Sunday, August 23, 2020

एक हादसा

(एक कहानी यूँही)      
            #डर#

आधी रात बीत चुकी थी, देवेंद्र अपनी रेंजर से बहुत तेजी से पैडल मरते हुए घर लौट रहा था उसे आज अपनी प्रेमिका की बातों में समय का ध्यान ही नहीं रहा।
उसने पहले अपनी प्रेमिका को उसके घर छोड़ा और फिर अपने घर की ओर चल दिया।

आज की रात और दिनों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही अँधेरी थी ऊपर से  हवा की तेरी सूखे पत्तों को सहलाकर हँसा रही थी जिनकी हँसी की 
खर्र..! खर्र.. चकककक चरर्त्तत...!! 
की कर्कश ध्वनि वातावरण में अलग ही भय उतपन्न कर रही थी।

माहौल इतना डरावना था कि गर्मी में भी देवेंद्र के जिस्म का हर रोंया खड़ा था जैसे किसी डर को देखकर शेर की गर्दन के बाल खड़े ही जाते हैं साही के कांटे खड़े हो जाते हैं।

अभी देवेंद्र काली नदी के पुल के बीच में ही पहुँचा था कि उसे सामने किसी के होने का अहसास हुआ उसे डर तो पहले से ही लग रहा था लेकिन अब तो उसकी साँसे राजधानी  की रफ्तार से चलने लगीं।
देवेंद्र ने अपनी रेंजर की गति को बढ़ाने में अपने फेफड़ों की पूरी ताकत लगा दी तभी वह साया उसे ठीक सामने खड़ा नज़र आया, उसके हाथ ब्रेक लीवर पर केस गए, रेंजर चिर्रर.... र्रर!! की आवाज करती हुई उस साये से एक फुट की दूरी पर रुक गयी।

देवेंद्र समने खड़े अजनबी को देखने लगा उसकी बड़ी बड़ी आंखे थी सर पर टोपी पहने हुए था।
लेकिन उसके चेहरे का कोई भी हिस्सा नज़र नहीं आ रहा था वहां बिल्कुल स्याह अँधेरा था।
देवेंद्र उसे देखकर बहुत डर गया उसके मुंह से अचानक तेज चीख निकली, 
भ...उ...त...!

तभी उस साये ने कहा, कहाँ घूम रहे हो इतनी रात को? तुम्हे पता नही देश मे कोरोना के चलते इमरजेंसी के हालात हैं , पूरे देश में कर्फ्यू लगा हुआ है और तुम सायकल पर आधी रात को हवा खोरी कर रहे हो इस बार तो चेतावनी देकर छोड़ रहा हूँ।अगली बार दिखे तो 144 में अंदर कर दूंगा।

तब देवेंद्र ने ठीक से देखा वह साया एक काला मास्क पहने हुए पुलिस वाला था।

देवेंद्र भाई चुपचाप लौट आये क्योंकि वह जानते हैं कि भूतों को तो फिर भी समझाया जा सकता है किंतु पुलिस......😢😢😢
नृपेंद्र शर्मा "सागर"

Wednesday, August 19, 2020

शहीद

#लघुकथा
शीर्षक:-शहीद

"ये जवान जो बॉर्डर पर लड़ते हुए शहीद हुआ है, ये हमारे गाँव का गौरव है। हम इसके नाम पर गाँव के विकास के लिए योजनाएं लाएँगे।" एक नेता जी ने तिरंगे में लिपटे फौजी के शव की ओर इशारा करके कहा।

"ये  फौजी हमारी कौम का था, हमारी कौम का नाम रौशन किया है इसने। हम इसके नाम से बड़ा स्मारक बनवाएंगे।" तभी दूसरे नेताजी खड़े होकर बोले।

"अरे मंत्री जी आ गए...", तभी एक शोर उठा।

"ये जवान जो पड़ोसी मुल्क से की जा रही गोलाबारी का सामना बहादुरी से करते हुए शहीद हुआ है, ये हमारे क्षेत्र का है। जिसने हमारे क्षेत्र का मान बढ़ाया है।
मैं सरकार में मन्त्री होने के नाते ये घोषणा करता हूँ इनके घर की तरफ आने वाली सड़क को चौड़ा करके मुख्य मार्ग से जोड़ा जाएगा और इस रोड का नाम इस शहीद के नाम पर होगा।
और जैसा कि हमारे साथी विपक्षी नेता जी ने अभी कहा था तो मैं इनके घर को स्मारक बनाने के लिए फंड दिलाने का आश्वासन देता हूँ।" 

