Thursday, June 18, 2020

#कहानी/ चिंटू की चतुराई


चिन्टू एक नन्हा चूहा है चिकचिक ओर चुकचुक की इकलौती औलाद।
यूँ तो चुकचुक को कई बार प्रसव हुआ कई संताने जन्मी लेकिन हर बार कालिया लहरी उनको जिंदा निगल गया।
कालिया एक बहुत बड़ा नाग है जो चलते चूहों उछलते मेंढकों ओर चिड़ियों के अंडों पर अपना जन्मजात अधिकार समझता है।
चिन्टू भी अभी तक इसीलिए बचा हुआ है कियूंकि उसके बाहर खुले में घूमने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा हुआ है।
आसपास के सारे चूहा परिवार इसी दंश से पीड़ित हैं कि कालिया लहरी उनके वंश को मिटाने पर तुला है।
किसी का एक तो किसी के दो बच्चे बमुश्किल बचे हुए हैं।
सारे चूहे कालिया का नाम सुनकर थरथर कांपने लगते हैं।

हम ऐसे कब तक कालिया के भय से मरणासन्न जीवन जिएंगे?? चिन्टू ने चूहों के सामने प्रश्न रखा।

क्या करें हम बेटा चिन्टू, अगर लहरी चाहे तो हम सभी को एक बार में ही निगल सकता है।
हम चूहे हैं और वह नाग, एक बूढ़े चूहे ने आंसू गिराकर कहा।

तो क्या हम कभी जी नहीं पायेंगे?? और फिर ऐसे डर डर कर जीने से तो अच्छा है कि हम उसका भोजन ही बन जाएं।
लेकिन चिन्टू यूँ जानबूझ कर मौत के मुंह में कोन जाना चाहेगा?, चिकचिक ने उदासी से कहा।
किउं ना हम सारे मिलकर एक साथ उस पर हमला करके उसे काट खाएं क्या होगा ज्यादा से ज्यादा दो चार लोगों को खा जाएगा लेकिन आने वाली पीढ़ी तो उसके भय से सुरक्षित हो जाएगी।
लेकिन कौन कुर्बानी देगा?? सभी के चेहरे लटक गए और सब चूहे चुपचाप सर झुका के चले गए।

बहुत हो चुका अब, कब तक हमारे लोग कालिया का निवाला बनते रहेंगे??आज उसने टुक टुक के बच्चे निगले हैं कल सुनिया को खा गया था हो सकता है कल को मुझे या आपमें से किसी को,,, चिन्टू गुस्से से बिफर रहा था।
टुक टुक ओर टिक टिक सर झुकाये आंसू बहा रहे थे ,अभी तो मेरे बच्चों ने आंखे भी नहीं खोली थी बेटा चिन्टू, टिकटिक जोर से रोने लगी।
अब रोने से क्या होगा चाची, हम बुजदिल चूहे क्या बस रोते ही रहेंगे, ?
नहीं अब बस,अब हमें कुछ करना ही होगा चिन्टू कुछ निश्चय करके खड़ा हो गया।
लेकिन क्या?? सभी ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा।
हमें एक बिल तैयार करने में कितना समय लगता है बतातो?? चिन्टू ने सभी चूहों से पूछा।

ज्यादा से ज्यादा चार पांच दिन, सभी ने एक मत से जबाब दिया।

तो क्या आप सभी मुझे अपने पांच दिन देंगे?? चिन्टू ने पूछा।

हाँ हाँ सभी एक स्वर में बोले।
तो ठीक है ध्यान से सुनो ओर समझो, ओर चिन्टू उन्हें अपनी योजना समझाने लगा।

उस घटना को आज सात दिन हो गए इस बीच एक भी चूहा बाहर घूमता नही मिला कालिया बहुत परेशान है कि सारे चूहे गए कहाँ, वह भूख से परेशान था।
गुनगुनी धूप खिली हुई है कालिया सर को घास की छाया में किये धूप का मज़ा ले रहा है तभी एक चूहा तेज़ी से उसके सामने से निकल गया, कालिया चौकन्ना हो गया उसे चूहे की गंध अपनी ओर आकर्षित कर रही है।
कालिया ने सर उठा कर देखा चिन्टू चूहा लापरवाही से एक झाड़ी के पास बैठा कुछ कुतर रहा है।
कालिया खुशी से झूम उठा और सावधानी से उसके पीछे रेंगने लगा जैसे ही कालिया ने चूहे पर झपट्टा मार चूहा बिल में सरक गया और उसके पीछे कालिया भी बिल में घुस गया कालिया बिल में दूर अंधेरे में चूहे की गंध सूंघता घुसता चला गया, आगे बिल की चौड़ाई बहुत कम थी और कालिया उसमें लगभग फंस ही गया और इससे पहले की वह बापस लौटता उसके ऊपर कंकर पत्थर और मिट्टी का ढेर गिरने लगा ।
कालिया बहुत कोशिशों के बाद भी हिल ना सका और उस बिल में ही उसकी जीवित कब्र बन गयी।
आज उसका लालच उसके पापों पर भारी पड़ गया।
चिन्टू ने उसके लिए एक ऐसी योजना बनाई थी जिसमें एक लंबा पतला बिल था जिसमें सैकड़ो बिल जुड़े हुए थे, उनमें चूहों ने छोटे छोटे कंकर पत्थर और मिट्टी भर रखी थी।
जब कालिया चिन्टू के पीछे बिल में घुसा तो चिन्टू तो घूम कर दूसरे बिल में घुस कर दूसरी ओर निकल गया और बाकी चूहों ने मिट्टी कंकर सरकाकर कालिया को दफन कर दिया।
सारे चूहे चिन्टू की चालाकी की प्रसंशा कर रहे थे और चिन्टू को अपना राजा बना कर जय जय कार कर रहे थे।

©नृपेन्द्र शर्मा"सागर"

#कहानी/ गांव के रिश्ते

उत्तरप्रदेश का एक छोटा सा गांव है जिसमें बस दो ही विरादरी के लोग रहते हैं।
गांव में सभी भाईचारा रखते हैं सुखदुख में सभी एक दूसरे के साथी हैं।
पूरे गाँव की आबादी होगी यहि कोई सात आठ सौ।

गांव की अपनी एक पंचायत है जिसमें दोनों जाती के लोग समान संख्या में पंच हैं।
पंचायत का निर्णय किसी के भी लिए ईस्वर वाक्य होता है, जो निर्णय एक बार हो गया वह बदल नहीं सकता गांव में रहने की यही शर्त है।
गांव में चारों ओर खुशहाली है, अधिकतर लोग सब्जी उगाते हैं , बाकी अन्य अनाज ,दलहन, तिलहन आदि भी भरपूर पैदा होता है लेकिन मुख्यतः सब्जी की खेती ही प्राथमिकता होती है।

कुछ बर्ष पूर्व तक,

गांव के पूर्व में कल्लू का घर था, कुछ कच्चा ,कुछ पक्का, कल्लू एक अल्हड़, जवान और मेहनती नौजवान था।
उसकी मेहनत से इसकी फसलें गांव भर में चर्चा पाती थीं।
उसकी दुधारू भैंसे देखकर हर कोई ईर्ष्या करता था।
वहीं  गांव के पश्चिमी छोर पर घर था माधोसिंग का, कच्चा मकान, छोटा लेकिन व्यवस्थित।

माधोसिंग के पास ज्यादा जमीन नहीं थी अतः वह दूसरे किसानों की जमीनों में मजदूरी करता था।
माधोसिंग की एक बेटी थी 'नीला' अठारह उन्नीस वर्ष की, अल्हड़, बेफिक्र, हवा में बादल सी उड़ती, चिड़िया सी चहकती, सांवली, सुंदर और खूब हंसमुख थी नीला।

नीला काम मे माधोसिंग का हाथ बंटाती खुद भी खेतों में मटर तोड़ने, गाजर उखाड़ने या निराई गुड़ाई करने का काम करती थी।

आज माधोसिंग को कल्लू( कालीचरण सिंह) ने बुलाया था कुछ आलू निकालकर और मटर तोड़ कर मंडी भेजना था।

लेकिन माधोसिंग को अचानक कहीं बाहर जाना पड़ा, तो उसने नीला से कहा था कि वह जाकर मटर की तुड़ाई कर दे। बाकी आलू कल्लू खुद निकाल लेगा और माधोसिंग लौटकर मंडी छोड़ आएगा।

उछलती, कूदती, नीला जब खेतों पर पहुंची तो कल्लू खेत में दण्ड पेल रहा था, नीला उसके सामने जाकर खड़ी हो गयी।

"आज पिताजी को कहीं जाना पड़ गया तो वे तो नई आएंगे मैं फली तोड़ दूंगी तुम आलू  खोद लो", नीला जोर से बोली।

कल्लू ने मुंडी उठाकर नीला को देखा तो देखता ही रह गया, नीला का सांवरा मुखड़ा लंबे काले बाल गुलाबी होंठ, गहरी काली चमकदार आंखे, कल्लू उनमें डूबकर ही रह गया वह सब कुछ भूलकर एकटक नीला को देख रहा था।

