Saturday, February 26, 2022

मरने के बाद

मरने के बाद (उपन्यास)



1-

रमेश ने अपने कंधे पर एक बहुत ठंडा हाथ महसूस किया, रमेश ने कुर्ता और सदरी पहनी थी फिर भी ना जाने क्यों उसे उस हाथ की सुन्न, सख्त, एवं खुदरी उंगलियों की ठंडक सीधे अपनी हड्डियों तक महसूस की।

"क.. क.. को. कौन!!", रमेश चौंकते हुए पलटा।

"क्या देख रहे हो दोस्त? ये सब जो रो रहे हैं ये तुम्हारे परिजन हैं, जो तुम्हारे मरने पर बहुत दुखी हैं?

आएँ!! हा.. हाँ, देखो सब रो रहे हैं; लेकिन मैं अपने सभी दर्दो से मुक्ति पा गया दोस्त, मैं कई महीनों से बहुत बीमार था, मेरे पूरे परिवार ने मेरी बहुत देखभाल की लेकिन, अब मैं उस पीड़ा से मुक्त हूँ।" रमेश अपनी भीगी हुई आवाज में अपने आँसू पोंछने का उपक्रम करते हुए बोला।

किन्तु ये क्या इतना जार जार रोने के बाद भी उसकी आंखें बिल्कुल सूखी थीं।


"हा.. हा. हा. हा..!! क्या ढूंढ रहे हो, आँसू?

क्या यार अभी तो तुमने कहा कि हर दर्द से मुक्त हो गए हो; लेकिन आँसू अभी भी ढूंढ रहे हो।", वैसे मेरा नाम अजीत है; तीन साल पहले मेरी भी "बिल्कुल तुम्हारे जैसी हालत थी तब मुझे भी लगा था कि मैं दर्दों से मुक्त हो गया हूँ, किन्तु सच्चाई बाद में धीरे धीरे मेरे सामने आती गई, खैर तुम्हे भी आदत हो जाएगी रमेश भाई।" अजीत ने फिर मुस्कुरा कर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

"क्या कहा तुमने?!!, तीन साल पहले तुम्हारी मौत...तो क्या तुम भूत हो??" तभी तुम्हारे हाथ बर्फ जैसे ठंडे हैं।

रमेश घिघियाते हुए बोला।


"हा ..हा!! हा. हा!! अजीत जोर से हँसने लगा.. भूत.. हाँ रमेश भाई अब लोग हमें इसी नाम से जानते हैं, भूत, अब से यही हमारी पहचान है।

अभी जो लोग तुम्हरे लिए आँसू बहा रहे हैं, कल के बाद उनमे से किसी के सामने प्रकट हो जाओगे तो वह आपको इसी नाम से पुकारेगा.. ओह माफ करना भाई पुकारेगा नहीं डर से चीखेगा।

कहेगा," बचाओ!! भूत,, औऱ तुम लाख कहते रहोगे की तुम रमेश हो लेकिन कोई भी तुम्हारी आवाज नहीं सुन पायेगा।"

अजीत की आवाज में भी बहुत दर्द था।

"लेकिन अजीत भाई आपको मेरा नाम..?" रमेश कुछ सोचते हुए बोला।


"अरे यार ये इतने लोग चीख चीख कर कह रहे हैं कि रमेश का देहांत हो गया, भाई हम तो सबको सुन ही सकते हैं भले ही हमें सुनने के लिए लोगों के पास अच्छे कान ना हों। 

तो आओ अब चलें तुम्हे अभी बहुत सारे काम यहाँ की भूतिया दुनिया में करने होंगे और मैं तुम्हे सच्चाई बता दूं की ये दुनिया तुम्हारी इस दुनिया से भी खतरनाक है यहाँ राह पाना उतना आसान नहीं है बाकी आगे खुद तुम्हे सब कुछ पता लग ही जायेगा।" अजीत अर्थपूर्ण मुस्कान लाते हुए कह रहा था।


"एक मिनट, अभी तुमने कहा कि हम दोनों एक जैसे है याने की भूत, फिर मुझे तुम्हारा हाथ एक दम ठंडा क्यों लग रहा है, या फिर मैं अभी भी जिंदा..?" रमेश अपने को छू कर देखने लगा।


"तुम अभी अभी मरे हो और मुझे तीन साल हो गए, धीरे धीरे तुम भी ठंडे हो जाओगे दोस्त", अजीत फिर से मुस्कुरा दिया।

"आओ अब चलें कई काम होते हैं यहाँ आने के बाद", अजीत उसका हाथ पकड़कर खींचने लगा।


"अजीत भाई कुछ देर देखने दीजिये देखिए कैसे मेरा परिवार मेरे लिए बिलख रहा है, औऱ मैं जिंदगी भर सोचता रहा कि ये लोग कितने बुरे हैं", रमेश अभी भी बहुत उदास था।


"रमेश भाई, ज्यादा मोह मत करो ये सब बस लोगों को दिखाने के लिए हो रहा है बस परम्परा निभाने के लिए की लोग क्या कहेंगे जबकि असलियत कुछ और ही होती है।"  अजीत बराबर मुस्कुरा रहा था।

"मैं नहीं मानता अजीत भाई, देखिए ना इनके रोने को क्या तुम्हें इसमें भी बनाबट दिखाई देती है, अरे मेरी पत्नी और बेटा तो बेचारे कितनी बार रो रो कर बेहोश ही हो गए", रमेश भरपूर उदासी से बोला।


"अरे!, हां कहाँ गए तुम्हारी पत्नी और बेटा?, अजीत इधर उधर देखते हुए बनाबटी आश्चर्य से बोला।


"वे लोग बेहोश हो गए थे ना अजीत भाई लोग उन्हें अंदर ले गए",रमेश अपनी ही रौ में बोला।

"अंदर? अरे हां उन्हें तो अंदर ले जाया गया है, रमेश भाई आप बहुत बेमुरव्वत हो यार तुम्हारे जिंदा बेटे और पत्नी तुम्हारे गम में बेजार हो रहे हैं तुम्हारे लिए रो रो कर हलकान हो रहे हैं और तुम हो कि बस यहीं खड़े अपनी लाश को घूरे जा रहे हो जैसे कि अभी तुम्हारी लाश उठकर बैठ जाएगी और तुम्हे उसमें घुसने के लिए कोई दरवाजा मिल जाएगा।

जबकि सच्चाई ये है कि अब तुम्हे इस शरीर में घुसने के लिए दरवाज़ा तो दूर तुम एक खिड़की तक नहीं पा सकोगे और तो और अब तुम इस शरीर को छू तक नहीं पाओगे।

मेरी बात मानो मोह छोड़ो और चलो मेरे साथ अभी तुम्हे इस आत्मा लोक में जगह भी बनानी है और जैसा कि मैने तुम्हे बताया ये धरती की दुनिया से बहुत ज्यादा मुश्किल है।", अजीत ने रमेश का हाथ पकड़े पकड़े कहा।


"अजीत भाई ये क्या तुम मुझे बार बार यहाँ की दुनिया के नाम से डरा रहे हो आखिर ऐसा क्या है इस भूत नगरी में जो मुझे जगह बनाने में मुश्किल आएगी, आखिर हमें चाहिए ही क्या केवल हवा। औऱ रही बात मेरे परिवार की तो मैं अब दावे के साथ कह सकता हूँ कि वे लोग मुझे बहुत चाहते हैं और उनका ये विलाप दिखावा नहीं है", रमेश अब कुछ नाराज़ हो रहा था।

"अच्छा चलो एक बार तुम्हारे बेटे और पत्नी को देख आया जाए,कहीं ऐसा ना हो कि तुम्हारे वियोग में उनके प्राण.." अजीत अब रमेश का हाथ पकड़कर अंदर कमरे में ले गया जहां इसकी पत्नी और बेटा बैठ कर धीरे धीरे बातें कर रहे थे।

"आओ थोड़ा और नज़दीक चलते हैं जहां से हम इन्हें सुन सकें", अजीत उसका हाथ पकड़े उनके और नजदीक ले आया।

"अरे माँ पैसे हैं ही नहीं मेरे पास, सारे पैसे तो उनकी बीमारी पर खर्च हो गये अब ये अंतिम संस्कार के लिए बीस तीस हजार मैं कहाँ से लाऊं?" रमेश का बेटा गुस्से से कह रहा था।


"अरे, कल ही तो मेरी एफडी के दो लाख आये थे जो मैंने इसे दिए थे और इसने सामने अलमारी में.. अरे सुमित्रा इसने दो लाख अलमारी में रखे हैं", रमेश जोर से चिल्लाकर बोला किन्तु उसकी आवाज़ किसी का ध्यान नहीं खींच सकी।

"अरे सुमित्रा खोलो ये अलमारी, देखो इसमें", कहकर रमेश अलमारी पकड़कर हिलाने लगा किन्तु ये क्या रमेश तो अब हवा तक नहीं हिला पा रहा था।

वह उदासी से अजीत को देखने लगा जो सिर्फ इसकी हालत पर मुस्कुरा रहा था।

"अरे बेटा अंतिम संस्कार तो करना ही होगा वर्ना समाज क्या कहेगा लेकिन जितने कम में हो सके उतने में काम चलाओ, जरूरी नहीं कि लकड़ी पूरे तीन क्वेंटल ही आये अरे इनका शरीर है ही कितना जो तीन कुंतल लकड़ी में सिकेंगे।

और चंदन की सात समिधा की जगह एक ही.. उसी के छोटे छोटे सात टुकड़े ,अरे मरने वाले के साथ कुछ जाता है क्या, और घी भी एक किलो बहुत होगा अरे जिंदा पर हमने इन्हें इतना घी में नहलाया लकेकिन क्या कोई फायदा हुआ जो अब लाश के साथ पांच किलो घी जलाकर हो जाएगा।

ये तो जाते जाते भी हमें कंगाल कर गए, अब खुद तो मुक्ति पा गए और छोड गये हमे भुगतने को।

बेटा जा कर सामान जुटा जल्दी, देर हो रही है, मिट्टी जितनी जल्दी हो ठिकाने लग जानी चाहिए", रमेश की पत्नी सुमित्रा अपने बेटे को समझा रही थी।

"अरे!! दुष्टों मैं जिंदगी भर रात दिन तुम लोगों के सुख के लिए लड़ता रहा और तुम्हे मेरा शरीर मिट्टी..",रमेश झपटकर अपनी पत्नी को मारने की कोशिश करने लगा लेकिन पूरा जोर लगाने के बाद भी वह सुमित्रा के बाल तक ना हिला सका।

हा हा हा हा हा हा!!!!अजीत उसकी हालत देखकर हँस हँस कर लोटपोट हो रहा था।

"मेरी पत्नी,  मेरा बेटा,, अरे रमेश भाई ये किस मिट्टी की बात हो रही थी"? अजीत बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोकते हुए बोला।

" कुछ नहीं अजीत भाई, चलो यहाँ से अब मुझे एक पल भी नहीं रहना इस नरक में।" रमेश गुस्से ओर घृणा से बोला और बाहर आ गया।

"क्या हुआ रमेश भाई इतना गुस्सा?" अरे ये तो तुम्हारा परिवार है भाई ये लोग तुमसे मोहब्बत करते हैं देखो तुम्हारे लिए कितना रो रहे थे इन्हें सच में बहुत फिक्र है लेकिन तुम्हारी नहीं मेरे दोस्त बल्कि तुम्हारी मिट्टी की, उन्हें उसे जल्द से जल्द ठिकाने जो लगाना है।

और उसके बाद इन्हें एक और फिक्र लगेगी तुम्हारी जायदाद अपने नाम लिखाने की", अजीत अभी भी चुटकी ले रहा था।


"चलो अजीत भाई अब मैं और कुछ नहीं देख पाऊंगा,मैं आत्महत्या कर लूंगा इन लोगों ऐसे व्यभार से ले चलो मुझे इस नरक से दूर", रमेश फिर से अपनी आंखें पोंछने लगा।


"अच्छा उदास मत हो रमेश यार, अभी  असली नरक तो यहाँ अभी तुम्हे देखना है, आओ चलो सबसे पहले जन्म रजिस्टर में तुम्हरा नाम लिखा कर तुम्हारा भूत नम्बर लेना होगा उसके बाद मैं तुम्हे इस दुनिया की बाकी बातें भी बता दूंगा और तुम्हे सारा भूत लोक जो हमारे सीमा क्षेत्र में है, दिखा भी दूंगा।" अजीत उसके साथ चलते हुए बोला।


"क्या कहा रजिस्ट्रेशन??"रमेश को तो जैसे विश्वास ही नहीं हुआ।

"हां भाई नामांकन यहाँ की सबसे पहली प्रकिर्या है जो हर नए आने वाले भूत के लिए बहुत जरूरी है।

इस नामांकन के साथ ही नए भूतों को यहाँ मौजूद भूत गैंग्स का सदस्य बना दिया जाता है इसके बाद उन्हें अपने गैंग के हिसाब से आगे मरना होता है, किंतु यदि हम चाहें तो अपने मनचाहा गैंग चुन सकते हैं जैसे कि अब मैं तुम्हे अपने गैंग में जुडवा दूंगा ताकि हम आराम से साथ रह सकें", अजीत ने रमेश का हाथ कसकर पकड़ा और दोनों उड़ने लगे।


अभी ये लोग भूत लैंड में लैंडिंग कर ही रहे थे कि सामने ही एक बड़े बड़े दांतो वाली माँस रहित डरावनी मूर्ति प्रकट हो गई।

"क्या रे अजीत फिर कोई नया बकरा लाया अपने गैंग के लिए, अरे कभी किसी को अपुन के गैंग में भी आने दे देख ना सारी बदसूरत जली हुई सुन्दरियों से भरा है पूरा गैंग बस तेरे ओर इसके जैसे चिकने छोरों की कमी रहती है", वह बड़े दांतों वाली डरावनी शक्ल जोर जोर से हँसने लगी जिससे इसका चेहरा ओर डरावना लगने लगा जिससे घबराकर रमेश अजीत के पीछे छिप गया।

"क्या रे लाडली क्यों हमेशा लोगों को डराती रहती है, अब देख न अभी अभी तो हम आये हैं और तुमने मेरे नए दोस्त को डरा दिया। ये भी कोई तरीका है परिचय करने का", अजीत थोड़ा गुस्से से बोला।

"क्या करें अजीत, काश हमारे जिंदा रहते लोग हमसे डर जाते तो हमें यूँ आग में जिंदा तो ना जलाते", अब लाडली बहुत उदास होकर बोली।


"अरे लाडली दुखी क्यों होती हो आखिर हम यहाँ दोस्त हैं ना, अच्छा मिलता हूँ रमेश भाई का नामकरण करवा कर", और अजीत रमेश का हाथ पकड़े आगे चल दिया,,,

2-

"आओ रमेश भाई चलो जल्दी नामांकन करवा लिया जाए, कहीं ऐसा न हो कि कोई प्रेत, जिन्न या ब्रह्म बाबा हमें देख लें, और हम किसी मुश्किल में पड़ जाएं",

अजीत ने रमेश का हाथ पकड़ कर उसे खींचते हुए कहा।


"अच्छा अजित भाई! मरने के बाद जैसा की सब जानते हैं कि सबको भूत बनना होता है।

फिर आप मुझे बार-बार ये प्रेत, जिन्न और ब्रह्म बाबा जैसे नामों से क्यों डरा रहे हो?" रमेश ने कुछ आश्चर्य से पूछा।


"सब बता दूंगा रमेश भाई! बस आप थोड़ा जल्दी चलो, कहीं ऐसा ना हो कि बहुत देर हो जाये", अजीत ने ये बात बहुत घबराते कुछ विशेष अर्थ में कही।


अब रमेश जैसे कुछ समझ गया हो इसलिए वह चुपचाप चलने लगा।


कुछ दूर चलने पर उन्हें हड्डियों की बनी एक ऊँची इमारत नज़र आने लगी, जिसका बड़े-बड़े दांतो वाला प्रवेश द्वार दूर से ही चमक रहा था।

उसे देखकर अजीत की आँखों में प्रसन्नता की चमक आ गयी।

"लो पहुंच गए रमेश भाई, अब हमें कोई डर नहीं है। इस सीमा में आकर कोई भी मनमानी नहीं कर सकता; और नामांकन के बाद फिर कोई किसी को परेशान नहीं करता, क्योंकि यहाँ के नियम बहुत कड़े हैं। 

कोई भी यहाँ के नियमों का उलंघन नहीं कर सकता।" अजीत के स्वर में प्रसन्नता थी।


अब रमेश भी प्रसन्न था वैसे तो उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, लेकिन अजीत की बातें उसे ना जाने क्यों अपने लिए भले की लग रही थीं।

अतः वह भी जल्दी जल्दी कदम बढ़ाने लगा।

जैसे ही इन्होंने उस इमारत में प्रवेश किया अंदर का दृश्य देखकर रमेश बहुत डर गया।

सामने हड्डियों की बनी एक बड़ी सी मेज थी जिस पर एक मज्जा, त्वचा रहित,अस्थिशेष मानव खोपड़ी रखी थी जिसकी पलकविहीन बड़ी बड़ी आंखें बहुत तेज़ चमक रही थी।

सामने दीवार पर बड़ी-बड़ी डरावनी इंसानी आंखें लगी हुईं थीं।


और अंदर पूरी छत पर भी इंसानी आंखें लगी हुई थी।

ये दृश्य देखकर रमेश को अचनक डर लगने लगा, लेकिन तभी उसे याद आया कि वह तो मर चुका है और अब खुद एक भूत है तो फिर अब वह किससे डर रहा है।


तभी अचानक दीवार में से एक बिना सर का कंकाल प्रकट हुआ और उसने जल्दी से हाथ बढ़ा कर वह खोपड़ी अपनी गर्दन में पहन ली।


"हि..हि..हि.ही क्षमा करना मैं जरा अंदर व्योरा भेजने चला गया था और अपनी उपस्थिति दर्शाने के लिए इसे यहीं छोड़ गया था।

मैंने जैसे ही आपको आते देख तुरंत आ गया।" वह अपने बड़े बड़े गले सड़े दांत दिखाकर हँसते हुए बोला।


"नमस्ते, 'लिपिक महोदय' ये मेरा मित्र है रमेश आज ही यहाँ आया है।

आप इसका नाम हमारे समूह के साथ लिख दीजिये।" अजीत ने सामने खड़े भूत को प्रणाम करते हुए कहा।


"क्या तुमने इसे यहाँ के बारे में सब कुछ समझा दिया है, 'अजीत' क्या तुमने बता दिया है कि तुम्हारा समूह सबसे कमजोर भूत समूह है।

क्या तुमने इसे अन्य समूहों के विषय में बताया, जैसे कि पिशाच, ब्रह्मराक्षस, प्रेत और शक्तिशाली जिन्न समुदाय?

कहीं ऐसा न हो कि बाद में आकर ये कहे कि मुझे तो पिशाच या प्रेत बनना था।" लिपिक ने रमेश को घूरते हुए कहा।

"मुझे अजीत भाई ने सब समझा दिया है, और मैं साधारण भूत ही रहना चाहता हूँ मुझे नहीं चाहिये भूत-प्रेत लोक की काली शक्तियां।" रमेश ने ना जाने क्या सोचते हुए, लिपिक को प्रणाम करते हुए कहा।

"ठीक है आप अपने बारे में इस प्रारूप में बताइये, 

मृत्यु लोक में नाम-

पिता का नाम-

दादा का नाम

माँ का नाम- 

वंश या गोत्र का नाम-

जन्म स्थान-

जन्म तिथि (यदि याद हो)-

मृत्य तिथि-

मृत्यु समय-

मृत्यु का कारण-

वो इच्छाएं जो अधूरी रह गयी हो या जिन्हें आप दूसरा जन्म लेकर पूरी करना चाहें-"। आप क्रम से इसके उत्तर बताइये मैं आपकी आगे की गति के विषय में बता दूंगा।" लिपिक ने उसे सवालों की एक सूची देते हुए कहा।


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मेरी कोई इच्छा अतृप्त नहीं है बस एक दुख है कि मैं जिनके मोह में सही गलत झूट सच करता रहा वे सब तो मतलबी निकले।" रमेश ने सारे प्रश्नों के उत्तर देते हुए उदास होकर कहा।

अब वह कंकाल (लिपिक) कुछ देर मेज पर लगे दर्पणों में उलझा रहा और फिर बोला, "जैसा कि अपने विवरण दिया, आपकी मृत्यु असमय नहीं हुई है।

अर्थात आपकी मृत्यु पूर्ण आयु भोग के बाद कि स्वाभाविक मृत्यु है।

किन्तु जैसा कि इस चराचर सृष्टि का नियम है, हर मरने वाले को मरते ही चार तत्व की सरल सौम्य भूत योनि मिलती है।

जिसमें रहकर उसे अपने जीवन के सभी अच्छे बुरे कर्मो को याद करना होता है; ताकि आगे यमलोक के मार्ग में ले जाते समय उसे याद रहे कि किस बुरे या भले कर्म के परिणाम स्वरूप उक्त रास्ता उसके लिए चुना गया है।

और इसलिए भी रखा जाता है ताकि वह अपने परिजनों के द्वारा दिये गए पिंडदान एवं यज्ञ से कुछ शक्ति प्राप्त कर ले ताकि आगे चलते समय उसे आसानी रहे।

बाकी यहाँ कुछ शक्तियां भी मिलती हैं, जिनके बारे में तुम अजीत से अन्य जानकारी ले सकते हो।

और यदि तुम्हे लगता है कि तुम्हें शक्तियां लेकर अन्य समूह में सम्मिलित होना है तो तुम चालीस दिन बाद यहाँ आकर बता सकते हो।" लिपिक ने अपने दांत दिखाते हुए कहा।


"किन्तु मुझे कब तक इस भूत योनि में भटकना होगा?" रमेश ने डरते डरते पूछा।


"ये बात भी मैं तुम्हे चालीस दिन के बाद ही बताऊंगा। देखो ये भूत योनि कमसे कम चालीस दिन लगभग सभी को मिलती है क्योंकि उसके पहले कोई भी मृतात्मा यम मार्ग पर नहीं चल सकती इसी लिए हर समुदाय में मृतक के तर्पण के लिए चालीस दिन तक के विधान बताए गए हैं।

जैसे सवा महीने का पत्ता या चालीसवाँ।

उसके बाद वह आत्मा आगे गति करती है, जहाँ मार्ग में बाइस प्रकार के महा नर्क एवं तीस प्रकार के समान्य अथवा अति सरल नरक हैं। जिन मार्गों पर यमलोक जाते समय जीवात्मा गति करती है।

बाकी उसके कर्मो पर ही निर्भर करता है की वह कितना शीघ्र धर्मराज के समक्ष प्रस्तुत होता है और कर्मफल के अनुसार दूसरा जन्म अथवा स्वर्ग या अन्य उच्च स्थान पर जाता है।" लिपिक ने उसे रहस्य बताया। तब तक दो और लोग आते दिखाई पड़े जिनमें एक भयंकर मोटा, काला, बड़े-बड़े बाहर निकले दांतों वाला, कुरूप, डरावना, राक्षस जैसा जीव था वहीं दूसरा, पतला मरियल सा जीव था, जो भय से थर थर कांप रहा था और घिसट-घिसट कर चल रहा था, या कहो की जबर्दस्ती चलाया जा रहा था।

रमेश ने थोड़ा ध्यान से देखा तो पाया कि वह कुरूप जीव दूसरे को कान से पकड़ कर खींच रहा है और उसका कान आधा उखड़ कर लटका हुआ है।

अभी वह पूरी तरह से अंदर आये भी नहीं थे कि लिपिक ने ऊंची आवाज में कहा, "कुम्भीपाक"। 

और वह यमदूत उस जीव को कान से पकड़े-पकड़े उल्टे पांव लौट गया।

रमेश अभी भी उस दृश्य से भयभीत था तभी लिपिक ने एक नम्बर उसकी ओर बढ़ाया जो लाखों में था, "लो इसे अपने पास रखो ये है तुम्हारा पंजीकरण अंक, अब तक तुम्हारे बताए पते से इतने रमेश यहाँ आ चुके हैं, इसे याद कर लेना। लिपिक ने कहा।

अजीत ने रमेश का हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा," चलो बाकी बातें मैं समझा दूँगा।",

और रमेश उसके साथ चल दिया।


"अरे यार अजीत ये कौन था? इतना डरावना जीव और उस बेचारे कमज़ोर से प्राणी को कैसे कान पकड़ कर घसीट रहा था। बेचारे का कान ही उखाड़ फिये निर्दयी ने क्या यही जिन्न अथवा पिशाच है।" रमेश अभी भी घबराते हुए धीरे से बोला। हालांकि उसके स्वर में क्रोध का भी हल्का पुट था।


"यमदूत था वह; और वह केवल अपना कार्य कर रहा था रमेश भाई ।

उसको उस प्राणी के कर्मो अनुसार नरक दण्ड देने का कार्य मिला होगा तो वह बस वही कर रहा था। अजीत धीरे से बोला।


"लेकिन ये 'कुम्भीपाक' क्या है  और इसे सुनते ही वह जीव इतना क्यों घबरा गया था।" रमेश ने फिर पूछा।


"कुम्भीपाक एक महा कष्टकारी महा नरक है।

इसमें मार्ग के दोनों ओर पिघली हुई धातु से भरे कुम्भ(घड़े) रखे होते हैं जो मार्ग पर उलटते रहते हैं।

उस धातु की तपन से जीव को बहुत कष्ट होता है।

अब उस जीवात्मा को उसी कुम्भीपाक के मार्ग से ले जाया जाएगा।" अजीत भी अफसोस के साथ बोला।


"लेकिन भाई उसे इतने दुर्गम मार्ग से क्यों ले जाया जा रहा है? और फिर ले जाने वाला यमदूत भी तो साथ ही होगा तो क्या वह पिघली धातु की अग्नि उसको नहीं जलायेगी।" रमेश को अब भय के साथ कौतुहल भी हुआ।


"कुम्भीपाक उसको अपने जीवन में चोरी, बेईमानी, धोखा देने अथवा ऐसे ही किसी दुष्कर्म के परिणाम स्वरूप मिला होगा।

और रही बार यमदूत की तो अब वह उसकी नाक में सांकल डालकर कर उसमें जँजीर बाँध कर ऊपर उड़ता हुआ जाएगा; इसलिए उसपर इस भीषण तपिश का प्रभाव नहीं होगा।

ऐसे भी यमदूतों के पास असीमित शक्तियां होती हैं, तो उनपर नरक की किसी भी क्रिया का प्रभाव नहीं पड़ता।

ये तो इनका सामान्य कार्य है।" अजीत ने समझाते हुए कहा।


"फिर भी यमदूतों का कार्य बहुत कठिन है भाई, चाहे प्रभाव हो या ना हो किन्तु नरक तो इन्हें सारे घूमने पड़ते हैं।" रमेश कुछ सहज होकर बोला।


"रमेश भाई ये यमदूत भी हम जेसी जीव आत्मा ही होते हैं। 

जो स्वेच्छा से इस कार्य को चुनते हैं जिसके बदले में इन्हें कुछ शक्तियां और नर्क के प्रभाव से मुक्ति मिल जाती है किंतु इन्हें उस नरक में अपनी सजा से तीन गुना अधिक समय गुजारना होता है।"अजीत ने रमेश की शंका का समाधन किया।

अभी ये लोग बातें करते हुए जा ही रहे थे कि तभी, लाडली फिर इनके सामने आकर खड़ी हो गयी।


"करा आये नामांकन, पता लगा तुमसे पहले कितने रमेश मर कर यहाँ आ चुके हैं?

