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Monday, July 26, 2021

डरावनी रेलगाड़ी

डरावनी रेलगाड़ी



कल रात ही तो उसने हैरी पॉटर सीरीज की दो फिल्में देखी थीं। और आज वह अकेला अपनी नानी के घर जाने के लिए निकल पड़ा था। ऐसा नहीं था कि वह घर से लड़कर या भागकर आया था बल्कि उसके मम्मी-पापा को जरूरी सेमिनार के लिए बाहर जाना था तो उसने नानी के घर जाने की जिद कर दी। उसके पेरेंट्स के पास उसे नानी के गाँव छोड़ने जाने का भी समय नहीं था तो उन्होंने तेरह साल के पिंटू को अकेले नानी के घर जाने की इजाज़त दे दी।

पिंटू ने भी उन्हें भरोसा दिलाया कि वह आराम से नानी के घर पहुँच जाएगा। उसने ट्रेन पकड़ने से नानी के घर पहुँचने तक का सारा रास्ता और तरीका मम्मी-पापा को  समझा दिया था और उन्हें यकीन हो गया था कि पिंटू अकेला आराम से ननिहाल पहुँच जाएगा। फिर भी उन्होंने पिंटू की नानी और मामा को फोन कर दिया था। पिंटू के मामा ने उन्हें भरोसा दिलाया था कि वह रेलवे स्टेशन से पिंटू को अपने साथ ले जाएगा।

पिंटू ने स्टेशन पहुँचकर एक टिकिट लिया और एक बेंच पर जाकर बैठ गया।

ट्रेन आने में आधा घण्टा बाकी था, पिंटू बैंच पर बैठा-बैठा बोर होने लगा तो वह उठकर प्लेटफार्म पर टहलने लगा।

कुछ दूर चलने पर पिंटू ऐसी जगह पहुँच गया जहाँ अन्य कोई भी नहीं था। पिंटू थोड़ा और आगे बढ़ा तो उसे एक पिलर पर लिखा दिख, "प्लेटफॉर्म नम्बर:-9"

पिंटू को रात में देखी गयी फ़िल्म हैरीपॉटर की याद आ गयी और वह प्लेटफॉर्म नम्बर पौने दस की कल्पना करने लगा। इसी कल्पना में उसने नीचे से एक कंकड़ उठाया और पिलर पर लिखे 9 के आगे 3/4 लिख दिया। अब वह कुछ पीछे होकर उसे देखने लगा।

"प्लेटफार्म नम्बर पौने दस" उसने पढ़ा और मुस्कुराने लगा।

अभी पिंटू अपनी कल्पना में हैरीपॉटर और उसके साथियों को पिलर के अंदर जाकर ट्रेन पकड़ते देख ही रहा था कि अचानक उस सुनसान प्लेटफार्म पर उसे घना कोहरा दिखने लगा, साथ ही सुनाई देने लगी किसी ट्रेन की हॉर्न की आवाज।

धीरे-धीरे वह झुकपुक छुकपुक की ट्रेन की आवाज उसके पास आती सुनाई देने लगी और उसे एक काली पुरानी ट्रेन सामने से आती नज़र आने लगी। 

पिंटू को समझ में ही नहीं आ रहा था कि यह कहाँ की ट्रेन है और अचानक कहाँ से आ गई।

तब तक वह ट्रेन उसके बिल्कुल सामने आकर रुक गयी।

ट्रेन से एक काले कोट और काले हेट वाला व्यक्ति उतरा और पिंटू से बोला, "आपने बुलाई है ये प्लेटफार्म नम्बर पौने दस की ट्रेन। आइए सर हम आपका इस रोमांचकारी यात्रा में स्वागत करते हैं।"  और उस व्यक्ति ने पिंटू का बैग ले लिया और ट्रेन के डिब्बे में चढ़ गया।

पिंटू ने एक नज़र पूरी ट्रेन पर डाली- ये एक बहुत पुरानी छोटी सी ट्रेन थी जिसमें एक स्टीम इंजन और तीन डिब्बे लगे हुए थे। ट्रेन नैनो गेज पर थी। उसके पहिये भी छोटे-छोटे थे।

