प्रहसन
शीर्षक:- गुजारा भत्ता
पात्र-
1- पति (सुमेर सिंह) उम्र 35 साल
2-पत्नी(राधिका) उम्र 32 साल
3-मुख्य जज(महिला)
4-पुरुष जज-1
5-पुरुष जज-2
6-गवाह1 नाम चन्द्रावती (पड़ोसी वृद्व महिला उम्र 65 साल)
7-गवाह 2 पति की माँ उम्र 60 साल
8-गवाह3 पत्नी का मकान मालिक उम्र 45 साल
9-गवाह 4 मकान मालिक की पत्नी उम्र 40 साल
10-पेशकार (अदालत में केस के सम्बंध पैरवी करने वाला सरकारी व्यक्ति)
दृश्य -1 स्थान अदालत का कमरा
पर्दा उठता है सामने अदालत के कमरे का दृश्य है। सामने एक जज के स्थान पर जूरी के तीन सदस्य विराजमान हैं।
सामने ऊँचे लकड़ी के जंगले के पीछे एक महिला न्यायाधीश ऊँची कुर्सी पर काला कोट पहने बैठी हुई हैं। उनके दाएँ बाएँ लगभग वैसी ही लेकिन कुछ नीची कुर्सियों पर दो पुरुष न्यायाधीश बैठे हुए हैं।
नीचे बैंचों पर कई लोग अदालत की इस कार्यवाही को देखने सुनने के लिए बैठे हुए हैं।
ज्यूरी के एक पुरूष सदस्य के संकेत पर पेशकार एक फ़ाइल उठाता है और आवाज लगाता है-
पेशकार:-केस नम्बर सोलह सौ बत्तीस तलाक का मुकदमा वादी श्रीमती राधिका पत्नी प्रतिवादी श्री सुमेर सिंह हाज़िर हों। और फ़ाइल ज्यूरी के सदस्यों के सामने रखकर अपनी जगह बैठ जाता है।
ज्यूरी के सदस्य पूरी तल्लीनता से दो मिनट फ़ाइल को देखते हैं। कमरे में इतनी शान्ति है कि पन्ने पलटने की आवाज़ साफ सुनाई देती है। फिर बायीं ओर बैठे ज्यूरी सदस्य की आवाज गूँजती है:- जैसा कि हमने इस केस को देखा और समझा, श्रीमती राधिका पत्नी श्री सुमेर सिंह अपने अपने पति से तलाक लेने के लिए अदालत में अर्जी लगाई थी किन्तु ना तो आप अदालत को तलाक लेने की वाजिब वजह ही बता पायीं थीं और ना ही आपके पति आपसे तलाक लेने को राजी हुए थे। और जैसा कि हमें पता लगा कि आप दोनों ने ही कोई भी वकील दलील पेश करने के लिए हायर नहीं किये थे। तब अदालत ने आपको अपनी पैरवी खुद ही करने की अनुमति दी थी। और दोनों पक्षों को सुनने के बाद उस समय अदालत ने आप दोनों को छः महीने साथ रहकर आपसी सम्बंध सुधारने का प्रयास करने और आपसी मतभेद मिलकर सुलझाने की सलाह देते हुए आपको छः महीने साथ रहने की सलाह दी थी। लेकिन अब जबकि छः महीने बीत चुके हैं और आप दोनों के विचार अभी भी एक दूसरे से जुदा ही हैं तो आपके मामले को फिर से देखने की सहमति अदालत ने आपको दी है। और पिछली बार की तरह इस बार भी आप लोग अपने वकील खुद ही हो। इस अदालत की पिछली तारीख पर हुई कार्यवाही और आप लोगों के वाद-विवाद को देखते हुए अदालत इस नतीजे पर पहुँची की आपका केस सामान्य केस नहीं है इस लिए अब आपके केस को सुनने के लिए कोई न्यायिक अदालत नहीं बल्कि पारिवारिक मामलों के विशेषज्ञ सदस्यों की इस ज्यूरी का गठन किया गया है जहाँ हम ज्यूरी सदस्य आपके वाद-विवाद को सुनकर कोई व्यवहारिक निर्णय लेने का प्रयास करेंगे। आप लोग यहाँ सामने आकर कुर्सियों पर बैठ जाइए। (नीचे आमने सामने कुछ दूरी पर रखी कुर्सियों की ओर संकेत करता है।