क्या रे अजीत रस्ते में कोई खड़ूस प्रेत या जिन्न तो नहीं मिला?" लाडली मुस्कुराते हुए पूछने लगी।


"अरे नहीं रे लाडली सब आराम से हो गया,लेकिन ये खोपड़ी हमेशा अपनी खोपड़ी क्यों उतारे घूमता रहता है? आज तक समझ नहीं आया।

बेचारे रमेश भाई कितना डर गए थे उस बिना मुंडी के भूत को देखकर।" अजीत ने भी हँसते हुए उत्तर दिया।


"अरे तेरे कु तो मालूम ही है वो एक साथ कई काम करता है।

तुमने उसे बिना मुंडी का देखा और डर गया।

अरे ऐसे डरने का नई, अपुन ने तो कितनी बार उसे बिना मुंडी और बिना हाथ का बी देखा है", अब लाडली जोर से हँसी, जिससे उसके जले हुए चेहरे पर भयानक रंगत पनप गयी। लेकिन अब रमेश को उससे डर नहीं लग रहा था।


"अच्छा लाडली ये तुम्हारा जला हुआ शरीर? क्या तुम्हारी मृत्यु जलने से हुई थी?," रमेश ने लाडली को गौर से देखते हुए पूछा।


"सही पहचाना तूने रमेश! मुझे चार लड़कों ने बलात्कार करके जला कर मार डाला था।

मैं कितना गिड़गिड़ाई उनके आगे की भाई मुझे छोड़ दो मैने तुम लोग का क्या बिगाड़ा है, लेकिन उन एडा लोग ने मेरी एक भी बात नहीं सुनी।

वे मेरे को मारते रहे मेरे कपड़े फाड़ते रहे, मैं रोती रही मदद के वास्ते चिल्लाती रही; लेकिन किसी ने भी अपुन की आवाज नहीं सुनी।

अरे मैने तो उनसे हाथ जोड़कर यहाँ तक कहा की कोई एक जन प्यार से….

लेकिन उन दरिंदों ने बार-बार मेरे साथ नीच काम किया।

और इतने पर भी उनका दिल नहीं भरा तो बेहोशी की हालत में मेरे ऊपर पेट्रोल की पूरी बैरल ही लोट दी और फिर उनमें से एक ने अपने मुँह की सिगरेट... आह!! अभी तक उस तेज़ जलन को अपनी अंतरात्मा तक महसूस करती हूँ मैं रमेश बाबू!", लाडली की आवाज दर्द से भीग गयी किन्तु उसकी आँखें बिल्कुल सूखी थीं।


"उनमें से एक कमीना वही था रमेश भाई जो अभी  कुम्भीपाक में भेजा गया और जिसके लिए तुम सहानुभूति दिखा रहे थे", अजीत ने मुस्कुराते हुए बताया।


"बिल्कुल सही सजा मिल रही है फिर तो। मैं तो उसकी मासूमियत को देख कर...मुझे माफ़ कर दो अजीत भाई। लाडली जी मुझे पता नहीं था, आशा करता हूँ आप भी मुझे माफ़ कर दोगी। क्या हम दोस्त बन सकते हैं?"  कहकर रमेश ने अपना हाथ आगे बढ़ाय।

जिस पर अजीत और लाडली ने अपने हाथ रखे और तीनों मुस्कुरा दिए।


"आओ रमेश भाई आपको भूतलैंड की थोड़ी सैर  करा दी जाए बाकी की बाते हम घूमते हुए कर लेंगे; क्यों लाडली?" अजीत ने लाडली की ओर देखते हुए कहा और लाडली ने मुस्कुरा कर हाँ में सर हिला दिया।

अब ये तीनों चल पड़े भूतलैंड घूमने

तो आइए इनके पीछे हम भी चलते हैं 

किन्तु एक ब्रेक के बाद,,,



गुजारा भत्ता

प्रहसन

 

शीर्षक:- गुजारा भत्ता


पात्र-

1- पति (सुमेर सिंह) उम्र 35 साल

2-पत्नी(राधिका) उम्र 32 साल

3-मुख्य जज(महिला)

4-पुरुष जज-1

5-पुरुष जज-2

6-गवाह1 नाम चन्द्रावती (पड़ोसी वृद्व महिला उम्र 65 साल)

7-गवाह 2 पति की माँ उम्र 60 साल

8-गवाह3 पत्नी का मकान मालिक उम्र 45 साल

9-गवाह 4 मकान मालिक की पत्नी उम्र 40 साल

10-पेशकार (अदालत में केस के सम्बंध पैरवी करने वाला सरकारी व्यक्ति)

दृश्य -1 स्थान अदालत का कमरा


पर्दा उठता है सामने अदालत के कमरे का दृश्य है। सामने एक जज के स्थान पर जूरी के तीन सदस्य विराजमान हैं।

सामने ऊँचे लकड़ी के जंगले के पीछे एक महिला न्यायाधीश ऊँची कुर्सी पर काला कोट पहने बैठी हुई हैं। उनके दाएँ बाएँ लगभग वैसी ही लेकिन कुछ नीची कुर्सियों पर दो पुरुष न्यायाधीश बैठे हुए हैं।

 नीचे बैंचों पर कई लोग अदालत की इस कार्यवाही को देखने सुनने के लिए बैठे हुए हैं।

ज्यूरी के एक पुरूष सदस्य के संकेत पर पेशकार एक फ़ाइल उठाता है और आवाज लगाता है- 

पेशकार:-केस नम्बर सोलह सौ बत्तीस तलाक का मुकदमा वादी श्रीमती राधिका पत्नी प्रतिवादी श्री सुमेर सिंह हाज़िर हों। और फ़ाइल ज्यूरी के सदस्यों के सामने रखकर अपनी जगह बैठ जाता है।

 ज्यूरी के सदस्य पूरी तल्लीनता से दो मिनट फ़ाइल को देखते हैं। कमरे में इतनी शान्ति है कि पन्ने पलटने की आवाज़ साफ सुनाई देती है। फिर बायीं ओर बैठे ज्यूरी सदस्य की आवाज गूँजती है:- जैसा कि हमने इस केस को देखा और समझा, श्रीमती राधिका पत्नी श्री सुमेर सिंह अपने अपने पति से तलाक लेने के लिए अदालत में अर्जी लगाई थी किन्तु ना तो आप अदालत को तलाक लेने की वाजिब वजह ही बता पायीं थीं और ना ही आपके पति आपसे तलाक लेने को राजी हुए थे। और जैसा कि हमें पता लगा कि आप दोनों ने ही कोई भी वकील दलील पेश करने के लिए हायर नहीं किये थे। तब अदालत ने आपको अपनी पैरवी खुद ही करने की अनुमति दी थी। और दोनों पक्षों को सुनने के बाद उस समय अदालत ने आप दोनों को छः महीने साथ रहकर आपसी सम्बंध सुधारने का प्रयास करने और आपसी मतभेद मिलकर सुलझाने की सलाह देते हुए आपको छः महीने साथ रहने की सलाह दी थी। लेकिन अब जबकि छः महीने बीत चुके हैं और आप दोनों के विचार अभी भी एक दूसरे से जुदा ही हैं तो आपके मामले को फिर से देखने की सहमति अदालत ने आपको दी है। और पिछली बार की तरह इस बार भी आप लोग अपने वकील खुद ही हो। इस अदालत की पिछली तारीख पर हुई कार्यवाही और आप लोगों के वाद-विवाद को देखते हुए अदालत इस नतीजे पर पहुँची की आपका केस सामान्य केस नहीं है इस लिए अब आपके केस को सुनने के लिए कोई न्यायिक अदालत नहीं बल्कि पारिवारिक मामलों के विशेषज्ञ सदस्यों की इस ज्यूरी का गठन किया गया है जहाँ हम ज्यूरी सदस्य आपके वाद-विवाद को सुनकर कोई व्यवहारिक निर्णय लेने का प्रयास करेंगे। आप लोग यहाँ सामने आकर कुर्सियों पर बैठ जाइए। (नीचे आमने सामने कुछ दूरी पर रखी कुर्सियों की ओर संकेत करता है।

 दोनों पति-पत्नी ज्यूरी के सामने कुर्सियों पर बैठ जाते हैं।

 ज्यूरी के दायीं ओर के सदस्य:- हाँ तो राधिका जी आप अपना पक्ष रखिये और विश्वास रखिये की हम आपके हित में उचित निर्णय ही देंगे।

 

राधिका:- सम्मानित ज्यूरी मैं केवल और केवल अपने पति से तलाक लेकर अपने बच्चों के साथ अलग रहना चाहती हूँ और अदालत से दरख्वास्त करती हूँ कि इनसे मेरे बच्चों के लिए गुजारा भत्ते की रकम दिलाई जाए।

 ज्यूरी1- देखिये राधिका जी भारतीय संविधान के मैरिज एक्ट 1955 की धारा 13 में सभी पति-पत्नी को ये अधिकार दिए गए हैं कि यदि उन्हें लगता है कि वे अब साथ में नहीं निभा सकते तो उनका तलाक मंज़ूर करके उन्हें स्वतंत्र कर दिया जाए। किन्तु उसकी भी काफी शर्तें हैं। पहले तो आपको तलाक की कोई माकूल वजह अदालत को बतानी होगी। बिना किसी मज़बूत कारण के कोई भी अदालत किसी भी विवाह विच्छेद की स्वीकृति नहीं देती, इसलिए पहले आप वह कारण स्पष्ट करें जिसके आधार पर आप अपने पति से अलग होना चाहती हैं?

  

   राधिका:- मैं एक कम पढ़े लिखे और बेरोजगार व्यक्ति के साथ अब और नहीं रह सकती, इससे मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती है इसलिए मुझे डिवोर्स दिलाकर ससम्मान  जीवन जीने का अधिकार दिया जाए।

 ज्यूरी2- किन्तु अधिनियम 1955 की धारा 13 में ऐसे किसी भी कारण को विवाह विच्छेद का आधार नहीं माना जा सकता राधिका जी। 

 अभी ज्यूरी2 कुछ और कहने ही वाले होते हैं कि मुख्य न्यायाधीश महोदया उन्हें इशारे से रोक देती हैं।

  मुख्य न्यायाधीश महोदया:- तो राधिका जी आपको आपके पति कर कम पढ़े-लिखे और बेरोजगार होने से प्रॉब्लम है? तो क्या आप ज्यूरी को बताएंगी की ये प्रॉब्लम आपको शादी के 13 साल बाद अचानक क्यों होने लगी? क्या आप पहले से ये बात नहीं जानती थीं। अब जब आपके दो बच्चे हैं और शादी को एक लंबा अरसा गुज़र गया है तब अचानक आपको कैसे लगा कि आपके पति अनपढ़ हैं। ये तो आपके विवाह के वक्त भी इनके और आपके परिवार ने बताया होगा। फिर भी उस समय अपने विवाह के लिए सहमति दी  होगी। हाँ यदि आपके पति और उनके परिवार ने इनकी शिक्षा के विषय में आपसे झूठ कहा हो तब ये ज्यूरी आपके विवाह विच्छेद के विषय पर विचार अवश्य करेगी किन्तु ऐसे में भी आपके पति पर झूठ बोलने और तथ्य छिपाने का दोष सिद्ध होने के बाद। तो आप इस विषय पर क्या कहते हो मिस्टर सुमेर सिंह, क्या अपने और आपके परिवार ने इनसे और इनके परिवार से आपकी शिक्षा और रोजगार सम्बंधित तथ्य छिपाये थे।


 सुमेर:- सम्मानित ज्यूरी यदि आज्ञा दें तो मैं शुरू से सारी बात बताना चाहता हूँ?

 ज्यूरी के सदस्य आपस में इशारों में कुछ बात करने के बाद एक स्वर में:- बताइये किन्तु इतना ध्यान रहे कि जो भी बातें इस केस को साफ करती हों केवल वही बात कही जाय अनावश्यक चर्चा करके ज्यूरी का कीमती वक़्त बर्बाद ना किया जाए।

 

 सुमेर:- जी अवश्य, मैं इस बात का ध्यान रखूँगा।


 ज्यूरी1:-  ठीक है बताइये।


 सुमेर:- जब हमारी शादी हुई उस समय मैं बारहवीं पास था और राधिका दसवीं पास। हम दोनों के ही परिवार आर्थिक कारणों से हमें आगे पढ़ाने में असमर्थ थे। मैंने अपने घर की माली हालत देखते हुए एक मिल में नौकरी शुरू कर दी थी तभी हम दोनों के परिवार और हमारी आपसी सहमति से हमारा विवाह हो गया। सब बहुत अच्छा था हम दोनों भी बहुत खुश थे। शादी के कुछ दिन बाद राधि ने मुझसे आगे पढ़ने की इच्छा जाहिर की जिसे मैंने खुशी-खुशी मान लिया और इसका दाखिला कॉलेज में करा दिया। माननीय ज्यूरी मैने अपने खर्च में कटौती करके और इनके हिस्से का घर का काम खुद करके इन्हें ग्रेजुएशन फिर बी एड कराया। जब ये ग्रेजुएशन कर रहीं थीं तभी हमारे घर बेटे का जन्म हुआ। बेटे की देखभाल के चलते इन्हें पढ़ाई में परेशानी होती थी। इनकी ये बात जानकर मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी और घर में ही छोटी सी दुकान खोल ली। इससे मैं हर समय घर पर ही रहता था तो अब ये निश्चिंत होकर पढ़ाई पर ध्यान देती और कॉलेज भी चली जाती थीं। आदरणीय ज्यूरी जिन बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी ये माँग रही हैं उनका तो इन्हें ये भी नहीं पता कि वह रात में कितनी बार उठकर क्या-क्या माँग करते हैं। मैंने दुकान, घर और बच्चे सम्भालते हुए इन्हें पढ़ाया और नौकरी के एग्जाम और इंटरव्यू दिलवाए। हमारी मेहनत एक दिन सफल हुई जब ये राजकीय बालिका इंटर कॉलेज में लेक्चरार बनीं। इस बीच हमारे घर पर रख छोटी बेटी भी आ चुकी थी। अभी हमारा बेटा आठ साल का और बेटी पाँच साल की है जो दोनों शुरू से ही मेरे साथ रहते हैं और मेरी पत्नी अपनी जॉब के चलते शहर में किराए के मकान में रहती है।

 मैं ज्यूरी को स्पष्ट करना चाहूँगा की मैं अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता हूँ और तलाक जैसा अशुभ शब्द मैं उसके लिए सोच भी नहीं सकता किन्तु फिर भी यदि मेरी राधि मेरे साथ रहना नहीं चाहती तो वह शौक से अलग रहे लेकिन मेरे बच्चे मेरे साथ ही रहेंगे और जहाँ तक गुजारे भत्ते का सवाल है तो इसने खुद ही मुझपर इल्जाम लगाया है कि मैं बेरोजगार हूँ तो ऐसे में भत्ता मुझे और बच्चों को राधिका की तरफ से मिलना चाहिए। बस मेरी यही गुजारिश है कि राधि चाहे तो बेशक अलग रहे किन्तु बच्चे मैं खुद ही पालूंगा।


 ज्यूरी1:- हाँ तो राधिका जी क्या जो भी मिस्टर सुमेर सिंह ने कहा वह सब सही है?


 राधिका:- सच है कि इन्होंने मुझे आगे पढ़ाया लेकिन कोई एहसान नहीं किया, बल्कि इसमें इनका स्वार्थ था। इनका सोचना था कि खुद तो ये बेरोजगार हैं तो क्यों ना पत्नी से नौकरी करवाकर उसकी कमाई खाई जाए। और रही बच्चों की बात तो ऐसा नहीं है कि इन्होंने अकेले ही सब किया है। मैं भी घर पर रहती थी और काम करती थी। और फिर पिछले 3 साल से तो मैं अपनी कमाई भी इनपर लुटा रही हूँ। लेकिन इनका लालची मन अब मेरे बच्चों को मुझसे दूर करके उनके नाम पर मेरी कमाई लूटना चाहता है। मुझे अब इस आदमी से तलाक चाहिए, मैं अपने बच्चों को लेकर शहर में रहूँगी जहाँ के अच्छे स्कूल में पढ़कर वे आगे बढ़ सकें। मेरे बच्चे इस अनपढ़ आदमी के पास रहें ये अच्छी बात नहीं।

 

 सुमेर:- ये इल्ज़ाम सरासर गलत है योर ऑनर की मैंने कभी राधिका की कमाई रखने के बारे में सोचा भी हो। मैं तो इसके नौकरी करने की बात पर इसलिए तैयार हुआ था क्योंकि इससे राधिका को खुशी मिल रही थी। मैंने राधिका को उसकी खुशी के लिए बाप बनकर पढ़ाया। राधिका के आराम के लिए बच्चों को माँ बनकर पाला। किन्तु एक पति होने के नाते भी कभी उसपर किसी तरह का कोई अधिकार नहीं जमाया। फिर भी आज मेरे किये को कर्तव्य बताकर राधिका खुद के हर कर्तव्य से मुँह मोड़कर जाना चाहती है। यदि इसे किसी आभासी दुनिया में जाना भी है तो खुशी से जाए लेकिन मेरे बच्चे इसके साथ कभी खुश और सुरक्षित नहीं रह पाएंगे। मैं ज्यूरी से हाथ जोड़कर अपील करता हूँ कि मेरे बच्चों को मुझसे अलग ना किया जाय।


 मुख्य जज:- हमने आप दोनों की बातें सुनीं। बाकी की कार्यवाही लंच ब्रेक के बाद होगी। आप दोनों अपने-अपने पक्ष में जो भी गवाह पेश करना चाहें उनकी लिस्ट अदालत में जमा कर दें लंच बाद उनसे भी बात कर ली जाएगी और जो भी निर्णय होगा आज ही सुना दिया जाएगा। अभी के ये अदालत बर्खास्त होती है।

  

 दृश्य - 2 अदालत का ही एक छोटा कमरा है जहाँ ज्यूरी के तीनों सदस्य आपस में विचारविमर्श कर रहे हैं।

 ज्यूरी1:- क्या लगता है मैडम, क्या राधिका का पति सच में बच्चों के बहाने उससे पैसे ऐंठना चाहता है?

 ज्यूरी2:- मेरे विचार से तो इनके झगड़े के पीछे की असली वजह कुछ और ही है। हो सकता है शहर में रहते हुए महिला की दोस्ती किसी… और इसी लिए वह आज़ाद होना चाहती है।

 

  मैडम:- मेरे विचार से ऐसा कुछ नहीं है बस राधिका के मन में कोई ऐसी बात घर कर गयी है जिससे वह बाहर नहीं आ पा रही है। यदि उसके कहीं सम्बन्ध होते तो वह कभी बच्चो को अपने साथ रखने की ज़िद नहीं करती। और रही बात सुमेर की तो वह सच में अपनी पत्नी और बच्चों से प्रेम करता है। लेकिन फिर भी हमें इन दोनों को सच्चाई समझने के लिए कुछ लोगों से बात करनी होगी। मुझे पूरी उम्मीद है कि ये लोग सही रास्ते पर आ जाएंगे। हमसे पहले ये केस जिनके पास था उन्होंने भी इन दोनों की बातें ध्यान से सुनी थीं और इन्हें कहा था कि तुम लोगों को अदालत की नहीं किसी फेमिली काउंसल की ज़रूरत है। 

 

 ज्यूरी1:- लेकिन मेडम ये लोग किसी काउंसलर के पास तो गए ही नहीं?

 मेडम:- इसी लिए तो जज साहब के विशेष अनुरोध पर इनके मामले के लिए हम लोगों की ज्यूरी बनाई गई है। आपको तो पता ही है कि मैं एक फेमिली काउंसलर हूँ और आप दोनों भी तो वकील होने के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक भी हो। इसीलिए इनके केस के लिए हमे चुना गया है कि शायद एक परिवार बिखरने से बच जाए।

 

 तभी ज्यूरी1 घड़ी की ओर इशारा करता है और तीनों मुस्कुराते हुए उठ खड़े होते हैं।


      दृश्य- 3

  

   अदालत का वही कमरा जहाँ सुनवाई चल रही थी।

तीनों जजो के आते ही सारे लोग खड़े हो जाते हैं और उनके इशारा करने पर बैठ जाते हैं। 

 पेशकार एक पेपर ऊपर मेज पर रखता है जिसे बारी-बारी तीनों लोग देखते हैं। और फिर पेशकार को कुछ इशारा करते हैं।


  पेशकार:- केस 1632 राधिका सुमेर तलाक केस के गवाह सुमेर सिंह के गाँव की महिला श्रीमती चन्द्रावती देवी हाज़िर हों।


 वृद्व महिला आगे आती हैं और गवाह की कुर्सी पर बैठ जाती है।

 

 ज्यूरी1:- श्रीमती चन्द्रावती जी आप इन दोनों को कैसे जानती हैं?


 चन्द्रावती:- जज साहिबा ये हमारे गाँव में हमारे पड़ोसी हैं।


  ज्यूरी1:- तब तो आप इन दोनों को खूब अच्छी तरह जानती होंगी?

 चन्द्रावती:- जी जज साहिब ये सुमेर जब से पैदा हुआ इसे तब से जानती हूँ और ये बहु को विवाह के बाद से।


 ज्यूरी2:- क्या इन दोनों में कभी झगड़ा होता था या कोई अन्य ऐसी बात जिससे लगे कि ये दोनों एक साथ नहीं रह सकते?


 चन्द्रावती:- नहीं साहब इन दोनों में कभी कोई झगड़ा या कहासुनी नहीं हुई। ऊपर से सारे गाँव वाले यही कहते थे कि ये दोनों एक दूजे के लिए ही बने हैं। सुमेर घरवाली को इतना प्यार करता था कि उसे पढ़ाने के लिए खुद खरवाली बन गया। उसे घर का कोई काम करने ही नहीं देता था। और अगर कभी कोई गाँव वाला समझाता की सुमेर बीबी को ज्यादा पढ़ाकर मास्टरनी मत बना नहीं तो कल सर पर बैठेगी तो ये पगला हँसकर जवाब देता। मेरे ही तो बैठेगी किसी का क्या जाता है। मेरी बीबी है मैं पूरा का पूरा उसका हूँ वह जी चाहे जहाँ बैठे।


  ज्यूरी1:- तो क्या आप बता सकती हैं अब ऐसा क्या हुआ जो ये तलाक लेने अदालत तक आ गए?


चन्द्रावती:- क्या जाने साहब किसकी नज़र लग गयी इनके प्यार को। बहुरिया नोकरी करने शहर क्या गयी बेचारे सुमेर की जिंदगी की बहार ही चली गयी। और अब ना जाने राधा को क्या हुआ जो तलाक़ की जिद पर अड़ी है। मुझे तो लगता है दिमाग फिर गया है बहु का या फिर किसी ने कुछ करवा दिया है।


 दोनों ज्यूरी मेडम की ओर देखते हैं और फिर चन्द्रावती को जाने को कह देते हैं।


पेशकार:- अगला गवाह सुमेर की माताजी हाज़िर हों...



सुमेर की बूढ़ी मॉं जो कोई 60/62 साल की हैं लेकिन कमज़ोरी से और ज्यादा बूढ़ी लग रही हैं आकर गवाह की कुर्सी पर बैठ जाती हैं।


ज्यूरी1:- क्या आप इन दोनों के बारे में कोई भी ऐसी बात बता सकती हैं जिसके आधार पर अदालत मान ले कि ये लोग एक साथ नहीं रह सकते और इन्हें तलाक दे दे।


 सुमेर की माँ:- नहीं साहब मुझे ऐसी कोई बात नहीं पता।

 ज्यूरी2:- आपके साथ आपकी बहु का बर्ताव कैसा रहा है। क्या ये झगड़ालू या बदजबान हैं।


सुमेर की माँ:- नहीं साहब ऐसा भी कुछ नहीं है ऐसे भी पढ़ाई लिखाई में बहु को मेरे साथ रहने का टेम ही कहाँ मिला। ये यो वियाह के बाद पहले पढ़ने में और बाद में पढ़ाने में ही रह गयी। इसके तो बच्चे भी इसे बाहर की मास्टरनी माने हैं। उनके तो माँ भी सुमेर है और बाप भी। उसने कभी बच्चो का कोई काम नहीं किया।


ज्यूरी2:- ठीक है आप जा सकती हो।


पेशकार:- अगला गवाह राधिका के मकान मालिक हाज़िर हों।


 मकान मालिक आकर गवाह की कुर्सी पर बैठ जाता है।


ज्यूरी1:- आप इन दोनों को कब से जानते हो?


