Friday, March 8, 2019

अजनबी

फरवरी का लास्ट वीक था रात को ठंड बढ़ जाती और दिन में सूरज पूरे जोर में गर्मी बिखेरता।
इस गर्मी सर्दी के मेल से  रात में हल्का कोहरा भी फैल जाता।
रात का कोई दस का समय रहा होगा; सागर अपनी ड्यूटी खत्म करके पैदल ही घर की ओर जा रहा था।
सागर का घर फैक्टरी से कोई दो किलोमीटर दूर था।
रास्ता सुनसान था हल्का कोहरा पसरा हुआ था ; चाँद रात का अंधेरा भेदने का असंभव प्रयास कर रहा था।
अचानक विचारों में गुम अपनी धुन में मग्न हो चलता सागर ठिठक कर रुक गया।
सड़क के किनारे एक लाल रंग की महंगी गाड़ी खड़ी थी, उसने झांक कर देखा गाड़ी में कोई नहीं था।
उसने आगे जा कर देखा आगे एक लड़की गाड़ी के पास बैठी उल्टियां कर रही थी।
ककक!! क्या हुआ आपको, सागर अचकचाकर बोला।
अयं!?? लड़की ने घूम कर उसकी ओर देखा।
लड़की के घूमते ही सागर जड़ होकर रह गया,
लड़की इतनी सुंदर थी जैसे खुद चाँद ही नीचे उतर आया हो।
दूधिया गोरा रंग अपने चारों ओर जैसे प्रकाश की आभा बिखेर रहा था।
लड़की ने जीन्स टॉप पहना हुआ था उसकी आंखें नशे या नींद से बोझिल थी शायद नशे में ही क्योंकि उसकी आँखों की लाली रात के हल्के उजाले में भी लाल हुई स्पस्ट दिखाई दे रही थीं।
आप कौन? लड़की ने धीरे से घबराए स्वर में कहा।
जी मैं ,,, मैं तो काम से लौट रहा हूँ, लेकिन आपको क्या हुआ?? आपकी तबियत खराब है क्या??
ककककुछ नहीं हुआ हमें,,, उसने मेरी कोल्ड ड्रिंक्स में वाइन मिला दी बास्टर्ड मैं छोडूंगी नहीं उसे,,,
हिच! ऑउभककक!!! लड़की ने फिर उल्टी की।
सागर फिर से ठिठक गया, आपकी तबियत ठीक नहीं है आप ऐसे में ड्राइव कैसे करेंगी ऊपर से घनी अँधेरी रात भगवान ना करे आपके साथ कोई अनहोनी हो।
आप कहें तो मैं आपको आपके घर छोड़ आऊंगा मैं ड्राइव करता हूँ आप गाड़ी में बैठिए।
यू आल बॉयज आर सेम यू आल आर बास्टर्ड,, व्हाई यू ट्राय टु बोथेर मी।
जस्ट लीव मी एंड गो ऑन योर वे, आई विल मैनेज माय सेल्फ।
होकक हिच,,, लड़की फिर से ओकने लगी।
सागर ने एक पल सोचा ओर फिर उसने लडक़ी को गाड़ी में बैठने के लिए कहा, चलिए यहां से ये जगह सेफ नहीं है थोड़ा आगे चलते हैं वहाँ आपको दवाई भी मिल जाएगी फिर आपको ठीक लगे तो आप आगे चली जाना।
हाऊ डेयर यू,, व्हाई यू टच मी?? प्ल्ज़ लीव,,, लड़की कसमसा कर अपना हाथ छुड़ाने लगी ओर अपनी इसी कोशिश में गाड़ी में बैठने से पहले वह सागर को दो तीन घूंसे जड़ चुकी थी।
लडक़ी को गाड़ी में बिठककर सागर ने बेल्ट लगाई और ड्राइविंग सीट पर जा बैठा चाबी गाड़ी में लगी हुई थी उसने गाड़ी स्टार्ट की और आगे बढ़ा दी आगे कस्बे के पास पहुंच कर उसने एक जगह नल के पास गाड़ी रोक कर उसका मुंह हाथ धुलाया ओर उसकी हालत सुधारने की कोशिश की ।
थोड़ा संयत होने पर लड़की ने कोई पता बताया जो नई दिल्ली का था सागर ने उसे याद कर लिया।
