Monday, November 16, 2020

पगली

"

अरे!!ये पगली है,  देखो इसे!!,
पत्थर उठा कर मार दिया इसने बच्चों को। देखो-देखो कैसे दांत पीस रही है, लगता है जैसेे चबा ही जाएगी", कुछ लोग चिल्ला कर कह रहे थे।


और

मोहल्ले की कुछ औरते राजश्री की माँ के पास उसकी शिकायत ले कर आयीं, "सम्भालो अपनी लाडली को, आते-जाते बच्चों पर पत्थर फेंकती है। पकड़ ले तो काट लेती है।"


"

मेरे तो करम ही फूट गए, कितने अरमानों से बेटी व्याही थी। ऊँचा खानदान, खाता-पीता घर और अच्छी नौकरी बाला दामाद। लेकिन क्या करें जब इस अभागी के भाग्य में सुख लिखा ही नहीं था।


अरे छः महीने भी तो नहीं हुए थे व्याह को और उस खाते-पीते घर के पीने खाने वाले दामाद ने इसे मारना-पीटना शुरू कर दिया।


क्या कमी थी हमारे दान-दहेज में? आस-पास किसी ने सायकल तक नहीं दी होगी अपनी बेटी को और हमने,..हमने तो मोटरसाइकिल दी थी।


फिर भी मेरी फूल सी बेटी को ताना दिया जाता


कि

कंगाल बाप की बेटी लायी ही क्या है दहेज में... अरे सरकारी नोकरी करता है हमारा बेटा कितने अच्छे रिश्ते आये लेकिन ...

हम तो ये सब भी बर्दाश्त कर ही रहे थे कि चलो समय के साथ सब बदल जाएगा लेकिन उस दिन ज्यादा पीकर मोटरसाइकिल चलाते हुए दामाद ट्रक के नीचे...


हाये !!


बिल्कुल पत्थर हो गयी मेरी बेटी एक बूंद आंसू तक ना निकला इसकी पथराई आंखों से।

और वे लोग इसे फेंक गए यहां ये कहकर की ये मनहूस अपने पति को खा गयी और एक बूंद आँसू तक ना बहाया।

क्या करूँ बहन मेरी अभागी बेटी उस सदमे से टूट गयी और अपने होश खोकर पागल हो गयी।"


राजश्री की माँ सुचित्रा रोते हुए उसे पकड़ कर अंदर लायी और कमरे में बंद कर दिया।


राजश्री को आजकल कमरे में बंद करके रखा जाता है या फिर हाथ पांव बांधकर आंगन में चारपाई पर बांध दिया जाता है।


उसकी अवस्था दिन प्रतिदिन हिंसक होती जा रही है।


इधर एक दिन सोमनाथ बाबू को 'श्री' की इस हालत के बारे में पता लगा तो दुख से उनकी आंखें गीली हो गईं और कुछ पुरानी यादें उनकी आंसू से भरी धुंधली आंखों में स्पस्ट चित्रित होने लगीं।


सोमनाथ बाबू को याद आयी सत्रह बरस की तितली सी उड़ती अल्हड़ राजश्री जिसकी एक झलक उनके दिल में ऐसे गहरी उतरी की वे बस हर समय उस झलक को ही ढूंढने लगे।


बीस बरस के सोमनाथ बाबू कालेज में पढ़ रहे थे और राजश्री के पड़ोस में ही अपने किसी सम्बन्धी के घर पर रह रहे थे।


पुराना समय था लोग गली मोहल्ले में किसी के भी रिश्तेदार से बड़ी आत्मीयता से बात करते थे सभी लोग एक दूसरे से सम्बन्ध निभाते थे।


एक दिन श्री की माता जी सुचित्रा देवी ने सोमनाथ बाबू को ठेले से सब्जी लेते देखा और उनके पास जाकर उनके बारे में पूछने लगीं ।


कुछ ही देर की चर्चा के बाद सोमनाथ बाबू सुचित्रा देवी के कोई दूर के सम्बन्धी बन चुके थे सुचित्रा देवी ने उनसे कोई रिश्तेदारी निकाल ली थी ।


अभी ये लोग बात कर ही रहे थे तभी अल्हड़ तितली सी उछलती 'श्री' वहां आ गयी तब पहली बार सोमनाथ बाबू ने श्री को देखा था और वे बस एक तक उसे देखते ही राह गए थे।


श्री बिल्कुल किसी अप्सरा की मूर्ति जान पड़ती थी गोरा चिट्टा रंग लंबे सुनहरे लाल बाल गहरी काली आंखें वे सांचे में ढले नाक नक्श एक अद्भुत आकर्षण था श्री के रूप में।


अनायास ही सोमनाथ की आंखे श्री की आंखों से टकरा गयीं और श्री की आंखों ने भी उनका पूरे सम्मान से स्वागत किया।


दोनों की आंखे मानो जन्मों से बिछड़ी हो ऐसे एकाकार हो गईं दोनों की पलके झपकना भूल गयीं उनके दिल की धड़कने रेस के घोड़े की तरह सरपट दौड़ने लगीं ।


ना जाने क्यों, लेकिन यूँ आंखों का मिलना उन दोनों को ही बहुत सुखद अहसास दे गया।


उसके बाद जाने कितनी बार उन दोनों की आंखों ने ये एकाकार होने का सुख पाया किन्तु कभी एक शब्द की बात भी उनके बीच नहीं हुई थी। लेकिन आंखों के मिलन से ऐसे लगता था जैसे ये दोनों जन्म जन्मांतर के प्रेमी है जो न जाने कब से मिलन के लिए व्याकुल हैं।