"जल्दी चलिए सर हमें बहुत दूर पहुँचना है ऐसे ही ट्रेन पूरे चौबीस सेकेण्ड लेट है। उस काले कोट वाले ने कहा और पिंटू झटके से ट्रेन में चढ़ गया।

"आप सभी का पौने दस की इस ट्रेन में स्वागत है। कृपया अपनी सीटों पर चिपक के बैठें और खिड़कियों के काँच ना खोलें। अब ये ट्रेन एक रोमांचक यात्रा के बाद अगले दिन इसी समय प्लेटफॉर्म नम्बर पौने दस पर आप सबको छोड़ देगी।" ट्रेन में एक बहुत सुरीली आवाज गूँजी।

पिंटू ने डिब्बे में इधर-उधर नज़र घुमाई उसने देखा हर सीट पर एक-एक बच्चा बैठा हुआ था जिनमें अधिकतर बारह से पंद्रह साल की आयु के ही थे।

पिंटू  एक खाली सीट जिसपर उसका बैग रखा हुआ था पर जाकर बैठ गया। उसने खिड़की के काँच को ठीक से जाँचा और फिर इत्मिनान से बैठ गया।

ट्रेन ने जोर का हॉर्न बजाया और झुक-पुक करती हुई आगे बढ़ गयी।


पिंटू आसपास देख रहा था, उसके आसपास कोई आठ-दस बच्चे बैठे थे लेकिन सभी अजनबी। पिंटू काफी देर उनमें कोई परिचित चेहरा तलाशता रहा लेकिन उसे उनमें कोई भी परिचित चेहरा नहीं मिला।

पिंटू फिर से अपनी सीट पर बैठकर खिड़की के बाहर देखने लगा। बाहर बहुत घना जँगल था ऊँचे-ऊँचे पेड़ और पहाड़। पिंटू इस जगह को देखकर भी चौंक गया। अभी ट्रेन को दस मिनट भी नहीं हुए थे चलते हुए तो फिर ये कहाँ आ गयी। पिंटू अपने शहर को अच्छे से जनता था, उसके शहर के आस-पास ऐसी कोई भी जगह नहीं थी। पिंटू ने खुद को जोर से चिकोटी काटी, वह चिहुँक उठा। उसे समझ आ गया कि वह सपना नहीं देख रहा है। अब पिंटू समझ चुका था कि वह सच में एक जादुई ट्रेन में बैठ चुका है। अब पिंटू को डर लग रहा था उसे अपने घर और नानी की याद आने लगी थी।

पिंटू ने घबराकर इधर-उधर देखा, जैसे-जैसे पिंटू के दिल की धड़कने डर से बढ़ रही थीं आस-पास बैठे लोगों के चेहरे उसे डरावने होते नज़र आने लगे थे। यह देखकर पिंटू और डर गया। पिंटू के दिमाग ने उसे संकेत किया कि वह किसी भूतिया ट्रेन में बैठ गया है। और आस-पास बैठे लोग भूत या आत्माएँ हैं। पिंटू ये भी समझ चुका था कि उसका भय इन लोगों की शक्ति बन सकता है।

पिंटू ने खुद पर काबू करते हुए शांत होने की कोशिश की और वह अपने दिल की धड़कनों को सामान्य करने लगा। 

पिंटू ने डरते-डरते खिड़की के बाहर देखा अब वह बुरी तरह चौंक गया। ट्रेन अब किसी बर्फीले इलाके में चल रही थी जबकि पिन्टू को अच्छे से पता था कि उसके घर से पाँच-सात सौ किलोमीटर दूर तक कोई भी बर्फीला इलाका नहीं है।

"लेकिन इतनी दूर बस आधे घण्टे में?" पिन्टू ने खुद से सवाल किया। 

अभी पिन्टू समझने सोचने की कोशिश ही कर रहा था कि एक खूबसूरत लड़की लाल ड्रेस पहने ट्राली धकेलती हई सामने से आती दिखी।

"रहस्य की रेलगाड़ी  रोमांचक रात में पहुँचे इससे पहले आप सभी को डिनर कर लेना चाहिए। आइए अपनी पसंद का भोजन लें और खाते-खाते यात्रा का मज़ा लें" उस लड़की ने बहुत सुरीली आवाज में कहा। 