दबाई के लिए लड़की ने मना कर दिया।
सागर ने गाड़ी देहली के रास्ते पर बढ़ा दी,
लड़की कुछ ही देर में सो गई अब उसको उल्टियां नहीं हो रही थी लेकिन नशे का पूरा असर उसपर था।
वह बीच बीच में आंखे खोलती और गालियां बकती सागर को दो चार घूंसे जमाती कुछ देर बड़बड़ाती ओर फिर सो जाती।
कभी कभी वह उल्टियां भी करने लगती तब सागर गाड़ी रोक कर उसे ठीक करता।
इस चार पांच घण्टे के सफर में  सागर को  ये पता लग चुका था कि उसका नाम रश्मि है वह दिल्ली के किसी व्यापारी की लड़की है, अपने दोस्तों के साथ पहाड़ो पर घूमने गयी थी जहां इसके किसी दोस्त ने कोल्ड ड्रिंक में शराब मिला कर पिला दी और नशा बढ़ने पर उसने रश्मि को गलत नियत से छुआ वह उसे अकेले में ले जाने की कोशिश कर रहा था।
अचानक रश्मि को कुछ चेतना हुई तो वह बाथरूम के बहाने अपनी गाड़ी लेकर वहां से भाग आयी उसके बाद उसे कुछ याद नहीं रहा।
वह बीच बीच में सागर को गाली देकर कहती कि तुम भी मुझे अकेले में ले जाओगे तुम मेरी इस बिरोध ना कर पाने की हालत का फायदा उठाओगे, तुम सारे लड़के एक जेसे हो।
सागर बस मुस्कुरा कर ड्राइव कर रहा था रास्ते में हर घण्टे के बाद वह  गाड़ी रोक कर रश्मि के मुंह हाथ धुलता उसे पानी पिलाता फिर आगे बढ़ जाता।
सुबह चार बजे वह उसके बताए पते पर था, सागर ने जाने क्या सोच कर गाडी उसके घर के सामने पार्क की और उतर कर गाड़ी लॉक करके बिना बोले चला आया।
सुबह पांच बजे जब रश्मि की नींद खुली तो उसने खुद को अपने घर के सामने पाया उसे आश्चर्य हो रहा था कि वह ऐसे घर के बाहर गाड़ी में क्या कर रही है।
रश्मि ने तीन चार बार अपनी आंखें झपकाई। अचनक उसे दिमाग ने झटका खाया उसे रात की सारी घटना अपनी आंखों के सामने फ़िल्म सी चलती दिखाई दी।
गाड़ी से उतर कर चाबी गार्ड की ओर फेंक वह तेज़ी से अपने कमरे में आकर गर्म पानी के टब में बैठ गई, शराब ने इसके पूरे सर में दर्द कर दिया था ; रश्मि ने जिंदगी में कभी शराब नहीं पी थी इसीलिए उसे इतनी उल्टियां हुई।
उसे बहुत बुरा लग रहा था गुस्से में वह जाने क्या बोल रही थी।
उसे अपने दोस्तों पर बहुत गुस्सा आ रहा था जिनपर उतना यकीन करके वह उनके साथ घूमने चली गई।
और ये बास्टर्ड निधी,,,,, ओह्ह तो वह अपने भाई की साजिश में शामिल थी,, कमीनी
रश्मि को याद आया कि केसे निधि ने जिद की थी साथ में चलने को।
आने दो चीपर्स को शूट कर दूंगी ब्लडी शिट।
रश्मि अपने मुंह ओर आंखे धोने लगी तभी उसे याद आया,,
और वह अजनबी,, कितना अच्छा कितना सभ्य बेचारा बार बार इसकी गंदगी उसकी उल्टियां साफ करता रहा और बदले में मैने क्या दिया,,, गालियाँ ,,घूंसे,, उफ्फ मैं इतनी सेल्फश कैसे हो गयी,,, रश्मि खुद पर शर्मिंदा हो रही थी।
लेकिन ये अजनबी था कौन?