उस दिन राजश्री सोमनाथ बाबू के कमरे पर आयी,"जल्दी चलिए आपको माँ ने बुलाया है आज आपका खाना हमारे घर पर है",श्री ने सोमनाथ को देखते ही उतावले पन से कहा।


"अच्छा आप चलिए हम अभी आते हैं", सोमनाथ बाबू ने धीरे से जबाब दिया।


"आते हैं नहीं, चलिए! अभी हमारे साथ", ये कहकर श्री ने सोमनाथ का हाथ पकड़ लिया।


सोमनाथ बाबू को जैसे बिजली का झटका लगा इस स्पर्श से, न जाने इस स्पर्श में ऐसा क्या था जो सोमनाथ बाबू को इतना सुखद लगा जैसे ये स्पर्श उनका चिरपरिचित है जैसे वे जन्मों से इस स्पर्श को जानते हैं।


इधर श्री को भी कुछ ऐसी ही अनुभूति हो रही थी रोज नज़रें मिलाने का बहाना ढूंढने बाली श्री आज शरमा कर नज़रे झुका रही थी। किन्तु हाथ छोड़ना जैसे अब उसके बस में ना था।


"क्या हुआ", सोमनाथ बाबू ने बहुत हिम्मत जुटा कर उससे पूछा।


"

क..क.क...कुछ !!",नहीं श्री ने सकुचा कर कहा और उनका हाथ होले से दबा दिया।


"अच्छा चलो आता हूँ ", सोमनाथ बाबू ने फिर प्यार से धीरे से कहा और श्री ने उनका हाथ छोड़ दिया।


हाथ छोड़ते ही श्री को लगा जैसे एक पल पहले वह पूर्ण थे और अब एक अधूरा पन उसके मन को उदास कर रहा है।


अब अक्सर ये होने लगा की श्री या कभी सोमनाथ जी भी बहाने से एक दूसरे के पास आते और आंखों से बातें करते या कभी हाथ स्पर्श हो जाते तो नज़रें शरमा कर खुदबखुद झुक जाती।


सोमनाथ बाबू पूछते ,"हमारा क्या सम्बन्ध है श्री जो आप आस-पास होती हो तब सबकुछ इतना अच्छा लगता है।"


"हमें क्या पता अपने हृदय से पूछो", श्री धीरे से कहती और दौड़ती हुई चली जाती।


"पगली" पीछे से सोमनाथ बाबू कहते और मुस्कुराने लगते।


"आज मेरी श्री सच में पगली हो गयी" सोमनाथ बाबू खुद में ही बुदबुदाने लगे ।


मुझे एक बार जाना चाहिए उसे देखने शायद उसके बैचैन मन को कुछ धैर्य बंध जाये।


"क्या मुझे जाना चाहिए?? " सोमनाथ बाबू ने खुद से सवाल किया।


"

अगर उसके घरवाले फिर से नाराज़ हो गए तो?"

सोमनाथ बाबू को याद आया की कैसे जब श्री के भाइयों को उनके प्रेम प्रसंग के विषय में जानकारी हुई थी तो वे गुस्से से आग बबूला हो गए थे।


हालांकि श्री की माताजी ने उन्हें समझाया भी था कि "लड़का पढ़ा लिखा है, अच्छे खानदान का है और बिरादरी के भी हैं; कर देते हैं दोनों की शादी।"


किन्तु श्री के दोनों भाइयों को ये कतई मंज़ूर नहीं था कि उनकी बहन प्रेम विवाह करे।


उस दिन शाम को दोनों भाई कंधे पर लाठी लिए आये थे इर सोमनाथ को धमका कर बोले थे,"खबरदार जो आगे से श्री के आसपास भी नज़र आये तो हाथ पांव तोड़ देंगे, तुम्हारी भलाई इसी में है की ये शहर हमेशा के लिए छोड़कर चले जाओ, ये भूल जाना की तुम कभी श्री से मिले थे।"


सोमनाथ बाबू करते भी तो क्या उनके रिश्तेदारों ने भी उन्हें अपने यहां रखने को मना कर दिया ।


सोमनाथ बाबू उदास परेशान अधूरे से गांव लौट आये एवं मन लगाने के लिए गांव में एक छोटा सा स्कूल खोल लिया।


उनके आने के दो महीने बाद ही उन्हें पता लगा कि श्री के भाइयों ने इसका विवाह तय कर दिया है।


उन्हें पता था कि वह लड़का शराबी है और श्री के लिए ठीक नहीं है उसने किसी परिचित से श्री की माता जी पर खबर भी भिजवाई, किन्तु श्री के भाई अपनी जिद पर अड़े रहे।


और श्री की शादी कर दी।


किन्तु सोमनाथ बाबू ने घरवालों के लाख समझाने पर भी शादी नहीं की, वे ज्यादातर समय स्कूल में ही रहते थे कभी-कभी तो खाना खाने भी नहीं आते और स्कूल में ही सो जाते।


सोमनाथ बाबू शहर से चले तो आये थे किंतु कुछ अधूरे से उनकी आत्मा जैसे राजश्री के पास ही राह गयी थी।


जीवन जीने की अभिलाषा उनमें शेष न थी बस किसी तरह यादों के सहारे समय व्यतीत कर रहे थे।