पिन्टू ने गर्दन घुमाई वह लड़की पिन्टू के सामने खड़ी मुस्कुरा रही थी। पिन्टू ने ट्राली की ओर देखा तो वह चौंककर उछल पड़ा। ट्राली पर प्लेट में जिंदा चींटे, रेंगते हुए कांक्रोच, फुफकारते हुए साँप और तैरती हुई मछलियाँ थीं। पिन्टू ने ओह करके मुँह घुमा लिया।  अब उसे लड़की की कर्कश हँसी सुनाई देने लगी। साथ ही बाकी सारे लोग भी पिन्टू की खिल्ली उड़ाते हुए से हँस रहे थे।

पिन्टू को अचानक कुछ याद आया और उसने अपना बैग उठा लिया। उसने लडक़ी को देखकर मुस्कान बिखेरी और अपने बैग से बिस्किट निकाल कर खाने लगा। उसके ऐसा करते ही पूरे डिब्बे में सन्नाटा पसर गया। चिंटू मजे से बिस्किट खा रहा था। वह समझ चुका था कि इस परिस्थिति से उसे केवल उसकी निडरता ही बचा सकती है।

पिन्टू ने बिस्किट खाकर अपने बैग से बोतल निकालकर पानी पिया और अपनी आँखें बंद करके सीट पर पीछे सिर टिकाकर लेट गया।

पिन्टू सोने के बहाने आगे की योजनाएं बना रहा था और ट्रेन अपनी गति से भागी जा रही थी।


पिन्टू ट्रेन के डिब्बे में उसके आसपास बैठे लोगों से नज़रें बचाता है खिड़की के बाहर देख रहा था। ट्रेन एक सुंदर इलाके से गुजर रही थी जहाँ बर्फ से ढकी पहाड़ियां और सुंदर फूल खिले हुए थे।

पिन्टू अभी अपने साथ घट रही घटनाओं के बारे में सोच ही रहा था तभी ट्रेन जोर की किर्र!! की आवाज करते हुए रुक गयी।

पिन्टू ने खिड़की के बाहर देखा सामने घना जंगल था और भरपूर हरियाली फैली हुई थी।

पिन्टू ने एक पल में ही कुछ सोचा और धीरे से ट्रेन से उतर कर जँगल की ओर दौड़ लगा दी।

कुछ दूर दौड़ने के बाद उसने देखा कि ट्रेन ने रेंगना शुरू कर दिया है और वह काले कोट और हैट वाला गार्ड हाथ हिलाकर उसे बुला रहा था।

"जान छूटी इन नामुराद भूतों से, अब मुझे वापस जाने के लिए कुछ सोचना होगा।" पिन्टू बुदबुदाया और तेज़ी से जंगल की ओर भागने लगा।

काफी देर भागने के बाद पिन्टू एकदम पहाड़ी के नीचे पहुँच गया जिस पर बर्फ की चादर सी बिछी हुई थी।

पिन्टू ने एक बार फिर पीछे पलटकर देखा, वह भूतिया ट्रेन अभी भी उसे नज़र आ रही थी।

पिन्टू ने एक छलाँग लगायी और पर्वत पर चढ़ गया।

पिन्टू के पैर पर्वत पर पड़ते ही वह जँगल और ट्रेन ग़ायब हो गए। अब पिन्टू को लगा कि सच में उस ट्रेन से मुक्ति मिल गयी।

"लेकिन ये कौन सी जगह है? क्या मैं पहले कभी यहाँ आया हूँ? लेकिन मैं तो घर से बाहर कभी गया ही नहीं!!! फिर मुझे ये जँगल और पर्वत देखा-देखा सा क्यों लग रहा है?" पिन्टू खुद से ही सवाल-जवाब कर रहा था।

इसी सोच में डूबा पिन्टू आगे बढ़ता रहा अचानक एक दौड़ता हुआ घोड़ा उसके सामने आकर रुका। पिन्टू ने  घोड़े के सिर्फ पैर ही देखे थे उन्ही से उसे अंदाज़ा हो गया था कि यह सामान्य से बहुत बड़ा घोड़ा है।

