देने के साथ ही अब दिए कि लो में उसकी आकृति भी स्पष्ट होने लगी थी।

"तो ठीक है फिर हमें ये बताओ कि उस ताबूत की वह सातों कीलें कहाँ हैं? और हम उन्हें कैसे वापस लाएं? साथ ही ये भी बताओ कि सेड्रिक की सेना में कौन लोग हैं और वे लोग कहाँ छिपे हुए हैं?" फादर जॉनाथन ने सवाल किया।

"ताबूत की कीलें चर्च के पीछे वाले गाँव के लोग उखाड़कर ले गए हैं जो उनके दरवाजों पर ठुकी हुई हैं।

उन्हें हम रात के किसी भी समय वापस ला सकते हैं।

और रही बात सेड्रिक की सेना की तो उसमें चार तो उसके पुराने साथी हैं जो दो सौ साल पहले उसके अनुयायी बने थे। और बाकी उसने कब्रिस्तान के मुर्दों की आत्माओं को नए शरीर का लालच देकर अपने साथ मिला लिया है। वह लोगों को मारकर उनके शरीर उसी पुरानी कब्र में छिपाकर रखता है जिसमें उसे ताबूत में कैद किया गया था। 

यदि आप लोग उस कब्र पर कब्जा करके उन शरीरों को नष्ट कर दें तो सेड्रिक की सारी सेना और उसकी ताकत खत्म हो जायेंगे।" मंगलनाथ की आत्मा ने बताया।

"ठीक है पहले तुम वे सारी कीलें ढूंढने में हमारी मदद करो, फिर हम सेड्रिक और उसकी सेना को खत्म करने का उपाय सोचेंगे " फादर जॉनाथन ने कहा।

"ठीक है आप लोग मुझे उस दिए कि कैद से मुक्त करो मैं वचन देता हूँ कि मैं आप लोगों के साथ हूँ और इस शैतान सेड्रिक को कैद करने के ये जो आप मुझे करने को कहोगे मैं बिना शर्त वह काम करूँगा।" मंगलनाथ ने कहा और बाबा भैरोनाथ ने बाबा कापालिक की ओर देखा। दोनों में आँखों ही आँखों में कुछ इशारा हुआ और उन्होंने अपनी उंगलियाँ सितारे पर से हटा लीं।

उन्ही के साथ बाकी लोगों ने भी अपनी उंगलियां सितारे पर से हटा लीं।

"क्या हम फादर विलियम और तांत्रिक मंगलनाथ को उनके शरीरों में वापस ला सकते हैं?" फादर जॉनाथन ने सवाल किया।

"असम्भव तो नहीं है किंतु आसान भी नहीं है। और फिर इनके शरीर सेड्रिक की कैद से सही सलामत वापस लाना...!" बाबा भैरोनाथ जी ने बात अधूरी छोड़ दी।

"हमारा सबसे पहला लक्ष्य है 'ताबूत की कीलें' और ये बात हम सभी अच्छी तरह जानते हैं कि सेड्रिक नहीं चाहेगा कि हम उन कीलों को प्राप्त कर लें अतः पहले  हमें उसके लिए योजनाएँ बनानी होंगी। बाकी बातें यो हम बाद में भी सोच सकते हैं।" मांत्रिक सिद्ध कापालिक ने गम्भीरता से कहा।

"चाहे सरल हो चाहे कठिन, हमें ताबूत की कीलें वापस लानी ही होंगी।" फादर जॉनाथन ने भी गम्भीरता से जवाब दिया।

"तो चलिए फिर कोई योजना बनाकर आज रात ही काम शुरू करते हैं।" बाबा भैरोनाथ ने कहा और सभी चर्च के गुप्त कक्ष की ओर बढ़ गए।


7.

चर्च के गुप्त कक्ष में फादर जॉनाथन, बाबा कापालिक, बाबा भैरोनाथ, फादर डिसूजा एवं मंगलनाथ और फादर विलियम की आत्माएँ वार्ता कर रहे थे। ये लोग ताबूत की सातों कीलों को खोजने और उन्हें वापस लाने के लिए गम्भीर थे। ये सभी लोग जानते थे कि बिना उन मन्त्रशक्ति वाली कीलों के सेड्रिक को कैद करना असम्भव है और यदि शैतान सेड्रिक को अभी नहीं रोका गया तो वह सारे मुल्क में तबाही मचाकर बुराई का राज स्थापित कर देगा। उधर सेड्रिक दिन प्रतिदिन लोगों को मारकर उनके शरीरों में शैतान के उपासक अपने साथियों की आत्माएँ स्थापित करके मुर्दों की सेना बनाता जा रहा था।


"इस चर्च में कुछ पादरी और तांत्रिक मिलकर हमारे खातमें की योजनाएं बना रहे हैं साथियों। क्या हमें उन्हें ऐसा करने से रोकना नहीं चाहिए?" सेड्रिक जो कि चर्च के बाहर सुरक्षा चक्र के घेरे के समीप अपने दस मुर्दा सैनिकों के साथ खड़ा हुआ था बहुत गुस्से से भरा चीख कर बोला। 

इस समय वह फादर विलियम के शरीर में था। सेड्रिक फादर विलियम और तांत्रिक मंगलनाथ के शरीर अपने लिए इस्तेमाल करता था और बाकी मुर्दों के लिए उसने गाँव वालों को मारकर उनके शरीर इकठे कर रखे थे।

"हम बदला लेंगे!!, इन सब को मार डालो!!, चर्च को उखाड़ फेंकते हैं!!! हम इन्हें मज़ा चखा देंगे",  पीछे से मुर्दों की मिनमिनाहत फूट पड़ी।

"ठीक है लेकिन इस सुरक्षा चक्र से बचकर...!!" अभी सेड्रिक ये बात कह ही रहा था कि एक मुर्दे ने जोश में होश खोकर आगे कदम बढ़ाया और सुरक्षा रेखा को छूते ही भक्क!! की तेज़ आवाज़ के साथ वह जलते अँगारे में बदल गया। 

"अरे मूर्खों!!! समझा रहा हूँ ना मैं की इस सुरक्षा कवच से दूर रहो। अब कोई आगे नहीं बढ़ेगा, हमें यहीं इस चक्र के बाहर से ही इनपर प्रहार करने होंगे", कहकर सेड्रिक ने अपना हाथ हवा में हिलाया और अचानक तेज हवा के झोंके के साथ आसपास के बड़े पेड़ और भारी पत्थर हवा में ऊपर उठ गए। सेड्रिक ने जोरदार हुँकार भरते हुए फिर अपने हाथ को तेजी से झटका दिया जिसके बाद हवा में तैर रहे पेड़ और पत्थर तेजी से चर्च की ओर लपके। लेकिन ये क्या सारे पेड़ और पत्थर हवा में ही छितरा कर वापस इन्ही लोगों पर आ गिरे जैसे किसी रबर के गुब्बारे से टकराये हों।

उनकी मार से सेड्रिक के चार मुर्दे घायल हो गए और कराहते हुए उछलने लगे।


इधर चर्च के गुप्त कक्ष में - "हमें ऐसा संकेत मिल रहा है कि सेड्रिक चर्च के बाहर ही है और वह हम लोगों को खत्म करने के मंसूबे बना रहा है", बाबा कापालिक ने मुस्कुराते हुए कहा।

"हम चाहें तो उसे अभी कैद कर सकते हैं लेकिन बिना उन मांत्रिक कीलों के उसे ज्यादा देर रोकना बहुत मुश्किल है।" फादर जॉनाथन ने धीरे से अफ़सोस भरे स्वर में हुए कहा।

"कोई बात नहीं, कैद तो हम उसे बाद में करेंगे ही लेकिन अभी के लिए उसे अपनी शक्ति का परिचय दे देते हैं।" बाबा भैरोनाथ ने कहा और मुट्ठी बन्द करके आँख मीचकर कुछ पढ़ते हुए झटके से मुट्ठी खोलकर फूँक दिया।

अचानक आग का एक बड़ा गोला चर्च के बाहर लपका जिसका लक्ष्य सेड्रिक था किंतु एन वक़्त पर सेड्रिक एक मुर्दे की आड़ ले गया और उसी पल वह गोला उस मुर्दे से टकराया और उसके परखच्चे उड़ गए। सेड्रिक के चेहरे पर पलभर के लिए भय का पीलापन छा गया किन्तु उसने खुद को संभालते हुए कहा, "चलो पहले उन गाँव वालों ने निपटते हैं जिनके पास उस ताबूत की कीलें हैं। इन भुनगों को बाद में मसलेंगे। और उसके पीछे-पीछे उसके सारे मुर्दे खट्ट-खट्ट करते हुए लौट गए।


"मुझे लगता है कि हमें दिन में जाकर उन सारे शरीरों को नष्ट कर देना चाहिए जिनमें सेड्रिक और उसके मुर्दा साथियों की आत्माएँ प्रवेश करके घूमते हैं। क्योंकि बिना शरीर के सेड्रिक की कोई भी सेना लड़ नहीं सकती और ना ही गाँव वालों से कुछ जानकारी ले सकती है।" फादर डिसूजा ने सलाह दी 

"बात तो ठीक है फादर लेकिन यदि हम दस शरीर नष्ट करेंगे तो सेड्रिक चिढ़कर सो लोगों की जान लेगा और उनके शरीर इकठ्ठा करेगा। तो मेरा सुझाब ये है कि पहले हम लोग वे सारी कीलें प्राप्त करते हैं फिर उसके शव भण्डार को आग लगा देंगे।" बाबा कापालिक ने कहा और सभी ने उनका समर्थन किया।

"तो सबसे पहले उन कीलों को खोजते हैं। और इस काम में हमें तांत्रिक मंगलनाथ और फादर विलियम की सहायता की आवश्यकता होगी।

कृपया आप दोनों लोग गुप्त रूप से ये पता लगाइए की वे सातों कीलें कहाँ हैं और क्या सेड्रिक भी उन कीलों तक पहुँच रहा है। क्योंकि यदि हमसे पहले सेड्रिक उन कीलों तक पहुँच गया और उसने किसी ग्रामवासी के शरीर पर कब्जा करके लोगों से वे कीलें नष्ट करवादीं तब हमारे लिए बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी।"बाबा भैरोनाथ ने चिंचित स्वर में कहा।

"हम लोग आज ही उन कीलों को खोजते हैं बाबा जी, मैं अपनी पूरी जान लगा दूँगा उन्हें खोजने और सेड्रिक का अंत करने में क्योंकि इस सब में अपराधी मैं ही हूँ। मेरे ही लालच के चलते सेड्रिक नाम की ये मुसीबत नींद से जागी है तो अब मैं ही इसे वापस भेजने के लिए उन कीलों को जल्द से जल्द खोजकर लाऊँगा।" मंगलनाथ ने जवाब दिया।

"चलो हम सभी लोग एक साथ चलते हैं और उन कीलों को खोजकर लाते हैं। अभी रात्रि का चौथा पहर है। तीन बजे हैं और सूरज निकलने में पूरे तीन घण्टे बाकी हैं। इन तीन घण्टों में तांत्रिक मंगलनाथ और फादर विलियम की आत्माएँ सक्रिय और शक्तिशाली हैं। सूरज निकलने पर इनकी शक्ति मन्द हो जाएगी और फिर हमें कीलों को खोजने के लिए सूरज डूबने के इंतज़ार करना होगा।" फादर जॉनाथन ने समझाते हुए कहा।

"सही कह रहे हैं पादरी आप, हमें यह कार्य अभी करना होगा ऐसे भी सेड्रिक चोट खाकर गया है और अभी भयभीत है तो उसकी तरफ से आज किसी भी कार्यवाही की आशंका कम ही है। बाकी कल हो सकता है वह हमारे विरुद्ध कोई योजना बनाकर हमें रोकने का प्रयास करे।" बाबा कापालिक ने उठते हुए कहा और सभी लोग चर्च से बाहर आ गए।

"हम सभी को एक साथ एक निश्चित दूरी में ही रहना होगा, हम एक सीमित सुरक्षित क्षेत्र का निर्माण करके चलेंगे। उस सुरक्षा चक्र में सेड्रिक या उसका कोई भी मुर्दा सैनिक हमें नहीं देख पायेगा।" कापालिक बाबा ने कहा और कुछ मन्त्र पढ़ने लगे।

कापालिक बाबा के सुरक्षा चक्र बनाने के बाद बाबा भैरोनाथ ने भी मुठ्ठी बन्द करके कुछ मन्त्र पढ़कर चर्च की ओर फूँक दिया। सभी ने सवालिया नज़रों से उनको देखा तो उन्होंने मुस्कुराकर उत्तर दिया, "भ्रामक तन्त्र है, इसके प्रयोग से सेड्रिक को लगेगा कि हम लोग चर्च के अंदर ही हैं और वह हमारे पीछे नहीं आएगा।

उनकी इस बात से सभी लोग बहुत खुश हो गए और बढ़ गए 'ताबूत  की कीलों' की खोज में...


8.


"ये पादरी और तांत्रिक मिलकर मुझे बन्दी बनाएँगे, अरे इतना आसान है क्या सेड्रिक को कैद करना। तुम लोग बनाते रहो इधर चर्च में योजनाएँ और मैं बढ़ाता हूँ अपनी आर्मी। इन्हें करने दो अपना काम चलो हम शिकार पर चलते हैं। और उन कीलों के डर से निकलने और उन्हें नष्ट करने का कोई उपाय ढूंढते हैं।

हा!हाहा!हा!! चलो मेरे गुलामों" सैड्रिक जोर से हँसते हुए अपने साथियों से बोला और फिर एक ओर चल दिया। उसके पीछे-पीछे चल पड़ी उसकी भूतिया डरावनी सेना। सेड्रिक की सेना के मुर्दे घिसटते लड़खड़ाते हुए चल रहे थे और बहुत अजीव आवाजें निकाल रहे थे।


रात का आखिरी पहर था चर्च से दूर एक गाँव में लोग सुबह की गहरी नींद ले रहे थे तभी वहाँ चीखपुकार मच गई। आवाजें सुनकर लोग लाठी, डंडे, हँसिये कुल्हाड़ी आदि लेकर बाहर निकल आये। औरतों और बच्चों को लोग घरों में ही छिपने की हिदायत दे रहे थे।


"पकड़ो इन लोगों को और पूछो इनसे की ताबूत की कीलें किन लोगों ने चुराई हैं। और मर्दों को मारकर उनके शरीर पर कब्जे करो। बाकी औरतों के साथ क्या करना है ये तो तुम लोगों को पता ही है।" सेड्रिक ने गाँव के लोगों की ओर इशारा करके अपनी सेना को कहा और उसके मुर्दे टूट पड़े जिंदा लोगों पर।

लोग हाये-तौबा मचाने लगे। बचने के लिए इधर-उधर भागने लगे। सेड्रिक के कुछ मुर्दे घरों में घुस गए और महिलाओं को खींचकर घसीटते हुए बाहर लाने लगे। कुछ मुर्दे जिनमें सेड्रिक के शैतान साथियों की आत्माओं का कब्जा था, लोगों के घरों में ही औरतों से बदसलूकी करने लगे। उनसे बचकर जो महिलाएं बाहर की ओर भागतीं उन्हें सेड्रिक के बाहर खड़े सैनिक पकड़ लेते और उनके कपड़े नोचकर उन्हें खसोटने लगते।

अभी एक औरत घर से आधे-अधूरे बिखरे कपड़ों में रोती-बिलखती दया की भीख माँगती बाहर भागकर आयी थी। तभी उसने देखा कि उसके पति को फादर विलियम ने गर्दन से पकड़कर उठा रखा है और बीभत्सता से हँस रहा है। वह महिला दौड़कर विलियम के पैरों में गिरकर बोली, "ये क्या फादर? आप तो खुदा के बेटे के अनुयायी हो। फिर आप इन शैतानो के साथ मिलकर ये घिनोना पाप कैसे कर सकते हो। खुदा के वास्ते मेरे पति को छोड़ दो। हमारे परिवार का यही एक मात्र सहारा हैं। प्लीज फादर कुछ तो तरस खाओ। आप तो पुजारी हो, शान्ति का संदेश देते हो फिर भी...!" वह महिला विलियम जिसके जिस्म में सेड्रिक की आत्मा थी उसके पैर पकड़े गिड़गिड़ाते हुए बोली।

सेड्रिक ने एक नज़र उस महिला के ऊपर डाली और उसका जिस्म देखते ही भूखे भेड़िये की तरह अपने होंठों पर जीभ फिराने लगा। उसने उस महिला के पति को एक जोर का झटका दिया जिससे वह निर्जीव होकर लुढ़क गया।

सेड्रिक ने उस आदमी के शव को एक ओर उछाल दिया और घिनौनी हँसी हँसने लगा। वह महिला अपने पति की ओर दौड़ी और उससे लिपटकर रोने लगी। अचानक महिला के पति के जिस्म में हरकत हुई और वह उठकर बैठ गया। उसने अपनी पत्नी को बाहों में उठाया और घर की ओर बढ़ गया। 

वह महिला अपने पति को जीवित देखकर खुशी से खिल उठी और उसने अपने आँसू पोंछकर अपनी बाहें अपने पति के गले में  डाल दीं। उस दौरान वह ये नहीं देख पायी की उसके पति के उठने से पलभर पहले ही विलियम निर्जीव होकर जमीन पर गिरा है।

वह महिला अपने पति के अंक में खुद को सुरक्षित मान उससे लिपटी रही और वह पुरुष उसे लिए घर के अंदर चला गया। 

  मुर्दा सेना के कुछ सैनिक गाँव की ओर चले गए और कुछ विलियम की लाश की सुरक्षा में आगे बढ़ गये।

आदमी को अंदर जाए अभी कुछ पल ही बीते थे कि उस महिला की हृदय विदारक चीख ने सारे गाँव का सन्नाटा भंग कर दिया। उस महिला की दुःख भरी दर्द से कराहती चीखों ने सारे गाँव की नींद उड़ा दी। 

सारे गाँव वाले इकट्ठे होकर उस घर की ओर दौड़े जिधर से आवाजें आ रही थीं।

लोगों की बढ़ती भीड़ से घबराकर मुर्दा सैनिक पीछे हटने लगे थे तभी उस महिला का पति उसकी निर्वस्त्र रक्तरंजित लाश को हाथों में उठाये हँसते हुए बाहर आया। उसके दाँत खून ने लाल हो रहे थे और उसके मुँह से खून टपक रहा था। महिला की गर्दन का माँस एक ओर से पूरा खाया गया था जिसमें से उसकी हड्डी नज़र आ रही थी। महिला ने निजी अँगों से भी रक्त प्रवाह हो रहा था। उसके वक्ष भी काट दिए गए थे। 