कितना खूबसूरत कितना समझदार ओर केयरिंग! रश्मि उसे याद करके शर्माती हुई मुस्कुरादी उसे याद आने लगी सागर की वह अपनेपन की छुअन जिसमें कोई मतलब कोई वासना नहीं थी बल्कि उसमें थी रश्मि के लिए फिक्र,  उसे चिंता थी रश्मि को सही सलामत घर छोड़ने की,,
ओर घर आने पर जब उसे लगा कि रश्मि सुरक्षित है तो वह बिना कुछ कहे मुस्कुरा कर चला गया।
लेकिन उस समय तो रश्मि ने उसका हाथ पकड़ा हुआ था ,,,फिर वह गया कैसे,, ओह्ह नींद अब रश्मि अपनी नींद को कोस रही थी।
लेकिन ऐसे बिना बताए वह कैसे जा सकता है अरे कुछ देर रुक जाता मुझे घर में छोड़ता घर में मिल लेता तो क्या उसे कोई खा जाता सेल्फिश कहीं का।
अब मैं उसे कैसे ढूंढूंगी उफ़्फ़फ़ मेने तो उसे थैंक्स भी नहीं बोला ,,उल्टा उसके साथ कितनी बदतमीज़ी,, अहा!!, तो क्या वह नाराज़ होकर!! हे भगवान ये मेने सही नही किया वह तो मेरी हेल्प,, एंड मी,, आई विहाव लाइक आ मैड।
लेकिन मुझे होश ही कहाँ था ,उसे तो समझना चाहिए था।
चला जाये नाराज़ होकर आखिर था तो अजनबी ही।
बस एक अजनबी, रश्मि जितना उसे अपने दिमाग से दूर करना चाह रही थी वह उतना ही उसकी यादों में घुलता जा रहा था।
रश्मि परेशान थी कि वह इस अजनबी को कैसे ढूंढे वह उसे मिलना चाहती थी लेकिन कैसे क्या करे वह,,
अचानक उसे कुछ याद आया और वह अपनी कार की ओर भागी दौड़ते हुए वह मुस्कुरा कर बोली अब आप अजनबी नहीं रहोगे अजनबी।
रश्मि को याद आया जब वह अजनबी के साथ हाथापाई कर रही थी तो उसकी जेब से एक छोटी डायरी निकल कर गाड़ी में गिर गयी थी।
ये बात याद आने पर रश्मि की आंखे एक उम्मीद से चमक उठी और चेहरे पर मुस्कान लिए वह धीरे से बोली,"अब तुम अजनबी नही रहोगे 'अजनबी'
रश्मि तेजी से गाड़ी की ओर दौड़ी उसने गाड़ी का दरवाजा खोला और बड़ी उताबली में कुछ ढूंढने लगी, जल्द ही खिले चेहरे के साथ वह पलटी और फिर अपने कमरे में भाग गई पीछे से गिरधारी काका(चोकीदार) आवाज लगते रह गए,"क्या हुआ बिटिया"।
लेकिन रश्मि ने तो जैसे सुना ही नहीं।
कमरे में पहुंचकर रश्मि ने वह छोटी सी पॉकेट डायरी खोली जिसमें कुछ शेरो शायरी लिखी हुई थी, रश्मि उसे पढ़ने लगी।
खुदा सलामत रखे उन्हें जिन्हें हम याद करते हैं।
उन्हें तो पता भी नही जिनसे मिलने की हम फरियाद करते हैं।।
ख्वाबों में आती है सदा दिल में समाई है।
एक अजनबी की तस्वीर हमने अपने ख्यालो में बनाई है।।
उनकी एक चाहत पर हम खुद को वार देंगे।
अपनी महबूबा को हम सारे जहान का प्यार देंगे।।
कब तक यूँ ही दूर रह कर सताओगी।
ख्वाबों से निकल कर सामने कब आओगी।
एक बार आ जाओ मेरी जिंदगी में।