"हे ईश्वर मेरी पगली आज सचमुच की पगली हो गयी है


क्या अब भी मुझे नहीं जाना चाहिए??" सोमनाथ बाबू फिर खुद से सवाल करने लगे।


"जीवन की कोई अभिलाषा तो अब है नहीं, जीवन के डर से तो मैं तब भी नहीं लौटा था, मुझे तो तब चिंता थी 'श्री' के सम्मान की ओर उसके उज्जवल भविष्य की मुझे डर था कि आवेश में श्री के भाई कहीं श्री को नुकसान..! किन्तु अब परिस्थितियां भिन्न हैं अब श्री को कोई क्या नुकसान पहुंचाएगा उसकी तो चेतना ही लुप्त हो चुकी है; मुझे जाना ही होगा", सोमनाथ ने जैसे कोई निर्णय सा किया।


"किन्तु यदि उसने हमें नहीं पहचाना तब?" उनका मस्तिष्क तो सारी यादें भुला चुका है, वह तो अपनी मां, अपने भाइयों तक को नहीं पहचानती।" सोमनाथ जी के मस्तिष्क ने फिर से सवाल किया।


"जरूर पहचानेगी वह उस स्पर्श को, उन आंखों के मिलन को, इस दिल की धड़कनों को सुनकर अवश्य जागेगी मेरी श्री की सोई चेतना। हमारा सम्बन्ध तो आत्माओं का है, हम तो जन्मजन्मांतर के साथी हैं, ऐसे कब तक नियति हमें अलग करती रहेगी।


बस बहुत हुआ अब उन्हें मेरी आत्मा की आवाज सुननी ही होगी", उनके हृदय ने जैसे कोई निश्चय किया और वे उठ खड़े हुए।


सोमनाथ जी को आज पल-पल सदियों से लंबा लग रहा था वे उड़ कर श्री के पास पहुँचना चाहते थे। उनका दिल किसी अनहोनी की आशंका से बार-बार डर रहा था बैठ रहा था।


जैसे ही सोमनाथ बाबू ने राजश्री के घर में प्रवेश किया उन्हें एक झटका सा लगा; घर में बहुत भीड़ थी कुछ सफेद कोट धारी नर्स एवं अस्पताल के अन्य कर्मचारी भी थे।


यूँ तो उन्होंने घर के बाहर ही अस्पताल की गाड़ी भी देख ली थी,। उनकी धड़कने तो तभी बढ़ गईं थी, किन्तु अब उनकी धड़कने मानो बन्द होने लगीं थी ।


"कहीं मेरी श्री को कुछ", उनके मन की आवाज आई।


"क्या हुआ हटिए आप लोग", सोमनाथ जी ने जोर से कहा तो सारे लोग एक तरफ हट गए।


सामने का दृश्य देखकर सोमनाथ जी जम से गये उनके हृदय ने धड़कना लगभग बन्द ही कर दिया।


सामने राजश्री जंजीरों में जकड़ी खड़ी थी उसके हाथों, पांव एवं गले में भी जंजीरें डाली गयीं थी।


उसके बाल बिखरे हुए थे, उनमें धूल भरी हुई थी, श्री के कपड़े फटे हुए थे और उसके बदन पर असंख्य चोटों के निशान थे, कुछ निशान तो इतने गहरे थे कि उनमें से खून बह रहा था। राजश्री बार-बार अपने सर को झटके देते हुए दांत किटकिटा रही थी। उसकी आंखें पथराई हुई एक जगह जैसे जम सी गयीं थीं और उसकी पलकें मानों झपकना ही भूल चुकी थी।


सोमनाथ से राजश्री की ये हालत देखी नहीं गयी, उनकी आंखें आंसू बहाने लगीं; वे बिना किसी की परवाह किये राजश्री की और बढ़ने लगे।


"ऐ क्या करता है देखता नहीं ये पगली है, काट खाएगी उसके पास मत जा ऐ मेन", एक नर्स जोर से चीखी लेकिन सोमनाथजी पर जैसे उसकी चीख का कोई असर ही नही हुआ, या कहो कि उन्हें तो इस समय राजश्री के अलावा कोई नज़र ही नहीं आ रहा था।


"श्री,, !! ये क्या हाल बना लिया तुमने मेरे तनिक दूर जाते ही" सोमनाथ जी ने जोर से कहा।


आश्चर्य!! जो श्री किसी आवाज को नहीं सुनती थी वह इस आवाज पर पलट कर देखने लगी, उसकी आंखें सीधी होने लगीं।


सोमनाथ जी ने उसके बन्धन खोलने का इशारा किया, और उसकी आँखों में देखने लगे, राजश्री भी उनकी आँखों से नज़र मिलने लगी।


जब तक सोमनाथ जी श्री के पास पहुंचते उसके सारे बन्धन खोल दिए गए थे।


सोमनाथ जी ने बिना उसकी आँखों से आँखे हटाये उसका हाथ पकड़ लिया।


"क्या श्री हम तनिक छुपन छुपाई में क्या छिपे की तुमने तो खुद को ही भुला दिया", कहते हुए सोमनाथ जी ने राजश्री का हाथ दबा दिया।


लोगों ने देखा कि राजश्री की पथराई हुई आंखों की धुन्ध उसके आंसुओं के साथ बह रही है राजश्री रो रही है।


"क्या हुआ श्री? भूल गयी क्या हमें?", सोमनाथ जी ने धीरे से पूछा।


अबकी राजश्री की पलक हल्के से झपकी जिससे उसकी आँखों से आंसुओं की कुछ मोटी-मोटी बूंदे छलक पड़ीं।