नेता जी की जय, मंत्रीजी जिंदाबाद के नारों के बीच बेटे के कफ़न-दफन का इंतज़ाम करता उसका बाप अब मन ही मन अपने रहने के इंतज़ार के बारे में भी सोच रहा था।

नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद

Wednesday, July 15, 2020

पिया मिलन

#पिया मिलन

सावन की झम झम झड़ी लगी, मैं पिया मिलन को जाय रही।
बैरन बिजुरी तड़ तड़ तड़ कर, पग पग पर मोहे डराय रही।
मोहे लगी लगन पिया साँवरे की, मैं पिया से प्रीत निभाय रही।
कोई और नहीं सुध रही मुझे, निज तन मन सभी भुलाये रही।
सावन मनभावन मास सखी, मुझे पिय की याद सताय रही।
बाहर की बिजली की क्या कहूँ, मेरे भीतर तड़ित समाय रही।
कोई बाधा राह ना रोक सके, मैं अविनाशी की बाँह गही।
मेरे प्रीतम जग के स्वामी हैं, मैं अंश जीव कहलाये रही।
ये जन्म मरण सब मिथ्या है, मैं मोक्ष परम पद पाय रही।
मुझे लोक लाज की कहाँ पड़ी, मैं तो निज धाम को जाय रही।

नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद

Tuesday, July 14, 2020

#स्वप्न्न

स्वप्न्न:-

आज चौधरी हरपाल सिंह की हवेली पर बहुत रौनक हो रही है।
हो भी कियूं न ,उनका बेटा' चेतन 'आज डॉक्टरी पास कर के गांव लौट कर आ रहा है।
उन्होंने पूरे गांव के जलपान की व्यवस्था कर रखी है, और मन मे एक विचार भी रखा है कि, किस शान से वह अपने चेतन को गांव बालो से मिलायेगे ।
"मिलिए मेरे बेटे डाक्टर चेतन चौधरी से जो अपने गांव वालों की सेवा खातिर डॉक्टर बन कर आया है , अब कोई लाइलाज न मरेगा गांव में।"
उन्होंने तो अपनी एक एकड़ जमीन जो राजमार्ग से बस 500 मीटर अंदर है ,उस पर अस्पताल निर्माण की योजना भी बना रखी है।
क्या शान होगी गांव की जब दूर दूर से लोग उनके गांव आएंगे इलाज़ के लिए ।
बड़े शहर की सारी सुबिधा रखाएँगे हम अपने अस्पताल में, और गांव बालों से बस दवाई का मूल्य लिया जाएगा।
बाहर के लोगों के आवाजाही से गांव के कई लोगन को रोजगार भी तो मिलेगा।

अभी हरपाल सिंह अपने मधुर दिवास्वप्न में खोये थे कि किसी ने उनको झिंझोड़ा अरे चौधरी साब ,"भैया आ गए" आएं स्वागत करें।
एक हर्ष मिश्रित शोरगुल उठा डाक्टर साब आ गए डाक्टर साब आ गए।
आ गया बेटा ,,,देख सारा गांव तेरे स्वागत को आया है।
ओ डैड ये क्या जाहिलों की भीड़ इकट्ठा कर रखी है आपने ।
कितने डर्टी-डर्टी लोग है जर्म्स से भरे।
उफ्फ !!!मुझे तो घुटन होती है।
चेतन ने कहा और हवेली में अंदर चला गया उसने किसी को सम्मान या अभिवादन तक भी न किया।
चौधरी साब भी उसके पीछे पीछे अंदर आये।ये क्या व्यभार है ,चेतन !!??
गांव के सारे मौजूद बुजुर्ग और गणमान्य लोग तुम्हें आशीर्वाद देने आए थे ओर तुमने किसी को राम राम तक भी न की।
ओह्ह!! डैडी क्या है ये सब ,मुझे अभी निकलना है आज रात 10 बजे मेरी फ़्लाइट है अमेरिका की।
बाहर गाड़ी में आपकी बहु मेरा इंतज़ार कर रही है ,
मैं तो आपको कहने आया था कि आप भी यहां का सारा कारोबार समेट लो मैं अगले महीने आऊंगा और आपको भी हमेशा के लिए अपने साथ ले जाऊँगा।