नीला भी कल्लू को यूं बाबला हुए उसे घूरते देख शरमा गयी,उसकी  जबानी के अरमान कल्लू की इन नज़रों का अर्थ अच्छी तरह समझ रहे थे।
नीला को आज कल्लू का इस तरह सुध-बुध भूल कर उसे देखना अच्छा लग रहा था, वह खुद कल्लू के भरपूर जवान अल्हड़ रूप पर मुग्ध थी।
"क्या हुआ ऐसे क्या देख रहे हो कालीचरण??" नीला धीरे से मुस्कुरा कर बोली।

"क.. क ..कुछ नहीं नीलू , तेरे बापू कहाँ गए ? सब ठीक तो है?" 
कल्लू की आंखें अब भी नीला के मुखड़े पर ही जमी हुई थीं।

"हां सब ठीक है, बस उन्हें कुछ काम आ गया तो जाना पड़ा, तीन चार घण्टे में आ जाएंगे पिताजी।" नीलू मुस्कुरा कर बोली।

"अच्छा, फिर तू अकेली मटर तोड़ेगी?" कल्लू ने उसकी आँखों में देखते हुए पूछा।

"हां तब तक तुम आलू खोदो", नीला मुस्कुरा कर बोली।

"क्यों ना पहले हम मिलकर मटर तोड़ें, उसके बाद मैं आलू खोदूँगा तुम बीनना", कल्लू बराबर उसकी आँखों में देखते हुए बोला।

"ठीक है लेकिन ये आज तुम मुझे ऐसे क्यों घूर रहे हो जैसे पहले कभी देखा ना हो मुझे", नीलू मन ही मन खुश होते हुए बोली।

"आयें,, ह हाँ, आज तुम बहुत अलग लग रही हो नीलू,, बहुत सुंदर", कल्लू ने धीरे से कहा।

"सच??", नीलू ने शरमा कर धीरे से कहा।

"सच तेरी कसम,  आज जाने क्यों तुझे देखते रहने का मन कर रहा है नीलू", कल्लू मुस्कुरा कर बोला।

नीला और कल्लू दोनों एक साथ मटर की फलियां तोड़ने लगे जिसमें न जाने कितनी बार इनकी उंगलियां आपस में टकराई या कहो टकरायी गयीं।
और आंखे तो ऐसे चिपकी रहीं मानो बरसों की बिछड़ी हों।
नीला के बापू शाम को आये तब तक दोनों(नीला और कल्लू) आँखों ही आंखों में एक रिश्ता जोड़ चुके थे।

कल्लू ओर नीला इस एक ही मुलाकात में एक दूसरे के हो गए,ऐसा नहीं था कि दोनों पहली बार मिले थे लेकिन असज की मुलाकात ही कुछ अलग थी।
रात भर दोनों एक दूसरे के बारे में ही सोचते रहे और सुबह फिर दौड़े खेत में जहां उन्हें मटर तोड़ने की नहीं आंखे जोड़ने की जल्दी थी।

अब नीला कल्लू के अलाबा किसी ओर के खेतों में काम नहीं करती,,काम ना रहने पर भी रोज नीला कल्लू के खेतों में जाती है ,दोनों देर तक कभी अरहर तो कभी तिल की फसल से घास निकालते हैं।
आज उनके पहले मिलन को साल से ज्यादा हो गया, अब तो दबी जुबान में लोग इनकी चर्चा भी करने लगे हैं।


आज सरपंच जी ने कल्लू को बुलाया और पूछा ," कल्लू ये जो तुम्हारे ओर माधो की लड़की के बारे में फैली है क्या ये बात सच है?" 
देखो हमारा छोटा सा गांव है सभी लोगों में भाई चारे के माहौल है।
ओर फिर माधो ओर तुम तो विरादरी के भी हो तो तुम्हारा ओर नीला का रिश्ता भाई बहन से ज्यादा नहीं हो सकता मुखे यकीन है तुम गांव की परंपरा और अपनी मर्यादा का ध्यान रखोगे।

सरपंच से मिलकर लौट कर कल्लू बहुत परेशान हो गया।
क्यों वह दिल के हाथों मजबूर हुए क्यों उनका रिश्ता दोस्ती से आगे ,,,
ओर फिर अब तो ये चाहकर भी भाई बहन नहीं बन सकते, उसे याद आ गयी वह बरसात जब दोनों अरहर की घास निकाल रहे थे।
उस दिन बारिश ने इनके तन के साथ मन को भी भिगो दिया था , ये दोनों अपने प्यार में सीमाएं लांघ गए थे उस दिन।
कल्लू ने उसी दिन नीला की मांग में खेत की मिट्टी से निशानी लगा कर इसे प्रकृति को साक्षी मान कर रिश्ता मजबूत कर लिया था, और उसके बाद बारिश में भीगते हुए दोनों पिघल कर एक दूसरे में समा कर बरसात से बह गए थे।

नीला के आते ही कल्लू ने उदास होकर सारी बात उसे बतायी।
तो!! अब। क्या होगा जी?? नीला तो लगभग रोने ही लगी।।

चल,, कल्लू ने नीला का हाथ कसकर पकड़ लिया और चल दिया नीला के घर।

घर जाकर उसने माधोसिंग के पांव छूकर कहा," हम प्रेम करते हैं चाचा  विवाह भी कर लिया हमने इंदर देवता के सामने अब बस तुम इसे गांव के सामने मान लो"।
अब हमारा रिश्ता बहुत आगे बढ़ गत है चाचा, कल्लू आंखों में पानी भर लाया।

मेरे मानने से कुछ नही होगा बच्चों, हमारी पनचेत इस बात को नई मानती , गांव के सारे लड़के लड़की भाई बहन हो सके है बस बाकी कुछ नई।
सरपंच ने मुझे भी धमकी दी कि मैं अपनी लड़की को समझा दूँ, नहीं तो मुझे भी सज़ा मिलेगी।

पंचेत की नज़र में एक गांव के लोगो की शादी पाप है, ओर ऐसे पाप से गांव पे मुशीबत अस सकती है।

लेकिन चाचा हमतो गांव के अलग अलग छोर पर रहते हैं इर फिर एक ही जाती बिरादरी,,,

वो सब ठीक है बेटा लेकिन पंचेत नही मानेगी।

तो चाचा मैं गांव छोड़के शहर में?? 
नही होगा बेटा कोई नहीं मानेगा तब भी।

तू नीला को भूल जा कल्लू छोड़ दे अपनी जिद।

नही चाचा मैं पंचयात से बात करूंगा कल्लू कहकर चला गया।

पंचयात बैठी हुई थी सभी एक ही बात कह रहे थे," एक गांव के लड़के लड़की की शादी, मतलब भाई बहन की शादी मतलब महापाप।
हम गांव में ये पाप हरगिज नहीं होने देंगे, इस रक्षा बंधन को नीला पंचात के सामने कल्लू को राखी बांधेगी बस , सरपंच ने फैसला सुना दिया।

चार दिन बाद ही तो रक्षाबंधन है, कल्लू सोच रहा था इधर नीला का रो रोकर बुरा हाल था, माधोसिंग उसे समझा रहा था, पंचायत के फैसले से माधो भी दुखी था, वह कहीं न7 कहीं चाहता था कि उसकी इकलौती बेटी उसकी आँखों के सामने रहे,, ओर फिर कल्लू जैसा खुशाल मेहनती किसान उसे कहाँ मिलेगा।
लेकिन पंचयात से विरोध करके भी तो,,, माधोसिंग की आंखे गीली थीं।

हम आज रात ही गांव छोड़ देंगे चाचा कल्लू ने अपना फैसला सुनाया,, जबाब में माधोसिंग कुछ नही बोला बस उसे जाते देखता रहा।


रात को कल्लू रात भर नीलू का इंतज़ार करता रहा सड़क पर जहां से बस पकड़कर उन्हें शहर जाना था लेकिन नीलू नहीं आयी।

सुबह हो चली थी कल्लू उदास परेशान धीरे धीरे गांव लौट रहा था तभी उसे उसका दोस्त बिल्लू दौड़ता आता दिखा,, 

बो नीला,, नीला!! मर गयी रात कल्लू। बिल्लू हाँफते हुए बोला।
क्या मेरी नीलू!! कल्लू सर पकड़कर बैठ गया।

माधोसिंग जोर जोर से रो रहा था छाती पीट रहा था तभी कल्लू दौड़ता हुआ आया और माधोसिंग से लिपट कर रोने लगा,, क्या हुआ तंग चाचा नीलू को??ऐसे अचानक कैसे??