दोनों पति-पत्नी ज्यूरी के सामने कुर्सियों पर बैठ जाते हैं।
ज्यूरी के दायीं ओर के सदस्य:- हाँ तो राधिका जी आप अपना पक्ष रखिये और विश्वास रखिये की हम आपके हित में उचित निर्णय ही देंगे।
राधिका:- सम्मानित ज्यूरी मैं केवल और केवल अपने पति से तलाक लेकर अपने बच्चों के साथ अलग रहना चाहती हूँ और अदालत से दरख्वास्त करती हूँ कि इनसे मेरे बच्चों के लिए गुजारा भत्ते की रकम दिलाई जाए।
ज्यूरी1- देखिये राधिका जी भारतीय संविधान के मैरिज एक्ट 1955 की धारा 13 में सभी पति-पत्नी को ये अधिकार दिए गए हैं कि यदि उन्हें लगता है कि वे अब साथ में नहीं निभा सकते तो उनका तलाक मंज़ूर करके उन्हें स्वतंत्र कर दिया जाए। किन्तु उसकी भी काफी शर्तें हैं। पहले तो आपको तलाक की कोई माकूल वजह अदालत को बतानी होगी। बिना किसी मज़बूत कारण के कोई भी अदालत किसी भी विवाह विच्छेद की स्वीकृति नहीं देती, इसलिए पहले आप वह कारण स्पष्ट करें जिसके आधार पर आप अपने पति से अलग होना चाहती हैं?
राधिका:- मैं एक कम पढ़े लिखे और बेरोजगार व्यक्ति के साथ अब और नहीं रह सकती, इससे मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती है इसलिए मुझे डिवोर्स दिलाकर ससम्मान जीवन जीने का अधिकार दिया जाए।
ज्यूरी2- किन्तु अधिनियम 1955 की धारा 13 में ऐसे किसी भी कारण को विवाह विच्छेद का आधार नहीं माना जा सकता राधिका जी।
अभी ज्यूरी2 कुछ और कहने ही वाले होते हैं कि मुख्य न्यायाधीश महोदया उन्हें इशारे से रोक देती हैं।
मुख्य न्यायाधीश महोदया:- तो राधिका जी आपको आपके पति कर कम पढ़े-लिखे और बेरोजगार होने से प्रॉब्लम है? तो क्या आप ज्यूरी को बताएंगी की ये प्रॉब्लम आपको शादी के 13 साल बाद अचानक क्यों होने लगी? क्या आप पहले से ये बात नहीं जानती थीं। अब जब आपके दो बच्चे हैं और शादी को एक लंबा अरसा गुज़र गया है तब अचानक आपको कैसे लगा कि आपके पति अनपढ़ हैं। ये तो आपके विवाह के वक्त भी इनके और आपके परिवार ने बताया होगा। फिर भी उस समय अपने विवाह के लिए सहमति दी होगी। हाँ यदि आपके पति और उनके परिवार ने इनकी शिक्षा के विषय में आपसे झूठ कहा हो तब ये ज्यूरी आपके विवाह विच्छेद के विषय पर विचार अवश्य करेगी किन्तु ऐसे में भी आपके पति पर झूठ बोलने और तथ्य छिपाने का दोष सिद्ध होने के बाद। तो आप इस विषय पर क्या कहते हो मिस्टर सुमेर सिंह, क्या अपने और आपके परिवार ने इनसे और इनके परिवार से आपकी शिक्षा और रोजगार सम्बंधित तथ्य छिपाये थे।
सुमेर:- सम्मानित ज्यूरी यदि आज्ञा दें तो मैं शुरू से सारी बात बताना चाहता हूँ?