बहु!!!!!!!!@!! अमेरिका!!!????
हरपाल सिंह पर तो जैसे वज्रपात ही हो गया हाथ पांव सुन्न हो गए।
कितने अरमान से उन्होंने अपने एकलौते बेटे चेतन को पाला था ।अकेले मां और बाप दोनो बन कर।
उनकी पत्नी सरिता देवी की 16 साल पहले डेंगू से मौत हो गई थी , तब से बस यही एक सपना एक उम्मीद पल रही थी उनके मन मे कि," उनका चेतन डाक्टर बनेगा और किसी गांव बाले को लाइलाज नही मरने देगा"।
लेकिन ये क्या ,,,,, चेतन डाक्टर तो बन गया लेकिन हरपाल सिंह का सपना,,,,,, !!!
और बहु,,,!!
,यानी तुमने बिना पूछे शादी भी कर ली ??
कौन है लड़की? किस खानदान की है,?, क्या कुछ भी मायने नही रखता तुम्हारे लिए,,,??
क्लासमेट है डैड ,और हमने शादी नही की बस हम 2 साल से साथ रहते हैं लिवइन में।
और आजकल शादी का झंझट कोन करता है डैडी।
अच्छा छोड़ो आप नहीं समझोगे ये सब ,मैं और रश्मि एक साथ डॉक्टरी पढ़े हैं ।
और और दो साल से लिवइन रिलेशन में हैं सोच था आपको बता दूं ,लेकिन रश्मि ने कहा कि पढ़ाई पूरी होने पर बताएंगे।

हमे अमेरिका में जॉब और हायर स्टडी दोनो का आफर है आज ही निकलना है ।
आपको बताने आये है कि अब हम वहीं अमेरिका में सैटल हो जाएंगे ,आपभी इधर का जमीन जायदाद बेचकर अगले महीने हमारे साथ ही आकर रहो।
अच्छा डैड अब चलते हैं अभी रश्मि के घर भी जाना है।

तो क्या बहु !गाड़ी से भी नही उतरेगी??
अरे डैड उसे गांव के पॉल्युशन से एलर्जी है इसलिए गाड़ी में ही (ऐ सी )चला कर बैठी है ,अच्छा अब निकलता हूँ बहुत लेट हो गया।
कहकर चेतन ने अपना सामान उठा लिया,,,,,।
बेटा!!!!!
हरपाल सिंग ने दबी आवाज से पुकारा ।
"जी डैड कहो।"
क्या "तुम और बहु "यहीं रहकर एक अस्पताल नही खोल सकते ??मेरे सपनों का अस्पताल ।
मे तुम्हारी शादी भी स्वीकृत कर लूंगा, लड़की की जाती कुल खानदान भी नही पूछूंगा , बस तुम मुझे छोड़कर मत जाओ। ये देखो घर का आंगन जो तुम्हारी माँ ने अपने हाथों से लीपा था ,मैने आज तक उसे बैसा ही रखा है। बहुत गहरी यादें जुड़ी हैं मेरी इस मिट्टी से । मुझसे अलग ना हुआ जाएगा उन यादों से। मैं तेरे हाथ जोड़कर भीख मांगता हूं तू यहीं रह कर अस्पताल खोल ले। मैं अपना सब बेच कर शहर से ज्यादा सुबिधायें तुझे यहीं उपलब्ध करा दूँगा मेरे बेटे।