उल्टी दस्त लगे थे उसे रात भर में पेट का पानी खत्म हो गया इर दवाई इलाज न होने से मर गयी।
सरपँच ने कहा उसके चाहते पर इस वक़्त दुख नहीं बल्कि कुटिल मुस्कान थी।

चलो चलो रोने धोने से कुछ नहीं होगा लाश को ठिकाने लगाओ जल्दी पूरा गांव तब तक कुछ नहीं खायेगा जब तक इसकी चिता नहीं जलेगी।

नीलू की लाश को अर्थी में रखते समय कल्लू ने धीरे से उसकी मांग में सिंदूर लगा दिया, और श्मशान में माधो की मदद करने के बहाने अग्नि भी कल्लू ने ही,,,
कल्लू ने धीरे से अपने पति होने के कर्तव्य निभा लिए।

कल्लू ने उसके बाद शादी नहीं की, अब माधोसिंग ओर कल्लू साथ ही रहते हैं, कल्लू माधोसिंग के लिए उसका बेटा ही है।
माधोसिंग ने कल्लू को कब का बता दिया की नीलू को उस दिन किसी ने जहर,,, लेकिन दोनों पंचायत के डर से खामोश ही रहते हैं।

©नृपेन्द्र शर्मा"सागर"

#यात्रा वृतांत/ नीलकंठ की यात्रा

अगस्त, 2007 बरसात अपने पूरे यौवन पर थी बादल कई बार दिन को ही रात बनाकर खेल रहे थे।
सावन का पावन महीना था भक्त भीगते झूमते बाबा(भोलेनाथ)" को मनाने कांवर उठाये हरिद्वार से जल भरकर अपने अपने श्रद्धा धाम की और दौड़ रहे थे।
चारों और वातावरण भोले की बम से गूँज रहा था।

"सावन की शिवरात्री को क्यों ना नीलकण्ठ में जाकर जल चढ़या जाए",मैंने अपने मित्र नरेंद्र सिंह आरोलिया से कहा।
बहुत अच्छा विचार है यार चलो प्रोग्राम बनाते हैं, "कल तय करते हैं कैसे चलना है और बाकी लोगों से भी पूछ लेते हैं नरेंद्र ने कहा।

अगले दिन मैं नरेंद्र, के.के.सिंह के साथ हमारे तीन और मित्रों
का जाने का तय हुआ कि रविवार को सुबह बस पकड़ेंगे पूरा दिन हरिद्वार घूमेंगे उसके बाद शाम को निकल जाएंगे ऋषिकेश के लिए।
रात को गीता भवन में रुकेंगे वे सुबह चार बजे से नीलकण्ठ की चढ़ाई,,,

कई दिन से मौसम अमूमन साफ ही था, हमारी तैयारी पूरी थी शनिवार की शाम को ही हमने अपने बैग सही कर लिए माता जी ने पूरियां और सुखी सब्जी की सारी तैयारी कर दी , सुबह जब तक तुम नहाकर तैयार होंगे पूरी बन जाएगी माँ ने कहा।
भोलेनाथ की जय बोल कर प्रसन्न मन से शनिवार की रात को मैं सो गया।

रात कोई दो बजे बदल गड़गड़ाने की जोर की आवाजें आने लगी देखते ही देखते मूसलाधार बारिश होने लगी सुबह के पांच बजे तक चारों ओर पानी ही पानी हो गया, बारिश के रूप में जैसे भोले नाथ हमारी परीक्षा ले रहे थे हम हाथ जोड़े प्रार्थना कर रहे थे लेकिन बारिश के रूप में बाबा का क्रोध बढ़ता ही जा रहा था।

"क्या किया जाय" ?? मैंने नरेंद्र को फ़ोन किया।
नरेंद्र ओर कृष्णकुमार एक ही साथ एक मकान में किराए से रहते थे और मैं कोई दस मिनट के रास्ते पर दूसरे मकान में हम सभी किराये से रहते थे।
करना क्या है चलेंगे , सारी तैयारी पूरी है अब हम किसी भी परीक्षा के लिए तैयार हैं।

ठीक है फिर तुम सामने देखो क्या कोई बस मिलेगी काशीपुर जाने के लिए? 
हमारे बाकी तीन मित्र काशीपुर(उधमसिंह नगर उत्तराखण्ड) में रहते थे और हरिद्वार की बस हमें वहीं से मिलनी थी।

कोई बस नहीं है यार चारो तरफ घुटनो तक पानी भरा हुआ है और बारिश भी रुकने का नाम नहीं ले रही, नरेंद्र ने मुझे फ़ोन करके बताया।
फिर?? मैंने पूछा।
किसी तरह काशीपुर पहुंच जाएं फिर तो रोडवेज की बस मिल जाएगी नरेंद्र ने कहा।
ठीक है मैं बाइक लेकर आता हूँ तुम लोग निकलो मैंने अपना बैग लिया और बाइक उठा कर भोले की जय बोल कर निकल गया।

हम तीन लोग बाइक से भरी बारिश में किसी तरह काशीपुर पहुंचे कई बार तो मार्ग में इतना पानी भरा था कि बाइक का बस हैन्डल ही दिख रहा था,कितनी ही बार पानी में तैरते सांप हमारा रास्ता काट रहे थे।
हम लगातार जय भोले की बोल रहे थे।

काशीपुर पहुंच कर पाता लगा कि बाकी तीनों लोगों का प्रोग्राम कैंसिल है इतनी बारिश में उनकी हिम्मत नहीं हुई चलने की।
हमने बाइक उनके रूम पर खड़ी की ओर कभी घुटनों कभी कमर तक पानी में होकर आ गये बस अड्डे पर।

हमारे कपड़े पूरी तरह भीगे हुए थे बारिश थमने के कपि आसार नहीं थे कहीं ना कहीं मन मे ख्याल था कि कहीं हमने कोई गलती तो नहीं कि ऐसे खराब मौसम में चलने का निर्णय करके।
लेकिन मन मे एक ही भाव था कि बाबा का बुलाबा है तो सब ठीक होगा।

आधे घण्टे बाद एक बस आयी जो हरिद्वार जा रही थी उसमें आठ दस लोग बैठे हुए थे उन्हें देखकर हमे लगा कि हम अकेले नहीं है इस बरसात में सफर करने बाले।
बस में बैठकर सबसे पहले हमने कपड़े बदले, कपड़े क्या बस लुंगी और बनियान,, बाकी गीले कपड़े निचोड़ कर बस की खिड़की के सामने डाल लिए और नीलकण्ठ बाबा को याद करते उनकी जय बोलते रहे।

ठीक दस बजे हम लोग हरिद्वार पहुंच गए अब बारिश बहुत हल्की हो गयी थी हमलोग ने खुशी खुशी हर की पैड़ी पर स्नान किया गंगा मैया के मंदिर में दर्शन करके जल भरकर हम आगे चल दिये।
आगे हमने वैष्णोदेवी मन्दिर, भारतमाता मन्दिर और अन्य कई मंदिरों में दर्शन किया जो सारे एक ही रास्ते पर है हरिद्वार ऋषिकेश मार्ग पर उसके आगे शांतिकुंज है।

शाम चार बजे हम लोग ऋषिकेश पहुंच गए, रामझूला पार करके हमने वेदांतनिकेन में रहने की व्यवस्था की ओर समान रखकर घूमने निकल गए, बारिश अभी भी माध्यम गति से हो रही थी।
हमने रामझूला के पास शाम को फिर गंगास्नान किया और गंगा आरती में शामिल हुए, गङ्गा आरती बहुत भव्य तरीके से होती है बहुत मोहक दर्शय होता है।
मन आत्मा भक्ति से भर गए, मार्ग के सारे कष्ट सारी थकान मिट गई।
उसके बाद हमने चोटी बाला भोजनालय में खाना खाया और धर्मशाला आकर आराम किया।
हमारे पास पहनने के लिए एक भी सूखा कपड़ा नहीं था तो वही, लुंगी ओर कुर्ता,,,

सुबह तीन बजे उठ कर हम नित्यकर्मों से निपट कर फिर गंगा मैया के पास पहुंचे हमने गङ्गा स्नान करके सुबह ठीक चार बजे पैदल मार्ग से नीलकण्ठ की यात्रा नीलकण्ठ की जय के साथ प्रारम्भ की।

नीलकण्ठ धाम ऋषिकेश रामझूला से पैदल 16 किलोमीटर ओर मोटरमार्ग से 25 किलोमीटर की दूरी पर है।
ये स्थान "मुनि की रेती", में आता है।
मोटर मार्ग से लगातार टैक्सियाँ मिलती रहती हैं।
हमने पैदल मार्ग चुना और पूरे जोश से चलने लगे नीलकण्ठ की जय बोलते हुए।
मार्ग बहुत सँकरा और ऊबड़खाबड़ था ऊपर से लगातार होती बारिश से फिसलन भी बहुत हो रही थी फिर भी नीलकण्ठ की जय बाबा की बम के नारे और लोगों की बढ़ती भीड़ हमारे पैरों में पंख लगा रही थी।

कई जगह चढ़ाई इतनी अधिक थी कि हमारी सांस फूल जाती, ऊपर से पूरे मार्ग में पीने का पानी उपलब्ध नहीं था (पानी की बोतल साथ ले कर जाएँ)हर जगह बस जलजीरा शिकंजी कोल्डड्रिंक ही बिक रही थी।

कोई आठ बजे हम लोग मंदिर के सामने लगी आधा किलोमीटर लंबी लाइन में जा लगे मन मे बहुत प्रसन्नता थी कि अब हमें हमारे इष्ट के दर्शन होने बाले हैं।
लगातार जयकार करते भजन गाते लोग और धीरे धीरे सरकती लाइन,,,
11 बजे तक हम लोग नीलकण्ठ बाबा पर जल चढ़ा कर बाहर आ गए नीलकण्ठ धाम एक गहरी घाटी में स्थित है चारो ओर ऊंची पहाड़ियां और बीच में रख गोल घाटी बहुत सुंदर लगती है।
सावन में तो वहां इतनी भीड़ हो जाती है कि दर्शन करना मुश्किल होता है।
हमारे पूरे मार्ग में बारिश एक पल भी नहीं रुकी थी, नीलकण्ठ घाटी में ऐसे भी ज्यादा बारिश होती है।