मकानमालिक:- दोनों को नहीं साहब मैं तो बस मास्टरनी जी को ही जनता हूँ, ये पिछले डेढ़ साल से हमारे मकान में किराएदार की हैसियत से रह रही हैं।


 ज्यूरी2:- क्या आप बता सकते हो इस बीच इनका व्यवहार कैसा रहा है? ऐसी कोई बात जो आपको असमान्य लगती हो?


मकानमालिक:-नहीं साहब ऐसा तो कुछ याद नहीं।


मुख्य जज:- क्या राधिका से मिलने कोई लोग आपके घर पर आते हैं? 


मकानमालिक:- ज्यादा तो नहीं क्योंकि राधिका मैडम अपने आप में ही रहने वाली महिला हैं। बस कभी कोई सहकर्मी अध्यापिका या कभी कोई छात्र छात्रा बाकी तो कोई नहीं।


 ज्यूरी2:- ठीक है आप जाइये।


पेशकार:- अगली गवाह राधिका की मकान मालकिन हाज़िर हों।


मकान मालकिन आकर कुर्सी पर बैठ जाती है।


 ज्यूरी1:- आप राधिका जी को कब से जानती हैं?


 मकान मालकिन:- यही कोई डेढ़ साल से।


ज्यूरी2:- आप इनके बारे में कोई ऐसी बात बताना चाहेंगी जिसके आधार पर इन्हें तलाक मिल सके।


मालकिन:-ऐसा तो कुछ नहीं है बताने को सिवाय इसके की जब से राधिका हमारे यहाँ आयी हैं ना तो कभी उनके पति और ना ही उनके बच्चे उनसे मिलने आये। हम लोग तो इनके पति को जानते तक भी नहीं हैं। आज पहली बार इन्हें इस अदालत में ही देख रहे हैं।


मुख्य जज साहिबा:- आप राधिका जी के चरित्र के बारे में क्या कहना चाहेंगीं?


मालकिन:- ऐसी कोई बात हमने कभी महसूस नही। की जिससे राधिका के चरित्र को खराब कहा जा सके लेकिन हर शनिवार शाम से रविवार शाम तक ये कहीं चली जाया करती हैं।


जज साहिब:- तो मिस्टर सुमेर क्या आप बता सकते हैं कि आप कभी राधिका से मिलने शहर क्यों नहीं जाते? क्या आप दोनों के बीच कोई झगड़ा चल रहा है?


सुमेर:- नहीं जज साहिबा, ऐसा इसलिए है क्योंकि मेरे ऊपर बच्चों, दुकान और माताजी की पूरी जिम्मेदारी है और फिर हर शनिवार को राधिका तो घर आती ही थी। लेकिन पिछले कुछ समय से राधिका भी हर शनिवार नहीं आयी और आती भी थी तो बस बच्चों से ही बात करती रही है।


जज साहिब:-सब ठीक है राधिका और सुमेर, आप दोनों के बीच ऐसा कोई कारण नहीं नज़र आ रहा जिसके बेस पर आपको तलाक दिया जाए। आपके गवाह भी ऐसा कोई कारण नहीं बता पाए फिर भी जब राधिका ने ठान ही लिया है कि उसे तलाक लेना ही है तो हम ज्यूरी सदस्य इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि राधिका अपने पति सुमेर को उनके द्वारा अपनी पढाई लिखाई पर खर्च की गई रकम के एवज में एक मुश्त पाँच लाख रुपये अदा करे जिससे सुमेर सिंह अपनी दुकान को बड़ा कर सके।

और दोनों बच्चों के भरण पोषण के लिए ज्यूरी राधिका पर हर महीने दस हज़ार रुपये देना तय करती है। और क्योंकि सुमेर बेरोजगार है और उसपर बूढ़ी माँ की जिम्मेदारी भी है तो राधिका हर महीने दस हज़ार रुपये सुमेर को गुजारा भत्ता के रूप में अदा करे। अदालत अधिनियम के आधार पर ये भी फैसला सुनाती है कि यदि सुमेर कहीं दूसरी शादी करता है तो तत्काल प्रभाव से उसका गुजारा भत्ता बन्द करके बच्चो की कस्टडी राधिका को दे दी जाय। और अगर कभी राधिका कहीं और शादी करती है तो गुजारा भत्ते की रकम को राधिका के वेतन का 60 प्रतिशत तक बढ़ा दिया जाए।

 आजकल लोगों में बिना कारण के ही गुस्सा, शक और अविश्वास बढ़ता ही जा रहा है। इस केस में भी कुछ ऐसा ही लगता है कि राधिका के मन में कहीं ना कहीं ये बात घर कर गयी है कि सुमेर या तो उसका जॉब करना पसंद नहीं करता या फिर केवल उसे पैसे के लिए नौकरी करने भेज रखा है, और इसका कारण कहीं ना कहीं यही नज़र आता है कि सुमेर कभी भी उससे मिलने नहीं आता। जबकि सुमेर की बातों से लगता है कि उसे इस बात का पता भी नहीं की राधिका इतना पढ़ लिखकर भी इतनी छोटी सी बात को तलाक का कारण बना देगी। बाकी इतने लोगों से बात करने और केस को समझने के बाद ज्यूरी को और कोई कारण नज़र नहीं आता।

  वैसे ज्यूरी की सलाह आप दोनों के लिए यही है कि आप लोग एक साथ ही रहें और ये बिना कारण का मनमुटाव खत्म कर दें। और अगर राधिका चाहे तो सुमेर को और पैसे देकर उसकी दुकान शहर में ही खुलवा दे और दोनों एक साथ ही रहें, सुमेर को भी राधिका के अकेलेपन और खाली दिमाग में उपजे बिना बजह के कारणों को खत्म करने के लिए राधिका के मन की बात समझते हुए यही प्रयास करना चाहिए कि जैसे भी सम्भव हो दोनों साथ ही रहें।

 अदालत की कार्यवाही अब खत्म होती है।


पर्दा गिरता है।।



लेखक- नृपेंद्र शर्मा

ठाकुरद्वारा जिला मुरादाबाद

मोबाइल 9045548008




Saturday, September 18, 2021

झूले पर मौत

अक्टूबर का महीना था, मौसम अधिकतर सुहाना ही होता था। लेकिन अक्सर शाम जल्दी ढलने लगती थी और पर्वतीय इलाकों में शाम के बाद सर्द लहर चलना भी आम बात थी।
सुहानी और सुरेश अपने पारिवारिक मित्र पंकज और प्रेरणा के साथ नैनीताल टूर पर आए हुए थे। सुरेश के पास मारुति जिप्सी थी जो पहाड़ी यात्राओं के लिए बिल्कुल उपयोगी थी। ऊपर से सुरेश ने उसे मोडिफाइड करवाकर छत को एक फाइबर ग्लास से बनबाया था और पीछे की सीट सीधी करवाकर अगली सीटों के पैरलर करवा ली थी। जिप्सी की फाइबर ग्लास रूफ केवल चार पिलर के सहारे टिकी हुई थी जिसे कभी भी एक साइड से खोलकर पीछे डिक्की में रख कर जिप्सी को फूल ओपन बनाया जा सकता था।
दो दिन और एक रात की फुल मस्ती के बाद ये चारों लोग शाम ढलने से पहले नैनीताल से वापस आने के लिए निकल पड़े। लेकिन उस दिन शाम कुछ जल्दी ही ढलने लगी थी और सात बजते-बजते अंधकार पूरी तरह पसर गया था। यूं तो ठंड बहुत ज्यादा नहीं थी लेकिन कहते हैं ना कभी कभी वक़्त पूरी तरह मज़ाक के मूड में होता है। तो शायद आज का दिन भी इन चारों के लिए कुछ ऐसा ही बन गया था। वातावरण में धीरे-धीरे घना सफेद कोहरा फैलने लगा था जो बस बीस पच्चीस फुट की ऊँचाई तक ही था लेकिन पूरी तरह सफेद रंग की चादर जैसे उनके आगे उनका रास्ता रोके खड़ी थी।
"मैंने कहा था ना कि या तो जल्दी निकलो नहीं तो कल सुबह चलेंगे। अब देखो कैसा डरावना मौसम हो गया है। सामने का कुछ भी नज़र नहीं आ रहा है। ऐसा लगता है कि ऊपर वाला भी हमें वापस जाने से रोकने का संकेत दे रहा है।" प्रेरणा घबराई हुई आवाज में बोली।
"अरे कुछ नहीं भाभी जी! ये तो बस पहाड़ी आबोहवा का असर है। पहाड़ों में ऊपर ठंड होने लगी है और नीचे मौसम गर्म है। बस इसी लिए ये कोहरा आ गया है। हम लोग बस आधे घण्टे में ही कालाढूंगी से आगे निकल जाएँगे उसके बाद सड़क सीधी और एरिया प्लेन होगा। फिर हम आराम से दो घण्टे में मुरादाबाद पहुँचकर अपने बिस्तर में होंगे।" सुरेश ने लापरवाही से गाड़ी चलाते हुए कहा, लेकिन कोहरे और लापरवाही में वह ये नहीं देख पाया कि गाड़ी कबकी सड़क से उतर कर नीचे कच्चे रास्ते पर चलने लगी है।
कोहरे की उस चादर पर पड़कर गाड़ी की लाइट्स भी घेरे के रूप में फैल जाती थीं। उन्हें नज़र आते थे तो बस पेड़ों के साये जो सामने रास्ता होने की पुष्टि करते इनके साथ-साथ चल रहे थे।
ऐसे ही चलते-चलते कोई एक घण्टा गुजर गया था। गाड़ी की स्पीड भी बहुत कम थी। प्रेरणा को हैरानी हो रही थी कि पिछले एक घण्टे से ना तो कोई गाड़ी इनके सामने से आई थी और ना ही पीछे से। लेकिन वह ये सोचकर चुप थी कि ये लोग फिर डरपोक कहकर उसकी मज़ाक बनाएँगे। लेकिन अंदर ही अंदर वह बुरी तरह घबरा रही थी और हनुमान जी को याद कर रही थी।
कुछ ही दूर और चलने के बाद इनकी गाड़ी झटके खाने लगी और फिर एकदम खररर!! की तेज आवाज करके बन्द पड़ गयी।
"अब??" प्रेरणा और प्रशांत ने लगभग एक साथ ये सवाल किया।
"लगता है चढ़ाई पर चढ़ने की वजह से इंजन गर्म हो गया।" सुरेश ने फिर उसी बेपरवाही से जवाब दिया और  गाड़ी से नीचे कूद गया।
"लेकिन हम तो नीचे उतर रहे हैं फिर चढ़ाई कहाँ से आ गयी? और ये रास्ता भी कुछ अनजान सा नहीं लग रहा? प्रेरणा ने नीचे देखते हुए कहा।
"हाँ यार हम तो नैनीताल से वापस लौट रहे हैं तो फिर हम चढ़ाई क्यों चढ़ रहे हैं? और ये तो कोई कच्चा रास्ता है यार सुरेश। क्या हम लोग रास्ता भटककर कहीं और निकल आये हैं?" पंकज ने डरते हुए पूछा।
"अरे यार चुप करो तुम दोनों डरपोक लोग! पहले मुझे गाड़ी देखने दो की इसमें क्या हुआ है। तबतक तुम लोग नेट खोलकर लोकेशन और रास्ता देखने की कोशिश करो।" सुरेश ने कहा और आगे बढ़कर गाड़ी का बोनट उठा दिया। बोनट उठते ही उसमें से उठते धुएँ से सुरेश जलते-जलते बचा।
गाड़ी इतनी बुरी तरह गर्म हुई थी कि घुएँ में आग की लपटें नज़र आ रही थीं।
"ओह्ह!! ओवर हीट होने के कारण इंजन जाम हो गया लगता है। अब बिना इंजन ठंडा करे गाड़ी स्टार्ट नहीं होगी यार!" सुरेश पहिये पर लात मारकर झुंझलाहट उतरते हुए बोला।
"फिर अब क्या करें?" सुहानी जो अभी भी सीट पर बैठी हुई थी, नीचे उतरते हुए बोली।
"पंकज देखो पीछे डिक्की में एक कैन में पानी होगा जरा ले आओ तो।" सुरेश ने धीरे से कहा।
"यार सुरेश यहाँ कैन तो है लेकिन इसमें पानी की एक बूंद भी नहीं है।" पंकज कैन को हिलाते हुए बोला।
"धत्त!!! इसे कहते हैं मुसीबत में और मुसीबत।
अब जाओ और कहीं से पानी ढूंढकर लेकर आओ।" सुरेश ने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा।
"अरे यार अब इस अनजान जँगल में मैं कहाँ से पानी ढूँढ़ के लाऊँ?" सुरेश डरते हुए बोला।
"अच्छा चल हम दोनों चलते हैं। और तुम दोनों गाड़ी में ही बैठी रहना हमारे लौटने तक।" सुरेश ने प्रेरणा और सुहानी को देखते हुए कहा।
"यार सुरेश मुझे इन दोनों को ऐसे अकेले इस घने जंगल में छोड़कर जाना ठीक नहीं लग रहा। मेफे विचार से या तो हम चारों को चलना चाहिए या फिर यहीं रुककर रात बितानी चाहिए। ऐसे भी ये रास्ता बिल्कुल सुनसान है। तुमने देखा है कि पिछले दो घण्टे से हमने इस रास्ते पर ना तो कोई गाड़ी देखी है और ना ही कोई आदमी।" पंकज ने कुछ सोचते हुए कहा।
"पंकज जी ठीक कह रहे हैं सुरेश, और ऐसे भी इस घने अँधेरे में पानी खोजना आसान नहीं होगा।
क्या तुम्हें याद है कि पीछे इस रास्ते पर पानी का कोई पॉइंट दिखा हो या कोई बस्ती ही मिली हो। फिर आगे भी अंधेरे में ही हाथ-पांव मारने होंगे।" सुहानी ने सुरेश को समझाते हुए कहा।
"ठीक है आओ कुछ सोचते हैं।" सुरेश ने गाड़ी से बोतल निकालते हुए कहा और पैग बनाने लगा।
"यार रात भर यहाँ रुकना भी सही नहीं होगा! ये जँगल जँगली जनवरों से भरा हो सकता है औऱ यदि कोई तेंदुए या हाथी इधर आ गया तो हमारे लिए जान का खतरा हो जाएगा। वैसे इस रास्ते की बनाबट कुछ ऐसी नहीं लगती जैसे ये किसी रिसोर्ट का रास्ता हो? अभी समय क्या हुआ है? और तुमने नेट से लोकेशन देखने की कोशिश की?" सुरेश ने कई सवाल एक साथ कर दिए।
"समय तो अभी नो बजे हैं और नेटवर्क यहाँ है नहीं तो बाकी हम लोकेशन तो छोड़ किसी को कॉल तक नहीं कर सकते।" पंकज ने जवाब दिया।
"ओह्ह!! फिर अब?"  प्रेरणा ने घबराहट भरी आवाज में पूछा।
"चलो चारों लोग एक साथ चलते हैं शायद सुरेश का अनुमान ठीक हो और आगे कोई रिसोर्ट मिल जाये। नहीं तो कोई पहाड़ी गाँव तो अवश्य होना चाहिए क्योंकि इस रास्ते पर घास बिल्कुल नहीं है और गाड़ियों के पहियों के निशान भी हैं।" सुरेश ने कहा और चारों लोग उस रास्ते पर आगे बढ़ गए।
कोई आधा घण्टा चलने के बाद इन्हें सामने एक बहुत बड़ा घास का मैदान दिखाई दिया जिसके बीच में लोहे के दो झूले लगे हुए थे। उसके पीछे एक बड़ी सी बिल्डिंग थी जिसका शीशे के दरवाजा दूर से ही चमक रहा था। उसे देखकर इनकी आँखो में चमक आ गयी और इनके कदमों की गति खुद ब खुद बढ़ गयी।
थोड़ा आगे बढ़ने पर इनके कानों में झूले की करर्रर!! करर्रर!! की तेज आवाज आने लगी। इन्होंने ध्यान से देखा सामने झूलों पर दो बच्चे लगभग अर्धनग्न मस्त होकर झूला झूल रहे थे।
"अरे यार कौन लोग हैं ये जो इतनी सर्दी में भी बच्चों को इतनी रात में झूला झूलने के लिए छोड़ रखा है और खुद मस्त होकर कमरों में पड़े हैं।" सुरेश उन बच्चों को देखकर कुछ जोर से बोला।
तभी उन्हें बच्चो के तेज खिलखिला कर हँसने की आवाज आने लगी।
"शहशशस!!!, मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा, इतनी रात में ये बच्चे बाहर कैसे हैं। जरा देखो उन बच्चों को इतने नाज़ुक से दिख रहे हैं लेकिन झूला ऐसी आवाज कर रहा है जैसे ये हाथी के बच्चे हों। और इनकी हँसी कितनी डरावनी है।" प्रेरणा पंकज का हाथ पकड़कर रोकते हुए बोली।
"अरे कुछ नहीं भाभी ये बस आपका वहम है, अभी समय ही क्या हुआ है जो बच्चे बाहर नहीं हो सकते। और रही बात झूले की आवाज की तो हो सकता है झूला बाहर होने की बजह से जंग खा रहा हो और आवाज कर रहा हो।" सुरेश उन बच्चों की ओर बढ़ते हुए बोला।
ये लोग अभी कुछ ही दूर आगे बढ़े थे कि एक आदमी तेज़ी से दौड़ता हुआ आया और बोला, "साब जी उधर मत जाइए ये अच्छा होटल नहीं है। आप लोग मेरे पीछे आइए। उधर मुड़कर मत देखना साब जी बस मेरे पीछे चले आइए।"
पता नहीं ये उसकी आवाज का जादू था या कोई दैवीय प्रेरणा की ये लोग उस आदमी के पीछे हो लिए चुपचाप।
ये लोग अपनी तरफ से लगभग दौड़ ही रहे थे लेकिन फिर भी उस आदमी को पकड़ नहीं पा रहे थे। लेकिन बस बिना पीछे देखे ये लोग उस आदमी के पीछे भागे जा रहे थे।
इनके कानों में पीछे की तरफ से बहुत भयानक चीखें गूँजती महसूस हो रही थीं जैसे कोई इनके इधर भाग आने से बहुत नाखुश हो।
कुछ ही देर में सामने कुछ दिए से जलते दिखने लगे।
"उधर साब जी!!" उस आदमी ने इशारा करके कहा और अचानक गायब हो गया।
ये लोग अब और तेज़ी से दौड़ रहे थे इन्हें कुछ-कुछ समझ आ रहा था। कुछ ही देर में ये उस गाँव में थे और एक घर का दरवाजा पीट रहे थे।
"कुछ ही देर में दरवाजा खुला, सामने एक बूढ़ा और एक लड़की खड़े थे।
"हम लोग मुसाफिर हैं और रास्ता भटक गए हैं, क्या आज रात के लिए हम यहाँ रह सकते हैं?" सुरेश ने घबराए स्वर में पूछा।
"आ जाइये आप लोग।" बूढ़े ने कहा और सामने से हट गया।
कुछ ही देर में ये लोग उस बूढ़े को सारी कहानी सुना चुके थे कि कैसे ये लोग नैनीताल से निकलकर रास्ता भटक गए और इनकी गाड़ी खराब हो गयी। फिर इन्हें झूले पर बच्चे दिखे और ये उधर जा रहे थे तो कोई बूढ़ा बाबा इन्हें इधर ले आया।
इनकी कहानी सुनकर बूढ़े ने बस इतना ही कहा कि, "झूले पर मौत!!
बच गए तुम लोग देवता के आशीर्वाद से। चलो अब खाना खाकर सो जाओ बाकी बातें मैं सुबह बताऊँगा।"
इसी बीच बूढ़े की पोती ने इनके लिए भात परोस दिया और ये लोग खाकर बिस्तर पर लेट गए।
सुबह बूढ़े ने बताया कि "जिस जगह से देवता ने तुम्हे बचाया वह कोई रिसोर्ट नहीं बल्कि अंग्रेजों के जमाने का कब्रिस्तान है और जो झूले पर झूलते हुए तुम्हे दिखाई दिए वह कोई बच्चे नहीं बल्कि दुस्ट आत्माएँ हैं। अगर तुम लोग दो कदम और आगे बढ़ जाते तो फिर तुम्हें कोई नहीं बचा सकता था।
इन लोगों की पूरी बस्ती को आज़ादी की लड़ाई में जला दिया गया था और अब ये लोग आत्मा बनकर उसी का बदला लेने के लिए लोगों को भ्रमित करके इधर बुलाकर डराकर मार डालते हैं।  हमारे ग्राम देवता कई बार लोगों को बचा लेते हैं लेकिन कई बार ग्राम देवता को भी ये लोग भ्रमित कर देते हैं और फिर उन्हें वहाँ पहुँचने में देर हो जाती है। एक बार जब कोई इनकी सीमा में कदम रख देता है तो फिर उसे कोई नहीं बचा सकता। तुम लोग भाग्यशाली हो जो समय रहते ग्रामदेवता तुम्हें बचा लाये।"
फिर ये लोग बूढ़े को धन्यवाद देकर वहाँ से चले आये इन्होंने दूर से वह जगह देखी जहाँ रात में इन्हें झूले पर मौत दिखी थी। वह बहुत डरावनी जगह थी एक सदियों पुराना टूटाफूटा कब्रिस्तान जिसका लोहे का टूटा हुआ गेट लटक रहा था और रात में वे आत्माएँ इन्ही दरवाजे के पल्लों पर झूल रहे थे। ये देखकर इनके रोएं खड़े हो गए और ये लोग बिना पीछे देखे वापस लौट आये।
अब इनकी गाड़ी आराम से चालू हो गयी और ये लोग घर आ गए।
लेकिन लौटने के बाद भी कई दिन इन्हें वही झूले पर मौत नज़र आती रही और ये लोग बुखार में काँपते रहे।

©नृपेंद्र शर्मा "सागर"