सारे गाँव वाले उस महिला की दुर्दशा देखकर भय से जम गए थे। उनमें इतनी शक्ति भी नहीं बची थी कि वे एक कदम भी आगे बढ़ा सकते। अभी लोग सदमें से उबरे भी नहीं थे तभी  उस व्यक्ति ने महिला का शव जमीन पर पटक दिया और उसे कुचलते हुए आगे बढ़ गया। जैसे ही वह आदमी विलियम के शव के पास पहुँचा वह निर्जीव होकर लुढ़क गया और फादर विलियम अट्टहास करते हुए उठ खड़ा हुआ।


"क्या समझ आया तुम लोगों को?"विलियम ने गाँव वालों की ओर देखते हुए पूछा।

  उसकी भयानक आवाज से सारे गाँव वाले सहम कर पीछे हट गए।

"मैं महान सेड्रिक हूँ, मुझे शैतान ने सभी शैतानों का मुखिया बनाकर भेजा है। उनके आशीर्वाद से मैं ही इस सारी दुनिया पर शासन करूँगा। मुझे तलाश है ताबूत की उन कीलों की जिन्हें कुछ लोग जँगल से चुराकर लाये हैं। अगर मुझे तीन दिन के अंदर वे सारी कीलें और उन्हें उखाड़ने वाले लोग नहीं मिले तो ऐसे ही सारे गाँव  वाले अपने परिवार को नृशंसतापूर्वक मारकर उनका खून पी जाएँगे।" सेड्रिक ने उस आदमी और उसकी पत्नी की ओर इशारा करते हुए कहा।

अभी सेड्रिक ये सब कह ही रहा था कि उसे भीड़ में खुद को छिपाती एक पन्द्रह-सोलह साल की कन्या नज़र आयी।

"जब तक तुम लोग उन कीलों और उनके चुराने वालों को ढूंढकर लाते हो तब तक के लिए मैं इस लड़की को अपने साथ ले जाता हूँ।" सेड्रिक ने वासना भरी आवाज में कहा और लड़की की ओर बढ़ने लगा।

सेड्रिक को आता देखकर लोग सहम कर एक ओर हट गए और लड़की अकेली रह गयी।

जैसे ही सेड्रिक ने लड़की को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया और उसका हाथ लकड़ी के जिस्म से छुआ सेड्रिक को जोरदार झटका लगा और वह हवा में तीन-चार फुट उछल गया जैसे किसी ने उसे जोर से फेंक दिया हो।

सेड्रिक को ऐसे उछलकर गिरते देखकर गाँव वालों को आश्चर्य हुआ और वे जैसे नींद से जागे। सेड्रिक अभी उठकर खड़ा ही हुआ था कि वह लड़की आगे बढ़ने लगी। सेड्रिक अभी-अभी लगे झटके से बुरी तरह घबरा गया था, वह तेज़ी से पलटा और अपने साथियों से बोला, "अरे मूर्खो सुबह होने वाली है चलो निकलो यहाँ से नहीं तो सूरज की गर्मी तुम सबके साथ मुझे भी जला देगी और सेड्रिक ने दौड़ लगा दी। उसके पीछे उसके साथी भी भाग खड़े हुए।

गाँव वाले कभी भागते हुए सेड्रिक तो कभी उस लड़की को आश्चर्यचकित होकर देखते रह गए।

उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उस छोटी सी लड़की के पास ऐसी क्या शक्ति थी जिससे डरकर शैतान भाग गए।

गाँव वालों को क्या खुद लड़की को भी समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हुआ है।

अभी ये लोग इस घटनाक्रम से बाहर आने का प्रयास कर ही रहे थे तभी पूर्व की ओर से सूर्य की किरणों के साथ ही सूरज की लाल किरणों जैसे भगवाधारी दो साधु और उनके साथ दो पादरी सफेद लबादे पहने आते दिखाई दिए...



9.

साधूओं और पादरियों को एक साथ आता देखकर गाँव वाले उनके स्वागत को दौड़े और लाशों के पास आकर बाबा भैरोनाथ ने पूछा, "ये सब कैसे हुआ?" 

"शैतान विलियम का किया है ये सब, वह खुद को शैतान का बेटा सेड्रिक बता रहा था। उसके साथ कुछ मुर्दा लोग भी जिन्दे होकर घूम रहे थे। उन सभी ने गाँव वालों के साथ बहुत अमानवीय कृत्य किये। महिलाओं को शर्मसार किया और कत्लेआम मचाकर चले गए। वह दुष्ट तो इस लड़की को उठाकर ले जाने वाला था लेकिन ना जाने किस शक्ति के प्रभाव से जैसे ही उसने लड़की को हाथ लगाया वह जोर का झटका खा गया और डरकर भाग गया।" एक गाँव वाले ने आगे बढ़कर सारी घटना सुनाते हुए कहा।

"क्या कहा! लड़की से डर गया?? कौनहै वह लड़की?" बाबा कापालिक ने आश्चर्य से चौंकते हुए पूछा।"

"मैं हूँ बाबा जी, मुझे खुद नहीं समझ आया कि कैसे लेकिन मेरे शरीर से टच होते ही फादर विलियम को जोर का झटका लगा जैसे किसी ने उन्हें बिजली का शॉक लगा दिया हो।" वह लड़की आगे आते हुए बोली।

"क्या तुम्हारे पास कोई ताबीज या अन्य कोई पवित्र वस्तु है बेटी?" बाबा भैरोनाथ जी ने लड़की को सर से पाँव तक गौर से देखते हुए पूछा।

"नहीं!! मेरे पास तो कोई ताबीज नहीं है।" लड़की ने जवाब दिया।

"ठीक से याद करके बताओ बेटी, कोई ऐसी वस्तु जो हाल ही में आपके पास आई हो जो किसी पवित्र स्थान या वस्तु से जुड़ी हुई हो या अन्य कोई ऐसी चीज़ जिसके बारे में आप ज्यादा नहीं जानते लेकिन आपने धारण कर रखी हो?" बाबा कापालिक ने बहुत प्रेम से उस लड़की से पूछा।

"हाँ!, ये अँगूठी जो मैंने इसी हफ्ते पहनी है।" लड़की ने अपने हाथ की उँगली दिखाते हुए कहा जिसमें उसने लोहे का एक छल्ला पहन रखा था।

"इससे जुड़ी कोई विशेष बात जो आपको याद हो और आप हमें बताना चाहो?" बाबा कापालिक ने फिर सौम्य स्वर में पूछा।

"ये अँगूठी एक पवित्र कील से बनी है। कुछ दिन पहले मेरे पिताजी को कहीं से एक पवित्र कील मिली थी जिसके बारे में कहा जा रहा था कि वह जिस दरवाजे पर लगी होगी वहाँ कभी कोई नकारात्मक शक्ति प्रवेश नहीं करेगी।

हमारे घर में मैं और मेरे पिता के अलावा कोई अन्य सदस्य नहीं हैं तो मेरे पिता जी जब शहर काम करने के लिए गए तब उन्होंने मुझे वह कील देते हुए कहा था कि  मैं सदैव उस कील को अपने पास रखूँ, वह मेरे रक्षा करेगी।   तब मैंने कील के खो जाने के डर से उसकी ये अँगूठी बनबाकर अपनी उंगली में धारणकर ली।और आज सच में इसने मेरी रक्षा की भी।" लड़की ने बताया।

"ओह्ह!! अर्थात यह अँगूठी उस ताबूत की कील से ही बनी है जिन्हें हम खोज रहे हैं। फादर जॉनाथन ने दोनों तांत्रिकों की ओर देखते हुए धीरे से कहा। लेकिन बाबा कापालिक ने संकेत से उन्हें चुप रहने को कहा।

"तो देखा आप लोगों ने कि जिन कीलों को वह सेड्रिक खोज रहा है उनमें क्या शक्ति है। सेड्रिक आप लोगों के जरिये उन पवित्र कीलों को खोजकर उन्हें नष्ट करना चाहता है जिससे उसे कोई भय ना रहे। 

जैसा कि आप लोगों ने देख, केवल एक कील से बनी इस अँगूठी ने उस शैतान सेड्रिक को उसकी सेना सहित भागने पर मजबूर कर दिया तो इस सातों कीलों की संयुक्त शक्ति क्या कर सकती है। दरअसल ये कीलें ही उस सेड्रिक के अंत का सामान हैं इसी लिए वह डर कर इन्हें नष्ट करवाना चाहता है। और हम भी इन कीलों को खोज रहे हैं ताकि उस शैतान को हमेशा के लिए सुला सकें।

तो हम चाहते हैं कि आप सभी ग्रामवासी उन बाकी की छः कीलों को खोजने में हमारी मदद करें। और जब तक सारी कीलें नहीं मिलतीं ये लड़की इस अँगूठी को अपनी और आप सभी गाँव वालों की सुरक्षा के लिए धारण करके रखे।" बाबा भैरोनाथ जी ने कहा।


"हम सब गाँव वाले इस नेक काम में आपके साथ हैं, हम जल्द से जल्द उन सभी कीलों को खोजने का प्रयास करेंगे।" सभी गाँव वालों ने इन लोगों को आश्वासन दिया।

"ठीक है फिर आप लोग केवल दिन के उजाले में ही उन कीलों को खोजें और रात में सभी लोग एक साथ रहें। क्योंकि हो सकता है सेड्रिक इस बेटी को फिर नुकसान पहुँचाने की कोशिश करे इसलिए जब तक सेड्रिक का अंत नहीं होता हम में से भी एक या दो लोग आपकी सुरक्षा के लिए यहाँ आ जाएंगे।

हो सके तो आसपास के गाँव वालों को भी शाम को यहीं इकट्ठा होने को कहें इससे वे लोग भी सुरक्षित रहेंगे और हम लोग उन कीलों को खोजने में भी जल्दी सफल हो पाएंगे।" बाबा भैरोनाथ जी ने गाँव वालों को समझाते हुए कहा।

"ठीक है हम लोग आज शाम को ही आसपास के लोगों को यहाँ चर्च में इकट्ठा करते हैं।" कुछ युवकों ने आगे आकर कहा।

"ठीक है फिर सभी हम लोग चलते हैं शाम पाँच बजे आप सभी लोग चर्च में मिलें। आगे की योजना हम वहीं  बताएंगे।" बाबा कपालिक ने कहा और ये लोग वहाँ से चले गए।


शाम के पाँच बजने ही वाले थे, सारे पादरी और दोनों तांत्रिक पहुँच चुके थे और चर्च के चबूतरे पर कुर्सी लगाकर बैठे थे।

धीरे-धीरे गाँव के लोग आकर चर्च के प्रांगण में जमा हो रहे थे। इनमें आसपास के लगभग सारे गाँव के लोग थे।

पादरियों के पीछे ही फादर विलियम और तांत्रिक मंगलनाथ की आत्माएँ भी थीं।

ठीक पाँच बजे फादर जॉनाथन खड़े हुए और उन्होंने कहना शुरू किया, "उपस्थित सज्जनों, जैसा कि आप सभी जानते हैं कि वर्षों से एक ताबूत में बंद मन्त्रों की कैद में शैतान सेड्रिक सोया पड़ा था जी कि अब कुछ लोगों की गलती और कुछ लोगों की अनजाने में कई गयी भूल से जाग उठा है और चारों तरफ लोगों को मारकर दहशत फैला रहा है। आज हम लोग यहाँ उसी सेड्रिक को वापस मौत की नींद में सुलाने की योजना पर विचार करने के लिए इकट्ठे हुए हैं। आगे आप लोगों को महान तांत्रिक बाबा कपालिक और बाबा भैरोनाथ जी अपनी योजना और आप लोगों की भूमिका के बारे में बताएँगे।" कहकर फादर जॉनाथन बैठ गए।

"देखिए आप लोग एक बात जान लीजिए कि सेड्रिक को वर्षों पहले एक ताबूत में कुछ मन्त्रों की शक्ति से बंद किया गया था। उन सभी सात महामंत्रों को सात कीलों पर सन्धान करके उस ताबूत में ठोंका गया था। किंतु एक तांत्रिक के लालच ने पहले तो वह ताबूत धरती के गर्भ से बाहर निकाला और फिर उसकी झूठी अफवाह के झांसे में आकर कुछ लोगों ने नासमझी में ताबूत से उन कीलों को बाहर निकाल कर सेड्रिक को उस कैद से मुक्त कर दिया और अब वह शैतान सारे समाज के लिए खतरा बन गया। उन कीलों में से कुछ कीलें तो हमें पता है कि कहाँ हैं और वे हमें मिल ही जाएँगी और बाकी की कीलें भी हम जानते हैं कि यहाँ उपस्थित लोगों में से ही किसी के पास हैं, तो हम बस आप लोगों से यही चाहते हैं कि आप लोग सेड्रिक के अंत तक यहीँ सुरक्षित रहें और जिन लोगों के पास  ही ताबूत की कील है वे शीघ्रातिशीघ्र उन्हें यहाँ लेकर आ जाएं। क्योंकि अब सेड्रिक भी कीलों के राज को जान चुका है और जिनके पास कीलें हैं उन्हें सेड्रिक से ज्यादा खतरा है। सेड्रिक उन कीलों को नष्ट करना चाहता है और वह इस काम के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। अतः आप लोगों की सुरक्षा और सारे समाज का हित इसी में है की आप लोग वे सारी कीलें लेकर आ जाओ। कीलें मिलने के बाद ही हम लोग उस दुष्ट का अंत कर पाएँगे।" बाबा कपालिक ने खड़े होकर कहा।

इनकी बात सुनकर लोगों में खुसरफुसर होने लगी और कुछ लोग भीड़ से निकलकर सामने आ गए।

"कीलें हमारे पास हैं जो हमारे दरवाजे पर लगी हुई हैं किंतु यदि हम उन्हें लेने गए तो इस बात की क्या गारंटी है कि सेड्रिक हमें और हमारे घरों को नुकसान नहीं पहुँचायेगा?" उन लोगों ने पूछा।

"हम आपके साथ चलेंगे और कील लेने के बाद आपके घर को सुरक्षा घेरे में सुरक्षित कर देंगे। आप लोग बिल्कुल चिंता ना करें बस सेड्रिक के अंत में हमारा साथ दें।" बाबा भैरोनाथ ने खड़े होकर सभी लोगों  को आश्वासन दिया।

"ठीक है फिर हम लोग तैयार हैं।" सामने आए लोगों ने कहा जो गिनती में छः थे।

"ठीक है चलिए फिर हम उन कीलों को लेकर आते हैं, मैं और फादर जोसफ कीलें लेने जाते हैं और बाकी लोग यहीं रहकर सुरक्षित रहें।" बाबा कपालिक ने फादर जोसफ को संकेत करके कहा।

"ठीक है जाइये आप लोग, हम आपके वापस आने तक इन लोगों को सुरक्षा घेरे में रखेंगे।" बाबा भैरोनाथ जी ने कहा और फादर जॉनाथन के साथ सुरक्षा घेरा बनाने लगे।

फादर जोसफ और मांत्रिक कापालिक उन छः लोगों के साथ कीलें लाने के लिए निकल गए।


10.


मुख्य चर्च के गुप्त कक्ष में दोनों तांत्रिक और सभी पादरी बैठे हुए थे। फादर विलियम और तांत्रिक मंगलनाथ की आत्माएँ भी वहाँ मौजूद थीं।

"सारी कीलें मिलने के बाद सेड्रिक को दोबारा कैद करने के लिए क्या योजना है आओ लोगों के पास?" फादर जॉनाथन ने सभी लोगों की ओर देखते हुए पूछा।

"फादर जॉनाथन का सवाल बहुत अच्छा और विचार करने योग्य है, क्योंकि केवल कीलें प्राप्त कर लेना मात्र ही तो हमारा लक्ष्य नहीं था। हमें शैतान सेड्रिक को सदा  के लिए वापस ताबूत में बंद करके ये सारी किलें ताबूत में लगानी होंगी तभी हम अपने इस अभियान में सफल हो पाएंगे।" बाबा भैरोनाथ जी ने गम्भीरता से कहा।

इनके इस सवाल पर सभी लोग माथा ठोकने लगे।

"मेरे विचार से हमें सेड्रिक द्वारा इकट्ठे किये गए सारे शरीरों को नष्ट कर देना चाहिए क्योंकि बिना शरीर सेड्रिक की शक्ति कुछ नहीं है। उसके बाद आप लोग अपनी मन्त्र शक्ति से उसे कैद कर लेना।" तांत्रिक मंगलनाथ की आत्मा बहुत माध्यम सुर में बोली।

"नहीं 'मंगल' ये इतना सरल नहीं है जितना तुम सोच रहे हो। हमें सेड्रिक को उसी समय ताबूत में बंद करना होगा जब वह किसी शरीर में हो। क्योंकि बिना शरीर की आत्मा हवा से भी हल्की होती है और उसे ताबूत में बंद कर पाना असंभव जैसा है।" फादर जॉनाथन ने जवाब दिया।

"मंगलनाथ की बात से हमें एक दिशा मिल गयी है। चलो हम लोग जल्दी से उन शरीरों को नष्ट कर देते हैं।

किन्तु केवल एक शरीर हमें सेड्रिक के लिए छोड़ना होगा। और वह शरीर होगा या तो पादरी विलियम का या फिर तांत्रिक मंगल का। बोलो आप लोग को अपना शरीर खुशी से देना चाहेगा?" बाबा कपालिक ने कुछ सोचकर पूछा।

"मेरा शरीर ही इस काम मे लाया जाए क्योंकि मेरे कारण ही ये सेड्रिक नामक शैतान जागा है और सारी मानवता के लिए खतरा बन गया है।

ऐसे भी जागने के बाद सबसे पहले सेड्रिक मेरे शरीर में ही आया था अतः मेरा मानना ये है कि मेरे शरीर की तरफ सेड्रिक का आकर्षण ऐसे भी ज्यादा है। अतः वह मेरे शरीर में बिना सोचे प्रवेश करेगा और हमें उसे कैद करने में आसानी रहेगी।" तांत्रिक मंगलनाथ ने कहा।

"बात तो मंगलनाथ की ठीक है किंतु यहाँ विचार करने की बात ये है कि क्या सेड्रिक सारे शरीर छोड़कर घूम रहा होगा? क्योंकि मेरा विचार है कि वह हर समय किसी ना किसी शरीर में रहता होगा और इस समय वह जिस शरीर में होगा हमें उसे उसी में कैद करना होगा।" फादर डिसूजा ने अपनी राय दी।

"सही कहा आपने फादर डिसूजा, इस बारे में भी हमें विचार करना चाहिए। और जहाँ तक हमने सेड्रिक के बारे में जाना है, जब वह गांवों में आतंक मचाने जाता है तब वह फादर विलियम के शरीर को इस्तेमाल करता है और जब वह तन्त्र करता है या हमारे तंत्रों से मुकाबला करता है तब वह मंगलनाथ के शरीर में होता है। और इस समय वह कीलों की खोज में निकला है, अर्थात तन्त्र मन्त्र से उसे लड़ना होगा तो मेरे विचार से इस समय वह मंगल के शरीर में ही होगा।" बाबा कपालिक ने कहा।

"ठीक है फिर हम लोग पहले पादरी विलियम की आत्मा को उनके शरीर में वापस स्थापित करने की कोशिश करेंगे उसके बाद बाकी सारे शरीर जला देंगे। हमें ध्यान रखना है कि तांत्रिक मंगलनाथ के शरीर को हमें सुरक्षित रखना है।" बाबा भैरोनाथ ने कहा और उसके बाद कुछ देर और सारे लोग अपनी योजना पर गम्भीरता से विचार करते रहे।


कब्रिस्तान में जिस टूटी-फूटी पुरानी कब्र में सेड्रिक ने सारे मुर्दा जिस्म इकठे किये थे ये सारे लोग उसी कब्र के अंदर थे।

बाहर से गन्दी सी वह कब्र अंदर से किसी बड़े कमरे जैसी थी जिसमें बहुत सारी जगह थी। उस कमरे से दो रास्ते भी जा रहे थे। जिनमें एक सामने की दीवार में था और दूसरा जमीन के अंदर।

ये लोग पहले जमीन के अंदर की सुरंग में उतर गए।

"क्या आपने इस स्थान को भ्रामक तन्त्र से सुरक्षित कर दिया है?" बाबा भैरोनाथ जी ने मांत्रिक कपालिक से पूछा।

"हाँ मैंने इस स्थान के साथ ही चर्च को भी भ्रामक तन्त्र से सुरक्षित कर दिया है। अब सेड्रिक को यही लगेगा कि हम लोग चर्च में ही हैं।" बाबा कपालिक ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

"ये तो अपने बहुत अच्छा किया बाबा जी।" 

सुरंग में उतरने के बाद इन्होंने देखा कि नीचे तो ऊपर से भी बड़ा कमरा था जिसमें सैकड़ों मुर्दे करीने से बैठे हुए थे जैसे अभी उठकर चल पड़ेंगे।

उन्हें देखकर दोनों तांत्रिकों में आपस में कुछ इशारे हुए और उन्होंने बाकी सभी को वापस ऊपर जाने को कहा 

सभी लोगों के ऊपर जाते ही दोनों बाबाओं ने हाथ में पानी लेकर कुछ मन्त्र पढ़े और उन मुर्दों पर छिड़क दिया।

देखते ही देखते सारे मुर्दे धुआँ बनकर उड़ गए और पीछे किसी की हड्डी तक भी शेष ना बची।

उन सभी मुर्दों को जलाकर दोनों बाबा ऊपर आये और उन्होने वह सामने का दरवाज़ा खोला। उसके अंदर आते ही ये लोग चौंक उठे। इस कमरे में एक शानदार पलँग बिछा हुआ था जिसपर मंगलनाथ आराम से सोया हुआ था। कमरे में बहुत सारी अलमारियाँ थीं जिनमें कई तरह के हथियार और बहुत से सोने-चाँदी के जेवरात रखे हुए थे।

"ये सेड्रिक तो बहुत अमीर लगता है कपालिक महाराज?" बाबा भैरोनाथ ने मुस्कुराते हुए कहा।

"जी सही कह रहे हैं आप, क्यों मंगल??" बाबा कपालिक ने विशेष अर्थ में मंगलनाथ की आत्मा को घूरते हुए कहा।

"मुझे कुछ नहीं पता महाराज, मैं तो कभी पहले यहाँ नहीं आया। ये सेड्रिक कभी मेरे तो कभी फादर विलियम के भेष में लोगों को मारता और लूटता है अब मुझे इससे अपने सारे बदले लेने हैं। इसके लिए आप जो भी आदेश करेंगे मैं सब करने को तैयार हूँ।" मंगलनाथ गुस्से से बोला।

"ठीक है मंगल अभी तुम अपने शरीर में प्रवेश करने का प्रयास करो। बाद में आगे की योजना बनाएँगे।"बाबा भैरोनाथ जी ने कहा।

मंगलनाथ ने जैसे ही अपने शरीर में जाने की कोशिश की उसे बहुत जोर का झटका लगा जिससे वह उछलकर छत से जा टकराया।

"ये शरीर बहुत मजबूत सुरक्षा चक्र से सुरक्षित है महाराज, अगर मैं अपने शरीर में होता तो मेरा तो सर ही फूट जाना था आज।" मंगलनाथ अपना सर सहलाते हुए बोला।

उसकी इस बात से ऐसी परिस्थिति में भी सारे लोग मुस्कुरा उठे।

"तांत्रिक मंगलनाथ का शरीर यहाँ है और फादर विलियम...! इसका मतलब सेड्रिक अभी विलियम बना घूम रहा होगा। माफ करना विलियम हम आपको आपके शरीर में वापस नहीं लौटा पाएंगे। किन्तु आप चिंता ना करें हम आप दोनों की मुक्ति का उपाय करके ही यहाँ से जाएँगे।" बाबा भैरोनाथ ने मंगल और विलियम की आत्माओं को देखते हुए कहा।


"हमें मंगलनाथ के शरीर को बाहर ले जाना होगा, उसके बाद हम इस सारे स्थान को जलाकर भस्म कर देंगे।" बाबा कपालिक ने कहा और ये चारों लोग, फादर जॉनाथन, फादर डिसूजा, बाबा कपालिक और बाबा भैरोनाथ मिलकर मंगलनाथ के शरीर को उस कब्र से बाहर ले आये।

  

"फादर जोसफ, आप जाएँ और चर्च से उन सभी कील धारकों को यहाँ ले आएँ। तबतक हम लोग बाकी की तैयारी करते हैं।" बाबा भैरोनाथ ने पादरी जोसफ से कहा जो अपने साथ दो और पादरी लेकर चर्च की ओर चल दिये।


सारी कब्र आग की तेज लपटों के साथ जल रही थी। वातावरण में मांस जलने की तेज गन्ध फैली हुई थी।

अचानक हवा बहुत तेज चलने लगी। ये सारे लोग सावधान हो गए।

सामने से गुस्से में पैर पटकता, चीखता हुआ तन्त्र प्रयोग करता विलियम के शरीर में सेड्रिक चला आ रहा था। उसके साथ थे उसके आठ-दस मुर्दा साथी।

उसे आता देखकर दोनों तांत्रिकों ने संयुक्त रूप से कोई मन्त्र पढ़ा और हवा में फूँक दिया। इनके फूंकने ही सेड्रिक के साथी फटाक की आवाज करके  पटाखे से फट गए और धू-धू करके जलने लगे। ये देखकर सेड्रिक गुस्से से काँपने लगा। सेड्रिक ने अपने दोनों हाथों से हवा में गोला सा बनाया और कुछ पढ़ते हुए इनकी ओर उछाल दिया। उस गोले के प्रहार से पादरी जोसफ और पादरी डिसूजा जमीन पर गिर गए और अपने होश खोने लगे।

बाबा कपालिक ने अपने हाथ की मुट्ठी पर कुछ पड़कर इन दोनों पर फूँका यो ये उठ बैठे उधर बाबा भैरोनाथ ने  अपना मन्त्र सेड्रिक पर चलाया जिससे वह जोर से उछलकर पीछे पेड़ से टकराया।

"आप सभी पादरी एक दुसरे का हाथ मज़बूती से पकड़े रहें और अपने सबसे शक्तिशाली मन्त्र का संयुक्त रूप से सेड्रिक पर प्रयोग करें। वह बहुत शक्तिशाली है

आप लोगों को वह नुकसान पहुँचा सकता है।" बाबा कपालिक चीखते हुए बोले और फिर अपना हाथ हवा में घुमाने लगे क्योंकि सेड्रिक एक हाथ लम्बा करके पेड़ की मार से बच गया था और दूसरे हाथ से आग वर्षा रहा था।

बाबा कपालिक ने उसकी आग को रोका तब तक बाबा भैरोनाथ जी ने अपना मारक मंत्र चला जिसके प्रभाव से पादरी विलियम का शरीर जिसमें सेड्रिक था वह जलने लगा।

सेड्रिक ने घबराहट में विलियम का शरीर छोड़ दिया जो सेड्रिक के निकलते ही जोर के धमाके के साथ ब्लास्ट हो गया।

सेड्रिक ने इधर-उधर देखा सामने एक सुंदर से बिस्तर पर तांत्रिक मंगलनाथ का शरीर लेटा हुआ था। सेड्रिक ने बिना कुछ सोचे उधर का रुख किया और तांत्रिक मंगलनाथ के शरीर पर कब्जा कर लिया। जैसे ही मंगलनाथ के शरीर में घुस कर सेड्रिक उठा अचानक बिजली की फुर्ती से उस लड़की ने एक चेन उसके गले में डाल दी। उस चेन में वही ताबूत की कील से बनी अँगूठी थी।

उस अँगूठी के जिस्म से छूते ही सेड्रिक तड़फ उठा किन्तु अब वह चाहकर भी मंगल के शरीर से बाहर नहीं आ पा रहा था।

वह तड़फ कर पीछे गिर गया और तभी वह चादर सेड्रिक को लेकर नीचे गिर गयी। अब सेड्रिक घास और पत्तों में छिपाए गए एक ताबूत में गिरा था। उसके ताबूत में गिरते ही पादरियों ने ताबूत पर ढक्कन लगा दिया और उन छः गाँव वालों ने उसमें उसमें वे सारी कीलें ठोक दीं।

अब सेड्रिक एक बार फिर कैद हो चुका था।


"अभी के लिए तो हमने सेड्रिक को बंद कर दिया बाबा जी लेकिन क्या वह फिर मुक्त नहीं हो जाएगा। क्या कभी फिर कोई लालची मंगलनाथ अपने लालच में इस  ताबूत को नहीं खोल देगा?" फादर जॉनाथन ने सवाल किया।

"आपकी चिंता उचित है फादर, और इसका उपाय भी हमने सोच लिया है। लेकिन उसके लिए ये ताबूत हमें अपने साथ ले जाना होगा।" बाबा भैरोनाथ जी ने कहा।

"जी ठीक है, जैसा आप ठीक समझें।" फादर जॉनाथन  ने जवाब दिया।

"ठीक है फिर ये हम अपने साथ ले जाते हैं, और अभी हमें फादर विलियम और तांत्रिक मंगलनाथ की आत्मा की शान्ति के लिए पूजा भी करनी है। आप चाहें तो आप सारे लोग भी उस पूजा में शामिल हो सकते हैं।" बाबा जी ने कहा।


शिव मंदिर में आत्मा मुक्ति की पूजा हो रही थी। मंगलनाथ और विलियम की आत्मा बंधनमुक्त होकर आकाश में जा रहीं थीं।

सेड्रिक मंगलनाथ के शरीर में कैद ताबूत के अंदर वहाँ दफन था जहाँ शिव मंदिर में भगवान भोलेनाथ पर चढ़ाया गया जल इकट्ठा होता है। वह जलकर धीरे-धीरे खत्म हो रहा था। उसकी शैतानी शक्तियाँ और शैतानी बुद्धि खत्म होती जा रही थी।

अब वह महाकाल की शरण में था।

"समाप्त"

©नृपेंद्र शर्मा "सागर"

ठाकुरद्वारा मुरादाबाद

M.n.9045548008







Thursday, July 22, 2021

चिंटू का सपना

दोस्तों उम्मीद है आप लोग चिंटू चूहे की नहीं भूले होंगे।
क्या कहा कौन चिंटू?? अरे वही 'चिंटू की चतुराई' वाला जिसने 'कालिया लहरी' मेरा मतलब खूंखार साँप को दफन कर दिया था।
क्या कहा अभी भी याद नहीं आया??☺️ 
अरे वही चिंटू जो 'जैसा खाये अन्न' में खुद को भेड़िया समझने लगा था और फिर लैबोरेटरी जाकर 'इंसान बनने' वाला था।
कुछ लोगों को जरूर याद आ गया होगा लेकिन जिन्हें याद नहीं आया उन्हें बता दूँ की चिंटू एक चूहा है जो रेटोरी में रहता है।
पहले सारी चूहा बिरादरी कालिया लहरी के आतंक से भयभीत थी लेकिन एक दिन चिंटू की चतुराई से चूहों ने कालिया को जमीन में दफन कर दिया। 
उसके बाद चूहों पर कुछ बड़े जानवरों का खतरा मंडराता रहता था तो चिंटू भेड़िये का माँस खाकर खूँखार बन गया और उससे सारे बड़े जानवर डरने लगे और उसके बाद चिंटू ने मनुष्यों के बीच कुछ दिन रहकर विज्ञान आदि का ज्ञान प्राप्त किया और चूहों की मदद से एक मजबूत किला बनाकर उसमें अपनी बस्ती बनाई जिसका नाम इन्होंने रखा' रेटोरी।
रेटोरी नदी के सबसे ऊँचे किनारे पर पत्थरों के बीच बना एक सुरक्षित स्थान था।
चिंटू अब इतना चालक हो चुका था कि नदी किनारे पर आती मछलियों का शिकार कर लेता था। 
वह मनुष्यों के स्कूल और लेबोरेट्री में छिप कर जाता था और नई नई चीजें सीखता था।
एक दिन चिंटू ने सारे चूहों की एक सभा बुलायी।
  
"जैसा कि आप सभी जानते हैं कि हम चूहे दुनिया में सबसे कमजोर प्राणी माने जाते हैं। लोग हमारे कमज़ोरी को हमारे नाम से परिभाषित करते हैं जैसे:-इसका दिल चूहे जैसा है। या फिर ओये! क्या चूहे की तरह बिल में छुपा है। 
और तो और ये गाना भी बना लिए, कहीं मारे डर के चूहा तो नहीं हो गया...
जबकि हम ना तो बुद्धि में किसी से कम हैं और ना ही बल में। इसका परिचय कितनी बार हम लोग अपने कामों से दे चुके हैं। 
मुझे अपनी बिरादरी को कमज़ोर कहे जाने पर एतराज है और मैं चूहा बिरादरी पर लगे इस कमज़ोरी के ठप्पे को मिटाना चाहते हूँ।
मेरा एक सपना है कि संसार चूहों को सम्मान दे और हमें कमज़ोरी एवं भय का पर्याय ना समझा जाये।
इसके लिए मेरी एक योजना है कि मैं इस 'रेटोरी' चूहा लैंड में एक स्कूल खोलूँ। मेरे स्कूल में मनुष्यों की तरह बेकार का पुराना रट्टा न लगाया जाए। ना ही बीती बातों को घोटा जाए और ना ही हर शिक्षा के लिए अलग-अलग यूनिवर्सिटी और कॉलेज खोले जाएं।
बल्कि मैं एक ऐसा विस्तरित कॉलेज खोलना चाहता हूँ  जिसमें पहले पाँच साल अक्षर ज्ञान और हिसाब-किताब सिखाने के बाद बच्चे अपनी रुचिअनुसार तकनीकी ज्ञान ले सकें। हमारे स्कूल में कारखाने भी होंगे और अस्पताल भी। पुस्तकालय भी होंगे और लेबोरेट्री भी। गणित, भूगोल, विज्ञान भी होगा इलेक्ट्रॉनिक, इलेक्ट्रिक, मेकेनिकल और वास्तुकला भी। यहा विद्यालय दिन रात खुला रहेगा और इसमें पढ़ने वाले बच्चे अपनी सुविधा अनुसार किसी भी समय अपनी पढ़ाई कर सकेंगे।
इस विद्यालय में परीक्षा नहीं प्रोत्साहन और मार्गदर्शन होगा। यहाँ कोई भी बच्चा कभी भी अपनी रुचि का कोई भी काम सीख सकेगा जो आगे उसकी आजीविका में सहायक हो सके। यहाँ हम बच्चों को नौकरियों के लिए नहीं बल्कि स्वमं के विकाश के लिए तैयार करेंगे।
यहाँ के बच्चे एक समान शुल्क में ही अध्यापक, डॉक्टर, इंजीनियरिंग, कम्प्यूटर एक्सपर्ट, आदि सब कुछ बनेंगे तो उसी के साथ टेक्नीशियन मिस्त्री और चित्रकार भी बनेंगे।
हमारे स्कूल में बच्चे  किताबी ज्ञान नहीं लेंगे बल्कि उन्हें हर विषय खुद करके सीखो के आधार पर पढाया जायेगा और जो विद्यार्थी कारखाने या अस्पतालों में सेवा देकर शिक्षा लेंगे उन्हें उचित पारिश्रमिक भी दिया जाएगा। ऐसे कुछ ही दिन में हमारे पास ऐसे शिक्षित युवा होंगे जी कागजी डिग्रियां लेकर नौकरी माँगने वालों की बेकार फौज की जगह खुद रोजगार उतपन्न करेंगे और नई-नई चीजें बनाकर हमारे रेटोरी के विकाश में योगदान देंगे। मेरा सपना है कि मैं किताबी ज्ञान वाले युवाओं की जगह हर युवा को किसी ना किसी क्षेत्र में पारंगत बना दूँ जो स्वमं का राष्ट्र का और मानवता का विकाश करने में सक्षम हों।" चिंटू ने लंबा-चौड़ा भाषण दिया।

"अरे चिंटू आज फिर लगता है तू कुछ उल्टा-पुल्टा खाकर आ गया?" कुद्दु दद्दा ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा।
"नहीं दद्दा मैं कुछ खाकर नहीं आया हूँ बल्कि इतने दिन इंसानों के बीच रहकर जीवन का सच्चा ज्ञान सीखकर आया हूँ। मैंने देखा है कि इंसान ज्यादातर स्कूलों में नौकरी माँगने वाले क्लर्क बना रहा है जिनकी भीड़ बढ़ती जा रही है और उसके पास अस्पताल और कारखाने के अच्छे तकनीक कर्मचारियों की भारी कमी है।
मैं उनके बीच रहकर उनकी एक गलत नीति को अच्छे से पहचान चुका हूँ जो है उनकी अनुचित शिक्षा पद्धति। 
लेकिन मैं एक सपना देखकर आया हूँ जो उस नीति को बदलकर एक नई क्रांति लाएगी और यदि हमारी ये योजना सफल हुई तो वह दिन दूर नहीं जब सारी दुनिया हमारे रेटोरी के उदाहरण देती घूमेगी और हमसे सीखने आएगी।
हमारे स्कूल में बच्चे जवान भी बनेंगे किसान भी बनरंगे और वैज्ञानिक भी। 
हम एक ही प्रांगण में सारी पद्धति उपलब्ध कराएँगे।
और यहाँ किसी बच्चे पर उसकी रुचि के विरुद्ध कुछ नहीं थोपा जाएगा। हम प्रयास करेंगे कि हर बच्चा ऐसी शिक्षा लेकर जाए कि वह एक दिन भी बेरोजगार ना रहे।"  चिंटू ने फिर अपना विचार सबको बताया।
"ठीक है मेरे बेटे, तुम्हारी इस योजना पर मुझे गर्व है और तुम्हारे इस सपने को पूरा करने के हर कार्य में हम सभी का पूरा सहयोग तुम्हें मिलेगा।" चिंटू के बाबा ने कहा।
चिंटू ने झुककर अपने बाबा के पैर छुए और उन्होंने उठाकर उसे गले लगा लिया।
चिंटू की इस अनोखी यूनिवर्सिटी के लिए जमीन की तलाश जारी है।
हम भी चिंटू की योजना के लिए उसे शुभकामनाएं देते हैं।

नृपेंद्र शर्मा "सागर"

Wednesday, June 30, 2021

भेडियन

भेडियन



1.