वहाँ से हमलोग ऊपर सिद्धबाबा के दर्शन करने पहुंचे जो स्थान हनुमान जी को समर्पित है, वहाँ की चढ़ाई बिल्कुल खड़ी है, सांस फूल जाती है पहुंचते पहुंचते।

वहाँ दर्शन करके हमलोगों ने माता पार्वती के दर्शन के लिए पार्वती धाम का मार्ग लिया , पार्वती मन्दिर नीलकण्ठ से कोई चार किलोमीटर ऊपर है रास्ता ऊबड़खाबड़ ओर सँकरा था ऊपर से चढ़ाई भी अधिक थी(अब पार्वती मंदिर के दो किलोमीटर पास तक मोटर मार्ग बन गया है)
कोई दो घण्टे में हम लोग माता पार्वती के सामने थे, माता का रूप बहुत सौम्य वात्सलय है मन्दिर भी काफी बड़ा है और वहाँ पर्वत के दर्शय भी बहुत रमणीक हैं।

वहां मीठे नीम(कड़ी पत्ता) की पकोड़ी बहुत प्रसिद्ध हैं जो आपको पूरे नीलकण्ठ मार्ग में मिलेगी।
वहां से कोई दो कोलोमिटर ऊपर झिलमिल गुफा है और झिलमिल से कोई आधा किलोमीटर गणेश गुफा।
गणेश गुफा तो लगता है सीधे खड़े पर्वत में ही बनी है ।

बापसी में हमने मोटर मार्ग लिया और छः बजे तक बापस हरिद्वार पहुंच गए।
हमारी इस पूरी यात्रा में कभी भी बरसात बन्द नहीं हुई और मौसम की भयावहता ने एक पल के लिए भी हमारा ध्यान हमारे इष्ट के चरणों से हटने नहीं दिया।
रात कोई दो बजे तक हम लोग अपने घर पहुंच गए थे।

उसी बर्ष हमलोगों ने अपने खुद के मकान बनाने प्रारम्भ कर दिए थे ये हमारी उस परीक्षा का फल था।
अगली शिवरात्रि(फरवरी) हमने अपने खुद के घर में मनाई।
हम तीनों लोग अब अपने खुद के मकानों में रहते हैं।
और प्रयास रहता है कि बर्ष में एक बार बाबा नीलकण्ठ का धन्यवाद करने उनके धाम पर सर अवश्य झुका आएं।
इस यात्रा को हम कभी नहीं भूलेंगे बहुत अविस्मरणीय यात्रा थी वह।

बहुत शक्ति है नीलकण्ठ बाबा की , जो मांगो मिलता है बस भक्ति अच्छी और श्रद्धा सच्ची होनी चाहिए।
बोलिये नीलकण्ठ बाबा की जय।
नृपेन्द्र शर्मा

#कहानी/ मूर्ति

आज फिर खाना नहीं बना फूलो?? हारा थका लालू झोंपड़ी के बाहर ठंडे चूल्हे को गीली आंखों से देखता हुआ बोला।

कहाँ से बने कित्ते दिन है गए तुम कुछ लाये कमा के फूलो तुनकती हुई बोली।
क्या करूँ फूलो आजकल मूर्ति बनती ही नहीं ठीक से कई पत्थर टूट जाते हैं कुछ मूर्ति बनत भी है तो उसमें सुघड़ता नई आबे।
अब बता मेरा क्या दोष है मैं तो सुबह से शाम लगा देता हूँ मूर्ति गढ़ने में, लालू दीवार का सहारा लेकर जमीन पर बैठते हुए बोला।
लालू  35-40 साल का कृषकाय युवक है जिसकी आंखे पीली होकर गढ्ढे में धंस गयी हैं, वह मंदिर से कुछ दूर पत्थर की मूर्ति बना कर बेचता है, फूलवती उसकी पत्नी है, उसे भी जीर्णता ने बेरंग बना दिया है कभी उसे देखकर लालू कहता था, "मेरी फूलो भगवान की बनाई सबसे सुंदर मूर्ति है" और आखिर हो भी क्यों ना मैं भी तो उस भगवान की इतनी सुंदर मूर्तियां गढ़ता हूँ, ना जाने कितने मंदिरों में मेरी बनाई मूर्ति की पूजा होती। लालू गर्व से कहता तभी तो उसने मेरे लिए संसार की सबसे सुंदर मूर्ति बनाकर भेजी, और फूलो शर्म से लाल होकर उसमे समा जाती।

लालू की बनाई सुंदर मुर्तिया अच्छे पैसे में बिकती थी घर ठीक ठाक चल रहा था लेकिन कुछ दिन से मंदिर के आस पास प्लास्टर ऑफ पेरिस से मूर्ति बनाने वाले लोग आ गए उनकी बनाई मूर्ति देखने में सुंदर बजन में हल्की ओर कीमत में आधी से भी कम, अस्तु लालू के काम पर इसका बुरा असर हुआ, उसकी बनाई मूर्ति की बिक्री घट कर ना के बराबर हो गयी।
काम मन्द होने से घर में भुखमरी के हालात बनने लगे,उसी बीच फूलो को दो बार बच्चा हुआ लेकिन कुपोषण ओर कमजोरी के चलते दोनों बार मोत उन्हें अपने साथ ले गयी और उसके बाद तो डॉक्टर ने उन्हें मना कर दिया कि अब अगर बच्चा हुआ तो फूलो की जिंदगी बचाना मुश्किल हो जाएगा।

कोई बात नहीं फूलो ऐसे भी हम बच्चों को हैब खिला पिला नहीं सकते तो हमें उन्हें दुनिया में लाना भी नहीं चाहिए और फिर अबतो उस ऊपर बाले की भी यही इच्छा है। लालू ने फूलो को सीने से लगा कर प्यार से समझाया था।
फूलों ने भी दिल पर पत्थर रख इसे अपनी किस्मत मान लिया था।

लेकिन आज तीन दिन से लालू एक भी मूर्ति बेच नहीं पाया है  घर में  अनाज का दाना तक नहीं है लालू इतना कमजोर हो रहा है कि पत्थर तराशने जैसा बारीक काम उसके लिए असम्भव हो चला है, आज फूलो पहली बार दुखी और बराज होकर बोली," अरे मन्दिर के बाहर बैठा भिखारी भी कभी भूखा नहीं सोता, तुम तो उसकी मूर्ति बनाते हो जिनमे लोग इसके दर्शन करके उस भगवान की पूजा करते हैं।
जाने क्या माया है तुम्हारे भगबान की जो एक उसके नाम पर मांग खाता है और जिसकी बजह से लोग उसका नाम बार बार लेते हैं वो मूर्ति बाला भूखा सोता है, बन्द करो तुम भी ये मूर्ति का काम अरे इससे तो अच्छा दोनों भीख ही मांग खाये, फूलो की आंखों से आंसू बहने लगे आज वह जी भर कर भगवान को कोस रही थी जो मन में आ रहा था बुरा भला कह रही थी।
और लालू हाथ जोड़े बस एक ही प्रार्थना कर रहा था कि हे मालिक ये नहीं जानती की कितनी चोटें खाकर एक पत्थर मूर्ति बन पाता है अगर ऐसे दुख पीड़ा से टूट जाये तो उसकी किस्मत सड़क की कंकर बनकर रह जाती है ,मैं जानता हूँ प्रभु ये हमारी परीक्षा है और तूने जरूर हमारे लिए कुछ अच्छा सोच रखा होगा, उसे विस्वास था कि भगवान फूलो की गलती को माफ करेगा और उनका जीवन एक दिन ज़रूर बदलेगा।

इसी प्रार्थना में लालू को कब नींद आयी उसे पता भी नहीं चला उसकी नींद खुली एक तेज़ आवाज से जो उसकी झोपड़ी का दरवाजा जोर जोर से पीटने से आ रही थी।

लालू जल्दी से उठ कर बाहर आया बाहर दो बड़ी बड़ी गाड़ियां खड़ी थीं और कुछ लोग  उसके सामने खड़े थे।

जी मालिक??लालू डरा सहमा हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया।
तुम्ही मूर्तिकार हो? उनमें से एक नए पूछा।

जी सरकार मैं ही हूँ।

सेठजी एक बड़ा मंदिर बना रहे हैं उसमें बीस पच्चीस मूर्तियां बनानी हैं बना लोगे?उस व्यक्ति ने पूछा।

जी मालिक हो जाएगा।
ठीक है चलो हमारे साथ, इस बार सेठजी ने कहा।
वो हुजूर मेरी पत्नी?? लालू ने कुछ बोलना चाहा।

आप दोनों के रहने खाने का इंतज़ाम मंदिर के पास ही रहेगा ये लो कुछ रुपये ओर हमारा पता तुम लोग एक हफ्ते में यहाँ से कम खत्म करके आ जाना, कहकर ये लोग चले गए।
लालू हाथ जोड़े देर तक उन्हें जाते देखता रहा।

ये ले फूलो पूरे पांच हजार रुपए हैं , जब पेशगी इतनी बड़ी है तो कम कितना बड़ा होगा सोच।
आज भगवान ने तेरी सुन ली भगवान चल अब चलने की तैयारी कर, मैं बाजार से कुछ खाने पीने का सामान लाता हूँ तू ये पैसे सम्भाल।
कहकर लालू तेज़ी से निकल गया, और फूला भगवान के सामने आंसू बहाती बैठी अपनी गलतियों के लिए प्रयाश्चित करती उनकी कृपा के लिए धन्यवाद देने लगी।

आज उसे समझ आ गया था कि पत्थर को मूर्ति बनने के लिए कुछ चोट साहनी ही पड़ती हैं।

©नृपेन्द्र शर्मा "सागर"

#कहानी/ डर

आधी रात बीत चुकी थी, देवेंद्र अपनी रेंजर से बहुत तेजी से पैडल मरते हुए घर लौट रहा था उसे आज अपनी प्रेमिका की बातों में समय का ध्यान ही नहीं रहा।
उसने पहले अपनी प्रेमिका को उसके घर छोड़ा और फिर अपने घर की ओर चल दिया।

आज की रात और दिनों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही अँधेरी थी ऊपर से  हवा की तेरी सूखे पत्तों को सहलाकर हँसा रही थी जिनकी हँसी की 
खर्र..! खर्र.. चकककक चरर्त्तत...!! 
की कर्कश ध्वनि वातावरण में अलग ही भय उतपन्न कर रही थी।

माहौल इतना डरावना था कि गर्मी में भी देवेंद्र के जिस्म का हर रोंया खड़ा था जैसे किसी डर को देखकर शेर की गर्दन के बाल खड़े ही जाते हैं साही के कांटे खड़े हो जाते हैं।

अभी देवेंद्र काली नदी के पुल के बीच में ही पहुँचा था कि उसे सामने किसी के होने का अहसास हुआ उसे डर तो पहले से ही लग रहा था लेकिन अब तो उसकी साँसे राजधानी  की रफ्तार से चलने लगीं।
देवेंद्र ने अपनी रेंजर की गति को बढ़ाने में अपने फेफड़ों की पूरी ताकत लगा दी तभी वह साया उसे ठीक सामने खड़ा नज़र आया, उसके हाथ ब्रेक लीवर पर केस गए, रेंजर चिर्रर.... र्रर!! की आवाज करती हुई उस साये से एक फुट की दूरी पर रुक गयी।

देवेंद्र समने खड़े अजनबी को देखने लगा उसकी बड़ी बड़ी आंखे थी सर पर टोपी पहने हुए था।
लेकिन उसके चेहरे का कोई भी हिस्सा नज़र नहीं आ रहा था वहां बिल्कुल स्याह अँधेरा था।
देवेंद्र उसे देखकर बहुत डर गया उसके मुंह से अचानक तेज चीख निकली, 
भ...उ...त...!

तभी उस साये ने कहा, कहाँ घूम रहे हो इतनी रात को? तुम्हे पता नही देश मे कोरोना के चलते इमरजेंसी के हालात हैं , पूरे देश में कर्फ्यू लगा हुआ है और तुम सायकल पर आधी रात को हवा खोरी कर रहे हो इस बार तो चेतावनी देकर छोड़ रहा हूँ।अगली बार दिखे तो 144 में अंदर कर दूंगा।

तब देवेंद्र ने ठीक से देखा वह साया एक काला मास्क पहने हुए पुलिस वाला था।

देवेंद्र भाई चुपचाप लौट आये क्योंकि वह जानते हैं कि भूतों को तो फिर भी समझाया जा सकता है किंतु पुलिस......😢😢😢
नृपेंद्र शर्मा "सागर"

#कहानी/ तलाक के बाद

दिसम्बर का महीना था, ठिठुरती सर्दी का मौसम था। दिल्ली से ट्रेन कोई शाम आठ-सवा आठ पर चली थी। सर्दी के कारण ट्रेन लगभग खाली थी और शाम छः बजे सूरज डूबने से आठ बजे तक भरपूर रात का अहसास होने लगा था।
रिजर्वेशन कोच में चार दोस्त- मनोज, रोहन, शकील और नौशाद एक साइड की तीनों और सामने की एक नीचे बाली सीट पर लेटे हुए थे जिन पर उनका रिज़र्वेशन था।

अभी ट्रेन सीटी दे कर धीरे-धीरे खिसकने लगी थी तभी एक महिला बुर्का डाले, जल्दी से ट्रेन में चढ़ी और उसके पीछे उसके शौहर ने एक अटैची ओर दो बैग लगभग फेंक कर मारे। महिला की गोद में एक छोटा बच्चा था। वह एक हाथ से उसे संभाले, दूसरे से बैग खिसकाने लगी। तभी एक बच्चे को पकड़े बड़बड़ाते हुए उसके शौहर ने ट्रेन में एंट्री ली-

"सब तुम्हारी बजह से हुआ रुखसाना!! आज तो ट्रेन छूट ही गयी थी", वह लगभग चिल्लाते हुए समान घसीटने लगा।

"अब इसमें मेरी क्या गलती है मियां? मैने तो कहा था रिक्शा कर लीजिए, लेकिन आप ही ने तो कहा चार कदम पर ही तो स्टेशन है",  बेगम ने धीरे से कहा।

"अच्छा-अच्छा! हमेशा मैं ही गलत होता हूँ, चार पैसे बचाने की सोचूं तब भी और तुमसे मुतालिक कोई बात कहूँ तब भी। तुम थोड़ा तेज़ भी तो चल सकती थीं। अच्छा अब आओ ये रही हमारी सीटें, एक ये बीच बाली और दूसरी सबसे ऊपर की", वह समान इकट्ठा करते हुए बोला।
इनकी बक -बक से, ये सारे दोस्त भी नीचे की सीट पर आकर बैठ गए थे और इनकी बातों का मज़ा ले रहे थे।

"क्या हुआ भाई जान कोई परेशानी है क्या?" नौशाद ने पूछा।

"कुछ नहीं भाई,बस थोड़ा लेट हो गए थे पहुंचने में; ट्रेन बस चलते-चलते पकड़ी।अब छोटे बच्चों के साथ ऊपर की सीटें!!एक और मुसीबत है। बैसे आप लोग कहाँ तक जाएँगे?" उसने पूछा।

"बंगलौर तक", नौशाद ने कहा।

"मेरा नाम शमशाद है, और ये मेरी बेगम रुखसाना है। हम भी बंगलौर जाएंगे, भाई जान अगर आप लोगों को दिक्कत ना हो तो क्या नीचे वाली सीटें आप लोग हमारे साथ बदल सकते हैं? अब देखिए न रात का मुआमला है, नींद आनी लाजमी है, ऐसे में कोई बच्चा अगर गिर गया तो....? ऐसे तो हम पूरी एहतियात रखेंगे लेकिन फिर भी.... " शमशाद ने इल्तिजा की।

नौशाद ने अपने साथियों की ओर देखा और उनकी आंख का इशारा समझ कर हाँ कर दी।

"हाँ हाँ क्यों नही भाई जान, इसमें क्या मुश्किल है", बैसे मैं हूँ नौशाद अहमद, ये मेरा दोस्त शकील हुसैन, ये मनोज और ये हैं रोहन।
आप आराम से नीचे सो जाना हम लोग ऊपर शिफ्ट हो जाएंगे, नौशाद ने सबका तार्रुफ़ कराते हुए कहा।
ट्रेन पूरी रफ्तार में चल रही थी और साथ ही जारी थी शमशाद और रुखसाना की नोकझोंक- 
"अरे रुखसाना तुम बिस्किट के कितने पैकट लायी थी?अब एक भी नही मिल रहा", शमशाद बैग में टटोलते हुए बोला।

"चार लायी थी जी, अब खत्म हो गए होंगे! पूरे दो घण्टे से तुम दोनों अब्बू-बेटा खाये जो जा रहे हो",  रुखसाना झल्ला कर बोली।

"तो क्या भूखे रहें? मुंह को ताला लगा कर बैठ जाएं? तुम्हे पता था रास्ता लंबा है, इतने में चार पैकेट से क्या होता है?तुम्हे ज्यादा लेने चाहिए थे रुखसाना; अब बोलो मुझे या गुड्डू को भूख लगी तो क्या खाएंगे?" शमशाद गुस्से से चीखा।

"मुझे ही खा लो तुम!! भुक्कड़ लोगो, हर वक्त बकरी की तरह मुंह चलता है तुम्हारा! अरे ले लेंगे किसी हॉकर से, या किसी टेशन से।
अब क्या घर से बोझा लादकर भागना सही था? तुमसे तो ये भी न हुआ की इतना समान है, दो मासूम बच्चे हैं; तो रिक्शा ही बुला लो। आखिर कितने रुपए बचे होंगे,बीस-तीस ही ना? उससे ज्यादा का नुकसान हो जाता अगर ट्रेन छूट जाती तो; या जल्दबाजी में किसी को चोट लग जाती", रुखसाना ताने मारती हुई बोली।

