विधा:-कविता
शीर्षक:-हालात
गुम हूँ मगर मैं खोया नहीं हूँ।
कई रातों से मैं सोया नहीं हूँ।
सूखे नहीं आँसू मेरी आँखों के।
मर्द हूँ इसलिए मैं रोया नहीं हूँ।।
आज बदले हैं हालात सभी के।
भुखमरी और लाचारी बढ़ी है।
परेशान मैं भी हूँ इस समय में।
आँसू किसी को दिखाया नहीं हूँ।।
बह रही है पीड़ा मेरे अंतर्मन में।
लावा से ज्यादा तपिस लिए।
मैंने छिपाए हैं जो आँसू अपने।
अंदर बहने से रोक पाया नहीं हूँ।।
चारों तरफ भय का माहौल है।
लोग चिंतित हैं भविष्य के लिए।
चिंता मुझे भी है मेरे परिवार की।
उन्हें तंग हालात बताया नहीं हूँ।।
क्या करूँ कैसे करूँ मज़बूरी है।
लोगों की छिन गयी मज़दूरी है।
काम मेरा भी कुछ चलता नहीं।
मध्यवर्गीय हूँ तो जताया नहीं है।।
नृपेंद्र शर्मा "सागर"
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