ज्यूरी के सदस्य आपस में इशारों में कुछ बात करने के बाद एक स्वर में:- बताइये किन्तु इतना ध्यान रहे कि जो भी बातें इस केस को साफ करती हों केवल वही बात कही जाय अनावश्यक चर्चा करके ज्यूरी का कीमती वक़्त बर्बाद ना किया जाए।
सुमेर:- जी अवश्य, मैं इस बात का ध्यान रखूँगा।
ज्यूरी1:- ठीक है बताइये।
सुमेर:- जब हमारी शादी हुई उस समय मैं बारहवीं पास था और राधिका दसवीं पास। हम दोनों के ही परिवार आर्थिक कारणों से हमें आगे पढ़ाने में असमर्थ थे। मैंने अपने घर की माली हालत देखते हुए एक मिल में नौकरी शुरू कर दी थी तभी हम दोनों के परिवार और हमारी आपसी सहमति से हमारा विवाह हो गया। सब बहुत अच्छा था हम दोनों भी बहुत खुश थे। शादी के कुछ दिन बाद राधि ने मुझसे आगे पढ़ने की इच्छा जाहिर की जिसे मैंने खुशी-खुशी मान लिया और इसका दाखिला कॉलेज में करा दिया। माननीय ज्यूरी मैने अपने खर्च में कटौती करके और इनके हिस्से का घर का काम खुद करके इन्हें ग्रेजुएशन फिर बी एड कराया। जब ये ग्रेजुएशन कर रहीं थीं तभी हमारे घर बेटे का जन्म हुआ। बेटे की देखभाल के चलते इन्हें पढ़ाई में परेशानी होती थी। इनकी ये बात जानकर मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी और घर में ही छोटी सी दुकान खोल ली। इससे मैं हर समय घर पर ही रहता था तो अब ये निश्चिंत होकर पढ़ाई पर ध्यान देती और कॉलेज भी चली जाती थीं। आदरणीय ज्यूरी जिन बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी ये माँग रही हैं उनका तो इन्हें ये भी नहीं पता कि वह रात में कितनी बार उठकर क्या-क्या माँग करते हैं। मैंने दुकान, घर और बच्चे सम्भालते हुए इन्हें पढ़ाया और नौकरी के एग्जाम और इंटरव्यू दिलवाए। हमारी मेहनत एक दिन सफल हुई जब ये राजकीय बालिका इंटर कॉलेज में लेक्चरार बनीं। इस बीच हमारे घर पर रख छोटी बेटी भी आ चुकी थी। अभी हमारा बेटा आठ साल का और बेटी पाँच साल की है जो दोनों शुरू से ही मेरे साथ रहते हैं और मेरी पत्नी अपनी जॉब के चलते शहर में किराए के मकान में रहती है।
मैं ज्यूरी को स्पष्ट करना चाहूँगा की मैं अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता हूँ और तलाक जैसा अशुभ शब्द मैं उसके लिए सोच भी नहीं सकता किन्तु फिर भी यदि मेरी राधि मेरे साथ रहना नहीं चाहती तो वह शौक से अलग रहे लेकिन मेरे बच्चे मेरे साथ ही रहेंगे और जहाँ तक गुजारे भत्ते का सवाल है तो इसने खुद ही मुझपर इल्जाम लगाया है कि मैं बेरोजगार हूँ तो ऐसे में भत्ता मुझे और बच्चों को राधिका की तरफ से मिलना चाहिए। बस मेरी यही गुजारिश है कि राधि चाहे तो बेशक अलग रहे किन्तु बच्चे मैं खुद ही पालूंगा।
ज्यूरी1:- हाँ तो राधिका जी क्या जो भी मिस्टर सुमेर सिंह ने कहा वह सब सही है?