Thursday, August 26, 2021

अच्छे लगने लगे

"तुम्हें डर नहीं लगता ऐसे आधी रात एकांत में मुझसे मिलने आते हो? क्या ये श्मशान, ये जलती चिताएं, ये बरगद पर लटके मुर्दों की अस्थियों के कलश कुछ भी तुम्हें यहाँ आने से नहीं रोकते? और तुम्हारे घर वाले...! क्या उन्हें भी तुम्हारे आधी रात एकांत में श्मशान में आना बुरा नहीं लगता? कपिल की गोद में सर रखे लेटी हुई राजबाला ने उसकी आँखों में देखते हुए पूछा।
"अरे राज!! कितने सवाल करती हो तुम। अरे जल्दी ही सुबह होने लगेगी और फिर तुम्हें अपनी दुनिया में वापस जाना पड़ेगा। जब तक हो तब तक तो कम से कम मोहब्बत की बातें कर लो! तुमसे मिलना अच्छा लगता है", कपिल ने उसके बालों में उँगलियाँ घुमाते हुए धीरे से कहा और राजबाला जोर से हँसने लगी।
"अब इसमें हँसने वाली कौन बात कह दी मैंने जो मेरा मज़ाक उड़ा रही हो।
"ना...ना मैं मज़ाक नहीं उड़ा रही कपिल! मैं तो बस तुम्हारे बारे में सोच कर हँस रही हूँ। याद है जब मैं जिंदा थी और एक हसीन जिस्म की मालकिन भी, तब कितनी बार मैं खुद तुम्हे प्यार में आगे बढ़ने के इशारे देती थी लेकिन तुम बुद्धूराम!! कभी गलती से हाथ भी छू जाता था तो ऐसे चिहुँक जाते थे जैसे करंट लग गया हो। और अब तुम्हारी मोहब्बत की बातों की प्यास मिटती ही नहीं। अब मेरे पास क्या बचा है कपिल जो मैं तुम्हें दे सकूँ। अरे अब तो मैं बस एक हवा हूँ। तुम मुझे भूल जाओ कपिल और अब किसी सुंदर सी लड़की से शादी कर लो। वैसे वो रानी... उसके बारे में क्या ख्याल है? बेचारी मरती थी तुमपर और मैं ... खैर छोड़ो मैं तो अब सच में मर गयी हूँ तो तुम उस रानी से ही...?" राजबाला ने गम्भीर होकर कहा।
"चुप रहो! मैं किसी रानी को नहीं जानता और अगर तुम्हें मेरा इधर आना इतना ही बुरा लगता है तो नहीं आऊँगा कल से।" कपिल तनिक गुस्से से बोला और राजबाला को अपनी गोद से उठा दिया।
"अर्रे!! ऐसा गज़ब मत करना नहीं तो मैं फिर से मर जाऊँगी। मैं तो बस ऐसे ही कह रही थी।" राजबाला तड़फ कर बोली।
"तो फिर प्यार की बातें करो।" कपिल ने मुस्कराते हुए कहा और राजबाला को खींच कर गले लगा लिया।
राजबाला भी उससे और कस कर लिपटते हुए बोली, "कपिल काश ये सब तुम पहले करते जब मैं जिंदा थी तो शायद हमें प्यार का ज्यादा मज़ा आता।
"राज! मेरा प्रेम पवित्र था और है जिसमें जिस्मों का कहीं कोई सम्बंध ना पहले  था और ना अब है। मैंने तो तुम्हारी रूह से ही मोहब्बत की थी और अब भी कर रहा हूँ। और शायद मेरे इसी प्रेम बन्धन के कारण तुम शरीर से मुक्त होकर भी मुक्त ना हो सकीं।
लेकिन राज! अब मैं सोचता हूँ कि ये हवा की योनि तुम्हें मेरे ही कारण मिली है। और अब तुम्हारी मुक्ति की राह भी मुझे ही खोजनी होगी।
"चुप रहो तुम! ज्यादा पंच मत बनो। मुझे नहीं चाहिए कोई मुक्ति और ऐसी मुक्ति तो कतई नहीं जिसमें तुम्हारा साथ ना हो।" राजबाला ने कपिल के होठों पर अपने होंठ रखकर उसे चुप करा दिया।
"फिर हमेशा ये पंचायती लेकर क्यों बैठ जाती हो कि यहाँ मत आया करो, डर तो नहीं लगता?, लोग क्या कहेंगे? अरे हम प्यार करते हैं और लोगों को जो करना था कर चुके। ऐसे भी मुझे भी इस जिस्म का कोई मोह नहीं है तो लोग मुझे मार भी देंगे तो भी हमपर उपकार ही करेंगे।" कपिल ने राजबाला को हटाते हुए कहा।
"जाओ तुम, तुम्हारा प्यार झूठ है" राजबाला तुनक कर बोली।
"अब क्या हुआ राज? अरे तुम तो मेरी आत्मा हो तुम्ही मेरा सच्चा प्यार हो।" कपिल उदास होकर पूछने लगा।
"तुम हमेशा ऐसा ही करते हो, पहले भी ऐसे ही मुझे खुद से दूर हटा देते थे और आज भी। अरे दो पल का सुकून मिलता है तुम्हारे गले लग कर और तुम्हें वह भी बर्दाश्त नहीं होता। और ये मुक्ति की बात कहाँ से बीच में आ गयी? मेरी मुक्ति का मार्ग खोज रहे हो यानी के अब तुम मेरे साथ से भी उकता गए हो। मुझे हमेशा के लिए खुद से दूर कर देना चाहते हो। बोलो ऐसा क्यों कर रहे हो? क्या कोई दूसरी लड़की... ओह्ह अब समझी, आखिर वह रानी अपने प्लान में कामयाब हो ही गयी। उस दिन भी जब हम बगीचे में मिले थे तब ठाकुरों को उसने ही हमारी मुखबिरी की थी। और ... और ठाकुरों ने ये कहकर की मैं नीच जात एक ठाकुर को गंदा कर रही हूँ। मुझे नोच खसोट कर मार डाला।
उस समय मेरे मुँह में मुँह और जिस्म में... उस समय तो उनमें से कोई ठाकुर गन्दा नहीं हुए कपिल... अरे जिस जिस्म को तुमने कभी नज़र भर कर भी नहीं देखा उसी को तार-तार कर दिया था उन ऊंची जात वालों ने। लेकिन तुम्हारे प्यार ने मरकर भी मुझे इस श्मशान से दूर कभी जाने नहीं दिया कपिल। और अब तुम खुद ही मुझे दूर...!" राजबाला रोते हुए बोली।
"ओह्ह!! चुप हो जाओ। क्या मुझे भी रुलाओगी। और ये बार-बार रानी का नाम बीच में कैसे आ जाता है। मैंने कितनी बार कहा तुमसे की मैं तुम्हारे अलावा कभी किसी से प्यार नहीं कर सकता।" कपिल राजबाला को खींचकर गले लगाते हुए बोला।
राजबाला जोर-जोर से रो रही थी। और इस बार कपिल ने भी राजबाला की तरकीब आजमाई और अपने होठों से उसे चुप करा दिया।
"अच्छा राज! क्या कह रही थीं तुम की ठाकुरों ने तुम्हारे साथ?? तुमने पहले कभी मुझे वो बात क्यों नहीं बतायी। गांव में तो तुम्हारी मौत का कारण तुम्हारी बीमारी...? और फिर तुम्हारे अम्मा बाबू ने भी तो यही कहा था।" कपिल कुछ सोचकर बोला।
"ऐसा नहीं कहते तो क्या कहते कपिल बाबू, उन्हें तो आखिर इसी समाज में रहना था। और फिर मैं तो मर ही चुकी थी। ऐसे भी एक गरीब बाप और कर भी क्या सकता था।" राजबाला ने उदास होकर कहा।
"अच्छा क्या तुम मुझे बता सकती हो कि कौन लोग थे वे? क्या मेरे परिवार के?" कपिल ने गम्भीर होकर पूछा।
"क्या करोगे जानकर?" राजबाला एकदम से डरकर बोली।
"कुछ नहीं बस उनसे सावधान रखना चाहूँगा और क्या" कपिल ने नज़रें बचाकर कहा जिससे राजबाला उसके गुस्से से लाल हुई आँखें नहीं देख पायी।
"फिर ठीक है वो पाँच थे जिन्होंने मेरे साथ...!" राजबाला ने कपिल को उन सभी के नाम बता दिए।

"अरे आज दिन में! और दिन में तुमने मुझे कैसे ढूंढा?" कपिल को दोपहर में अपनी और आता देखकर राजबाला चौंकते हुए बोली।
"तुमसे मिलना अच्छा लगता है" कपिल ने मुस्कुराते हुए कहा और उसका हाथ पकड़कर एक और ले चला।
"अरे कहाँ ले जा रहे हो मुझे...? ओहो रुको तो।" राजबाला कहती रही और कपिल उसे खींचते हुए ट्यूबबेल की ओर ले चला। हड़बड़ी में राजबाला ये भी नहीं देख पायी की आज कपिल भी उसके जैसे ही हवा में तैर रहा था।
ट्यूबबेल पर छः लहूलुहान लाशें पड़ी हुई थीं मानों वहाँ कोई भीषण युद्ध लड़ा गया हो।
उन छः में पाँच तो राजबाला के अपराधी थे और एक खुद कपिल की मृत देह।
"हे भगवान!!! ये क्या किया तुमने कपिल।" राजबाला कपिल को देकर चीख पड़ी और उसे गौर से देखने लगी।
"प्यार का कर्ज चुका दिया पगली, बदला ले लिया तेरे साथ हुए ज़ुर्म का।" कपिल ने मुस्कुराते हुए कहा और राजबाला को गले लगा लिया।
"लेकिन ऐसे अपनी जान पर खेलकर?? ये आपने अच्छा नहीं किया कपिल।" राजबाला फिर उदास होकर कहने लगी।
"क्या करता राज! आपसे हमेशा के लिए मिलन का कोई और रास्ता था मेरे पास? मैं सदा तुम्हारे साथ रहूँगा अब और हमारे बीच कोई रानी कभी नहीं आएगी।" कपिल ने मुस्कुराते हुए कहा।
"चुप रहो", कहते हुए राजबाला ने उसके होंठों को अपने होंठों से बंद कर दिया और दोनों एक दूजे में समाने लगे।
लाशों के पास इकट्ठा होते लोगों ने देखा ऊपर धुएँ की आकृति क्षतिज की ओर जा रही थी।
समाप्त

©नृपेंद्र शर्मा "सागर"


Monday, July 26, 2021

डरावनी रेलगाड़ी

डरावनी रेलगाड़ी



कल रात ही तो उसने हैरी पॉटर सीरीज की दो फिल्में देखी थीं। और आज वह अकेला अपनी नानी के घर जाने के लिए निकल पड़ा था। ऐसा नहीं था कि वह घर से लड़कर या भागकर आया था बल्कि उसके मम्मी-पापा को जरूरी सेमिनार के लिए बाहर जाना था तो उसने नानी के घर जाने की जिद कर दी। उसके पेरेंट्स के पास उसे नानी के गाँव छोड़ने जाने का भी समय नहीं था तो उन्होंने तेरह साल के पिंटू को अकेले नानी के घर जाने की इजाज़त दे दी।

पिंटू ने भी उन्हें भरोसा दिलाया कि वह आराम से नानी के घर पहुँच जाएगा। उसने ट्रेन पकड़ने से नानी के घर पहुँचने तक का सारा रास्ता और तरीका मम्मी-पापा को  समझा दिया था और उन्हें यकीन हो गया था कि पिंटू अकेला आराम से ननिहाल पहुँच जाएगा। फिर भी उन्होंने पिंटू की नानी और मामा को फोन कर दिया था। पिंटू के मामा ने उन्हें भरोसा दिलाया था कि वह रेलवे स्टेशन से पिंटू को अपने साथ ले जाएगा।

पिंटू ने स्टेशन पहुँचकर एक टिकिट लिया और एक बेंच पर जाकर बैठ गया।

ट्रेन आने में आधा घण्टा बाकी था, पिंटू बैंच पर बैठा-बैठा बोर होने लगा तो वह उठकर प्लेटफार्म पर टहलने लगा।

कुछ दूर चलने पर पिंटू ऐसी जगह पहुँच गया जहाँ अन्य कोई भी नहीं था। पिंटू थोड़ा और आगे बढ़ा तो उसे एक पिलर पर लिखा दिख, "प्लेटफॉर्म नम्बर:-9"

पिंटू को रात में देखी गयी फ़िल्म हैरीपॉटर की याद आ गयी और वह प्लेटफॉर्म नम्बर पौने दस की कल्पना करने लगा। इसी कल्पना में उसने नीचे से एक कंकड़ उठाया और पिलर पर लिखे 9 के आगे 3/4 लिख दिया। अब वह कुछ पीछे होकर उसे देखने लगा।

"प्लेटफार्म नम्बर पौने दस" उसने पढ़ा और मुस्कुराने लगा।

अभी पिंटू अपनी कल्पना में हैरीपॉटर और उसके साथियों को पिलर के अंदर जाकर ट्रेन पकड़ते देख ही रहा था कि अचानक उस सुनसान प्लेटफार्म पर उसे घना कोहरा दिखने लगा, साथ ही सुनाई देने लगी किसी ट्रेन की हॉर्न की आवाज।

धीरे-धीरे वह झुकपुक छुकपुक की ट्रेन की आवाज उसके पास आती सुनाई देने लगी और उसे एक काली पुरानी ट्रेन सामने से आती नज़र आने लगी। 

पिंटू को समझ में ही नहीं आ रहा था कि यह कहाँ की ट्रेन है और अचानक कहाँ से आ गई।

तब तक वह ट्रेन उसके बिल्कुल सामने आकर रुक गयी।

ट्रेन से एक काले कोट और काले हेट वाला व्यक्ति उतरा और पिंटू से बोला, "आपने बुलाई है ये प्लेटफार्म नम्बर पौने दस की ट्रेन। आइए सर हम आपका इस रोमांचकारी यात्रा में स्वागत करते हैं।"  और उस व्यक्ति ने पिंटू का बैग ले लिया और ट्रेन के डिब्बे में चढ़ गया।

पिंटू ने एक नज़र पूरी ट्रेन पर डाली- ये एक बहुत पुरानी छोटी सी ट्रेन थी जिसमें एक स्टीम इंजन और तीन डिब्बे लगे हुए थे। ट्रेन नैनो गेज पर थी। उसके पहिये भी छोटे-छोटे थे।

"जल्दी चलिए सर हमें बहुत दूर पहुँचना है ऐसे ही ट्रेन पूरे चौबीस सेकेण्ड लेट है। उस काले कोट वाले ने कहा और पिंटू झटके से ट्रेन में चढ़ गया।

"आप सभी का पौने दस की इस ट्रेन में स्वागत है। कृपया अपनी सीटों पर चिपक के बैठें और खिड़कियों के काँच ना खोलें। अब ये ट्रेन एक रोमांचक यात्रा के बाद अगले दिन इसी समय प्लेटफॉर्म नम्बर पौने दस पर आप सबको छोड़ देगी।" ट्रेन में एक बहुत सुरीली आवाज गूँजी।

पिंटू ने डिब्बे में इधर-उधर नज़र घुमाई उसने देखा हर सीट पर एक-एक बच्चा बैठा हुआ था जिनमें अधिकतर बारह से पंद्रह साल की आयु के ही थे।

पिंटू  एक खाली सीट जिसपर उसका बैग रखा हुआ था पर जाकर बैठ गया। उसने खिड़की के काँच को ठीक से जाँचा और फिर इत्मिनान से बैठ गया।

ट्रेन ने जोर का हॉर्न बजाया और झुक-पुक करती हुई आगे बढ़ गयी।


पिंटू आसपास देख रहा था, उसके आसपास कोई आठ-दस बच्चे बैठे थे लेकिन सभी अजनबी। पिंटू काफी देर उनमें कोई परिचित चेहरा तलाशता रहा लेकिन उसे उनमें कोई भी परिचित चेहरा नहीं मिला।

पिंटू फिर से अपनी सीट पर बैठकर खिड़की के बाहर देखने लगा। बाहर बहुत घना जँगल था ऊँचे-ऊँचे पेड़ और पहाड़। पिंटू इस जगह को देखकर भी चौंक गया। अभी ट्रेन को दस मिनट भी नहीं हुए थे चलते हुए तो फिर ये कहाँ आ गयी। पिंटू अपने शहर को अच्छे से जनता था, उसके शहर के आस-पास ऐसी कोई भी जगह नहीं थी। पिंटू ने खुद को जोर से चिकोटी काटी, वह चिहुँक उठा। उसे समझ आ गया कि वह सपना नहीं देख रहा है। अब पिंटू समझ चुका था कि वह सच में एक जादुई ट्रेन में बैठ चुका है। अब पिंटू को डर लग रहा था उसे अपने घर और नानी की याद आने लगी थी।

पिंटू ने घबराकर इधर-उधर देखा, जैसे-जैसे पिंटू के दिल की धड़कने डर से बढ़ रही थीं आस-पास बैठे लोगों के चेहरे उसे डरावने होते नज़र आने लगे थे। यह देखकर पिंटू और डर गया। पिंटू के दिमाग ने उसे संकेत किया कि वह किसी भूतिया ट्रेन में बैठ गया है। और आस-पास बैठे लोग भूत या आत्माएँ हैं। पिंटू ये भी समझ चुका था कि उसका भय इन लोगों की शक्ति बन सकता है।

पिंटू ने खुद पर काबू करते हुए शांत होने की कोशिश की और वह अपने दिल की धड़कनों को सामान्य करने लगा। 

पिंटू ने डरते-डरते खिड़की के बाहर देखा अब वह बुरी तरह चौंक गया। ट्रेन अब किसी बर्फीले इलाके में चल रही थी जबकि पिन्टू को अच्छे से पता था कि उसके घर से पाँच-सात सौ किलोमीटर दूर तक कोई भी बर्फीला इलाका नहीं है।

"लेकिन इतनी दूर बस आधे घण्टे में?" पिन्टू ने खुद से सवाल किया। 

अभी पिन्टू समझने सोचने की कोशिश ही कर रहा था कि एक खूबसूरत लड़की लाल ड्रेस पहने ट्राली धकेलती हई सामने से आती दिखी।

"रहस्य की रेलगाड़ी  रोमांचक रात में पहुँचे इससे पहले आप सभी को डिनर कर लेना चाहिए। आइए अपनी पसंद का भोजन लें और खाते-खाते यात्रा का मज़ा लें" उस लड़की ने बहुत सुरीली आवाज में कहा। 

पिन्टू ने गर्दन घुमाई वह लड़की पिन्टू के सामने खड़ी मुस्कुरा रही थी। पिन्टू ने ट्राली की ओर देखा तो वह चौंककर उछल पड़ा। ट्राली पर प्लेट में जिंदा चींटे, रेंगते हुए कांक्रोच, फुफकारते हुए साँप और तैरती हुई मछलियाँ थीं। पिन्टू ने ओह करके मुँह घुमा लिया।  अब उसे लड़की की कर्कश हँसी सुनाई देने लगी। साथ ही बाकी सारे लोग भी पिन्टू की खिल्ली उड़ाते हुए से हँस रहे थे।

पिन्टू को अचानक कुछ याद आया और उसने अपना बैग उठा लिया। उसने लडक़ी को देखकर मुस्कान बिखेरी और अपने बैग से बिस्किट निकाल कर खाने लगा। उसके ऐसा करते ही पूरे डिब्बे में सन्नाटा पसर गया। चिंटू मजे से बिस्किट खा रहा था। वह समझ चुका था कि इस परिस्थिति से उसे केवल उसकी निडरता ही बचा सकती है।

पिन्टू ने बिस्किट खाकर अपने बैग से बोतल निकालकर पानी पिया और अपनी आँखें बंद करके सीट पर पीछे सिर टिकाकर लेट गया।

पिन्टू सोने के बहाने आगे की योजनाएं बना रहा था और ट्रेन अपनी गति से भागी जा रही थी।


पिन्टू ट्रेन के डिब्बे में उसके आसपास बैठे लोगों से नज़रें बचाता है खिड़की के बाहर देख रहा था। ट्रेन एक सुंदर इलाके से गुजर रही थी जहाँ बर्फ से ढकी पहाड़ियां और सुंदर फूल खिले हुए थे।

पिन्टू अभी अपने साथ घट रही घटनाओं के बारे में सोच ही रहा था तभी ट्रेन जोर की किर्र!! की आवाज करते हुए रुक गयी।

पिन्टू ने खिड़की के बाहर देखा सामने घना जंगल था और भरपूर हरियाली फैली हुई थी।

पिन्टू ने एक पल में ही कुछ सोचा और धीरे से ट्रेन से उतर कर जँगल की ओर दौड़ लगा दी।

कुछ दूर दौड़ने के बाद उसने देखा कि ट्रेन ने रेंगना शुरू कर दिया है और वह काले कोट और हैट वाला गार्ड हाथ हिलाकर उसे बुला रहा था।

"जान छूटी इन नामुराद भूतों से, अब मुझे वापस जाने के लिए कुछ सोचना होगा।" पिन्टू बुदबुदाया और तेज़ी से जंगल की ओर भागने लगा।

काफी देर भागने के बाद पिन्टू एकदम पहाड़ी के नीचे पहुँच गया जिस पर बर्फ की चादर सी बिछी हुई थी।

पिन्टू ने एक बार फिर पीछे पलटकर देखा, वह भूतिया ट्रेन अभी भी उसे नज़र आ रही थी।

पिन्टू ने एक छलाँग लगायी और पर्वत पर चढ़ गया।

पिन्टू के पैर पर्वत पर पड़ते ही वह जँगल और ट्रेन ग़ायब हो गए। अब पिन्टू को लगा कि सच में उस ट्रेन से मुक्ति मिल गयी।

"लेकिन ये कौन सी जगह है? क्या मैं पहले कभी यहाँ आया हूँ? लेकिन मैं तो घर से बाहर कभी गया ही नहीं!!! फिर मुझे ये जँगल और पर्वत देखा-देखा सा क्यों लग रहा है?" पिन्टू खुद से ही सवाल-जवाब कर रहा था।

इसी सोच में डूबा पिन्टू आगे बढ़ता रहा अचानक एक दौड़ता हुआ घोड़ा उसके सामने आकर रुका। पिन्टू ने  घोड़े के सिर्फ पैर ही देखे थे उन्ही से उसे अंदाज़ा हो गया था कि यह सामान्य से बहुत बड़ा घोड़ा है।

पिन्टू ने धीरे-धीरे सिर ऊपर उठाया और घोड़े को देखते ही वह बुरी तरह चौंक उठा- "नार्निया...!!!, तो क्या मैं नार्निया के जँगलों में पहुँच गया हूँ???" इंसान के मुँह वाले उस घोड़े को देखते ही वह बुरी तरह चौंक कर बोला।

अभी वह उस घोड़े के कोतुहल में ही उलझा हुआ था कि उसके चारों तरफ अन्य कई विचित्र जानवर भी हथियारों से लैस होकर घिरने लगे।

"खबरदार जो कोई भी चालाकी की तो जान से जाओगे, चुपचाप हमारे साथ चलो तो शायद कुछ देर और जी पाओग।" एक चूहे ने उसकी ओर तलवार लहराते हुए कहा।

पिन्टू चाहता तो उस चूहे को एक पल में अपने पैर के नीचे मसल सकता था लेकिन बाकी खूंखार जानवरो के डर से वह चुपचाप उनके साथ चलने लगा।

"इससे तो मैं उस ट्रेन में ही अच्छा था कम से कम वे लोग मुझे कोई नुकसान तो नहीं पहुँचा रहे थे। बस मुझे डराने की कोशिश ही कर रहे थे और मेरे ना डरने पर चुप होकर बैठ गए थे। लेकिन यहाँ तो जान पर ही बन आयी है।" पिन्टू फिर मन ही मन सोचने लगा।

"चलो तेज़-तेज़ पैरों में मेहंदी लगी है क्या?" चूहे ने पिन्टू को तलवार से खोदते हुए बहुत गुस्से में कहा और पिन्टू तेज़-तेज़ कदम बढ़ाने लगा।

"अगर ये नार्निया का जंगल है तो यहाँ पर महान शेर असलान भी होना चाहिए। लेकिन ये सारे लोग तो असलान के ही साथी हैं तो फिर ये मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं? कहीं ये लोग मुझे सफेद चुड़ैल का साथी तो नहीं समझ रहे?" पिन्टू ने मन ही मन सोचा और पलट कर उन विचित्र जानवरों से बोला, "अरे भाइयों मैं भी महान असलान का चाहने वाला हूँ फिर आप लोग उनके साथी होकर उनके किसी भी फैन के साथ ऐसा दुर्व्यवहार कैसे कर सकते हो? क्या तुम लोग उन्हें छोड़कर सफेद चुड़ैल के साथी बन गए हो या फिर...! जो भी हो मैं यहाँ महान असलान से मिलने आया हूँ और अब तुम लोगों की शिकायत उनसे अवश्य करूँगा।" 

पिन्टू की बात सुनकर बड़ा भालू जोर से गुर्राया और आँखे लाल किये पिन्टू की ओर पलटा। उसे देखकर पिन्टू सहम गया और म...म...मैं करके हकलाने लगा।

"चुपचाप चलो बरना... अबकी बार एक बौने ने कुल्हाड़ी दिखाते हुए कहा। 

पिन्टू सिर नीचे किये चुपचाप चलने लगा। थोड़ी देर चलने के बाद उसे वह पत्थर का सिंहासन साफ दिखाई देने लगा जिसपर एक शेर बैठा हुआ था।

"महान असलान!!! ये आप ही हो ना असलान नार्निया के राजा?" पिन्टू शेर को देखकर खुश हो रहा था तभी सामने का दृश्य देखकर वह बुरी तरह चौंक उठा। सामने सिंहासन पर शेर के बगल में दूसरे आसन पर सफेद चुड़ैल बैठी मुस्कुरा रही थी।

"महाराज ये अजनबी मनुष्य अनाधिकृत रूप से नार्निया में प्रवेश कर गया है। ये नार्निया का नहीं है इसीलिए हम लोग इसे यहाँ लेकर आये हैं।" मनुष्य के मुख वाले घोड़े ने हाथ जोड़कर कहा।

"इसका क्या किया जाए आप ही बताइए नार्निया की रानी?" असलान ने सफेद चुड़ैल की ओर देखकर पूछा।

"क्या तुम नार्निया निवासी नहीं हो? फिर क्या तुम नार्निया के उन राजा-रानी के घराने से हो जो पहले यहाँ  आये थे? मुझे लगता है तुम उनमें से भी नहीं हो तो फिर तुम यहाँ क्यों आये? क्या तुम्हें नहीं पता कि नार्निया में बाहरी लोगों के आने पर पाबंदी है और अगर कोई ज़बरदस्ती या गलती से ही नार्निया में आता है तो उसे मृत्युदंड दिया जाता है और उसकी लाश को नार्निया की सीमा के बाहर फेंक दिया जाता है।" सफेद चुड़ैल ने मुस्कुराते हुए मधुर स्वर में कहा।

"महाराज असलान मैं तो आपका फैन हूँ और आपसे मिलने के लिए यहाँ आया हूँ। लेकिन आप इस सफेद चुड़ैल के साथ क्यों बैठे हो क्या इसने आपको और आपके सारे साथियों को सम्मोहित कर लिया है?" पिन्टू आश्चर्य सागर में गोते लगाते हुए बोला।

"हाहाहाहा!!! जब बात नार्निया की सुरक्षा की हो तो हम नार्निया वासी बाहरी लोगों के खिलाफ हमेशा एकजुट हैं। हम अपने आपसी मतभेद तुम पृथ्वी वासियों की तरह देशहित के रास्ते में नहीं आने देते। और क्योंकि तुम यहाँ बिना अनुमति आये हो तो तुम्हे मृत्युदण्ड से कम कुछ सज़ा दी भी नहीं जा सकती।" असलान ने गुर्राते हुए कहा।

पिन्टू ने देखा कि असलान बहुत डराबना लग रहा था जबकि सफेद चुड़ैल बहुत सौम्य। पिन्टू ने आसपास अन्य जानवरों को भी देखा जिनका सारा ध्यान शेर पर ही था। ना जाने पिन्टू को ऐसा क्यों लगा कि चुड़ैल उसे भाग जाने का इशारा कर रही है। पिन्टू को सफेद चुड़ैल का चेहरा बिल्कुल ट्रेन वाली चुड़ैल की तरह दिख रहा था जो उसके पास खाना लायी थी।

पिन्टू ने एक पल में ही सोचकर निर्णय किया और उल्टे पैर दौड़ लगा दी।

पिन्टू के भागते ही उन जानवरों में खलबली मच गई और वे पिन्टू के पीछे आने लगे। पिन्टू ने अपनी पूरी शक्ति भागने में लगा दी फिर भी उसके और उन खूंखार हो चुके नार्निया वासियों के बीच का फासला कम होता जा रहा था।

पिन्टू और जोर से भगा उसका दिल जोर से धड़क रहा था उसने पीछे देखा वह घोड़े रूपी इंसान बिल्कुल उसके पास पहुँच चुका था तभी पिन्टू को ठोकर लगी और वह लुढ़कने लगा। उसे लगा जैसे वह पर्वत के ढलान से नीचे लुढ़क रहा है। उसने अपनी आँखे बंद कर लीं। कुछ ही पलों में वह समतल स्थान पर गिरा और उठकर देखने लगा। उसके सामने ही वह भूतिया ट्रेन धीरे-धीरे चल रही थी और वह काले कोट वाला गार्ड हाथ हिलाते हुए उसे बुला रहा था। पिन्टू उठा और उसने बिना सोचे ट्रेन की ओर दौड़ लगा दी। 