ओह डैड !!
आप तो बेकार में सेंटी हो रहे हो, मैं लेट हो रहा हूँ आप आराम से सोचना पूरा एक मंथ है आपके पास ,बता देना मुझे सोच समझ कर ।
अच्छा चलता हूँ बाय।
कह कर चेतन झटके से निकल गया।
हरपाल सिंह एकदम सुन्न पड़ गए ,जैसे उन्हें लकवा मार गया हो।
बाहर गाड़ी स्टार्ट होने की आवाज आई , गांव बालों को कुछ समझ नहीं आया कि क्या हुआ डाक्टर बाबू यूं अचानक आये और अचानक चले गए। अंदर जाकर देखा तो हरपाल सिंह जमीन पर उनकी पत्नी के हाथ से लीपे आंगन के कोने में जमीन पर बैठे है एकदम जड़, उनकी आंखों से अश्रु धारा अनवरत वह रही है ।
गांव बाले सन्न रह गए।
करीब तीन दिन बाद चौधरी साब कुछ संयमित हुए और उन्होंने एक वकील बुलाया। और बोले, वकील बाबू मैं अपनी सारी जायदाद से चेतन को बेदखल करके अपनी सारी चल अचल पूंजी से एक ट्रस्ट बनाना चाहता हूं , जिसमे एक अस्पताल और एक धर्मशाला हो ,जहां सस्ते में लोगों को इलाज़ की सारी सुबिधायें मिलें बहुत कम खर्चे पर।
उसका नाम हो ,सरितादेवी आयुष ट्रस्ट।
वकील ने वसीयत तैयार कराई और अस्पताल का काम सुरु हो गया ।
इस बीच चैधरी साब ने चेतन से कोई बात नही की, आज महीने का आखिरी दिन है ,चेतन आज उन्हें लेने आने वाला है।
चैधरी साब अभी अस्पताल के दफ्तर कक्ष का उदघाटन करके लौटे हैं । जहां उनकी पत्नी और उनकी मूर्तियां बनी हैं। उनकी ही इच्छा थी कि ये काम एक महीने में हो जाये। और अब उनके मुख पर उदासी मिश्रित गर्व है।
चौधरी साब पत्नी के लीपे आंगन में आकर बैठ गए ,जैसे कोई मुसाफिर मंज़िल पाने पर थक कर प्रसन्नता से बैठ जाता है।
उनके मुख पर प्रसन्नता और गर्व है।
चेतन आ गया , ,,,
डैड चलो मैं आपको लेने आया हूँ , अब आप हमारे साथ ही रहेंगे।
लेकिन उधर से कोई प्रतिक्रिया न पाकर उसने चैधरी साब के कन्धे पर हाथ रखा ,,,, लेकिन ये क्या मुख पर विजय मुस्कान लिए उनकी निष्प्राण देह इनकी पत्नी की याद से लिपट गई। और उनकी निस्वार्थ आत्मा अपना स्वप्न्न पूरा करके अपनी आत्मा अपनी प्राण प्रिया के पास चिरलोक में चली गई। रह गए तो उदास गांव वाले, और पछतावे के भाव लिए निष्ठुर चेतन।
एक ऐंसा पछतावा लिए जो ताउम्र उसके मन पर बोझ रहेगा।
"नृपेंद्र"

Thursday, June 25, 2020

काँटा

एक लघुकथा

काँटा

एक चूहा बड़ा सा काँटा लिए दौड़ा चला जा रहा था। रास्ते में मेंढक ने पूछा कि, "अरे मूषक भाई ये काँटा लिए कहाँ दौड़ लगा रहे हो?"

"अरे भाई! साँप को काँटा चुभा है, तो मेरे पास आया था मदद माँगने। बस वही निकालने के लिए ले जा रहा हूँ", चूहे ने चलते-चलते जवाब दिया।

"लेकिन काँटा तो तुम अपने तेज़ दाँतो या नुकीले नाखूनों से भी निकाल सकते हो?" मेंढक ने सवाल किया।

"बिल्कुल निकाल सकता हूँ मित्र, लेकिन फिर उसे याद कैसे रहेगा", चूहे ने मुस्कुराकर कहा और दौड़ लगा दी।

नृपेन्द्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
9045548008

Friday, June 19, 2020

#कहानी/ प्रेम और बदला

भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा के पास माठ तहसील है, जहाँ पर राधा रानी का मंदिर है। 
वहीं की एक सच्ची घटना है ये , बात साल 2012 या 13 की है, मंदिर के चबूतरे पर कुछ बंदर बैठे थे, उनके 3,4 छोटे- छोटे बच्चे वहीं खेलने में मगन थे। 
तभी कहीं से एक नाग निकल आया और बंदर के एक बच्चे को डस लिया।
सारे बन्दर क्रुद्ध क्रंदन करने लगे ,और नाग वहीं एक बिल में घुस कर छिप गया। 
बंदरों ने अपनी भाषा मे न जाने क्या संदेश प्रसारित किया कि ,देखते ही देखते सैकड़ों बंदर वहाँ इकट्ठा हो गए। कुछ बन्दरों ने उस बच्चे को चबुतरे पर लिटाया ओर नीम की टहनियां तोड़ तोड़ कर लाने लगे। 
कुछ बंदर, नाग की सरणस्थली की ओर लपके। 
बंदरों की फौज देखकर आते -जाते राहगीर, अपनी गाड़ी रोक कर तमाशा देखने लगे।
देखते ही देखते हजारों लोगों का हुजूम उक्त द्रश्य देखने के लिए एकत्र हो गया। 
बंदर इस सब से बेपरवाह अपने काम मे मगन थे। कुछ बंदर नीम की डाली से बच्चे का जहर उतार रहे थे, वे उसके सर से पाव की ओर टहनी घुमाते और कुछ बुदबुदाते, फिर टहनी बदल कर उक्त क्रिया दोहराते।
कुछ बंदर नाग का बिल अपने नाखूनों से खोदने लगे ,और दो तीन बंदर बिल पर घात लगाए बैठ गए, एकदम मुस्तेद चौकन्ने अपने लक्ष्य पर सम्पूर्ण ध्यान्द्रष्टि।
तभी कुछ बंदर नल से अपनी हथेलियों में पानी भरकर लाने लगे ओर बिल में भरने लगे। ये देख कर एक दर्शक ने बोतल में पानी भरकर छोड़ दिया ओर दूर हट गया। 
बंदर ने झट से बोतल उठाई ओर बिल में उड़ेलने लगा।