राधिका:- सच है कि इन्होंने मुझे आगे पढ़ाया लेकिन कोई एहसान नहीं किया, बल्कि इसमें इनका स्वार्थ था। इनका सोचना था कि खुद तो ये बेरोजगार हैं तो क्यों ना पत्नी से नौकरी करवाकर उसकी कमाई खाई जाए। और रही बच्चों की बात तो ऐसा नहीं है कि इन्होंने अकेले ही सब किया है। मैं भी घर पर रहती थी और काम करती थी। और फिर पिछले 3 साल से तो मैं अपनी कमाई भी इनपर लुटा रही हूँ। लेकिन इनका लालची मन अब मेरे बच्चों को मुझसे दूर करके उनके नाम पर मेरी कमाई लूटना चाहता है। मुझे अब इस आदमी से तलाक चाहिए, मैं अपने बच्चों को लेकर शहर में रहूँगी जहाँ के अच्छे स्कूल में पढ़कर वे आगे बढ़ सकें। मेरे बच्चे इस अनपढ़ आदमी के पास रहें ये अच्छी बात नहीं।
सुमेर:- ये इल्ज़ाम सरासर गलत है योर ऑनर की मैंने कभी राधिका की कमाई रखने के बारे में सोचा भी हो। मैं तो इसके नौकरी करने की बात पर इसलिए तैयार हुआ था क्योंकि इससे राधिका को खुशी मिल रही थी। मैंने राधिका को उसकी खुशी के लिए बाप बनकर पढ़ाया। राधिका के आराम के लिए बच्चों को माँ बनकर पाला। किन्तु एक पति होने के नाते भी कभी उसपर किसी तरह का कोई अधिकार नहीं जमाया। फिर भी आज मेरे किये को कर्तव्य बताकर राधिका खुद के हर कर्तव्य से मुँह मोड़कर जाना चाहती है। यदि इसे किसी आभासी दुनिया में जाना भी है तो खुशी से जाए लेकिन मेरे बच्चे इसके साथ कभी खुश और सुरक्षित नहीं रह पाएंगे। मैं ज्यूरी से हाथ जोड़कर अपील करता हूँ कि मेरे बच्चों को मुझसे अलग ना किया जाय।
मुख्य जज:- हमने आप दोनों की बातें सुनीं। बाकी की कार्यवाही लंच ब्रेक के बाद होगी। आप दोनों अपने-अपने पक्ष में जो भी गवाह पेश करना चाहें उनकी लिस्ट अदालत में जमा कर दें लंच बाद उनसे भी बात कर ली जाएगी और जो भी निर्णय होगा आज ही सुना दिया जाएगा। अभी के ये अदालत बर्खास्त होती है।
दृश्य - 2 अदालत का ही एक छोटा कमरा है जहाँ ज्यूरी के तीनों सदस्य आपस में विचारविमर्श कर रहे हैं।
ज्यूरी1:- क्या लगता है मैडम, क्या राधिका का पति सच में बच्चों के बहाने उससे पैसे ऐंठना चाहता है?
ज्यूरी2:- मेरे विचार से तो इनके झगड़े के पीछे की असली वजह कुछ और ही है। हो सकता है शहर में रहते हुए महिला की दोस्ती किसी… और इसी लिए वह आज़ाद होना चाहती है।
मैडम:- मेरे विचार से ऐसा कुछ नहीं है बस राधिका के मन में कोई ऐसी बात घर कर गयी है जिससे वह बाहर नहीं आ पा रही है। यदि उसके कहीं सम्बन्ध होते तो वह कभी बच्चो को अपने साथ रखने की ज़िद नहीं करती। और रही बात सुमेर की तो वह सच में अपनी पत्नी और बच्चों से प्रेम करता है। लेकिन फिर भी हमें इन दोनों को सच्चाई समझने के लिए कुछ लोगों से बात करनी होगी। मुझे पूरी उम्मीद है कि ये लोग सही रास्ते पर आ जाएंगे। हमसे पहले ये केस जिनके पास था उन्होंने भी इन दोनों की बातें ध्यान से सुनी थीं और इन्हें कहा था कि तुम लोगों को अदालत की नहीं किसी फेमिली काउंसल की ज़रूरत है।
ज्यूरी1:- लेकिन मेडम ये लोग किसी काउंसलर के पास तो गए ही नहीं?