"कहाँ चले गए थे आप??" श्री ने सुबकते हुए कहा और सोमनाथ के गले लग कर हिलकी भर कर रोने लगी।


"कहीं नही गया मैं श्री, मैं तो सदा तुम्हारे हृदय में था, लेकिन तुम ही पता नही क्यों हम सब से दूर जा रही थी, लेकिन अब नहीं। अब हम कभी अलग नहीं होंगे,आओ अपने घर चलें हमेशा के लिए।" सोमनाथ जी ने राजश्री का हाथ पकड़े पकड़े कहा।


"चलिए, और अब कभी मत छोड़कर जाना हमें , राजश्री की आंखे निरन्तर बरस रही थीं मानो उनमें जमी बरसों की बर्फ प्यार की गर्मी पाकर पिघल उठी हो।


दोनों हाथ पकड़े घर से बाहर निकलने लगे तब राजश्री की मां ने उसे अपनी चादर उढ़ा दी, आज राजश्री के दोनों भाई भी इन्हें जाते देख रहें है किन्तु उनकी आंखों में गुस्सा नहीं बल्कि पश्चताप एवं प्रसन्नता के आंसू हैं।


समाप्त


©नृपेंद्र शर्मा "सागर"



Friday, September 18, 2020

आजादी

15 अगस्त को 11 साल की शाइस्ता स्कूल से घर आयी उसके हाथ में लड्डू की थैली है, घर आते ही चहकते हुए अम्मी (कौसरजहां) से बोली "अम्मी अम्मी देखो हमें कितने लड्डू मिले ओहो अम्मी कहाँ हैं आप देखिए ना।"
"अरे मेरा बच्चा अम्मी के लिए भी लड्डू लाया", कहते हुए अम्मी ने शाइस्ता को गोद में उठा लिया।

"अच्छा अम्मी ये आज़ादी क्या होती है, स्कूल में मेम बता रही थीं कि आज के दिन हमें आज़ादी मिली थी इसी लिए आज के दिन हम खुशिया मनाते हैं मिठाइयां बांटते हैं।"शाइस्ता ने सवाल किया।।

"बेटा आज़ादी का मतलब होता है अपने मन मुताबिक जीने के लिए छूट होना।

बरसों पहले हमारा हिंदुस्तान अंग्रेजों का गुलाम था, तब हम लोग कोई काम भी अपनी मर्जी का नहीं कर पाते थे।
हमें हर काम में उनका हुक्म मानना होता था नहीं तो वे लोग जुल्म करते थे मारते थे जेल में बंद कर देते थे।
तब हमारे देश के नेताओ ने, युवाओं ने आंदोलन छेड़ दिया बहुत से लोग धरने पर बैठ गए , कुछ युवा उनके खिलाफ युद्ध करने लगे तब बहुत कोशिशों के बाद हमारा देश अंग्रेजों की जुल्म की हुकूमत से आज़ाद हुआ।"अम्मी ने शाइस्ता को समझाया।

"लेकिन अम्मी जब उस दिन अब्बू ने कहा था कि 'जाओ बेगम मैं तुम्हे अपने मुताल्लिक हर फ़र्ज़ से आज़ाद करता हूँ, मैं तुम्हे तलाक देता हूँ,' तब तो आप बहुत रोई थीं तब तो आपने कोई खुशी नहीं मनाई थी?", मासूम शाइस्ता कुछ सोचते हुए बोली।

कौसर जहाँ का चेहरा उदासी से फक्क पड़ गया उसकी आँखों की कोरें गीली हो गयी, अभी वह कुछ कह पाती तब तक शाइस्ता फिर बोलने लगी,"अम्मी अम्मी, क्या अंग्रेज भी हिंदुस्तान को तलाक देकर गए थे अम्मी जैसे अब्बू ने आप को आजाद कर दिया अंग्रेजो ने भी कहा होगा, जाओ हिंदुस्तान आज से तुम आजाद हो हम तुम्हे तलाक देते हैं।"

"चुप कर तू, कुछ भी अनाप शनाप बकती है", अम्मी दुख एवं गुस्से से बोली।

"क्यों अम्मी क्या हुआ, बताइये ना आप उस दिन इतना दुखी इतना उदास क्यों थी अपने दो दिन तक खाना भी नहीं खाया था बस आप लगातार रोती ही रही और हमसे भी ठीक से बात नहीं की, बोलो ना अम्मी क्या आज़ादी बुरी बात होती है अम्मी।
अम्मी अब्बू क्यों नहीं आते वे अब कहाँ चले गए", शाइस्ता मासूमियत से कहते कहते खुद भी उदास हो गई।।

"बेटा आज़ादी बुरी बात नहीं होती लेकिन तलाक अच्छी बात नहीं है तलाक का मतलब होता है सारे रिश्ते तोड़ कर अजनबी बन जाना।
तलाक का लफ्ज़ भी जुबान पर लाना नापाक है इसे तो अल्लाह ने भी बुरा ही कहा है।
अब आप ही सोचो अगर हम आपसे कहें कि आज से हम आपकी अम्मी नहीं रहे तो आपको कैसा लगेगा।"कौसर ने रोते हुए कहा।

नहीं!!!, ऐसा नही हो सकता अम्मी हम तो मर ही जायेंगे आप ऐसा सोचना भी मत।

लेकिन उस दिन आपके अब्बू ने यही किया था मेरे बच्चे उस दिन उन्होंने कहा था कि वे अब हमारे शौहर नहीं रहे अब से वे आपके अब्बू नहीं रहे ,उन्होंने हमें आज़ादी नहीं दी थी बल्कि वे खुद अपनी ज़िम्मेदारियों से आज़ाद हुए थे।
हम दोनों उन्हें बोझ लग रही थी तो उन्होंने इंसानियत का गला घोंट कर हमें इन्सान ना मानते हुए खुद को हमारी जिम्मेदारी से आज़ाद कर लिया था"। कौसर अब जोर जोर से रो रही थी।