"तुम न रुखसाना! खुद इतनी लापरवाह हो, और तुम्हे कुछ कहो तो लड़ने लगती हो। अरे तुम्हे पता है यहाँ ट्रेन में दो की चीज़ नो में मिलती है। लेकिन तुम्हे क्या, रुपए तो हमे कमाने पड़ते हैं; तुम्हे रुपए की कीमत क्या पता! कभी रुपए देखे हो खानदान ने तब तो जानो, सब तो साले कंगले हैं तुम्हारे खानदान में। सफर में जाते हो तब तो पता हो कि कैसे जाना चाहिए! और फिर सफर में खाने-पीने को लेने के लिए पैसे भी तो होने चाहिए", शमशाद ताने मारने लगा।

"अच्छा मेरा खानदान कंगला है....! और जनाब तो जैसे निज़ाम के वारिस हैं, बड़ा याकूत का खजाना भरा है आप के खानदान की तिजोरियों में तो। सब पता है मियां आपके खानदान का मुझे! अब मेरा ज्यादा मुंह मत खुलबाओ; देखा था हुजूर की बारात में कैसे बिरयानी और यखनी में घुसे जा रहे थे लोग- गोया हफ़्तों से ग़िज़ा नसीब ना हुई हो।
और गुलाबजामुन तो मुंह के साथ-साथ जेबों में भी भर रहे थे; जैसे जिंदगी में पहली दफा देखी हो। आये बड़े खानदान के बारे में कहने बाले, अरे तुम्हारे अब्बा-अम्मी छः दफा आये थे दामन फैला कर, तब जाकर हमने निकाह के लिए हाँ की थी। हम नहीं मरे जा रहे थे आपके खानदान में आने को", रुखसाना बाकायदा नाराज़ हो गयी।

"अच्छा हम मरे जा रहे थे? और वो जो तुम्हारे बड़े-अब्बू रोज पार्क में हमारे बड़े मियां से तुम्हारी तारीफें करते थे! कोई लायक लड़का पूछते थे?" शमशाद मियां भी चुप ना रहे।

" लड़का पूछ भी लिया अगर तो इसका मतलब ये कब से हो गया कि अपने ही पोते का रिश्ता भेज दो? अरे हमारे बड़े अब्बू ने तो दोस्ती की खातिर अपनेपन में उन्हें बता दिया और बडे मियां खुद के पोते के लिए ही लार टपकाने लगे। मुझे तो ये रिश्ता रत्तीभर भी पसन्द नहीं था; वो तो बस घर वालो की इज़्ज़त रखने के लिए कुबूल बोल दिया," रुखसाना शमशाद को चिढ़ाते हुए बोली।

"अच्छा तुम्हे पसंद नहीं था??" शमशाद बिफर गया। हमे लगा था तुम हमसे मोहबत करती हो रुखसाना लेकिन अगर तुम मज़बूरी में ये निकाह निभा रही हो तो ये तो गलत है, और जबरदस्ती किसी को अपने साथ रिश्ते में बांध कर रखना गुनाह है। तो मैं आज! अभी! तुम्हे तुम्हारी सारी ज़िम्मेदारी से आज़ाद करता हूँ ।मैं तुम्हे अपनी बेगम होने के हर फ़र्ज़ से आज़ाद करता हूँ।
मैं तुझे तलाक देता हूँ रुखसाना-
तलाक!
तलाक!!
तलाक!!!"
शमशाद एक झटके में कह गया। 
रुखसाना चीखती हुए उसे रोकती रह गयी।

उनकी इस हरकत से, उनका सारा झगड़ा सुनकर मज़ा ले रहे, ये चारों भी सन्न रह गए।
अब वहां पूरी तरह से सन्नाटा था सारे लोग जैसे इस घटना से जम से गये थे।

रुखसाना सुबकते हुए सिसकियां ले रही थी, शमशाद का चेहरा ऐसे हो रहा था जैसे किसी जुआरी का-अपना सब कुछ हार जाने पर होता है। वह बार-बार अपना सर पीट रहा था।

"ये आपने क्या किया शमशाद भाई, अरे पति-पत्नी की इस मीठी नोक-झोंक से तो जिंदगी मज़ेदार बनती है, और आपने तो आप दोनों की ही जिंदगी एक सज़ा सी बना कर रख दी। अब आपके गुस्से ने आपकी जिंदगी को गुनाह में धकेल दिया; अरे आपने ये कुफ़्र तोड़ने से पहले अपने मासूम बच्चों के बारे में भी नहीं सोचा?" नौशाद शमशाद के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला।

"ये क्या हो गया मुझसे!! खुदा कसम! मुझे तो पता भी नहीं चला कि कब मैं ये गुनाह कर गया। उफ्फ मेरे मौला! तू तो जनता है ये गुनाह मुझसे बिल्कुल बेख्याली में हुआ है। मैं अपने बच्चों की कसम! खाकर कहता हूं मैने जान बूझकर कुछ नही किया।
अरे मैं तो उन नापाक-लफ़्ज़ों को अपनी जुबान पर भी कभी लाना नहीं चाहता। फिर भी खुदा जाने कैसे मेरे मुंह से निकल गए।
मैं तो अपनी रुखसाना से बेइंतहा मोहब्बत करता हूँ। ये तो बस उसे छेड़ने में मुझे मज़ा आता है", शमशाद की आँखें आँसुओं से भर गयीं और वह सुबकते हुए आगे बोला-
"अरे रुखसाना! तेरे बिना मैं मर ही जाऊंगा; अल्लाह कसम!! तू ही तो जिंदगी है मेरी। अरे पागल तू तो जानती है, मैं बचपन से तुझ पर मरता था। या मेरे खुदा!! मुझे मुआफ़ करदे।
मैं अपनी मोहब्बत से अलग नहीं रह पाऊंगा।
लेकिन 'शरीयत' उसके मुत्तालिक तो अब... हलाला...उफ्फ!! ..हमें मौलवी साब को बताना पड़ेगा; या खुदा! मेरी रुखसाना को दूसरे मर्द के साथ, नहीं-नहीं, ये मेरी इज़्ज़त है", ओर शमशाद वाकायदा रोने लगा।

इधर रुखसाना पागलों की तरह बस रोये जा रही थी। ट्रेन के इस कूपे में इनके इलावा कोई शख्स नहीं था
रात का कोई बारह का टाइम हो रहा था, ठंड में बाहर चाँद-तारे भी ठिठुर रहे थे। या खुद को कोहरे की चादर में लपेट लिए थे। लेकिन ऐसी सर्दी की रात में इस डब्बे में मौजूद, हर शख्स के माथे पर पसीना छलक रहा था और उनके दिल धौकनी बने हुए थे।

"भाई जान कुरान हमने भी पढ़ी है, शरीयत हम भी समझते हैं, और उसमें जानबूझ कर हलाला को भी कुफ़्र ही माना गया है।
उसके मुतालिक तो ऐसे तलाक के बाद औरत अगर दूसरा निकाह करती है और संयोग से अगर दूसरा शौहर भी तलाक दे देता है, तो वह पहले पति से दोबारा निकाह कर सकती है। लेकिन ऐसा संयोग से ही होना चाहिए , जानबूझ कर पैसे लेकर हलाला कराना भी गलत ही है।" नौशाद और शकील ने शमशाद को समझाया।

"लेकिन भाई हमें दीन के मुतालिक तो चलना ही पड़ेगा। और कोई रास्ता है क्या हमारे पास?" , शमशाद बहुत उदास होकर बोला।

"फिर अब आप क्या करेंगे?" अबकी रुखसाना रोते हुए बोली।

"सीधे जाकर मौलवी साब को बताएंगे और उनसे इल्तिजा करेंगे कि वे हमारे साथ-साथ रहने की कोई राह निकालें, शरीयत के मुताल्लिक।" शमशाद ने जैसे फैसला कर लिया।

" यानी हलाला", रुखसाना अनजाने भय से सिहर उठी, उसकी आंखें आंसुओं से भर गईं।

"आप बच्चों को संभाल लेना, अब मैं तो खुदकुशी कर लुंगी; क्योंकि मेने भी हमेशा से बस तुमसे ही मोहब्बत की है शमशाद।
मुझे तुम्हारे अलाबा कोई कोई छुए, ये मुझे हरगिज गवारा नहीं होगा। किसी गैर मर्द के साथ.....! नहीं-नही चाहे वह कोई मेरे निकाह में ही कियूं न हो; मेरा दिल किसी ओर को कबूल नहीं करेगा शमशाद।
हम नही मानते ऐसे शरीयत के कानून को, जो किसी के जज्बातों को ना समझकर अपने जबरदस्ती के कानून चलाये।
हम या तो सीधे घर चलेंगे और भूल जाएंगे की इधर ट्रेन में क्या हुआ। नहीं तो हम खुदकुशी करेंगे बस, आप सोच लीजिये की आपको क्या करना है। अगर आप मौलवी के पास गए तो हम खत्म कर लेंगे खुद को बस," रुकसाना ने अपना फैसला सुना दिया।