एक बोतल दो बोतल तीन बोतल ,,,,
नाग ने जैसे ही बिल से सर निकाला कि एक बंदर ने जो कि घात लगाए बैठा था झट से उसे दबोच लिया, और लगा बिल से बाहर खींचने।
नाग ने बहुत शक्ति प्रयास किया किन्तु बंदर ने उसे बिल से बाहर खींच कर धरती पर पटक ही लिया। किन्तु उसका मुंह बंदर ने अपनी मज़बूत पकड़ में दबाए रखा।
नाग को बाहर आया देख सारे बंदर क्रोध में चीखने लगे जैसे कह रहे हों पटको इसको मार डालो छोड़ना मत।।। 
और उधर बच्चे का इलाज चालू , इधर लगे बंदरों को जैसे उधर से कोई मतलब नही। या कहो कि पूर्ण विस्वास कि, ये अपना काम पूर्ण कर ही लेंगे।
नाग को पकड़े बंदर ने इसे जमीन में रगड़ना शुरु किया और तीन चार बार रगड़ कर उसे देख कर सूंघा और खीं ख ख खी खीं,,, की आवाज निकलने लगा। जैसे कह रहा हो कि अब भुगतो सजा अपने कृत्य की।
और बाकी के बंदर भी क्रोध में खिखिखिखिकरें कर के उस बंदर का उत्साहबर्धन करने लगे।

काफी देर ये द्रश्य चलता रहा,,, बंदर ने सांप को रगड़ रगड़ कर मार डाला। उधर सांप ने आखिरी सांस ली, इधर वह बच्चा उछल कर अपनी मां से लिपट गया। 
बंदर सांप की मृत देह को घसीटकर हर्ष ध्वनि के साथ अपना विजय उत्सब मनाने लगे। और दर्शक आश्चर्य व्यक्त करते हुए अपने अपने गंतव्य स्थलों की ओर जाने लगे।

©नृपेन्द्र शर्मा "सागर"

#प्रेम/ भ्रम

नवीन ने गांव से दूर शहर के कालेज में एडमिशन लिया और एक परिचित के प्रयास से उसे पेइंग गेस्ट के रूप में रहने की जगह भी मिल गयी।
जब क्योंकि खाने बनाने की झंझट नहीं थी तो उसने समय का सदुपयोग करते हुए दो तीन ट्यूशन भी पढ़ाने शुरू कर दिए जिससे उसका जेब खर्च निकलने लगा।
यूँ तो नवीन शुरू से ही बहुत शर्मीला था लेकिन नई जगह आकर वह और भी झिझकने लगा वह किसी से भी ज्यादा बात नही करता औऱ लड़कियों से तो ऐसे शर्माता जैसे उसे खा जाएंगी।
नवीन पढ़ाई में बहुत तेज़ था अतः कॉलेज में जल्दी ही उसके बहुत से दोस्त बन गए, यूँ तो कई लड़कियां भी उससे मित्रता करना चाहती थी लेकिन यसज रूखा व्यवहार और शर्मीलापन हमेशा उसे लड़कियों से दूर ही रखता।
नवीन ज्यादातर समय पढ़ने और पढ़ाने में ही लगाता था अतः वह ज्यादा लोगों से घुल मिल ही नही पाता था।
उसके मकान मालिक बुजुर्ग दम्पत्ति थे उनके बच्चे दूर शहरों में सेटल थे इसी लिए अपना अकेला पन दूर करने के लिए उन्हीने नवीन को रखा था।
नवीन भी उनकी हर जरूरत का पूरा ध्यान रखता था कुछ ही दिनों में नवीन उनका चहेता बन गया।
दिन भर कॉलेज उसके बाद टयूशन की थकान के बाद शाम को दो घण्टे छत पर खुली हवा में बैठना पढ़ना नवीन की नियमित दिनचर्या का हिस्सा बन गया था।
एक दिन उसने सुना की पड़ोस में कोई नए किरायेदार आये हैं, ये कोई नई बात नहीं थी क्योंकि शहर में तो अक्सर किरायेदार आते जाते रहते हैं तो उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया यूँ भी वह किसी से ज्यादा मतलब भी नही रखता था।
उस दिन भी नवीन रोज की तरह छत पर बैठ कर चाय पीते हुए अपनी किताब में खोया हुआ था, अचानक उसकी नज़र सामने की छत पर पड़ी जहां एक लड़की बैठी कुछ पढ़ रही थी।
अचानक उसने चेहरा उठाया और अनायास ही उसकी नज़रे नवीन की नज़रों से मिली, नवीन तो बस उसे देखता ही रह गया, उसका गोरा रंग ऐसा मानो दूध में ऊषाकाल के सूर्य की छाया पड़ रही हो उसकी बड़ी बड़ी काली आंखे, पतले गुलाबी होंठ ओर सुंदर गोल नाक।
उसकी लम्बी पत्नी गर्दन और काले घने लंबे बाल कुछ यूं बिखरे थे जैसे घने बादल चाँद को अपने आगोश में लेने की कोशिश कर रहे हों या कहो कि उसके रूप को छिपाने का प्रयास कर रहे हों।
उसकी सुंदरता देखकर नवीन सुधबुध भूल का एकटक उसे देखता रह गया, उसे लगा मानो स्वर्ग से साक्षात अप्सरा ही उतर आई हो।
यूँ तो नवीन कभी किसी लड़की से ठीक से बात नहीं करता था लेकिन इस अप्सरा ने उसकी वह साधना भंग कर दी थी,यूँ तो कितनी ही लड़कियां नवीन से बात करना उस से दोस्ती करना चाहती थीं किन्तु नवीन तो अब....