तारा अपनी सहेलियों के साथ जानवरों के लिए घास और पत्ते लेने के लिए जंगल में काफी अंदर चली आयी थी। हालांकि ये पहली बार नहीं था कि ये लोग ऐसे जंगल में इतनी अंदर आये हों।

 ये लोग अक्सर बातें करते हुए जंगल में निकल आते थे और बाद में घास पत्ते लेकर घर चले जाते थे।

 ऐसे भी पहाड़ पर रहने वाले लोग जंगल और जंगली जानवरों से ज्यादा नहीं डरते हैं।

  तारा अपने ख्यालों में खोई हुई थी, उसे सखियों की बातें जैसे सुनाई ही नहीं दे रहीं थीं। तभी उनके बिल्कुल पास ही किसी भेड़िये के गुराने की डरावनी आवाज आयी, जिसे सुनकर इसकी चारों सहेलियां डर कर पीछे भाग गयीं। लेकिन ध्यानमग्न होने के कारण तारा को कुछ पता ही नहीं लगा।

अब जब उसने चौंक कर सामने देखा तब तक वह विशालकाय भेड़िया उसके ठीक सामने आकर खड़ा हो गया था और धीरे-धीरे गुर्रा रहा था।

 तारा उसे देखकर बहुत घबरा गई और उल्टे पांव वापस लौटने की कोशिश में वह पीछे गिर गयी।

 उसके गिरते ही भेड़िये ने उस पर छलाँग लगा दी और उसके ऊपर आ गया। तारा घबराहट में चीख रही थी, उसकी आँखें बंद हो गयीं थीं। अचानक तारा ने अपने वक्ष स्थल पर भेड़िये के पंजों का भार महसूस किया। अब तारा ने आँखे खोलकर देखा, भेड़िया उसके ऊपर अपने अगले पांव रखे खड़ा था। वह लाल लाल आँखों से उसे घर रहा था और गुर्र! गुर्र!! की धीमी आवाज निकाल रहा था। भेड़िये का बड़ा सा मुँह खुला हुआ था और उसके लाल जीभ लपलपा रही थी 

 तारा की आँखे भेड़िये की आँखों से मिलीं तो अचानक उसकी गुर्राहट शांत पड़ने लगी।

 वह ध्यान से तारा के चेहरे को देख रहा था।

 अचानक ना जाने उसे क्या हुआ, उसने जीभ से तारा के गले को चाटा और झटके से उसके ऊपर से उतरकर खड़ा हो गया।

 भेड़िये ने तारा के हाथ को चाटना शुरू कर दिया। अब उसकी लाल आँखों का रंग और उसके चेहरे की भयावहता भी बदल गयी थी।

 अब तारा को उसकी आँखों में अपनापन नज़र आ रहा था।

 अचानक भेड़िया तारा का हाथ पकड़कर उसे उठाने लगा। तारा उसका सहारा लेते हुए उठकर बैठ गयी।

 भेड़िया अब उसका दुपट्टा पकड़कर खींच रहा था जैसे उसे कहीं चलने के लिए कह रहा हो।

 अब तारा को उस विशाल और डरावने हिंसक जानवर से बिल्कुल भी डर नहीं लग रहा था।

 ना जाने क्यों तारा उस भेड़िये के सम्मोहन में बंधती जा रही थी।

 तारा उसकी पीठ पर हाथ रखकर सहारा लेते हुए उठ खड़ी हुई और धीरे से बोली, "चलो कहाँ चलना है?" 

भेड़िया जैसे उसकी भाषा समझता था। वह उसका दुपट्टा दाँतो में पकड़े एक ओर चलने लगा।

 तारा भी उसके साथ-साथ चलती रही।

 कुछ ही देर में ये लोग पर्वत की एक गुफा में पहुँच गए जिसका द्वार छोटा था लेकिन अंदर काफी जगह थी।

गुफा में पहुँच कर  भेड़िया अपने अगले पैर उठाकर तारा के गले लग गया और उसका सिर, माथा और गला चाटने लगा जैसे वह अपना प्रेम प्रदर्शित कर रहा हो।

 तारा को ना जाने क्यों उसका यह स्पर्श बहुत अपना, बहुत सुखद लग रहा था।

 वह देर तक उस भेड़िये से लिपटी उसके मुलायम बालों में अपने उंगलियां घुमाती रही।

 कुछ देर बाद भेड़िया तारा से अलग हुआ और उसे एक पत्थर पर बैठने का इशारा किया।

 तारा पत्थर पर बैठकर उस भेड़िये को देखने लगी।

 ना जाने क्यों तारा को ऐसा लगा जैसे उस भेड़िये की आँखों में आँसू भरे हुए हैं।

 तारा उठकर उसके पास गयी और उसे गले लगाकर अपने हाथों से उसके आँसू पोंछने लगी।

 "आप रो रहे हैं? आप कौन हैं और मुझे खाने की जगह मेरे साथ ऐसे प्रेम से…? और अब आपकी आँखों में ये आँसू…? आखिर ये सब क्या है? और मेरा दिल…, मेरे दिल की धड़कनों का स्वर भी आपको  गले लगाकर बदला हुआ है। क्या हम पहले से एक दूसरे को जानते हैं? काश हम एक दूसरे की भाषा समझ पाते…", तारा उदासी में बोलती चली गयी।

 बदले में वह भेड़िया तारा के हाथ चूमता रहा।

 बहुत देर तक ऐसे ही तारा उस भेड़िये के साथ लिपटी उसके बालों को सहलाती रही और वह उसके शरीर को चूमता रहा।

 शाम होने को आयी थी लेकिन तारा का मन वापस जाने का नहीं हो रहा था फिर उसे अपने बाबा के गुस्से की याद आयी और वह झटके से उठ खड़ी हुई।

 "अच्छा तो अब मैं चलती हूँ, नहीं तो बाबा गुस्सा करेंगे", तारा ने कहा और गुफा से बाहर आ गयी।

 भेड़िया जैसे उसकी बात समझ गया था तो वह भी उसके साथ-साथ चलने लगा।

 भेड़िया तारा के साथ-साथ जंगल की सीमा तक आया जहाँ तारा सुरक्षित थी।

 तारा ने जल्दी-जल्दी पेड़ों के पत्ते तोड़े और उन्हें लेकर घर की ओर चल दी।

वह भेड़िया उसे तब तक देखता रहा जब तक कि वह जंगल की सीमा से बाहर ना निकल गयी।


२.

 तारा घर तो आ गयी लेकिन वह बहुत परेशान थी, वह बार-बार उस भेड़िये के बारे में ही सोच रही थी जो उसे खाने के लिए झपटा था लेकिन आँख मिलते ही वह हिंसक जानवर एकदम से उसका प्रेमी कैसे बन गया। उसे उस भेड़िये की एक-एक हरकत याद आ रही थी कि कैसे वह उसे चूम रहा था उसकी फ़िक़्र कर रहा था और अपने नुकीले खतरनाक दाँत और पंजे उससे दूर रख रहा था।

 तारा को याद आ रहा था उसका वह संभालकर उठाना और उसे अपनी गुफा में ले जाकर प्रेम जताना।

"लेकिन ऐसे तो चंदन..!!!", तारा को अचानक अपने प्रेमी चंदन की याद आ गयी।

 "हाँ वह भेड़िया बिल्कुल चंदन की तरह ही तो पेश आ रहा था मेरे साथ। वही अपनापन वही फ़िक़्र वही छुअन। लेकिन चंदन तो…, तो क्या चंदन ने मरकर भेड़िये का जन्म लिया है? है ईश्वर ये क्या माया है?", वह खुद से बात करते-करते भगवान से सवाल पूछने लगी।


चंदन नीचे के गांव का एक सुंदर गठीला मज़बूत युवक था। तारा ने उसे पहली बार देवता के मंदिर पर लगे मेले में देखा था जहाँ वह कुश्ती लड़ रहा था। 

तारा ना चाहते हुए भी चंदन को देखकर दंगल देखने रुक गयी थी।

वह एकटक बस उसे ही देख रही थी लेकिन चंदन से नज़र मिलते ही वह शरमा कर भाग आयी थी। तब तक चंदन तीन पहलवानों को चित कर चुका था।

चंदन का रूप उसका बल उसकी मुस्कान तारा के मन मे बसते जा रहे थे।

 उस दिन के बाद चंदन हर रात तारा के सपनों में आने लगा था। तारा मन ही मन चंदन को चाहने लगी थी। उसदिन के बाद से तार रोज कुलदेवता के मंदिर जाने लगी थी जो उसके ऊपरी गांव और निचले गांव के लगभग बीच में स्थित था।

तारा कुलदेवता से प्रार्थना करती कि उसे चंदन ही जीवनसाथी के रूप में मिले।

 कई दिन की प्रार्थना के बाद एक दिन चंदन उसे दिख ही गया, वह भी मंदिर आया था प्रसाद चढ़ाने।

 "आज किस बात के लिए भगवान को खुश कर रहे हो पहलवान जी? हम तो रोज मंदिर आते हैं लेकिन आपको तो पहले कभी इधर नहीं देखा", तारा चंदन के पीछे आकर बोली।

 उसकी आवाज पर चंदन घूमा तो दोनों की नजरें अनायास ही आपस में मिल गयीं।

 चंदन का चेहरा भी उसे देखकर किसी अनजानी खुशी से खिल उठा था।

 "जी मेरा नाम चंदन है पहलवान नहीं और मैं नीचे के गाँव में रहता हूँ", चंदन उसकी आँखों ने देखते हुए मुस्कुरा कर बोला।

 "जी मैं तारा, ऊपरी गाँव की। उस दिन आपको मेले में देखा था तब आप पहलवानी कर रहे थे तो…, ऐसे भी मुझे आपका नाम कहाँ पता था", तारा ने नज़रें चुराते हुए मुस्कुराकर जवाब दिया। और दोनों हँसने लगे।

 "अच्छा आज अचानक पहलवान जी पुजारी जी कैसे बन गए?",तारा ने मजाक के अंदाज़ में सवाल किया।

 "दो दिन बाद शाही दंगल है, मैं चाहता हूँ कि यह दंगल मैं जीत जाऊँ", चंदन ने भगवान की ओर हाथ जोड़ते हुए कहा।

 "आप अवश्य जीतेंगे चंदन जी, चंदन सदा माथे की शोभा होता है भगवान जी आपके मान को धूल नहीं होने देंगे", तारा ने भी भगवान की ओर हाथ जोड़ते हुए कहा और फिर आँखे बंद करके देर तक चंदन की विजय के लिए प्रार्थना करती रही।

   चंदन चार दिन बाद उसी समय मंदिर में आने की बात कहकर चला गया। तारा देर तक उसे जाते देखती रही।

 चार दिन बाद तारा सुबह से ही मंदिर पहुँच गयी और भगवान से चंदन द्वारा अच्छी खबर की प्रार्थना करने लगी।

कोई एक घण्टे बाद चंदन मंदिर आया हाथ में मिठाई का डिब्बा लिए।

उसे देखते ही तारा झपट पड़ी, "आ गए आप! मैं कब से प्रतीक्षा कर रही थी। क्या रहा आपकी कुश्ती का? मुझे पता है आप अवश्य ही विजयी हुए होंगे, है ना जी?"

 "अरे बाबा साँस तो ले लो, आओ भगवान को भोग लगा दें पहले फिर बात करेंगे", चंदन ने कहा और दोनों एक साथ भगवान के सामने जाकर बैठ गए।

चंदन ने एक लड्डू का भोग भगवान को अर्पित किया और एक लड्डू तारा के मुँह से लगा दिया।

 "अरे!!! ये क्या कर रहे हो? भगवान का भोग जूठा कर दिया।", तारा मुँह हटाते हुए बोली।

"मेरे लिए तो तुम ही देवी हो तारा। उस दिन जब पहली बार तुम्हे देखा था तो मैं अपनी सारी कुश्ती जीता था और अब तुमसे मिलकर गया तो शाही दंगल जीत आया", चंदन बड़े प्रेम से तारा को देखते हुए बोला।

 "ऐसा नहीं बोलते पहलवान जी देवता नाराज़ हो जाते हैं, हम इंसान हैं तो हमे इंसान ही रहने दो।

 चलो बाहर चलकर बातें करते हैं", तारा उसे ऐसे प्रेम से देखते और उसकी मीठी बातों में खोते हुए बोली।

 "आओ चलते हैं", चंदन ने कहा और दोनों मंदिर के पीछे पहाड़ी उतर कर एक बड़े पत्थर पर आकर बैठ गए।

"तो  पहलवान जी आपको ऐसा लगता है कि हम आपके लिए शुभ हैं। हमारी बजह से आपकी जीत होती है। तब तो हमें भी पुरस्कार मिलना चाहिए", तारा मुस्कुराते हुए बोली।

 "अरे तारा जी आपको कहा था ना कि मेरा नाम चंदन है, पहलवान जी नहीं। ऐसे ही क्या मैं भी फिर आपको देवी जी बुलाऊँ? वैसे देवी तो आप हो ही…, मेरे मन की देवी। मेरा सब कुछ आपका है देवी जी जो चाहे पुरुस्कार स्वरूप ले लीजिए", चंदन हाथ जोड़कर सिर झुकाते हुए बड़ी अदा से बोला।

 "अच्छा बताऊँ अभी आपको…, बड़े आये देवी बनाने वाले", तारा झूठ मूठ के गुस्से के साथ चंदन को घूंसा दिखाते हुए बोली।

 चंदन उसकी इस हरकत पर जोर से हँसने लगा और फिर तारा भी उसके साथ हँसी में शामिल हो गयी।

 


3.

उस दिन के बाद से तारा और चंदन अक्सर मंदिर के पीछे या घने जंगल में मिलने लगे, दोनों को एक दूसरे की बातें बहुत अच्छी लगती थीं। दोनों हर समय साथ रहना  चाहते थे। हालांकि दोनों जानते थे कि ऊँचे गाँव और निचले गाँव में जात-पात और ऊंच-नीच का गहरा भेदभाव है और यह समाज उनके रिश्ते को कभी मान्यता नहीं देगा लेकिन फिर भी दोनों दिल के हाथों मजबूर थे।

 एक दिन चंदन और तारा जब मंदिर में मिले तो चंदन ने उसे बताया कि वह कुछ दिन के लिए दूर हिमालय में जड़ी-बूटियों की खोज में जा रहा है। इस काम में उसे एक-दो महीने भी लग सकते हैं अतः तारा उसके लिए परेशान ना हो।

 उसके बाद चंदन इतना बलिष्ठ हो जाएगा कि उसे कभी कोई कुश्ती में नहीं हरा पायेगा। और पुरस्कार जीत कर उसके पास बहुत पैसा भी आ जाएगा। फिर वह शहर में घर लेगा और तारा से विवाह करके दोनों वहीं शहर में चलकर रहेंगे।

 तारा उसकी बात सुनकर बहुत उदास हो गयी

 "क्या आपका ऐसे जड़ी बूटियों की खोज में जाना बहुत आवश्यक है चंदन जी? आप जैसे हो ऐसे ही बहुत बलिष्ट हो। और रही बात पैसे की तो मुझे नहीं चाहिए बहुत सा धन। मुझे आपके दूरी मंजूर नहीं बस। आप मत जाइए ना। आप इन जड़ी-बूटियों को बाजार से क्यों नहीं ले लेते?", तारा ने दुखी स्वर में कहा।

 "ये बहुत खास जड़ी बूटियां हैं तारा, ये बाजार में नहीं मिलतीं। गुरु जी ने मुझसे खुश होकर केवल मुझे उनकी पहचान बताकर कहा है कि पूर्णिमा की चाँदनी रात में मैं उन्हें लेकर आऊँ उसके बाद गुरुजी अपने सामने नुस्खा तैयार कराएंगे जिससे मुझे अपार बल मिलेगा। इसलिए मुझे जाना ही होगा, और फिर तुम्हे मेरी शक्ति मेरी क्षमताओं पर विश्वास नहीं है जो इतना घबरा रही हो। अरे पगली मुझे खुद तुमसे दूर जाना अच्छा नहीं लगता लेकिन हमारे हमेशा के लिए एक होने के लिए मुझे कुछ दिन तुमसे दूर जाना ही पड़ेगा। एक बात मैं भी जनता हूँ और तुम भी की ऐसे आसानी से हम दोनों के गांव वाले हमें एक होने नहीं देंगे लेकिन जब मैं शहर में बस जाऊंगा तब शायद उन्हें हमारे रिश्ते से कोई परेशानी ना हो", चंदन प्रेम से तारा को समझाते हुए बोला।

 तारा ने बड़े बेमन से उदास होकर चंदन को जाने को कह दिया और वापस लौट आयी।

  चंदन चला तो गया लेकिन फिर कभी वापस नहीं आया। दो साल हो गए चंदन को गए, लोग उसके बारे में तरह-तरह की बातें करते कि चंदन हिमालय से गिरकर मर गया होगा। कोई कहता विरोधी पहलवानों ने उसे मरवा दिया होगा तो चंदन के गाँव वाले उसके गायब होने में ऊँचे गाँव के लोगों का हाथ बताते।

 लेकिन तारा का दिल ये मानने को कभी तैयार नहीं होता था कि चंदन अब नहीं रहा।


किंतु उस दिन भेड़िये से मिलकर लौटने के बाद ना जाने से बार-बार ऐसा क्यों लग रहा था कि वह भेड़िया ही चंदन है। और ऐसा तो तभी सम्भव है जब चंदन ने मरकर भेड़िये के रूप में दूसरा जन्म ले लिया हो।