पिन्टू ने धीरे-धीरे सिर ऊपर उठाया और घोड़े को देखते ही वह बुरी तरह चौंक उठा- "नार्निया...!!!, तो क्या मैं नार्निया के जँगलों में पहुँच गया हूँ???" इंसान के मुँह वाले उस घोड़े को देखते ही वह बुरी तरह चौंक कर बोला।

अभी वह उस घोड़े के कोतुहल में ही उलझा हुआ था कि उसके चारों तरफ अन्य कई विचित्र जानवर भी हथियारों से लैस होकर घिरने लगे।

"खबरदार जो कोई भी चालाकी की तो जान से जाओगे, चुपचाप हमारे साथ चलो तो शायद कुछ देर और जी पाओग।" एक चूहे ने उसकी ओर तलवार लहराते हुए कहा।

पिन्टू चाहता तो उस चूहे को एक पल में अपने पैर के नीचे मसल सकता था लेकिन बाकी खूंखार जानवरो के डर से वह चुपचाप उनके साथ चलने लगा।

"इससे तो मैं उस ट्रेन में ही अच्छा था कम से कम वे लोग मुझे कोई नुकसान तो नहीं पहुँचा रहे थे। बस मुझे डराने की कोशिश ही कर रहे थे और मेरे ना डरने पर चुप होकर बैठ गए थे। लेकिन यहाँ तो जान पर ही बन आयी है।" पिन्टू फिर मन ही मन सोचने लगा।

"चलो तेज़-तेज़ पैरों में मेहंदी लगी है क्या?" चूहे ने पिन्टू को तलवार से खोदते हुए बहुत गुस्से में कहा और पिन्टू तेज़-तेज़ कदम बढ़ाने लगा।

"अगर ये नार्निया का जंगल है तो यहाँ पर महान शेर असलान भी होना चाहिए। लेकिन ये सारे लोग तो असलान के ही साथी हैं तो फिर ये मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं? कहीं ये लोग मुझे सफेद चुड़ैल का साथी तो नहीं समझ रहे?" पिन्टू ने मन ही मन सोचा और पलट कर उन विचित्र जानवरों से बोला, "अरे भाइयों मैं भी महान असलान का चाहने वाला हूँ फिर आप लोग उनके साथी होकर उनके किसी भी फैन के साथ ऐसा दुर्व्यवहार कैसे कर सकते हो? क्या तुम लोग उन्हें छोड़कर सफेद चुड़ैल के साथी बन गए हो या फिर...! जो भी हो मैं यहाँ महान असलान से मिलने आया हूँ और अब तुम लोगों की शिकायत उनसे अवश्य करूँगा।" 

पिन्टू की बात सुनकर बड़ा भालू जोर से गुर्राया और आँखे लाल किये पिन्टू की ओर पलटा। उसे देखकर पिन्टू सहम गया और म...म...मैं करके हकलाने लगा।

"चुपचाप चलो बरना... अबकी बार एक बौने ने कुल्हाड़ी दिखाते हुए कहा। 

पिन्टू सिर नीचे किये चुपचाप चलने लगा। थोड़ी देर चलने के बाद उसे वह पत्थर का सिंहासन साफ दिखाई देने लगा जिसपर एक शेर बैठा हुआ था।

"महान असलान!!! ये आप ही हो ना असलान नार्निया के राजा?" पिन्टू शेर को देखकर खुश हो रहा था तभी सामने का दृश्य देखकर वह बुरी तरह चौंक उठा। सामने सिंहासन पर शेर के बगल में दूसरे आसन पर सफेद चुड़ैल बैठी मुस्कुरा रही थी।

"महाराज ये अजनबी मनुष्य अनाधिकृत रूप से नार्निया में प्रवेश कर गया है। ये नार्निया का नहीं है इसीलिए हम लोग इसे यहाँ लेकर आये हैं।" मनुष्य के मुख वाले घोड़े ने हाथ जोड़कर कहा।

"इसका क्या किया जाए आप ही बताइए नार्निया की रानी?" असलान ने सफेद चुड़ैल की ओर देखकर पूछा।