नवीन अब रोज शाम होते ही छत पर जाकर बैठ जाता, किताब के पीछे से उसकी नजरें किसी को खोजती रहती, अब वह उस से बात करने को बैचेन होने लगा था।
दोनों घरों के बीच में बस एक पतली गली ही तो थी दोनों छतें आमने सामने थीं अब कई बार दोनों छत के एकदम कोने पर आ जाते और अमन सामने आकर नज़रे मिलाकर शरमाकर नज़रे झुका लेते दोनों ही एक जैसे हाल में थे।
उस दिन जब वह एकदम सामने आई तो नवीन ने हिम्मत करके बोल ही दिया ,"हेल्लो माय सेल्फ 'नवीन' एंड उअर स्वीट नेम?"
'सीमा' एक छोटा सा जबाब मिला इर साथ में ढेर सारी हंसी की खनक। वह हंसी हुई भाग गई थी और रह गया था जड़वत मूर्ति बना नवीन, नीचे से आई मांजी की आवाज से वह अपनी चेतना में लौटा ओर नीचे दौड़ गया।

"सीमा"!! हिहिहि
रात भर उसके कानों में यह खनक गूंजती रही, सारी रात वह उसी के विषय में सोचता रहा, और उसी के सपनो में खोया सो गया।

अगले दिन वह बहुत खोया खोया से था, "ये क्या हो रहा है मुझे" वह अपने आप से पूछ रहा था।
"कहीं मुझे प्यार"?? फिर खुद ही मुस्कुरा उठता ओर शरमाकर नज़रे चुराने लगता।
आज वह शाम को बहुत जल्दी छत पर आ गया उसकी नज़रे बड़ी शिद्दत से सामने की छत पर कुछ ढूंढ रही थीं।
घण्टों हो गए लेकिन उधर कोई आहट तक ना हुई,  अब नवीन बहुत परेशान हो गया आज वह पूरा मन बनाकर आया था कि आज वह उस से अपने मन की बात कहेगा।
किन्तु आज तो वह आयी ही नहीं, नवीन का दिल बैठा जा रहा था वह सोच रहा था कि क्या वह भी उसे प्यार...
या ये सिर्फ उसका एक भ्रम है?
नवीन इंतज़ार करके थक गया था, वह उसे प्यार नही करती यह सच मे उसका भ्रम ही था उसने सोचा और नीचे जाने के लिए मुड़ा।
अभी वह दो कदम ही चला था कि पीछे से आवाज आई,
"रुको, न वी न,,"
मुझे आपसे कुछ कहना है।
नवीन को तो जैसे कोई खज़ाना ही मिल गया,वह तेज़ी से मुड़ा," सीमा", वह दौड़ता हुआ उसके पास आया।
कब से इंतज़ार कर रहा था कितनी देर कर दी आज अपने सीमा सब ठीक तो है, नवीन ने पूछा।