 "तो क्या मेरे चंदन ने भेड़िये के रूप में भी मुझे पहचान लिया। क्या उसे अब भी मुझसे प्रेम…? लेकिन एक भेड़िये को लड़की से प्रेम…, क्या यह सम्भव है? और यदि हुआ भी तो इसका परिणाम क्या होगा? पहले तो केवल जात-पात और ऊँच-नीच का ही भेद था लेकिन अब…! अब तो इंसान और जानवर का भेद हो गया जिसे संसार तो क्या पूरी सृष्टि में कोई स्वीकार नहीं करेगा। किंतु मैं ऐसे क्यों सोच रही हूँ? क्या उस भेड़िये ने मुझे सम्मोहित किया है। लोग कहते हैं कि भेड़िया आँख मिलाकर जिसे देखले वह सम्मोहित हो जाता है और भेड़िये के पीछे-पीछे चला जाता है। तो क्या मैं भी? किंतु मुझे तो उसकी आँखों में प्रेम के अतिरिक्त कोई अन्य भाव दिखाई ही नहीं दिए। और ना ही उसके व्यवहार में किसी तरह की कोई गलत भावना। यदि उसे मुझे किसी तरह का नुकसान ही पहुँचाना  होता तो उसे मुझे सम्मोहित करने की क्या आवश्यकता थी। मैं तो खुद ही उसके साथ थी वह जो चाहे कर सकता था? लेकिन उसकी ऑंखों में तो मेरे लिए केवल फ़िक़्र थी। उसे मेरी चिंता थी तभी तो मुझे जंगल पार करवाने मेरे साथ आया था और कितनी देर तक मुझपर दृष्टि रखे रहा था। उसे मुझसे प्रेम है, वह मेरा चंदन हो या ना हो लेकिन वह मेरा सच्चा प्रेमी है। मैं कल फिर उससे मिलने जाऊँगी।", रात भर तारा खुद से ही सवाल-जवाब करती रही। 


***4.

 सुबह जल्दी उठकर नहा धोकर वह सबसे पहले मंदिर गयी। वहाँ उसने देवता से अपने प्रेम की सलामती की प्रार्थना की। फिर भेड़िये की असलियत जानने की प्रार्थना करके वह घर आ गयी।

 तारा को घर में चैन नहीं पड़ रहा था, उसे बार-बार वह भेड़िया याद आ रहा था।

 तारा ने कपड़े बदले और बढ़िया खाना बनाकर तैयार होकर चल पड़ी जँगल की ओर… अकेली।

 तारा को खुद पर लज्जा आ रही थी जब वह सज-संवर रही थी। 

"एक भेड़िये के लिए ऐसे तैयार होने की क्या तुक है?" उसने खुद से पूछा लेकिन बस मुस्कुरा कर रह गयी और अच्छी तरह खुद को बना-सँवार कर अब वह जँगल में थी।

 अभी वह भेड़िये की गुफा से बहुत दूर थी तभी उसे दूर से वह भेड़िया अपनी ओर आता दिखाई दिया।

 उसे देखकर तारा की धड़कने और कदम दोनों ही की गति तेज हो गयी।

 उधर भेड़िया उसके पास पहुँचते ही अपने पिछले  दो पैरों पर खड़ा हो गया और अगले पैर तारा के स्वागत में खोल दिये मानों कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए बाहें फैलाये खड़ा हो।

 इधर तारा ने भी दौड़ लगा दी और उसकी खुली बाहों में समा गई।

 तारा को ये फौलादी पकड़ बिल्कुल चंदन की पहलवानी पकड़ जैसी ही महसूस हो रही थी। उसने भी अपनी बाहें भेड़िये के गले में डालकर उसे अपने और करीब खींच लिया। 

 "तुम मेरे चंदन हो ना? मुझे पता है तुम चंदन ही हो क्योंकि ऐसी पकड़ तो बस मेरे चंदन की ही हो सकती है", तारा ना जाने किन सोचों में गुम होकर कह गयी।  उसकी इस बात पर भेड़िये ने भी अपनी कसावट उसके जिस्म पर बढ़ा दी और अपनी जीभ से उसकी गर्दन चाटने लगा।

 ये दोनों कुछ देर सबकुछ भूलकर ऐसे ही खड़े रहे फिर भेड़िये ने उसे छोड़ा और उसे पकड़ कर गुफा की ओर ले चला।

 गुफा में पहुँचकर तारा ने खाने की पोटली खोली और बोली, "लो खाना खाओ, मैंने अपने हाथों से तुम्हारे लिए बनाया है।

उसकी बात सुनकर भेड़िया सीधा होकर बैठ गया उसकी आँखों की चमक बता रही थी कि वह बहुत खुश है।

 तारा ने अपने हाथों से भेड़िये को खाना खिलाया और फिर उसकी आँखों में देखने लगी।

 कुछ देर ऐसे ही बैठे रहने के बाद भेड़िया अधलेटा सा हो गया और उसने तारा को अपने पास लेटने का इशारा किया। तारा उसकी गोद में सिर रख कर लेट गयी और वह बहुत प्रेम से उसके बालों को सहलाता रहा। शाम होने से पहले तारा अपने घर वापस लौट आयी।

 अब तारा का ये रोज का क्रम बन गया था, वह तरह-तरह का खाना बनाती खुद को अच्छे से तैयार करती और जँगल में चली जाती। वह भेड़िया भी उसका इंतजार करता था। दोनों देर तक प्रेमालाप करते एक दूसरे को सहलाते, चूमते और गले लग कर लेट जाते। तारा ने उस पत्थर की गुफा में घास का बढ़िया बिस्तर भी लगा दिया था जिससे अब ये दोनों आराम से बैठ पाते थे।

 भेड़िया रोज शाम को तारा को छोड़ने उसके साथ जँगल की सीमा तक भी आता था।


 ऐसे ही कोई सात-आठ दिन हो गए थे तारा और भेड़िये को मिलते हुए।

 उस दिन भेड़िया तारा की गोद में सिर रखे लेटा हुआ था। तारा उसके बालों में उँगलियाँ घुमाते हुए उसका बदन सहला रही थी।

 अचानक तारा का हाथ उसकी गर्दन पर दाएं कंधे के ठीक ऊपर रुक गया। वहाँ कोई कठोर चीज भेड़िये के कँधे में धँसी हुई थी।

 तारा ने भेड़िये के बालों को हटाकर ध्यान से देखा, वह किसी हड्डी का टुकड़ा जैसा दिखाई दे रहा था।

 "अरे ये क्या है? तुम्हारे कंधे में ये हड्डी कैसे घुसी…, और इससे तुम्हें दर्द नहीं होता? चलो सीधे लेटो मैं निकालती हूँ इसे", तारा ने कहा और भेड़िये का सिर अपने गोद से हटाकर नीचे रख दिया।

 भेड़िये ने एक बार उसकी आँखों में देखा और फिर अपनी आँखें बंद कर लीं।

 तारा पहले गुफा के बाहर आयी और जल्दी ही कोई घास लेकर मसलती हुई अंदर आ गयी।

 "यह घमरा घास है, हड्डी निकालने पर तुम्हारा जो खून बहेगा यह उसे रोकने में मदद करेगी। अब तुम सीधे लेटो और अच्छे बच्चों की तरह अपनी ऑंखें बन्द कर लो", तारा ने भेड़िये की पीठ सहलाते हुए कहा और वह आँख बंद करके लेट गया।

 तारा ने उसके बालों को हटाकर मजबूती से वह हड्डी पकड़ी और पूरी ताकत से खींच दी। उसके निकलते ही भेड़िया जोर से कराहते हुए चीखा जिससे तारा का ध्यान भटका और वह नुकीली हड्डी उसकी पिंडली में चुभ गयी जो उसके नीचे बैठते समय लहँगा ऊपर सिमटने के कारण नग्न हो गयी थी।

 लेकिन तारा ने इसपर ध्यान नहीं दिया और जल्दी से घास लेकर भेड़िये के घाव पर लेप करने लगी।

 अभी कुछ ही देर गुजरी थी कि वह भेड़िया कराहते हुए पैर मसलने लगा, उसकी कमर सीधी होने लगी थी और चेहरे और शरीर के बाल गायब होने लगे थे।

 तारा उसके बदलते रूप को देखकर बहुत आश्चर्यचकित थी। वह बहुत गौर से उसे देख रही थी।


***5.


भेडियन :-5

 देखते ही देखते भेड़िया इंसानी रूप लेता जा रहा था और अब तारा को भेड़िये की जगह उसका चंदन नज़र आ रहा था। निर्वस्त्र कमज़ोर सा चंदन।

 "चंदन आप??? ये भेड़िया!! आप ही भेड़िया बनकर घूम रहे थे और मैं पागलों की तरह आपको ना जाने कहाँ-कहाँ ढूंढ रही थी।

क्या हुआ था आपको? कैसे हुआ ये सब बताओ मुझे? चंदन ओ मेरे चंदन!!", तारा खुशी में चंदन से लिपट गयी। और कितनी ही देर उसे पागलों की तरह चूमती रही।

 कुछ देर बाद चंदन उठकर बैठ गया और उसने तारा का दुपट्टा उठाकर अपनी कमर में लपेट लिया। 

 अब तारा को उसकी नग्नता का अहसास हुआ और वह लाज से लाल हो गयी। लेकिन कुछ ही पल में उसने सँभलते हुए फिर अपना सवाल दोहराया, "बताओ ना चंदन क्या था ये सब और कैसे हुआ?"


 "तारा तुम्हें याद है जब मैं जड़ी-बूटियां लेने हिमालय पर गया था? उस दिन पूर्णिमा की रात थी। मैं जिस जड़ी की खोज में गया था उसकी सुरक्षा पूर्णिमा की रात में भेड़िया मानव करते हैं मुझे किसी ने यह नहीं बताया था। मैं जैसे ही उस जड़ी के पास पहुँचा मुझे अनेक भेड़ियों की गुर्राहट सुनाई दी लेकिन मैं उसे सामान्य भेड़ियों की आवाज सुनकर अनसुना कर गया और उस जड़ी की ओर बढ़ने लगा।" चन्दन ने अपनी कहानी सुनानी शुरू की-


 चन्दन को किसी साधु ने बताया था कि यदि तुम महाशक्तिशाली बनना चाहते हो तो तुम्हें हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों के बीच से एक दिव्य जड़ी लानी होगी। वह जड़ी केवल हिमालय की बर्फ में ही उगती है। और उसकी विशेष पहचान यह है कि पूर्णिमा की रात चंद्रमा के प्रकाश में वह जड़ी सोने की भांति चमकती है।

 चन्दन तारा से सारी बात बताकर निकल गया हिमालय की ओर अकेला, कुछ अपनी शक्ति के अतिविश्वास ने और कुछ महाशक्तिशाली बनने की लालसा ने उसमें अति साहस जगा दिया था।

 चन्दन दस-बारह दिन की अनवरत कठिन यात्रा के बाद पर्वत के उस शिखर के नीचे खड़ा था जिसपर दूध सी सफेद बर्फ जमी हुई थी। सूर्य का प्रकाश पड़ने से वह सारा पर्वत स्वर्ण की आभा दे रहा था।

 यह देखकर चन्दन रक पल के लिए सोच में पड़ गया, "गुरुजी ने तो कहा था कि केवल वह जड़ी ही सोने की तरह चमक रही होगी; लेकिन ये तो पूरा पर्वत ही सोने का बना हुआ लगता है।

 अब इतने सारे सोने में से मैं उस एक जड़ी को कैसे खोज पाउँगा?"

 कुछ देर उदास होकर चन्दन वहीं पर्वत के नीचे एक सिला पर बैठकर सोचता रहा।

 अचानक उसे याद आया, "अरे!! गुरुजी ने तो कहा था कि मुझे वह जड़ी रात में लेनी है। और रात में तो सूर्य का प्रकाश होगा ही नहीं। मैं भी निरा ही बुद्धू हूँ। सही कहती है 'तारा' पहलवानी कर-कर के मैंने सच में अपने दिमाग को अपनी तरह मोटा बना लिया।

 और वह कुछ देर के लिए तारा की याद में खो गया, "कितना चाहती है तारा उसे!! उसके यहाँ आने की बात पर कितना उदास हो गयी थी। लेकिन जब मैं महाशक्तिशाली बनकर लौटूंगा तब उसे भी तो अपने प्रेम पर गर्व  होगा। मैं तारा को कभी खुद से दूर नहीं होने दूँगा चाहे उसके लिए मुझे सारी दुनिया से ही क्यों ना लड़ना पड़े। लेकिन ये समाज का ऊँच-नीच जाती उपजाति का भेदभाव?? क्या ये कभी खत्म होगा। शायद नहीं?" चन्दन के मुख पर खुशी और उदासी के भाव आ-जा रहे थे और वह उसी सिला पर अधलेटा सा हो गया था।

  कुछ देर बाद चन्दन ने पर्वत पर चढ़ना शुरू कर दिया।

शाम का झुकमुक़ा होने से पहले ही चन्दन पर्वत पर चढ़कर बर्फ तक पहुँच चुका था। दूर-दूर तक सफेद बर्फ के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता था। हवा के साथ भी बर्फ रुई की तरह उड़ रही थी जिसके चलते मौसम बहुत ठंडा हो रहा था।

 चन्दन ने खुद को अपनी चादर में कस कर लपेटा और बर्फ में जड़ी खोजने लगा। 

 "यहाँ तो बर्फ के अलावा कुछ भी नज़र नहीं आ रहा। लगता नहीं इस बर्फ में कभी कोई घास उगी भी होगी। और इस ठंड में इस बर्फीले पर्वत पर रात गुजारना तो जैसे असम्भव ही है। कहीं गुरुजी ने मुझसे व्यर्थ का श्रम ही तो नहीं करा दिया?" चन्दन मन ही मन खुद से बातें कर रहा था। रात गहराने लगी थी तभी चन्दन को आसमान में पूरा चाँद नज़र आया और उसकी एक किरण का पीछा करते हुए चन्दन की आँखे नीचे बर्फ पर पड़ी जहाँ दूर एक सोने के फूल जैसी कोई दिव्य जड़ी साफ दिखाई दे रही थी।

चन्दन उसे देखकर खुशी से उछल पड़ा और उसने जड़ी की ओर दौड़ लगा दी।

 जैसे-जैसे चन्दन उस जड़ी की ओर बढ़ रहा था उसे अहसास हो रहा था कि वह इस पर्वत पर अकेला नहीं है। उसे दूर से बहुत से भारी कदमों की आहट के साथ ही अनेकों भेड़ियों के गुर्राने की आवाजें भी आ रहीं थीं।

 चन्दन इसे अपने मन का वहम समझकर अपनी मंजिल की ओर तेज़ी से बढ़ता जा रहा था किंतु

 जैसे-जैसे 'चन्दन' उस जड़ी की ओर बढ़ रहा था वह आवाज तेज होती जा रही थी, जैसे वे भेड़िये उसे उस जड़ी के पास ना जाने की चेतावनी दे रहे हों किंतु अपनी धुन में चन्दन रुका नहीं उसे अपनी शक्ति बढ़ाने के अलावा कुछ और दिखाई नहीं दे रहा था और उसका साधन वह शक्ति जड़ी उसके ठीक सामने ही थी। वह अपनी धुन में यह भी नहीं देख पाया कि वह चारों तरफ से भेड़ियों और मानव भेड़ियों से घिर चुका है। उस पर तो जैसे उस दिव्य जड़ी का सम्मोहन सा हो गया था, वह सब कुछ भूलकर बस उसे जल्द से जल्द पाना चाहता था।

 वह उन मानव भेड़ियों की चेतावनी को बिल्कुल भी नहीं सुन रहा था और ना ही देख पा रहा था उनकी गुस्से से लाल होती आँखें और लपलपाती जीभ को जो भूख से लार टपका रही थी।

  जैसे ही चन्दन ने उस दिव्य जड़ी को उखाड़ने के लिए हाथ बढ़ाया एक मानव भेड़िये ने उसके ऊपर छलाँग लगा दी। वह भेड़िया बहुत विशालकाय था और दो पैरों पर किसी इंसान की भाँति चल रहा था। उसने चन्दन की गर्दन में अपने दाँत गढ़ा दिए। और जब उसने अपनी पूरी शक्ति से उस आधे भेड़िये को जोर से धक्का दिया तो उसका एक दाँत टूटकर चन्दन के कंधे में ही धंसा रह गया।

  उसके कुछ देर बाद ही चन्दन का रूप बदल गया और वह भेड़िया बन गया।

 आब तक उसके चारों ओर अनेकों भेड़िये इकट्ठा हो गए थे और उस पर गुर्राने लगे थे। चन्दन को अब उनकी बात समझ में आ रही थी। वे सब चन्दन से बहुत नाराज़ थे क्योंकि उसने उनके चेतावनी देने के बाद भी उस दिव्य जड़ी को छुआ था? 

 "वह जड़ी चन्द्र देवता के अधीन है और बिना उनकी अनुमति कोई उसे नहीं छू सकता। जो भी उसे शक्ति के लोभ में बिना अनुमति हाथ लगाता है, वे लोग उसे काट कर भेड़िया बना देते हैं जो हर पूर्णिमा को भेड़िया बनकर उनके झुंड में सम्मिलित होकर उस जड़ी की सुरक्षा करता है।

बाकी दिनों में वह अपने वास्तविक रूप में ही रहता है।" एक भेड़िये ने उसे बताया।


 चन्दन रात भर वहाँ रहा उन्ही के साथ, सुबह होते ही उनमें से कुछ भेड़िये मनुष्य बनकर चले गए कुछ वहीं पर भेड़िये बने उसके चारों ओर घूम रहे थे।

 चन्दन ने उनसे पूछा, "बाकी सब मानव भेड़िये अपने असली रूप में आ गए फिर मैं क्यों नहीं आया?" 

 तो उनमें से एक बोला कि, "कई लोगों को अलग-अलग दिनों में भी काटा जाता है ताकि पूर्णिमा के अलावा भी इस स्थान की सुरक्षा के लिए कोई ना कोई रहे। किंतु पूर्णिमा की रात इन सभी में भेड़िया बनने की इच्छा बहुत तेज़ हो जाती है।

क्योंकि हम सभी भेड़िया मानव चंद्र देव के सेवक हैं, इसलिए उनके पूर्ण रूप के दर्शन हमारे लिए बहुत शुभ माने जाते हैं। इसलिए जिन्हें अन्य दिनों में भेड़िया बनाया जाता है उन्हें भी पूर्णिमा के दिन भेड़िया अवश्य बनाया जाता है।"

 "किंतु मुझे तो आप लोगों ने पूर्णिमा के दिन ही भेड़िया बनाया है फिर मैं सुबह वापस अपने रूप में क्यों नहीं आया?"  चन्दन ने फिर सवाल किया।

 लेकिन उसकी इस बात का जवाब उनमें से किसी के भी पास नहीं था।

  "मैं काफी  समय उन लोगों के साथ रहा इस उम्मीद में कई शायद ये लोग मुझे वापस मेरा असली रूप लौटा दें लेकिन मुझे निराशा ही हाथ लगी।" चन्दन तारा को अपनी कहानी सुनाते हुए आगे बताने लगा-

 "भेड़िया बने रहने के कारण धीरे-धीरे मैं तन से ही नहीं मन से भी भेड़िया बन गया था और भेड़ियों की तरह हिंसक होकर शिकार करने लगा था।

 भूख मिटाने के लिए शिकार तो मुझे वैसे भी करना ही पड़ता था", चंदन अपनी आप बीती सुनाते हुए बहुत उदास हो रहा था उसकी ऑंखों से आँसू बह रहे थे।

 तारा ने उसे पकड़कर उसका सिर अपनी गोद में रख लिया और उसके आँसू पोंछकर उसके वालों में उँगलियाँ घूमने लगी।

 "फिर क्या हुआ चंदन?" तारा ने धीरे से पूछा।

 "फिर एक दिन मैं परेशान और निराश होकर मौका पाकर उस जड़ी में मुँह मारकर उस जगह से चला आया। मैं उस जड़ी को बिना खाये वहाँ से खुद भी आना नहीं चाहता था जिसके कारण मुझे ये पशु योनि मिली, नहीं तो ऐसे तो मैं कब का वहाँ से भाग निकलता।

 मुझे जँगल के अंदर रास्ता पता नहीं था, बस दिशा का अनुमान लगाकर चल रहा था। अपनी इस यात्रा में मेरा सामना कई बार असली भेड़ियों और शेर-चीतों से भी हुआ लेकिन मैं हर बार सब पर भारी पड़ गया। तब मुझे एहसास हुआ कि मुझे बहुत अधिक शारिरिक बल प्राप्त हो चुका है, लेकिन इस भेड़िया शरीर में…? यह शक्ति अब मेरे किस काम की थी तारा?" चंदन ने अफसोस करते हुए तारा से प्रश्न किया। बदले में तारा बस आँखों से आँसू बहाती रही।

 

6.