इतना प्यार दूंगा की खुद को भी भूल जाओगी।।
रश्मि जल्दी जल्दी उस छोटी सी डायरी को पूरा पढ़ गयी लेकिन उसमें शायरी के अलावा कुछ नहीं लिखा था।
ओह्ह तो जनाब शायर हैं, रश्मि उन शायरी को बार बार पढ़ती रही लेकिन जो वह ढूंढ रही थी उसका कोई पता कोई नाम ऐसा उसे कुछ नहीं मिला।
रश्मि फिर उदास होकर उस डायरी को गोर से पढ़ने लगी, तभी उसकी नज़र डायरी के कवर की साइड पर पढ़ी जहां लिखा था एक लैंड लाइन का नम्बर, और आखिरी शेर के नीचे लिखा था एक नाम:-
पूरी कायनात में मेरे नाम की मिशाल है।
सभी कहते हैं देखो इसका दिल 'सागर' सा विशाल है।।
सा-  ग-  र!!! रश्मि की आंखे चमक उठी, तो जनाब का नाम सागर है,, अब मैं आपको ढूंढ कर रहूँगी सागर मुझे भी देखना के कितना विशाल है आपका हृदय ,,, और रश्मि शरमा कर खुद में सिमट गई।
रश्मि ने कांपते हाथों से वह नम्बर डायल किया,
ट्रिंग ट्रिंग  ट्रिंग ट्रिंग,,, वह डायल ट्यून को सुनने लगी, उसके दिल की धड़कने भी डायल ट्यून की तरह ही तेज़ी से धड़क रही थीं।
हेल्लो,, उधर से आवाज आयी,, रिसेप्शन (::::) कारखाना , आपको किस्से बात करनी है।
जजजी!! सागर जी हैं?
रश्मि ने काँपती आवाज में पूछा।
जी यहाँ कोई दो सौ लोग काम करते हैं लेकिन सागर नाम का तो कोई भी नहीं है, उधर से आवाज आई।
रश्मि का दिल बैठने लगा हेल्लो,,, हेल्लो उधर से आवाज आई लेकिन रश्मि अपने ख्यालो में खो गयी उसने फोन रख दिया।
यहाँ दो सौ लोग काम करते हैं लेकिन सागर नाम का तो कोई भी नहीं,,, रिसेप्शन से कहे गए शब्द उसके कानों में बज रहे थे एक बार फिर रश्मि को लगने लगा कि वह अजनबी अजनबी ही रह जाएगा और उदास होकर वह फिर से डायरी पढ़ने लगी,,
डायरी पढ़ते पढ़ते अचानक उसे कोई विचार आया और एक बार फिर उसकी आंखें चमक उठी,, उसकी मुस्कान बापस आ गई,,
ढूंढूंगी तो तुम्हे जरूर मैं अजनबी
रश्मि अपने लैपटॉप में उलझी कुछ ढूंढ रही है, उसको देखकर लग रहा है कुछ उलझन में है।
(::::) फेक्ट्री?? ऑनर,,, अग्रवाल,,,, """अग्रवाल ,,, नाम कुछ सुना हुआ लगता है,, रश्मि अपने ख्यालो में खोई हुई कुछ बड़बड़ा रही थी।
उसके माउस का कर्सर बार बार "" अग्रवाल पर घूम रहा था।
""' अग्रवाल अंकल ओह्ह तो यह जनकपुरी बाले अग्रवाल अंकल की फैक्ट्री है,,, रश्मि खुशी से झूम उठी।
अब बचकर कहा जाओगे बच्चू ,, रश्मि घूमते हुए चहकी।
बड़े पापा मुझे जनकपुरी बाले अग्रवाल अंकल की फैक्ट्री देखनी है आप उन्हें बोल दीजिये,, रश्मि अपने दादा जी के ऑफिस में उनके सामने बैठी थी।
अरे बेटा जी ये आपको अचानक फेक्ट्री देखने की क्या सूझी??