"क्या तुम नार्निया निवासी नहीं हो? फिर क्या तुम नार्निया के उन राजा-रानी के घराने से हो जो पहले यहाँ  आये थे? मुझे लगता है तुम उनमें से भी नहीं हो तो फिर तुम यहाँ क्यों आये? क्या तुम्हें नहीं पता कि नार्निया में बाहरी लोगों के आने पर पाबंदी है और अगर कोई ज़बरदस्ती या गलती से ही नार्निया में आता है तो उसे मृत्युदंड दिया जाता है और उसकी लाश को नार्निया की सीमा के बाहर फेंक दिया जाता है।" सफेद चुड़ैल ने मुस्कुराते हुए मधुर स्वर में कहा।

"महाराज असलान मैं तो आपका फैन हूँ और आपसे मिलने के लिए यहाँ आया हूँ। लेकिन आप इस सफेद चुड़ैल के साथ क्यों बैठे हो क्या इसने आपको और आपके सारे साथियों को सम्मोहित कर लिया है?" पिन्टू आश्चर्य सागर में गोते लगाते हुए बोला।

"हाहाहाहा!!! जब बात नार्निया की सुरक्षा की हो तो हम नार्निया वासी बाहरी लोगों के खिलाफ हमेशा एकजुट हैं। हम अपने आपसी मतभेद तुम पृथ्वी वासियों की तरह देशहित के रास्ते में नहीं आने देते। और क्योंकि तुम यहाँ बिना अनुमति आये हो तो तुम्हे मृत्युदण्ड से कम कुछ सज़ा दी भी नहीं जा सकती।" असलान ने गुर्राते हुए कहा।

पिन्टू ने देखा कि असलान बहुत डराबना लग रहा था जबकि सफेद चुड़ैल बहुत सौम्य। पिन्टू ने आसपास अन्य जानवरों को भी देखा जिनका सारा ध्यान शेर पर ही था। ना जाने पिन्टू को ऐसा क्यों लगा कि चुड़ैल उसे भाग जाने का इशारा कर रही है। पिन्टू को सफेद चुड़ैल का चेहरा बिल्कुल ट्रेन वाली चुड़ैल की तरह दिख रहा था जो उसके पास खाना लायी थी।

पिन्टू ने एक पल में ही सोचकर निर्णय किया और उल्टे पैर दौड़ लगा दी।

पिन्टू के भागते ही उन जानवरों में खलबली मच गई और वे पिन्टू के पीछे आने लगे। पिन्टू ने अपनी पूरी शक्ति भागने में लगा दी फिर भी उसके और उन खूंखार हो चुके नार्निया वासियों के बीच का फासला कम होता जा रहा था।

पिन्टू और जोर से भगा उसका दिल जोर से धड़क रहा था उसने पीछे देखा वह घोड़े रूपी इंसान बिल्कुल उसके पास पहुँच चुका था तभी पिन्टू को ठोकर लगी और वह लुढ़कने लगा। उसे लगा जैसे वह पर्वत के ढलान से नीचे लुढ़क रहा है। उसने अपनी आँखे बंद कर लीं। कुछ ही पलों में वह समतल स्थान पर गिरा और उठकर देखने लगा। उसके सामने ही वह भूतिया ट्रेन धीरे-धीरे चल रही थी और वह काले कोट वाला गार्ड हाथ हिलाते हुए उसे बुला रहा था। पिन्टू उठा और उसने बिना सोचे ट्रेन की ओर दौड़ लगा दी। 

पिन्टू भागकर चलती ट्रेन में चढ़ा और जाकर अपनी सीट पर बैठ गया। उसकी साँसे एक्सप्रेस बनी हुई थीं और ट्रेन में उसके आसपास बैठे लोग जोर-जोर से हँस  रहे थे। पिन्टू ने अपनी आँखें बंद की और वह फिर अपने साथी यात्रियों को इग्नोर करने लगा।


पिन्टू अपनी सीट पर बैठा लम्बी-लम्बी साँसे ले रहा था। ट्रेन भी जैसे उसकी साँसों की रफ्तार से रेस लगा रही थी। ट्रेन के बाहर पेड़, पर्वत, झरने और नदियां जैसे पीछे भागी जा रही थीं। 

अब पिन्टू सामान्य हो चुका था, वह खिड़की से बाहर देख रहा था। ट्रेन अभी भी किसी अजनवी जँगल में दौड़ रही थी जो न ही उसने कभी किसी मूवी में देखा था और ना ही किसी स्टोरी बुक में इसके बारे में पढ़ा था। कुछ देर देखने के बाद पिन्टू ने आँख बंद कर लीं और अब तक घटित घटनाओं के बारे में सोचने लगा।


अभी पिन्टू नार्निया, चुड़ैल और शेर के बारे में सोच ही रहा था कि उसने एक आवाज सुनी, "उठिए सर नाश्ता कर लीजिए।" पिन्टू ने आँखें खोलकर देखा सामने थाली पकड़े, कमर झुकाए, काले कपड़े पहने, ऊँची काली चोंच वाली टोपी पहने वही सफेद चुड़ैल खड़ी मुस्कुरा रही थी।

पिन्टू उसे देखकर चौंककर उछल पड़ा, "आ...! आप!!?" हकलाते हुए उसके मुँह से निकल गया।

"देखा तुमने तुम्हारे प्यारे नार्निया वासी और अपने हीरो असलान को...? अरे जो दिखता है वह सच नहीं होता। ये जानवर खूंखार थे खूंखार हैं और खूंखार ही रहेंगे। तुम हमारे साथ कितने सुरक्षित हो ये तो तुम्हें समझ आ ही चुका होगा। तुम हमारे साथ इस ट्रेन की अनोखी यात्रा पर निकले हो और हमारे साथ पूरे सुरक्षित हो।" सफेद चुड़ैल ने कहा और जोर-जोर से हँसने लगी। उसके साथ ही आसपास बैठे बाकी लोग भी जोर से हँसने लगे।

पिन्टू को अचानक उनके बदलते डरावने होते चेहरे नज़र आने लगे। वे भूतों जैसे लोग बड़े-बड़े दाँत किटकिटाते, लम्बी जीभ लपलपाते उसकी ओर बढ़ने लगे। पिन्टू को डर लगने लगा, उसकी धड़कने बढ़ने लगीं लेकिन उसने मुँह खिड़की की ओर घुमा लिया।

तभी ट्रेन की रफ्तार धीमी होने लगी, ये जँगल ना जाने क्यों पिन्टू को जाना पहचाना लग रहा था। 

"जँगल सफारी" पिन्टू ने एक पल सोचा और दौड़कर ट्रेन से उतरकर जँगल की ओर दौड़ लगा दी।

  

अभी पिन्टू जँगल में कुछ ही दूर गया था कि सामने से झंडा पकड़े 'दिल्ली चलो' का नारा लगाते युवराज शेर और उसके पीछे बहुत सारे जानवर 'जँगल बचाओ' के नारे लगा रहे थे।


"अरे ये तो 'दिल्ली सफारी' वाले जानवर हैं। अच्छा है मैं इनके साथ दिल्ली पहुँच जाऊँगा और वहाँ से अपने घर। चलो अच्छा ही हुआ कि मुझे उस पौने दस वाली भूतिया ट्रेन से मुक्ति मिल गयी।" पिन्टू ने सोचा और उन जानवरों के साथ मिलकर अलेक्स तोते के स्वर में स्वर मिलाया, "जँगल बचाओ, पेड़ काटना बन्द करो, दिल्ली चलो" 

पिन्टू खुश था कि अब वह अपने घर लौट जाएगा और वह पूरे जोश में भरकर नारे लगा रहा था। ये लोग दिल्ली की ओर बढ़ रहे थे और पिन्टू जोश-जोश में बिल्कुल युवराज शेर के बगल में आ गया था। इनके नारे कब "इन्कलाब जिन्दावाद, हमारी माँगे पूरी करो, जँगल हमारा घर है, नेताओं कुर्सी छोड़ो'' में बदल गए पिन्टू को पता भी नहीं चला, वह तो बस अब झण्डा पकड़े सबसे आगे उन नारों को दोहरा रहा था। जैसे वही इनका लीडर हो।

अचानक सामने से बहुत सारे पुलिस वाले आते दिखे जो कह रहे थे, "पकड़ो इस लड़के को, यही इस सारे फसाद की जड़ है। इसने ही इन सारे बेजुबान जानवरों को भड़काया है। इसे गिरफ्तार करो हम इसपर सरकार के खिलाफ विद्रोह और प्रदर्शन का मुकदमा चलाएँगे।" पुलिस टीम का लीडर चिल्ला कर अपने साथियों से कह रहा था।