पिन्टू भागकर चलती ट्रेन में चढ़ा और जाकर अपनी सीट पर बैठ गया। उसकी साँसे एक्सप्रेस बनी हुई थीं और ट्रेन में उसके आसपास बैठे लोग जोर-जोर से हँस  रहे थे। पिन्टू ने अपनी आँखें बंद की और वह फिर अपने साथी यात्रियों को इग्नोर करने लगा।


पिन्टू अपनी सीट पर बैठा लम्बी-लम्बी साँसे ले रहा था। ट्रेन भी जैसे उसकी साँसों की रफ्तार से रेस लगा रही थी। ट्रेन के बाहर पेड़, पर्वत, झरने और नदियां जैसे पीछे भागी जा रही थीं। 

अब पिन्टू सामान्य हो चुका था, वह खिड़की से बाहर देख रहा था। ट्रेन अभी भी किसी अजनवी जँगल में दौड़ रही थी जो न ही उसने कभी किसी मूवी में देखा था और ना ही किसी स्टोरी बुक में इसके बारे में पढ़ा था। कुछ देर देखने के बाद पिन्टू ने आँख बंद कर लीं और अब तक घटित घटनाओं के बारे में सोचने लगा।


अभी पिन्टू नार्निया, चुड़ैल और शेर के बारे में सोच ही रहा था कि उसने एक आवाज सुनी, "उठिए सर नाश्ता कर लीजिए।" पिन्टू ने आँखें खोलकर देखा सामने थाली पकड़े, कमर झुकाए, काले कपड़े पहने, ऊँची काली चोंच वाली टोपी पहने वही सफेद चुड़ैल खड़ी मुस्कुरा रही थी।

पिन्टू उसे देखकर चौंककर उछल पड़ा, "आ...! आप!!?" हकलाते हुए उसके मुँह से निकल गया।

"देखा तुमने तुम्हारे प्यारे नार्निया वासी और अपने हीरो असलान को...? अरे जो दिखता है वह सच नहीं होता। ये जानवर खूंखार थे खूंखार हैं और खूंखार ही रहेंगे। तुम हमारे साथ कितने सुरक्षित हो ये तो तुम्हें समझ आ ही चुका होगा। तुम हमारे साथ इस ट्रेन की अनोखी यात्रा पर निकले हो और हमारे साथ पूरे सुरक्षित हो।" सफेद चुड़ैल ने कहा और जोर-जोर से हँसने लगी। उसके साथ ही आसपास बैठे बाकी लोग भी जोर से हँसने लगे।

पिन्टू को अचानक उनके बदलते डरावने होते चेहरे नज़र आने लगे। वे भूतों जैसे लोग बड़े-बड़े दाँत किटकिटाते, लम्बी जीभ लपलपाते उसकी ओर बढ़ने लगे। पिन्टू को डर लगने लगा, उसकी धड़कने बढ़ने लगीं लेकिन उसने मुँह खिड़की की ओर घुमा लिया।

तभी ट्रेन की रफ्तार धीमी होने लगी, ये जँगल ना जाने क्यों पिन्टू को जाना पहचाना लग रहा था। 

"जँगल सफारी" पिन्टू ने एक पल सोचा और दौड़कर ट्रेन से उतरकर जँगल की ओर दौड़ लगा दी।

  

अभी पिन्टू जँगल में कुछ ही दूर गया था कि सामने से झंडा पकड़े 'दिल्ली चलो' का नारा लगाते युवराज शेर और उसके पीछे बहुत सारे जानवर 'जँगल बचाओ' के नारे लगा रहे थे।


"अरे ये तो 'दिल्ली सफारी' वाले जानवर हैं। अच्छा है मैं इनके साथ दिल्ली पहुँच जाऊँगा और वहाँ से अपने घर। चलो अच्छा ही हुआ कि मुझे उस पौने दस वाली भूतिया ट्रेन से मुक्ति मिल गयी।" पिन्टू ने सोचा और उन जानवरों के साथ मिलकर अलेक्स तोते के स्वर में स्वर मिलाया, "जँगल बचाओ, पेड़ काटना बन्द करो, दिल्ली चलो" 

पिन्टू खुश था कि अब वह अपने घर लौट जाएगा और वह पूरे जोश में भरकर नारे लगा रहा था। ये लोग दिल्ली की ओर बढ़ रहे थे और पिन्टू जोश-जोश में बिल्कुल युवराज शेर के बगल में आ गया था। इनके नारे कब "इन्कलाब जिन्दावाद, हमारी माँगे पूरी करो, जँगल हमारा घर है, नेताओं कुर्सी छोड़ो'' में बदल गए पिन्टू को पता भी नहीं चला, वह तो बस अब झण्डा पकड़े सबसे आगे उन नारों को दोहरा रहा था। जैसे वही इनका लीडर हो।

अचानक सामने से बहुत सारे पुलिस वाले आते दिखे जो कह रहे थे, "पकड़ो इस लड़के को, यही इस सारे फसाद की जड़ है। इसने ही इन सारे बेजुबान जानवरों को भड़काया है। इसे गिरफ्तार करो हम इसपर सरकार के खिलाफ विद्रोह और प्रदर्शन का मुकदमा चलाएँगे।" पुलिस टीम का लीडर चिल्ला कर अपने साथियों से कह रहा था।

पिन्टू को अपनी ओर बढ़ती मुसीबत साफ नजर आ रही थी। वह धीरे-धीरे पीछे खिसकने लगा और फिर उसने बिना पीछे देखे पूरी शक्ति से दौड़ लगा दी।

पिन्टू भागते-भागते जँगल की सीमा पर पहुँचा तो सामने उसकी ट्रेन रेंग रही थी। पिन्टू ने बिना एक पल भी सोचे अपनी ट्रेन पकड़ ली और ट्रेन उसकी साँसों से रेस लगाने लगी…


पिन्टू के ट्रेन में चढ़ते ही ट्रेन हवा से रेस लगाने लगी। पिन्टू को आश्चर्य हो रहा था कि वह इतनी देर से इस ट्रेन का सफर कर रहा है लेकिन रात है कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही। वह सीट के पीछे सिर टिका कर सोने की कोशिश करने लगा। अचानक उसे बहुत तेज़ झटका लगा। 

पिन्टू ने आँख खोलकर देखा वह ट्रेन बड़ी तेज़ चरर्रर..!! करर्रर!!! की आवाज़ करती हुई रुक रही थी। ट्रेन में इस तरह अचानक ब्रेक लगने की वजह से ही पिन्टू को वह झटका लगा था। 

पिन्टू ने बाहर झाँक कर देखा। इस बार ट्रेन किसी जँगल में नहीं बल्कि एक भीड़भाड़ भरे स्टेशन पर रुकी थी।

पिन्टू ने दूर स्टेशन के बोर्ड पर देखा जिसपर लिखा था 'फुरफुरी नगर जंक्सन' पिन्टू को ये नाम बहुत जाना पहचाना लगा।

"अरे!! ये ट्रेन तो फुरफुरी नगर पहुँच गयी। मैं यहाँ उतर जाता हूँ। यहाँ इंस्पेक्टर चिंगम से मुझे अवश्य ही मदद मिल जाएगी। ऐसे भी मोटू-पतलू तो यहाँ होंगे ही। अब मुझे यहाँ कोई खतरा नहीं।" पिन्टू ने एक पल सोचा और वह ट्रेन से उतर गया।


"अरे नम्बर बन, नम्बर टू कहाँ मर गए...! देखो सामने से एक बकरा आ रहा है, जल्दी आओ इसे हलाल करना है।" जैसे ही पिन्टू स्टेशन से बाहर आया उसे जॉन दा डॉन की आवाज सुनाई पड़ी।

पिन्टू ने सामने देखा वहाँ एक बड़ा सा बोर्ड लगा हुआ था जिसपर लिखा था- 'फुरफुरी नगर में आपका स्वागत है' उस बोर्ड के दायीं ओर थोड़ा नीचे पिन्टू को एक गुमटी दिखाई दी जिस पर लिखा था, 'समोसा किंग, फुरफुरी चाय शॉप'

पिन्टू तेज़ी से उस दुकान की ओर दौड़ पड़ा जहाँ उसे अपने मनपसंद लोग, पतलू, घसीटाराम, और चायवाला दिखाई दिए।

पिन्टू दौड़कर एक खाली बैंच पर बैठ गया और अपनी साँसे ठीक करने लगा।

तभी उसने चाय वाले कि आवाज सुनी, "तुम क्या लोगे भाया, चाय के साथ गर्मागर्म समोसे या फिर गर्म समोसे के साथ ठंडी कोल्डड्रिंक?" 

"ऊँ..! आँ..हाँ..!" अभी पिन्टू कुछ सोच ही रहा था कि  पतलू बोल उठा, "अरे जल्दी समोसे खा लो, इससे पहले की वह पेटू... मेरा मतलब है कि मोटू आ जाए और सारे समोसे चट कर जाए। अरे चाय वाले देखता नहीं ये मेहमान है हमारे फुरफुरी नगर में, इन्हें पेट भरकर समोसे खिला।" और पतलू जोर-जोर से हँसने लगा। उसके साथ ही घसीटा और चायवाला भी ठहाके लगाने लगे। 

पिन्टू को कुछ समझ  नहीं आ रहा था तभी चाय वाले ने एक प्लेट में चार समोसे रखकर पिन्टू के सामने रख दिये।

"लो भाई मेहमान! अब जल्दी से इन्हें खा लो, मोटू बस आता ही होगा।" चाय वाले ने पिन्टू को जैसे चेतावनी सी दी।

पिन्टू को मोटू का समोसा प्रेम याद आ गया और उसने एक समोसा उठाकर पूरा मुँह खोलकर एक बड़ा सा कोर काट लिया।

समोसा मुँह में जाते ही पिन्टू का जैसे मिर्च से मुँह ही जल गया। उसके कानों धुआँ निकलने लगा और जैसे ही उसने कुछ बोलने के लिए मुँह खोला, उसके मुँह से आग की तेज़ लपटे उबल पड़ीं।

उसकी ये हालत देखकर पतलू, घसीटा और चायवाला हँसते-हँसते लोटपोट हो रहे थे तभी सामने से मोटू आता दिखाई दिया।

"शर्म नहीं आती तुम लोगों को जो एक मेहमान को इतनी मिर्च खिला दी कि उसका मुँह जल गया। मुझे पता है ये समोसे तुमने मेरे लिए बनाए थे। चायवाले तुमसे तो मैं बाद में निपटूंगा पहले इसकी आग बुझाने के लिए फायरब्रिगेड को बुला लूं।" मोटू चीखते हुए बोला और फिर फोन मिलाने लगा।

थोड़ी ही देर में पिन्टू को फायरब्रिगेड का सायरन सुनाई देने लगा और अचानक उसके मुँह पर पानी की बौछारें पड़ने लगीं।

हड़बड़ाकर चिंटू झटके से उठ बैठा। उसका अलार्म जोर-जोर से बज रहा था और सामने मम्मी पानी का खाली मग पकड़े खड़ी थीं, जिसका पानी उन्होंने अभी पिन्टू के मुँह पर फेंका था।

  "कब से अलार्म बज रहा है तुम्हारा पिन्टू और तुम हो कि दोपहर तक घोड़े बेचकर सो रहे हो। भूल गए आज मुझे और तुम्हारे डैडी को बाहर जाना है और तुम्हें लेने तुम्हारे मामा जी भी बस आते ही होंगे। चलो जल्दी से उठाकर तैयार हो जाओ।" कहकर मम्मी चली गयीं।


पिन्टू हड़बड़ा कर उठा, उसे अभी भी डोरीमोन की आवाज आ रही थी, "तुम कितने आलसी हो नोबिता!! इसी लिए तुम्हें मम्मी से डाँट पड़ती है। और तुम्हारे साथ मुझे भी। तुम अपना कोई भी काम ठीक से नहीं कर सकते।"

चिंटू ने उठकर सबसे पहले टीवी बन्द किया जिस पर डोरेमोन चल रहा था फिर उसने अपना मोबाइल उठाया जिसपर छोटा भीम चल रहा था और सामने कंप्यूटर स्क्रीन पर कार्टून मूवीस की फ़ाइल खुली पड़ी थी।

पिन्टू ने अपना सर पीट लिया, "ओह्ह!! इन कार्टून्स का मेरे दिमाग पर कैसा असर होता जा रहा है कि मुझे अब सपने में भी बस कार्टून ही दिख रहे हैं। आज से और अभी से कार्टून देखना बन्द, ये तो मुझे पागल कर देंगे।" चिंटू ने सोचा और उठकर कंप्यूटर से कार्टून मूवी की फ़ाइल डिलीट कर दी। उसके बाद पिन्टू ने अपने मोबाइल से भी सारे कार्टून और उनके ऑनलाइन लिंक रिमूव कर दिए। उसके बाद वह इत्मीनान से नहाने चला गया। अब उसे सच में डरावनी ट्रेन से मुक्ति मिल चुकी थी।

लेकिन वह ट्रेन दौड़ी जा रही थी किसी और पिन्टू-चिंटू को अपने कब्जे में लेकर डराने...

समाप्त


©नृपेंद्र शर्मा "सागर"

ठाकुरद्वारा मुरादाबाद

9045548008




Saturday, July 24, 2021

ताबूत की कीलें

ताबूत की कीलें



1.

वह एक तांत्रिक था, मुर्दों पर तन्त्र करता था। रात-रात भर श्मशान भूमि की राख में ना जाने क्या खोजता रहता था। कई बार कब्रिस्तानों के गड्ढों में रात बिताता था। 

एक बार उसे चर्चयार्ड के एक गड्ढे से एक पुराना ताबूत मिला। 

उसने अपनी शक्तियों से देखा कि इसके अंदर जो कंकाल है, उसकी आत्मा बहुत शक्तिशाली है। 

उसे अपने कब्जे में करके वह दुनिया का सबसे शक्तिशाली तांत्रिक बन सकता है और दुनिया पर राज कर सकता है।

  उसने दूर घने जंगल में उस ताबूत को ले जाकर जैसे  ही उसे खोलने के लिए हाथ लगाया, तो उसे बहुत जोर का झटका लगा। जैसे किसी ने उसे लात मारकर उछाल दिया हो।

यह देखकर वह तांत्रिक समझ गया कि इस ताबूत को खोलना उसके बस की बात नहीं है।

लेकिन वह शक्तिशाली बनने का लोभ भी नहीं छोड़ पा रहा था।

उसने कई दिन सोचा और फिर धीरे-धीरे आस-पास के गाँव में एक खबर फैलयी गयी कि जो भी जँगल में पड़े ताबूत की कील अपने दरवाजे पर लगाएगा उसका घर हमेशा बुरी शक्तियों से बचा रहेगा।

धीरे-धीरे उस ताबूत की कीलें एक-एक करके कम होने लगीं। 

एक दिन उस तांत्रिक ने देखा कि ताबूत की आखिरी कील भी उखड़ चुकी है, तो वह बहुत खुश हुआ और उसने उस ताबूत के कंकाल की खोपड़ी लेने के लिए उसका ढक्कन खोल दिया।

अभी तांत्रिक ताबूत में झाँकने के लिए झुका ही था कि उस ताबूत में लेटे हुए कंकाल की लम्बी होती उँगलियाँ उसकी गर्दन के गिर्द लिपट गयीं और उस कंकाल की आँखों के दिये जलने लगे।

अभी वह तांत्रिक आश्चर्य और भय से उन आँखों को देख ही रहा था कि तभी वह कंकाल उठ खड़ा हुआ और बहुत तेज़ अट्ठहास करते हुए बोला, "हा!हा!हा!!!... आज तेरे लालच ने पूरे दो सौ साल बाद फिर एक बार मुझे जिंदा होकर दुनिया पर कब्जा करने का अवसर दिया है।

मुझे जब उन पादरियों ने इस ताबूत में बंद किया था तब सात अलग-अलग पुजारियों ने अलग-अलग मन्त्र से अभिमंत्रित करके सात कीलें इस ताबूत में यह कहकर ठोकी थीं कि जब तक कोई सात लोग अनजाने में इन कीलों को नहीं निकालेंगे, तब तक मैं इस कैद से मुक्त नहीं होऊँगा और आज सात लोगों ने सातों कीलें निकाल दीं, अब मैं मुक्त हूँ। लेकिन अब मुझे एक शरीर चाहिए जो तेरे जैसा हो...।"

और यह कहकर उस कंकाल ने अपने हाथ को जोर का झटका दिया। इस झटके से वह तांत्रिक निर्जीव होकर लुढ़क गया।

कंकाल ने उसे एक और उछाला और देखते ही देखते वह कंकाल धुआं होने लगा। 

कुछ देर बाद वह सारा धुआँ तांत्रिक के मुँह में चला गया और वह तांत्रिक एक झटके से उठकर जंगल की ओर चल दिया।


2.

फादर विलियम अभी प्रार्थना करके चर्च से बाहर आये थे। उन्होंने चर्च का गेट बंद किया उसकी कड़ियों को ठीक से खींचकर देखा और ताला लगा दिया।

दिसम्बर का महीना था, शाम गहरा चुकी थी, अँधेरा बढ़ता ही जा रहा था।

मौसम ऐसे तो साफ ही था लेकिन सर्द हवा बर्फ गिरने का अहसास करवा रही थी। फ़ादर विलियम ने अपने ओवर कोट के कॉलर को खड़ा करके अपने कानों को ढकने का प्रयास किया और अपने हेट को आगे से थोड़ा सा छुकाकर आगे कदम बढ़ा दिए। फादर की गोरी नाक ठंडी हवा से लाल हो चुकी थी इसलिए वे जल्द से जल्द घर पहुँचना चाहते थे।

फादर की उम्र कोई पैंसठ से अड़सठ के बीच रही होगी। ऊँचा लम्बा कद और मजबूत कदकाठी उन्हें अभी जवान ही दिखाते थे।

ये चर्च मुख्य शहर से कोई दो किलोमीटर दूर जंगल के बीच में बना हुआ था साथ ही चर्च से कुछ ही दूरी पर पक्का कब्रिस्तान भी था जहाँ ना जाने कितने शसन्त हो चुके लोग शान्ति से सो रहे थे अपने ताबूतों में।

इस कब्रिस्तान में आम आदमी तो अकेले जाते हुए दिन में भी डरता था लेकिन फादर विलियम रोज सुबह उजाला होने से पहले चर्च आने और शाम को अंधेरा होने के बाद वापस घर जाने के लिए इसी कब्रिस्तान के बीच से होकर जाते थे। इससे उनका रास्ता कोई आधा किलोमीटर छोटा हो जाता था।


फादर विलियम अभी कब्रिस्तान के बीच में पहुँचे होंगे अपनी धुन में चलते हुए। अचानक उन्हें ऐसा लगने लगा जैसे कोई उनके पीछे चल रहा है।

फादर ने एक दो बार आँखें टेढ़ी करके बिना पीछे मुड़े देखने की कोशिश भी की लेकिन उन्हें अपने पीछे कोई भी आता हुआ नजर नहीं आया। अलबत्ता अपने पीछे किसी के कदमों की आहट वे बराबर सुनते रहे।

  ऐसे ही फादर विलियम जब एक पुरानी, टूटी-फूटी, कच्ची कब्र के पास पहुँचे तो उन्हें ऐसा लगा जैसे किसी ने उनके कन्धे पर अपना हाथ रखा है और वह उन्हें आगे बढ़ने से रोक रहा है।

  फादर ने अब पलटकर देखा उनके पीछे एक साँवले  रँग का औसत कदकाठी वाला व्यक्ति खड़ा था। उसके चेहरे पर घनी दाढ़ी और मूँछे थीं। गले में तरह-तरह की ढेरों मालाएं पहन रखी थीं। उसने नीचे एक खाल को लपेटा हुआ था और कंधों पर एक काला दुशाला डाला हुआ था।

माथे पर उसने काले ही रँग का लंबा तिलक  लगाया हुआ था और उसकी आँखें मद से लाल हो रही थीं।

फादर उस तांत्रिक को देखकर चौंके और तेज़ आवाज़ में बोले, "कौन हो तुम और ऐसे मेरा रास्ता रोकने का क्या मतलब है? छोड़ो मुझे और अपने रास्ते जाओ।"

  "तूने मुझे पहचाना नहीं फादर!!! ध्यान से देख ये मैं हूँ, तेरा पुराना मित्र! हा...हा...हा...हा...हा!!!

पहचान मुझे विलियम मुझे तुझसे अपना हिसाब लेना है।" वह जोर से हँसता हुए बोला।

उसकी आवाज इस सर्दी में भी विलियम के कानों पर पसीना ले आयी थी फिर भी फादर ने कड़क कर कहा, "मैं नहीं जानता तुम्हें, क्या इससे पहले हम कभी मिले हैं??"


उनके इतना कहते ही उस तांत्रिक का चेहरा एक पल को बिल्कुल बदल गया। जितनी देर में एक बार बिजली चमककर लोप हो जाती है बस उतनी ही देर के लिए। और शायद उससे भी दुगुनी चमक के साथ बिजली की गर्जन सा ही अट्टहास करते हुए।

और इस एक झलक ने जैसे विलियम के प्राण हलक में ला दिए। विलियम पीछे भागने की कोशिश करते हुए मिनमिनाये हुए स्वर में कहने लगा, "त...!त...! तुम..??? तुम फिर जाग उठे?? लेकिन कैसे?? क्या हुआ 'ताबूत की कीलों का??  कहाँ गयीं वह कीलें?

और तुम तो उस ताबूत के साथ इस क़ब्र में...!!"

"हा.हा.हा.हा...!!! इसी सड़ी हुई बदबूदार कब्र में दफनाया था तुम पादरियों ने मुझे....यही ना।

और तुम विलियम..?? तुम रोज मुझे इस कब्र में कैद रखने के लिए अपने खुदा से प्रार्थना करते थे। लेकिन इस शरीर का लालच जिसमें मैं हूँ तुम सब पर भारी पड़ गया। ये ले गया उस ताबूत को तुम्हारी ऑंखों के नीचे से निकालकर और मुझे आजाद....!! हाहाहाहाहा!! मुझे आज़ाद किया उन्हीं सातों पवित्र पादरियों ने...अपने हाथों से।

हाँ विलियम उन्होंने ही निकाली हैं इस ताबूत की सातों कीलें।

  लेकिन ये बात जानकर तुम्हें कोई लाभ नहीं होगा।

पादरी विलियम मुझे सात अलग-अलग शरीर चाहियें किसी काम के लिए। एक तो मुझे मिल गया इस लालची तांत्रिक का। लेकिन इसका मुझपर उपकार है तो इसे तो मैं बहुत संभाल कर रखूंगा। लेकिन तुम..!!!तुम सदा मुझे इस गन्दी कब्र  में कैद रखना चाहते थे ना  विलियम??? तो अब तैयार हो जाओ इसी कब्र में लंबे समय तक रहने के लिए।

अब जो भी मेरे मकसद के बीच आएंगे उन्हें इसी कब्र में कैद होकर रहना होगा। मेरे इस दुनिया पर राज करने तक।"

और ये कहकर तांत्रिक ने अपने हाथ उस पादरी की गर्दन पर रख दिये।

अब पादरी को वह तांत्रिक नहीं बल्कि उस शैतान का चेहरा नज़र आ रहा था। वही भयानक चेहरा जो कुछ देर पहले उसके सामने बिजली सा चमका था।

शैतान की पकड़ पादरी की गर्दन पर एकदम से कसी और उसके प्राणों ने शरीर छोड़ दिया।

लेकिन शैतान ने पादरी की गर्दन नहीं छोड़ी और उसे लेकर उस टूटी-फूटी पुरानी कब्र में चला गया।



3.


सारांश:-अब तक की कहानी में आपने पढ़ा कि कैसे एक तांत्रिक के लालच के चक्कर में 200 साल पुराना ताबूत खुल गया और उसमें से एक शैतान मुक्त हो गया।

अब वह शैतान जगह-जगह लोगों को मारकर उन्हें शरीर इकट्ठे कर रहा है लेकिन क्यों???

कौन है वह शैतान? किसने बन्द किया था उसे ताबूत में? क्या रहस्य है ताबूत में लगी कीलों का??