सेठ गोपालदास शुक्ल रश्मि की बात सुनकर चोंक गए।
कुछ नही बाबा मुझे देखना है फेक्ट्री में केसे काम होता है, ये लोग अपने यहां काम करने वालों का हिसाब कैसे रखते हैं।
24 घण्टे लगातार काम चलाने के लिए वर्कर्स को केसे मैनेज किया जाता है।
बाबा मैं एक नए आईडिया पर काम कर रही हूं, मुझे फैक्टरी से रिलेटेड सारी इन्फॉर्मेशन कलेक्ट करनी है, आप बस अग्रवाल अंकल को फोन कर दीजिए ।
ठीक है ठीक है मैं अग्रवाल को बोल देता हूँ तुम थोड़ा रुको,
गोपालदास जी मुस्कुरा कर बोले।
कुछ देर बाद-कल आपको अग्रवाल का ड्राइवर ले जाएगा आप आराम से देख कर शाम को बापस आ जाना, गोपाल जी ने रश्मि को बताया तो वह एकदम खिल उठी और मुस्कुराते हुए लौट आयी।
अगले दिन सुबह ही अग्रवाल जी का ड्राइवर आ गया और रश्मि उसके साथ आ गयी फेक्ट्री।
ड्राइवर ने आकर फैक्टरी मैनेजमेंट को बता दिया कि ये अग्रवाल साब के खास हैं जिन्हें कुछ जानकारियां चाहिए अब लोग इन्हें सब बता देना साब ने कहा है इन्हें कोई तकलीफ ना हो।
आपको किस क्षेत्र में जानकारी चाहिए मैम जनरल मैनेजर ने पूरे सम्मान से रश्मि से पूछा।
जी मुझे कर्मचारियों से सम्बंधित जानकारियां चाहिए, कैसे आप शिफ्ट मेंटेन करते हैं लोगो की ड्यूटी और उनके रिकॉर्ड्स कैसे मेंटेन किये जाते हैं।
मैं एक सिस्टम सीखना चाहती हूं इसलिए इसपर रिसर्च कर रही हूं, रश्मि ने कहा।
जी अवश्य आप ये सारी जानकारी हमारे कार्मिक विभाग से ले लीजिए मैं आपके साथ किसी को भेजता हूँ आप कार्मिक विभाग जाकर सारी जानकारी ले लीजिए वे आपको पूरा सहयोग देंगे, जनरल मैनेजर ने कहा।
जी धन्यवाद, रश्मि मुस्कुरादी।
कुछ ही देर में रश्मि कार्मिक विभाग में टाइम कीपर के साथ थी जो अपना ज्ञान दिखाने के चक्कर में रश्मि को सब कुछ बता चुका था कि केजे ड्यूटी और पर्सनल रिकॉर्ड मेंटेन होता है।
अच्छा अगर हमे पुराना कोई रिकॉर्ड देखना हो कि शिफ्ट में कितने लोग आए उनके सारे रिकॉर्ड देखने हो तो? रश्मि ने पूछा।
ड्यूटी के रिकॉर्ड तो शिफ्ट की लिस्ट से मिल जाएगी बाकी की जानकारी उनकी अलग-अलग फाइल्स से मिलेगी।
अच्छा मानलो हमें देखना है 15 फरवरी को रात दस बजे कितने लोग बाहर गए तो उसकी जानकारी मिलेगी?
जी जरूर टाइम कीपर मुस्कुरा कर कंप्यूटर के बटन दबाने लगा।
ये लीजिये मेम ये रही उन लोगो की लिस्ट जो लोग 15 फरवरी को 10 बजे बाहर गए।
कोई 30 लोग थे लिस्ट में,
आप तो पर्सनल विभाग से हैं तो आप इन लोगो को अच्छे से जानते होंगे? रश्मि ने मुस्कुरा कर टाइम कीपर से पूछा।
जी सब कुछ हमे अपने हर कर्मचारी की पूरी जानकारी रखनी होती है, टाइमकीपर भी गर्व से मुस्कुराया।
मैं नही मानती की आप सब कुछ जान सकते हो, रश्मि गम्भीर होकर बोली।
सब कुछ जानते हैं मेडम जी, हमे तो सेलरी ही इसी काम की मिलती है।
मैं नही मान सकती, रश्मि गम्भीर बनी रही।
अच्छा आप कुछ भी पूछिये मैं बताता हूँ फिर आप पता करलेना मेरी जानकारी कितनी सही है, टाइम कीपर विस्वास से बोला।
अच्छा बताओ इनमें से कितने लोग शायर हैं ?रश्मि हंसते हुए बोली।
केवल दो, टाइम कीपर ने बिना देर लगाए कहा।
कौन दो? रश्मि ने फिर पूछा, उसकी आँखों में विशेष चमक थी जैसे सफलता उसे मिलने ही वाली थी।
टाइम कीपर ने दो नाम अलग लिख दिए, दोनों ही शर्मा थे।
अच्छा मुझे इन दोनों की पूरी जानकारी इनके फ़ोटो इनके लिखे पेपर दिखा सकते हो?