 अचानक चंदन को अपने कान के पास कुछ गीला सा लगा तो वह चौंककर झटके से उठ बैठा। उसने देखा कि तारा की पिंडली से खून बह रहा था।

 "तुम्हे ये चोट कब और कैसे लगी तारा?" चंदन ने परेशान होते हुए पूछा।

 "चोट…! कहाँ?" तारा ने अपने पैर की ओर देखते हुए पूछा।

 "अरे! कमाल है तुम्हारे पैर से इतना खून बह रहा है और तुम्हे याद तक नहीं कि यह घाव कैसे लगा", चंदन नाराज होता हुआ बोला लेकिन उसकी नाराजगी में भी तारा के लिए फ़िक़्र थी।

 "ओह्ह!! याद आया जब मैंने वह दाँत आपके कंधे से खींच कर निकाला था तब तुम दर्द से कराहे थे बस उसी से मैं हड़बड़ा गयी थी और उसी हड़बड़ी में वह दाँत मेरे पैर में चुभ गया था। लेकिन आप फ़िक़्र ना करो छोटा सा ही घाव है। मैं अभी इसपर घमरा का रस लगा देती हूँ, जल्दी ही खून रुक जाएगा और एक-दो दिन में घाव भी भर जाएगा", तारा कुछ याद करते हुए बोली।

 "क्या कहा!! दाँत चुभ गया था? कितनी लापरवाह हो तारा तुम! उफ्फ!!! तुम्हें पता है तुम्हारी लापरवाही और नासमझी ने कितनी बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है? अरे पागल अब तक तो उस दाँत पर लगा खून तुम्हारे सारे खून में मिल गया होगा। 

 हे ईश्वर अब क्या होगा? काश तुमने उसी समय मुझे बता दिया होता तो हम तुम्हारे खून बहाकर इस भेड़िये के खून को तुम्हारे खून में मिलने से रोक सकते थे। लेकिन अब…! अब मुछ नहीं हो सकता।

आज अमावस्या की रात है और आज की रात तुम भी भेड़िया बनोगी", चंदन ने नाराज़गी और उदासी भरे स्वर में कहा।

 "क. क.. क… क्या कहा आपने? मैं और भेड़िया", घबराहट में तारा की चीख निकल पड़ी।

 "हाँ तारा अब हम कुछ नहीं कर सकते, अब तुम्हें मानव भेड़िया बनने से कोई नहीं बचा सकता। उसी समय शायद कुछ हो सकता था", चंदन निराश के भाव लिए धीरे से बोला।

 तारा कुछ देर सिर पर हाथ रखे चुपचाप बैठी रही फिर अचानक सामान्य होकर बोली, ",अच्छा है ना पहलवान जी, अब हम दोनों एक जैसे हो गए। नियति को हमारे मिलन के लिए शायद यही मंज़ूर हो। मुझे आपको पाने के लिए जो भी बनना पड़े मैं तैयार हूँ। आप दुखी ना हों चंदन जी।"

 "तुम्हें नहीं पता तारा कि यह कितना दर्दनाक होता है एक मनुष्य होकर खुद को एक जानवर के रूप में देखना", चंदन दुख भरी आवाज में कहने लगा।

 "कोई बात नहीं चंदन जी इसी बहाने मुझे आपके दर्द को महसूस करने का अवसर मिलेगा और फिर एक भेड़िये को संभालने के लिए भेड़िया होना ऐसे भी बहुत ज़रूरी है। बाप रे आपको पता है मैं कितना डर गई थी उस दिन जब हम पहली बार मिले थे और आपने मुझ पर छलांग लगा दी थी।

मुझे तो समझ  ही नहीं आ रहा था कि आप चाहते क्या थे, मुझे खाना या फिर…? और आपकी वे लाल-लाल आँखें…, उफ!!! एक पल को तो मेरी जान ही निकल गयी थी", तारा उस दिन को याद करते हुए पूछने लगी।

 "तब मैं हिंसक भेड़िया बन चुका था और शिकार के लिए ही तुम्हारे ऊपर झपटा था लेकिन जैसे ही मैंने तुम्हारी आँखे देखीं मुझे मेरे मैं याद आ गया जिसमें तुम समायी हुई थीं, और बस मेरे अंदर का जानवर मुझे छोड़कर चला गया। तारा उस दिन मैं बहुत खुश था। मैं तुमसे कितनी बातें करना चाहता था लेकिन तुम्हें मेरी भाषा समझमें ही कहाँ आती। लेकिन मैं तुम्हारी हर बात समझता था। मैं जब हिमालय से वापस लौटा तो मुझे यहाँ इस जंगल तक पहुँचने में बहुत दिन लग गए। या शायद कई महीने। इस बीच मुझे बस शिकार ही याद रहा। लेकिन मेरे मन में कहीं ना कहीं यहाँ आकर तुम्हे देखने की इच्छा अवश्य थी। लेकिन फिर भी पहली नज़र में मैंने तुम्हें नहीं पहचाना और तुम पर हिंसक जानवर की तरह हमला कर दिया उसके लिए मुझे माफ़ कर दो। और अब मेरी वजह से तुम्हे भी ये भेड़िया मानव की योनि मिल गयी उसके लिए भी", चंदन हाथ जोड़ते हुए तारा से माफी माँगने लगा।


7.

 "अर्रे!! क्या करते हो आप? मुझपर पाप चढ़ा रहे हो ऐसे मुझसे क्षमा माँगकर!! मुझे सच में बहुत खुशी है कि हम दोनों एक जैसे हो गए हैं। अब हमें एक होने से कोई रोक तो  नहीं पायेगा।

 और फिर कितना आनंद आएगा जब मैं लड़की होकर एक भेड़िये से प्रेम करूंगी, आप लड़का होकर एक मादा भेड़िये से मोहब्बत करोगे या फिर हम दोनों भेड़िया बनकर आपस में…., वैसे मुझे बहुत अच्छा लगता था जब एक हिंसक भेड़िया मेरे सामने  दुम हिलाते हुए मुझे प्यार करता था", तारा ने अर्थपूर्ण स्वर में कहा और फिर शरमा कर खुद ही अपना चेहरा छिपा लिया।

 चंदन बस उसे चुपचाप देख रहा था।

 "अच्छा सुनो आज रात तुम्हें यहीं रहना होगा मेरे पास", चंदन ने कुछ सोचते हुए कहा।

 "क्यों! क्या हुआ? आज मन नहीं भर रहा बातें करके?", तारा ने हँसते हुए पूछा।

 "अरे बुद्धू! भूल गयी आज की रात तुम्हें भेड़िया बनना है। तो क्या रात में गाँव में भेड़िया बनकर आतंक मचओगी? और फिर सबको पता लग जायेगा सो अलग की तुम भेड़िया हो। फिर क्या होगा पता है…? लोग अगले पिछले सारे भेड़ियों के शिकार तुम्हारे सिर पर डालकर तुम्हारा शिकार कर देंगे। मार डालेंगे गाँव वाले तुम्हें पगली", चन्दन उदास होकर कहने लगा।

 "ओह!! ये तो मैंने सोचा ही नहीं। फिर तो मुझे सच में यहीं रहना होगा आज की रात। लेकिन घर में सब? उन्हें क्या कहूँगी?" तारा परेशान होते हुए बोली।

  "तुम ऐसा करो अभी घर चली जाओ और शाम होने से पहले कोई बहाना बनाकर यहाँ आ जाना और मेरे लिए कुछ कपड़े भी ले आना। कल फिर हम दोनों एक साथ गाँव चलेंगे और जल्दी ही मंदिर में विवाह कर लेंगे", चंदन ने उसे समझाते हुए कहा।

 "अच्छा ठीक है जाती हूँ लेकिन आप गुफा से बाहर मत निकलना कहीं भूल जाओ की आप अब भेड़िया नहीं रहे और लग जाओ किसी गीदड़ी के पीछे", तारा ने जोर से हँसते हुए कहा और दुपट्टा खींच कर जल्दी से गुफा के बाहर निकल गयी।

   घर जाकर तारा ने सबको बताया कि उसने मन्दिर में मन्नत मांगी थी कि वह अमावस्या के दिन अकेले रतजगा करेगी तो वह वहाँ जा रही है। कोई उसकी फ़िक़्र ना करे, वह सुबह तक वापस लौट आएगी।

 उसके बाद तारा ने पकवान बनाये और अपने पिताजी के नए कपड़े लेकर शाम होने से पहले ही पहुँच गयी गुफा में।

 तारा ने बाहर से ही आवाज लगाई, "पहलवान जी अंदर ही हो या शिकार पर निकल गए?"

 "अंदर ही हूँ तारा", अंदर से चंदन ने जवाब दिया।

 "तो लो ये कपड़े पहन लो तभी मैं अंदर आऊँ", तारा ने कपड़े अंदर फेंकते हुए कहा।

  "आ जाओ अंदर",चंदन ने कुछ देर बाद आवाज लगायी।

  तारा गुफा के अंदर आ गयी और खाने की पोटली खोलते हुए बोली, "लो जी पहले खाना खा लो फिर रात को इस भेड़ियन को संभालने में पता नहीं आपके साथ क्या हो? और फिर रात को आपको बहुत ताकत की जरूरत पड़ेगी और ताकत तो खाने से ही आएगी।"

 "ऐसा कुछ नहीं है तारा तुम्हे बस मेरी आँखों में देखते रहना है। उसके बाद तुम्हे पता ही नहीं लगेगा कि तुम भेड़िया बनी भी थी या नहीं। एक बात का और ध्यान रखना भूलकर भी गुफा से बाहर मत निकलना नहीं तो शायद मैं भी तुम्हे संभाल नहीं पाऊँगा। क्योंकि ये तुम्हारा पहली बार होगा और अभी तुम्हें खुद को संभालने में समय लगेगा। धीरे-धीरे जब तुम्हें इसकी आदत हो जाएगी तब तुम खुद पर काबू करना सीख जाओगी", चंदन तारा को समझाते हुए बोला।

 "ठीक है मालिक ऐसा ही होगा। अब चलें खाना खाएं? बेकार में ठंडा हो रहा है", तारा ने कहा और पोटली खोलने लगी।

तारा ना जाने क्यों बिल्कुल भी भयभीत नहीं थी अपने भेड़िया बनने की बात से, उल्टा उसकी बातों से लगता था कि वह इसके लिए तैयार है और बहुत उत्साहित भी।

 लेकिन चंदन को बहुत चिंता हो रही थी कि "ना जाने तारा भेड़िया बनकर कैसा व्यवहार करें। कहीं वह ज्यादा हिंसक हो गयी तो वह उसे कैसे संभालेगा?"

 कुछ देर बाद तारा चंदन की गोद में सिर रखकर लेट गयी और उसकी आँखों में देखने लगी।

 "क्या हुआ ऐसे क्या देख रही हो?" चंदन ने उसके वालों में उँगलियाँ घुमाते हुए बड़े प्यार से पूछा।

 "अभ्यास कर रही हूँ पहलवान जी, आज सारी रात मुझे ऐसे ही तो देखना है। वैसे अगर आपको डर लग रहा हो कि मैं भेड़ियन बनकर आपको शिकार ना बना लूँ तो आप मुझे बाँध क्यों नहीं देते इससे आप ?" तारा ने चंदन की ऑंखों में डर की झलक देखते हुए कहा।

  "पागल हो तुम पूरी, ऐसे बाँधने से क्या होगा? अरे बुद्धू हमें खुद को संभालने का अभ्यास करना है जो ऐसे बाँधने से संभव नहीं है। ऐसे तो तुम्हारे और हिंसक हो जाने का खतरा हो सकता है। क्या तुम्हें ऐसा लगता है कि तुम खुद को संभाल नहीं पाओगी तारा?" चंदन ने मुस्कुराते हुए लेकिन चिंतित स्वर में पूछा।

  "मुझे तो आपकी आँखों के अलावा और कुछ देखना अच्छा ही नहीं लग रहा जी। आप परेशान ना हों आपकी आँखे मुझे संभाल लेंगी", तारा ने भी मुस्कुराते हुए कहा और कस कर चंदन के गले लग गयी।

ऐसे ही बातें करते-करते सूरज ने अपनी आखिरी किरण भी समेट ली और अमावस्या की रात वह भी घने जंगल में हो होने के कारण वहाँ कुछ जल्दी ही गहरा अँधेरा पसर गया। इनके पास गुफा को रौशन करने का कोई और साधन भी नहीं था तो दोनों अपने घास के बिछौने पर एक दूसरे की बाहों में समाए लेट गए।

8.

 लगभग आधी रात के समय अचानक तारा के मुँह से गुर्राहट की आवाज निकलने लगी।

 चंदन जो कि सोया नहीं था उस आवाज को सुनकर उठकर बैठ गया और तारा को देखने लगा।

 तारा के पैर धीरे-धीरे मुड़ रहे थे।

 उसके नाखून बढ़ने लगे थे और उसका शरीर बालों से भर रहा था।

 "तारा…! ओ तारा…!" चंदन ने तारा को पुकारा। तारा के मुँह से निकलने वाली गुर्राहट तेज़ हो गयी और वह झटके से उठ गयी। लेकिन बिल्कुल किसी चौपाये जानवर की तरह। 

तारा अब पूरी तरह से भेड़िया बन चुकी थी। वह आँखे लाल किये चंदन पर झपट पड़ी लेकिन चंदन ने उसे थाम लिया और अपने हाथों में उसे मज़बूती से पकड़े-पकड़े उसकी आँखों में अपनी आँखें डाल दीं। 

  "तारा संभालो खुद को…! इधर देखो ये मैं हूँ, तुम्हारा चंदन", चंदन उसकी आँखों में देखते हुए तेज़ आवाज में कह रहा था। 

 तारा ने पहले तो कुछ देर कसमसाकर चंदन की पकड़ से छूटने की कोशिश की लेकिन चंदन की शक्ति के आगे वह बेबस हो गयी। फिर चंदन की आवाज पर वह उसकी आँखों में देखने लगी और उसकी लाल होती आँखों का रंग बदलने लगा।

 धीरे-धीरे वह सामान्य होने लगी, अब उसने छूटने के प्रयास करना बंद कर दिया था। अब तारा के मुँह से गुर्राहट भी नहीं निकल रही थी और उसकी आँखे भी सामान्य हो गयीं थीं।

 चंदन समझ गया कि तारा अब उसकी बात सुन और समझ रही है।

  चंदन ने तारा को अब कसकर खुद से चिपका लिया और तारा ने भी चंदन को अपने पंजों में कस कर उसे अपनी जीभ से चाटना शुरूकर दिया।

 "अब छोड़ो भी तारा या मुझे दबाकर मार ही डालोगी", चंदन ने मुस्कुराकर कहा।

 अचानक तारा के मुँह से तेज गुर्राहट निकली और उसने चंदन को घास के उस बिछौने पर पटक दिया और उसके ऊपर छलांग लगाकर फिर उसकी आँखों में देखने लगी।

 "बदला ले रही हो?" चंदन उसकी इस हरकत पर मुस्कुरा उठा और उसे पकड़कर अपने पास लिटा लिया।

 "आराम कर लो तारा ऐसे जोश दिखाओगी तो कल पूरा शरीर दुखेगा तुम्हारा", चंदन उसकी गर्दन सहलाते हुए बोला।

 बदले में तारा ने उसके गले पर अपनी जीभ रगड़ दी मानों कह रही हो कि उसे यह अच्छा लग रहा है।

 सारी रात तारा चंदन को छेड़ती रही और प्यार जताती रही। बदले में चंदन भी उसके ऊपर उँगलियाँ चलाता रहा।

  

सुबह सूरज की लाली फैलने के साथ ही तारा जमीन पर गिर गयी। उसका शरीर सीधा होने लगा और उसके बाल और नाखून गायब होने लगे। कुछ ही देर में तारा अपने सामान्य रूप में बिछौने पर पड़ी थी। उसके कपड़े  नीचे  जमीन पर पड़े हुए थे।

 "उठो तारा कपड़े पहन लो, मैं बाहर जा रहा हूँ", चंदन ने उसके ऊपर दुपट्टा डालकर कहा और हँसता हुआ बाहर निकल गया।

 तारा चंदन की बात सुनकर शर्मिंदा हो गयी और चुपचाप दुपट्टे में सिमट गयी।

 कुछ देर बात उसने चंदन को पुकारा, "आ जाओ अंदर, कहाँ हो आप।

 चंदन उसकी आवाज सुनकर अंदर आया तो तारा घुटनों में सिर छिपाए बैठी हुई थी।

 "क्या हुआ तारा ऐसे क्यों बैठी हो? वापस तारा बनकर अच्छा नहीं लग रहा क्या भेड़ियन को?" 