सब ठीक है नवीन मैं पढ़ाई कर रही थी और मैथ्स में ऐसी उलझी की समय का ध्यान ही नही दिया फिर भी मुझे बहुत कम समझ आया, अच्छा क्या आप मुझे घर आकर मेथ्स पढ़ा सकते हो ? सीमा ने मुस्कुराकर पूछा।
हाँ जरूर लेकिन तुम्हारे पैरेंट्स?? नवीन सकुचाया अच्छा मैं उनसे बात करके कल बताती हूँ सीमा मुस्कुरादी और चली गयी।
आज फिर नवीन को नींद नही आई वह कल सीमा क्या जबाब देगी इसी विषय पर खुद के बनाये सवालों के जबाब रात भर खुद को देता रहा।
अगले दिन सीमा ने उसे खुशखबरी सुनाई की वह कल से उसके घर आकर उसकी मेथ्स समझने में हेल्प करेगा इसके लिए सीमा के परेंट्स मान गए।
अगला दिन नवीन का बहुत बेचैनी में निकला, यार ये शाम क्यों नही हो रही आज, वह खुद से कई बार पूछ चुका था।
शाम होते ही वह सीमा के घर पहुंच गया वहां उसने शिष्टाचार में उसकी माँ के पांव छुए, सीमा के पिताजी शाम को देर से ही आते थे तो.. 

अच्छा तुम दोनों पढ़ाई करो मैं चाय बनाती हूँ कहकर सीमा की माताजी रसोई में चली गयीं।
इससे पहले की नवीन कुछ कहे सीमा ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसकी आँखों में देखकर मुस्कुराने लगी।
"क्या सच" नवीन ने खुश होकर पूछा बदले में सीमा ने मुस्कुराकर उसका हाथ दबाया और पलके झुका लीं।

अच्छा मैं किताबे लाती हूँ सीमा ने धीरे से कहा और हाथ छुड़ाकर तेज़ी से हंसती हुई चली गई।

उसके बाद शुरू हो गया रोज का सिलसिला,"कल कब मिलेंगे, आज इतनी देर कहाँ लगा दी,  कल आप आये नही सब ठीक तो है मेरा तो मन ही नही लग रहा था,
कल थोड़ा जल्दी आना, आपके बिना दिल नही लगता,,, आदि आदि का सिलसिला।
अब नवीन बहुत खुश था उसे बिन मांगे संसार की सारी दौलत मिल गयी थी, इसी तरह तेज़ी से गुजरते समय के साथ उनके इस प्यार को तीन साल हो गए जिसमे आंखों से बातें करने हाथ पकड़ने ओर मुस्कुराने से आगे कभी कुछ नही हुआ, लेकिन दोनों ही को लगता था कि वे एक दूसरे में बिना अधूरे हैं।
नवीन का कॉलेज खत्म होते ही उसे एक कम्पनी में जॉब मिल गयी, और अब उसपर घरवालों की ओर से शादी करने के लिए दबाव भी पड़ने लगा।
किन्तु वह हमेशा कोई न कोई बहाना बनाकर उन्हें टालने लगा लेकिन कब तक??
अब उसे लगने लगा कि वह ज्यादा दिन परिवार वालो को रोक नही पायेगा अतः उसने सीमा से शादी के लिए बात करने का निर्णय किया।

आज नवीन बहुत खुश था क्योंकि वह सीमा से शादी के लिए बात करने जाने वाला था, उसे पूरा भरोसा था की सीमा उसे ना नहीं करेगी उसे अपने प्यार पर विश्वास था।
यूँ तो कई बात बातों बातों में सीमा ने भी शादी के लिए इशारा किया था लेकिन तब वह तैयार नही था किंतु आज उसके पास जॉब है वह शादी की जिम्मेदारी के लिए तैयार है अतः अब वह सीमा से बात कर सकता है, उसे यकीन था कि सीमा के पेरेंट्स उनकी शादी के लिए मान जाएंगे।
आज नवीन अच्छे से तैयार हुआ और पहुंच गया सीमा के घर, उसने बेल बजायी दरवाज़ा सीमा ने ही खोला और उसे देखकर बिना मुस्कुराए बोली, "अरे नवीन तुम, आओ अंदर आओ"। 
आज न जाने क्यों नवीन को सीमा कुछ बदली हुई लगी, वह और दिनों की तरफ नवीन को देखकर न तो मुस्कुराई और ना ही उसकी आँखों में चमक दिखी।
नवीन अंदर आकर बैठ गया उसे घर में कोई भी नज़र नही आया।
"कहो नवीन कैसे आना हुआ?" सीमा ने पूछा।
"तुम्हारे परेंट्स कहाँ हैं सीमा?" नवीन ने पूछा।