क्या वह शैतान दुनिया पर राज करेगा या फिर से होगा कैद? जानने के लिए पढ़ें प्रतिलिपि पर मेरा धारावाहिक उपन्यास, 'ताबूत की कीलें'


भाग:-3


रात पूरी तरह गहराई हुई थी, आसमान में इक्का-दुक्का तारे-तारी लुकाछिपी सी खेल रहे थे।

सर्दी की कोहरे वाली रात थी। और चारों तरफ सन्नाटा ऐसे में कब्रिस्तान की उस मिट्टी पर बिखरे सूखे पत्तों की किसी भारीभरकम शै के द्वारा कुचले जानी की चरर...चरर्रर!! वातावरण में गूंजने लगी। आसपास पेड़ों पर छिपे पक्षी-परिंदों ने कूकक करके संकेत किया तो जुगनुओं ने अपने दिए कि बत्ती उभारी और अब सामने का दृश्य कुछ धुंधला सा छाया जैसा कोहरे में उभरने लगा।

कोई अपने दोनों कन्धों पर दो लोगों को लादे हुए धीरे-धीरे उस टूटी कब्र की ओर बढ़ रहा था।

थोड़ा और नज़दीक आने पर उसका चेहरा थोड़ा और साफ हुआ...अरे!!! ये तो  वही तांत्रिक था। उसने अपने दोनों कन्धों पर दो मुर्दा जिस्म लाद रखे थे। इन दोनों को देखकर ऐसा लगता था जैसे दोनों बिल्कुल ताज़ा ताज़ा मुर्दा बने हों। 

तान्त्रिक उस कब्र के पास आकर रुका और उन दोनों को गठरी की तरह कब्र के अंदर लुढ़का दिया।


तांत्रिक ने रुककर कुछ देर इधर-उधर देखा और फिर अपने दोनों हाथ फैलाकर ऊपर देखते हुए कुछ मन्त्र पढ़ने लगा 

मन्त्र पढ़कर उसने अपने दोनों हाथों की मुट्ठी बन्द करके फिर कुछ पढ़ा और जोर से गरज कर कहने लगा- "उठे मेरे प्यारे साथियों, मेरे सिपाहियों। बहुत नींद ले चुके अब कुछ काम कर लिया जाए। जागो और देखो मैं तुम लोगों के लिए क्या लाया हूँ।

जिस्म!!! हाँ मेरे बेटों, नए जिस्म  तुम सभी  के लिए।"

उसके बाद उसने अपनी मुट्ठियाँ खोलकर फूँक मार दी।

अचानक उस कब्रिस्तान में हलचल होने लगी जमीन काँपने लगी। डरावनी आवाजें आने लगीं।

देखते ही देखते चार कब्रें झटके से फटीं और उनमें से चार कंकाल उछलकर बाहर आ गए।

चारों कंकाल हो हो करते हुए उस तांत्रिक की ओर बढ़ रहे थे और वह खुश होकर बहुत जोर से हँस रहा था।

"आ जाओ बच्चों इधर आओ मेरे पास! आज पूरे दो सौ साल बाद तुम लोग नींद से जागे हो। तुम्हें तो भूख भी लगी होगी ना? चलो मैं तुम्हें नए जिस्म देता हूँ। फिर जम  कर अपनी भूख शांत करना। आज ही कि रात जितने चाहे शिकार करो, लेकिन ध्यान रहे पुरुषों के जिस्मों की मुझे मेरे कार्य के लिए बहुत आवश्यकता है इसलिए उन शवों को यहाँ मेरे पास लेकर आना बाकी औरतें और जानवर...हा...हा...हा...हा!!! उनके साथ जो चाहे करना वह तुम्हारे लिए मेरी तरफ से इनाम है।

आखिर दो सौ साल पहले तुम लोगों ने मेरे लिए अपनी जान दी थी और फिर इन गन्दी कब्रों में कैद किये गये थे। अब समय आ गया है मेरे बच्चों हमारे प्रतिशोध का। हमें एक-एक पादरी से अपना बदला लेना है, आओ चलो मेरे साथ।" तांत्रिक ने कहा और फिर कब्र के अंदर जाने लगा। उसके साथ ही ये चारों कंकाल भी उसके पीछे उस टूटी पुरानी कब्र के अंदर चले गए।


सारे पक्षी-परिंदे और कीट साँसे रोके उस कब्र को देख रहे थे जहाँ सारी दुनिया से बदला लेने की तैयारियाँ चल रही थीं।  कुछ ही देर बाद उस कब्र से फादर विलियम और उनके पीछे चार युवा बाहर निकले। 

फादर विलियम के पास ना तो क्रास था और ना ही बाइबिल। उनके चेहरे पर एक बीभत्स कुटिल मुस्कान अवश्य थी। और वे चार लोग...!!! उनमें से दो तो वही थे जिन्हें कुछ ही देर पहले वह तांत्रिक मुर्दों की भाँति लादकर लाया था लेकिन बाकी दो??? हो सकता है वे दोनों पहले से ही अंदर हों या उन्हें तांत्रिक पहले लाया हो।

"चलो मेरे बेटों, आज की ये रात तुम्हारे लिए जश्न की रात है और मेरे लिए दुनिया वालों से बदले की रात।

आज इतना आतंक मचा दो की सारी दुनिया को ये पता लग जाये कि मैं जाग चुका हूँ। उन्हें अपने राजा के स्वागत की तैयारी कर लेनी चाहिए क्योंकि अब देवताओं का नहीं बल्कि दुनिया पर शैतान जा राज शुरू होने का समय आ गया है।

हा.हा.हा.हा.हा.हा...!!! शैतान का बेटा लौट आया। 

तुम सब 'सेड्रिक' की फौज के कमांडर हो आओ चलो और अपनी फौज तैयार करो, हमें पूरी दुनिया को जीतकर उस पर राज करना है। और साथ ही देनी है हमारे साथ किये गए गुनाहों की सज़ा भी।" फादर विलियम ने कहा और पाँचों लोग जंगल की तरफ निकल गए।


सुबह का उजाला धीरे-धीरे फैल रहा था। गाँव के लोग उठकर दिशा मैदान को निकल रहे थे। अचानक किसी की दिल दहला देने वाली चीख सुनकर सारे लोग उस दिशा में दौड़ पड़े।

गाँव के बाहर जँगल में कई महिलाओं की निर्वस्त्र लाशें पड़ी हुई थीं।

सारे गाँव वाले घेरा बनाकर उन शवों को देख रहे थे।

"लगता है भेड़ियों के झुंड का काम है।"मुखिया जी ने अधखायी लाशों की तरफ देखते हुए कहा।

"नहीं मुखिया जी!! भेड़िये कुकर्म करने के लिए शिकार नहीं करते और आपने शायद इन शवों को ठीक  से नहीं देखा। इनके अंगों से बहता लहू इस बात की गवाही दे रहा है कि दरिंदों ने सिर्फ माँस ही नहीं खाया है बल्कि वे तो इनकी इज़्ज़त भी नोचकर ले गए।" तभी एक अधेड़ गुस्से से भरा हुआ लेकिन दुखी आवाज में बोला।

"ऐसा कौन कर सकता है हमारे इलाके में? इससे पहले तो कभी ऐसा सुना नहीं हमने। लेकिन ये जो भी हैं निश्चित ही बहुत क्रूर और बीभत्स लोग हैं। हमें जल्द से जल्द इनका पता लगाकर राजा को इसकी सूचना देनी होगी।" मुखिया जी कुछ सोचते हुए बोले।

"सेड्रिक!!! हाँ यही कहा था उसने के 'सेड्रिक' लौट आया अपना इंतकाम लेने।" लोगों ने झाड़ी में से आती चीख की आवाज सुनी और उधर दौड़ लगा दी।


झाड़ियों में बुरी तरह घायल एक युवक पड़ा कराह रहा था। लोग जल्दी से उसे उठाकर बाहर लाये और कुछ लोग हकीम को लाने के लिए गाँव की और दौड़ गए।

"अरे!!! ये तो जॉन है, हमारे ही गाँव का। इसकी ये हालत कैसे हुई?" तभी किसी ने कहा।

"रात में आये थे वे शैतान, पाँच लोग थे वे और आश्चर्य की बात ये है कि उनके मुखिया थे फादर विलियम। लेकिन फादर खुद को 'सेड्रिक' कह रहे थे और सबसे बदला लेने की बात कर रहे थे। उन्होंने लड़कों को गला दबाकर मार दिया और लड़कियों के साथ बहुत गन्दे काम किये। उसके बाद वे लोग लड़कों के शव उठाकर अपने साथ ले गए।" उस लड़के ने अटक-अटक कर बताया और फिर एक झटके से उसकी गर्दन लुढ़क गयी।

"सेड्रिक...!! कहीं ये वही तो नहीं जिसका नाम शैतान की जगह लिया जाता है? जिसे दो सौ साल पहले दफन कर दिया गया था? अगर हाँ तो दुनिया पर तबाही टूटने वाली है। चलो सब बड़े गिरिजाघर।"मुखिया जी ने काँपती आवाज में कहा और सारे गाँव वाले इकट्ठे होकर मुख्य चर्च की ओर चल दिये।


4.


बड़े गिरिजाघर में बहुत भीड़ हो रही थी, कई गांव के लोग और आस-पास के बहुत सारे गिरिजाघरों के पादरी वहाँ पर इकट्ठा हुए थे। सभी के चेहरों पर गहरी चिंता और भय के भाव फैले हुए थे।

"जैसा कि गाँव के लोगों ने बताया कि शैतानों के मुखिया जो कि फादर विलियम की तरह दिख रहा था, खुद को सेड्रिक कहकर संबोधित किया था।

'सेड्रिक' का नाम हम सभी लोग अपने बचपन से सुनते आ रहे हैं। और जिन्होंने नहीं सुना तो वे भी जान लें कि आज से दो सौ साल पहले उसी गाँव में सेड्रिक का जन्म हुआ था जहाँ के चर्च में फादर विलियम प्रेयर करा रहे थे आजकल। सेड्रिक जब चौदह साल का हुआ तभी उसने एक दिन ये घोषणा कर दी कि वह शैतान का बेटा है। उसके नाम का अर्थ है 'मुखिया होना' और शैतान ने उसे इस सारी दुनिया पर राज करने के लिए भेजा है। उसके बाद सेड्रिक घर से चला गया और काली शक्तियों की उपासना और सिद्धियाँ करने लगा।

धीरे-धीरे सेड्रिक सचमुच का शैतान बन गया। वह लोगों का खून पीने लगा और क़त्लेआम मचाने लगा। उस समय के राजा को जब सेड्रिक के बारे में पता लगा तो उसने अपनी सेना को सेड्रिक को खत्म करने के लिए भेजा। लेकिन आप लोग जानते हैं कि सेड्रिक ने क्या किया? उसने मुर्दों की सेना खड़ी कर दी राजा की सेना से लड़ने के लिए।

राजा की सेना की एक ना चली सेड्रिक की उस पिचाशनी से ना के आगे और सेड्रिक जीत के जोश में चारों तरफ तबाही मचाने लगा। उसकी सेना के पिशाच आदमियों को मारकर उनके शरीर पर कब्जा करते और फिर औरतों के साथ घृणित कार्य। वे नर पिशाच औरतों को बहुत वीभत्स तरीके से यातनाएँ देते, उनका खून पी जाते और दुष्कर्म  करके उन्हें मार देते थे।

जब राजा के पास ये सब सूचनाएँ पहुँची तो राजा  ने आध्यात्मिक शक्तियों का सहारा लिया।

राज ने सभी धर्मो के मांत्रिकों को बुलवाया और सेड्रिक का कोई उपाय करने का आग्रह किया। तब मांत्रिकों ने अपने मन्त्र शक्ति से सेड्रिक को बाँधकर एक ताबूत में बंद कर दिया और उसपर सात महामंत्रों से अभिमंत्रित करके सात कीलें ठोकी गयीं जिनके प्रभाव से सेड्रिक कभी उस ताबूत से बाहर ना आ सके। मांत्रिकों ने सेड्रिक के उस ताबूत को बस्ती से दूर, जँगल में बने एक चर्च के कब्रिस्तान में ये सोचकर दफन किया था कि यहाँ कभी कोई नहीं आएगा और यदि कोई उसे निकालने आ भी गया तब भी वह तबतक मुक्त नहीं हो सकता था जबतक की सात पवित्र आत्माएं उस 'ताबूत की कीलें' ना निकाल दें।

किन्तु ना जाने वह ताबूत बाहर आ गया और सेड्रिक उसमें से आज़ाद हो गया। और अब उसने कब्जा किया है उसी चर्च के पादरी, फादर विलियम के शरीर पर। हमें जल्दी ही उसको वापस कैद करने का कुछ तरीका सोचना होगा नहीं तो तबाही का वह ख़ौफ़नाक मंजर देखना पड़ेगा कि सबकी रूह कांप उठेगी।" मुख्य पादरी ने चिंता और उदासी भरे स्वर में सेड्रिक के बारे में सबको बताया।

"जैसा कि फादर जॉनाथन ने हमें बताया कि सेड्रिक एक शैतान है और अब फादर विलियम के शरीर में उसका डेरा है। इसका अर्थ ये हुआ की फादर विलियम की पवित्र आत्मा बिना शरीर के घूम रही होगी। तो क्यों ना हम 'आत्मा-आवाहन' विधि से फादर विलियम की आत्मा को बुलाएँ और उनसे सेड्रिक के बारे में पूछें। मेरा विचार है कि फादर विलियम को अवश्य ही कुछ ऐसा मालूम होगा जो हमें नहीं पता है और मेरा ये भी मानना है कि फादर विलियम की पवित्र आत्मा सेड्रिक के खिलाफ ज़रूर हमारा साथ देगी।" एक बूढ़े पादरी जो पीछे बैठे थे  खड़े होकर बोले और सारे लोग मुख्य पादरी की तरफ देखने लगे।

"सुझाव बहुत अच्छा है फादर डिसूजा, हम अवश्य ही इस पर और विचार करेंगे। किन्तु उससे पहले हमें सारे गाँव वालों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने होंगे। क्योंकि जैसे ही हम सेड्रिक के खिलाफ कोई कदम उठाएंगे वह सबसे पहले गाँव वालों को ही अपना शिकार बनाएगा। इसलिए कुछ मांत्रिक पादरी गाँव वालों की सुरक्षा के लिए सभी गाँव के चारों ओर सुरक्षाकवच बनाएँ और वह भी आज ही रात होने से पहले। फिर आज की रात हम यहीँ फादर विलियम की पवित्र आत्मा से सम्पर्क करने की विधि करेंगे।" मुख्य पादरी ने कहा और सभी लोग सहमति में सिर हिलाकर उठा गए।

"ठीक है फादर जॉनाथन, हम लोग एक सुरक्षा कवच बनाकर उससे अभिमन्त्रित जल को आसपास के सभी गाँव में छिड़कते हैं। तब तक आप फादर विलियम की पवित्र आत्मा को बुलाने की तैयारियाँ कीजिये।" एक पादरी ने कहा और कुछ लोगों को इशारे से अपने साथ लेकर बाहर निकल गए। 

सभी गाँव वाले भी अपने घरों को लौट गए।

चर्च में रह गए थे फादर जॉनाथन, फादर डिसूजा, फादर जोसफ और तीन-चार अन्य युवा पादरी।

"आप सभी लोग बहुत ध्यान से सुनें, हम ये नहीं जानते  कि वास्तव  में शैतान सेड्रिक जाग उठा है या फिर खुद फादर विलियम ही ताकत के लालच  में सेड्रिक के नाम की आड़ लेकर दुनिया पर राज करने की मंशा पाले हुए घूम रहे हैं। क्योंकि पहली बात तो ये है की सेड्रिक का ताबूत जहाँ दफन किया गया था फादर विलियम को ही उस चर्च में प्रार्थना और सेड्रिक की कब्र पर नज़र रखने की जिम्मेदारी दी गयी थी। दूसरे उन सात कीलों को निकालने वाली सात पवित्र आत्मा कौन हैं और विलियम के बाकी चार साथी कौन हैं। 

यदि ये सेड्रिक कोई और नहीं बल्कि खुद विलियम ही है तब आत्मा-आवाहन में क्या मुसीबत आ सकती है इसका अनुमान भी आप लोग नहीं लगा सकते।

और यदि शैतान का बेटा सेड्रिक जाग गया है तो भी वह अपने राज छिपाने के लिए कभी नहीं चाहेगा कि हम फादर विलियम की पवित्र आत्मा से वार्तालाप करें।" फादर जॉनाथन ने सभी को समझाते हुए कहा। 

"क्यों ना हम इधर भी एक सुरक्षा कवच बना लें और उसमें रखकर विलियम की आत्मा से बात करें?" फादर डिसूजा ने सलाह दी।

"यही सही रहेगा, आओ चलकर तैयारियाँ करें।" फादर  जॉनाथन ने कहा सभी लोग एक ओर चल दिये....


5.

शाम हो चली थी, गाँव वालों की सुरक्षा के लिए कवच बनाकर और लोगों को घेरे के अंदर ही रहने की चेतावनी देकर सारे पादरी लौट आये थे।

 फादर जॉनाथन, फादर डिसूजा एवं फादर जोसफ ने आत्मा को बुलाने की सारी तैयारियां कर ली थीं।

 चर्च के बरामदे में ही फर्श पर कुछ रंगीन आकृतियां बनाई हुई थीं और बाकी सारे लोग उसके चारों ओर एक दूसरे का हाथ पकड़े मोमबत्तियां लिए खड़े हुए थे। फादर जोसफ ने फर्श पर बनी उस आकृति के चारों ओर भी मोमबत्तियां लगा दीं।

 जैसे ही घण्टे ने दस बजाए फादर जॉनाथन ने सारी मोमबत्तियां जलाने का संकेत किया।

 सारी मोमबत्तियां जलने के बाद फादर डिसूजा ने कहा, "चाहे कुछ भी हो जाये हमें हाथ और साथ नहीं छोड़ना है और लगातार पवित्र मन्त्रों का उच्चारण करते रहना है। हो सकता है यहाँ कुछ बहुत डरावना दृश्य देखने को मिले, लेकिन वह हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ पायेगा बस हमें अपनी शक्ति को संयुक्त रखना होगा। क्योंकि शैतान के सामने यदि हमारी एकता टूटी तो हम सभी खत्म हो जाएंगे।"

 "हम सब तैयार हैं।" सारे पादरी एक साथ बोले और फादर जॉनाथन ने फादर डिसूजा और जोसफ को विधि शुरू करने को कहा।

 फादर जॉनाथन ने मोमबत्ती लेकर कहना शुरू किया, "है पादरी विलियम, मैं ईश्वर का नाम लेकर आपकी पवित्र आत्मा का आवाहन करता हूँ। मानवता को बचाने के लिए मैं तुम्हे गॉड का वास्ता देकर यहाँ आने के लिए कहता हूँ। हे विलियम की पवित्र आत्मा यहाँ आकर हमें हमारे सवालों के जवाब दो।" फादर जॉनाथन बहुत तेज़ आवाज में पुकार रहे थे तथा उनके साथ ही बाकी सारे पादरी भी मोमबत्तियां पकड़कर फादर जॉनाथन की बात दोहरा रहे थे। 

 अचानक बहुत तेज़ हवा चलने लगी, सारी मोमबत्तियां ऐसे फड़फड़ाने लगीं मानों अभी बुझ जाएँगी। फादर जॉनाथन ने सभी को सावधान करते हुए फिर से आवाहन मन्त्र बोलना शुरू कर दिया। अचानक फर्श पर बनी आकृति ऐसे चमकने लगी जैसे वहाँ आग जल रही हो। 

 फादर जॉनाथन ने आवाहन जारी रखा देखते ही देखते उस आकृति में फादर विलियम की छवि बनने लगी। 

 बाहर पूरा चर्च डरावनी चीखों से गूंज रहा था। तेज हवाएं जैसे चर्च को ही गिराने की चेष्टा कर रही थीं। 

आसपास के पेड़ जैसे जमीन को छू रहे थे। और शैतानी आत्माएँ दिल दहला देने वाला शोर कर रही थीं।

 लेकिन चर्च के अंदर होने वाली कार्यवाही पर इस सब का कोई प्रभाव नहीं हो रहा था। और चर्च की दीवारों को छूते ही ये सब शैतानी आत्माएँ भी डरकर पीछे हट जाती थीं।

 चर्च के अंदर अब फादर विलियम की चमकदार अग्नि जैसे जलती हुई आत्मा उस पवित्र आकृति पर बैठी हुई स्पष्ट नज़र आती थी।

 "फादर विलियम हमें माफ कर देना जो हमने आपकी आत्मा को यहाँ बुलाकर कष्ट दिया। किन्तु हमारे पास दूसरा कोई रास्ता नहीं था इस शैतान 'सेड्रिक' के बारे में जानने का।

 लोगों ने सेड्रिक को आपके शरीर में देखा था फादर तो अब आप हमें गॉड के वास्ते ये बताएं कि हक़ीक़त क्या है?" फादर जॉनाथन ने विलियम से पूछा।

 "सेड्रिक जाग चुका है, वह लोगों को मारकर उनके शरीर इकठा कर रहा है जिसमें वह और उसकी मुर्दा सेना कब्जा करके अपना राज्य स्थापित करने के लिए लड़ाई लड़ सके। उसने मुझे भी मारकर मेरे शरीर पर कब्जा कर रखा है। सबसे पहले उसने एक तांत्रिक के शरीर पर कब्जा किया था जिसके लालच की बजह से सेड्रिक उस ताबूत से आज़ाद हुआ। उसी तांत्रिक को पता है कि ताबूत की सातों कीलें कहाँ और किन लोगों के पास हैं।

 आप लोगों को उस तांत्रिक की आत्मा को बुलाकर उससे पूछना चाहिए इससे पहले कि सेड्रिक उन लोगों तक पहुँचकर उन कीलों को नष्ट करवा दे, आप लोगों को ताबूत की सभी सातों कीलें प्राप्त करके सेड्रिक को वापस ताबूत में बन्द करके वे सभी कीलें लगानी होंगी। नहीं तो सेड्रिक की शैतानी शक्ति को तबाही मचाने से कोई नहीं रोक पायेगा। वह सैकड़ों मुर्दा शव उसी कब्र में इकट्ठे कर चुका है जिसमें वह वर्षों से कैद था। 

 आप लोग जल्दी ही उसे रोकने के उपाय करें और इस काम में मेरी जो भी सहायता की जरूरत हो मैं तैयार हूँ।" फादर विलियम की आत्मा यह कहकर चुप हो गयी।

 "तांत्रिक की आत्मा? उसे बुलाने के लिए तो हमें किसी तांत्रिक की ही आवश्यकता पड़ेगी।" फादर जॉनाथन ने फादर डिसूजा को देखते हुए कहा।

 "हाँ और उसके लिए हमें देवी मंदिरों और श्मशान में खोजना होगा क्योंकि ऐसे तांत्रिक ऐसे ही स्थानों पर मिलते हैं।" फादर डिसूजा ने जवाब दिया। ठीक है अभी सुबह तक हम लोग यहीँ रहेंगे और कल से तांत्रिकों से सम्पर्क करने का प्रयास करेंगे।" फादर जॉनाथन ने फादर विलियम से वापस जाने को कहते हुए सभी पादरियों को बैठ जाने का संकेत किया।

 "मैं भी अब आप लोगों के साथ ही रहूँगा और आप लोगों को सेड्रिक की कार्यवाही और उसके खतरों से आगाह करता रहूँगा।" फादर विलियम ने यह कहते हुए वापस जाने से इनकार कर दिया।

 अगले दिन पाँच पादरियों का एक दल किसी योग्य तांत्रिक की खोज में निकल गया और फादर जॉनाथन एवं फादर डिसूजा के साथ ही फादर विलियम की आत्मा वहीं चर्च में रुक गए।

 


6.


तांत्रिक की आत्मा को बुलाने की प्रकिया के लिए पादरियों ने तन्त्र-मन्त्र के सभी प्रसिद्ध क्षेत्रों में सम्पर्क किया। उन्हें योग्य तांत्रिक सेड्रिक को फिर से बन्धन में बंधने के लिए भी चाहिए थे क्योंकि दो सौ साल पहले भी सेड्रिक को सभी धर्मों के साथ मांत्रिकों ने मिलकर ताबूत में बंद किया था।


चर्च में फादर जॉनाथन, फादर डिसूजा एवं अन्य कई पादरी बैठे हुए थे। उन्हें साथ थे कामख्या क्षेत्र के सिद्ध मांत्रिक 'कापालिक' एवं बंगाल के महाकाली क्षेत्र के अघोरी मांत्रिक 'भैरोनाथ'। फादर जॉनाथन ने दोनों मांत्रिकों को सेड्रिक की सारी कहानी बताकर एक तांत्रिक के लालच से उसके फिर से आ जाने की बात बताई।

"अब केवल वह तांत्रिक ही हमें बता सकता है कि ताबूत की वह कीलें कहाँ हैं। क्योंकि बिना उन कीलों के ना तो हम सेड्रिक का सामना कर सकते हैं और ना ही उसे फिर से कैद या खत्म कर सकते हैं ।" फादर जॉनाथन ने मांत्रिकों से कहा।

"समझ गए हम सारी बात, तन्त्र मन्त्र का प्रयोग निजी स्वार्थ के लिए करके उस तांत्रिक ने जो गलती की है उसकी सजा तो उसे हम देंगे ही किन्तु पहले उसकी आत्मा को यहाँ आकर यह बताना ही होगा कि वह कीलें कहाँ और किसके पास हैं। क्योंकि कीलें उसके लालच के चलते चोरी हुई हैं तो अब उन्हें खोजने का काम भी उसे ही करना होगा।

यदि वह भी सेड्रिक के साथ मिलकर शैतान का उपासक बन गया होगा तो हम उसे ऐसी सज़ा देंगे कि वह लाखों वर्षों तक अग्नि गोलार्ध में कैद रहेगा।" अघोरी भैरोनाथ जी ने आँखें लाल करते हुए कहा।

"हमें उस दुष्ट की आत्मा को बुलाते समय बहुत सावधानी से काम करना होगा क्योंकि एक तो वह खुद तन्त्र मन्त्र जानता है उसपर अब सेड्रिक का साथ भी उसे मिल रहा है।" मांत्रिक कापालिक ने कुछ सोचते हुए कहा।

"ठीक है तो विधि के लिए आवश्यक तैयारियां करो और इस सारे क्षेत्र की आध्यात्मिक सुरक्षा के लिए देवी कवच से सुरक्षा चक्र का निर्माण करो।" बाबा भैरोनाथ जी ने कुछ समझाते हुए कहा।


चर्च के आँगन के फर्श पर एक के अंदर एक उल्टे-सीधे दो बड़े त्रिभुज बने हुए थे जो किसी सितारे की आकृति बना रहे थे। उनको विभिन्न रंगों से संयोजित किया गया था।

उस सितारे के बीच में एक काले रंग का गोला बनाया गया था।

सितारे के सभी छः कोनों पर दिए जल रहे थे। और बीच के काले गोले पर एक बिना चला हुआ दिया रखा हुआ था।

दोनों मांत्रिक फादर डिसूजा, फादर जोसफ, फादर जॉनाथन एवं एक युवा पादरी के साथ फादर विलियम की आत्मा उस सितारे के एक-एक कोने पर अपने दाएँ हाथ की तर्जनी उँगली रखे हुए बैठे थे।

"सभी लोग ध्यान से सुनें चाहे कुछ भी हो जाये कोई भी अपनी उँगली इस चक्र से नहीं उठाएगा। और जो भी मन्त्र हम लोग बोलेंगे सभी लोग  जोर से उसे दोहराएंगे।" सिद्ध मांत्रिक 'कापालिक ने कहा और सभी ने हाँ में सिर हिला दिया।

दोनों मांत्रिक जिन्होंने आमने-सामने बैठकर त्रिभुजों के शीर्ष कोणों पर उँगलियाँ रखी हुई थीं मन्त्र पढ़ने शुरू किए।

पहले  उन्होंने देवी कवच और उत्कीलन पढ़ा फिर आत्मा आवाहन मन्त्र- "ॐ ह्रीं क्लीं तांत्रिक आत्मा स्थापयामि फट" जा जोर-जोर से जाप करने लगे।

इक्कीस मन्त्र जाप होते ही उनके चारों ओर जल रहे दिए फड़फड़ाने लगे। बहुत तेज़ हवाएं चलने लगीं और पूरा चर्च थरथराने लगा। ऐसा लग रहा था मानों हजारों चील एक साथ चिल्ला रही हों या लाखों चमगादड़ एक साथ उड़ रही हों।

"वह आ रहा है लेकिन उसके पीछे सेड्रिक की मुर्दा सेना की अपवित्र आत्माएँ भी हैं।" फादर विलियम की पवित्र आत्मा ने संकेत किया।

"कोई भी मत घबराना, ये सारी दुष्ट आत्माएँ  सुरक्षा चक्र के अंदर नहीं आ सकती। लेकिन यदि तांत्रिक सेड्रिक से मिल चुका है तो उसकी शैतानी शक्ति का सामना हम लोगों को करना होगा।" बाबा भैरूनाथ जी ने सभी को शांत करते हुए कहा और फिर से आत्मा आवाहन मन्त्र पढ़ने लगे। सभी लोग जोर-जोर से पढ़ रहे थे - "ॐ ह्रीं क्लीं तांत्रिक आत्मा स्थापयामि फट्..