 तारा बिना कुछ कहे झटके से उठी और चंदन के गले से लिपट कर खुद को उसके सीने में छिपाने लगी।

 "अरे पागल! शर्माती क्या है? हम प्रेमी हैं और बहुत जल्दी ही पति-पत्नी बन जायेंगे। तब भी क्या ऐसे ही शर्माओगी? वैसे सच कहूँ तो मैंने तारा का कुछ नहीं देखा हाँ भेड़ियन बहुत खूबसूरत थी और भूखी भी", चंदन ने कहा और हँसने लगा।

 "अच्छा बताऊँ अभी आपको…।" तारा झूठे गुस्से में चंदन के सीने पर घूँसे बरसाने लगी और फिर उससे लता की भाँति लिपट गयी।

 "अच्छा चलो अब गाँव चलते हैं, बहुत दिन हो गए परिवार और गाँव वालों से मिले और फिर तुम्हारे परिवार से मिलकर हमारे विवाह की बात भी तो...", चंदन ने तारा को अलग करते हुए कहा।

 तारा ने कुछ नहीं कहा बस हाँ में सिर हिला दिया।

 

चंदन और तारा एक दूसरे का हाथ पकड़े सबसे पहले कुलदेवता के मंदिर गए जहाँ उन्होंने एक साथ पूजा करके उनका धन्यवाद किया।

 उसके बाद वे दोनों चंदन के गांव पहुँचे जहाँ चंदन के परिवार वाले चंदन को जीवित देखकर बहुत खुश हुये और जब चंदन ने कहा कि तारा के कारण ही वह वापस लौट सका और अब वह तारा से विवाह करना चाहता है तो खुशी-खुशी उनके विवाह के लिए मान गए।

 उसके बाद ये दोनों पहुँचे तारा के गाँव में जहाँ सभी गाँव वाले चंदन को जिंदा देखकर बहुत आश्चर्य में पड़ गए क्योंकि सभी लोग चंदन को मरा हुआ मान चुके थे।

 तारा ने अपने घर जाकर परिवार से कहा कि, "रात कुलदेवता ने मुझे कहा की मेरा होने वाला पति दूर जँगल में जिंदगी और मौत के बीच अटका तेरी प्रतीक्षा कर रहा है। यदि मैं जाकर उसे कुलदेवता का प्रसाद खिला दूँ तो उसका जीवन बच जाएगा और फिर उसके साथ विवाह करके मैं सुखी जीवन व्यतीत करूँगी। जब में कुलदेवता के आदेशानुसार जँगल में पहुँची तो मुझे वर्षों पहले गायब हुए चंदन जी बेहोशी की हालत में मिले जैसे किसी ने इन्हें ऊपर से पटका हो। इनके कंधे से बहुत खून भी बह रहा था। तब मैंने कुलदेवता के कहे अनुसार इनके मुँह में पूजा का जल डाला जिससे इनकी बेहोशी दूर हो गयी और फिर इन्होंने कुलदेवता का प्रसाद खाया। अब कुलदेवता की आज्ञानुसार हमें एक दूसरे से विवाह करना है नहीं तो देवता कुपित होकर गाँव को श्राप दे देंगे।"

 तारा के परिजनों के साथ ही सारे ग्रामवासी भी देवता के डर से सहर्ष इनके विवाह के लिए मान गए और पाँच दिन बाद ही चंदन और तारा का विवाह कुलदेवता के मंदिर में दोनों गाँव के लोगों की उपस्थिति में हो गया।

 उस रात चंदन तारा को लेकर उसी जँगल वाली गुफा में चला आया और दोनों ने अपना प्रथम प्रेम मिलन उसी गुफा में घास के बिछौने पर किया।

 कुछ ही दिन बाद चंदन ने फिर से दंगल खेलना शुरू कर दिया। अब चंदन को कोई भी पहलवान पछाड़ नहीं पता था। सच में उसके अंदर असीमित बल आ गया था।

 प्रत्येक माह की पूर्णिमा को चंदन भेड़िया बनता और अमावस्या को तारा। दोनों ही इन दिनों में गुफा में आकर बन्द हो जाते और एक दूसरे से खूब प्रेम करते।

 एक दिन तारा ने चंदन से कहा, "सुनों जी जब भी पूर्णिमा आती है मुझे बहुत बैचेनी होती है जैसे मेरे अंदर कुछ फट रहा है। मुझे उस दिन भेड़िया बनने की बहुत इच्छा होती है। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि पूर्णिमा को मैं भी आपके साथ भेड़ियन बनूँ और अमावस्या को आप मेरे साथ भेड़िया बनें।

 ऐसे भी हमने हर तरह से प्रेम का आनंद लिया है अब मुझे लगता है कि हमें भेड़िया और भेड़ियन के प्रेम का आनंद भी लेना चाहिए "

  चंदन उसकी बात सुनकर हँसने लगा और बोला, "ठीक है अबकी अमावस्या पर तुम मुझे काटकर भेड़िया बना देना और पूर्णिमा पर मैं तुम्हे काटकर भेड़ियन बना दूँगा। फिर हर पूर्णिमा और अमावस्या पर हम दोनों ही भेड़िये बनेंगे और जंगल में मंगल करेंगे।"

 चंदन की बात सुनकर तारा खुश हो गयी और दौड़कर उसके गले लग गयी।

 


9.

चन्दन मन्दिर से लौटा था, उसने देखा कि तारा के मुख पर प्रसन्नता मिश्रित उदासी के भाव छाए हुए थे।

 "क्या हुआ तारा ऐसे चेहरे का खिला कमल मुरझाया हुआ सा क्यों हो रहा है? ऐसा लगता है जैसे तुमने इसे खिलने से रोका हुआ है। क्या बात है मुझे बताओ?" चन्दन ने तारा के चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए पूछा।

 "क… कुछ नहीं हुआ जी।" तारा ने संक्षिप्त उत्तर दिया।

 "कुछ तो जरूर हुआ है तारा मैं क्या तुम्हें जानता नहीं हूँ, ऐसे सोचती रहोगी तो क्या कोई हल निकलेगा? मुझे बताओ बात क्या है फिर हम दोनों मिलकर कोई ना कोई हल निकाल लेंगे।" चन्दन ने तारा की आँखों में झाँकते हुए कहा।

  "सुनो!!! मैं नहीं चाहती कि हमारा होने वाला बच्चा भी हमारी तरह दरिंदा बनकर पैदा हो।" तारा ने कठोर स्वर में कहा और झटके से खुद को छुड़ाकर पाटी पर बैठ गयी।

 "क… क्या कहा तुमने…? बच्चा! हमारा बच्चा?? लेकिन दरिंदा क्यों बनेगा हमारा बच्चा? और उस बात का क्या अर्थ है तारा? आज अचानक ये बच्चे का ख्याल कैसे? कहीं…! क्या ये सच है तारा? क्या तुम गर्भवती…? ओ मेरी प्रिय… ये तो बहुत शुभ सूचना है तारा जो तुम मुझे ऐसे उदास होकर दे रही हो।" चन्दन ने दौड़कर तारा को बाहों में उठा लिया और उसके चेहरे को पागलों की तरह चूमते हुए उसे ले जाकर पलँग पर लिटा दिया। 

 "ज्यादा प्रसन्न होने की जरूरत नहीं है चन्दन जी, जरा सोचिए कि ये बच्चा हमारे किस मिलन का परिणाम है? जब हम तारा और चन्दन थे या जब हम भेड़िये थे? या फिर जब हम…?? चन्दन जी मुझे सच में बहुत डर लग रहा है कि हमारा ये बच्चा क्या बनकर पैदा होगा। मैं नहीं चाहती कि ये भी आधा मानव और आधा भेड़िया बने। आप कुछ कीजिये, कोई तो मार्ग होगा हमें इस श्राप से मुक्ति दिलाने का। कोई तो होगा जो हमें इस भेड़िये की योनि से मुक्त कर सके। चन्दन जी मैं अपने बच्चे को सामान्य इंसान बनकर ही पैदा करना चाहती हूँ इसके लिए चाहे मुझे अपने प्राण ही क्यों ना देने पड़ें।

आप मन्दिर के पुजारी जी से जानने की कोशिश करना शायद वे किसी ऐसे सिद्ध पुरुष को जनते हों जो हमें इस शाप से मुक्ति का रास्ता बता सके।" तारा ने उदासी के स्वर में कहा। उसकी ऑंखों में आँसू भरे थे।

 "ठीक है तारा मैं हर सम्भव प्रयास करूँगा, मैं खुद भी नहीं चाहता कि हमारा बच्चा किसी भी तरह से असमान्य हो। तुम ये चिंता छोड़ दो, हम कोई ना कोई राह अवश्य ही खोज लेंगे।" चन्दन ने दृढ़ विश्वास से कहा और तारा के माथे को चूमकर बाहर निकल गया।

  तारा की चिंता ने चन्दन को सोच में डाल दिया था, और कहीं ना कहीं चन्दन खुद भी तारा की बात से सहमत था कि बच्चे को उसकी गलती की सज़ा क्यों मिले? 

 "मुझे कुछ तो करना होगा। पर्वतों की इन कन्दराओं में एक से बढ़कर एक सिद्ध तपस्या करते हैं, कोई तो हमारी इस समस्या का हल जानता होगा?" चन्दन खुद से ही सवाल-जवाब कर रहा था।

 

10***

 "क्या हुआ जी, कुछ हल मिला? देखिए जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं मेरी चिंता बढ़ती ही जा रही है। और फिर हमारे पास समय भी तो निश्चित ही है। हमें जल्दी ही कुछ उपाय खोजना होगा।" तारा ने चन्दन की आँखों में देखते हुए पूछा।

 "कल मुझे एक महात्मा जी मिले थे, उन्होंने बताया कि ज्योतिष मठ में एक शिवभक्त महात्मा जी तपस्या कर रहे हैं। वे भूत-भविष्य के ज्ञाता हैं और परम् सिद्ध हैं। कई परेशानियाँ तो उनके आशीर्वाद से ही ठीक हो जाती हैं। मैं कल सुबह ही उनसे मिलने के लिए निकलूँगा। मुझे ये विश्वास है कि अवश्य ही वे कोई उपाय जानते होंगे।" चन्दन ने तारा को खुद में समेटते हुए कहा।

 "मैं भी साथ चलूँगी जी, शायद मुझे देखकर उन्हें मेरी हालत पर तरस आ जाये और वे हमें इस श्राप से मुक्त होने का मार्ग बता दें।" तारा ने धीरे से कहा।

 "लेकिन तारा ऐसी हालत में तुम्हारा यात्रा करना क्या ठीक होगा? मैं नहीं चाहता कि तुम्हें और हमारे होने वाले बच्चे को यात्रा के कारण कोई समस्या हो।" चन्दन ने तारा का सिर सहलाते हुए प्रेम से कहा।

 "पता नहीं चन्दन जी हमें अपने इस श्राप मुक्ति के लिए कितनी ही यात्राएँ करनी पड़ें, तो हमें यात्रा से भय नहीं खाना है। मैं अवश्य कल आपके साथ ज्योतिष मठ की ओर चलूँगी। मुझे पूरा विश्वास है कि ईश्वर हमें कोई ना कोई राह अवश्य सुझाएँगे।" तारा ने कहा और यात्रा की तैयारियों में जुट गयी।


 पूरे दो दिन की यात्रा और काफी खोजबीन के बाद चन्दन और तारा को आखिर सन्त शिवदास जी मिल ही गए। पर्वत के ऊपर एक निर्जन गुफा में साधना में लीन। तारा शिवदास जी के सामने हाथ जोड़े बैठ गयी और चन्दन तारा के पीछे। दोनों ने हाथ जोड़े हुए थे और सिर झुकाकर बहुत धीमी आवाज में सन्त जी से प्रार्थना कर रहे थे।

 पूरे दो रात और एक दिन भूखे-प्यासे जागते प्रार्थना करते तारा और चन्दन सन्त जी के सामने डटे रहे।

 तब शिव-शिव कहते हुए शिवदास जी ने आँखें खोल दीं।

 "क्या कष्ट है मेरे बच्चों जो ऐसे कठिन प्रार्थना करने लगे। मैं तुम्हारी कुछ सहायता कर सका तो पुण्य प्राप्त करूँगा मुझे अपनी सारी समस्या बताओ?" शिवदास जी ने बहुत मधुर वाणी में पूछा।

 "महाराज मैं तारा हूँ और ये हैं मेरे पति चन्दन जी। कुछ साल पहले मेरे पति शक्ति प्राप्त करने के लिए हिमालय पर एक जड़ी की खोज में गए थे और……!!!", तारा ने चन्दन और खुद के भेड़िये बनने की सारी कहानी सन्त जी को कह सुनाई और फिर रोते हुए बोली- "सन्त जी अब मैं गर्भवती हूँ और मैं नहीं चाहती कि हमारा बच्चा भी ये श्राप लेकर पैदा हो और लोग उसे दरिंदा कहें। इस लिए हम आपकी शरण में आये हैं। हमें विश्वास है कि आप हमारे इस श्राप से मुक्त होने का कोई ना कोई उपाय अवश्य ही जानते होंगे। स्वामी जी कृपया हमें इस भेड़िया योनि से मुक्त होने का उपाय बताएं, हम बहुत आस लेकर आपके पास आये हैं।" तारा और चन्दन दोनों एक साथ कहते हुए सन्त जी के चरणों में सिर रखकर रोने लगे।

 "देखो बच्चों जैसा कि तुमने बताया, ये श्राप तुम्हें चन्द्रदेव के कोप से लगा है क्योंकि तुमने उनकी जड़ी बिना अनुमति छूकर उनका अपमान किया था। और जब श्राप चंद्रदेव का है तो उसकी मुक्ति भी वही करेंगे।" सन्त जी ने कुछ सोचते हुए कहा।

 "किन्तु कैसे महाराज?" चन्दन और तारा ने एक साथ पूछा।

 "अश्विन माह की पूर्णिमा अर्थात शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा सर्वाधिक प्रसन्न होते हैं। और पृथ्वी पर अमृत वर्षा करते हैं। चन्द्रदेव के आराध्य हैं महादेव शंकर। शरद पूर्णिमा की रात्रि में चन्द्रदेव महादेव शिव से मिलने कैलाश पर्वत पर आते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं।

उस दिन बहुत से लोग रात्रि में खीर बनाकर रख देते हैं इस विश्वास के साथ कि रात्रि में चन्द्रदेव इसमें अमृत डाल देंगे।

ऐसे ही कैलाश पर्वत के पास ही स्थित है राजा मान्धाता का पर्वत जिसपर गन्धर्व कन्याएँ शरदपूर्णिमा की रात्रि में पायस बनाकर चाँदी की कटोरियों में रख देती हैं और सुबह उसे खाती हैं। 

 तुम्हें शरदपूर्णिमा की रात्रि से पहले कैलाश पहुँचना होगा मेरे बच्चों और वहाँ मानसरोवर में स्नान करके भगवान शिव की पूजा करनी होगी जिन्होंने मस्तक पर चन्द्र को धारण किया हुआ है। उसके बाद सुबह तुम मान्धाता के पर्वत पर जाना और वहाँ जो खीर बिखरी मिले उसे प्रसाद रूप में ग्रहण करके वापस आ जाना। मेरा विश्वास है कि तुम दोनों अपने बच्चे सहित इस श्राप से मुक्त हो जाओगे।

 किन्तु शरद ऋतु में कैलाश पर्वत पर पहुँचना लगभग असंभव है। चारों तरफ पर्वतों पर बर्फ जम कर कठोर हो जाती है। और फिर तुम लोगों को दूसरे देश में जाते समय वहाँ की सुरक्षा प्रणाली से भी बचना होगा। तो बहुत सोच-समझकर कदम उठाना मेरे बच्चों।" बाबा शिवदास जी ने कहा और फिर आँखें बंद करके समाधि लगा ली।


11***

"मेरी बात समझो तारा! केवल मार्ग ही नहीं बल्कि गंतव्य भी दुर्गम है। पहले तो हमें गोरखा क्षेत्र को पार करना  होगा जो दुर्गम तो है किन्तु खतरनाक नहीं है लेकिन उसके बाद जब हम तिब्बत के क्षेत्र में प्रवेश करेंगे तब हम चीन की सीमा में होंगे जो कि दुर्गम होने के साथ ही साथ हमारे लिए बहुत अधिक खतरनाक भी होगा क्योंकि चीन के क्षेत्र में बिना अनुमति प्रवेश वर्जित है। और रही बात अनुमति की तो ये भी हमारे लिए असंभव ही है।" चन्दन तारा को समझा रहा था।

 "मैंने सब सोच लिया है, अभी हमारे पास पूरे तीन महीने हैं हमारी तैयारी करने के लिए। और खुद को श्राप से मुक्त करने के लिए। मैंने तुमसे कहा था ना कि मैं अपने प्राण देकर भी अपने बच्चे को दरिंदे के रूप में पैदा होने से बचाऊँगी। अब बस हमें बाकी सब भूलकर तैयारी करनी है। और रही बात दूसरे देशों की सीमा की तो हमें शरदपूर्णिमा के दिन कैलाश तक पहुँचने के बीच तीन अमावस्या और तीन ही पूर्णिमा पड़ेंगी जिस दिन हम पूरी तरह से भेड़िया होते हैं, और इस दिन हमें कोई भी किसी भी देश की सीमा पार करने से नहीं रोक सकता। और फिर भेड़िया बनकर हम लोग आसानी से एक रात में दस बारह कोस दौड़ सकते हैं। उसके बाद पर्वतों की बर्फ में हमें किसी से कोई खतरा नहीं होगा। तो तय रहा कि हम अमावस्या को ही सीमा पार करने और उस अंधेरी रात में ही अधिक से अधिक दूरी दौड़ने पर ध्यान देंगे बाकी यदि हम सामान्य गति से भी चलते रहे तब भी तीन महीने में बहुत आराम से कैलाश पर्वत पर  पहुँच जाएंगे।" तारा ने अपनी योजना बतायी और चन्दन तारा का मुख देखता रहा।

 "ऐसे क्या देख रहे हो, बोलो कुछ क्या समझ आया?" तारा ने गुस्से से चन्दन को घूरते हुए कहा।

 "सब समझ आ गया मेरी 'भेडियन' अब बस तैयारी शुरू कर दो। खाने के लिए सूखे फल और मेवे, स्वाद बदलने के लिए बहुत थोड़ा सा अनाज जो बिना बर्तन भुना जा सके। पानी के लिए छागल। गर्म कपड़े कुछ भेड़िये की फर युक्त खाल और हम दोनों। लो हो गयी तैयारी, किन्तु तीन माह नहीं बल्कि एक ही माह, हम लोग अश्विन माह के पहले ही दिन से अपनी यात्रा आरम्भ करेंगे और अश्विनी अमावस्या के दिन चीन की सीमा भेड़िये के रूप में पर कर जाएंगे। उसके बाद भी हमारे पास पूरे पन्द्रह दिन होंगे शरद पूर्णिमा तक कैलास पहुँचने के लिए।" चन्दन ने तारा की आँखों में देखते हुए कहा और तारा शरमाकर नज़रे झुकाते हुए दौड़कर चन्दन के गले लग गयी।


12 *** 

उसी दिन से चन्दन और तारा सभी प्रमुख शिव मंदिरों में दर्शन और प्रार्थना करने लगे। एक महीने में इन्होंने पंच केदार की यात्रा पूरी कर ली। अब हर समय ये दोनों शिव के पंचाक्षरी मन्त्र 'ॐ नमः शिवाय' का मानसिक जाप करते रहते थे।