जी अवश्य टाइम कीपर फाइलें निकालते हुए बोला।
पहली फाइल में रश्मि को निराशा मिली, किन्तु दूसरी फ़ाइल खुलते ही उसकी आंखें चमक उठी पहले ही पेज पर उस अजनबी का फोटो लगा था आगे उसके हाथ से लिखा हुआ कंपनी का फार्म।
रश्मि ने दोनों फ़ाइल से नाम पते ओर मोबाइल नम्बर नोट कर लिए और बापस आ गयी।
चार ही दिन में कंपनी ने सागर को तीन महीने का वेतन देकर जॉब से निकाल दिया।
उसपर इल्ज़ाम था 15 फरवरी की रात दिल्ली की किसी लड़की का 20 लाख का हीरो का हार चोरी करने का।
मिस्टर शर्मा आपको जॉब से हटाया जा रहा है, ये रहा आपका हिसाब ओर 3 मंथ की एडवांस सेलरी।
लेकिन सर मेरी गलती क्या है?? सागर ने पूछा।
आप पर इल्ज़ाम है कि आपने 15फरवरी की रात देहली की किसी लड़की का हीरो का हार चुरा लिया है उसकी मदद करने के बहाने, मैनेजर ने बताया।
वे तो आप पर केस करने वाले थे 'शर्मा' लेकिन फिर हमने बदनामी होने के डर से उन्हें मना लिया लेकिन अब आप यहां काम नही कर सकते।
सागर को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ क्या हो रहा है।
∆∆∆∆
रश्मि फेक्ट्री से लौट कर सीधे अपने दादा के पास गयी और उनसे कुछ देर बात करके मुस्कुराते हुए बाहर आ गई।
उसके बाबा गोपालदास जी ने अग्रवाल को फ़ोन किया अभी ये फ़ोन रखकर कुछ सोच ही रहे थे तभी रश्मि ने उनके ऑफिस में कदम रखा।
गुड मॉर्निंग अंकल रश्मि मुस्कुराते हुए बोली।
गुड़ मॉर्निंग रश्मि आज अपने अंकल की याद कैसे आ गयी कोई 4 या 5 साल पहले मिला था आपसे बेटा जी उसके बाद कभी मुलाक़ात ही नही हुई।
यूँ भी बस कभी कभी शुक्ला जी से उनके ऑफस में ही मुलाकात हो पाती है।
हाँ अंकल सही कह रहे हो रश्मि हल्के से मुस्कुरादी।
तो कहो कैसे आना हुआ आपके दादा जी ने हुक्म दिया है कि आपकी हर बात मानी जाए।
ऐसे भी आपके पापा जी मेरे बहुत अच्छे दोस्त थे हमलोग बचपन से लेकर कॉलेज तक साथ ही थी रोज ही आपके घर आना होता था।
लेकिन कमल ओर भाभी जी के एक्सीडेंट के बाद मेरी हिम्मत ही नही होती आपके घर आने की मेरी आँखें भीग जाती हैं अपने दोस्त को वहां ना पाकर।
लेकिन बेटा जी आप मेरे अपने हो आपकी जब इच्छा आ सकते हो जो चाहे मुझे कह सकते हो आखिर आप मेटे सबसे अच्छे दोस्त कमल की निशानी हो।
तो बताओ आज कैसे याद कर लिया और हां आप फेक्ट्री भी गए थे? कोई बात तो है बेटा जो आपको परेशान किये हुए है।
अग्रवाल अंकल ने बहुत अपनेपन से रश्मि से पूछा।
वो 25 अगस्त को में निधि कपिल राजन सोनिया और नरेश के साथ पहाड़ो पर घूमने गयी थी जहां नरेश ओर निधि ने चालाकी से मुझे ड्रिंक में वाइन मिलाकर पिला दी उसके बाद नरेश ने मेरे साथ,,, मैं बचकर अपनी गाड़ी में लौट रही थी तभी रास्ते में मेरी तबियत,,, उसके बाद एक अजनबी ने मेरी मदद की अंकल वह चाहता तो मुझे पूरा लूट सकता था मैं किसी भी बिरोध की हालत में नहीं थी अंकल लेकिन उसने मुझे न केवल सुरक्षित घर छोड़ा बल्कि मेरी ज्यादतियों को भी बर्दाश्त किया।
ये है वह अजनबी अंकल, रश्मि ने सागर के पेपर्स की फ़ोटो अपने मोबाइल में दिखाते हुए कहा।
ओर अंकल ये आपकी फेक्ट्री में सुपरवाइजर है।
अरे वाह तब तो इसे इनाम मिलना चाहिए मैं कल ही इसका प्रोमोशन लेटर भेज देता हूँ, अग्रवाल जी ने मुस्कुरा कर कहा।
नहीं अंकल आपको इसे नोकरी से निकलना है, रश्मि गम्भीर होकर बोली।
क्या!!! ये भला क्या इनाम हुआ रश्मि?