मेडम:- इसी लिए तो जज साहब के विशेष अनुरोध पर इनके मामले के लिए हम लोगों की ज्यूरी बनाई गई है। आपको तो पता ही है कि मैं एक फेमिली काउंसलर हूँ और आप दोनों भी तो वकील होने के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक भी हो। इसीलिए इनके केस के लिए हमे चुना गया है कि शायद एक परिवार बिखरने से बच जाए।
तभी ज्यूरी1 घड़ी की ओर इशारा करता है और तीनों मुस्कुराते हुए उठ खड़े होते हैं।
दृश्य- 3
अदालत का वही कमरा जहाँ सुनवाई चल रही थी।
तीनों जजो के आते ही सारे लोग खड़े हो जाते हैं और उनके इशारा करने पर बैठ जाते हैं।
पेशकार एक पेपर ऊपर मेज पर रखता है जिसे बारी-बारी तीनों लोग देखते हैं। और फिर पेशकार को कुछ इशारा करते हैं।
पेशकार:- केस 1632 राधिका सुमेर तलाक केस के गवाह सुमेर सिंह के गाँव की महिला श्रीमती चन्द्रावती देवी हाज़िर हों।
वृद्व महिला आगे आती हैं और गवाह की कुर्सी पर बैठ जाती है।
ज्यूरी1:- श्रीमती चन्द्रावती जी आप इन दोनों को कैसे जानती हैं?
चन्द्रावती:- जज साहिबा ये हमारे गाँव में हमारे पड़ोसी हैं।
ज्यूरी1:- तब तो आप इन दोनों को खूब अच्छी तरह जानती होंगी?
चन्द्रावती:- जी जज साहिब ये सुमेर जब से पैदा हुआ इसे तब से जानती हूँ और ये बहु को विवाह के बाद से।
ज्यूरी2:- क्या इन दोनों में कभी झगड़ा होता था या कोई अन्य ऐसी बात जिससे लगे कि ये दोनों एक साथ नहीं रह सकते?
चन्द्रावती:- नहीं साहब इन दोनों में कभी कोई झगड़ा या कहासुनी नहीं हुई। ऊपर से सारे गाँव वाले यही कहते थे कि ये दोनों एक दूजे के लिए ही बने हैं। सुमेर घरवाली को इतना प्यार करता था कि उसे पढ़ाने के लिए खुद खरवाली बन गया। उसे घर का कोई काम करने ही नहीं देता था। और अगर कभी कोई गाँव वाला समझाता की सुमेर बीबी को ज्यादा पढ़ाकर मास्टरनी मत बना नहीं तो कल सर पर बैठेगी तो ये पगला हँसकर जवाब देता। मेरे ही तो बैठेगी किसी का क्या जाता है। मेरी बीबी है मैं पूरा का पूरा उसका हूँ वह जी चाहे जहाँ बैठे।
ज्यूरी1:- तो क्या आप बता सकती हैं अब ऐसा क्या हुआ जो ये तलाक लेने अदालत तक आ गए?
चन्द्रावती:- क्या जाने साहब किसकी नज़र लग गयी इनके प्यार को। बहुरिया नोकरी करने शहर क्या गयी बेचारे सुमेर की जिंदगी की बहार ही चली गयी। और अब ना जाने राधा को क्या हुआ जो तलाक़ की जिद पर अड़ी है। मुझे तो लगता है दिमाग फिर गया है बहु का या फिर किसी ने कुछ करवा दिया है।
दोनों ज्यूरी मेडम की ओर देखते हैं और फिर चन्द्रावती को जाने को कह देते हैं।
पेशकार:- अगला गवाह सुमेर की माताजी हाज़िर हों...