एक सप्ताह में पूरी तैयारी करके अश्विन माह के पहले दिन तारा और चन्दन निकल पड़े अपनी यात्रा पर।

 यात्रा के आरम्भ में तारा और चन्दन सबसे पहले बागेश्वर धाम पहुँचे जहाँ इन्होंने रात्रि विश्राम किया और भगवान शिव के पंचाक्षरी मन्त्र का निरंतर मानसिक जाप करते रहे। उसके बाद अगले दिन इनका विश्राम जागेश्वर धाम में हुआ जहाँ भगवान शिव निसंतानों को सन्तान देने के लिए जाने जाते हैं वहाँ इन्होंने रात्रि जागरण करके अपने होने वाले बच्चे की सुरक्षा के लिए प्रार्थना की। अगला पड़ाव इन्होंने पातालभुवनेश्वर में किया, इस सारी यात्रा के दौरान दोनों ही शिव के पंचाक्षरी मन्त्र का निरंतर मानसिक जप कर रहे थे।

 दोपहर का समय था और ये दोनों अस्कोट के अंगलेख चोटी पर स्थित मल्लिकार्जुन शिव के मंदिर में ठहरे थे और मन ही मन भोलेनाथ से अपनी यात्रा की सफलता की प्रार्थना कर रहे थे। 

अश्विन माह की हल्की धूप से हो रही गर्मी में दोपहर बाद इन दोनों ने एक बार फिर अपनी यात्रा की तैयारी की। मार्ग में लिए चारों छागल पानी से भर लिए। कुछ भोजन करके भोलेनाथ को याद करते हुए ये दोनों  कालापानी के रास्ते पर आगे बढ़ गए जहाँ से कई दिन की ऐसी ही यात्रा करते हुए दोनों ने एक दिन धारचूला पहुँचकर दोनों ने ओम पर्वत जिसे आदि कैलास भी कहते हैं के नीचे मन्दिर में रात्रि विश्राम और भोजन का प्रबंध किया।

 उसके बाद लिपुलेख, कालापानी आदि पार करते हुए ये दोनों तिब्बत की सीमा पर पहुँच गए जहाँ से इन्हें चीन देश की सीमा में प्रवेश करना था। अमावस्या आने में तीन दिन का समय था तो ये लोग भारतीय सीमा में स्थित अंतिम पड़ाव लीपुपास में ही ठहरे रहे। क्योंकि आगे इन्हें चीन देश के नियंत्रण वाले क्षेत्र में जाना था और ये नहीं चाहते थे कि इन्हें किसी तरह की कोई मुश्किल हो।

आगे तकलाकोट पार करते ही इन्हें कैलास के बर्फीले रास्ते पर चले जाना था। इनका विचार था कि भेड़िया बनते ही इन्हें अपनी पूरी शक्ति लगा देनी है और फिर जंगल और पर्वत के रास्ते छिपकर अधिक से अधिक मार्ग रात नें ही तय कर लेना है।

 "तकलाकोट पार करने के बाद केवल पच्चीस मील की दूरी पर ही मान्धाता का पर्वत है तारा, और उसके कुछ ही दूरी पर तीर्थपुरी नाम का स्थान है जहाँ ओर भस्मासुर ने तपस्या करके भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त किया था। वहाँ पर गर्म पानी के झरने हैं। हम अपना डेरा मान्धाता पर्वत या फिर गर्म पानी के आसपास ही लगाएँगे और क्योंकि इस मौसम में कैलाश की यात्रा पर अन्य कोई यात्री नहीं आता तो वहाँ पर केवल हम दोनों ही होंगे। सुना है इस समय कई महायोगी और देवता, यक्ष और गन्धर्व भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलास और अन्य सोलह पर्वतों पर जोकि कैलाश के चारों ओर षोडशदल कमल बनाते हैं पर घोर तप करते हैं और शिव कृपा प्राप्त करते हैं।", चन्दन ने तारा को बताया।

 "चन्दन जी हमारे पास भी दस से अधिक दिन होंगे वहाँ पर तप करने के लिए और शिव कृपा प्राप्त करने के लिए। हम भी भगवान शिव को प्रसन्न करके ही लौटेंगे और श्राप से मुक्त हो जायेंगे " तारा ने हाथ जोड़कर आँख बंद करके कहा।

 "जरूर हो जाएंगे तारा, भगवान शिव किसी को निराश नहीं करते। बस आज का दिन निकल जाए फिर रात होते ही हम निकल पड़ेंगे कैलास की ओर। और प्रयास करेंगे कि ये पच्चीस मील रात ही रात में पार करके सुबह होने से पहले हम कैलास क्षेत्र में पहुँच जाएँ।" चन्दन ने भी हाथ जोड़कर भगवान को याद करते हुए कहा।

 "अवश्य पहुँच जाएंगे जी, भेड़ियों की गति और हमारा दृढ़ संकल्प हमें अवश्य रात ही रात में कैलास पहुँचा देगा।" तारा ने जवाब दिया।

 "तो चलो आज भरपूर भोजन और विश्राम कर लिया जाए, क्योंकि कल से हमारी कठिन परीक्षा आरम्भ होगी।" चन्दन ने कहा और तारा मुस्कुरा दी।

 

 अमावस्या का दिन तारा और चन्दन ने भोजन और आराम में ही बिताया। शाम से से दोनों एक ऊँची पर्वत की चोटी पर जाकर बैठ गए जहाँ से दूर तक बर्फीले ढलान वाला रास्ता साफ दिखाई दे रहा था।

 "अँधेरा हो गया चन्दन जी लेकिन अभी तक मैं भेडियन नहीं बन पा रही हूँ, और ना ही आप भेड़िया जाने क्यों आज इतनी देर लग रही है?" आज पहली बार तारा भेड़ियन बनने के लिए इतनी बेचैन हो रही थी।

 "बन जाएंगे तारा परेशान मत हो अभी चन्द्रमा को पूरी तरह पाताल लोक तो पहुँचने दो। आज इतनी जल्दी क्यों है तुम्हें भेड़ियन बनने की?" चन्दन ने तारा की स्थिति समझते हुए भी चुहल की।

 "मैं उड़कर भोले की नगरी पहुँचना चाहती हूँ आज, ये मेरी सन्तान के भविष्य का प्रश्न है जी, आप नहीं समझोगे।" तारा ने गंभीरता से जवाब दिया।

 "प्रश्न तो मेरी सन्तान का भी है तारा, किन्तु ऐसे परेशान होने से कुछ नहीं होगा। जब समय हो जाएगा हम खुद भेड़िये बन जाएँगे, अभी बस खुद को संयमित करते हुए लक्ष्य पर दृष्टि रखो। भेड़िये बनते ही हमें एक साथ उधर दौड़ना है।" चन्दन ने सामने संकेत करते हुए कहा।

 "हाँ पता है मुझे, बस अब जल्दी से हमारा रूप बदले और हम दौड़ लगाएँ। आज आप देखना मेरी तेज़ी आज आप मुझे पकड़ नहीं पाएँगे चन्दन जी।" तारा ने हँसते हुए कहा।

 कुछ ही देर बाद दोनों झुकने लगे और उनका रूप बदलने लगा।

 "तैयार हो?" चन्दन ने पूछा। 

 "हाँ, पूरी तरह।" तारा ने जवाब दिया।

  "दौड़ो" दोनों ने एक साथ कहा।

 

अँधेरी रात में सफेद बर्फ पर दो भेड़िये बहुत तेज़ी से दौड़े चले जा रहे थे, जैसे मानों आपस में दौड़ लगा रहे हों। ये दोनों तारा और चन्दन थे जो भेड़िये के रूप में रास्ता काटते हुए कैलास की ओर बढ़ रहे थे। 

 रात ही रात में चन्दन और तारा पूरी पच्चीस मील दौड़ गए और सुबह की लाली फैलने से पहले ही मान्धाता के पर्वत के नीचे पहुँचकर बर्फ पर ही थक कर लेट गए और अपनी साँसे सामान्य करने लगे।

 कुछ देर बाद जब दोनों उठे तो इनके सामान के साथ ही इनके वस्त्र भी गायब थे।

 "हमारा सारा सामान कहाँ गिर गया चन्दन जी?" तारा ने आस-पास देखते हुए पूछा। 

 "केवल समान ही नहीं तारा, हमारे शरीर के सारे कपड़े भी गायब हैं।" चन्दन ने तारा को देखते हुए कहा तो तारा शरमाकर खुद को छिपाने लगी और उसकी दृष्टि चन्दन पर पड़ी जोकि निर्वस्त्र बर्फ पर बैठा हुआ जोर से हँस रहा था।

 "क्या हुआ भेडियन? तुम भूल गयीं की जब हम भेड़िये बनते हैं तो हमारे कपड़े हमसे दूर हो जाते हैं फिर सामान के साथ आने का तो प्रश्न ही नहीं उठता।" चन्दन ने जवाब दिया।

 "फिर अब!!! अब क्या होगा? हम बिना कपड़ों के इस बर्फ में कैसे रहेंगे और हमारे भोजन का प्रबंध कैसे होगा?" तारा बहुत चिंतित होकर बोली।

 "परेशान मत हो तारा मैं कुछ सोचता हूँ। पहले हमें इस पर्वत में कोई गुफा खोजनी होगी। उसके बाद हम वस्त्रों और भोजन के बारे में सोचेंगे। पहले थकान उतार कर कुछ सोचने की अवस्था तक तो पहुँचे।" चन्दन ने उसे धीरज बंधाते हुए कहा।

 "ठीक है आप उस तरफ देखो और मैं इधर खोजती हूँ। शायद कोई कन्दरा मिल जाये।" तारा ने कहा और दोनों विपरीत दिशाओं में मान्धाता पर्वत में किसी गुफा की तलाश में निकल पड़े।

  तारा लगातार मन ही मन 'ॐ नमः शिवाय' मन्त्र का जाप करती हुई शिव से शरण के लिए प्रार्थना कर रही थी। अभी वह बीस पच्चीस कदम ही चली होगी कि हवा के झोंके के साथ एक लाल चुनरी उसके ऊपर आ गिरी। ये देखकर तारा के मन में भक्ति और दृढ़ हो गयी। उसे भगवान शिव और माता पार्वती पर पूरी आस्था हो गयी। उसे ऐसा लगा जैसे खुद माता पार्वती ने उसे ये चुनरी आशीर्वाद रूप में दी है।

 तारा ने चुनरी को साड़ी की तरह लपेटा और कुछ सोचकर घूँघट ओढ़े हुए वापस लौटने लगी। इधर चन्दन को पर्वत में पत्थरों के बीच छोटी सी कन्दरा मिल गयी थी, तो वह भी तारा की बुलाने के लिए लौट रहा था। अचानक चन्दन ने लाल वस्त्र लपेटे घूँघट लिए तारा को देखा तो उसे पहचान नहीं पाया और दण्डवत करते हुए बोला- "आप अप्सरा हैं या गन्धर्व कन्या? आप जो भी हैं देवी मैं बहुत बड़ी समस्या में हूँ। यहाँ मेरे और मेरी पत्नी के पास पहनने के लिए ना तो वस्त्र हैं और ना ही भोजन के लिए कुछ। आप निश्चित ही कोई अलौकिक सुंदरी हैं और आप हमारी सहायता कर सकती हैं।"

 चन्दन की बात सुनकर तारा जोर से हँसने लगी, चन्दन तारा की आवाज पहचानकर उठ खड़ा हुआ और पूछने लगा- "तारा!!! ये तुम हो? तुम्हें ये वस्त्र कहाँ से मिला?" 

 "आशीर्वाद है माता पार्वती का, उन्होंने दी है मुझे ये लाल चुनरी। सीधे उनके आशीर्वाद स्वरूप मेरे सिर पर आ गिरी थी ये।" तारा ने घूंघट खोलते हुए कहा।

 "ये तो बहुत अच्छी बात है तारा, मुझे भी एक कन्दरा मिल गयी है। जल्दी ही मैं भी तन ढकने का कोई उपाय कर लूंगा। आओ चलें पहले उस कन्दरा में चलकर कुछ आराम कर लें फिर गर्म पानी के झरने खोजकर स्नान आदि करेंगे।" चन्दन ने कहा और तारा उसके साथ कन्दरा की ओर बढ़ गयी।

 

 सूरज की किरणें लाल से सफेद होने लगी थीं, चन्दन और तारा दोनों तीर्थपुरी नामक स्थान पर गर्म पानी में स्नान का आनंद ले रहे थे।

 चन्दन ने जल में डुबकी लगायी और जब वह बाहर आया तो उसके सिर पर एक पुराना सफेद रंग का अंगोछा ढका हुआ था, जो अवश्य ही कोई तीर्थयात्री छोड़ गया था।

 "देखो तारा मुझे भी शिव का आशीर्वाद मिल गया… ये देखो वस्त्र। अब मुझे भी निर्वस्त्र नहीं भटकना पड़ेगा। अब बस हमारे भोजन का प्रबंध और करना है हमें।" चन्दन ने अंगोछा कमर में लपेटते हुए कहा।

 "हाँ ये शिवजी का आशीर्वाद ही है चन्दन जी। अब मुझे दृढ़ विश्वास हो गया है कि हम यहाँ से निराश नहीं लौटेंगे। और रही बात भोजन प्रबन्ध की तो क्यों ना हम भी तपस्या में बैठ जायें, और केवल इस गर्म जल का सेवन करें?" तारा ने आस्था में डूबते हुए कहा।

 "बात तो ठीक है तारा किन्तु ऐसी अवस्था में ये कठिन तप क्या तुम्हारे लिए ठीक होगा?" चन्दन के स्वर में चिंता थी।

 "हम शिव के स्थान पर हैं चन्दन जी, तो हमारे अच्छे-बुरे की चिंता हम इनपर ही छोड़ देते हैं और पूर्णिमा तक के बचे हुए दिन हम तप करके ही बिताएंगे। आप सन्त जी के बताए अनुसार एक शिवलिंग बनाओ जिस पर शिव ने चन्द्र धारण किया हो।" तारा ने याद करते हुए कहा।

 "हाँ ये सही रहेगा, चलो मिलकर बनाते हैं।" चन्दन ने कहा और दोनों ने मिलकर बर्फ से एक सुंदर शिवलिंग का निर्माण किया जो चन्द्र युक्त था।

 अब दोनों ने पुनः स्नान किया और बैठ गए तपस्या में।

 

13

*** शरद पूर्णिमा आ चुकी थी। तारा और चन्दन तप करते हुए पूरे बर्फ से ढक गए थे लेकिन ना तो उनकी आस्था कम हुई थी और ना ही उनके तप का तेज। 

 शरद पूर्णिमा की रात जब चन्द्रमा ने कैलाश को छुआ तब चारों ओर जैसे स्वर्ण ही बिखर गया। 

 तारा और चन्दन दोनों एक पैर पर खड़े होकर तप कर रहे थे। वे दोनों बर्फ से ढके एकदम सफेद हो रहे थे। रात जैसे-जैसे बढ़ रही थी वैसे-वैसे उनकी चिंता बढ़ रही थी कि कहीं दोनों भेड़िया…! किन्तु उनकी इच्छा शक्ति उन्हें भेड़िये बनने से रोक रही थी।

 अब इन दोनों ने जोर-जोर से 'ॐ नमः शिवाय' का जाप शुरू कर दिया था। अचानक उनके सामने बहुत तेज़ प्रकाश पुंज प्रकट हुआ और उनके शरीर पर जमी बर्फ गायब हो गयी।

 उन दोनों ने एक दिव्य ध्वनि स्पष्ट सुनी- "आपका तप सफल हुआ, अब आप दोनों श्राप मुक्त हैं।" और उसके बाद उन्होंने चन्द्रदेव की जाते हुए स्पष्ट देखा।

 कुछ ही देर में सुबह हो गयी। तारा और चन्दन ने मानसरोवर में स्नान करके कैलाश की परिक्रमा की और फिर वापस मान्धाता पर्वत पर आ गए। वहाँ उन्हें कई पत्तो-दोनों में खीर बिखरी मिली, और वहीं पर इन्हें बिल्कुल नए कपड़ों की जोड़ी भी रखी मिली। जिसे उन्होंने प्रसाद रूप में ग्रहण किया और सकुशल वापस लौट आये।

 समय पूरा होने पर तारा ने एक सुंदर और स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया और उसके बाद वह कभी भेड़िये नहीं बने।

 किन्तु चन्दन कभी-कभी मज़ाक में तारा को अभी भी भेडियन कह देता है।





समाप्त



 ©नृपेंद्र शर्मा "सागर"

9045548008







Thursday, June 10, 2021

बेटियाँ

बेटी भावी माँ होती है,
सृष्टि की धुरी होती है।
सहम रही क्यों आज बेटियां?
डरी कोख में क्यों रोती हैं?

कन्या भ्रूण नष्ट होती हैं।
माएँ भी सम्मलित होती हैं।
बहू कहाँ से तुम लाओगे?
कन्या तो वह भी होती हैं।

सारे बस बेटा चाहते हैं।
कन्या भ्रूण नष्ट करते हैं।
कन्या तो देवी होती हैं।
कन्या से सब क्यों डरते हैं?

कन्या सर्वथा ही पूजित हैं।
इन्हें बचाना सदा उचित है।
दुर्गा-काली बाल सुंदरी।
सारे रूपों में कन्या हैं।

आओ मिलकर प्रण करते हैं।
बेटी का रक्षण करते हैं।
करें भर्त्सना मिलकर उनकी।
कन्या भूर्ण जो नष्ट करते हैं।

नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश
मोबाइल:-9045548008

हालात

विधा:-कविता

शीर्षक:-हालात

गुम हूँ मगर मैं खोया नहीं हूँ।
कई रातों से मैं सोया नहीं हूँ।
सूखे नहीं आँसू मेरी आँखों के।
मर्द हूँ इसलिए मैं रोया नहीं हूँ।।

आज बदले हैं हालात सभी के।
भुखमरी और लाचारी बढ़ी है।
परेशान मैं भी हूँ इस समय में।
आँसू किसी को दिखाया नहीं हूँ।।

बह रही है पीड़ा मेरे अंतर्मन में।
लावा से ज्यादा तपिस लिए।
मैंने छिपाए हैं जो आँसू अपने।
अंदर बहने से रोक पाया नहीं हूँ।।

चारों तरफ भय का माहौल है।
लोग चिंतित हैं भविष्य के लिए।
चिंता मुझे भी है मेरे परिवार की।
उन्हें तंग हालात बताया नहीं हूँ।।

क्या करूँ कैसे करूँ मज़बूरी है।
लोगों की छिन गयी मज़दूरी है।
काम मेरा भी कुछ चलता नहीं।
मध्यवर्गीय हूँ तो जताया नहीं है।।


नृपेंद्र शर्मा "सागर"