"अम्मी अम्मी आप रोईए मत, हम हैं ना आपके साथ हम कभी आपसे दूर नहीं जाएंगे , शाइस्ता अम्मी के गले लग कर उनके आंसू पोंछने लगी।

शाइस्ता स्कूल से लौट रही थी, उसे किसी से पता लगा की उसके अब्बू एक दूकान पर काम करते हैं वह जान बूझ कर उस तरफ आ गयी, उसने दूर से देखा कि उसके अब्बू (शमशाद) एक गाड़ी को खोले उसके अंदर देख रहे हैं।
शाइस्ता एक दम उनके पास पहुंच कर लहरा कर गिरी ओर जोर से चीखी, आहह!! अम्मी,

उसकी चीख से शमशाद का ध्यान इधर गया और वह दौड़ कर उधर आया उसने शाइस्ता को गोद में उठा लिया और उसके कपड़े झाड़ने लगा।

अरे शाइस्ता आप, आप इधर कैसे बच्चे? शमशाद उसे देखकर हैरान होकर बोला।
आप हमें जानते है?? शाइस्ता बड़े भोले पन से बोली।
अरे हम आपके अब्बू हैं शाइस्ता केसी बात कर रही हो आप हम भला आपको क्यों नहीं जानेंगे आप हमारी अपनी बच्ची हो जान हो हमारी।

अच्छा!! जान हैं हम ??, फिर आप हमें तलाक देकर क्यों आ गए? शाइस्ता गुस्से से बिफरी।

"क्या कहा आपने? तलाक आपको? आपसे किसने कहा ये नामुराद लफ्ज? कहाँ से सीखा आपने? शमशाद एकदम गुस्सा हो गया।
"

"क्यों अब्बू आप ही ने तो उस दिन अम्मी से कहा था जब आप घर छोड़कर आये थे कि", जाओ कौसर मैं तुम्हे आज़ाद करता हूँ तलाक देता हूँ मैं तुम्हे और आप तब से घर बापस नहीं आये।"शाइस्ता कुछ याद करते हुए बोली।

"लेकिन वह तो मैं तुम्हारी अम्मी की रोज रोज की चिक चिक से तंग आकर उसे... "शमशाद धीरे से बोला।

"लेकिन अब्बू आप तो अम्मी को भी जान कहते थे ना और अम्मी आपको? अब अगर किसी की जान उसे तलाक दे दे, उसे छोड़ दे तो भला वह जिंदा कैसे रह सकता है?
और फिर आप अम्मी से नाराज़ थे! लेकिन मेरा क्या कसूर था? जो बिना खता मुझे मेरे ही अब्बू से तलाक मिल गया, मैं क्यों अब्बू की मोहब्बत उनके लाड़-प्यार और सरपरस्ती से महरूम हूँ, मेरी क्या गलती है??", शाइस्ता रोने लगी- "और बेचारी अम्मी!!, आपको पता है, अम्मी लगातार दो दिन तक दीवार में सर मारती रही और रोती रही उन्होंने खाना भी नहीं पकाया, मैं दो दिन घर में रखे बिस्कुट खाती रही और आपको याद करती रही कि अब्बू अभी आएंगे और हम फिर से मिठाइयां खाएंगे....
लेकिन अब्बू इतने दिन हो गए आप आये ही नहीं", शाइस्ता की आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे।

"मेरे बच्चे अब सब ठीक हो जाएगा, मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है। आप घर जाओ और अपनी अम्मी का ख्याल रखना वे थोड़ी बुध्दू हैं", शमशाद ने शाइस्ता के माथे पर बोसा दिया और एक रिक्शा बुलाकर उसे घर का पता समझकर शाइस्ता को घर छोड़ने को कहा।
"और हाँ शाइस्ता अपनी अम्मी को मत बताना की आप हमसे मिले थे", शमशाद ने शाइस्ता को एक बार ओर गले लगाया और रिक्शा में बैठा दिया।

शाइस्ता आज बहुत खुश थी, कौसर ने कई बार पूछा किन्तु उसने कुछ नही बताया।
शाम को बेल बजी तो दरवाजा शाइस्ता ने खोला देखा सामने अब्बू .. तब तक कौसर भी आ गयी वह शमशाद को देखकर चौंक गई।

"अरे शाइस्ता ये लो मिठाइयां", शमशाद ने डिब्बा शाईस्ता को पकड़ाया- "और ये आप दोनों के लिए कुछ कपड़े.... मुझे माफ़ कर दो कौसर मैं गुस्से में भूल कर बैठा था। अब मुझे समझ आ गया है कि पति पत्नी की असली आज़ादी एक दूसरे का ख्याल रखने में है, एक दूसरे को समझने में है।
वो तो शुक्र है खुदा का जो उस दिन मेने बस एक ही तलाक बोला था बरना हमारी जिंदगी...", शमशाद की आवाज भर्रा रही थी।

"कुछ मत बोलिये आप, अब आप लौट आये हमे ओर कुछ नहीं चाहिए" कौसर ने शमशाद के होंटो पर हाथ रख दिया और शमशाद ने कौसर को गले लगा लिया।
"अरे भई हम भी आप दोनों की ही जान हैं", कहते हुए शाईस्ता बीच में घुस गई और दोनों हँसने लगे।