सुमेर की बूढ़ी मॉं जो कोई 60/62 साल की हैं लेकिन कमज़ोरी से और ज्यादा बूढ़ी लग रही हैं आकर गवाह की कुर्सी पर बैठ जाती हैं।
ज्यूरी1:- क्या आप इन दोनों के बारे में कोई भी ऐसी बात बता सकती हैं जिसके आधार पर अदालत मान ले कि ये लोग एक साथ नहीं रह सकते और इन्हें तलाक दे दे।
सुमेर की माँ:- नहीं साहब मुझे ऐसी कोई बात नहीं पता।
ज्यूरी2:- आपके साथ आपकी बहु का बर्ताव कैसा रहा है। क्या ये झगड़ालू या बदजबान हैं।
सुमेर की माँ:- नहीं साहब ऐसा भी कुछ नहीं है ऐसे भी पढ़ाई लिखाई में बहु को मेरे साथ रहने का टेम ही कहाँ मिला। ये यो वियाह के बाद पहले पढ़ने में और बाद में पढ़ाने में ही रह गयी। इसके तो बच्चे भी इसे बाहर की मास्टरनी माने हैं। उनके तो माँ भी सुमेर है और बाप भी। उसने कभी बच्चो का कोई काम नहीं किया।
ज्यूरी2:- ठीक है आप जा सकती हो।
पेशकार:- अगला गवाह राधिका के मकान मालिक हाज़िर हों।
मकान मालिक आकर गवाह की कुर्सी पर बैठ जाता है।
ज्यूरी1:- आप इन दोनों को कब से जानते हो?
मकानमालिक:- दोनों को नहीं साहब मैं तो बस मास्टरनी जी को ही जनता हूँ, ये पिछले डेढ़ साल से हमारे मकान में किराएदार की हैसियत से रह रही हैं।
ज्यूरी2:- क्या आप बता सकते हो इस बीच इनका व्यवहार कैसा रहा है? ऐसी कोई बात जो आपको असमान्य लगती हो?
मकानमालिक:-नहीं साहब ऐसा तो कुछ याद नहीं।
मुख्य जज:- क्या राधिका से मिलने कोई लोग आपके घर पर आते हैं?
मकानमालिक:- ज्यादा तो नहीं क्योंकि राधिका मैडम अपने आप में ही रहने वाली महिला हैं। बस कभी कोई सहकर्मी अध्यापिका या कभी कोई छात्र छात्रा बाकी तो कोई नहीं।
ज्यूरी2:- ठीक है आप जाइये।
पेशकार:- अगली गवाह राधिका की मकान मालकिन हाज़िर हों।
मकान मालकिन आकर कुर्सी पर बैठ जाती है।
ज्यूरी1:- आप राधिका जी को कब से जानती हैं?
मकान मालकिन:- यही कोई डेढ़ साल से।
ज्यूरी2:- आप इनके बारे में कोई ऐसी बात बताना चाहेंगी जिसके आधार पर इन्हें तलाक मिल सके।
मालकिन:-ऐसा तो कुछ नहीं है बताने को सिवाय इसके की जब से राधिका हमारे यहाँ आयी हैं ना तो कभी उनके पति और ना ही उनके बच्चे उनसे मिलने आये। हम लोग तो इनके पति को जानते तक भी नहीं हैं। आज पहली बार इन्हें इस अदालत में ही देख रहे हैं।
मुख्य जज साहिबा:- आप राधिका जी के चरित्र के बारे में क्या कहना चाहेंगीं?
मालकिन:- ऐसी कोई बात हमने कभी महसूस नही। की जिससे राधिका के चरित्र को खराब कहा जा सके लेकिन हर शनिवार शाम से रविवार शाम तक ये कहीं चली जाया करती हैं।
जज साहिब:- तो मिस्टर सुमेर क्या आप बता सकते हैं कि आप कभी राधिका से मिलने शहर क्यों नहीं जाते? क्या आप दोनों के बीच कोई झगड़ा चल रहा है?