"लेकिन रुखसाना खुदकुशी को भी तो गुनाह माना गया है। और हम गुनाह से बचने के लिए....", शमशाद ने कुछ कहना चाहा।

"खुदकुशी नहीं है ये शमशाद मियां!! ये तो कत्ल है मेरा, जो आपने वे मनहूस लफ्ज बोल कर किया है। और ना जाने कितने शौहर अपनी नादानी में अपनी बीबियों का करते हैं, ये नापाक लफ्ज बोलकर।
और फिर अपना होश! आने पर, अपना गुनाह छिपाने के लिए हलाला के नाम पर फिर उस औरत का कत्ल करते हैं, बार-बार करते हैं।
अरे कोई उस औरत से कियूं नही पूछता की वह क्या चाहती है? क्या औरत कोई बेजान चीज है? जिसे जो चाहे, जैसे चाहे, इस्तेमाल करे और जब मन भर जाए तो दूसरों को दे दे।
अरे हम भी अल्लाह की पाक रूह हैं, हम भी मर्दो की ही तरहा इंसान हैं। हमारे भी दिल हैं, जज्बात हैं और पसंद ना पसंद है।
और फिर कैसे कोई इंसान अपनी मोहब्बत को ऐसे बेजार कर सकता है।
नहीं-नहीं शमशाद!! हम ये बेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे। हम सच कह रहे हैं शमशाद हम मर जायेंगे", रुखसाना बदस्तूर रोते हुए बोली लेकिन अबकी उसकी आवाज में गुस्सा था, नाराज़गी थी।

"कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या करूँ?" शमशाद इन दोस्तों को देखते हुए उदास होकर बोला।

"हमारे पास तरकीब है, अगर आप राजी हो तो? आपकी शरीयत की शर्त भी पूरी हो जाएगी और आप सुबह साथ-साथ घर भी जा पाएंगे। आपके मन पर बोझ भी नही रहेगा कि आप दीन के खिलाफ गए", मनोज कुछ सोचते हुए बोला।

"क्या"!!??
शमशाद ओर रुखसाना एक साथ बोले।

"देखिए हमारे शकील मियाँ आलिम हैं और नोसाद भाई कुँआरे। बाकी हम दोनों हो जाएंगे गवाह। तो अगर आप चाहें तो हम रुखसाना भाभी जान का निकाह अभी नौशाद भाई से पढ़ा देते हैं और तीन घण्टे बाद ये उनको तलाक दे देंगे, उसके बाद आप उनसे दोबारा निकाह कर लेना। इस तरह आपकी शरीयत की बात भी रह जाएगी और आप साथ-साथ घर भी जा पाएंगे," चारों दोस्त मुस्कुराकर बोले।

"लेकिन इद्दत की मुद्दत?" शमशाद कुछ सोचते हुए बोला।

"देखिए मियां हमने कहीं पढ़ा था कि नेकी करने वालों और ईमान लाने वालों की सजा को साल से महीनों में महीनों से दिनों में और दिनों से घण्टों में तब्दील कर दिया जाएगा। तो मियां हम तीन महीने की इद्दत को तीन घण्टों में पूरा हुआ मान लेंगे और ऐसा करने के लिए हम सब उस परवरदिगार से मुआफ़ी भी मांग लेंगे।
और हमें पता है, मोहब्बत करने बालों को खुदा! हमेशा पसंद करता है।
तो इतनी हेराफेरी के लिए अल्लाह हमें जरूर मुआफ़ कर देगा", शकील मियां ने अपनी दलीलें देकर सबकी बोलती बंद कर दी।

जल्द ही रुखसाना ओर नौशाद का निकाह पढ़ाया गया और अगले तीन घण्टे रुखसाना नौशाद के साथ उसकी सीट पर बैठी, जहाँ उन्होंने कई बार प्यार से नौशाद का सर सहलाया।
अगले तीन घण्टे बाद फिर एक बार रुखसाना का तलाक हो गया लेकिन इस बार वह दुखी या उदास नहीं बल्कि खुश थी।

अगले तीन घण्टे बाद, सुबह सात बजे फिर से रुखसाना और शमशाद का निकाह पढ़ाया गया। उसके बाद अगले स्टेशन पर शमशाद ने सभी को चाय नास्ता कराया और अपने घर आने की दावत दी।


समाप्त

#कहानी/ रुखसार

साल 1992 उत्तरप्रदेश का एक छोटा सा गांव -
अम्मी,, अम्मी आप समझाइये ना अब्बू को,,, रुखसार अपनी बड़ी-बड़ी काली आंखों में मोटे-मोटेआंसू लिए अपनी अम्मी के पीछे-पीछे डोल रही थी।
अम्मी में एक बार उसकी तरफ देखा और मुंह घुमा लिया, अम्मी के चेहरे पर बेचारगी के निशान साफ नजर आ रहे थे।

अम्मी,, हम अपने हर दर्ज़े में अब्बल आते रहे हैं पढ़-लिख कर हम कुछ बनना चाहते है हम अपनी ज़िंदगी मे कुछ अच्छा करना चाहते हैं,, रुखसार लगभग रोते हुए बोली।

हम कुछ मदद नहीं कर सकते मेरी बच्ची,, जमीला(अम्मी) की आवाज़ बेबशी से भीगी हुई थी।
तुम्हारे अब्बू तो प्राइमरी के बाद ही तुम्हारा स्कूल छुड़ाना चाहते थे ,,,
तब भी हमने रो रो कर तुम्हारी शिफारिश कर दी थी लेकिन उसी वक़्त उन्होंने साफ बोल दिया था ,,
"बस जूनियर हाईस्कूल तक जहां तक गांव में स्कूल है, आगे शहर जाने की जिद ना करे तुम्हारी लाडली" 
हमने उस वक़्त ही कह दिया था कि आगे तुम्हारी तालीम के वास्ते हम बात नहीं करेंगे।
अम्मी!!!, रुखसार अब बाकायदा रोने लगी, एक बार बात तो करो आप, रुख़रास धीरे से बोली।

जमीला बिना कुछ बोले अपने आँसू पोंछते हुए चली गयी।

रुखसार आगे पढ़ना चाहती है,, जमीला ने रात को शमशाद का सर सहलाते हुए बड़े मनुहार से धीरे से कहा।
हमने आपसे पहले ही कहा था बेगम, की रुखसार को छूट मत दो हमें पता था ये दिन आएगा इसी लिए हमने पहले ही कह दिया था कि रुखसार गाँव में पढ़ाई खत्म करके घर के काम में हाथ लगाएगी।
आप तो जानती हो बेगम बिरादरी का हाल ज्यादा पढ़ने लिखने के बाद लड़की के लिए रिश्ता भी नहीं आएगा बिरादरी से, अरे यहां तो लड़के भी बस अलिफ बे पढ़कर मौलवी साब से दीन की तालीम लेकर हैण्डलूम पर बैठ जाते हैं सारी अंसारी बिरादरी जुलाहे का काम करती है।
ओर आपकी लाडली बड़े स्कूल जाकर सबको मुंह चिढ़ाने पर लगी है।
बेगम आप समझाओ रुख़सार को हमें की बिरादरी के साथ चलना है  फिर आगे  बच्चों के शादी बियाह बी करने हैं।
दो हैण्डलूम हैं हमारे कुछ तुम दरी बुनती हो , सारा दिन धागों से उलझने के बाद भी जिंदगी की मुश्किलें नहीं सुलझती ऊपर से शहर की पढ़ाई का खर्च।
ओर फिर लड़की ऐसे मुंह खोले फिरेगी तो आपको पता है कितनी बातें बनेंगी लोग जीना मुश्किल कर देंगे मोहल्ले में।
मैं नहीं चाहता कि मेरे घर की औरतें बिना हिज़ाब बिना पर्दे के घूमें।
जमीला चुप होकर सो गई हालांकि वो चाहती थी कि रुखसार को आगे पढ़ने की इजाज़त मिले लेकिन वह भी लाचार थी।

अब्बू मैं कोई खर्च नहीं मांगूंगी आपसे मैं अपनी दरी की आमदनी से अपना खर्च निकाल लुंगी घर मे भी सारे काम में हाथ लगाउंगी बस मुझे आगे पढ़ने दीजिये,, अब्बू मैं हमेशा बुर्के में रहूँगी मुंह खोलकर नहीं घूमूंगी अब्बू शहर के स्कूल में बहुत सी लड़किया बुर्के में आती हैं ,मैं आपको कभी शिकायत का मौका नहीं दूंगी।
मान जाईये ना अब्बू मेरे प्यारे अब्बू मेरे अच्छे अब्बू रुखसार ने रोते रोते शमशाद को मस्का लगाते हुए कहा।
आप चलकर देख लीजिए ना अब्बू एक बार ,,शहर में लड़कियों के लिए अलहदा स्कूल है सारी लड़कियां ही पढ़ती हैं उसमें अब्बू मैं पढ़ना चाहती हूं रुखसार बराबर आंसू बहाते हुए बोली।

आज तीन दिन से रुखसार बिना खाये पिये रोये जा रही थी घर के काम तो वह बराबर कर रही थी लेकिन निवाला उसने कतई मुंह के अंदर नहीं डाला था।
जमीला लगातार शमशाद से इल्तजा कर रही थी कि वह रुखसार को इज़ाज़त देदे चाहे अपनी शर्तें लगा ले नहीं तो रुखसार गम में बीमार हो जाएगी एक ही तो बेटी है उनकी उसके बाद तीन बेटे,,,
अरे ना आये कोई रिश्ता यहां से हम अपनी बेटी शहर में बियाह देंगे शहर में तो पढ़ाई लिखाई की बहुत कद्र है।

ठीक है रुखसार चली जाओ शहर पढ़ने लेकिन जिस दिन किसी ने तुम्हारी गलत शोहबत या बेपर्दा निकलने की शिकायत की उसी दिन से बिना कुछ बात सुने स्कूल बंद।

रुखसार शहर में कन्या इण्टर कॉलेज जाने लगी,, उसने घर की मजबूरी बता कर बुर्के में रहने की इजाज़त ले ली थी।

रुख़सार की लगन और मेहनत से वह बहुत कम समय में ही कॉलेज में सारे टीचर्स की चहेती बन गयी ।
वह घर से निकल के बस में कॉलेज तक पूरी एहतियात बरतती की कोई शिकायत किसी को ना रहे।
रुख़सार की  मेहनत का नतीजा था कि दसवीं में उसने सारे कॉलेज में सबसे ज्यादा नम्बर पाए थे।

स्कूल से उसे कई ईनाम मिले ओर साथ ही साथ उसका वजीफा भी शुरू हो गया स्कूल में फीस तो ऐसे भी नही देनी पड़ती थी।
आगे उसने  और ज्यादा मेहनत की घर पर वह देर रात तक दरी बनाने का काम करती, अब्बू के हैण्डलूम का ताना कर देती उनकी धागे की नालियां ठीक से रखती।
उसकी बनाई दरियां इतनी सुंदर होतीं की उसे ऊंची कीमत मिलती।

अब्बू को रुख़सार से कोई शिकायत नहीं थी, अलबत्ता बिरादरी वाले ज़रूर दबी जुबान में कहते, " भाई शमशाद तो अपनी लड़की को कलेट्टर बनाएगा शहर में पढ़ने भेज दिया अकेली लड़की को,,कुछ ऊंच नीच हो जाये तो नाक तो सारी बिरादरी की कटेगी,,," 
लेकिन सामने कोई कुछ नहीं बोलता।

आज रुख़सार के पास दो खुशखबरी थीं लेकिन वह कशमकश में थी कि दूसरी बाली अब्बू को कैसे बताए, उसे पता था अब्बू फिर गुस्सा करेंगे बहुत नराज होंगे लेकिन रुख़सार बहुत खुश थी ,,

अब्बू मैंने बारहवीं में सारे जिले में टॉप किया है रुख़सार चहक कर बोली,, मैं जिले में अब्बल आयी हूँ अब्बू।
शमशाद ने कुछ नहीं बोला बस हल्के से मुस्कुराकर झटके से हैण्डलूम की नली इधर से उधर सरका दी।

अब्बू वो,,, अब्बू मुझे आपको कुछ और भी बताना है उम्मीद है आप गुस्सा नहीं करेंगे।
शमशाद ने आंखे टेढ़ी करके उसे देखा जैसे पूछा हो क्या? 
वो अब्बू हमने मेडिकल की पढ़ाई के लिए इम्तिहान,,, हमारा नम्बर उसमें आ गया अब्बू हमें सबसे अच्छा कॉलेज मिला है अब्बू ओर हमें फीस वी ज़्यादा नहीं पड़ेगी,,, मैं कर लूंगी अपने पास से अब्बू,, मुझे स्कोलरशिप भी मिली है,,आप बस जाने की इजाज़त दे दीजिए,, रुख़सार एक सांस में सारी बात बोल गई।

घर में कोहराम मचा हुआ था,, रुख़सार कहीं नहीं जाएगी जमीला, शमशाद ने चिल्ला कर कहा।
रुख़सार पर्दे के पीछे बैठी जोर जोर से रो रही थी उसकी सिसकियों की आवाज बादस्तूर आ रही थी उसके छोटे भाई जिन्हें उसकी वजह से आगे पढ़ने को मिल रहा था इसके गले लगे उसके आंसू पोंछ रहे थे।
आपकी बजह से ये लड़की बहुत आगे बढ़ गयी हमने समझाया था आपको की इसे ज्यादा शह मत दो लेकिन बेटी की मोहब्बत में तुम्हारी तो आंखें ओर कान बन्द थे,,
अब इतनी दूर पराये शहर!! अरे क्या अकेली लड़की का ऐसे दूसरे राज्य में जाकर अकेले रहना ठीक है!??
ऐसे ही सारी बिरादरी थू थू कर रही है हमपर किसी के लड़के ने भी कभी बारहवीं के बाद आगे पढ़ाई नहीं की,, ओर तुम्हारी लाडली,,, नहीं नहीं अब हम इज़ाज़त नहीं देंगे।

लेकिन आपी तो लड़कियों के हॉस्टल में रहेगी अब्बू,, अबकी नुशरत थोड़ा तेज़ होकर बोला, नुशरत खुद अबकी दसवीं में था और पढ़ई की कीमत समझने लगा था।
तुम खामोश रहो नुशरत तुम्हे कुछ नहीं पता बाहर के माहौल का, अब्बू ने उसे डांट कर चुप करते हुए कहा।


पूरे एक हफ्ते की जद्दोजहद के बाद आखिर रुख़सार मेडिकल की पढ़ाई के लिए चली गयी।
सारा घर रुख़सार के पक्ष में शमशाद मियां के खिलाफ हो गया था खाना पीना बन्द था कोई बात भी नहीं कर रहा था,, 
ठीक है जो तुम लोगों को सही लगे करो,, शमशाद ने हथियार डालते हुए कहा।


आज पूरे सात साल हो गए शमशाद ने रुख़सार से कोई बात नहीं की, वह छुट्टियों में घर आती सब उससे बात करते लेकिन शमशाद मियां की नाराजगी जारी रहती,, जमील ने कई बार उन्हें समझाने की कोशिशें की लेकिन वह नहीं माने।

mbbs  के बाद रुख़सार ने ms में दाखिला लिया और उसके बाद अस्पताल में ,,,

आज उसके सम्मान में एक पार्टी थी कॉलेज में जहां इसके जिला अस्पताल में मुख्य सर्जन के रूप में नियुक्त होने की खुशी मनाई जा रही थी।
आज हमारे कॉलेज की पहचान हमारी ब्रिलियंट रुख़सार अंसारी को अपने ही जिले के जिला अस्पताल में प्रमुख सर्जन के तौर पर अपॉइंट होने पर हम सबको उनपर गर्व है, ओर हम उनकी मंजिल दर मंजिल कामयाबी की दुआ करते हैं ,, कहकर उसे उसके साथी डॉक्टरों ने एक बॉक्स थमाया ओर सभी तालियां बजाने लगे,, रुख़सार का चेहरा आज भी हिज़ाब में केद था।
पार्टी के बाद रुख़सार गिफ्ट खोल रही थी तभी उसकी नज़र कपड़े में बंधे एक बॉक्स पर पड़ी,,
अरे ये कौन देकर गया वह चोंकते हुए उठी और उसे खोलने लगी,, कपड़े के नीचे एक ख़त था वह उसे खोलकर पढ़ने लगी उसमें लिखा था,
"खुदा तुझे सलामत रखे और तुझे तेरा सोचा हर मुकाम हाशिल हो मेरी बच्ची।
उम्मीद करता हूँ तू मेरी ज्यादतियों के लिए मुझे ज़रूर मुआफ़ कर देगी, मैं गलत था जो बिरादरी ओर समाज की सोचता रहा और आपकी बच्ची के सपनों की उड़ान पहचान नहीं पाया लेकिन अब मुझे फक्र है की तुमने अपना नाम इतना बड़ा कर लिया अब सारी बिरादरी को तुमने दिखा दिया की लड़कियां भी कुछ भी कर सकती हैं।

अब मैं तुमसे नहीं खुद से नाराज़ हूँ कि मैंने तुम्हें दुःख दिया, लेकिन मेरी बच्ची मैं तुमसे मुआफ़ी मांगते हुए कहता हूं की मैं तुम्हारी कामयाबी से बहुत खुश हूं।
मुझे बहुत फख्र होता है जब लोग अदब से कहते है,", वो देखो डॉक्टर रुख़सार के अब्बू" 
और हाँ अब तुम्हे ये हिज़ाब ये नकाब में अपना चेहरा छिपाने की कोई ज़रूरत नहीं लोगों को पता लगना चाहिए की शमशाद अंसारी की दुखतर रुख़सार अंसारी बिल्कुल उन्ही की तरह दिखती है और उन्ही की तरहा जिद्दी भी है।

आगे उसने बॉक्स खोला तो उसकी पसंद का नीले रंग का रेशम का सलवार कुर्ता था और एक सफेद कोट जिसपर गिरी एक आँसू की बूंद अपना निशान छोड़ गई थी।

रुख़सार की आँख से निकला एक आँसू अपने अब्बू के आँसू में जज्ब हो गया लेकिन ये खुशी का आँसू था।

©नृपेंद्र शर्मा"सागर"
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