©नृपेंद्र शर्मा "सागर"

Sunday, August 23, 2020

एक हादसा

(एक कहानी यूँही)      
            #डर#

आधी रात बीत चुकी थी, देवेंद्र अपनी रेंजर से बहुत तेजी से पैडल मरते हुए घर लौट रहा था उसे आज अपनी प्रेमिका की बातों में समय का ध्यान ही नहीं रहा।
उसने पहले अपनी प्रेमिका को उसके घर छोड़ा और फिर अपने घर की ओर चल दिया।

आज की रात और दिनों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही अँधेरी थी ऊपर से  हवा की तेरी सूखे पत्तों को सहलाकर हँसा रही थी जिनकी हँसी की 
खर्र..! खर्र.. चकककक चरर्त्तत...!! 
की कर्कश ध्वनि वातावरण में अलग ही भय उतपन्न कर रही थी।

माहौल इतना डरावना था कि गर्मी में भी देवेंद्र के जिस्म का हर रोंया खड़ा था जैसे किसी डर को देखकर शेर की गर्दन के बाल खड़े ही जाते हैं साही के कांटे खड़े हो जाते हैं।

अभी देवेंद्र काली नदी के पुल के बीच में ही पहुँचा था कि उसे सामने किसी के होने का अहसास हुआ उसे डर तो पहले से ही लग रहा था लेकिन अब तो उसकी साँसे राजधानी  की रफ्तार से चलने लगीं।
देवेंद्र ने अपनी रेंजर की गति को बढ़ाने में अपने फेफड़ों की पूरी ताकत लगा दी तभी वह साया उसे ठीक सामने खड़ा नज़र आया, उसके हाथ ब्रेक लीवर पर केस गए, रेंजर चिर्रर.... र्रर!! की आवाज करती हुई उस साये से एक फुट की दूरी पर रुक गयी।

देवेंद्र समने खड़े अजनबी को देखने लगा उसकी बड़ी बड़ी आंखे थी सर पर टोपी पहने हुए था।
लेकिन उसके चेहरे का कोई भी हिस्सा नज़र नहीं आ रहा था वहां बिल्कुल स्याह अँधेरा था।
देवेंद्र उसे देखकर बहुत डर गया उसके मुंह से अचानक तेज चीख निकली, 
भ...उ...त...!

तभी उस साये ने कहा, कहाँ घूम रहे हो इतनी रात को? तुम्हे पता नही देश मे कोरोना के चलते इमरजेंसी के हालात हैं , पूरे देश में कर्फ्यू लगा हुआ है और तुम सायकल पर आधी रात को हवा खोरी कर रहे हो इस बार तो चेतावनी देकर छोड़ रहा हूँ।अगली बार दिखे तो 144 में अंदर कर दूंगा।

तब देवेंद्र ने ठीक से देखा वह साया एक काला मास्क पहने हुए पुलिस वाला था।

देवेंद्र भाई चुपचाप लौट आये क्योंकि वह जानते हैं कि भूतों को तो फिर भी समझाया जा सकता है किंतु पुलिस......😢😢😢
नृपेंद्र शर्मा "सागर"

Wednesday, August 19, 2020

शहीद

#लघुकथा
शीर्षक:-शहीद

"ये जवान जो बॉर्डर पर लड़ते हुए शहीद हुआ है, ये हमारे गाँव का गौरव है। हम इसके नाम पर गाँव के विकास के लिए योजनाएं लाएँगे।" एक नेता जी ने तिरंगे में लिपटे फौजी के शव की ओर इशारा करके कहा।

"ये  फौजी हमारी कौम का था, हमारी कौम का नाम रौशन किया है इसने। हम इसके नाम से बड़ा स्मारक बनवाएंगे।" तभी दूसरे नेताजी खड़े होकर बोले।

"अरे मंत्री जी आ गए...", तभी एक शोर उठा।

"ये जवान जो पड़ोसी मुल्क से की जा रही गोलाबारी का सामना बहादुरी से करते हुए शहीद हुआ है, ये हमारे क्षेत्र का है। जिसने हमारे क्षेत्र का मान बढ़ाया है।
मैं सरकार में मन्त्री होने के नाते ये घोषणा करता हूँ इनके घर की तरफ आने वाली सड़क को चौड़ा करके मुख्य मार्ग से जोड़ा जाएगा और इस रोड का नाम इस शहीद के नाम पर होगा।
और जैसा कि हमारे साथी विपक्षी नेता जी ने अभी कहा था तो मैं इनके घर को स्मारक बनाने के लिए फंड दिलाने का आश्वासन देता हूँ।" 

नेता जी की जय, मंत्रीजी जिंदाबाद के नारों के बीच बेटे के कफ़न-दफन का इंतज़ाम करता उसका बाप अब मन ही मन अपने रहने के इंतज़ार के बारे में भी सोच रहा था।

नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद

Wednesday, July 15, 2020

पिया मिलन

#पिया मिलन

सावन की झम झम झड़ी लगी, मैं पिया मिलन को जाय रही।
बैरन बिजुरी तड़ तड़ तड़ कर, पग पग पर मोहे डराय रही।
मोहे लगी लगन पिया साँवरे की, मैं पिया से प्रीत निभाय रही।
कोई और नहीं सुध रही मुझे, निज तन मन सभी भुलाये रही।
सावन मनभावन मास सखी, मुझे पिय की याद सताय रही।
बाहर की बिजली की क्या कहूँ, मेरे भीतर तड़ित समाय रही।
कोई बाधा राह ना रोक सके, मैं अविनाशी की बाँह गही।
मेरे प्रीतम जग के स्वामी हैं, मैं अंश जीव कहलाये रही।
ये जन्म मरण सब मिथ्या है, मैं मोक्ष परम पद पाय रही।
मुझे लोक लाज की कहाँ पड़ी, मैं तो निज धाम को जाय रही।

नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद

Tuesday, July 14, 2020

#स्वप्न्न

स्वप्न्न:-

आज चौधरी हरपाल सिंह की हवेली पर बहुत रौनक हो रही है।
हो भी कियूं न ,उनका बेटा' चेतन 'आज डॉक्टरी पास कर के गांव लौट कर आ रहा है।
उन्होंने पूरे गांव के जलपान की व्यवस्था कर रखी है, और मन मे एक विचार भी रखा है कि, किस शान से वह अपने चेतन को गांव बालो से मिलायेगे ।
"मिलिए मेरे बेटे डाक्टर चेतन चौधरी से जो अपने गांव वालों की सेवा खातिर डॉक्टर बन कर आया है , अब कोई लाइलाज न मरेगा गांव में।"
उन्होंने तो अपनी एक एकड़ जमीन जो राजमार्ग से बस 500 मीटर अंदर है ,उस पर अस्पताल निर्माण की योजना भी बना रखी है।
क्या शान होगी गांव की जब दूर दूर से लोग उनके गांव आएंगे इलाज़ के लिए ।
बड़े शहर की सारी सुबिधा रखाएँगे हम अपने अस्पताल में, और गांव बालों से बस दवाई का मूल्य लिया जाएगा।
बाहर के लोगों के आवाजाही से गांव के कई लोगन को रोजगार भी तो मिलेगा।

अभी हरपाल सिंह अपने मधुर दिवास्वप्न में खोये थे कि किसी ने उनको झिंझोड़ा अरे चौधरी साब ,"भैया आ गए" आएं स्वागत करें।
एक हर्ष मिश्रित शोरगुल उठा डाक्टर साब आ गए डाक्टर साब आ गए।
आ गया बेटा ,,,देख सारा गांव तेरे स्वागत को आया है।
ओ डैड ये क्या जाहिलों की भीड़ इकट्ठा कर रखी है आपने ।
कितने डर्टी-डर्टी लोग है जर्म्स से भरे।
उफ्फ !!!मुझे तो घुटन होती है।
चेतन ने कहा और हवेली में अंदर चला गया उसने किसी को सम्मान या अभिवादन तक भी न किया।
चौधरी साब भी उसके पीछे पीछे अंदर आये।ये क्या व्यभार है ,चेतन !!??
गांव के सारे मौजूद बुजुर्ग और गणमान्य लोग तुम्हें आशीर्वाद देने आए थे ओर तुमने किसी को राम राम तक भी न की।
ओह्ह!! डैडी क्या है ये सब ,मुझे अभी निकलना है आज रात 10 बजे मेरी फ़्लाइट है अमेरिका की।
बाहर गाड़ी में आपकी बहु मेरा इंतज़ार कर रही है ,
मैं तो आपको कहने आया था कि आप भी यहां का सारा कारोबार समेट लो मैं अगले महीने आऊंगा और आपको भी हमेशा के लिए अपने साथ ले जाऊँगा।

बहु!!!!!!!!@!! अमेरिका!!!????
हरपाल सिंह पर तो जैसे वज्रपात ही हो गया हाथ पांव सुन्न हो गए।
कितने अरमान से उन्होंने अपने एकलौते बेटे चेतन को पाला था ।अकेले मां और बाप दोनो बन कर।
उनकी पत्नी सरिता देवी की 16 साल पहले डेंगू से मौत हो गई थी , तब से बस यही एक सपना एक उम्मीद पल रही थी उनके मन मे कि," उनका चेतन डाक्टर बनेगा और किसी गांव बाले को लाइलाज नही मरने देगा"।
लेकिन ये क्या ,,,,, चेतन डाक्टर तो बन गया लेकिन हरपाल सिंह का सपना,,,,,, !!!
और बहु,,,!!
,यानी तुमने बिना पूछे शादी भी कर ली ??
कौन है लड़की? किस खानदान की है,?, क्या कुछ भी मायने नही रखता तुम्हारे लिए,,,??
क्लासमेट है डैड ,और हमने शादी नही की बस हम 2 साल से साथ रहते हैं लिवइन में।
और आजकल शादी का झंझट कोन करता है डैडी।
अच्छा छोड़ो आप नहीं समझोगे ये सब ,मैं और रश्मि एक साथ डॉक्टरी पढ़े हैं ।
और और दो साल से लिवइन रिलेशन में हैं सोच था आपको बता दूं ,लेकिन रश्मि ने कहा कि पढ़ाई पूरी होने पर बताएंगे।

हमे अमेरिका में जॉब और हायर स्टडी दोनो का आफर है आज ही निकलना है ।
आपको बताने आये है कि अब हम वहीं अमेरिका में सैटल हो जाएंगे ,आपभी इधर का जमीन जायदाद बेचकर अगले महीने हमारे साथ ही आकर रहो।
अच्छा डैड अब चलते हैं अभी रश्मि के घर भी जाना है।