पिन्टू को अपनी ओर बढ़ती मुसीबत साफ नजर आ रही थी। वह धीरे-धीरे पीछे खिसकने लगा और फिर उसने बिना पीछे देखे पूरी शक्ति से दौड़ लगा दी।

पिन्टू भागते-भागते जँगल की सीमा पर पहुँचा तो सामने उसकी ट्रेन रेंग रही थी। पिन्टू ने बिना एक पल भी सोचे अपनी ट्रेन पकड़ ली और ट्रेन उसकी साँसों से रेस लगाने लगी…


पिन्टू के ट्रेन में चढ़ते ही ट्रेन हवा से रेस लगाने लगी। पिन्टू को आश्चर्य हो रहा था कि वह इतनी देर से इस ट्रेन का सफर कर रहा है लेकिन रात है कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही। वह सीट के पीछे सिर टिका कर सोने की कोशिश करने लगा। अचानक उसे बहुत तेज़ झटका लगा। 

पिन्टू ने आँख खोलकर देखा वह ट्रेन बड़ी तेज़ चरर्रर..!! करर्रर!!! की आवाज़ करती हुई रुक रही थी। ट्रेन में इस तरह अचानक ब्रेक लगने की वजह से ही पिन्टू को वह झटका लगा था। 

पिन्टू ने बाहर झाँक कर देखा। इस बार ट्रेन किसी जँगल में नहीं बल्कि एक भीड़भाड़ भरे स्टेशन पर रुकी थी।

पिन्टू ने दूर स्टेशन के बोर्ड पर देखा जिसपर लिखा था 'फुरफुरी नगर जंक्सन' पिन्टू को ये नाम बहुत जाना पहचाना लगा।

"अरे!! ये ट्रेन तो फुरफुरी नगर पहुँच गयी। मैं यहाँ उतर जाता हूँ। यहाँ इंस्पेक्टर चिंगम से मुझे अवश्य ही मदद मिल जाएगी। ऐसे भी मोटू-पतलू तो यहाँ होंगे ही। अब मुझे यहाँ कोई खतरा नहीं।" पिन्टू ने एक पल सोचा और वह ट्रेन से उतर गया।


"अरे नम्बर बन, नम्बर टू कहाँ मर गए...! देखो सामने से एक बकरा आ रहा है, जल्दी आओ इसे हलाल करना है।" जैसे ही पिन्टू स्टेशन से बाहर आया उसे जॉन दा डॉन की आवाज सुनाई पड़ी।

पिन्टू ने सामने देखा वहाँ एक बड़ा सा बोर्ड लगा हुआ था जिसपर लिखा था- 'फुरफुरी नगर में आपका स्वागत है' उस बोर्ड के दायीं ओर थोड़ा नीचे पिन्टू को एक गुमटी दिखाई दी जिस पर लिखा था, 'समोसा किंग, फुरफुरी चाय शॉप'

पिन्टू तेज़ी से उस दुकान की ओर दौड़ पड़ा जहाँ उसे अपने मनपसंद लोग, पतलू, घसीटाराम, और चायवाला दिखाई दिए।

पिन्टू दौड़कर एक खाली बैंच पर बैठ गया और अपनी साँसे ठीक करने लगा।

तभी उसने चाय वाले कि आवाज सुनी, "तुम क्या लोगे भाया, चाय के साथ गर्मागर्म समोसे या फिर गर्म समोसे के साथ ठंडी कोल्डड्रिंक?" 

