#पिया मिलन
सावन की झम झम झड़ी लगी, मैं पिया मिलन को जाय रही।
बैरन बिजुरी तड़ तड़ तड़ कर, पग पग पर मोहे डराय रही।
मोहे लगी लगन पिया साँवरे की, मैं पिया से प्रीत निभाय रही।
कोई और नहीं सुध रही मुझे, निज तन मन सभी भुलाये रही।
सावन मनभावन मास सखी, मुझे पिय की याद सताय रही।
बाहर की बिजली की क्या कहूँ, मेरे भीतर तड़ित समाय रही।
कोई बाधा राह ना रोक सके, मैं अविनाशी की बाँह गही।
मेरे प्रीतम जग के स्वामी हैं, मैं अंश जीव कहलाये रही।
ये जन्म मरण सब मिथ्या है, मैं मोक्ष परम पद पाय रही।
मुझे लोक लाज की कहाँ पड़ी, मैं तो निज धाम को जाय रही।
नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद