Friday, April 29, 2022

डूबा हुआ खज़ाना

डूबा हुआ खज़ाना


(ये कहानी एक परिकल्पना मात्र है, जिसे मनोरंजन के उद्देश्य से लिखा गया है।)





साल 2075, दुनिया में बहुत बदलाब हो चुके थे, जलप्रलय के बाद पृथ्वी रहने लायक नहीं रह गयी थी। दुनिया के विज्ञान के ज्ञान की सहायता से कुछ लोगों ने प्रलय का पहले ही पता लगा लिया था और कुछ लोग चन्द्रमा एवं मंगल ग्रह पर शिफ्ट कर गए थे। कुछ लोग ऐसे भी थे जिनके पास दूसरे ग्रहों पर जमीन लेने और अंतरिक्ष यात्रा पर खर्चा करने के लिए पैसे भी नहीं थे।

ऐसे में उन लोगों ने योग का सहारा लिया और खुद को पानी में साँस लेने और जल में रहने के अनुकूल बनाने के लिए कठिन अभ्यास किया।


अब दुनिया की स्थिति ये थी कि पृथ्वी बिल्कुल निर्जन एवं बंजर हो चुकी थी। पेड़ पौधे तो दूर की बात है जमीन पर घास का तिनका भी नज़र नहीं आता था। जीवन का कोई भी संकेत पृथ्वी के किसी भी भाग में सम्भव नहीं लगता था। जल प्रलय से पहले ही सारे धनी लोग दूसरे ग्रहों पर चले गए थे। बाकी योगी लोगों ने प्रलय का भी दिल खोलकर स्वागत किया था और पानी बढ़ते ही समुद्र की तलहटी में चले गए थे। उन्होंने समुद्र की तलहटी में पत्थरों से अपने लिए अच्छे भवन भी बना लिए थे और कुछ जलीय जीवों से मित्रता भी स्थापित कर ली थी।

समुद्र की गहराई में जल के भीतर मानव बस्तियां इतनी सहजता से नहीं बन गयी थीं बल्कि उसकी नीव में बहुत से जलीय जीवों की अस्थियां दफन हुई थीं।जिन्होंने मनुष्यों का समुद्र तल में बसना सहज स्वीकार नहीं किया था और उनके इसी विरोध के प्रतिरोध में हुए खूनी संघर्ष में कितने ही जीवों की जान चली गयी थी।

इसके अलावा कुछ जीव जो सुंदर एवं छोटे थे उनकी नृशंस हत्या मानवों ने अपने घर सजाने के लिए कर दी थी।


अब स्थिति ये थी कि समुद्र की तलहटी में मानवों की छोटी-छोटी बहुत सारी बस्तियां बसी हुई थीं। इनमें ज्यादातर एक दूसरे के विरोधी थे। मानव की महत्वाकांक्षा ने अभी भी मानव का पीछा नहीं छोड़ा था  और वह अभी भी निरंतर अमानवीय व्यवहार कर रहा था।

ज्यादातर बस्तियों में आपस में संघर्ष होता रहता था जो अधिकतर समुद्र में पहले से डूबे जहाजों से मिलने वाले समान और ख़ज़ाने को लेकर होता था।

  अभी भी मनुष्य की सोना इकट्ठा करने की भूख मिटी नहीं थी। जबकि समुद्र के नीचे मानव जीवन के लिए किसी धन की आवश्यकता ही नहीं थी। जल में ना तो वस्त्र थे और ना ही कोई ऐसा भोजन जिसके लिए मूल्य  चुकाना पड़े लेकिन फिर भी मनुष्य खज़ाना इकट्ठा कर रहे थे, ये सोचकर कि कभी ना कभी तो हम लोग पृथ्वी पर वापस जाएँगे और वहाँ फिर से सोना, चाँदी, हीरे, जवाहरात का राज होगा।

जल में भोजन के लिए मानव जलीय जीवों पर निर्भर था और वस्त्रों के लिए बड़े जलीय जीवों की खाल पर।

ज्यादातर लोग मछली, सीप, घोंघे, सरिसृप एवं अन्य जलीय जीवों को कच्चा ही खा रहा था लेकिन धीरे-धीरे कुछ लोगों ने अपना भोजन पकाने की तकनीक भी निकाल ली थी। ऐसे ही धीरे-धीरे कुछ लोग जल के अंदर पृथ्वी जैसे अन्य सुख सुविधाओं के संसाधनों का अनुसंधान भी कर रहे थे।


अब हम चलते हैं अपनी कल्पनाओं में कहानी को जीने।


समुद्र तल के अंदर बहुत सारी बस्तियां थी और उनके अलग-अलग मुखिया भी खड़े हो गए थे। इनमें तीन मुख्य गुट थे। एक था गोरे लोगों का ग्रुप जिसमें थे अमरीकन, ब्रिटिश, पोलिश, आयरिश, आस्ट्रेलिया जर्मनी एवं दूसरे गोरे मुल्कों के लोग जिनका मुखिया था एंडरसन।

दूसरा ग्रुप था काले लोगों का अर्थात अफ्रीकन, कैरोवियन, नाइजीरिया एवं अन्य काले लोग। इनका मुखिया था वेराडो नामक व्यक्ति जो अफ्रीकी था।

और तीसरा ग्रुप जिसमें थे सारे एशियन,अरबी एवं भारतीय महादीप के लोग। इनका मुखिया था एक भरतीय जिसका नाम था शमशेर।

समुद्र के नीचे इन लोगों ने कई खरतनाक जीवों को भी पाल रखा था। हर मुखिया के पास व्हेल, शार्क, ऑक्टोपस और बड़े मगरमच्छ पल रहे थे जो इनकी सवारी भी थे और लड़ाके भी।


एंडरसन को कहीं से पता लगा कि पेसिफिक सागर में दूर कहीं गहराई में किसी बड़े जहाज के होने के संकेत मिले हैं। लेकिन पेसेफिक पर तो शमशेर का कब्जा है फिर कैसे खज़ाना हासिल किया जा सकता है। इससे पहके भी कई बार शमशेर और एंडरसन के बीच ऐसे हक खजानों को लेकर खूनी संघर्ष हो चुके थे। एंडरसन   को डर था कि कहीं उससे पहले शमशेर उस जहाज को  ढूंढ निकाले और खज़ाना प्राप्त कर ले। वह ये नहीं चाहता था कि खज़ाना शमशेर या वेराडो को मिले।

एंडरसन ने अपने कुछ खास लोग जो ऐसी खोज के विशेषज्ञ थे उन्हें गुप्त रूप से जहाज़ की पूरी जानकारी जुटाने के लिए भेजा।

इधर शमशेर के कुछ खोजी लोग भी उसी के आसपास कुछ छानबीन कर रहे थे। हालांकि उन्हें पता नहीं था कि उधर कोई पुराना जहाज डूबा हुआ है। 

वे तो बस सामान्य दिनों की तरह ही अपना खोज अभियान चला रहे थे।

इन तीनों ही दलों ने तीनों मुख्य समुद्रों को आपस में बांट रखा था। और अपने-अपने समुद्री सीमा में इनके खोज अभियान चलते रहते थे। 

लेकिन इतनी महामारी इतने विनाशकारी तूफान और अब महाप्रलय के बाद भी मानव सुधरा नहीं था। अभी भी उसकी सर्वशक्तिमान बनने की इच्छाएं मरी नहीं थी। अभी भी वह धन सम्पदा का मोह छोड़ नहीं पा रहा था। 


इसी क्रम में समुद्री ख़ज़ाने को लेकर ये तीनों बड़े गुट अक्सर आमने-सामने आते रहते थे और इनके भीषण युद्ध में कई लोग मारे जाते थे। और लोगों से अधिक मरते थे इनके पाले हुए समुद्री जीव जो अब इनकी संगत में रहकर खुद को परम शक्तिशाली सिद्ध करने में लगे हुए थे।


इन बड़े कबीलों के अलावा कई अन्य गुटनिरपेक्ष समुदाय भी थे जो समुद्री तलहटी में बस गए थे और ये लोग समुद्र के नीचे जीवन को सामान्य और सुरक्षित बनाने की नही विद्याएँ खोजने के लिए अभी भी योग कर रहे थे। इनमें भी काफी सारे भारतीय, चीनी, रशियन और जर्मनी के लोग शामिल थे। ये लोग ऐसे तो बहुत शक्तिशाली थे लेकिन ये लोग कभी भी ख़ज़ाने के लालच में किसी से नहीं लड़ते थे। इनका कहना था कि समुद्र के नीचे हमें किसी ख़ज़ाने की नहीं बल्कि आत्मबल और योग की शक्तियों की आवश्यकता है जिससे हम अपने जीवन को पृथ्वी के जीवन जितना ही सरल बना सकें। ये लोग इन तीनों कबीलों को भी शान्ति का संदेश सुनाते रहते थे। और यही योगी लोग इन कबीलों की लड़ाइयाँ शान्त करवाकर इनके बीच सामंजस्य स्थापित करने का कार्य भी करते थे।


ऐसे तो योगी लोग कभी युद्ध नहीं करते थे किंतु इनके योग की शक्ति को सभी जानते थे और इनसे डरते थे। इसी लिए इनका पूरे जल क्षेत्र में सम्मान होता था।


एंडरसन के खोजी दस्ते ने अपनी खोज पूरी करके बताया कि, "प्रशांत महासागर में दक्षिण पूर्व के मध्य क्षेत्र में एक बहुत बड़ा जहाज डूबा हुआ है। जहाज बनाबट के हिसाब से उन्नीसवीं शताब्दी का लगता है और वह कोई मालवाहक व्यापारिक जहाज़ है।

एंडरसन ये सुनकर खुश हो गया उसने अपने कुछ चुनिंदा लड़ाके इकठ्ठे किये और चुपचाप इस अभियान पर जाने के लिए निकल पड़ा।

इस अभियान के लिए इन्होंने दो नीली व्हेल के मुर्दा शरीरों को अपनी पनडुब्बी बनाया हुआ था। इनके आगे दस घड़ियाल और चार शार्क इनको रास्ता दिखाते हुए सामने से आने वाले हर खतरे से निपटने को तैयार पूरी मुस्तेदी से आगे बढ़ रहे थे।

इनके इन पनडुब्बी व्हेलों को खेने का काम कुछ व्हेल और कुछ बड़े ऑक्टोपस कर रहे थे जो इनके बिल्कुल नीचे नीली व्हेल से चिपके हुए खुद को छिपाकर आगे बढ़ रहे थे।

लेकिन इन्हें इस बात का बिल्कुल भी अंदेशा नहीं था कि वेराडो को भी इस खजाने की भनक है और वह भी अपनी चार व्हेल भरकर सैनिक इधर भेज चुका है...


एंडरसन की सेना तेज़ी से किन्तु पूरी शान्ति के साथ खुद को छिपाती हुई आगे बढ़ रही थी। उधर वेराडो को भी पता लग गया था कि कोई जहाज पेसिफिक सागर में उसकी और शमशेर की सीमाओं के बीचोंबीच देखा गया है और उसने भी अपनी सेना चार पनडुब्बियों में भरकर उस ओर भेज दी थी।

इधर शमशेर के खेमें में कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी।

  "शमशेर भाई क्या हम लोग इस जहाज का माल पाने के लिए कुछ नहीं करेंगे?" शमशेर का एक खास साथी उससे पूछ रहा था।

"झामयू! हमें पता है कि उस जहाज का पता वेराडो और एंडरसन दोनों को ही लग चुका है, और दोनों ही किसी झपटमारों की तरह उधर लपक चुके हैं।

लेकिन अभी हमें कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं है। इन्हें आपस में लड़ने भिड़ने दो, उसके बाद इनकी शक्ति खुद ही कम हो जाएगी और इनमें से जो भी जीतेगा उसके खिलाफ हारने वाले को हम अपने साथ मिलाकर जीतने वाले दल पर हल्ला बोल देंगे और फिर सारा माल...! हाहाहाहा!!!" शमशेर कुटिल अंदाज़ में हँसते हुए बोला।

"लेकिन सरदार वह जहाज तो हमारी सीमा में है। और उसका कोई पाँच परसेंट हिस्सा वेराडो की सीमा में!" तभी शमशेर का एक अन्य साथी बोल पड़ा।

"अरे पटेल, हर समय व्यापारी की तरह मत सोचा कर! अरे हमें भी पता है जहाज हमारी सीमा में है। और बाद में हम इसी बात को बेस बनाकर जीतने वाले कि पूंछ पकड़ेंगे की उसने हमारी सीमा में आकर अपने सैनिक लड़ाये, मतलब हम पर हमला  किया। तुम्हें नहीं पता पटेल और झामयू कि हमारे अलावा एक और महाशक्ति समुद्र में रहती है। और वे हैं शांतिदूत योगी लोग। यदि हमने ऐसे सीधे किसी पर हमला

किया तो वे लोग हमारे खिलाफ हो जाएंगे और हम नहीं चाहते कि हम लोग एक महाशक्ति से पंगा लें।

लेकिन जब वेराडो और एंडरसन हमारी सीमा में आकर अपनी मच्छी लड़ायेंगे तो हम शान्ति स्थापित करने के नाम पर जिसे चाहे उसे पीट लेंगे। इस तरह हम माल भी पा जाएँगे और योगी लोगों की सहानुभूति भी।" शमशेर ने समझाया।

शमशेर की बात सुनकर झामयू और पटेल अपने सरदार की चालाकी पर खुद ही खुशी से फूल कर गुब्बारे बन गए।

"अच्छा सुनों! ऐसा नहीं है कि हम उधर से बिल्कुल लापरवाह रहेंगे। तुम दोनों अपनी दो-चार छोटी मच्छी उधर की सारी गतिविधियों पर निगरानी करने के लिए तैनात रखना। और तुम दोनों खुद बारी-बारी से उधर मौजूद रहना।" शमशेर ने कुछ सोचकर उन्हें आदेश सा दिया।

"जी सरदार, समझ गए।" दोनों ने मुस्कुराते हुए एक साथ कहा।


पेसेफिक की तलहटी में एक बहुत बड़ा जहाज पड़ा हुआ था। इसका आगे का हिस्सा बुरी तरह टूट चुका था जैसे ये किसी बड़े पर्वत से टकराया हो। जहाज की रंगत पानी की काई से बिगड़ चुकी थी। इसमें कई जंगली पेड़-पौधे कवक और शैवाल उग आए थे। 

जहाज के चारों ओर इकट्ठे हुए पत्थर, बालू एवं सीप-घोंघों के मृत कवचों का ढेर देखकर लग रहा था की जहाज को डूबे बहुत समय गुजर चुका होगा। 

एंडरसन की फौज जहाज से कोई दो सौ मीटर उत्तर-पश्चिम में स्थिर होकर उसपर नज़र रखे हुए थे कि कहीं ऐसा तो नहीं कोई पहले ही जहाज पर कब्जा करके बैठा हुआ हो।

  "हम कब तक ऐसे दूर से बस इस सामने पड़े जहाज को देखते रहेंगे सेड्रिक?" एक व्यक्ति ने अपने मुखिया से पूछा। 

"सामने देखो पहले, वेराडो की सेना हमसे पहले इधर पहुँच गयी है, जाओ जाकर सरदार को ये बात बताओ और फिर जो उनका आदेश हो आकर हमें बताओ।" सेड्रिक ने उस व्यक्ति को वापस जाने को कहा।

सेड्रिक एंडरसन की इस सैनिक टुकड़ी का मुखिया था और उसके साथ अलग-अलग व्हेलों में कोई सौ से अधिक मानव सैनिक मौजूद थे। इसके साथ ही छोटे-बड़े सब मिलाकर करीब सौ ही जलीय जीव भी इनकी सेना में सैनिक की भूमिका निभा रहे थे।


उधर वेराडो की सेना की कमान कैलिस के हाथ में थी जो कि एक काला कैरेबियन था। वह शरीरिक रूप से किसी दैत्य जितना बड़ा था और ताकतवर इतना कि एक ही मुक्के से शार्क को भी तारे दिखा देता था।

उसके साथ भी कोई सत्तर-अस्सी मनुष्य और  सौ से अधिक खूँखार जलीय जीव थे।


वेराडो की सेना जहाज के दक्षिण पूर्व में कोई सौ मीटर पर डेरा जमाए बैठी हुई थी। ये लोग एंडरसन की सेना से पहले यहाँ पहुँचे थे और सामने से एंडरसन की सेना को आते हुए देखकर रुक गए थे वरना ये तो उस जहाज को बाप का माल समझकर ही उसे उठाने चले थे।

"कैलिस सर! ये तो एंडरसन की मछलियां हैं! इसका मतलब उसे भी जहाज की खबर लग गयी है। ये लोग तो संख्या में हमसे ज्यादा भी लग रहे हैं। अब हम क्या करेंगे?" कैलिस के एक साथी ने डरते हुए पूछा।

"तुम जाकर सारी बात सरदार को बताओ और फिर जो वे कहेंगे हम वही करेंगे।" कैलिस ने भी अपने साथी को वापस भेज दिया।

"क्या वहाँ शमशेर सिंह की ओर से कोई भी गतिविधि नहीं हो रही?" सारी बात सुनकर एंडरसन ने सन्देशवाहक से सवाल किया।

बिल्कुल यही प्रश्न वेराडो ने भी अपने सन्देशवाहक से पूछा और उनके मना करने पर दोनों ही सरदार गहरे आश्चर्य से भर गए।

  "ऐसा कैसे हो सकता है कि शमशेर के क्षेत्र में कोई जहाज खोजा गया हो और शमशेर सिंह आराम से सो रहा हो। इसके पीछे अवश्य ही उसकी कोई गहरी चाल है। हमें सावधानी से पहले शमशेर की गतिविधियों की जानकारी लेनी होगी उसके बाद ही हम कोई भी ऐक्शन लेंगे। हम वेराडो से तो फिर भी निपट लेंगे लेकिन ये शमशेर सिंह...! हमें कोई ऐसा काम नहीं करना जिससे हम सीधे शमशेर गैंग के दुश्मन हो जाएँ।" वेराडो ने अपने आदमी को कहकर वापस भेज दिया।

उधर एंडरसन ने भी शमशेर की गतिविधियों की जानकारी लेने के लिए अपने सिखाये हुए चार मेंढक और दो पातर उधर भेज दिए।



एंडरसन और वेराडो दोनों ही जहाज के आस-पास एक दूसरे की उपस्थिति से परेशान हो गए थे। अभी तक जो दोनों उस जहाज को हलवा समझ कर हड़प कर जाना चाहते थे अब वही जहाज इन दोनों को लोहे के चने बनता दिखाई दे रहा था। दोनों को ही इस बात की भी हैरानी थी कि अभी तक शमशेर की ओर से कोई भी हरकत क्यों नहीं हुई। क्या उसे इस 'डूबे हुए ख़ज़ाने' में कोई दिलचस्पी नहीं है?? बड़ी विचित्र बात थी कि लूट में हमेशा आगे रहने वाला शमशेर इस इतने बड़े जहाज के उसके खुद के इलाके में होने पर भी बिल्कुल शांत बैठा हुआ था।

और इसी बात को पता करने के लिए एंडरसन और वेराडो दोनों ही अपने छोटे जासूस शमशेर की तरफ भेज चुके थे।


शमशेर भी बिना तैयारी के नहीं बैठा था, उसके जासूस हमेशा एंडरसन और वेराडो कि जासूसी में तैनात रहते थे। आज भी उसके जासूसों ने उसे खबर कर दी कि उनकी गतिविधियों पर निगरानी करने एंडरसन और वेराडो कि मेंढकी और पातर निकल पड़ी हैं।

  शमशेर का दरबार सजा हुआ था उसके लोग उसके सिंहासन के नीचे जमा थे। शमशेर एक बड़े से कछवे की पीठ पर बैठा हुआ था। वह कछुआ इतना बड़ा था जैसे कोई बड़ी चट्टान ही वहाँ पड़ी हुई हो। शमशेर एक डाल्फिर का सहारा लिए अधलेटा सा हो रहा था। उसने मगरमच्छ की खाल से बने कपड़े पहने हुए थे। उसके सिर पर कछुए के कवच का ही मजबूत मुकुट था और हाथ में वालरस मछली का बहुत बड़ा दाँत हथियार के रूप में शोभित था। उस दाँत के निचले भाग को सोने और मोतियों से सजाया गया था। शमशेर का ये दरबार किसी महाराजा के दरबार से कम नहीं था।

"महाराज जहाज के बारे में क्या सोचा आपने जो पैसिफिक में पाया गया है?" किसी दरबारी में खड़े होकर पूछा।

"शम्भू, हमें उस जहाज में कोई दिलचस्पी नहीं है। तुम्ही बताओ एक सदी पुराने उस जहाज से हमें क्या मिल सकता है। और फिर धरती के जीवनकाल की कोई भी वस्तु और धन यहाँ हमारे किस काम की? उस जहाज से कुछ भी खोजना केवल समय और श्रम की बर्बादी मात्र है।" शमशेर सिंह ने बहुत बेपरवाही से कहा।

"लेकिन महाराज जहाज तो हमारी सीमा में है तो वह तो हमारा ही हुआ ना?" किसी अन्य दरबारी ने धीरे से खड़े होकर पूछा।

"अरे कुछ नहीं यदि कोई हमारी सीमा से उस कबाड़ को हटाता है तो वह तो हमारी सहायता ही करता है। बिना शुल्क हमारी सीमा की सफाई में।" शमशेर जोर से हँसते हुए बोला।

काफी देर शमशेर के दरबार में जहाज की चर्चा रही जिसका उद्देश्य केवल सारे जासूसों को ये दिखाना था कि शमशेर को जहाज और उसके माल से कोई मतलब नहीं है।

सारे जासूस सन्तुष्ट होकर चले गए और शमशेर का दरबार बर्खास्त हो गया।


"सरदार शमशेर को जहाज के किसी  माल में कोई इन्टरेस्ट नहीं है। वह तो जहाज को वहाँ से हटने पर खुश है। वह कोई विरोध नहीं करेगा इस मामले में।" वेराडो का एक जासूस शमशेर के दरबार से लौटकर बता रहा था।

"हमें इस बात पर विश्वास तो नहीं है लेकिन तुम इस हिसाब से बता रहे हो हम तुम्हारी बात से इनकार भी नहीं कर सकते। हो सकता है शमशेर कोई और योजना  बना रहा हो। फिर भी एंडरसन से सामने से लड़ते समय भी हमें पीछे से शमशेर से सावधान रहना होगा।" वेराडो ने अपने जासूस से कहा और खुद जहाज की ओर चलने की तैयारी करने लगा।


उधर एंडरसन का जासूस उसे शमशेर के दरबार की सारी कार्यवाही बता रहा था। और एंडरसन उसकी बातों को सुनकर शमशेर के बारे में विचार कर रहा था।

"जैकी, ये जो सारी बातें तुम बता रहे हो ये सब उस शमशेर के चरित्र से बिल्कुल उलट है।" एंडरसन कुछ सोचकर बोला।

"लेकिन बॉस हमने कई दिन से उसपर जासूसी की थी और सच में शमशेर की उस डूबे हुए जहाज में मोई रुचि नहीं है।" जैकी नाम का वह जसूस पूरे विश्वास से बोला।

  "ठीक है हम सेड्रिक के पास जाते हैं और तुम अपने साथियों के साथ शमशेर पर नज़र रखो और उसकी जरा सी भी हरकत की सूचना तुरन्त हमें दो। और एक दो आदमी योगियों पर नज़र रखने के लिए भी भेज दो। शमशेर से तो एक बार को हम लड़ भी लेंगे, लेकिन योगियों से समुद्र में कोई भी प्राणी मुकाबला नहीं कर सकता इसलिए उनका विरोध इस मामले में जरा भी होता दिखे तो तुरंत हम अपनी गतिविधियों को रोक देंगे।" एंडरसन ने जैकी को समझाया और जैकी हाँ में सिर हिलाकर निकल गया।

उसके जाने के बाद एंडरसन भी अपने चुनिंदा लोगों के साथ हथियार बाँधे निकल पड़ा पेसिफिक की ओर।


पैसिफिक की अनन्त गहराइयों में एक विशाल जहाज पड़ा हुआ था एक लंबे समय से बिना किसी हलचल के। दूसरी ओर उसकी दो दिशाओं में बड़ी-बड़ी सेनाओं के जमघट लगा हुआ था।

उसके पीछे था वेराडो का सैन्य बल जो जहाज से कोई  दो सौ मीटर दूर था और एंडरसन की सेना की गतिविधियों पर दृष्टि जमाये हुए था। 

उधर एंडरसन की सेना भी जहाज के बिल्कुल नज़दीक पहुँच रही थी।

  लगभग चार दिन से यही स्थिति बनी हुई थी। दोनों सेनाएं तिल-तिल करके आगे बढ़ रही थीं और इन दोनों के जसूस शमशेर पर नज़र रखे हुए थे।

पाँचवे दिन दोनों ही सेनाओं के सब्र टूट गया और दोनों सेनाएं एक साथ आगे बढ़ीं...!

"इस जहाज को सबसे पहले हमने देखा है इसलिए इसपर हमारा एकाधिकार है।" एक मूंगे की चट्टान का भोंपू पकड़े सेड्रिक जोर से चिल्लाकर बोला। भौंपू से उसकी आवाज और भारी होकर बिल्कुल किसी भैंसे जैसी निकल रही थी।

  "लेकिन हम कैसे मान लें? जब हम यहाँ पहुंचे तब यहाँ हमारे अलावा अन्य कोई भी नहीं था।"कैलिस ने भी मुँह के आगे सीप का भौंपू लगाकर जवाब दिया।

"किसी के होने या ना होने से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। ये जहाज हमारा है और हम किसी को इसकी एक कील भी नहीं ले जाने देंगे। तो समझ लो जो भी हमारे और उस जहाज के बीच आएगा उसका टिकट हम गॉड के घर का काट देंगे।" एंडरसन ने भौंपू सेड्रिक से छीनते हुए गुस्से से भरकर कहा।

"कौन कितने पानी में है उसका फैसला भी हो ही जायेगा। लेकिन जहाँ तक सवाल जहाज और उसके माल का है तो वेराडो किसी को अपना कटा हुआ नाखून ना दे, फिर ये तो पूरा जहाज है और वेराडो इस तक सबसे पहले पहुँचा है। तो अब ये सब वेराडो का है। और तुम्हारे लिए फ्री की सलाह यही है कि लौट जाओ अपने-अपने घर जिंदा रहोगे नहीं तो फिर मत कहना कि बताया नहीं था और सीधे टपका दिया। ऐसे भी मेरे घड़ियाल बहुत समय से आदमी का मांस नहीं चखे हैं। और मेरे एक इशारे के बाद उन्हें रोक पाना खुद मेरे बस में भी नहीं होगा।" वेराडो ने भौंपू अपने हाथ में लेकर बहुत मजाकिया लहजे में ये बातें कहीं। लेकिन वेराडो को जानने वाले जानते थे कि वह बातें जितनी कॉमिक करता है उतना ही वह क्रूर भी है। किसी की लाश से खाल उतार कर उसकी शेरवानी बना लेना उसके लिए बच्चों का खेला है।

"कोई यहाँ ये ना समझे कि हम उसकी बातों से डर गए। बातें करना बहुत आसान होता है, लेकिन जब कान पर तलवार खनकती है तो अच्छी-अच्छी पतलून भीग जाती हैं। जहाज का माल हमारा है और हम इसे अपने साथ लेकर ही जाएंगे। बाकी किसी को अपनी और अपने साथियों की लाशें हमें सीढ़ी बनाने के लिए देनी हैं तो उनकी मर्जी। हमारे हथियार भी अपनी धार परखने को बेचैन हैं।" एंडरसन ने भी वेराडो के ही अंदाज़ में जवाब दिया।

"ठीक है फिर आ जाओ देख ही लेते हैं किसमें कितना है दम। आओ मेरे साथियों जीत लें ये जंग हम।" वेराडो ने शायराना अंदाज़ में कहा और दोनों सेनाएं धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगीं…


वेराडो ने कैलिस की इशारा किया और वह अपनी सेना के साथ धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। वेराडो की सेना अब पनडुब्बियों से बाहर आ गयी थी और उनके पास विचित्र हथियार दूर से ही चमक बिखेर रहे थे।

इस दल के आगे चार बहुत बड़ी शार्क थीं, उनके पीछे दस घड़ियाल थे और दोनों साइड में बहुत बड़े बड़े केकड़ों की कतारें थीं जो अपने दोनों बाजू आपस में टकरा चिंगारियां निकाल रहे थे। उस घेरे के बीच में कोई दो ढाई सौ हथियार बन्द सैनिक थे जिनके कवच घड़ियाल की मजबूत पीठ से बने थे और सिर पर कछुए की खोपड़ी से बने सुरक्षा कवच अर्थत टोपियां थीं। कैलिस एक बडी पातर पर सवार था। कैलिस के हाथ में किसी धातु की बनी बहुत बड़ी तलवार थी और दूसरे हाथ में ढाल के रूप में कछुए की खोपड़ी पकड़े हुए था। कैलिस एक बहुत बड़े डील-डौल वाला काला केरेबियन था। वह उस चट्टान जैसे बड़े पातर पर बैठा हुआ किसी खूँखार भैंसे जैसा ही लग रहा था।

कैलिस के पीछे चार कतार आत्मघाती सैनिकों की थीं जो वेराडो के सुरक्षा भित्ति के कमांडो थे जो ना मरने से डरते थे और ना ही मारने से। उनमें से हर एक इतना शक्तिशाली था कि मगरमच्छ को जबड़ों से पकड़कर चीर सकता था।

उसके पीछे खुद वेराडो एक दरियाई घोड़े को लगाम लगाए पालतू बनाकर अपनी सेना का हौसला बढ़ा रहा था। वेराडो खुद भी बहुत बड़े शरीर वाला काला अफ्रीकी मानस था। उसकी ताकत इतनी अधिक थी कि वह एक ही घूँसे में बड़े-बड़े कछुओं को भी फोड़ डालता था। वेराडो बहुत रंगीन तबियत का मालिक था और वह हमेशा एंडरसन की गोरी प्रेमिकाओं के सपने देखता रहता था। सुंदर और गोरी लड़कियां उसकी जितनी बड़ी कमजोरी थीं उतनी ही बड़ी ताकत था उसका गुस्सा। वह बातें जितनी मजाकिया करता था गुस्से में टक्करें भी उतनी ही खूँखार तरीके से मारता था। उसके घूँसे और सिर की टक्कर से कितनी ही व्हेल, मगर और सार्क धराशायी हो चुकी थीं। वेराडो के ये सुरक्षा मित्र भी उसकी ही जितनी ताकत रखते थे। वह इन सब के साथ हमेशा मल्ल युद्ध का अभ्यास करता था। वह स्त्रियों के मामले में जितना दिलफेंक था उससे अधिक बदकिस्मत भी। कोई भी सुंदर लड़की अभी तक उसे नहीं मिली थी। उसकी दोनों प्रेमिकाएं अफ्रीकी मूल की ही थीं। जिनमें एक थी सेलिना जो केन्याई लड़की थी। वह रँग में काली अवश्य थी लेकिन उसका चेहरा इतना आकर्षक था कि किसी की भी नज़र उसपर ठहरे बिना आगे नहीं बढ़ सकती थी। और दूसरी थी युगान्डा मूल की लैटिना कैरिटोस। लैटिना भी बहुत सुडौल और आकर्षक थी। लेकिन वेराडो का सपना था गोरा रँग। वह इस मामले में कई बार एंडरसन एवं उसके समूह की लड़कियों के हाथों अपमानित हो चुका था और वह इस बात का भी बदला एंडरसन एवं उसके समूह की लड़कियों से लेना चाहता था।


उधर एंडरसन की फौज थी, गोरे यूरोपियन समूह के लोग जो अभी भी खुद को सर्वश्रेष्ठ मानते थे। ये और बात थी कि पृथ्वी पर जीवन की तबाही के सबसे बड़े गुनहगार यही गोरे लालची लोग थे।

इन्ही की सर्वशक्तिमान बनने की लालसा ने विनाशक आविष्कार किये थे जो आगे चलकर धरती से जीवन समाप्त होने का कारण बने थे।

एंडरसन एक बहुत लम्बे कद का पतला किन्तु सुडौल, लगभग सफेद दिखने वाला अमेरिकी व्यक्ति था। वह दिखने में इतना आकर्षक था कि जो उसे देखता बस देखता ही रह जाता। उसके व्यक्तित्व के आकर्षण में ही उसकी प्रेमिकाओं की लिस्ट बहुत लंबी थी। उसकी इसी विशेषता के कारण वेराडो उससे जलता था। उसकी फौज का नेतृत्व सेड्रिक के हाथों में था। सेड्रिक खुद को शैतानों का मुखिया समझता था और क्रूर तरीकों से लोगों की हत्याएं करके खुश होता था। उसका प्रमुख हथियार था पिरहना मछली के तीखे दाँतों से बना बघनखा। उसके सिर से लेकर गर्दन और कंधों पर मगरमच्छ की पीठ का कवच था और सिर पर  मजबूर घोंघे का बना मुकुटनुमा टोपा। सेड्रिक एक बहुत बड़े केकड़े पर बैठा हुआ था जिसके पंजे बिल्कुल किसी जे सी बी के हाथ की तरह थे।

उसके आगे उसकी सेना की सुरक्षा घेरे में थे विशाल मगरमच्छ और ऑक्टोपस। उनके पीछे सेड्रिक के साथ कुछ दो सौ हथियार बन्द सैनिक। उनके पीछे अपने सुरक्षा कमांडोज से घिरा एंडरसन जो एक एनाकोंडा के  सिर पर सवार था और दो अन्य एनाकोंडा उनसे दोनों ओर से सुरक्षा घेरा बना रहे थे। एंडरसन के दाएं हाथ में किसी मगरमच्छ की खाल से बना हुआ एक हंटर नुमा हथियार था और दूसरे में एक तेज धार की तलवार जो शायद सोने से बनी हुई थी। एंडरसन के आदेश एवं

सेड्रिक के निर्देश में ये खूंखार सेना भी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी।

उधर वेराडो ने भी कैलिस को अपना दल आगे बढ़ाने का संकेत कर दिया था और उसके सैनिक जोश में भरे सदे हुए कदमों से आगे बढ़ रहे थे। 

सेड्रिक ने अपने मगरमच्छों को हमले का संकेत किया और उसके सारे मगर मुँह खोले तेजी से दुश्मन पर लपके।

उधर कैलिस के निर्देश पर खूँखार भूखी शार्कों ने अपने जबड़े खोल दिये और सारे घड़ियाल भी गुस्से से भरे पानी में पूँछ फटकारने लगे।


सेड्रिक और कैलिस आमने सामने थे। उनकी सेनाएं युद्ध के लिए मचल रही थीं। बहुत समय से इन समुद्री कबीलों ने कोई लड़ाई नहीं लड़ी थी। दोनों सेनाओं के जांबाज पूरे जोश से भरे हुए थे और मुस्तेदी से सामने नज़र रहे हुए आगे बढ़ रहे थे।

तभी कैलिस के संकेत पर दो घड़ियाल पानी के अंदर मिट्टी में समा गए। ये इनकी एक घातक चाल थी। अचानक ये घड़ियाल सेड्रिक के बिल्कुल सामने उसकी घेराबंदी के बीचोबीच जमीन से बाहर निकले और एक साथ सेड्रिक पर झपट पड़े। सेड्रिक जो कि एक विशाल केकड़े पर सवार था उसने अपने पैर के इशारे से अपने केकड़े को ऊपर ना कर लिया होता तो वह निश्चित ही इन घड़ियालों के घातक जबड़ों में फँस कर पिस चुका होता। लेकिन सेड्रिक बहुत चालाक और खूंखार लड़ाका था उसने झट से झुककर अपनी तेज़ तलवार चलाई और कैलिस के एक घड़ियाल की गर्दन भेद दी। सेड्रिक के घातक बार से वह घड़ियाल एक जोर की हिचकी लेकर गिर गया। लेकिन जब तक सेड्रिक पलटता तब तक वह दूसरा घड़ियाल जमीन में गायब हो चुका था।

सेड्रिक अफसोसजनक चेहरा बनाकर अभी कैलिस की सेना की तरफ पलटा ही था कि अचानक उसे बहुत जोर का धक्का लगा जैसे किसी ने उसके केकड़े के पेट पर जोरदार बार किया हो। यह वही दूसरा घड़ियाल था जो मिट्टी में चला गया था और अब अपनी पूरी शक्ति लगाकर नीचे से सेड्रिक के केकड़े पर अपना घातक बार कर चुका था। ये टक्कर इतनी तेज थी कि सेड्रिक गिरते-गिरते बचा। लेकिन जल्दी ही सेड्रिक का केकड़ा सँभल गया और घूमकर फिर उस घड़ियाल के सामने आ गया। अबतक सेड्रिक को बहुत तेज़ गुस्सा आ गया था तो वह एक झटके से सरककर केकड़े के पंजे पर आ गया और उसने अपने दोनों हाथों से उस घड़ियाल के जबड़े पकड़ लिए। घड़ियाल ने छूटने के लिए काफी पूँछ पटकी लेकिन सेड्रिक के घातक बघबख की पकड़ में जो एक बार आ जाये उसका बच निकलने का कोई भी प्रयास सफल होना लगभग असंभव ही था। सेड्रिक घड़ियाल के जबड़े पकड़ कर अपना पूरा जोर लगाने लगा। घड़ियाल का मुँह खुलने लगा, उसके जबड़े फैलने लगे और वह दर्द से अपनी पूँछ पानी में पटखने लगा।

कुछ ही पलों में सेड्रिक उस घड़ियाल को बीच से चीर कर फेंक चुका था। ये देखकर एक बार तो कैलिस के आगे बढ़ते जांबाज ठिठक गए लेकिन फिर कैलिस के जोश दिलाने पर फिर से सेना हमले के लिए आगे बढ़ने लगी।

उधर सेड्रिक की सेना सेड्रिक की इस विजय पर उत्साहित होती हुई हो...! हो...! करके शोर मचाती हुई आगे बढ़ने लगी। सेड्रिक ने जोर से चीख कर कुछ कहा जिसके फलस्वरूप सेड्रिक की सेना के विशालकाय मगरमच्छ मुँह खोलकर तेजी से कैलिस के दल पर झपट पड़े उनके साथ ही सारे ऑक्टोपस भी अपनी खून चूसने वाली भुजाओं को फैलाये शिकार की तलाश में तेज़ी से झपटे।

इन्हें आता देखकर कैलिस ने अपनी शार्क सेना को सतर्क कर दिया और उन्होंने अपने जबड़े कुछ और बड़े कर लिए लेकिन ये मगरमच्छ इन भूखी शार्क मछलियों के मुँह तक पहुँचने से पहले ही जमीन की ओर मुड़ गए और तेजी से शार्कों के नीचे से निकलते हुए सेना के बीच पहुँचने लगे। जल्दी ही इन शार्कों और उनके पीछे की घड़ियाली सेना को ये बात समझ आ गयी और अब शार्कों ने अपने जबड़ों का एंगल बदल लिया। इस बार शार्क कामयाब रहीं और देखते ही देखते आठ-दस मगरमच्छ इन भूखी शार्कों के निवाले बन गए। उधर कैलिस के घड़ियाल सेड्रिक के मगरमच्छों को ऐसे शार्कों से बचकर सेना के बीच में आते देखकर जमीन में पूँछ धँसाये एक के ऊपर एक खड़े होकर सुरक्षा दीवार बनाकर खड़े हो गए और कैलिस के मगरमच्छ बहुत तेज़ी से इन घड़ियालों से टकराये।

अब समुद्र की गहराई में एक अलग ही नजारा था। दो सौतेले भाई मगर और घड़ियाल दो अलग-अलग मनुष्यों के लिए आपस में मल्लयुद्ध कर रहे थे। घड़ियालों और मगरमच्छों की ये कुश्ती अनोखी थी जो शायद ही पहले कभी किसी ने देखी होगी। मगरमच्छ अपने तेज़ पंजों से घड़ियालों के पेट की कोमल चमड़ी फाड़ डालना चाहते थे तो घड़ियाल अपने घातक जबड़ों से पीसकर मगरमच्छ का चूरा कर देने को उद्धत थे। इस घमासान में इनकी पूँछ पटकने से उछली  बालू और मिट्टी से समुद्र के इस हिस्से का पानी गदला हो चुका था और अब ये अविस्मरणीय अकल्पनीय दृश्य धुँधला हो गया था।

उधर चार मगरमच्छ जो इस सब बवाल से बचकर कैलिस के सामने पहुँचने में कामयाब रहे थे अब कैलिस की पातर (एक बहुत बड़े आकार का कछुआ की प्रजाति का ही प्राणी जिसकी पीठ किसी परात जैसी बड़ी और चिकनी होती है। इसपर आराम से बैठकर सवारी की जा सकती है।) पर टक्कर मार रहे थे। ये मगरमच्छ उस पातर को उल्टा कर देना चाहते थे ताकि केलिश नीचे गिर जाए और ये भूखे दरिंदे उसको अपना भोजन बना सकें।

ये देखकर कैलिस ने अपनी पातर को ठोकर मारी और वह उसका इशारा समझ कर पानी की गहराई में नीचे हो गयी। तभी दो मगरमच्छ बहुत जोश से भरे कैलिस पर  झपटे ठीक उसी समय कैलिस ने अपने दोनों घूँसों का भरपूर बार उनपर किया और दोनों ही मगरमच्छों की कमर टूट गयी। अब वे दोनों अधमरे होकर पानी की तलहटी में गिरते जा रहे थे। ये देखकर बाकी दोनों मगरमच्छ वापस भागने के लिए पलटे लेकिन कैलिस के इशारे पर उसकी चतुर पातर ने एकदम से पैंतरा बदला और कैलिस ने झपटकर उनमें से एक मगरमच्छ की पूँछ पकड़ ली।

कैलिस ने अपने दोनों हाथों से उस मगरमच्छ को इतने  जोर से दबाया की दर्द से उसकी जीभ बाहर निकल आयी। बस यही उस बेचारे की सबसे बड़ी भूल साबित हुई। कैलिस ने उस मगरमच्छ की जीभ पकड़कर पूरी शक्ति से खींची और अब वह मगरमच्छ अपनी जीभ से मुँह धो बैठा। कैलिस मगरमच्छ की जीभ हाथ में पकड़े उसे घुमाते हुए  बहुत बीभत्स हँसी हँस रहा था और उसके इस रूप को देखकर सेड्रिक की आगे बढ़ती सेना के पाँव जैसे जाम हो गए थे।



सेड्रिक और कैलिस की शक्ति देखकर उनके साथी बहुत खुश हो रहे थे और दूसरी तरफ दोनों के ही विपक्षी सैनिक डरे हुए थे कि कहीं उनकी गर्दन इन शैतानों के पंजे में ना फँस जाए।

अब सेड्रिक के मगर और कैलिस के घड़ियाल भी सीधे इनके सामने आने से बच रहे थे।

अब सेड्रिक ने सीधे कैलिस को ललकारा,"इन जानवरों को मारकर खुद को अगर बहुत बहादुर समझ रहा है कैलिस तो ये तेरी भूल है। इस आत्ममुग्धता को छोड़ और वीरों की तरह सीधे-सीधे मेरा मुकाबला कर।"

    "मुकाबला!! हाहाहाहा!!, तू करेगा मेरा मुकाबला सेड्रिक? अरे कायर तू खुद अपने मगरमच्छ की फौज के पीछे ही सुरक्षित है। जा अपने मालिक एंडरसन को भेज, तेरे नाज़ुक बदन से मेरे वार नहीं झिलेंगे!", कैलिस ने जोर से हँसते हुए कहा।

  "सेड्रिक हूँ मैं...! मेरे जीवित रहते मेरे बॉस को तुझ जैसे कायर के सामने आना पड़े तो लानत है मुझपर। आ चल आज तुझे अहसास करा ही देता हूँ कि असली वीर क्या होता है।" सेड्रिक गरजा और उसने अपना केकड़ा कैलिस की ओर बढ़ा दिया।

सेड्रिक को बढ़ता देखकर उसके साथी भी उत्साह से भरे नारे लगाते हुए उसके पीछे हो लिए। उधर सेड्रिक को आता देखकर कैलिस के साथी और घड़ियाल घबराकर कर एक ओर हटते हुए सेड्रिक को रास्ता देने लगे।

"ले संभाल मेरा वार", सेड्रिक ने एक लम्बी चेन में बंधा हुआ काँटों वाला गोला हवा में घुमाकर कैलिस की ओर उछालते हुए कहा।

  कैलिस ने उसे देखकर बिना विचलित हुए अपनी जेब से चाँदी जैसी चमकदार एक चकरी निकाली और उसे घुमाकर एक विशेष कोण पर फेंक दिया। आश्चर्य की उस चकरी ने सेड्रिक की चेन और गोले को अलग-अलग कर दिया।

  अभी वह गोला छिटकता हुआ कैलिस की तरफ आ ही रहा था कि कैलिस के इशारे पर उसकी पातर नीचे जाकर झटके से ऊपर आयी और सेड्रिक की ओर बढ़ी। इसी फुर्ती के बीच कैलिस गोले से बचते हुए उसकी चेन पकड़ चुका था।

कैलिस ने उस चेन को इतनी शक्ति से झटका की उस से सेड्रिक अपना संतुलन खो बैठा और अपने केकड़े की पीठ से आगे की ओर गिरा गया। लेकिन गिरते-गिरते भी उसने केकड़े की एक भुजा पकड़ ली और अपने हाथ में लिपटी चेन छोड़ दी। इससे वह खुद को तो संभाल ही लिया साथ ही चेन के झटके से कैलिस भी चोट खा गया।

इस बात से चिढ़कर कैलिस ने अपनी पातर आगे बढ़ा दी। और अब भयंकर युद्ध शुरू हो गया। घड़ियाल और  मगर आपस में उलझ गए। केकड़े और ऑक्टोपस आपस में भिड़ गए। ऐसे ही बाकी सारे सैनिक और जानवर भी अपने-अपने जोड़ के योद्धाओं से लड़ने लगे। 

सेड्रिक और कैलिस भी अब आमने-सामने की लड़ाई लड़ रहे थे और अपने अस्त्र-शस्त्र ज्ञान का भरपूर प्रदर्शन कर रहे थे। दोनों ही योद्धा युद्धकला और बल में एक से बढ़कर एक साबित हो रहे थे। दोनों ही एक दूसरे के वारों को काट रहे थे और घातक वार अपने विपक्षी पर कर रहे थे। इधर युद्ध की भयावहता देखकर वेराडो और एंडरसन भी युद्व क्षेत्र की ओर बढ़ने लगे।

अभी कैलिस ने सेड्रिक के केकड़े के दोनों बाजू पकड़कर एक जोर का झटका मारा था जिससे उस केकड़े को बहुत चोट आई थी और सेड्रिक नीचे गिर गया था। सेड्रिक के गिरते ही कैलिस ने भी अपनी पातर पर से जम्प लगा दी और सेड्रिक का गला पकड़कर झूल गया।

सेड्रिक इस अप्रत्याशित हमले के लिए तैयार नहीं था फिर भी उसने अपने बचाव में अपने बघबख कैलिस की बाजू में गढ़ा दिए और उसके हाथों से अपना गला छुड़ाने का प्रयास करने लगा। सेड्रिक को पता था कि कैलिस की बाजूओं की शक्ति किसी चट्टान को भी मसल सकती है अतः उसने शीघ्र ही खुद को छुड़ाने के लिए कुछ नहीं किया तो ये युद्ध उसके जीवन का अंतिम युद्ध बन जायेगा।

सेड्रिक के बघबख कैलिस के हाथों में धँसकर उसका खून बहा रहे थे लेकिन इससे कैलिस की पकड़ पर कोई असर नहीं हो रहा था। वह आज अपनी पूरी शक्ति लगाकर सेड्रिक को खत्म कर देना चाहता था।

अभी ये जोर आजमाइश चल ही रही थी कि एंडरसन की इशारे पर उसके एनाकोंडा ने अपनी पूँछ बढ़कर कैलिस को लपेट लिया और उसे दबाकर खींचने लगा। ये देखकर वेराडो को बहुत गुस्सा आया और वह चीखकर बोला, "एंडरसन!! जब दो योद्धा आपस में मल्ल युद्ध लड़ रहे हों और दोनों जिंदा हों तो किसी तीसरे को उनके बीच नहीं आना चाहिए अन्यथा अंजाम अच्छा नहीं होता।",

और ये कहकर वेराडो ने अपना दतियाई घोड़ा उधर बढ़ाते हुए एक कछुए को उठाकर पूरी ताकत लगाकर इस एनाकोंडा के सर पर दे मारा। इस मार से बेचारे एनाकोंडा को पानी में आसमान के दर्शन हो गए और उसके आगे सितारे झिलमिलाने लगे।

लेकिन उसकी पूँछ के दबाब और सेड्रिक के बघबख के घाव से कैलिस की पकड़ पलभर को कमज़ोर पड़ी और इसी जस लाभ उठाकर कैलिस के हाथों को झटकते हुए सेड्रिक उसकी पकड़ से छूटकर एक मगरमच्छ की पीठ पर सवार हो गया और खुद को संभालने लगा।

कैलिस के बाजू भी बुरी तरह जख्मी हो गए थे तो वह भी कछुए की पीठ पर बैठकर अपनी सेना के बीच पहुँच गया और उसके साथी उसके घावों पर पट्टी बांधने लगे।

  इस घटना से वेराडो बहुत गुस्सा हो गया था और अब वेराडो और उसका दरियाई घोड़ा मौत बनकर एंडरसन की सेना पर टूट पड़े। 

वेराडो की तबाही देखकर एंडरसन भी अपने तीनों एनाकोंडा बढ़ाते हुए वेराडो की ओर लपका।

इधर कैलिस फिर से अपनी पातर पर बैठकर तलवार घुमाते हुए अपनी सेना के साथ एंडरसन की ओर बढ़ने लगा। 

सेड्रिक की गर्दन कैलिस की पकड़ से बुरी तरह जख्मी हो गयी थी और वह अभी भी संभल नहीं पा रहा था तो उसे उसके साथी सुरक्षित स्थान पर ले गए।

वेराडो और कैलिस दोनों ओर से एंडरसन की तरफ बढ़ रहे थे। एंडरसन के विशालकाय साँप फुफकारते हुए इनपर हमले के लिए घात लगा रहे थे।


7. 


वेराडो दायीं ओर से और कैलिस बायीं ओर से घात लगाए एंडरसन की ओर बहुत सावधानी से आगे बढ़ रहे थे। वेराडो के हाव-भाव देखकर लगता था मानों आज वह एंडरसन को मारकर उसके साम्राज्य का अधिपति बन ही जायेगा इधर कैलिस भी अपनी बहादुरी और स्वामिभक्ति दिखाने के लिए पूरी तरह समर्पित था।

 इधर एंडरसन के विशालकाय समुद्री साँप अपना चट्टान जैसा बड़ा सिर इधर उधर घुमाते हुए फूं-फूं करके अपना गुस्सा ज़ाहिर कर रहे थे।

  एंडरसन बीच में जिस एनाकोंडा के गर्दन पर बैठा हुआ था वह कुछ सावधान और ज्यादा ही चतुर मालूम होता था। वह बाकी दोनों राइट एवं लेफ्ट की तरह अपने सर को तेजी से इधर-उधर नहीं लहरा रहा था बल्कि अपने सर को स्थिर रखकर अपनी आंखों की तेजी से इधर उधर घुमाते हुए दोनों ओर बराबर नज़र रखता हुआ आगे बढ़ रहा था। उसने अपनी पूँछ को हथियार बनाया हुआ था और जितना सावधानी से उसने अपने सर को साध रखा था उतनी ही लापरवाही से वह अपनी पूँछ को पटक रहा था।

 उधर वेराडो ने अपने दरियाई घोड़े को कुछ इशारा किया और पलभर के लिए उसकी नज़र कैलिस की नज़रों से मिलीं बस इसी पल में इन दोनों की आंखों में कुछ सांकेतिक बात हुई और कैलिस ने भी कुछ कहते हुए अपने कछुए की पीठ थपथपा दी।

 

    अभी एंडरसन इन्हें देखकर कुछ समझने का प्रयास कर ही रहा था तभी ये दोनों अचानक एंडरसन के राइट लेफ्ट के सामने आकर तेज़ी से पीछे मुड़ गए। एंडरसन के दोनों एनाकोंडा इन्हें आसान चारा समझकर इनके पीछे लपके लेकिन तभी इन दोनों ने तेज़ी से दिशा परिवर्तन किया और फिर एक दूसरे की ओर तेज़ी से बढ़े। एंडरसन के दोनों समुद्री साँप अपने मुँह को गुफा बनाते हुए इनके पीछे लपके और जैसे ही ये दोनों एकदम पास आये इन्होंने अपनी गति बढ़ा दी और उसी तेजी से नीचे बैठ गए।

 बस उसी रफ्तार के जाल में एंडरसन के दोनों साँप फँस गए और जो मुँह उन्होंने वेराडो और कैलिस को निगलने के लिए फाडे थे वे आपस में ही एक दूसरे में उलझकर बुरी तरह घायल हो गए।

 ये टक्कर इतनी जोरदार थी कि तेज़ 'धड़ाम' की आवाज दूर तक सुनाई दी और जब वे दोनों अलग हुए तो दोनों के मुँह खून से धुले हुए थे और दोनों ही अपने सामने के दाँतों से हाथ धो बैठे थे।

 इस टक्कर के बाद उन दोनों का लड़ना तो दूर अब वे दोनों ठीक से उठ भी नहीं पा रहे थे तो एंडरसन के संकेत पर उसके घोडा बने एनाकोंडा ने अपनी पूँछ से उन दोनों को पीछे धकेल दिया। अब इस लड़ाई में सारी जिम्मेदारी उस बेचारे पर ही आ गयी थी। ऐसा वह समझ रहा था कि अब इस लड़ाई और एंडरसन इन दोनों का बोझ उसके कंधों पर है।

 और उसी बोझ के तले दबा वह बेचारा अपना दिमागी संतुलन खो बैठा और एंडरसन के संकेत को अनदेखा करता हुए वेराडो पर झपट पड़ा।

 वेराडो उसे आता देखकर सावधान हो गया और उसने पैंतरा बदल कर तेजी से अपनी चकरी उसकी तरफ उछाल दी। वेराडो कि तेज़ चकरी के वार से उस बेचारे एनाकोंडा की गर्दन लगभग आधी कट गई और उसका सिर एक ओर झूल गया।

 अब एंडरसन बिना सवारी का हो गया। और नीचे गिरने लगा। एंडरसन की उसी हालत का फायदा उठाते हुए कैलिस ने आगे बढ़कर अपनी तलवार का भरपूर बार एंडरसन की पूँछ पर किया और उसकी पूँछ चिंगारियां निकलती हुई एंडरसन से अलग हो गयी। उसी के साथ ही एंडरसन को साँस लेने में तकलीफ होने लगी और वह मुँह से बुलबुले निकलने लगा। एंडरसन ने अपने सीने पर बंधा हुआ उस पूँछ से जुड़ा एक गुब्बारेनुमा जैकेट उतार फैंका और बार-बार अपनी छाती की ठोकने लगा जैसे उसका दम घुट रहा हो। 

 अभी एंडरसन तड़फकर नीचे गिरा ही था तभी अचानक बहुत तेज़ शोर होने लगा। उस आवाज़ को सुनकर दोनों सेनाएं विश्राम की अवस्था में आ गयीं और सारे योद्धा सम्मान में झुककर खड़े हो गए। वेराडो और कैलिस के चेहरे अचानक ऐसे लटक गई जैसे किसी बच्चे से किसी ने उसकी चिज्जी छीन ली हो।

 "क्या हुआ यहाँ? क्या यही युद्ध के नियम हैं कि किसी का श्वशनतन्त्र की निष्क्रिय कर दिया जाए।

 योगी श्रीनन्द आप शीघ्र एंडरसन को दूसरा श्वशनतन्त्र लगाइए और इस लड़ाई के लिए जिम्मेदार सभी लोगों और जल में निवास करने वाले सभी समूहों के मुखियाओं की एक सभा बुलाइये। हम उस तरह नियम तोड़ने और अकारण युद्ध करके समुद्री जीवों के जीवन से खिलवाड़ करने वालों को कभी क्षमा नहीं करेंगे। अति शीघ्र ये सारा कचरा साफ करवाइए और सभा में सभी के उपस्थित होते ही हमें सूचना दीजिए", एक मजबूत कदकाठी का बलिष्ठ साधु वेशधारी अधेड़ गरजकर कह रहा था और सभी लोग उसकी आवाज से ही थर थर कांप रहे थे।

  "सब ही जायेगा गुरुदेव, आप निश्चिंत रहें", योगी श्रीनन्द ने आगे आकर हाथ जोड़कर झुकते हुए जवाब दिया।

 "इन लोगों को किसने बुलाया, हम आज ये लड़ाई जीतने ही वाले थे। उसके बाद जो कुछ भी एंडरसन का है वह सब मेरा होता, और तुम्हारा भी" वेराडो ने दबी जुबान में कैलिस से पूछा।

 "मुझे लगता है ये काम जरूर शनशेर और उसके आदमियों का है। वे कभी नहीं चाहते कि कोई भी ताकत उनसे ज्यादा आगे बढ़े।" कैलिस ने जवाब दिया।

तब तक योगी श्रीनन्द ने एंडरसन को नई जैकेट पहनकर उसकी पूँछ फिर से एंडरसन को लगाकर कुछ बटन दबा दिए। कुछ ही पलों में अपनी गर्दन को सहलाता हुआ एंडरसन उठ खड़ा हुआ।


 "जैसा कि आप सभी ने स्वामी जी की बात सुनी, मैं फिर वही बात दोहरा रहा हूँ कि आज यहाँ जो भी हुआ वह मनुष्यों के समुद्र में बसने से लेकर आज तक कभी भी नहीं हुए। आज उस नियम को तोड़ा गया है जो बहुत पहले आपसी सहमति से बनाया गया था कि किसी भी लड़ाई में कोई भी पक्ष किसी कर साँस लेने के यंत्र को नुकसान नहीं पहुंचायेगा। आप लोगों को क्या लगता है कि हम योगी लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं। हमें पता नहीं चलता कि यहाँ कौन क्या खिचड़ी पका रहा है। अरे हम लोग मनुष्यों के जीवन को बचाये रखने के लिए नित कितने अनुसंधान कर रहे हैं और तुम लोग अपने स्वार्थ के चलते मनुष्य जीवन को ही मिटा रहे हो।

 क्या सोचा था एंडरसन और वेराडो? क्या समुद्र में डूबे इस जहाज का हमें नहीं पता था? लेकिन हम सोचते थे कि तुम लोग आपस में सुलह कर लोगे और ये सारा सामान जो भी इस जहाज में है उसे मानव जीवन के कल्याण नें लगाओगे। लेकिन नहीं!! तुम लोग तो एक दूसरे को ही मिटाने पर जुटे हो।

 अब जैसा कि गुरुजी ने कहा है यहाँ जो भी नुकसान हुआ है तुम लोग उसकी भरपाई करो और तुम्हारी लड़ाई में जो ये कचरा फैला है उसे साफ करो। बाकी लोग ध्यान से सुनें, जितने भी समूह समुद्र में हैं उन सभी के मुखिया अब से ठीक आठ घण्टे बाद हमारे आश्रम के सभाभवन में उपस्थित हों। सभी को ये संदेश पहुँच जाना चाहिए ", योगी श्रीनन्द ने तेज़ आवाज में कहा और फिर वह अपने साथियों के साथ वापस लौट गए।


8-


सभा जुड़ चुकी थी, योगी गुरु 'अखण्ड' एक ऊँचे पत्थर पर बैठे हुए थे। योगी अखण्ड के पीछे एक कतार में उनके साथी योगी लोग खड़े हुए थे। महाराज अखण्ड के चेहरे पर अद्भुत तेज़ था और उनकी आंखों की चमक सम्मोहित से करती प्रतीत होती थी। 


 योगी श्रीनन्द उनके ठीक दायीं ओर खड़े हुए थे और उनके पीछे दो अति बलिष्ठ विशलकाय पहलवान जैसे व्यक्ति खड़े हुए थे। उन दोनों की आँखे कैमरे के समान सामने की स्थिति पर जमी हुई थीं। उन दोनों के चेहरे भावविहीन थे किन्तु फिर भी एक सजग प्रहरी के भाव उनके चेहरे पर ना सही हावभाव में अवश्य झलक रहे थे।


 सामने शमशेर अपने चारों विश्वासपात्र साथियों के साथ बैठा हुआ था। उसके दायीं ओर वेराडो एवं कैलिस थे। तथा दायीं ओर एंडरसन एवं सेड्रिक को सहारा दिए हुए चार अमेरिकी ब्रिटिश मूल के योद्धा थे। उनके पीछे अन्य समूहों के लोग और उनके सहयोगी भी थे।


 ये सभाभवन समुद्र के अंदर होने पर भी बिल्कुल किसी मंदिर के प्रांगण जैसा दिखाई देता थ। पानी इसके अंदर लेशमात्र भी नहीं था। बिल्कुल ऐसा लग रहा था मानो जमीन पर बना कोई आलीशान भवन हो। प्रकाश के लिए पुराने समय के केरोसिन के लेम्प की तरह की काँच की बन्द चिमनियाँ लगी हुई थीं जिनके अंदर आग जलती दिखाई देती थी लेकिन धुआँ कहीं नहीं दिख रहा था। इन चिमनियों के अंदर साइड अर्धगोलाकार में जैसे चाँदी का लेप किया गया था। उस व्यवस्था से ये चिमनियाँ बहुत तेज़ प्रकाश उत्सर्जित कर रही थीं।


 शमशेर के मुख पर अनजानी खुशी की झलक थी जबकि वेराडो और एंडरसन की पार्टी के मुँह लटके हुए थे।


 महात्मा अखण्ड बहुत क्रोध में नज़र आ रहे थे और उनके पीछे की कतार के योगी लोग भी बहुत नाखुश ही दिखाई दे रहे थे। उनकी आँखों में ये नाराज़गी देखकर एंडरसन और वेराडो को और भय लग रहा था। सबसे अधिक डरा हुआ था कैलिस जिसने प्रत्यक्ष रूप में नियम को तोड़ा था।


  "हम सभी यहाँ क्यों उपस्थित हुए हैं आप में से बहुत सारे लोगों को पहले से पता है, और बाकी भी बहुत लोगों को अनुमान अवश्य है किंतु फिर भी हो सकता है कि कुछ लोगों को ना पता हो। तो आप लोगों को बता दें कि पेसिफिक समुद्र में हलचल होने के बाद एक पुराने डूबे हुए जहाज़ का पता लगा जो शमशेर और वेराडो की सीमा में है। तो नियमानुसार उस जहाज के माल पर पहला हक़ उन दोनों का हुआ और बाकी जहाज अपने कलपुर्जों सहित समाजकल्याण विभाग के अधिकार में दिया जाना चाहिए था। समाजकल्याण विभाग के वैज्ञानिक उसमें से अनेक काम के पुर्जे निकालकर श्वशनतन्त्र प्रणाली के यंत्र, हमारे शक्तियन्त्रों के लिए आवश्यक उपकरण और अन्य भी जो उनके काम की बस्तुएँ होती उसे लेने के बाद बाकी बची धातु आपलोगों को अपने उपयोग के यंत्र बनाने के लिए दे देते। किन्तु ऐसा हुआ नहीं और हमेशा की तरह एंडरसन और वेराडो के लालच ने इस बंटबारे को खूनी संघर्ष का रूप दे दिया। इस खूनी संघर्ष में इस बार एक और असमान्य बात हुई और वो ये की हनारे समुद्र वास के इतिहास में पहली बार किसी ने युद्ध के नियमों का उलंघन करके श्वशनतन्त्र को निष्क्रिय कर प्रतिद्वंद्वी को मारने जा कायरतापूर्ण प्रयास किया। आप लोगों को क्या लगता है कि क्या ये कृत्य क्षमायोग्य है?" योगी श्रीनन्द ने सबको सम्बोधित करते हुए कहा।


 "अक्षम्य है! सक्षम है!", पीछे से एक तेज़ शोर उठा।


 "आप लोगों को क्या लगता है, समुद्र का जीवन इतना सरल था जितना आप लोग जी रहे हो? समान्य मनुष्य पानी में दो मिनट से ज्यादा बिना साँस के जीवित नहीं रह सकता था। ये तो हमारे योगी लोग थे जिन्होंने अपने योगबल से पानी में तीस-चालीस मिनट तक साँस रोकने का अभ्यास किया और अपने उन्नत विज्ञान से इन छोटे श्वशनतन्त्र यंत्रो का निर्माण किया। आप जिन पूंछो को सामान्य समझकर मस्ती से इधर-उधर लहराते हुए जलविहार करते रहते हो, आप लोगों को पता है इसके अंदर कितने उच्च कोटि के विज्ञान और आधारित संयन्त्र लगे हुए हैं? पहले ये यंत्र इस समुद्र के खारे पानी से नमक अर्थात सोडियम क्लोराइड निकालता है जिससे पानी हल्का हो जाता है जो पीने के पानी की पूर्ति करता है और आगे प्रोसेसिंग में काम आता है।  आगे उस सोडियम से अन्य उत्प्रेरक बनाकर फिर उसके अगले खण्ड में  इलेक्ट्रोड्स की मदद से इस पानी से ऑक्सीजन निकालकर श्वशनतन्त्र के माध्यम से आपको प्राणवायु मिलती है। और सबसे महत्वपूर्ण है हाड्रोजन जो आपके इस संयन्त्र में लगे ईंजन को चलाने में ईंधन का काम करती है। बची हुई हाइड्रोजन आप लोगों की पीठ पर लगे सिलेंडरों में इकट्ठी होती है जिसे बाद में आप लोग बड़े संयन्त्र पर जमा कराते हो। इसी से आपने घर और भोजन का ईंधन मिलता है। सभी को ये बात पता है फिर भी इस जीवनचक्र को चलाये रखने के लिए साधन जुटाने के  स्थान पर लुटेरों की भाँति टूट पड़ते हो समुद्र में मिले किसी भी माल पर।


 आपको पता है इन संयंत्रों को बनाने में कितने इलेक्ट्रॉनिक पुर्जे लगते हैं। और इसके अलावा ये जलीय जीव? अरे मूर्खों अगर पहली बार इन विद्युत मछलियों ने संयन्त्र चलाने के लिए अपनी पॉवर ना दी होती तो तुम्हारा अंश भी जीवित ना होता। तुम लोग अपने स्वार्थ में इन मासूम जीवों की भी बलि चढ़ा देते हो। शर्म आनी चाहिए तुम लोगों को", इस बार महात्मा अखण्ड ने ये बात कही उनकी आवाज में क्रोध के साथ ही दुःख का भी प्रभाव था।


 समाने सभी लोग बिल्कुल शान्त बैठे हुए थे जैसे सभी ने जघन्य पाप किया हो। और किया भी था क्योंकि जैसा कि बताया गया समुद्र में उनका अस्तित्व केवल उनकी पूँछ अर्थात श्वशनतन्त्र से था और उन्होंने उसी को खिलौना बनाकर रख दिया था।


 "खामोश क्यों हो मूर्खो अब कुछ कहने के लिए नहीं बचा?", श्रीनन्द की तेज आवाज गूँजी।


 "कहना क्या है श्रीमंत, इन दोनों से पाप हुआ है किंतु मैं इन दोनों की ओर से क्षमा मांग रहा हूँ और वचन देता हूँ कि आप लोग इस जहाज को जैसे बाँटेंगे हम सभी अपने हिस्से में आये माल से पूर्ण सन्तुष्ट रहेंगे। आप लोग जैसे चाहें उस जहाज और उसके माल को बाँटें और उपयोग करें", शमशेर ने खड़े होकर धीरे से कहा।


 "हमें पता है शमशेर की तुम्हारी योजना क्या थी। यही ना कि इन दो बिल्लियों की लड़ाई में जो जीतेगा तुम उसपर हमला करोगे हारे हुए को अपने साथ मिलकर और फिर जीते हुए को खत्म करके हारे हुए को मिटाना तुम्हारे लिए कोई मुश्किल नहीं होगा। इस तरह तुम समुद्र में बादशाही के ख्वाब देख रहे थे। किंतु अब तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा। अब उस जहाज का माल समाजकल्याण विभाग के पास जमा होगा और सभी के काम आएगा।", बाबा अखण्ड ने गर्जकर कहा और सभी ने सहमति नें सिर हिला दिया।



9-


डूबे हुए जहाज के चारों ओर बहुत सारे लोग जमा थे। इनमें योगी समूह, वेराडो के लोग, एंडरसन के लोग एवं शमशेर की सेना भी थी। सभी समूहों में से दो-दो लोग चुनकर योगियों की निगरानी में जहाज को खोलकर उसके अंदर के समान की जाँच करने पर सहमति बनी थी। योगियों के आगे ऐसे भी किसी की कुछ चलने वाली नहीं थी।  

 कोई आठ-दस लोगों का एक दल जहाज के अंदर प्रवेश कर गया और उसके अंदर के सामान की जांच करके सूची  बननने लगे। जहाज के अंदर बहुत सारे कीमती सामान और भोजन सामग्री के पैकेट भरे हुए थे। ये उन्नीसवीं शताब्दी का पुराना जहाज था जिसकी टेक्नोलॉजी भी ज्यादा उन्नत नहीं थी। जहाज के कलपुर्जे बहुत भारी थे। जहाज़ में भारी मात्रा में धातु उपलब्ध थी। लेकिन एक बात  जो सबसे अलग थी वह ये की एक पूरा कन्टेनर कुछज पैकेट्स से भरा हुआ था जिनपर अलग-अलग वनस्पतियों के चित्र बने हुए थे। इन लोगों ने बाहर आकर सभी को उन पैकेट के बारे में बताया।

 योगी गुरु अखण्ड महाराज जी ने उन लोगों से पैकेट बाहर लाने के लिए कहा।

  कुछ ही देर में लोग पैकेट लेकर आ गए, "इन पैकेट्स में अनाज, सब्जियों और अन्य बनस्पतियों के बीज हैं। ये किसी सीड्स पैकिंग कम्पनी का माल है। इसका मिलना हमारे लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकता है।" अखण्ड बाबा ने एक पैकेट लेकर उसका अवलोकन करने के बाद कहा। उनके चेहरे पर बहुत खिली हुई मुस्कान थी।

 "लेकिन इन बीजों का हम क्या करेंगे? कुछ भोजन, वस्त्र या अन्य मूल्यवान धातुयें मिलती तब तो कोई बात थी।" शमशेर के एक साथी ने कहा।

  "हम लोग बिना कारण इस जहाज में ख़ज़ाना मिलेगा मनकर आपस में लड़े, इन बीजों के लिए?", कैलिस ने भी अफसोस में सिर हिलाते हुए कहा।

 एंडरसन और उसके साथी चूपचाप खड़े बस सबको देख रहे थे।

 

 "कितने बीज होंगे इस जहाज में?" अखण्ड जी ने प्रश्न किया।

  "बहुत हैं स्वामी जी, भाँति भाँति के बीज हैं कुछ उर्वरक और अन्य रसायन भी हैं। लगता है ये सारा सामान किसी कृषि और बागवानी से सम्बंधित फार्म या एग्रीकल्चर कॉलेज के लिए जा रहा था। इसमें इतने बीज हैं जिनसे कई हज़ार हैक्टेयर जमीन पर खेती की जा सकती है।", योगी श्रीनन्द ने उत्तर दिया।


 "क्या कह रहे थे आप लोग की इस जहाज पर कोई खज़ाना नहीं है?", स्वामी जी ने हँसते हुए व्यंग भरी आवाज में सभी उपस्थित लोगों से प्रश्न किया।

 बदले में ज्यादातर लोगों ने नज़रें झुका लीं।

 "आप लोग शायद ये नहीं जानते कि आज जो भी खज़ाना हमें मिला है ये केवल डूबा हुआ खज़ाना ही नहीं है बल्कि ये हम वर्षों से डूबे हुए मानव वंशियों के लिए फिर से जमीन पर स्थापित होने की कुंजी है।

 आपलोगों को शायद नहीं पता है कि जलप्रलय के बाद कितने ही वर्षों तक पृथ्वी पूरी तरह से जलमग्न ही थी। किन्तु पीछे कई वर्षों से कुछ ठोस जमीन और चट्टाने पानी से बाहर भी निकल गयी हैं। अर्थात पृथ्वी पर फिर से भूमि बनने लगी है। किंतु जल के बाहर अभी तापमान इतना अधिक है कि भूमि पर कुछ भी जीवन असम्भव है। अभी सारी भूमि चट्टानों के रूप में है जिसपर जीवन का कोई अंश भी नहीं है। ऊपर से बाहर इतनी अधिक गर्मी है कि यदि हमने जल से बाहर उस सूखी जमीन पर जाने का प्रयास किया यो हम  जलकर राख हो जाएंगे। पहले हमारे पास इस स्थिति का सामना करने का कोई मार्ग नहीं था।

  किन्तु अब इन बीजों के भंडार का मिलना हमारे लिए ये संकेत है कि हम मानवों को अपने असली निवास अर्थात पृथ्वी को फिर से उसके पुराने स्वरूप में लाने के लिए प्रयास शुरू कर देने चाहियें। हम जानते हैं कि ये कोई आसान कार्य नहीं है। किंतु समुद्र में अथाह जल के नीचे छोटी-छोटी कृत्रिम पूँछो के सहारे जीवन के बारे में सोचने जितना असम्भव भी तो नहीं है। जरा सोचो अभी मनुष्यों के बच्चे पैदा होते हैं समाजकल्याण के शिशु-बाल ग्रह में जहाँ उन बच्चों को चौदह-पन्द्रह वर्ष एक ही स्थान पर रहना होता है। उसके बाद भी उसका बाहर निकलना कृत्रिम श्वशनतन्त्र की उपलब्धता पर निर्भर करता है। और यदि अधिक श्वशनतन्त्र बनाने के लिए हम लोग सामग्री ना जुटा सके तो वह भी सम्भावना नहीं होती। फिर इस बाल ग्रह की प्राणवायु की भी एक निश्चित सीमा है। उससे अधिक मात्रा में ऑक्सीजन का निर्माण हम नहीं कर सकते। और फिर कार्बनडाई ऑक्साइड का निरंतर उत्सर्जन और उसके निराकरण के लिए लगाए संयन्त्र भी एक सीमा तक ही काम कर सकते हैं। और फिर जल में लगातार कार्बन डाइऑक्साइड घुलने से पानी में कार्बोनिक एसिड की मात्रा भी लगातार बढ़ती जा रही है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो हमारे द्वारा निकाली गई इस अशुद्धि से जल इतना अधिक अम्लीय हो जाएगा कि हम लोग एक दिन उस अम्ल के प्रभाव से जल में घुलकर विलय हो जाएंगे और मानव जाति का इतिहास भी बताने वाला कोई नहीं रहेगा।

 अब जबकि हमें पृथ्वी पर जीवन लौटने का एक संकेत मिला है तो क्यों ना हमें सामूहिक रूप से एक बार ये प्रयास करना चाहिए और मानवकल्याण के इस महायज्ञ में मिलकर अपने श्रम की आहुति देने के लिए एकजुट हो जाना चाहिए। क्या अब तुम सभी लोग पुराने आपसी मतभेद भुलाकर मानव बनने के लिए तैयार हो?" स्वामी अखण्ड जी ने सभी को समझाते हुए बहुत सधे शब्दों में अपनी बात कही।

 पीछे सभी लोगों में आपस में कुछ खुसर-फुसर हो रही थी। ज्यादातर लोगों को समझ में ही नहीं आ रहा था कि स्वामी अखण्डजी क्या कहना चाहते हैं।

 "हम तैयार हैं गुरुजी, आप जैसा कहेंगे हम करने के लिए तैयार हैं।" शमशेर ने आगे आकर हाथ जोड़ते हुए कहा। उसके साथ झामयू और पटेल भी थे।

 "हम भी तैयार हैं योगी जी, आप ऑर्डर दीजिए कि क्या करना है", वेराडो ने भी आगे आकर कहा और शमशेर के पास आकर खड़ा हो गया।

 "ठीक है हम वैज्ञानिकों और अन्य योगियों से बातचीत करके फिर कोई योजना बनाकर सभी लोगों को सूचित करते हैं। तबतक आप लोग इस जहाज की समाजकल्याण विभाग के साथ मिलकर उचित भंडारण की व्यवस्था करें और ध्यान रहें इन बीजों को किसी प्रकार की हानि ना पहुँचने पाए।" कहकर योगी अखण्ड महाराज उठ खड़े हुए। इसी के साथ वह सभा समाप्त हो गयी।


10-


   योगियों की सभा जुड़ी हुई थी, इस सभा में सभी ज्ञानी-विज्ञानी लोग एकत्र थे। अखण्ड महाराज ने सभी से एक प्रश्न किया था कि, "क्या हम मानव लोग कभी वापस पृथ्वी पर पूर्व की भाँति निवास कर पाएँगे?"

 सभी लोग इस प्रश्न पर मंथन कर रहे थे।

 "पृथ्वी पर अब प्राणवायु बिल्कुल भी शेष नहीं है। ऊपर से तापमान इतना अधिक की कोई भी झुलसकर मर जाये। ऐसी परिस्थिति में हमारा पृथ्वी पर रखा गया कदम हमें मृत्यु की ओर ले जाने के लिए काफी होगा।" एक वैज्ञानिक ने कहा।

 "यदि अभी परिस्थितियाँ विपरीत हैं तो क्या हम ऐसे हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहें? क्या हमें पृथ्वी पर जीवन वापस लाने के लिए कोई भी उपाय नहीं करने चाहियें? अभी तक हमारे सामने मुख्य समस्याएं थीं- प्रतिकूल वातावरण एवं जीवन के लिए आवश्यक पेड़ पौधे उगाने के लिए उनके बीज। किन्तु अब हमारे पास बीजों का पर्याप्त भंडार है। हमें अब ये देखना है कि डूबे हुए जहाज से मिला बीजों का यह खज़ाना क्या हमारे पृथ्वीवास की कड़ी बन सकता है।" अखण्ड महाराज ने बहुत गम्भीरता से कहा।

 "स्वामी जी बीजों के भंडार से हमें एक दिशा तो मिली है लेकिन जैसा कि बताया गया कि पृथ्वी पर तापमान इतना अधिक है ऊपर से ऑक्सीजन भी बिल्कुल नहीं है। तो ऐसी परिस्थिति में हम बीजों को अंकुरित कैसे कर सकते हैं? और यदि कर भी लें तो क्या वे अंकुरण बृद्धि कर पाएँगे। दूसरी बात ये की अभी केवल समुद्री जल ही उपलब्ध है जिसमें कोई भी पौधा जीवित नहीं रह पाएगा जो पृथ्वी का अर्थात जमीन का होगा। और यदि हम यंत्रों से जल को शुद्ध करके पेड़ पौधों के लिए दें तो हमारे पास इसके लिए ना तो पर्याप्त यंत्र हैं और ना ही पर्याप्त ऊर्जा। तो अब आप ही बताइए कि हमें क्या करना चाहिए?", एक वैज्ञानिक ने खड़े होकर बहुत नकारात्मक स्वर में कहा।

 "क्या करना चाहिए का उत्तर तो आपके इस वक्तव्य में ही छिपा हुआ है। अभी आपने कहा कि पृथ्वी के पौधे समुद्र के जल में जीवित नहीं रह सकते। किन्तु जब ये पौधे पृथ्वी पर रहते थे 

 


Saturday, February 26, 2022

मरने के बाद

मरने के बाद (उपन्यास)



1-

रमेश ने अपने कंधे पर एक बहुत ठंडा हाथ महसूस किया, रमेश ने कुर्ता और सदरी पहनी थी फिर भी ना जाने क्यों उसे उस हाथ की सुन्न, सख्त, एवं खुदरी उंगलियों की ठंडक सीधे अपनी हड्डियों तक महसूस की।

"क.. क.. को. कौन!!", रमेश चौंकते हुए पलटा।

"क्या देख रहे हो दोस्त? ये सब जो रो रहे हैं ये तुम्हारे परिजन हैं, जो तुम्हारे मरने पर बहुत दुखी हैं?

आएँ!! हा.. हाँ, देखो सब रो रहे हैं; लेकिन मैं अपने सभी दर्दो से मुक्ति पा गया दोस्त, मैं कई महीनों से बहुत बीमार था, मेरे पूरे परिवार ने मेरी बहुत देखभाल की लेकिन, अब मैं उस पीड़ा से मुक्त हूँ।" रमेश अपनी भीगी हुई आवाज में अपने आँसू पोंछने का उपक्रम करते हुए बोला।

किन्तु ये क्या इतना जार जार रोने के बाद भी उसकी आंखें बिल्कुल सूखी थीं।


"हा.. हा. हा. हा..!! क्या ढूंढ रहे हो, आँसू?

क्या यार अभी तो तुमने कहा कि हर दर्द से मुक्त हो गए हो; लेकिन आँसू अभी भी ढूंढ रहे हो।", वैसे मेरा नाम अजीत है; तीन साल पहले मेरी भी "बिल्कुल तुम्हारे जैसी हालत थी तब मुझे भी लगा था कि मैं दर्दों से मुक्त हो गया हूँ, किन्तु सच्चाई बाद में धीरे धीरे मेरे सामने आती गई, खैर तुम्हे भी आदत हो जाएगी रमेश भाई।" अजीत ने फिर मुस्कुरा कर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

"क्या कहा तुमने?!!, तीन साल पहले तुम्हारी मौत...तो क्या तुम भूत हो??" तभी तुम्हारे हाथ बर्फ जैसे ठंडे हैं।

रमेश घिघियाते हुए बोला।


"हा ..हा!! हा. हा!! अजीत जोर से हँसने लगा.. भूत.. हाँ रमेश भाई अब लोग हमें इसी नाम से जानते हैं, भूत, अब से यही हमारी पहचान है।

अभी जो लोग तुम्हरे लिए आँसू बहा रहे हैं, कल के बाद उनमे से किसी के सामने प्रकट हो जाओगे तो वह आपको इसी नाम से पुकारेगा.. ओह माफ करना भाई पुकारेगा नहीं डर से चीखेगा।

कहेगा," बचाओ!! भूत,, औऱ तुम लाख कहते रहोगे की तुम रमेश हो लेकिन कोई भी तुम्हारी आवाज नहीं सुन पायेगा।"

अजीत की आवाज में भी बहुत दर्द था।

"लेकिन अजीत भाई आपको मेरा नाम..?" रमेश कुछ सोचते हुए बोला।


"अरे यार ये इतने लोग चीख चीख कर कह रहे हैं कि रमेश का देहांत हो गया, भाई हम तो सबको सुन ही सकते हैं भले ही हमें सुनने के लिए लोगों के पास अच्छे कान ना हों। 

तो आओ अब चलें तुम्हे अभी बहुत सारे काम यहाँ की भूतिया दुनिया में करने होंगे और मैं तुम्हे सच्चाई बता दूं की ये दुनिया तुम्हारी इस दुनिया से भी खतरनाक है यहाँ राह पाना उतना आसान नहीं है बाकी आगे खुद तुम्हे सब कुछ पता लग ही जायेगा।" अजीत अर्थपूर्ण मुस्कान लाते हुए कह रहा था।


"एक मिनट, अभी तुमने कहा कि हम दोनों एक जैसे है याने की भूत, फिर मुझे तुम्हारा हाथ एक दम ठंडा क्यों लग रहा है, या फिर मैं अभी भी जिंदा..?" रमेश अपने को छू कर देखने लगा।


"तुम अभी अभी मरे हो और मुझे तीन साल हो गए, धीरे धीरे तुम भी ठंडे हो जाओगे दोस्त", अजीत फिर से मुस्कुरा दिया।

"आओ अब चलें कई काम होते हैं यहाँ आने के बाद", अजीत उसका हाथ पकड़कर खींचने लगा।


"अजीत भाई कुछ देर देखने दीजिये देखिए कैसे मेरा परिवार मेरे लिए बिलख रहा है, औऱ मैं जिंदगी भर सोचता रहा कि ये लोग कितने बुरे हैं", रमेश अभी भी बहुत उदास था।


"रमेश भाई, ज्यादा मोह मत करो ये सब बस लोगों को दिखाने के लिए हो रहा है बस परम्परा निभाने के लिए की लोग क्या कहेंगे जबकि असलियत कुछ और ही होती है।"  अजीत बराबर मुस्कुरा रहा था।

"मैं नहीं मानता अजीत भाई, देखिए ना इनके रोने को क्या तुम्हें इसमें भी बनाबट दिखाई देती है, अरे मेरी पत्नी और बेटा तो बेचारे कितनी बार रो रो कर बेहोश ही हो गए", रमेश भरपूर उदासी से बोला।


"अरे!, हां कहाँ गए तुम्हारी पत्नी और बेटा?, अजीत इधर उधर देखते हुए बनाबटी आश्चर्य से बोला।


"वे लोग बेहोश हो गए थे ना अजीत भाई लोग उन्हें अंदर ले गए",रमेश अपनी ही रौ में बोला।

"अंदर? अरे हां उन्हें तो अंदर ले जाया गया है, रमेश भाई आप बहुत बेमुरव्वत हो यार तुम्हारे जिंदा बेटे और पत्नी तुम्हारे गम में बेजार हो रहे हैं तुम्हारे लिए रो रो कर हलकान हो रहे हैं और तुम हो कि बस यहीं खड़े अपनी लाश को घूरे जा रहे हो जैसे कि अभी तुम्हारी लाश उठकर बैठ जाएगी और तुम्हे उसमें घुसने के लिए कोई दरवाजा मिल जाएगा।

जबकि सच्चाई ये है कि अब तुम्हे इस शरीर में घुसने के लिए दरवाज़ा तो दूर तुम एक खिड़की तक नहीं पा सकोगे और तो और अब तुम इस शरीर को छू तक नहीं पाओगे।

मेरी बात मानो मोह छोड़ो और चलो मेरे साथ अभी तुम्हे इस आत्मा लोक में जगह भी बनानी है और जैसा कि मैने तुम्हे बताया ये धरती की दुनिया से बहुत ज्यादा मुश्किल है।", अजीत ने रमेश का हाथ पकड़े पकड़े कहा।


"अजीत भाई ये क्या तुम मुझे बार बार यहाँ की दुनिया के नाम से डरा रहे हो आखिर ऐसा क्या है इस भूत नगरी में जो मुझे जगह बनाने में मुश्किल आएगी, आखिर हमें चाहिए ही क्या केवल हवा। औऱ रही बात मेरे परिवार की तो मैं अब दावे के साथ कह सकता हूँ कि वे लोग मुझे बहुत चाहते हैं और उनका ये विलाप दिखावा नहीं है", रमेश अब कुछ नाराज़ हो रहा था।

"अच्छा चलो एक बार तुम्हारे बेटे और पत्नी को देख आया जाए,कहीं ऐसा ना हो कि तुम्हारे वियोग में उनके प्राण.." अजीत अब रमेश का हाथ पकड़कर अंदर कमरे में ले गया जहां इसकी पत्नी और बेटा बैठ कर धीरे धीरे बातें कर रहे थे।

"आओ थोड़ा और नज़दीक चलते हैं जहां से हम इन्हें सुन सकें", अजीत उसका हाथ पकड़े उनके और नजदीक ले आया।

"अरे माँ पैसे हैं ही नहीं मेरे पास, सारे पैसे तो उनकी बीमारी पर खर्च हो गये अब ये अंतिम संस्कार के लिए बीस तीस हजार मैं कहाँ से लाऊं?" रमेश का बेटा गुस्से से कह रहा था।


"अरे, कल ही तो मेरी एफडी के दो लाख आये थे जो मैंने इसे दिए थे और इसने सामने अलमारी में.. अरे सुमित्रा इसने दो लाख अलमारी में रखे हैं", रमेश जोर से चिल्लाकर बोला किन्तु उसकी आवाज़ किसी का ध्यान नहीं खींच सकी।

"अरे सुमित्रा खोलो ये अलमारी, देखो इसमें", कहकर रमेश अलमारी पकड़कर हिलाने लगा किन्तु ये क्या रमेश तो अब हवा तक नहीं हिला पा रहा था।

वह उदासी से अजीत को देखने लगा जो सिर्फ इसकी हालत पर मुस्कुरा रहा था।

"अरे बेटा अंतिम संस्कार तो करना ही होगा वर्ना समाज क्या कहेगा लेकिन जितने कम में हो सके उतने में काम चलाओ, जरूरी नहीं कि लकड़ी पूरे तीन क्वेंटल ही आये अरे इनका शरीर है ही कितना जो तीन कुंतल लकड़ी में सिकेंगे।

और चंदन की सात समिधा की जगह एक ही.. उसी के छोटे छोटे सात टुकड़े ,अरे मरने वाले के साथ कुछ जाता है क्या, और घी भी एक किलो बहुत होगा अरे जिंदा पर हमने इन्हें इतना घी में नहलाया लकेकिन क्या कोई फायदा हुआ जो अब लाश के साथ पांच किलो घी जलाकर हो जाएगा।

ये तो जाते जाते भी हमें कंगाल कर गए, अब खुद तो मुक्ति पा गए और छोड गये हमे भुगतने को।

बेटा जा कर सामान जुटा जल्दी, देर हो रही है, मिट्टी जितनी जल्दी हो ठिकाने लग जानी चाहिए", रमेश की पत्नी सुमित्रा अपने बेटे को समझा रही थी।

"अरे!! दुष्टों मैं जिंदगी भर रात दिन तुम लोगों के सुख के लिए लड़ता रहा और तुम्हे मेरा शरीर मिट्टी..",रमेश झपटकर अपनी पत्नी को मारने की कोशिश करने लगा लेकिन पूरा जोर लगाने के बाद भी वह सुमित्रा के बाल तक ना हिला सका।

हा हा हा हा हा हा!!!!अजीत उसकी हालत देखकर हँस हँस कर लोटपोट हो रहा था।

"मेरी पत्नी,  मेरा बेटा,, अरे रमेश भाई ये किस मिट्टी की बात हो रही थी"? अजीत बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोकते हुए बोला।

" कुछ नहीं अजीत भाई, चलो यहाँ से अब मुझे एक पल भी नहीं रहना इस नरक में।" रमेश गुस्से ओर घृणा से बोला और बाहर आ गया।

"क्या हुआ रमेश भाई इतना गुस्सा?" अरे ये तो तुम्हारा परिवार है भाई ये लोग तुमसे मोहब्बत करते हैं देखो तुम्हारे लिए कितना रो रहे थे इन्हें सच में बहुत फिक्र है लेकिन तुम्हारी नहीं मेरे दोस्त बल्कि तुम्हारी मिट्टी की, उन्हें उसे जल्द से जल्द ठिकाने जो लगाना है।

और उसके बाद इन्हें एक और फिक्र लगेगी तुम्हारी जायदाद अपने नाम लिखाने की", अजीत अभी भी चुटकी ले रहा था।


"चलो अजीत भाई अब मैं और कुछ नहीं देख पाऊंगा,मैं आत्महत्या कर लूंगा इन लोगों ऐसे व्यभार से ले चलो मुझे इस नरक से दूर", रमेश फिर से अपनी आंखें पोंछने लगा।


"अच्छा उदास मत हो रमेश यार, अभी  असली नरक तो यहाँ अभी तुम्हे देखना है, आओ चलो सबसे पहले जन्म रजिस्टर में तुम्हरा नाम लिखा कर तुम्हारा भूत नम्बर लेना होगा उसके बाद मैं तुम्हे इस दुनिया की बाकी बातें भी बता दूंगा और तुम्हे सारा भूत लोक जो हमारे सीमा क्षेत्र में है, दिखा भी दूंगा।" अजीत उसके साथ चलते हुए बोला।


"क्या कहा रजिस्ट्रेशन??"रमेश को तो जैसे विश्वास ही नहीं हुआ।

"हां भाई नामांकन यहाँ की सबसे पहली प्रकिर्या है जो हर नए आने वाले भूत के लिए बहुत जरूरी है।

इस नामांकन के साथ ही नए भूतों को यहाँ मौजूद भूत गैंग्स का सदस्य बना दिया जाता है इसके बाद उन्हें अपने गैंग के हिसाब से आगे मरना होता है, किंतु यदि हम चाहें तो अपने मनचाहा गैंग चुन सकते हैं जैसे कि अब मैं तुम्हे अपने गैंग में जुडवा दूंगा ताकि हम आराम से साथ रह सकें", अजीत ने रमेश का हाथ कसकर पकड़ा और दोनों उड़ने लगे।


अभी ये लोग भूत लैंड में लैंडिंग कर ही रहे थे कि सामने ही एक बड़े बड़े दांतो वाली माँस रहित डरावनी मूर्ति प्रकट हो गई।

"क्या रे अजीत फिर कोई नया बकरा लाया अपने गैंग के लिए, अरे कभी किसी को अपुन के गैंग में भी आने दे देख ना सारी बदसूरत जली हुई सुन्दरियों से भरा है पूरा गैंग बस तेरे ओर इसके जैसे चिकने छोरों की कमी रहती है", वह बड़े दांतों वाली डरावनी शक्ल जोर जोर से हँसने लगी जिससे इसका चेहरा ओर डरावना लगने लगा जिससे घबराकर रमेश अजीत के पीछे छिप गया।

"क्या रे लाडली क्यों हमेशा लोगों को डराती रहती है, अब देख न अभी अभी तो हम आये हैं और तुमने मेरे नए दोस्त को डरा दिया। ये भी कोई तरीका है परिचय करने का", अजीत थोड़ा गुस्से से बोला।

"क्या करें अजीत, काश हमारे जिंदा रहते लोग हमसे डर जाते तो हमें यूँ आग में जिंदा तो ना जलाते", अब लाडली बहुत उदास होकर बोली।


"अरे लाडली दुखी क्यों होती हो आखिर हम यहाँ दोस्त हैं ना, अच्छा मिलता हूँ रमेश भाई का नामकरण करवा कर", और अजीत रमेश का हाथ पकड़े आगे चल दिया,,,

2-

"आओ रमेश भाई चलो जल्दी नामांकन करवा लिया जाए, कहीं ऐसा न हो कि कोई प्रेत, जिन्न या ब्रह्म बाबा हमें देख लें, और हम किसी मुश्किल में पड़ जाएं",

अजीत ने रमेश का हाथ पकड़ कर उसे खींचते हुए कहा।


"अच्छा अजित भाई! मरने के बाद जैसा की सब जानते हैं कि सबको भूत बनना होता है।

फिर आप मुझे बार-बार ये प्रेत, जिन्न और ब्रह्म बाबा जैसे नामों से क्यों डरा रहे हो?" रमेश ने कुछ आश्चर्य से पूछा।


"सब बता दूंगा रमेश भाई! बस आप थोड़ा जल्दी चलो, कहीं ऐसा ना हो कि बहुत देर हो जाये", अजीत ने ये बात बहुत घबराते कुछ विशेष अर्थ में कही।


अब रमेश जैसे कुछ समझ गया हो इसलिए वह चुपचाप चलने लगा।


कुछ दूर चलने पर उन्हें हड्डियों की बनी एक ऊँची इमारत नज़र आने लगी, जिसका बड़े-बड़े दांतो वाला प्रवेश द्वार दूर से ही चमक रहा था।

उसे देखकर अजीत की आँखों में प्रसन्नता की चमक आ गयी।

"लो पहुंच गए रमेश भाई, अब हमें कोई डर नहीं है। इस सीमा में आकर कोई भी मनमानी नहीं कर सकता; और नामांकन के बाद फिर कोई किसी को परेशान नहीं करता, क्योंकि यहाँ के नियम बहुत कड़े हैं। 

कोई भी यहाँ के नियमों का उलंघन नहीं कर सकता।" अजीत के स्वर में प्रसन्नता थी।


अब रमेश भी प्रसन्न था वैसे तो उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, लेकिन अजीत की बातें उसे ना जाने क्यों अपने लिए भले की लग रही थीं।

अतः वह भी जल्दी जल्दी कदम बढ़ाने लगा।

जैसे ही इन्होंने उस इमारत में प्रवेश किया अंदर का दृश्य देखकर रमेश बहुत डर गया।

सामने हड्डियों की बनी एक बड़ी सी मेज थी जिस पर एक मज्जा, त्वचा रहित,अस्थिशेष मानव खोपड़ी रखी थी जिसकी पलकविहीन बड़ी बड़ी आंखें बहुत तेज़ चमक रही थी।

सामने दीवार पर बड़ी-बड़ी डरावनी इंसानी आंखें लगी हुईं थीं।


और अंदर पूरी छत पर भी इंसानी आंखें लगी हुई थी।

ये दृश्य देखकर रमेश को अचनक डर लगने लगा, लेकिन तभी उसे याद आया कि वह तो मर चुका है और अब खुद एक भूत है तो फिर अब वह किससे डर रहा है।


तभी अचानक दीवार में से एक बिना सर का कंकाल प्रकट हुआ और उसने जल्दी से हाथ बढ़ा कर वह खोपड़ी अपनी गर्दन में पहन ली।


"हि..हि..हि.ही क्षमा करना मैं जरा अंदर व्योरा भेजने चला गया था और अपनी उपस्थिति दर्शाने के लिए इसे यहीं छोड़ गया था।

मैंने जैसे ही आपको आते देख तुरंत आ गया।" वह अपने बड़े बड़े गले सड़े दांत दिखाकर हँसते हुए बोला।


"नमस्ते, 'लिपिक महोदय' ये मेरा मित्र है रमेश आज ही यहाँ आया है।

आप इसका नाम हमारे समूह के साथ लिख दीजिये।" अजीत ने सामने खड़े भूत को प्रणाम करते हुए कहा।


"क्या तुमने इसे यहाँ के बारे में सब कुछ समझा दिया है, 'अजीत' क्या तुमने बता दिया है कि तुम्हारा समूह सबसे कमजोर भूत समूह है।

क्या तुमने इसे अन्य समूहों के विषय में बताया, जैसे कि पिशाच, ब्रह्मराक्षस, प्रेत और शक्तिशाली जिन्न समुदाय?

कहीं ऐसा न हो कि बाद में आकर ये कहे कि मुझे तो पिशाच या प्रेत बनना था।" लिपिक ने रमेश को घूरते हुए कहा।

"मुझे अजीत भाई ने सब समझा दिया है, और मैं साधारण भूत ही रहना चाहता हूँ मुझे नहीं चाहिये भूत-प्रेत लोक की काली शक्तियां।" रमेश ने ना जाने क्या सोचते हुए, लिपिक को प्रणाम करते हुए कहा।

"ठीक है आप अपने बारे में इस प्रारूप में बताइये, 

मृत्यु लोक में नाम-

पिता का नाम-

दादा का नाम

माँ का नाम- 

वंश या गोत्र का नाम-

जन्म स्थान-

जन्म तिथि (यदि याद हो)-

मृत्य तिथि-

मृत्यु समय-

मृत्यु का कारण-

वो इच्छाएं जो अधूरी रह गयी हो या जिन्हें आप दूसरा जन्म लेकर पूरी करना चाहें-"। आप क्रम से इसके उत्तर बताइये मैं आपकी आगे की गति के विषय में बता दूंगा।" लिपिक ने उसे सवालों की एक सूची देते हुए कहा।


"----

-----


----

----

---

--

मेरी कोई इच्छा अतृप्त नहीं है बस एक दुख है कि मैं जिनके मोह में सही गलत झूट सच करता रहा वे सब तो मतलबी निकले।" रमेश ने सारे प्रश्नों के उत्तर देते हुए उदास होकर कहा।

अब वह कंकाल (लिपिक) कुछ देर मेज पर लगे दर्पणों में उलझा रहा और फिर बोला, "जैसा कि अपने विवरण दिया, आपकी मृत्यु असमय नहीं हुई है।

अर्थात आपकी मृत्यु पूर्ण आयु भोग के बाद कि स्वाभाविक मृत्यु है।

किन्तु जैसा कि इस चराचर सृष्टि का नियम है, हर मरने वाले को मरते ही चार तत्व की सरल सौम्य भूत योनि मिलती है।

जिसमें रहकर उसे अपने जीवन के सभी अच्छे बुरे कर्मो को याद करना होता है; ताकि आगे यमलोक के मार्ग में ले जाते समय उसे याद रहे कि किस बुरे या भले कर्म के परिणाम स्वरूप उक्त रास्ता उसके लिए चुना गया है।

और इसलिए भी रखा जाता है ताकि वह अपने परिजनों के द्वारा दिये गए पिंडदान एवं यज्ञ से कुछ शक्ति प्राप्त कर ले ताकि आगे चलते समय उसे आसानी रहे।

बाकी यहाँ कुछ शक्तियां भी मिलती हैं, जिनके बारे में तुम अजीत से अन्य जानकारी ले सकते हो।

और यदि तुम्हे लगता है कि तुम्हें शक्तियां लेकर अन्य समूह में सम्मिलित होना है तो तुम चालीस दिन बाद यहाँ आकर बता सकते हो।" लिपिक ने अपने दांत दिखाते हुए कहा।


"किन्तु मुझे कब तक इस भूत योनि में भटकना होगा?" रमेश ने डरते डरते पूछा।


"ये बात भी मैं तुम्हे चालीस दिन के बाद ही बताऊंगा। देखो ये भूत योनि कमसे कम चालीस दिन लगभग सभी को मिलती है क्योंकि उसके पहले कोई भी मृतात्मा यम मार्ग पर नहीं चल सकती इसी लिए हर समुदाय में मृतक के तर्पण के लिए चालीस दिन तक के विधान बताए गए हैं।

जैसे सवा महीने का पत्ता या चालीसवाँ।

उसके बाद वह आत्मा आगे गति करती है, जहाँ मार्ग में बाइस प्रकार के महा नर्क एवं तीस प्रकार के समान्य अथवा अति सरल नरक हैं। जिन मार्गों पर यमलोक जाते समय जीवात्मा गति करती है।

बाकी उसके कर्मो पर ही निर्भर करता है की वह कितना शीघ्र धर्मराज के समक्ष प्रस्तुत होता है और कर्मफल के अनुसार दूसरा जन्म अथवा स्वर्ग या अन्य उच्च स्थान पर जाता है।" लिपिक ने उसे रहस्य बताया। तब तक दो और लोग आते दिखाई पड़े जिनमें एक भयंकर मोटा, काला, बड़े-बड़े बाहर निकले दांतों वाला, कुरूप, डरावना, राक्षस जैसा जीव था वहीं दूसरा, पतला मरियल सा जीव था, जो भय से थर थर कांप रहा था और घिसट-घिसट कर चल रहा था, या कहो की जबर्दस्ती चलाया जा रहा था।

रमेश ने थोड़ा ध्यान से देखा तो पाया कि वह कुरूप जीव दूसरे को कान से पकड़ कर खींच रहा है और उसका कान आधा उखड़ कर लटका हुआ है।

अभी वह पूरी तरह से अंदर आये भी नहीं थे कि लिपिक ने ऊंची आवाज में कहा, "कुम्भीपाक"। 

और वह यमदूत उस जीव को कान से पकड़े-पकड़े उल्टे पांव लौट गया।

रमेश अभी भी उस दृश्य से भयभीत था तभी लिपिक ने एक नम्बर उसकी ओर बढ़ाया जो लाखों में था, "लो इसे अपने पास रखो ये है तुम्हारा पंजीकरण अंक, अब तक तुम्हारे बताए पते से इतने रमेश यहाँ आ चुके हैं, इसे याद कर लेना। लिपिक ने कहा।

अजीत ने रमेश का हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा," चलो बाकी बातें मैं समझा दूँगा।",

और रमेश उसके साथ चल दिया।


"अरे यार अजीत ये कौन था? इतना डरावना जीव और उस बेचारे कमज़ोर से प्राणी को कैसे कान पकड़ कर घसीट रहा था। बेचारे का कान ही उखाड़ फिये निर्दयी ने क्या यही जिन्न अथवा पिशाच है।" रमेश अभी भी घबराते हुए धीरे से बोला। हालांकि उसके स्वर में क्रोध का भी हल्का पुट था।


"यमदूत था वह; और वह केवल अपना कार्य कर रहा था रमेश भाई ।

उसको उस प्राणी के कर्मो अनुसार नरक दण्ड देने का कार्य मिला होगा तो वह बस वही कर रहा था। अजीत धीरे से बोला।


"लेकिन ये 'कुम्भीपाक' क्या है  और इसे सुनते ही वह जीव इतना क्यों घबरा गया था।" रमेश ने फिर पूछा।


"कुम्भीपाक एक महा कष्टकारी महा नरक है।

इसमें मार्ग के दोनों ओर पिघली हुई धातु से भरे कुम्भ(घड़े) रखे होते हैं जो मार्ग पर उलटते रहते हैं।

उस धातु की तपन से जीव को बहुत कष्ट होता है।

अब उस जीवात्मा को उसी कुम्भीपाक के मार्ग से ले जाया जाएगा।" अजीत भी अफसोस के साथ बोला।


"लेकिन भाई उसे इतने दुर्गम मार्ग से क्यों ले जाया जा रहा है? और फिर ले जाने वाला यमदूत भी तो साथ ही होगा तो क्या वह पिघली धातु की अग्नि उसको नहीं जलायेगी।" रमेश को अब भय के साथ कौतुहल भी हुआ।


"कुम्भीपाक उसको अपने जीवन में चोरी, बेईमानी, धोखा देने अथवा ऐसे ही किसी दुष्कर्म के परिणाम स्वरूप मिला होगा।

और रही बार यमदूत की तो अब वह उसकी नाक में सांकल डालकर कर उसमें जँजीर बाँध कर ऊपर उड़ता हुआ जाएगा; इसलिए उसपर इस भीषण तपिश का प्रभाव नहीं होगा।

ऐसे भी यमदूतों के पास असीमित शक्तियां होती हैं, तो उनपर नरक की किसी भी क्रिया का प्रभाव नहीं पड़ता।

ये तो इनका सामान्य कार्य है।" अजीत ने समझाते हुए कहा।


"फिर भी यमदूतों का कार्य बहुत कठिन है भाई, चाहे प्रभाव हो या ना हो किन्तु नरक तो इन्हें सारे घूमने पड़ते हैं।" रमेश कुछ सहज होकर बोला।


"रमेश भाई ये यमदूत भी हम जेसी जीव आत्मा ही होते हैं। 

जो स्वेच्छा से इस कार्य को चुनते हैं जिसके बदले में इन्हें कुछ शक्तियां और नर्क के प्रभाव से मुक्ति मिल जाती है किंतु इन्हें उस नरक में अपनी सजा से तीन गुना अधिक समय गुजारना होता है।"अजीत ने रमेश की शंका का समाधन किया।

अभी ये लोग बातें करते हुए जा ही रहे थे कि तभी, लाडली फिर इनके सामने आकर खड़ी हो गयी।


"करा आये नामांकन, पता लगा तुमसे पहले कितने रमेश मर कर यहाँ आ चुके हैं?

क्या रे अजीत रस्ते में कोई खड़ूस प्रेत या जिन्न तो नहीं मिला?" लाडली मुस्कुराते हुए पूछने लगी।


"अरे नहीं रे लाडली सब आराम से हो गया,लेकिन ये खोपड़ी हमेशा अपनी खोपड़ी क्यों उतारे घूमता रहता है? आज तक समझ नहीं आया।

बेचारे रमेश भाई कितना डर गए थे उस बिना मुंडी के भूत को देखकर।" अजीत ने भी हँसते हुए उत्तर दिया।


"अरे तेरे कु तो मालूम ही है वो एक साथ कई काम करता है।

तुमने उसे बिना मुंडी का देखा और डर गया।

अरे ऐसे डरने का नई, अपुन ने तो कितनी बार उसे बिना मुंडी और बिना हाथ का बी देखा है", अब लाडली जोर से हँसी, जिससे उसके जले हुए चेहरे पर भयानक रंगत पनप गयी। लेकिन अब रमेश को उससे डर नहीं लग रहा था।


"अच्छा लाडली ये तुम्हारा जला हुआ शरीर? क्या तुम्हारी मृत्यु जलने से हुई थी?," रमेश ने लाडली को गौर से देखते हुए पूछा।


"सही पहचाना तूने रमेश! मुझे चार लड़कों ने बलात्कार करके जला कर मार डाला था।

मैं कितना गिड़गिड़ाई उनके आगे की भाई मुझे छोड़ दो मैने तुम लोग का क्या बिगाड़ा है, लेकिन उन एडा लोग ने मेरी एक भी बात नहीं सुनी।

वे मेरे को मारते रहे मेरे कपड़े फाड़ते रहे, मैं रोती रही मदद के वास्ते चिल्लाती रही; लेकिन किसी ने भी अपुन की आवाज नहीं सुनी।

अरे मैने तो उनसे हाथ जोड़कर यहाँ तक कहा की कोई एक जन प्यार से….

लेकिन उन दरिंदों ने बार-बार मेरे साथ नीच काम किया।

और इतने पर भी उनका दिल नहीं भरा तो बेहोशी की हालत में मेरे ऊपर पेट्रोल की पूरी बैरल ही लोट दी और फिर उनमें से एक ने अपने मुँह की सिगरेट... आह!! अभी तक उस तेज़ जलन को अपनी अंतरात्मा तक महसूस करती हूँ मैं रमेश बाबू!", लाडली की आवाज दर्द से भीग गयी किन्तु उसकी आँखें बिल्कुल सूखी थीं।


"उनमें से एक कमीना वही था रमेश भाई जो अभी  कुम्भीपाक में भेजा गया और जिसके लिए तुम सहानुभूति दिखा रहे थे", अजीत ने मुस्कुराते हुए बताया।


"बिल्कुल सही सजा मिल रही है फिर तो। मैं तो उसकी मासूमियत को देख कर...मुझे माफ़ कर दो अजीत भाई। लाडली जी मुझे पता नहीं था, आशा करता हूँ आप भी मुझे माफ़ कर दोगी। क्या हम दोस्त बन सकते हैं?"  कहकर रमेश ने अपना हाथ आगे बढ़ाय।

जिस पर अजीत और लाडली ने अपने हाथ रखे और तीनों मुस्कुरा दिए।


"आओ रमेश भाई आपको भूतलैंड की थोड़ी सैर  करा दी जाए बाकी की बाते हम घूमते हुए कर लेंगे; क्यों लाडली?" अजीत ने लाडली की ओर देखते हुए कहा और लाडली ने मुस्कुरा कर हाँ में सर हिला दिया।

अब ये तीनों चल पड़े भूतलैंड घूमने

तो आइए इनके पीछे हम भी चलते हैं 

किन्तु एक ब्रेक के बाद,,,



गुजारा भत्ता

प्रहसन

 

शीर्षक:- गुजारा भत्ता


पात्र-

1- पति (सुमेर सिंह) उम्र 35 साल

2-पत्नी(राधिका) उम्र 32 साल

3-मुख्य जज(महिला)

4-पुरुष जज-1

5-पुरुष जज-2

6-गवाह1 नाम चन्द्रावती (पड़ोसी वृद्व महिला उम्र 65 साल)

7-गवाह 2 पति की माँ उम्र 60 साल

8-गवाह3 पत्नी का मकान मालिक उम्र 45 साल

9-गवाह 4 मकान मालिक की पत्नी उम्र 40 साल

10-पेशकार (अदालत में केस के सम्बंध पैरवी करने वाला सरकारी व्यक्ति)

दृश्य -1 स्थान अदालत का कमरा


पर्दा उठता है सामने अदालत के कमरे का दृश्य है। सामने एक जज के स्थान पर जूरी के तीन सदस्य विराजमान हैं।

सामने ऊँचे लकड़ी के जंगले के पीछे एक महिला न्यायाधीश ऊँची कुर्सी पर काला कोट पहने बैठी हुई हैं। उनके दाएँ बाएँ लगभग वैसी ही लेकिन कुछ नीची कुर्सियों पर दो पुरुष न्यायाधीश बैठे हुए हैं।

 नीचे बैंचों पर कई लोग अदालत की इस कार्यवाही को देखने सुनने के लिए बैठे हुए हैं।

ज्यूरी के एक पुरूष सदस्य के संकेत पर पेशकार एक फ़ाइल उठाता है और आवाज लगाता है- 

पेशकार:-केस नम्बर सोलह सौ बत्तीस तलाक का मुकदमा वादी श्रीमती राधिका पत्नी प्रतिवादी श्री सुमेर सिंह हाज़िर हों। और फ़ाइल ज्यूरी के सदस्यों के सामने रखकर अपनी जगह बैठ जाता है।

 ज्यूरी के सदस्य पूरी तल्लीनता से दो मिनट फ़ाइल को देखते हैं। कमरे में इतनी शान्ति है कि पन्ने पलटने की आवाज़ साफ सुनाई देती है। फिर बायीं ओर बैठे ज्यूरी सदस्य की आवाज गूँजती है:- जैसा कि हमने इस केस को देखा और समझा, श्रीमती राधिका पत्नी श्री सुमेर सिंह अपने अपने पति से तलाक लेने के लिए अदालत में अर्जी लगाई थी किन्तु ना तो आप अदालत को तलाक लेने की वाजिब वजह ही बता पायीं थीं और ना ही आपके पति आपसे तलाक लेने को राजी हुए थे। और जैसा कि हमें पता लगा कि आप दोनों ने ही कोई भी वकील दलील पेश करने के लिए हायर नहीं किये थे। तब अदालत ने आपको अपनी पैरवी खुद ही करने की अनुमति दी थी। और दोनों पक्षों को सुनने के बाद उस समय अदालत ने आप दोनों को छः महीने साथ रहकर आपसी सम्बंध सुधारने का प्रयास करने और आपसी मतभेद मिलकर सुलझाने की सलाह देते हुए आपको छः महीने साथ रहने की सलाह दी थी। लेकिन अब जबकि छः महीने बीत चुके हैं और आप दोनों के विचार अभी भी एक दूसरे से जुदा ही हैं तो आपके मामले को फिर से देखने की सहमति अदालत ने आपको दी है। और पिछली बार की तरह इस बार भी आप लोग अपने वकील खुद ही हो। इस अदालत की पिछली तारीख पर हुई कार्यवाही और आप लोगों के वाद-विवाद को देखते हुए अदालत इस नतीजे पर पहुँची की आपका केस सामान्य केस नहीं है इस लिए अब आपके केस को सुनने के लिए कोई न्यायिक अदालत नहीं बल्कि पारिवारिक मामलों के विशेषज्ञ सदस्यों की इस ज्यूरी का गठन किया गया है जहाँ हम ज्यूरी सदस्य आपके वाद-विवाद को सुनकर कोई व्यवहारिक निर्णय लेने का प्रयास करेंगे। आप लोग यहाँ सामने आकर कुर्सियों पर बैठ जाइए। (नीचे आमने सामने कुछ दूरी पर रखी कुर्सियों की ओर संकेत करता है।

 दोनों पति-पत्नी ज्यूरी के सामने कुर्सियों पर बैठ जाते हैं।

 ज्यूरी के दायीं ओर के सदस्य:- हाँ तो राधिका जी आप अपना पक्ष रखिये और विश्वास रखिये की हम आपके हित में उचित निर्णय ही देंगे।

 

राधिका:- सम्मानित ज्यूरी मैं केवल और केवल अपने पति से तलाक लेकर अपने बच्चों के साथ अलग रहना चाहती हूँ और अदालत से दरख्वास्त करती हूँ कि इनसे मेरे बच्चों के लिए गुजारा भत्ते की रकम दिलाई जाए।

 ज्यूरी1- देखिये राधिका जी भारतीय संविधान के मैरिज एक्ट 1955 की धारा 13 में सभी पति-पत्नी को ये अधिकार दिए गए हैं कि यदि उन्हें लगता है कि वे अब साथ में नहीं निभा सकते तो उनका तलाक मंज़ूर करके उन्हें स्वतंत्र कर दिया जाए। किन्तु उसकी भी काफी शर्तें हैं। पहले तो आपको तलाक की कोई माकूल वजह अदालत को बतानी होगी। बिना किसी मज़बूत कारण के कोई भी अदालत किसी भी विवाह विच्छेद की स्वीकृति नहीं देती, इसलिए पहले आप वह कारण स्पष्ट करें जिसके आधार पर आप अपने पति से अलग होना चाहती हैं?

  

   राधिका:- मैं एक कम पढ़े लिखे और बेरोजगार व्यक्ति के साथ अब और नहीं रह सकती, इससे मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती है इसलिए मुझे डिवोर्स दिलाकर ससम्मान  जीवन जीने का अधिकार दिया जाए।

 ज्यूरी2- किन्तु अधिनियम 1955 की धारा 13 में ऐसे किसी भी कारण को विवाह विच्छेद का आधार नहीं माना जा सकता राधिका जी। 

 अभी ज्यूरी2 कुछ और कहने ही वाले होते हैं कि मुख्य न्यायाधीश महोदया उन्हें इशारे से रोक देती हैं।

  मुख्य न्यायाधीश महोदया:- तो राधिका जी आपको आपके पति कर कम पढ़े-लिखे और बेरोजगार होने से प्रॉब्लम है? तो क्या आप ज्यूरी को बताएंगी की ये प्रॉब्लम आपको शादी के 13 साल बाद अचानक क्यों होने लगी? क्या आप पहले से ये बात नहीं जानती थीं। अब जब आपके दो बच्चे हैं और शादी को एक लंबा अरसा गुज़र गया है तब अचानक आपको कैसे लगा कि आपके पति अनपढ़ हैं। ये तो आपके विवाह के वक्त भी इनके और आपके परिवार ने बताया होगा। फिर भी उस समय अपने विवाह के लिए सहमति दी  होगी। हाँ यदि आपके पति और उनके परिवार ने इनकी शिक्षा के विषय में आपसे झूठ कहा हो तब ये ज्यूरी आपके विवाह विच्छेद के विषय पर विचार अवश्य करेगी किन्तु ऐसे में भी आपके पति पर झूठ बोलने और तथ्य छिपाने का दोष सिद्ध होने के बाद। तो आप इस विषय पर क्या कहते हो मिस्टर सुमेर सिंह, क्या अपने और आपके परिवार ने इनसे और इनके परिवार से आपकी शिक्षा और रोजगार सम्बंधित तथ्य छिपाये थे।


 सुमेर:- सम्मानित ज्यूरी यदि आज्ञा दें तो मैं शुरू से सारी बात बताना चाहता हूँ?

 ज्यूरी के सदस्य आपस में इशारों में कुछ बात करने के बाद एक स्वर में:- बताइये किन्तु इतना ध्यान रहे कि जो भी बातें इस केस को साफ करती हों केवल वही बात कही जाय अनावश्यक चर्चा करके ज्यूरी का कीमती वक़्त बर्बाद ना किया जाए।

 

 सुमेर:- जी अवश्य, मैं इस बात का ध्यान रखूँगा।


 ज्यूरी1:-  ठीक है बताइये।


 सुमेर:- जब हमारी शादी हुई उस समय मैं बारहवीं पास था और राधिका दसवीं पास। हम दोनों के ही परिवार आर्थिक कारणों से हमें आगे पढ़ाने में असमर्थ थे। मैंने अपने घर की माली हालत देखते हुए एक मिल में नौकरी शुरू कर दी थी तभी हम दोनों के परिवार और हमारी आपसी सहमति से हमारा विवाह हो गया। सब बहुत अच्छा था हम दोनों भी बहुत खुश थे। शादी के कुछ दिन बाद राधि ने मुझसे आगे पढ़ने की इच्छा जाहिर की जिसे मैंने खुशी-खुशी मान लिया और इसका दाखिला कॉलेज में करा दिया। माननीय ज्यूरी मैने अपने खर्च में कटौती करके और इनके हिस्से का घर का काम खुद करके इन्हें ग्रेजुएशन फिर बी एड कराया। जब ये ग्रेजुएशन कर रहीं थीं तभी हमारे घर बेटे का जन्म हुआ। बेटे की देखभाल के चलते इन्हें पढ़ाई में परेशानी होती थी। इनकी ये बात जानकर मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी और घर में ही छोटी सी दुकान खोल ली। इससे मैं हर समय घर पर ही रहता था तो अब ये निश्चिंत होकर पढ़ाई पर ध्यान देती और कॉलेज भी चली जाती थीं। आदरणीय ज्यूरी जिन बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी ये माँग रही हैं उनका तो इन्हें ये भी नहीं पता कि वह रात में कितनी बार उठकर क्या-क्या माँग करते हैं। मैंने दुकान, घर और बच्चे सम्भालते हुए इन्हें पढ़ाया और नौकरी के एग्जाम और इंटरव्यू दिलवाए। हमारी मेहनत एक दिन सफल हुई जब ये राजकीय बालिका इंटर कॉलेज में लेक्चरार बनीं। इस बीच हमारे घर पर रख छोटी बेटी भी आ चुकी थी। अभी हमारा बेटा आठ साल का और बेटी पाँच साल की है जो दोनों शुरू से ही मेरे साथ रहते हैं और मेरी पत्नी अपनी जॉब के चलते शहर में किराए के मकान में रहती है।

 मैं ज्यूरी को स्पष्ट करना चाहूँगा की मैं अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता हूँ और तलाक जैसा अशुभ शब्द मैं उसके लिए सोच भी नहीं सकता किन्तु फिर भी यदि मेरी राधि मेरे साथ रहना नहीं चाहती तो वह शौक से अलग रहे लेकिन मेरे बच्चे मेरे साथ ही रहेंगे और जहाँ तक गुजारे भत्ते का सवाल है तो इसने खुद ही मुझपर इल्जाम लगाया है कि मैं बेरोजगार हूँ तो ऐसे में भत्ता मुझे और बच्चों को राधिका की तरफ से मिलना चाहिए। बस मेरी यही गुजारिश है कि राधि चाहे तो बेशक अलग रहे किन्तु बच्चे मैं खुद ही पालूंगा।


 ज्यूरी1:- हाँ तो राधिका जी क्या जो भी मिस्टर सुमेर सिंह ने कहा वह सब सही है?


 राधिका:- सच है कि इन्होंने मुझे आगे पढ़ाया लेकिन कोई एहसान नहीं किया, बल्कि इसमें इनका स्वार्थ था। इनका सोचना था कि खुद तो ये बेरोजगार हैं तो क्यों ना पत्नी से नौकरी करवाकर उसकी कमाई खाई जाए। और रही बच्चों की बात तो ऐसा नहीं है कि इन्होंने अकेले ही सब किया है। मैं भी घर पर रहती थी और काम करती थी। और फिर पिछले 3 साल से तो मैं अपनी कमाई भी इनपर लुटा रही हूँ। लेकिन इनका लालची मन अब मेरे बच्चों को मुझसे दूर करके उनके नाम पर मेरी कमाई लूटना चाहता है। मुझे अब इस आदमी से तलाक चाहिए, मैं अपने बच्चों को लेकर शहर में रहूँगी जहाँ के अच्छे स्कूल में पढ़कर वे आगे बढ़ सकें। मेरे बच्चे इस अनपढ़ आदमी के पास रहें ये अच्छी बात नहीं।

 

 सुमेर:- ये इल्ज़ाम सरासर गलत है योर ऑनर की मैंने कभी राधिका की कमाई रखने के बारे में सोचा भी हो। मैं तो इसके नौकरी करने की बात पर इसलिए तैयार हुआ था क्योंकि इससे राधिका को खुशी मिल रही थी। मैंने राधिका को उसकी खुशी के लिए बाप बनकर पढ़ाया। राधिका के आराम के लिए बच्चों को माँ बनकर पाला। किन्तु एक पति होने के नाते भी कभी उसपर किसी तरह का कोई अधिकार नहीं जमाया। फिर भी आज मेरे किये को कर्तव्य बताकर राधिका खुद के हर कर्तव्य से मुँह मोड़कर जाना चाहती है। यदि इसे किसी आभासी दुनिया में जाना भी है तो खुशी से जाए लेकिन मेरे बच्चे इसके साथ कभी खुश और सुरक्षित नहीं रह पाएंगे। मैं ज्यूरी से हाथ जोड़कर अपील करता हूँ कि मेरे बच्चों को मुझसे अलग ना किया जाय।


 मुख्य जज:- हमने आप दोनों की बातें सुनीं। बाकी की कार्यवाही लंच ब्रेक के बाद होगी। आप दोनों अपने-अपने पक्ष में जो भी गवाह पेश करना चाहें उनकी लिस्ट अदालत में जमा कर दें लंच बाद उनसे भी बात कर ली जाएगी और जो भी निर्णय होगा आज ही सुना दिया जाएगा। अभी के ये अदालत बर्खास्त होती है।

  

 दृश्य - 2 अदालत का ही एक छोटा कमरा है जहाँ ज्यूरी के तीनों सदस्य आपस में विचारविमर्श कर रहे हैं।

 ज्यूरी1:- क्या लगता है मैडम, क्या राधिका का पति सच में बच्चों के बहाने उससे पैसे ऐंठना चाहता है?

 ज्यूरी2:- मेरे विचार से तो इनके झगड़े के पीछे की असली वजह कुछ और ही है। हो सकता है शहर में रहते हुए महिला की दोस्ती किसी… और इसी लिए वह आज़ाद होना चाहती है।

 

  मैडम:- मेरे विचार से ऐसा कुछ नहीं है बस राधिका के मन में कोई ऐसी बात घर कर गयी है जिससे वह बाहर नहीं आ पा रही है। यदि उसके कहीं सम्बन्ध होते तो वह कभी बच्चो को अपने साथ रखने की ज़िद नहीं करती। और रही बात सुमेर की तो वह सच में अपनी पत्नी और बच्चों से प्रेम करता है। लेकिन फिर भी हमें इन दोनों को सच्चाई समझने के लिए कुछ लोगों से बात करनी होगी। मुझे पूरी उम्मीद है कि ये लोग सही रास्ते पर आ जाएंगे। हमसे पहले ये केस जिनके पास था उन्होंने भी इन दोनों की बातें ध्यान से सुनी थीं और इन्हें कहा था कि तुम लोगों को अदालत की नहीं किसी फेमिली काउंसल की ज़रूरत है। 

 

 ज्यूरी1:- लेकिन मेडम ये लोग किसी काउंसलर के पास तो गए ही नहीं?

 मेडम:- इसी लिए तो जज साहब के विशेष अनुरोध पर इनके मामले के लिए हम लोगों की ज्यूरी बनाई गई है। आपको तो पता ही है कि मैं एक फेमिली काउंसलर हूँ और आप दोनों भी तो वकील होने के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक भी हो। इसीलिए इनके केस के लिए हमे चुना गया है कि शायद एक परिवार बिखरने से बच जाए।

 

 तभी ज्यूरी1 घड़ी की ओर इशारा करता है और तीनों मुस्कुराते हुए उठ खड़े होते हैं।


      दृश्य- 3

  

   अदालत का वही कमरा जहाँ सुनवाई चल रही थी।

तीनों जजो के आते ही सारे लोग खड़े हो जाते हैं और उनके इशारा करने पर बैठ जाते हैं। 

 पेशकार एक पेपर ऊपर मेज पर रखता है जिसे बारी-बारी तीनों लोग देखते हैं। और फिर पेशकार को कुछ इशारा करते हैं।


  पेशकार:- केस 1632 राधिका सुमेर तलाक केस के गवाह सुमेर सिंह के गाँव की महिला श्रीमती चन्द्रावती देवी हाज़िर हों।


 वृद्व महिला आगे आती हैं और गवाह की कुर्सी पर बैठ जाती है।

 

 ज्यूरी1:- श्रीमती चन्द्रावती जी आप इन दोनों को कैसे जानती हैं?


 चन्द्रावती:- जज साहिबा ये हमारे गाँव में हमारे पड़ोसी हैं।


  ज्यूरी1:- तब तो आप इन दोनों को खूब अच्छी तरह जानती होंगी?

 चन्द्रावती:- जी जज साहिब ये सुमेर जब से पैदा हुआ इसे तब से जानती हूँ और ये बहु को विवाह के बाद से।


 ज्यूरी2:- क्या इन दोनों में कभी झगड़ा होता था या कोई अन्य ऐसी बात जिससे लगे कि ये दोनों एक साथ नहीं रह सकते?


 चन्द्रावती:- नहीं साहब इन दोनों में कभी कोई झगड़ा या कहासुनी नहीं हुई। ऊपर से सारे गाँव वाले यही कहते थे कि ये दोनों एक दूजे के लिए ही बने हैं। सुमेर घरवाली को इतना प्यार करता था कि उसे पढ़ाने के लिए खुद खरवाली बन गया। उसे घर का कोई काम करने ही नहीं देता था। और अगर कभी कोई गाँव वाला समझाता की सुमेर बीबी को ज्यादा पढ़ाकर मास्टरनी मत बना नहीं तो कल सर पर बैठेगी तो ये पगला हँसकर जवाब देता। मेरे ही तो बैठेगी किसी का क्या जाता है। मेरी बीबी है मैं पूरा का पूरा उसका हूँ वह जी चाहे जहाँ बैठे।


  ज्यूरी1:- तो क्या आप बता सकती हैं अब ऐसा क्या हुआ जो ये तलाक लेने अदालत तक आ गए?


चन्द्रावती:- क्या जाने साहब किसकी नज़र लग गयी इनके प्यार को। बहुरिया नोकरी करने शहर क्या गयी बेचारे सुमेर की जिंदगी की बहार ही चली गयी। और अब ना जाने राधा को क्या हुआ जो तलाक़ की जिद पर अड़ी है। मुझे तो लगता है दिमाग फिर गया है बहु का या फिर किसी ने कुछ करवा दिया है।


 दोनों ज्यूरी मेडम की ओर देखते हैं और फिर चन्द्रावती को जाने को कह देते हैं।


पेशकार:- अगला गवाह सुमेर की माताजी हाज़िर हों...



सुमेर की बूढ़ी मॉं जो कोई 60/62 साल की हैं लेकिन कमज़ोरी से और ज्यादा बूढ़ी लग रही हैं आकर गवाह की कुर्सी पर बैठ जाती हैं।


ज्यूरी1:- क्या आप इन दोनों के बारे में कोई भी ऐसी बात बता सकती हैं जिसके आधार पर अदालत मान ले कि ये लोग एक साथ नहीं रह सकते और इन्हें तलाक दे दे।


 सुमेर की माँ:- नहीं साहब मुझे ऐसी कोई बात नहीं पता।

 ज्यूरी2:- आपके साथ आपकी बहु का बर्ताव कैसा रहा है। क्या ये झगड़ालू या बदजबान हैं।


सुमेर की माँ:- नहीं साहब ऐसा भी कुछ नहीं है ऐसे भी पढ़ाई लिखाई में बहु को मेरे साथ रहने का टेम ही कहाँ मिला। ये यो वियाह के बाद पहले पढ़ने में और बाद में पढ़ाने में ही रह गयी। इसके तो बच्चे भी इसे बाहर की मास्टरनी माने हैं। उनके तो माँ भी सुमेर है और बाप भी। उसने कभी बच्चो का कोई काम नहीं किया।


ज्यूरी2:- ठीक है आप जा सकती हो।


पेशकार:- अगला गवाह राधिका के मकान मालिक हाज़िर हों।


 मकान मालिक आकर गवाह की कुर्सी पर बैठ जाता है।


ज्यूरी1:- आप इन दोनों को कब से जानते हो?


मकानमालिक:- दोनों को नहीं साहब मैं तो बस मास्टरनी जी को ही जनता हूँ, ये पिछले डेढ़ साल से हमारे मकान में किराएदार की हैसियत से रह रही हैं।


 ज्यूरी2:- क्या आप बता सकते हो इस बीच इनका व्यवहार कैसा रहा है? ऐसी कोई बात जो आपको असमान्य लगती हो?


मकानमालिक:-नहीं साहब ऐसा तो कुछ याद नहीं।


मुख्य जज:- क्या राधिका से मिलने कोई लोग आपके घर पर आते हैं? 


मकानमालिक:- ज्यादा तो नहीं क्योंकि राधिका मैडम अपने आप में ही रहने वाली महिला हैं। बस कभी कोई सहकर्मी अध्यापिका या कभी कोई छात्र छात्रा बाकी तो कोई नहीं।


 ज्यूरी2:- ठीक है आप जाइये।


पेशकार:- अगली गवाह राधिका की मकान मालकिन हाज़िर हों।


मकान मालकिन आकर कुर्सी पर बैठ जाती है।


 ज्यूरी1:- आप राधिका जी को कब से जानती हैं?


 मकान मालकिन:- यही कोई डेढ़ साल से।


ज्यूरी2:- आप इनके बारे में कोई ऐसी बात बताना चाहेंगी जिसके आधार पर इन्हें तलाक मिल सके।


मालकिन:-ऐसा तो कुछ नहीं है बताने को सिवाय इसके की जब से राधिका हमारे यहाँ आयी हैं ना तो कभी उनके पति और ना ही उनके बच्चे उनसे मिलने आये। हम लोग तो इनके पति को जानते तक भी नहीं हैं। आज पहली बार इन्हें इस अदालत में ही देख रहे हैं।


मुख्य जज साहिबा:- आप राधिका जी के चरित्र के बारे में क्या कहना चाहेंगीं?


मालकिन:- ऐसी कोई बात हमने कभी महसूस नही। की जिससे राधिका के चरित्र को खराब कहा जा सके लेकिन हर शनिवार शाम से रविवार शाम तक ये कहीं चली जाया करती हैं।


जज साहिब:- तो मिस्टर सुमेर क्या आप बता सकते हैं कि आप कभी राधिका से मिलने शहर क्यों नहीं जाते? क्या आप दोनों के बीच कोई झगड़ा चल रहा है?


सुमेर:- नहीं जज साहिबा, ऐसा इसलिए है क्योंकि मेरे ऊपर बच्चों, दुकान और माताजी की पूरी जिम्मेदारी है और फिर हर शनिवार को राधिका तो घर आती ही थी। लेकिन पिछले कुछ समय से राधिका भी हर शनिवार नहीं आयी और आती भी थी तो बस बच्चों से ही बात करती रही है।


जज साहिब:-सब ठीक है राधिका और सुमेर, आप दोनों के बीच ऐसा कोई कारण नहीं नज़र आ रहा जिसके बेस पर आपको तलाक दिया जाए। आपके गवाह भी ऐसा कोई कारण नहीं बता पाए फिर भी जब राधिका ने ठान ही लिया है कि उसे तलाक लेना ही है तो हम ज्यूरी सदस्य इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि राधिका अपने पति सुमेर को उनके द्वारा अपनी पढाई लिखाई पर खर्च की गई रकम के एवज में एक मुश्त पाँच लाख रुपये अदा करे जिससे सुमेर सिंह अपनी दुकान को बड़ा कर सके।

और दोनों बच्चों के भरण पोषण के लिए ज्यूरी राधिका पर हर महीने दस हज़ार रुपये देना तय करती है। और क्योंकि सुमेर बेरोजगार है और उसपर बूढ़ी माँ की जिम्मेदारी भी है तो राधिका हर महीने दस हज़ार रुपये सुमेर को गुजारा भत्ता के रूप में अदा करे। अदालत अधिनियम के आधार पर ये भी फैसला सुनाती है कि यदि सुमेर कहीं दूसरी शादी करता है तो तत्काल प्रभाव से उसका गुजारा भत्ता बन्द करके बच्चो की कस्टडी राधिका को दे दी जाय। और अगर कभी राधिका कहीं और शादी करती है तो गुजारा भत्ते की रकम को राधिका के वेतन का 60 प्रतिशत तक बढ़ा दिया जाए।

 आजकल लोगों में बिना कारण के ही गुस्सा, शक और अविश्वास बढ़ता ही जा रहा है। इस केस में भी कुछ ऐसा ही लगता है कि राधिका के मन में कहीं ना कहीं ये बात घर कर गयी है कि सुमेर या तो उसका जॉब करना पसंद नहीं करता या फिर केवल उसे पैसे के लिए नौकरी करने भेज रखा है, और इसका कारण कहीं ना कहीं यही नज़र आता है कि सुमेर कभी भी उससे मिलने नहीं आता। जबकि सुमेर की बातों से लगता है कि उसे इस बात का पता भी नहीं की राधिका इतना पढ़ लिखकर भी इतनी छोटी सी बात को तलाक का कारण बना देगी। बाकी इतने लोगों से बात करने और केस को समझने के बाद ज्यूरी को और कोई कारण नज़र नहीं आता।

  वैसे ज्यूरी की सलाह आप दोनों के लिए यही है कि आप लोग एक साथ ही रहें और ये बिना कारण का मनमुटाव खत्म कर दें। और अगर राधिका चाहे तो सुमेर को और पैसे देकर उसकी दुकान शहर में ही खुलवा दे और दोनों एक साथ ही रहें, सुमेर को भी राधिका के अकेलेपन और खाली दिमाग में उपजे बिना बजह के कारणों को खत्म करने के लिए राधिका के मन की बात समझते हुए यही प्रयास करना चाहिए कि जैसे भी सम्भव हो दोनों साथ ही रहें।

 अदालत की कार्यवाही अब खत्म होती है।


पर्दा गिरता है।।



लेखक- नृपेंद्र शर्मा

ठाकुरद्वारा जिला मुरादाबाद

मोबाइल 9045548008




Saturday, September 18, 2021

झूले पर मौत

अक्टूबर का महीना था, मौसम अधिकतर सुहाना ही होता था। लेकिन अक्सर शाम जल्दी ढलने लगती थी और पर्वतीय इलाकों में शाम के बाद सर्द लहर चलना भी आम बात थी।
सुहानी और सुरेश अपने पारिवारिक मित्र पंकज और प्रेरणा के साथ नैनीताल टूर पर आए हुए थे। सुरेश के पास मारुति जिप्सी थी जो पहाड़ी यात्राओं के लिए बिल्कुल उपयोगी थी। ऊपर से सुरेश ने उसे मोडिफाइड करवाकर छत को एक फाइबर ग्लास से बनबाया था और पीछे की सीट सीधी करवाकर अगली सीटों के पैरलर करवा ली थी। जिप्सी की फाइबर ग्लास रूफ केवल चार पिलर के सहारे टिकी हुई थी जिसे कभी भी एक साइड से खोलकर पीछे डिक्की में रख कर जिप्सी को फूल ओपन बनाया जा सकता था।
दो दिन और एक रात की फुल मस्ती के बाद ये चारों लोग शाम ढलने से पहले नैनीताल से वापस आने के लिए निकल पड़े। लेकिन उस दिन शाम कुछ जल्दी ही ढलने लगी थी और सात बजते-बजते अंधकार पूरी तरह पसर गया था। यूं तो ठंड बहुत ज्यादा नहीं थी लेकिन कहते हैं ना कभी कभी वक़्त पूरी तरह मज़ाक के मूड में होता है। तो शायद आज का दिन भी इन चारों के लिए कुछ ऐसा ही बन गया था। वातावरण में धीरे-धीरे घना सफेद कोहरा फैलने लगा था जो बस बीस पच्चीस फुट की ऊँचाई तक ही था लेकिन पूरी तरह सफेद रंग की चादर जैसे उनके आगे उनका रास्ता रोके खड़ी थी।
"मैंने कहा था ना कि या तो जल्दी निकलो नहीं तो कल सुबह चलेंगे। अब देखो कैसा डरावना मौसम हो गया है। सामने का कुछ भी नज़र नहीं आ रहा है। ऐसा लगता है कि ऊपर वाला भी हमें वापस जाने से रोकने का संकेत दे रहा है।" प्रेरणा घबराई हुई आवाज में बोली।
"अरे कुछ नहीं भाभी जी! ये तो बस पहाड़ी आबोहवा का असर है। पहाड़ों में ऊपर ठंड होने लगी है और नीचे मौसम गर्म है। बस इसी लिए ये कोहरा आ गया है। हम लोग बस आधे घण्टे में ही कालाढूंगी से आगे निकल जाएँगे उसके बाद सड़क सीधी और एरिया प्लेन होगा। फिर हम आराम से दो घण्टे में मुरादाबाद पहुँचकर अपने बिस्तर में होंगे।" सुरेश ने लापरवाही से गाड़ी चलाते हुए कहा, लेकिन कोहरे और लापरवाही में वह ये नहीं देख पाया कि गाड़ी कबकी सड़क से उतर कर नीचे कच्चे रास्ते पर चलने लगी है।
कोहरे की उस चादर पर पड़कर गाड़ी की लाइट्स भी घेरे के रूप में फैल जाती थीं। उन्हें नज़र आते थे तो बस पेड़ों के साये जो सामने रास्ता होने की पुष्टि करते इनके साथ-साथ चल रहे थे।
ऐसे ही चलते-चलते कोई एक घण्टा गुजर गया था। गाड़ी की स्पीड भी बहुत कम थी। प्रेरणा को हैरानी हो रही थी कि पिछले एक घण्टे से ना तो कोई गाड़ी इनके सामने से आई थी और ना ही पीछे से। लेकिन वह ये सोचकर चुप थी कि ये लोग फिर डरपोक कहकर उसकी मज़ाक बनाएँगे। लेकिन अंदर ही अंदर वह बुरी तरह घबरा रही थी और हनुमान जी को याद कर रही थी।
कुछ ही दूर और चलने के बाद इनकी गाड़ी झटके खाने लगी और फिर एकदम खररर!! की तेज आवाज करके बन्द पड़ गयी।
"अब??" प्रेरणा और प्रशांत ने लगभग एक साथ ये सवाल किया।
"लगता है चढ़ाई पर चढ़ने की वजह से इंजन गर्म हो गया।" सुरेश ने फिर उसी बेपरवाही से जवाब दिया और  गाड़ी से नीचे कूद गया।
"लेकिन हम तो नीचे उतर रहे हैं फिर चढ़ाई कहाँ से आ गयी? और ये रास्ता भी कुछ अनजान सा नहीं लग रहा? प्रेरणा ने नीचे देखते हुए कहा।
"हाँ यार हम तो नैनीताल से वापस लौट रहे हैं तो फिर हम चढ़ाई क्यों चढ़ रहे हैं? और ये तो कोई कच्चा रास्ता है यार सुरेश। क्या हम लोग रास्ता भटककर कहीं और निकल आये हैं?" पंकज ने डरते हुए पूछा।
"अरे यार चुप करो तुम दोनों डरपोक लोग! पहले मुझे गाड़ी देखने दो की इसमें क्या हुआ है। तबतक तुम लोग नेट खोलकर लोकेशन और रास्ता देखने की कोशिश करो।" सुरेश ने कहा और आगे बढ़कर गाड़ी का बोनट उठा दिया। बोनट उठते ही उसमें से उठते धुएँ से सुरेश जलते-जलते बचा।
गाड़ी इतनी बुरी तरह गर्म हुई थी कि घुएँ में आग की लपटें नज़र आ रही थीं।
"ओह्ह!! ओवर हीट होने के कारण इंजन जाम हो गया लगता है। अब बिना इंजन ठंडा करे गाड़ी स्टार्ट नहीं होगी यार!" सुरेश पहिये पर लात मारकर झुंझलाहट उतरते हुए बोला।
"फिर अब क्या करें?" सुहानी जो अभी भी सीट पर बैठी हुई थी, नीचे उतरते हुए बोली।
"पंकज देखो पीछे डिक्की में एक कैन में पानी होगा जरा ले आओ तो।" सुरेश ने धीरे से कहा।
"यार सुरेश यहाँ कैन तो है लेकिन इसमें पानी की एक बूंद भी नहीं है।" पंकज कैन को हिलाते हुए बोला।
"धत्त!!! इसे कहते हैं मुसीबत में और मुसीबत।
अब जाओ और कहीं से पानी ढूंढकर लेकर आओ।" सुरेश ने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा।
"अरे यार अब इस अनजान जँगल में मैं कहाँ से पानी ढूँढ़ के लाऊँ?" सुरेश डरते हुए बोला।
"अच्छा चल हम दोनों चलते हैं। और तुम दोनों गाड़ी में ही बैठी रहना हमारे लौटने तक।" सुरेश ने प्रेरणा और सुहानी को देखते हुए कहा।
"यार सुरेश मुझे इन दोनों को ऐसे अकेले इस घने जंगल में छोड़कर जाना ठीक नहीं लग रहा। मेफे विचार से या तो हम चारों को चलना चाहिए या फिर यहीं रुककर रात बितानी चाहिए। ऐसे भी ये रास्ता बिल्कुल सुनसान है। तुमने देखा है कि पिछले दो घण्टे से हमने इस रास्ते पर ना तो कोई गाड़ी देखी है और ना ही कोई आदमी।" पंकज ने कुछ सोचते हुए कहा।
"पंकज जी ठीक कह रहे हैं सुरेश, और ऐसे भी इस घने अँधेरे में पानी खोजना आसान नहीं होगा।
क्या तुम्हें याद है कि पीछे इस रास्ते पर पानी का कोई पॉइंट दिखा हो या कोई बस्ती ही मिली हो। फिर आगे भी अंधेरे में ही हाथ-पांव मारने होंगे।" सुहानी ने सुरेश को समझाते हुए कहा।
"ठीक है आओ कुछ सोचते हैं।" सुरेश ने गाड़ी से बोतल निकालते हुए कहा और पैग बनाने लगा।
"यार रात भर यहाँ रुकना भी सही नहीं होगा! ये जँगल जँगली जनवरों से भरा हो सकता है औऱ यदि कोई तेंदुए या हाथी इधर आ गया तो हमारे लिए जान का खतरा हो जाएगा। वैसे इस रास्ते की बनाबट कुछ ऐसी नहीं लगती जैसे ये किसी रिसोर्ट का रास्ता हो? अभी समय क्या हुआ है? और तुमने नेट से लोकेशन देखने की कोशिश की?" सुरेश ने कई सवाल एक साथ कर दिए।
"समय तो अभी नो बजे हैं और नेटवर्क यहाँ है नहीं तो बाकी हम लोकेशन तो छोड़ किसी को कॉल तक नहीं कर सकते।" पंकज ने जवाब दिया।
"ओह्ह!! फिर अब?"  प्रेरणा ने घबराहट भरी आवाज में पूछा।
"चलो चारों लोग एक साथ चलते हैं शायद सुरेश का अनुमान ठीक हो और आगे कोई रिसोर्ट मिल जाये। नहीं तो कोई पहाड़ी गाँव तो अवश्य होना चाहिए क्योंकि इस रास्ते पर घास बिल्कुल नहीं है और गाड़ियों के पहियों के निशान भी हैं।" सुरेश ने कहा और चारों लोग उस रास्ते पर आगे बढ़ गए।
कोई आधा घण्टा चलने के बाद इन्हें सामने एक बहुत बड़ा घास का मैदान दिखाई दिया जिसके बीच में लोहे के दो झूले लगे हुए थे। उसके पीछे एक बड़ी सी बिल्डिंग थी जिसका शीशे के दरवाजा दूर से ही चमक रहा था। उसे देखकर इनकी आँखो में चमक आ गयी और इनके कदमों की गति खुद ब खुद बढ़ गयी।
थोड़ा आगे बढ़ने पर इनके कानों में झूले की करर्रर!! करर्रर!! की तेज आवाज आने लगी। इन्होंने ध्यान से देखा सामने झूलों पर दो बच्चे लगभग अर्धनग्न मस्त होकर झूला झूल रहे थे।
"अरे यार कौन लोग हैं ये जो इतनी सर्दी में भी बच्चों को इतनी रात में झूला झूलने के लिए छोड़ रखा है और खुद मस्त होकर कमरों में पड़े हैं।" सुरेश उन बच्चों को देखकर कुछ जोर से बोला।
तभी उन्हें बच्चो के तेज खिलखिला कर हँसने की आवाज आने लगी।
"शहशशस!!!, मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा, इतनी रात में ये बच्चे बाहर कैसे हैं। जरा देखो उन बच्चों को इतने नाज़ुक से दिख रहे हैं लेकिन झूला ऐसी आवाज कर रहा है जैसे ये हाथी के बच्चे हों। और इनकी हँसी कितनी डरावनी है।" प्रेरणा पंकज का हाथ पकड़कर रोकते हुए बोली।
"अरे कुछ नहीं भाभी ये बस आपका वहम है, अभी समय ही क्या हुआ है जो बच्चे बाहर नहीं हो सकते। और रही बात झूले की आवाज की तो हो सकता है झूला बाहर होने की बजह से जंग खा रहा हो और आवाज कर रहा हो।" सुरेश उन बच्चों की ओर बढ़ते हुए बोला।
ये लोग अभी कुछ ही दूर आगे बढ़े थे कि एक आदमी तेज़ी से दौड़ता हुआ आया और बोला, "साब जी उधर मत जाइए ये अच्छा होटल नहीं है। आप लोग मेरे पीछे आइए। उधर मुड़कर मत देखना साब जी बस मेरे पीछे चले आइए।"
पता नहीं ये उसकी आवाज का जादू था या कोई दैवीय प्रेरणा की ये लोग उस आदमी के पीछे हो लिए चुपचाप।
ये लोग अपनी तरफ से लगभग दौड़ ही रहे थे लेकिन फिर भी उस आदमी को पकड़ नहीं पा रहे थे। लेकिन बस बिना पीछे देखे ये लोग उस आदमी के पीछे भागे जा रहे थे।
इनके कानों में पीछे की तरफ से बहुत भयानक चीखें गूँजती महसूस हो रही थीं जैसे कोई इनके इधर भाग आने से बहुत नाखुश हो।
कुछ ही देर में सामने कुछ दिए से जलते दिखने लगे।
"उधर साब जी!!" उस आदमी ने इशारा करके कहा और अचानक गायब हो गया।
ये लोग अब और तेज़ी से दौड़ रहे थे इन्हें कुछ-कुछ समझ आ रहा था। कुछ ही देर में ये उस गाँव में थे और एक घर का दरवाजा पीट रहे थे।
"कुछ ही देर में दरवाजा खुला, सामने एक बूढ़ा और एक लड़की खड़े थे।
"हम लोग मुसाफिर हैं और रास्ता भटक गए हैं, क्या आज रात के लिए हम यहाँ रह सकते हैं?" सुरेश ने घबराए स्वर में पूछा।
"आ जाइये आप लोग।" बूढ़े ने कहा और सामने से हट गया।
कुछ ही देर में ये लोग उस बूढ़े को सारी कहानी सुना चुके थे कि कैसे ये लोग नैनीताल से निकलकर रास्ता भटक गए और इनकी गाड़ी खराब हो गयी। फिर इन्हें झूले पर बच्चे दिखे और ये उधर जा रहे थे तो कोई बूढ़ा बाबा इन्हें इधर ले आया।
इनकी कहानी सुनकर बूढ़े ने बस इतना ही कहा कि, "झूले पर मौत!!
बच गए तुम लोग देवता के आशीर्वाद से। चलो अब खाना खाकर सो जाओ बाकी बातें मैं सुबह बताऊँगा।"
इसी बीच बूढ़े की पोती ने इनके लिए भात परोस दिया और ये लोग खाकर बिस्तर पर लेट गए।
सुबह बूढ़े ने बताया कि "जिस जगह से देवता ने तुम्हे बचाया वह कोई रिसोर्ट नहीं बल्कि अंग्रेजों के जमाने का कब्रिस्तान है और जो झूले पर झूलते हुए तुम्हे दिखाई दिए वह कोई बच्चे नहीं बल्कि दुस्ट आत्माएँ हैं। अगर तुम लोग दो कदम और आगे बढ़ जाते तो फिर तुम्हें कोई नहीं बचा सकता था।
इन लोगों की पूरी बस्ती को आज़ादी की लड़ाई में जला दिया गया था और अब ये लोग आत्मा बनकर उसी का बदला लेने के लिए लोगों को भ्रमित करके इधर बुलाकर डराकर मार डालते हैं।  हमारे ग्राम देवता कई बार लोगों को बचा लेते हैं लेकिन कई बार ग्राम देवता को भी ये लोग भ्रमित कर देते हैं और फिर उन्हें वहाँ पहुँचने में देर हो जाती है। एक बार जब कोई इनकी सीमा में कदम रख देता है तो फिर उसे कोई नहीं बचा सकता। तुम लोग भाग्यशाली हो जो समय रहते ग्रामदेवता तुम्हें बचा लाये।"
फिर ये लोग बूढ़े को धन्यवाद देकर वहाँ से चले आये इन्होंने दूर से वह जगह देखी जहाँ रात में इन्हें झूले पर मौत दिखी थी। वह बहुत डरावनी जगह थी एक सदियों पुराना टूटाफूटा कब्रिस्तान जिसका लोहे का टूटा हुआ गेट लटक रहा था और रात में वे आत्माएँ इन्ही दरवाजे के पल्लों पर झूल रहे थे। ये देखकर इनके रोएं खड़े हो गए और ये लोग बिना पीछे देखे वापस लौट आये।
अब इनकी गाड़ी आराम से चालू हो गयी और ये लोग घर आ गए।
लेकिन लौटने के बाद भी कई दिन इन्हें वही झूले पर मौत नज़र आती रही और ये लोग बुखार में काँपते रहे।

©नृपेंद्र शर्मा "सागर"


Thursday, August 26, 2021

अच्छे लगने लगे

"तुम्हें डर नहीं लगता ऐसे आधी रात एकांत में मुझसे मिलने आते हो? क्या ये श्मशान, ये जलती चिताएं, ये बरगद पर लटके मुर्दों की अस्थियों के कलश कुछ भी तुम्हें यहाँ आने से नहीं रोकते? और तुम्हारे घर वाले...! क्या उन्हें भी तुम्हारे आधी रात एकांत में श्मशान में आना बुरा नहीं लगता? कपिल की गोद में सर रखे लेटी हुई राजबाला ने उसकी आँखों में देखते हुए पूछा।
"अरे राज!! कितने सवाल करती हो तुम। अरे जल्दी ही सुबह होने लगेगी और फिर तुम्हें अपनी दुनिया में वापस जाना पड़ेगा। जब तक हो तब तक तो कम से कम मोहब्बत की बातें कर लो! तुमसे मिलना अच्छा लगता है", कपिल ने उसके बालों में उँगलियाँ घुमाते हुए धीरे से कहा और राजबाला जोर से हँसने लगी।
"अब इसमें हँसने वाली कौन बात कह दी मैंने जो मेरा मज़ाक उड़ा रही हो।
"ना...ना मैं मज़ाक नहीं उड़ा रही कपिल! मैं तो बस तुम्हारे बारे में सोच कर हँस रही हूँ। याद है जब मैं जिंदा थी और एक हसीन जिस्म की मालकिन भी, तब कितनी बार मैं खुद तुम्हे प्यार में आगे बढ़ने के इशारे देती थी लेकिन तुम बुद्धूराम!! कभी गलती से हाथ भी छू जाता था तो ऐसे चिहुँक जाते थे जैसे करंट लग गया हो। और अब तुम्हारी मोहब्बत की बातों की प्यास मिटती ही नहीं। अब मेरे पास क्या बचा है कपिल जो मैं तुम्हें दे सकूँ। अरे अब तो मैं बस एक हवा हूँ। तुम मुझे भूल जाओ कपिल और अब किसी सुंदर सी लड़की से शादी कर लो। वैसे वो रानी... उसके बारे में क्या ख्याल है? बेचारी मरती थी तुमपर और मैं ... खैर छोड़ो मैं तो अब सच में मर गयी हूँ तो तुम उस रानी से ही...?" राजबाला ने गम्भीर होकर कहा।
"चुप रहो! मैं किसी रानी को नहीं जानता और अगर तुम्हें मेरा इधर आना इतना ही बुरा लगता है तो नहीं आऊँगा कल से।" कपिल तनिक गुस्से से बोला और राजबाला को अपनी गोद से उठा दिया।
"अर्रे!! ऐसा गज़ब मत करना नहीं तो मैं फिर से मर जाऊँगी। मैं तो बस ऐसे ही कह रही थी।" राजबाला तड़फ कर बोली।
"तो फिर प्यार की बातें करो।" कपिल ने मुस्कराते हुए कहा और राजबाला को खींच कर गले लगा लिया।
राजबाला भी उससे और कस कर लिपटते हुए बोली, "कपिल काश ये सब तुम पहले करते जब मैं जिंदा थी तो शायद हमें प्यार का ज्यादा मज़ा आता।
"राज! मेरा प्रेम पवित्र था और है जिसमें जिस्मों का कहीं कोई सम्बंध ना पहले  था और ना अब है। मैंने तो तुम्हारी रूह से ही मोहब्बत की थी और अब भी कर रहा हूँ। और शायद मेरे इसी प्रेम बन्धन के कारण तुम शरीर से मुक्त होकर भी मुक्त ना हो सकीं।
लेकिन राज! अब मैं सोचता हूँ कि ये हवा की योनि तुम्हें मेरे ही कारण मिली है। और अब तुम्हारी मुक्ति की राह भी मुझे ही खोजनी होगी।
"चुप रहो तुम! ज्यादा पंच मत बनो। मुझे नहीं चाहिए कोई मुक्ति और ऐसी मुक्ति तो कतई नहीं जिसमें तुम्हारा साथ ना हो।" राजबाला ने कपिल के होठों पर अपने होंठ रखकर उसे चुप करा दिया।
"फिर हमेशा ये पंचायती लेकर क्यों बैठ जाती हो कि यहाँ मत आया करो, डर तो नहीं लगता?, लोग क्या कहेंगे? अरे हम प्यार करते हैं और लोगों को जो करना था कर चुके। ऐसे भी मुझे भी इस जिस्म का कोई मोह नहीं है तो लोग मुझे मार भी देंगे तो भी हमपर उपकार ही करेंगे।" कपिल ने राजबाला को हटाते हुए कहा।
"जाओ तुम, तुम्हारा प्यार झूठ है" राजबाला तुनक कर बोली।
"अब क्या हुआ राज? अरे तुम तो मेरी आत्मा हो तुम्ही मेरा सच्चा प्यार हो।" कपिल उदास होकर पूछने लगा।
"तुम हमेशा ऐसा ही करते हो, पहले भी ऐसे ही मुझे खुद से दूर हटा देते थे और आज भी। अरे दो पल का सुकून मिलता है तुम्हारे गले लग कर और तुम्हें वह भी बर्दाश्त नहीं होता। और ये मुक्ति की बात कहाँ से बीच में आ गयी? मेरी मुक्ति का मार्ग खोज रहे हो यानी के अब तुम मेरे साथ से भी उकता गए हो। मुझे हमेशा के लिए खुद से दूर कर देना चाहते हो। बोलो ऐसा क्यों कर रहे हो? क्या कोई दूसरी लड़की... ओह्ह अब समझी, आखिर वह रानी अपने प्लान में कामयाब हो ही गयी। उस दिन भी जब हम बगीचे में मिले थे तब ठाकुरों को उसने ही हमारी मुखबिरी की थी। और ... और ठाकुरों ने ये कहकर की मैं नीच जात एक ठाकुर को गंदा कर रही हूँ। मुझे नोच खसोट कर मार डाला।
उस समय मेरे मुँह में मुँह और जिस्म में... उस समय तो उनमें से कोई ठाकुर गन्दा नहीं हुए कपिल... अरे जिस जिस्म को तुमने कभी नज़र भर कर भी नहीं देखा उसी को तार-तार कर दिया था उन ऊंची जात वालों ने। लेकिन तुम्हारे प्यार ने मरकर भी मुझे इस श्मशान से दूर कभी जाने नहीं दिया कपिल। और अब तुम खुद ही मुझे दूर...!" राजबाला रोते हुए बोली।
"ओह्ह!! चुप हो जाओ। क्या मुझे भी रुलाओगी। और ये बार-बार रानी का नाम बीच में कैसे आ जाता है। मैंने कितनी बार कहा तुमसे की मैं तुम्हारे अलावा कभी किसी से प्यार नहीं कर सकता।" कपिल राजबाला को खींचकर गले लगाते हुए बोला।
राजबाला जोर-जोर से रो रही थी। और इस बार कपिल ने भी राजबाला की तरकीब आजमाई और अपने होठों से उसे चुप करा दिया।
"अच्छा राज! क्या कह रही थीं तुम की ठाकुरों ने तुम्हारे साथ?? तुमने पहले कभी मुझे वो बात क्यों नहीं बतायी। गांव में तो तुम्हारी मौत का कारण तुम्हारी बीमारी...? और फिर तुम्हारे अम्मा बाबू ने भी तो यही कहा था।" कपिल कुछ सोचकर बोला।
"ऐसा नहीं कहते तो क्या कहते कपिल बाबू, उन्हें तो आखिर इसी समाज में रहना था। और फिर मैं तो मर ही चुकी थी। ऐसे भी एक गरीब बाप और कर भी क्या सकता था।" राजबाला ने उदास होकर कहा।
"अच्छा क्या तुम मुझे बता सकती हो कि कौन लोग थे वे? क्या मेरे परिवार के?" कपिल ने गम्भीर होकर पूछा।
"क्या करोगे जानकर?" राजबाला एकदम से डरकर बोली।
"कुछ नहीं बस उनसे सावधान रखना चाहूँगा और क्या" कपिल ने नज़रें बचाकर कहा जिससे राजबाला उसके गुस्से से लाल हुई आँखें नहीं देख पायी।
"फिर ठीक है वो पाँच थे जिन्होंने मेरे साथ...!" राजबाला ने कपिल को उन सभी के नाम बता दिए।

"अरे आज दिन में! और दिन में तुमने मुझे कैसे ढूंढा?" कपिल को दोपहर में अपनी और आता देखकर राजबाला चौंकते हुए बोली।
"तुमसे मिलना अच्छा लगता है" कपिल ने मुस्कुराते हुए कहा और उसका हाथ पकड़कर एक और ले चला।
"अरे कहाँ ले जा रहे हो मुझे...? ओहो रुको तो।" राजबाला कहती रही और कपिल उसे खींचते हुए ट्यूबबेल की ओर ले चला। हड़बड़ी में राजबाला ये भी नहीं देख पायी की आज कपिल भी उसके जैसे ही हवा में तैर रहा था।
ट्यूबबेल पर छः लहूलुहान लाशें पड़ी हुई थीं मानों वहाँ कोई भीषण युद्ध लड़ा गया हो।
उन छः में पाँच तो राजबाला के अपराधी थे और एक खुद कपिल की मृत देह।
"हे भगवान!!! ये क्या किया तुमने कपिल।" राजबाला कपिल को देकर चीख पड़ी और उसे गौर से देखने लगी।
"प्यार का कर्ज चुका दिया पगली, बदला ले लिया तेरे साथ हुए ज़ुर्म का।" कपिल ने मुस्कुराते हुए कहा और राजबाला को गले लगा लिया।
"लेकिन ऐसे अपनी जान पर खेलकर?? ये आपने अच्छा नहीं किया कपिल।" राजबाला फिर उदास होकर कहने लगी।
"क्या करता राज! आपसे हमेशा के लिए मिलन का कोई और रास्ता था मेरे पास? मैं सदा तुम्हारे साथ रहूँगा अब और हमारे बीच कोई रानी कभी नहीं आएगी।" कपिल ने मुस्कुराते हुए कहा।
"चुप रहो", कहते हुए राजबाला ने उसके होंठों को अपने होंठों से बंद कर दिया और दोनों एक दूजे में समाने लगे।
लाशों के पास इकट्ठा होते लोगों ने देखा ऊपर धुएँ की आकृति क्षतिज की ओर जा रही थी।
समाप्त

©नृपेंद्र शर्मा "सागर"