तो क्या बहु !गाड़ी से भी नही उतरेगी??
अरे डैड उसे गांव के पॉल्युशन से एलर्जी है इसलिए गाड़ी में ही (ऐ सी )चला कर बैठी है ,अच्छा अब निकलता हूँ बहुत लेट हो गया।
कहकर चेतन ने अपना सामान उठा लिया,,,,,।
बेटा!!!!!
हरपाल सिंग ने दबी आवाज से पुकारा ।
"जी डैड कहो।"
क्या "तुम और बहु "यहीं रहकर एक अस्पताल नही खोल सकते ??मेरे सपनों का अस्पताल ।
मे तुम्हारी शादी भी स्वीकृत कर लूंगा, लड़की की जाती कुल खानदान भी नही पूछूंगा , बस तुम मुझे छोड़कर मत जाओ। ये देखो घर का आंगन जो तुम्हारी माँ ने अपने हाथों से लीपा था ,मैने आज तक उसे बैसा ही रखा है। बहुत गहरी यादें जुड़ी हैं मेरी इस मिट्टी से । मुझसे अलग ना हुआ जाएगा उन यादों से। मैं तेरे हाथ जोड़कर भीख मांगता हूं तू यहीं रह कर अस्पताल खोल ले। मैं अपना सब बेच कर शहर से ज्यादा सुबिधायें तुझे यहीं उपलब्ध करा दूँगा मेरे बेटे।

ओह डैड !!
आप तो बेकार में सेंटी हो रहे हो, मैं लेट हो रहा हूँ आप आराम से सोचना पूरा एक मंथ है आपके पास ,बता देना मुझे सोच समझ कर ।
अच्छा चलता हूँ बाय।
कह कर चेतन झटके से निकल गया।
हरपाल सिंह एकदम सुन्न पड़ गए ,जैसे उन्हें लकवा मार गया हो।
बाहर गाड़ी स्टार्ट होने की आवाज आई , गांव बालों को कुछ समझ नहीं आया कि क्या हुआ डाक्टर बाबू यूं अचानक आये और अचानक चले गए। अंदर जाकर देखा तो हरपाल सिंह जमीन पर उनकी पत्नी के हाथ से लीपे आंगन के कोने में जमीन पर बैठे है एकदम जड़, उनकी आंखों से अश्रु धारा अनवरत वह रही है ।
गांव बाले सन्न रह गए।
करीब तीन दिन बाद चौधरी साब कुछ संयमित हुए और उन्होंने एक वकील बुलाया। और बोले, वकील बाबू मैं अपनी सारी जायदाद से चेतन को बेदखल करके अपनी सारी चल अचल पूंजी से एक ट्रस्ट बनाना चाहता हूं , जिसमे एक अस्पताल और एक धर्मशाला हो ,जहां सस्ते में लोगों को इलाज़ की सारी सुबिधायें मिलें बहुत कम खर्चे पर।
उसका नाम हो ,सरितादेवी आयुष ट्रस्ट।
वकील ने वसीयत तैयार कराई और अस्पताल का काम सुरु हो गया ।
इस बीच चैधरी साब ने चेतन से कोई बात नही की, आज महीने का आखिरी दिन है ,चेतन आज उन्हें लेने आने वाला है।
चैधरी साब अभी अस्पताल के दफ्तर कक्ष का उदघाटन करके लौटे हैं । जहां उनकी पत्नी और उनकी मूर्तियां बनी हैं। उनकी ही इच्छा थी कि ये काम एक महीने में हो जाये। और अब उनके मुख पर उदासी मिश्रित गर्व है।
चौधरी साब पत्नी के लीपे आंगन में आकर बैठ गए ,जैसे कोई मुसाफिर मंज़िल पाने पर थक कर प्रसन्नता से बैठ जाता है।
उनके मुख पर प्रसन्नता और गर्व है।
चेतन आ गया , ,,,
डैड चलो मैं आपको लेने आया हूँ , अब आप हमारे साथ ही रहेंगे।
लेकिन उधर से कोई प्रतिक्रिया न पाकर उसने चैधरी साब के कन्धे पर हाथ रखा ,,,, लेकिन ये क्या मुख पर विजय मुस्कान लिए उनकी निष्प्राण देह इनकी पत्नी की याद से लिपट गई। और उनकी निस्वार्थ आत्मा अपना स्वप्न्न पूरा करके अपनी आत्मा अपनी प्राण प्रिया के पास चिरलोक में चली गई। रह गए तो उदास गांव वाले, और पछतावे के भाव लिए निष्ठुर चेतन।
एक ऐंसा पछतावा लिए जो ताउम्र उसके मन पर बोझ रहेगा।
"नृपेंद्र"

Thursday, June 25, 2020

काँटा

एक लघुकथा

काँटा

एक चूहा बड़ा सा काँटा लिए दौड़ा चला जा रहा था। रास्ते में मेंढक ने पूछा कि, "अरे मूषक भाई ये काँटा लिए कहाँ दौड़ लगा रहे हो?"

"अरे भाई! साँप को काँटा चुभा है, तो मेरे पास आया था मदद माँगने। बस वही निकालने के लिए ले जा रहा हूँ", चूहे ने चलते-चलते जवाब दिया।

"लेकिन काँटा तो तुम अपने तेज़ दाँतो या नुकीले नाखूनों से भी निकाल सकते हो?" मेंढक ने सवाल किया।

"बिल्कुल निकाल सकता हूँ मित्र, लेकिन फिर उसे याद कैसे रहेगा", चूहे ने मुस्कुराकर कहा और दौड़ लगा दी।

नृपेन्द्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
9045548008