"ऊँ..! आँ..हाँ..!" अभी पिन्टू कुछ सोच ही रहा था कि  पतलू बोल उठा, "अरे जल्दी समोसे खा लो, इससे पहले की वह पेटू... मेरा मतलब है कि मोटू आ जाए और सारे समोसे चट कर जाए। अरे चाय वाले देखता नहीं ये मेहमान है हमारे फुरफुरी नगर में, इन्हें पेट भरकर समोसे खिला।" और पतलू जोर-जोर से हँसने लगा। उसके साथ ही घसीटा और चायवाला भी ठहाके लगाने लगे। 

पिन्टू को कुछ समझ  नहीं आ रहा था तभी चाय वाले ने एक प्लेट में चार समोसे रखकर पिन्टू के सामने रख दिये।

"लो भाई मेहमान! अब जल्दी से इन्हें खा लो, मोटू बस आता ही होगा।" चाय वाले ने पिन्टू को जैसे चेतावनी सी दी।

पिन्टू को मोटू का समोसा प्रेम याद आ गया और उसने एक समोसा उठाकर पूरा मुँह खोलकर एक बड़ा सा कोर काट लिया।

समोसा मुँह में जाते ही पिन्टू का जैसे मिर्च से मुँह ही जल गया। उसके कानों धुआँ निकलने लगा और जैसे ही उसने कुछ बोलने के लिए मुँह खोला, उसके मुँह से आग की तेज़ लपटे उबल पड़ीं।

उसकी ये हालत देखकर पतलू, घसीटा और चायवाला हँसते-हँसते लोटपोट हो रहे थे तभी सामने से मोटू आता दिखाई दिया।

"शर्म नहीं आती तुम लोगों को जो एक मेहमान को इतनी मिर्च खिला दी कि उसका मुँह जल गया। मुझे पता है ये समोसे तुमने मेरे लिए बनाए थे। चायवाले तुमसे तो मैं बाद में निपटूंगा पहले इसकी आग बुझाने के लिए फायरब्रिगेड को बुला लूं।" मोटू चीखते हुए बोला और फिर फोन मिलाने लगा।

थोड़ी ही देर में पिन्टू को फायरब्रिगेड का सायरन सुनाई देने लगा और अचानक उसके मुँह पर पानी की बौछारें पड़ने लगीं।

हड़बड़ाकर चिंटू झटके से उठ बैठा। उसका अलार्म जोर-जोर से बज रहा था और सामने मम्मी पानी का खाली मग पकड़े खड़ी थीं, जिसका पानी उन्होंने अभी पिन्टू के मुँह पर फेंका था।

  "कब से अलार्म बज रहा है तुम्हारा पिन्टू और तुम हो कि दोपहर तक घोड़े बेचकर सो रहे हो। भूल गए आज मुझे और तुम्हारे डैडी को बाहर जाना है और तुम्हें लेने तुम्हारे मामा जी भी बस आते ही होंगे। चलो जल्दी से उठाकर तैयार हो जाओ।" कहकर मम्मी चली गयीं।


पिन्टू हड़बड़ा कर उठा, उसे अभी भी डोरीमोन की आवाज आ रही थी, "तुम कितने आलसी हो नोबिता!! इसी लिए तुम्हें मम्मी से डाँट पड़ती है। और तुम्हारे साथ मुझे भी। तुम अपना कोई भी काम ठीक से नहीं कर सकते।"

चिंटू ने उठकर सबसे पहले टीवी बन्द किया जिस पर डोरेमोन चल रहा था फिर उसने अपना मोबाइल उठाया जिसपर छोटा भीम चल रहा था और सामने कंप्यूटर स्क्रीन पर कार्टून मूवीस की फ़ाइल खुली पड़ी थी।

पिन्टू ने अपना सर पीट लिया, "ओह्ह!! इन कार्टून्स का मेरे दिमाग पर कैसा असर होता जा रहा है कि मुझे अब सपने में भी बस कार्टून ही दिख रहे हैं। आज से और अभी से कार्टून देखना बन्द, ये तो मुझे पागल कर देंगे।" चिंटू ने सोचा और उठकर कंप्यूटर से कार्टून मूवी की फ़ाइल डिलीट कर दी। उसके बाद पिन्टू ने अपने मोबाइल से भी सारे कार्टून और उनके ऑनलाइन लिंक रिमूव कर दिए। उसके बाद वह इत्मीनान से नहाने चला गया। अब उसे सच में डरावनी ट्रेन से मुक्ति मिल चुकी थी।

लेकिन वह ट्रेन दौड़ी जा रही थी किसी और पिन्टू-चिंटू को अपने कब्जे में लेकर डराने...

समाप्त


©नृपेंद्र शर्मा "सागर"

ठाकुरद्वारा मुरादाबाद

9045548008