अचानक सितारे के बीच काले गोले पर रखा दिया जल उठा और बाकी सारे दिए बुझ गए। बाहर अभी भी डरावना शोर हो रहा था।

"कौन हो तुम?" मांत्रिक कापालिक ने अपना प्रश्न तीन बार दोहराया।

"मैं तांत्रिक मंगलनाथ हूँ, आपने मुझे यहाँ क्यों बुलाया है?" गोले के बीच से हल्की मिनमिनाती हुई सी आवाज आयी।

"तुम्हें नहीं पता 'मंगलनाथ' की हमने तुम्हें यहाँ क्यों बुलाया है? अरे मूर्ख तेरे लालच ने दो सौ साल से सोये शैतान 'सेड्रिक' की ताबूत से बाहर निकाल दिया जो अब मौत और बीभत्सता का घिनोना खेल खेल रहा है। बाबा भैरोनाथ जी ने कड़क कर कहा और होंठों ही होंठों में कोई मन्त्र पढ़ने लगे।

"ठहरो!!! मुझे मत जलाओ मैं सब बता दूंगा जो आप पूछोगे। और रही मेरे लालच की बात तो उसकी सजा मैं अपनी जान देकर भुगत रहा हूँ।  मुझे मारने के बाद मेरे शरीर पर भी उस शैतान सेड्रिक ने कब्जा कर लिया। मैं चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पाया। अब मैं भी उस सेड्रिक से बदला लेना चाहता हूँ। इसके लिए मैं आप लोगों के साथ हूँ। आप लोग जो कहोगे मैं करने को तैयार हूँ।" तांत्रिक मंगलनाथ की आवाज सुनाई देने के साथ ही अब दिए कि लो में उसकी आकृति भी स्पष्ट होने लगी थी।

"तो ठीक है फिर हमें ये बताओ कि उस ताबूत की वह सातों कीलें कहाँ हैं? और हम उन्हें कैसे वापस लाएं? साथ ही ये भी बताओ कि सेड्रिक की सेना में कौन लोग हैं और वे लोग कहाँ छिपे हुए हैं?" फादर जॉनाथन ने सवाल किया।

"ताबूत की कीलें चर्च के पीछे वाले गाँव के लोग उखाड़कर ले गए हैं जो उनके दरवाजों पर ठुकी हुई हैं।

उन्हें हम रात के किसी भी समय वापस ला सकते हैं।

और रही बात सेड्रिक की सेना की तो उसमें चार तो उसके पुराने साथी हैं जो दो सौ साल पहले उसके अनुयायी बने थे। और बाकी उसने कब्रिस्तान के मुर्दों की आत्माओं को नए शरीर का लालच देकर अपने साथ मिला लिया है। वह लोगों को मारकर उनके शरीर उसी पुरानी कब्र में छिपाकर रखता है जिसमें उसे ताबूत में कैद किया गया था। 

यदि आप लोग उस कब्र पर कब्जा करके उन शरीरों को नष्ट कर दें तो सेड्रिक की सारी सेना और उसकी ताकत खत्म हो जायेंगे।" मंगलनाथ की आत्मा ने बताया।

"ठीक है पहले तुम वे सारी कीलें ढूंढने में हमारी मदद करो, फिर हम सेड्रिक और उसकी सेना को खत्म करने का उपाय सोचेंगे " फादर जॉनाथन ने कहा।

"ठीक है आप लोग मुझे उस दिए कि कैद से मुक्त करो मैं वचन देता हूँ कि मैं आप लोगों के साथ हूँ और इस शैतान सेड्रिक को कैद करने के ये जो आप मुझे करने को कहोगे मैं बिना शर्त वह काम करूँगा।" मंगलनाथ ने कहा और बाबा भैरोनाथ ने बाबा कापालिक की ओर देखा। दोनों में आँखों ही आँखों में कुछ इशारा हुआ और उन्होंने अपनी उंगलियाँ सितारे पर से हटा लीं।

उन्ही के साथ बाकी लोगों ने भी अपनी उंगलियां सितारे पर से हटा लीं।

"क्या हम फादर विलियम और तांत्रिक मंगलनाथ को उनके शरीरों में वापस ला सकते हैं?" फादर जॉनाथन ने सवाल किया।

"असम्भव तो नहीं है किंतु आसान भी नहीं है। और फिर इनके शरीर सेड्रिक की कैद से सही सलामत वापस लाना...!" बाबा भैरोनाथ जी ने बात अधूरी छोड़ दी।

"हमारा सबसे पहला लक्ष्य है 'ताबूत की कीलें' और ये बात हम सभी अच्छी तरह जानते हैं कि सेड्रिक नहीं चाहेगा कि हम उन कीलों को प्राप्त कर लें अतः पहले  हमें उसके लिए योजनाएँ बनानी होंगी। बाकी बातें यो हम बाद में भी सोच सकते हैं।" मांत्रिक सिद्ध कापालिक ने गम्भीरता से कहा।

"चाहे सरल हो चाहे कठिन, हमें ताबूत की कीलें वापस लानी ही होंगी।" फादर जॉनाथन ने भी गम्भीरता से जवाब दिया।

"तो चलिए फिर कोई योजना बनाकर आज रात ही काम शुरू करते हैं।" बाबा भैरोनाथ ने कहा और सभी चर्च के गुप्त कक्ष की ओर बढ़ गए।


7.

चर्च के गुप्त कक्ष में फादर जॉनाथन, बाबा कापालिक, बाबा भैरोनाथ, फादर डिसूजा एवं मंगलनाथ और फादर विलियम की आत्माएँ वार्ता कर रहे थे। ये लोग ताबूत की सातों कीलों को खोजने और उन्हें वापस लाने के लिए गम्भीर थे। ये सभी लोग जानते थे कि बिना उन मन्त्रशक्ति वाली कीलों के सेड्रिक को कैद करना असम्भव है और यदि शैतान सेड्रिक को अभी नहीं रोका गया तो वह सारे मुल्क में तबाही मचाकर बुराई का राज स्थापित कर देगा। उधर सेड्रिक दिन प्रतिदिन लोगों को मारकर उनके शरीरों में शैतान के उपासक अपने साथियों की आत्माएँ स्थापित करके मुर्दों की सेना बनाता जा रहा था।


"इस चर्च में कुछ पादरी और तांत्रिक मिलकर हमारे खातमें की योजनाएं बना रहे हैं साथियों। क्या हमें उन्हें ऐसा करने से रोकना नहीं चाहिए?" सेड्रिक जो कि चर्च के बाहर सुरक्षा चक्र के घेरे के समीप अपने दस मुर्दा सैनिकों के साथ खड़ा हुआ था बहुत गुस्से से भरा चीख कर बोला। 

इस समय वह फादर विलियम के शरीर में था। सेड्रिक फादर विलियम और तांत्रिक मंगलनाथ के शरीर अपने लिए इस्तेमाल करता था और बाकी मुर्दों के लिए उसने गाँव वालों को मारकर उनके शरीर इकठे कर रखे थे।

"हम बदला लेंगे!!, इन सब को मार डालो!!, चर्च को उखाड़ फेंकते हैं!!! हम इन्हें मज़ा चखा देंगे",  पीछे से मुर्दों की मिनमिनाहत फूट पड़ी।

"ठीक है लेकिन इस सुरक्षा चक्र से बचकर...!!" अभी सेड्रिक ये बात कह ही रहा था कि एक मुर्दे ने जोश में होश खोकर आगे कदम बढ़ाया और सुरक्षा रेखा को छूते ही भक्क!! की तेज़ आवाज़ के साथ वह जलते अँगारे में बदल गया। 

"अरे मूर्खों!!! समझा रहा हूँ ना मैं की इस सुरक्षा कवच से दूर रहो। अब कोई आगे नहीं बढ़ेगा, हमें यहीं इस चक्र के बाहर से ही इनपर प्रहार करने होंगे", कहकर सेड्रिक ने अपना हाथ हवा में हिलाया और अचानक तेज हवा के झोंके के साथ आसपास के बड़े पेड़ और भारी पत्थर हवा में ऊपर उठ गए। सेड्रिक ने जोरदार हुँकार भरते हुए फिर अपने हाथ को तेजी से झटका दिया जिसके बाद हवा में तैर रहे पेड़ और पत्थर तेजी से चर्च की ओर लपके। लेकिन ये क्या सारे पेड़ और पत्थर हवा में ही छितरा कर वापस इन्ही लोगों पर आ गिरे जैसे किसी रबर के गुब्बारे से टकराये हों।

उनकी मार से सेड्रिक के चार मुर्दे घायल हो गए और कराहते हुए उछलने लगे।


इधर चर्च के गुप्त कक्ष में - "हमें ऐसा संकेत मिल रहा है कि सेड्रिक चर्च के बाहर ही है और वह हम लोगों को खत्म करने के मंसूबे बना रहा है", बाबा कापालिक ने मुस्कुराते हुए कहा।

"हम चाहें तो उसे अभी कैद कर सकते हैं लेकिन बिना उन मांत्रिक कीलों के उसे ज्यादा देर रोकना बहुत मुश्किल है।" फादर जॉनाथन ने धीरे से अफ़सोस भरे स्वर में हुए कहा।

"कोई बात नहीं, कैद तो हम उसे बाद में करेंगे ही लेकिन अभी के लिए उसे अपनी शक्ति का परिचय दे देते हैं।" बाबा भैरोनाथ ने कहा और मुट्ठी बन्द करके आँख मीचकर कुछ पढ़ते हुए झटके से मुट्ठी खोलकर फूँक दिया।

अचानक आग का एक बड़ा गोला चर्च के बाहर लपका जिसका लक्ष्य सेड्रिक था किंतु एन वक़्त पर सेड्रिक एक मुर्दे की आड़ ले गया और उसी पल वह गोला उस मुर्दे से टकराया और उसके परखच्चे उड़ गए। सेड्रिक के चेहरे पर पलभर के लिए भय का पीलापन छा गया किन्तु उसने खुद को संभालते हुए कहा, "चलो पहले उन गाँव वालों ने निपटते हैं जिनके पास उस ताबूत की कीलें हैं। इन भुनगों को बाद में मसलेंगे। और उसके पीछे-पीछे उसके सारे मुर्दे खट्ट-खट्ट करते हुए लौट गए।


"मुझे लगता है कि हमें दिन में जाकर उन सारे शरीरों को नष्ट कर देना चाहिए जिनमें सेड्रिक और उसके मुर्दा साथियों की आत्माएँ प्रवेश करके घूमते हैं। क्योंकि बिना शरीर के सेड्रिक की कोई भी सेना लड़ नहीं सकती और ना ही गाँव वालों से कुछ जानकारी ले सकती है।" फादर डिसूजा ने सलाह दी 

"बात तो ठीक है फादर लेकिन यदि हम दस शरीर नष्ट करेंगे तो सेड्रिक चिढ़कर सो लोगों की जान लेगा और उनके शरीर इकठ्ठा करेगा। तो मेरा सुझाब ये है कि पहले हम लोग वे सारी कीलें प्राप्त करते हैं फिर उसके शव भण्डार को आग लगा देंगे।" बाबा कापालिक ने कहा और सभी ने उनका समर्थन किया।

"तो सबसे पहले उन कीलों को खोजते हैं। और इस काम में हमें तांत्रिक मंगलनाथ और फादर विलियम की सहायता की आवश्यकता होगी।

कृपया आप दोनों लोग गुप्त रूप से ये पता लगाइए की वे सातों कीलें कहाँ हैं और क्या सेड्रिक भी उन कीलों तक पहुँच रहा है। क्योंकि यदि हमसे पहले सेड्रिक उन कीलों तक पहुँच गया और उसने किसी ग्रामवासी के शरीर पर कब्जा करके लोगों से वे कीलें नष्ट करवादीं तब हमारे लिए बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी।"बाबा भैरोनाथ ने चिंचित स्वर में कहा।

"हम लोग आज ही उन कीलों को खोजते हैं बाबा जी, मैं अपनी पूरी जान लगा दूँगा उन्हें खोजने और सेड्रिक का अंत करने में क्योंकि इस सब में अपराधी मैं ही हूँ। मेरे ही लालच के चलते सेड्रिक नाम की ये मुसीबत नींद से जागी है तो अब मैं ही इसे वापस भेजने के लिए उन कीलों को जल्द से जल्द खोजकर लाऊँगा।" मंगलनाथ ने जवाब दिया।

"चलो हम सभी लोग एक साथ चलते हैं और उन कीलों को खोजकर लाते हैं। अभी रात्रि का चौथा पहर है। तीन बजे हैं और सूरज निकलने में पूरे तीन घण्टे बाकी हैं। इन तीन घण्टों में तांत्रिक मंगलनाथ और फादर विलियम की आत्माएँ सक्रिय और शक्तिशाली हैं। सूरज निकलने पर इनकी शक्ति मन्द हो जाएगी और फिर हमें कीलों को खोजने के लिए सूरज डूबने के इंतज़ार करना होगा।" फादर जॉनाथन ने समझाते हुए कहा।

"सही कह रहे हैं पादरी आप, हमें यह कार्य अभी करना होगा ऐसे भी सेड्रिक चोट खाकर गया है और अभी भयभीत है तो उसकी तरफ से आज किसी भी कार्यवाही की आशंका कम ही है। बाकी कल हो सकता है वह हमारे विरुद्ध कोई योजना बनाकर हमें रोकने का प्रयास करे।" बाबा कापालिक ने उठते हुए कहा और सभी लोग चर्च से बाहर आ गए।

"हम सभी को एक साथ एक निश्चित दूरी में ही रहना होगा, हम एक सीमित सुरक्षित क्षेत्र का निर्माण करके चलेंगे। उस सुरक्षा चक्र में सेड्रिक या उसका कोई भी मुर्दा सैनिक हमें नहीं देख पायेगा।" कापालिक बाबा ने कहा और कुछ मन्त्र पढ़ने लगे।

कापालिक बाबा के सुरक्षा चक्र बनाने के बाद बाबा भैरोनाथ ने भी मुठ्ठी बन्द करके कुछ मन्त्र पढ़कर चर्च की ओर फूँक दिया। सभी ने सवालिया नज़रों से उनको देखा तो उन्होंने मुस्कुराकर उत्तर दिया, "भ्रामक तन्त्र है, इसके प्रयोग से सेड्रिक को लगेगा कि हम लोग चर्च के अंदर ही हैं और वह हमारे पीछे नहीं आएगा।

उनकी इस बात से सभी लोग बहुत खुश हो गए और बढ़ गए 'ताबूत  की कीलों' की खोज में...


8.


"ये पादरी और तांत्रिक मिलकर मुझे बन्दी बनाएँगे, अरे इतना आसान है क्या सेड्रिक को कैद करना। तुम लोग बनाते रहो इधर चर्च में योजनाएँ और मैं बढ़ाता हूँ अपनी आर्मी। इन्हें करने दो अपना काम चलो हम शिकार पर चलते हैं। और उन कीलों के डर से निकलने और उन्हें नष्ट करने का कोई उपाय ढूंढते हैं।

हा!हाहा!हा!! चलो मेरे गुलामों" सैड्रिक जोर से हँसते हुए अपने साथियों से बोला और फिर एक ओर चल दिया। उसके पीछे-पीछे चल पड़ी उसकी भूतिया डरावनी सेना। सेड्रिक की सेना के मुर्दे घिसटते लड़खड़ाते हुए चल रहे थे और बहुत अजीव आवाजें निकाल रहे थे।


रात का आखिरी पहर था चर्च से दूर एक गाँव में लोग सुबह की गहरी नींद ले रहे थे तभी वहाँ चीखपुकार मच गई। आवाजें सुनकर लोग लाठी, डंडे, हँसिये कुल्हाड़ी आदि लेकर बाहर निकल आये। औरतों और बच्चों को लोग घरों में ही छिपने की हिदायत दे रहे थे।


"पकड़ो इन लोगों को और पूछो इनसे की ताबूत की कीलें किन लोगों ने चुराई हैं। और मर्दों को मारकर उनके शरीर पर कब्जे करो। बाकी औरतों के साथ क्या करना है ये तो तुम लोगों को पता ही है।" सेड्रिक ने गाँव के लोगों की ओर इशारा करके अपनी सेना को कहा और उसके मुर्दे टूट पड़े जिंदा लोगों पर।

लोग हाये-तौबा मचाने लगे। बचने के लिए इधर-उधर भागने लगे। सेड्रिक के कुछ मुर्दे घरों में घुस गए और महिलाओं को खींचकर घसीटते हुए बाहर लाने लगे। कुछ मुर्दे जिनमें सेड्रिक के शैतान साथियों की आत्माओं का कब्जा था, लोगों के घरों में ही औरतों से बदसलूकी करने लगे। उनसे बचकर जो महिलाएं बाहर की ओर भागतीं उन्हें सेड्रिक के बाहर खड़े सैनिक पकड़ लेते और उनके कपड़े नोचकर उन्हें खसोटने लगते।

अभी एक औरत घर से आधे-अधूरे बिखरे कपड़ों में रोती-बिलखती दया की भीख माँगती बाहर भागकर आयी थी। तभी उसने देखा कि उसके पति को फादर विलियम ने गर्दन से पकड़कर उठा रखा है और बीभत्सता से हँस रहा है। वह महिला दौड़कर विलियम के पैरों में गिरकर बोली, "ये क्या फादर? आप तो खुदा के बेटे के अनुयायी हो। फिर आप इन शैतानो के साथ मिलकर ये घिनोना पाप कैसे कर सकते हो। खुदा के वास्ते मेरे पति को छोड़ दो। हमारे परिवार का यही एक मात्र सहारा हैं। प्लीज फादर कुछ तो तरस खाओ। आप तो पुजारी हो, शान्ति का संदेश देते हो फिर भी...!" वह महिला विलियम जिसके जिस्म में सेड्रिक की आत्मा थी उसके पैर पकड़े गिड़गिड़ाते हुए बोली।

सेड्रिक ने एक नज़र उस महिला के ऊपर डाली और उसका जिस्म देखते ही भूखे भेड़िये की तरह अपने होंठों पर जीभ फिराने लगा। उसने उस महिला के पति को एक जोर का झटका दिया जिससे वह निर्जीव होकर लुढ़क गया।

सेड्रिक ने उस आदमी के शव को एक ओर उछाल दिया और घिनौनी हँसी हँसने लगा। वह महिला अपने पति की ओर दौड़ी और उससे लिपटकर रोने लगी। अचानक महिला के पति के जिस्म में हरकत हुई और वह उठकर बैठ गया। उसने अपनी पत्नी को बाहों में उठाया और घर की ओर बढ़ गया। 

वह महिला अपने पति को जीवित देखकर खुशी से खिल उठी और उसने अपने आँसू पोंछकर अपनी बाहें अपने पति के गले में  डाल दीं। उस दौरान वह ये नहीं देख पायी की उसके पति के उठने से पलभर पहले ही विलियम निर्जीव होकर जमीन पर गिरा है।

वह महिला अपने पति के अंक में खुद को सुरक्षित मान उससे लिपटी रही और वह पुरुष उसे लिए घर के अंदर चला गया। 

  मुर्दा सेना के कुछ सैनिक गाँव की ओर चले गए और कुछ विलियम की लाश की सुरक्षा में आगे बढ़ गये।

आदमी को अंदर जाए अभी कुछ पल ही बीते थे कि उस महिला की हृदय विदारक चीख ने सारे गाँव का सन्नाटा भंग कर दिया। उस महिला की दुःख भरी दर्द से कराहती चीखों ने सारे गाँव की नींद उड़ा दी। 

सारे गाँव वाले इकट्ठे होकर उस घर की ओर दौड़े जिधर से आवाजें आ रही थीं।

लोगों की बढ़ती भीड़ से घबराकर मुर्दा सैनिक पीछे हटने लगे थे तभी उस महिला का पति उसकी निर्वस्त्र रक्तरंजित लाश को हाथों में उठाये हँसते हुए बाहर आया। उसके दाँत खून ने लाल हो रहे थे और उसके मुँह से खून टपक रहा था। महिला की गर्दन का माँस एक ओर से पूरा खाया गया था जिसमें से उसकी हड्डी नज़र आ रही थी। महिला ने निजी अँगों से भी रक्त प्रवाह हो रहा था। उसके वक्ष भी काट दिए गए थे। 

सारे गाँव वाले उस महिला की दुर्दशा देखकर भय से जम गए थे। उनमें इतनी शक्ति भी नहीं बची थी कि वे एक कदम भी आगे बढ़ा सकते। अभी लोग सदमें से उबरे भी नहीं थे तभी  उस व्यक्ति ने महिला का शव जमीन पर पटक दिया और उसे कुचलते हुए आगे बढ़ गया। जैसे ही वह आदमी विलियम के शव के पास पहुँचा वह निर्जीव होकर लुढ़क गया और फादर विलियम अट्टहास करते हुए उठ खड़ा हुआ।


"क्या समझ आया तुम लोगों को?"विलियम ने गाँव वालों की ओर देखते हुए पूछा।

  उसकी भयानक आवाज से सारे गाँव वाले सहम कर पीछे हट गए।

"मैं महान सेड्रिक हूँ, मुझे शैतान ने सभी शैतानों का मुखिया बनाकर भेजा है। उनके आशीर्वाद से मैं ही इस सारी दुनिया पर शासन करूँगा। मुझे तलाश है ताबूत की उन कीलों की जिन्हें कुछ लोग जँगल से चुराकर लाये हैं। अगर मुझे तीन दिन के अंदर वे सारी कीलें और उन्हें उखाड़ने वाले लोग नहीं मिले तो ऐसे ही सारे गाँव  वाले अपने परिवार को नृशंसतापूर्वक मारकर उनका खून पी जाएँगे।" सेड्रिक ने उस आदमी और उसकी पत्नी की ओर इशारा करते हुए कहा।

अभी सेड्रिक ये सब कह ही रहा था कि उसे भीड़ में खुद को छिपाती एक पन्द्रह-सोलह साल की कन्या नज़र आयी।

"जब तक तुम लोग उन कीलों और उनके चुराने वालों को ढूंढकर लाते हो तब तक के लिए मैं इस लड़की को अपने साथ ले जाता हूँ।" सेड्रिक ने वासना भरी आवाज में कहा और लड़की की ओर बढ़ने लगा।

सेड्रिक को आता देखकर लोग सहम कर एक ओर हट गए और लड़की अकेली रह गयी।

जैसे ही सेड्रिक ने लड़की को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया और उसका हाथ लकड़ी के जिस्म से छुआ सेड्रिक को जोरदार झटका लगा और वह हवा में तीन-चार फुट उछल गया जैसे किसी ने उसे जोर से फेंक दिया हो।

सेड्रिक को ऐसे उछलकर गिरते देखकर गाँव वालों को आश्चर्य हुआ और वे जैसे नींद से जागे। सेड्रिक अभी उठकर खड़ा ही हुआ था कि वह लड़की आगे बढ़ने लगी। सेड्रिक अभी-अभी लगे झटके से बुरी तरह घबरा गया था, वह तेज़ी से पलटा और अपने साथियों से बोला, "अरे मूर्खो सुबह होने वाली है चलो निकलो यहाँ से नहीं तो सूरज की गर्मी तुम सबके साथ मुझे भी जला देगी और सेड्रिक ने दौड़ लगा दी। उसके पीछे उसके साथी भी भाग खड़े हुए।

गाँव वाले कभी भागते हुए सेड्रिक तो कभी उस लड़की को आश्चर्यचकित होकर देखते रह गए।

उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उस छोटी सी लड़की के पास ऐसी क्या शक्ति थी जिससे डरकर शैतान भाग गए।

गाँव वालों को क्या खुद लड़की को भी समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हुआ है।

अभी ये लोग इस घटनाक्रम से बाहर आने का प्रयास कर ही रहे थे तभी पूर्व की ओर से सूर्य की किरणों के साथ ही सूरज की लाल किरणों जैसे भगवाधारी दो साधु और उनके साथ दो पादरी सफेद लबादे पहने आते दिखाई दिए...



9.

साधूओं और पादरियों को एक साथ आता देखकर गाँव वाले उनके स्वागत को दौड़े और लाशों के पास आकर बाबा भैरोनाथ ने पूछा, "ये सब कैसे हुआ?" 