सुमेर:- नहीं जज साहिबा, ऐसा इसलिए है क्योंकि मेरे ऊपर बच्चों, दुकान और माताजी की पूरी जिम्मेदारी है और फिर हर शनिवार को राधिका तो घर आती ही थी। लेकिन पिछले कुछ समय से राधिका भी हर शनिवार नहीं आयी और आती भी थी तो बस बच्चों से ही बात करती रही है।
जज साहिब:-सब ठीक है राधिका और सुमेर, आप दोनों के बीच ऐसा कोई कारण नहीं नज़र आ रहा जिसके बेस पर आपको तलाक दिया जाए। आपके गवाह भी ऐसा कोई कारण नहीं बता पाए फिर भी जब राधिका ने ठान ही लिया है कि उसे तलाक लेना ही है तो हम ज्यूरी सदस्य इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि राधिका अपने पति सुमेर को उनके द्वारा अपनी पढाई लिखाई पर खर्च की गई रकम के एवज में एक मुश्त पाँच लाख रुपये अदा करे जिससे सुमेर सिंह अपनी दुकान को बड़ा कर सके।
और दोनों बच्चों के भरण पोषण के लिए ज्यूरी राधिका पर हर महीने दस हज़ार रुपये देना तय करती है। और क्योंकि सुमेर बेरोजगार है और उसपर बूढ़ी माँ की जिम्मेदारी भी है तो राधिका हर महीने दस हज़ार रुपये सुमेर को गुजारा भत्ता के रूप में अदा करे। अदालत अधिनियम के आधार पर ये भी फैसला सुनाती है कि यदि सुमेर कहीं दूसरी शादी करता है तो तत्काल प्रभाव से उसका गुजारा भत्ता बन्द करके बच्चो की कस्टडी राधिका को दे दी जाय। और अगर कभी राधिका कहीं और शादी करती है तो गुजारा भत्ते की रकम को राधिका के वेतन का 60 प्रतिशत तक बढ़ा दिया जाए।
आजकल लोगों में बिना कारण के ही गुस्सा, शक और अविश्वास बढ़ता ही जा रहा है। इस केस में भी कुछ ऐसा ही लगता है कि राधिका के मन में कहीं ना कहीं ये बात घर कर गयी है कि सुमेर या तो उसका जॉब करना पसंद नहीं करता या फिर केवल उसे पैसे के लिए नौकरी करने भेज रखा है, और इसका कारण कहीं ना कहीं यही नज़र आता है कि सुमेर कभी भी उससे मिलने नहीं आता। जबकि सुमेर की बातों से लगता है कि उसे इस बात का पता भी नहीं की राधिका इतना पढ़ लिखकर भी इतनी छोटी सी बात को तलाक का कारण बना देगी। बाकी इतने लोगों से बात करने और केस को समझने के बाद ज्यूरी को और कोई कारण नज़र नहीं आता।
वैसे ज्यूरी की सलाह आप दोनों के लिए यही है कि आप लोग एक साथ ही रहें और ये बिना कारण का मनमुटाव खत्म कर दें। और अगर राधिका चाहे तो सुमेर को और पैसे देकर उसकी दुकान शहर में ही खुलवा दे और दोनों एक साथ ही रहें, सुमेर को भी राधिका के अकेलेपन और खाली दिमाग में उपजे बिना बजह के कारणों को खत्म करने के लिए राधिका के मन की बात समझते हुए यही प्रयास करना चाहिए कि जैसे भी सम्भव हो दोनों साथ ही रहें।
अदालत की कार्यवाही अब खत्म होती है।
पर्दा गिरता है।।
लेखक- नृपेंद्र शर्मा
ठाकुरद्वारा जिला मुरादाबाद
मोबाइल 9045548008
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