"क्यों, कुछ खास काम" सीमा ने उल्टा सवाल किया।
"आज मैं उनसे हम दोनों के लिए बात करने आया था सीमा" नवीन ने मुस्कुराकर जबाब दिया।
"क्या बात?" फिर वही रूखा से सवाल सीमा के मुँह से निकला।
"सीमा मैने शादी करने का फैसला कर लिया है", नवीन चहककर बोला।
"किसके साथ?" सिमा ने सपाट स्वर में पूछा।

"तुम्हारे साथ भई ओर कौंन, आज मैं तुम्हारे मम्मी पापा से इस विषय में बात करने आया हूँ", नवीन उसकी आँखों में देखकर मुस्कुराया।
ये बात सुनकर भी सीमा के चेहरे पर कोई खुशी नहीं आयी।

"क्या बात है सीमा तुम खुश नहीं हो?" नवीन अब परेशान हो गया था उसका दिल अब अनजाने भय से डर रहा था।
"कुछ नहीं" सीमा ने वही रूखा सा जबाब दिया।
" क्या बात है सीमा तुम कुछ अपसेट लग रही हो, सब ठीक तो है?" नवीन ने उदास होकर पूछा।

"नवीन हमारी शादी नहीं हो सकती", सीमा के इस एक वाक्य ने नवीन का दिल उसकी उम्मीदे सब चकनाचूर कर दिए।
उसके चाहते पर गहरी उदासी और आँखों में बेचैनी झलक रही थी।

"क्यों!!, क्या हुआ?" बड़ी मुश्किल से उसके मुंह से ये शब्द निकले।
"क्योंकि मैं नही चाहती", सीमा ने बहुत रूखे पन से जबाब दिया।

"और वे सब बातें वो प्यार के वादे वह सब क्या था?" नवीन धीरे से बोला।

"'भ्रम", हां भ्रम था वो हमारा नवीन वह प्यार नही था केवल एक कच्ची उम्र का आकर्षण था वह केवल एक अहसास था जो हमें एक दूसरे के साथ अच्छा लगता था जिसमें हम अपना बचपन शेयर करते थे लड़ते झगड़ते थे लेकिन प्यार, बोलो प्यार जैसा हमारे बीच कब हुआ नवीन हम केवल अच्छे दोस्त थे बस और हमेशा रहेंगे, मेरे जीवन में तुम्हारी वह जगह कोई नहीं ले सकता लेकिन शादी, नहीं नवीन मुझे तुममे अपना जीवनसाथी नही दिखता बस हम दोस्त ही हो सकते हैं", सीमा एक सांस में सब कह गयी।
" लेकिन मैं तुम्हे सच्चा प्यार करता हूँ सीमा", नवीन ने कुछ कहना चाहा।

"नहीं नवीन मुझे भूल जाओ", सीमा ने बेरुखी से कहा और अंदर चली गयी।
नवीन जैसे जड़ हो गया उसमे अब उठने की ताकत ही नही बची थी।
उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था की सीमा ने यह सब कहा है।
वह ना जाने कितनी देर वहां बैठा उस दरवाजे को देखता रहा जहां से सीमा अंदर गयी थी, इसे यकीन था कि अभी सीमा हंसती हुई आएगी और कहेगी की क्यों केस बुद्धू बनाया लेकिन यह भी केवल उसका भ्रम ही निकला वह नही आई और नवीन थके थके कदमो से बापस लौट आया।
नवीन अंदर तक टूट गया था, वह कई दिन तक इस उमीद में छत पर जाता रहा कि शायद सीमा लौट आये किन्तु उसका ये भ्रम भी नही टूटा।

अब नवीन समझ गया था कि यह प्यार एक धोखा है एक भ्रम है बाकी कुछ नहीं।

अब उसने घरवालों की मर्जी से शादी कर ली।
उसकी पत्नी सुंदर, सुशील एवं पढ़ी लिखी है, वह एक अच्छी पत्नी के सभी गुण रखती है, लेकिन नवीन उसमें भी सीमा को ही खोजता है क्योंकि पहला प्यार भुलाना कोई आसान काम है क्या फिर चाहे वह कोई भ्रम ही क्यों न हो।।
समाप्त।।।

नृपेंद्र शर्मा "सागर"