"शैतान विलियम का किया है ये सब, वह खुद को शैतान का बेटा सेड्रिक बता रहा था। उसके साथ कुछ मुर्दा लोग भी जिन्दे होकर घूम रहे थे। उन सभी ने गाँव वालों के साथ बहुत अमानवीय कृत्य किये। महिलाओं को शर्मसार किया और कत्लेआम मचाकर चले गए। वह दुष्ट तो इस लड़की को उठाकर ले जाने वाला था लेकिन ना जाने किस शक्ति के प्रभाव से जैसे ही उसने लड़की को हाथ लगाया वह जोर का झटका खा गया और डरकर भाग गया।" एक गाँव वाले ने आगे बढ़कर सारी घटना सुनाते हुए कहा।

"क्या कहा! लड़की से डर गया?? कौनहै वह लड़की?" बाबा कापालिक ने आश्चर्य से चौंकते हुए पूछा।"

"मैं हूँ बाबा जी, मुझे खुद नहीं समझ आया कि कैसे लेकिन मेरे शरीर से टच होते ही फादर विलियम को जोर का झटका लगा जैसे किसी ने उन्हें बिजली का शॉक लगा दिया हो।" वह लड़की आगे आते हुए बोली।

"क्या तुम्हारे पास कोई ताबीज या अन्य कोई पवित्र वस्तु है बेटी?" बाबा भैरोनाथ जी ने लड़की को सर से पाँव तक गौर से देखते हुए पूछा।

"नहीं!! मेरे पास तो कोई ताबीज नहीं है।" लड़की ने जवाब दिया।

"ठीक से याद करके बताओ बेटी, कोई ऐसी वस्तु जो हाल ही में आपके पास आई हो जो किसी पवित्र स्थान या वस्तु से जुड़ी हुई हो या अन्य कोई ऐसी चीज़ जिसके बारे में आप ज्यादा नहीं जानते लेकिन आपने धारण कर रखी हो?" बाबा कापालिक ने बहुत प्रेम से उस लड़की से पूछा।

"हाँ!, ये अँगूठी जो मैंने इसी हफ्ते पहनी है।" लड़की ने अपने हाथ की उँगली दिखाते हुए कहा जिसमें उसने लोहे का एक छल्ला पहन रखा था।

"इससे जुड़ी कोई विशेष बात जो आपको याद हो और आप हमें बताना चाहो?" बाबा कापालिक ने फिर सौम्य स्वर में पूछा।

"ये अँगूठी एक पवित्र कील से बनी है। कुछ दिन पहले मेरे पिताजी को कहीं से एक पवित्र कील मिली थी जिसके बारे में कहा जा रहा था कि वह जिस दरवाजे पर लगी होगी वहाँ कभी कोई नकारात्मक शक्ति प्रवेश नहीं करेगी।

हमारे घर में मैं और मेरे पिता के अलावा कोई अन्य सदस्य नहीं हैं तो मेरे पिता जी जब शहर काम करने के लिए गए तब उन्होंने मुझे वह कील देते हुए कहा था कि  मैं सदैव उस कील को अपने पास रखूँ, वह मेरे रक्षा करेगी।   तब मैंने कील के खो जाने के डर से उसकी ये अँगूठी बनबाकर अपनी उंगली में धारणकर ली।और आज सच में इसने मेरी रक्षा की भी।" लड़की ने बताया।

"ओह्ह!! अर्थात यह अँगूठी उस ताबूत की कील से ही बनी है जिन्हें हम खोज रहे हैं। फादर जॉनाथन ने दोनों तांत्रिकों की ओर देखते हुए धीरे से कहा। लेकिन बाबा कापालिक ने संकेत से उन्हें चुप रहने को कहा।

"तो देखा आप लोगों ने कि जिन कीलों को वह सेड्रिक खोज रहा है उनमें क्या शक्ति है। सेड्रिक आप लोगों के जरिये उन पवित्र कीलों को खोजकर उन्हें नष्ट करना चाहता है जिससे उसे कोई भय ना रहे। 

जैसा कि आप लोगों ने देख, केवल एक कील से बनी इस अँगूठी ने उस शैतान सेड्रिक को उसकी सेना सहित भागने पर मजबूर कर दिया तो इस सातों कीलों की संयुक्त शक्ति क्या कर सकती है। दरअसल ये कीलें ही उस सेड्रिक के अंत का सामान हैं इसी लिए वह डर कर इन्हें नष्ट करवाना चाहता है। और हम भी इन कीलों को खोज रहे हैं ताकि उस शैतान को हमेशा के लिए सुला सकें।

तो हम चाहते हैं कि आप सभी ग्रामवासी उन बाकी की छः कीलों को खोजने में हमारी मदद करें। और जब तक सारी कीलें नहीं मिलतीं ये लड़की इस अँगूठी को अपनी और आप सभी गाँव वालों की सुरक्षा के लिए धारण करके रखे।" बाबा भैरोनाथ जी ने कहा।


"हम सब गाँव वाले इस नेक काम में आपके साथ हैं, हम जल्द से जल्द उन सभी कीलों को खोजने का प्रयास करेंगे।" सभी गाँव वालों ने इन लोगों को आश्वासन दिया।

"ठीक है फिर आप लोग केवल दिन के उजाले में ही उन कीलों को खोजें और रात में सभी लोग एक साथ रहें। क्योंकि हो सकता है सेड्रिक इस बेटी को फिर नुकसान पहुँचाने की कोशिश करे इसलिए जब तक सेड्रिक का अंत नहीं होता हम में से भी एक या दो लोग आपकी सुरक्षा के लिए यहाँ आ जाएंगे।

हो सके तो आसपास के गाँव वालों को भी शाम को यहीं इकट्ठा होने को कहें इससे वे लोग भी सुरक्षित रहेंगे और हम लोग उन कीलों को खोजने में भी जल्दी सफल हो पाएंगे।" बाबा भैरोनाथ जी ने गाँव वालों को समझाते हुए कहा।

"ठीक है हम लोग आज शाम को ही आसपास के लोगों को यहाँ चर्च में इकट्ठा करते हैं।" कुछ युवकों ने आगे आकर कहा।

"ठीक है फिर सभी हम लोग चलते हैं शाम पाँच बजे आप सभी लोग चर्च में मिलें। आगे की योजना हम वहीं  बताएंगे।" बाबा कपालिक ने कहा और ये लोग वहाँ से चले गए।


शाम के पाँच बजने ही वाले थे, सारे पादरी और दोनों तांत्रिक पहुँच चुके थे और चर्च के चबूतरे पर कुर्सी लगाकर बैठे थे।

धीरे-धीरे गाँव के लोग आकर चर्च के प्रांगण में जमा हो रहे थे। इनमें आसपास के लगभग सारे गाँव के लोग थे।

पादरियों के पीछे ही फादर विलियम और तांत्रिक मंगलनाथ की आत्माएँ भी थीं।

ठीक पाँच बजे फादर जॉनाथन खड़े हुए और उन्होंने कहना शुरू किया, "उपस्थित सज्जनों, जैसा कि आप सभी जानते हैं कि वर्षों से एक ताबूत में बंद मन्त्रों की कैद में शैतान सेड्रिक सोया पड़ा था जी कि अब कुछ लोगों की गलती और कुछ लोगों की अनजाने में कई गयी भूल से जाग उठा है और चारों तरफ लोगों को मारकर दहशत फैला रहा है। आज हम लोग यहाँ उसी सेड्रिक को वापस मौत की नींद में सुलाने की योजना पर विचार करने के लिए इकट्ठे हुए हैं। आगे आप लोगों को महान तांत्रिक बाबा कपालिक और बाबा भैरोनाथ जी अपनी योजना और आप लोगों की भूमिका के बारे में बताएँगे।" कहकर फादर जॉनाथन बैठ गए।

"देखिए आप लोग एक बात जान लीजिए कि सेड्रिक को वर्षों पहले एक ताबूत में कुछ मन्त्रों की शक्ति से बंद किया गया था। उन सभी सात महामंत्रों को सात कीलों पर सन्धान करके उस ताबूत में ठोंका गया था। किंतु एक तांत्रिक के लालच ने पहले तो वह ताबूत धरती के गर्भ से बाहर निकाला और फिर उसकी झूठी अफवाह के झांसे में आकर कुछ लोगों ने नासमझी में ताबूत से उन कीलों को बाहर निकाल कर सेड्रिक को उस कैद से मुक्त कर दिया और अब वह शैतान सारे समाज के लिए खतरा बन गया। उन कीलों में से कुछ कीलें तो हमें पता है कि कहाँ हैं और वे हमें मिल ही जाएँगी और बाकी की कीलें भी हम जानते हैं कि यहाँ उपस्थित लोगों में से ही किसी के पास हैं, तो हम बस आप लोगों से यही चाहते हैं कि आप लोग सेड्रिक के अंत तक यहीँ सुरक्षित रहें और जिन लोगों के पास  ही ताबूत की कील है वे शीघ्रातिशीघ्र उन्हें यहाँ लेकर आ जाएं। क्योंकि अब सेड्रिक भी कीलों के राज को जान चुका है और जिनके पास कीलें हैं उन्हें सेड्रिक से ज्यादा खतरा है। सेड्रिक उन कीलों को नष्ट करना चाहता है और वह इस काम के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। अतः आप लोगों की सुरक्षा और सारे समाज का हित इसी में है की आप लोग वे सारी कीलें लेकर आ जाओ। कीलें मिलने के बाद ही हम लोग उस दुष्ट का अंत कर पाएँगे।" बाबा कपालिक ने खड़े होकर कहा।

इनकी बात सुनकर लोगों में खुसरफुसर होने लगी और कुछ लोग भीड़ से निकलकर सामने आ गए।

"कीलें हमारे पास हैं जो हमारे दरवाजे पर लगी हुई हैं किंतु यदि हम उन्हें लेने गए तो इस बात की क्या गारंटी है कि सेड्रिक हमें और हमारे घरों को नुकसान नहीं पहुँचायेगा?" उन लोगों ने पूछा।

"हम आपके साथ चलेंगे और कील लेने के बाद आपके घर को सुरक्षा घेरे में सुरक्षित कर देंगे। आप लोग बिल्कुल चिंता ना करें बस सेड्रिक के अंत में हमारा साथ दें।" बाबा भैरोनाथ ने खड़े होकर सभी लोगों  को आश्वासन दिया।

"ठीक है फिर हम लोग तैयार हैं।" सामने आए लोगों ने कहा जो गिनती में छः थे।

"ठीक है चलिए फिर हम उन कीलों को लेकर आते हैं, मैं और फादर जोसफ कीलें लेने जाते हैं और बाकी लोग यहीं रहकर सुरक्षित रहें।" बाबा कपालिक ने फादर जोसफ को संकेत करके कहा।

"ठीक है जाइये आप लोग, हम आपके वापस आने तक इन लोगों को सुरक्षा घेरे में रखेंगे।" बाबा भैरोनाथ जी ने कहा और फादर जॉनाथन के साथ सुरक्षा घेरा बनाने लगे।

फादर जोसफ और मांत्रिक कापालिक उन छः लोगों के साथ कीलें लाने के लिए निकल गए।


10.


मुख्य चर्च के गुप्त कक्ष में दोनों तांत्रिक और सभी पादरी बैठे हुए थे। फादर विलियम और तांत्रिक मंगलनाथ की आत्माएँ भी वहाँ मौजूद थीं।

"सारी कीलें मिलने के बाद सेड्रिक को दोबारा कैद करने के लिए क्या योजना है आओ लोगों के पास?" फादर जॉनाथन ने सभी लोगों की ओर देखते हुए पूछा।

"फादर जॉनाथन का सवाल बहुत अच्छा और विचार करने योग्य है, क्योंकि केवल कीलें प्राप्त कर लेना मात्र ही तो हमारा लक्ष्य नहीं था। हमें शैतान सेड्रिक को सदा  के लिए वापस ताबूत में बंद करके ये सारी किलें ताबूत में लगानी होंगी तभी हम अपने इस अभियान में सफल हो पाएंगे।" बाबा भैरोनाथ जी ने गम्भीरता से कहा।

इनके इस सवाल पर सभी लोग माथा ठोकने लगे।

"मेरे विचार से हमें सेड्रिक द्वारा इकट्ठे किये गए सारे शरीरों को नष्ट कर देना चाहिए क्योंकि बिना शरीर सेड्रिक की शक्ति कुछ नहीं है। उसके बाद आप लोग अपनी मन्त्र शक्ति से उसे कैद कर लेना।" तांत्रिक मंगलनाथ की आत्मा बहुत माध्यम सुर में बोली।

"नहीं 'मंगल' ये इतना सरल नहीं है जितना तुम सोच रहे हो। हमें सेड्रिक को उसी समय ताबूत में बंद करना होगा जब वह किसी शरीर में हो। क्योंकि बिना शरीर की आत्मा हवा से भी हल्की होती है और उसे ताबूत में बंद कर पाना असंभव जैसा है।" फादर जॉनाथन ने जवाब दिया।

"मंगलनाथ की बात से हमें एक दिशा मिल गयी है। चलो हम लोग जल्दी से उन शरीरों को नष्ट कर देते हैं।

किन्तु केवल एक शरीर हमें सेड्रिक के लिए छोड़ना होगा। और वह शरीर होगा या तो पादरी विलियम का या फिर तांत्रिक मंगल का। बोलो आप लोग को अपना शरीर खुशी से देना चाहेगा?" बाबा कपालिक ने कुछ सोचकर पूछा।

"मेरा शरीर ही इस काम मे लाया जाए क्योंकि मेरे कारण ही ये सेड्रिक नामक शैतान जागा है और सारी मानवता के लिए खतरा बन गया है।

ऐसे भी जागने के बाद सबसे पहले सेड्रिक मेरे शरीर में ही आया था अतः मेरा मानना ये है कि मेरे शरीर की तरफ सेड्रिक का आकर्षण ऐसे भी ज्यादा है। अतः वह मेरे शरीर में बिना सोचे प्रवेश करेगा और हमें उसे कैद करने में आसानी रहेगी।" तांत्रिक मंगलनाथ ने कहा।

"बात तो मंगलनाथ की ठीक है किंतु यहाँ विचार करने की बात ये है कि क्या सेड्रिक सारे शरीर छोड़कर घूम रहा होगा? क्योंकि मेरा विचार है कि वह हर समय किसी ना किसी शरीर में रहता होगा और इस समय वह जिस शरीर में होगा हमें उसे उसी में कैद करना होगा।" फादर डिसूजा ने अपनी राय दी।

"सही कहा आपने फादर डिसूजा, इस बारे में भी हमें विचार करना चाहिए। और जहाँ तक हमने सेड्रिक के बारे में जाना है, जब वह गांवों में आतंक मचाने जाता है तब वह फादर विलियम के शरीर को इस्तेमाल करता है और जब वह तन्त्र करता है या हमारे तंत्रों से मुकाबला करता है तब वह मंगलनाथ के शरीर में होता है। और इस समय वह कीलों की खोज में निकला है, अर्थात तन्त्र मन्त्र से उसे लड़ना होगा तो मेरे विचार से इस समय वह मंगल के शरीर में ही होगा।" बाबा कपालिक ने कहा।

"ठीक है फिर हम लोग पहले पादरी विलियम की आत्मा को उनके शरीर में वापस स्थापित करने की कोशिश करेंगे उसके बाद बाकी सारे शरीर जला देंगे। हमें ध्यान रखना है कि तांत्रिक मंगलनाथ के शरीर को हमें सुरक्षित रखना है।" बाबा भैरोनाथ ने कहा और उसके बाद कुछ देर और सारे लोग अपनी योजना पर गम्भीरता से विचार करते रहे।


कब्रिस्तान में जिस टूटी-फूटी पुरानी कब्र में सेड्रिक ने सारे मुर्दा जिस्म इकठे किये थे ये सारे लोग उसी कब्र के अंदर थे।

बाहर से गन्दी सी वह कब्र अंदर से किसी बड़े कमरे जैसी थी जिसमें बहुत सारी जगह थी। उस कमरे से दो रास्ते भी जा रहे थे। जिनमें एक सामने की दीवार में था और दूसरा जमीन के अंदर।

ये लोग पहले जमीन के अंदर की सुरंग में उतर गए।

"क्या आपने इस स्थान को भ्रामक तन्त्र से सुरक्षित कर दिया है?" बाबा भैरोनाथ जी ने मांत्रिक कपालिक से पूछा।

"हाँ मैंने इस स्थान के साथ ही चर्च को भी भ्रामक तन्त्र से सुरक्षित कर दिया है। अब सेड्रिक को यही लगेगा कि हम लोग चर्च में ही हैं।" बाबा कपालिक ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

"ये तो अपने बहुत अच्छा किया बाबा जी।" 

सुरंग में उतरने के बाद इन्होंने देखा कि नीचे तो ऊपर से भी बड़ा कमरा था जिसमें सैकड़ों मुर्दे करीने से बैठे हुए थे जैसे अभी उठकर चल पड़ेंगे।

उन्हें देखकर दोनों तांत्रिकों में आपस में कुछ इशारे हुए और उन्होंने बाकी सभी को वापस ऊपर जाने को कहा 

सभी लोगों के ऊपर जाते ही दोनों बाबाओं ने हाथ में पानी लेकर कुछ मन्त्र पढ़े और उन मुर्दों पर छिड़क दिया।

देखते ही देखते सारे मुर्दे धुआँ बनकर उड़ गए और पीछे किसी की हड्डी तक भी शेष ना बची।

उन सभी मुर्दों को जलाकर दोनों बाबा ऊपर आये और उन्होने वह सामने का दरवाज़ा खोला। उसके अंदर आते ही ये लोग चौंक उठे। इस कमरे में एक शानदार पलँग बिछा हुआ था जिसपर मंगलनाथ आराम से सोया हुआ था। कमरे में बहुत सारी अलमारियाँ थीं जिनमें कई तरह के हथियार और बहुत से सोने-चाँदी के जेवरात रखे हुए थे।

"ये सेड्रिक तो बहुत अमीर लगता है कपालिक महाराज?" बाबा भैरोनाथ ने मुस्कुराते हुए कहा।

"जी सही कह रहे हैं आप, क्यों मंगल??" बाबा कपालिक ने विशेष अर्थ में मंगलनाथ की आत्मा को घूरते हुए कहा।

"मुझे कुछ नहीं पता महाराज, मैं तो कभी पहले यहाँ नहीं आया। ये सेड्रिक कभी मेरे तो कभी फादर विलियम के भेष में लोगों को मारता और लूटता है अब मुझे इससे अपने सारे बदले लेने हैं। इसके लिए आप जो भी आदेश करेंगे मैं सब करने को तैयार हूँ।" मंगलनाथ गुस्से से बोला।

"ठीक है मंगल अभी तुम अपने शरीर में प्रवेश करने का प्रयास करो। बाद में आगे की योजना बनाएँगे।"बाबा भैरोनाथ जी ने कहा।

मंगलनाथ ने जैसे ही अपने शरीर में जाने की कोशिश की उसे बहुत जोर का झटका लगा जिससे वह उछलकर छत से जा टकराया।

"ये शरीर बहुत मजबूत सुरक्षा चक्र से सुरक्षित है महाराज, अगर मैं अपने शरीर में होता तो मेरा तो सर ही फूट जाना था आज।" मंगलनाथ अपना सर सहलाते हुए बोला।

उसकी इस बात से ऐसी परिस्थिति में भी सारे लोग मुस्कुरा उठे।

"तांत्रिक मंगलनाथ का शरीर यहाँ है और फादर विलियम...! इसका मतलब सेड्रिक अभी विलियम बना घूम रहा होगा। माफ करना विलियम हम आपको आपके शरीर में वापस नहीं लौटा पाएंगे। किन्तु आप चिंता ना करें हम आप दोनों की मुक्ति का उपाय करके ही यहाँ से जाएँगे।" बाबा भैरोनाथ ने मंगल और विलियम की आत्माओं को देखते हुए कहा।


"हमें मंगलनाथ के शरीर को बाहर ले जाना होगा, उसके बाद हम इस सारे स्थान को जलाकर भस्म कर देंगे।" बाबा कपालिक ने कहा और ये चारों लोग, फादर जॉनाथन, फादर डिसूजा, बाबा कपालिक और बाबा भैरोनाथ मिलकर मंगलनाथ के शरीर को उस कब्र से बाहर ले आये।

  

"फादर जोसफ, आप जाएँ और चर्च से उन सभी कील धारकों को यहाँ ले आएँ। तबतक हम लोग बाकी की तैयारी करते हैं।" बाबा भैरोनाथ ने पादरी जोसफ से कहा जो अपने साथ दो और पादरी लेकर चर्च की ओर चल दिये।


सारी कब्र आग की तेज लपटों के साथ जल रही थी। वातावरण में मांस जलने की तेज गन्ध फैली हुई थी।

अचानक हवा बहुत तेज चलने लगी। ये सारे लोग सावधान हो गए।

सामने से गुस्से में पैर पटकता, चीखता हुआ तन्त्र प्रयोग करता विलियम के शरीर में सेड्रिक चला आ रहा था। उसके साथ थे उसके आठ-दस मुर्दा साथी।

उसे आता देखकर दोनों तांत्रिकों ने संयुक्त रूप से कोई मन्त्र पढ़ा और हवा में फूँक दिया। इनके फूंकने ही सेड्रिक के साथी फटाक की आवाज करके  पटाखे से फट गए और धू-धू करके जलने लगे। ये देखकर सेड्रिक गुस्से से काँपने लगा। सेड्रिक ने अपने दोनों हाथों से हवा में गोला सा बनाया और कुछ पढ़ते हुए इनकी ओर उछाल दिया। उस गोले के प्रहार से पादरी जोसफ और पादरी डिसूजा जमीन पर गिर गए और अपने होश खोने लगे।

बाबा कपालिक ने अपने हाथ की मुट्ठी पर कुछ पड़कर इन दोनों पर फूँका यो ये उठ बैठे उधर बाबा भैरोनाथ ने  अपना मन्त्र सेड्रिक पर चलाया जिससे वह जोर से उछलकर पीछे पेड़ से टकराया।

"आप सभी पादरी एक दुसरे का हाथ मज़बूती से पकड़े रहें और अपने सबसे शक्तिशाली मन्त्र का संयुक्त रूप से सेड्रिक पर प्रयोग करें। वह बहुत शक्तिशाली है

आप लोगों को वह नुकसान पहुँचा सकता है।" बाबा कपालिक चीखते हुए बोले और फिर अपना हाथ हवा में घुमाने लगे क्योंकि सेड्रिक एक हाथ लम्बा करके पेड़ की मार से बच गया था और दूसरे हाथ से आग वर्षा रहा था।

बाबा कपालिक ने उसकी आग को रोका तब तक बाबा भैरोनाथ जी ने अपना मारक मंत्र चला जिसके प्रभाव से पादरी विलियम का शरीर जिसमें सेड्रिक था वह जलने लगा।

सेड्रिक ने घबराहट में विलियम का शरीर छोड़ दिया जो सेड्रिक के निकलते ही जोर के धमाके के साथ ब्लास्ट हो गया।

सेड्रिक ने इधर-उधर देखा सामने एक सुंदर से बिस्तर पर तांत्रिक मंगलनाथ का शरीर लेटा हुआ था। सेड्रिक ने बिना कुछ सोचे उधर का रुख किया और तांत्रिक मंगलनाथ के शरीर पर कब्जा कर लिया। जैसे ही मंगलनाथ के शरीर में घुस कर सेड्रिक उठा अचानक बिजली की फुर्ती से उस लड़की ने एक चेन उसके गले में डाल दी। उस चेन में वही ताबूत की कील से बनी अँगूठी थी।

उस अँगूठी के जिस्म से छूते ही सेड्रिक तड़फ उठा किन्तु अब वह चाहकर भी मंगल के शरीर से बाहर नहीं आ पा रहा था।

वह तड़फ कर पीछे गिर गया और तभी वह चादर सेड्रिक को लेकर नीचे गिर गयी। अब सेड्रिक घास और पत्तों में छिपाए गए एक ताबूत में गिरा था। उसके ताबूत में गिरते ही पादरियों ने ताबूत पर ढक्कन लगा दिया और उन छः गाँव वालों ने उसमें उसमें वे सारी कीलें ठोक दीं।

अब सेड्रिक एक बार फिर कैद हो चुका था।


"अभी के लिए तो हमने सेड्रिक को बंद कर दिया बाबा जी लेकिन क्या वह फिर मुक्त नहीं हो जाएगा। क्या कभी फिर कोई लालची मंगलनाथ अपने लालच में इस  ताबूत को नहीं खोल देगा?" फादर जॉनाथन ने सवाल किया।

"आपकी चिंता उचित है फादर, और इसका उपाय भी हमने सोच लिया है। लेकिन उसके लिए ये ताबूत हमें अपने साथ ले जाना होगा।" बाबा भैरोनाथ जी ने कहा।

"जी ठीक है, जैसा आप ठीक समझें।" फादर जॉनाथन  ने जवाब दिया।

"ठीक है फिर ये हम अपने साथ ले जाते हैं, और अभी हमें फादर विलियम और तांत्रिक मंगलनाथ की आत्मा की शान्ति के लिए पूजा भी करनी है। आप चाहें तो आप सारे लोग भी उस पूजा में शामिल हो सकते हैं।" बाबा जी ने कहा।


शिव मंदिर में आत्मा मुक्ति की पूजा हो रही थी। मंगलनाथ और विलियम की आत्मा बंधनमुक्त होकर आकाश में जा रहीं थीं।

सेड्रिक मंगलनाथ के शरीर में कैद ताबूत के अंदर वहाँ दफन था जहाँ शिव मंदिर में भगवान भोलेनाथ पर चढ़ाया गया जल इकट्ठा होता है। वह जलकर धीरे-धीरे खत्म हो रहा था। उसकी शैतानी शक्तियाँ और शैतानी बुद्धि खत्म होती जा रही थी।

अब वह महाकाल की शरण में था।

"समाप्त"

©नृपेंद्र शर्मा "सागर"

ठाकुरद्वारा मुरादाबाद

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