बस अंकल आपको यही करना है , रश्मि बोली।
लेकिन बेटा हम ऐसे किसी को जॉब से नहीं निकाल सकते और फिर निकालने पर हमें 3 मंथ की सैलरी भी देनी पड़ती है।
वो मैं दे दूंगी अंकल ओर जॉब से निकालने की बजह है मेरे हीरों के हार की चोरी, रश्मि हल्के से मुस्कुरादी।
लेकिन अभी तो आपने कहा कि उसने कुछ नहीं चुराया? अग्रवाल जी को कुछ समझ नही आ रहा था।
उसने मेरा हीरो से भी कीमती सामान चुराया है अंकल, अबकी रश्मि खुल कर मुस्कुराते हुए शर्मा गयी।
ओह्ह!अब समझा, लेकिन बेटा उसके लिए उसे नोकरी से निकालने की क्या जरूरत है, मैं उसका ट्रांसफर यहां कर लेता हूँ उसके बाद आप मिल लेना उससे।
नहीं अंकल ऐसे नहीं आप बस जो मैं कह रही हूं वही कीजिये, रश्मि फिर से गम्भीर हो गई।
मेरी समझ मे नही आ रहा आप करना क्या चाहती हो लेकिन फिर भी जो चाहती हो; वो हो जाएगा अग्रवाल जी ने कहा।
थैंक्यू अंकल रश्मि मुस्कुराते हुए लौट आयी।
∆∆∆
आज सागर को नोकरी छूटे पांचवा दिन है, वह सोच रहा है कि उसने तो कोई चोरी नहीं की फिर उसे नोकरी से क्यों निकाल दिया गया।
उसे रश्मि पर गुस्सा आ रहा है कि उसने कितना गलत किया, अहसानफरामोश लड़की।
क्या मुझे उससे मिलने जाना चाहिए क्या मुझे उससे ये पूछना चाहिए कि उसने ऐसा क्यों किया??
क्या पता उसका हार इसके दोस्तों ने चुराया हो जिन्होंने उसे शराब पिलाई थी, ओर इल्ज़ाम मुझपर, ये बड़े लोग भी ना हमेशा गरीब को दोषी मानते हैं; सागर परेशान बड़बड़ा रहा था।
मैं जाऊंगा उससे मिलने एक बार पूछूंगा तो ज़रूर की उसने ऐसा क्यों किया। उसके घरवालों को बताऊंगा उस रात की बात, कोई तो समझेगा, सागर ने निश्चय कर लिया।
इधर रश्मि रोज गिरधारी से पूछती," कोई मुझे मिलने तो नहीं आया अंकल?"
और उसके ना कहने पर उदास होकर लौट जाती।
सागर उदास बैठा सोच रहा था कि उसने तो इंसानियत के नाते रश्मि की मदद की थी फिर उसने चोरी का इल्जाम क्यों लगाया, उसने तो कोई चोरी नहीं की।
मुझे एक बार जाकर उस लड़की से बात करनी चाहिए अगर मैं उसके घर वालों को उस रात की सारी बात बताऊंगा तो वे लोग अवश्य समझेंगे, सागर ने सोचा और दिल्ली जाने की तैयारी करने लगा।
रश्मि ने गिरधारी काका(वॉचमैन) से पूछा, "काका, क्या कोई मुझे पूछने आया?"
गिरधारी ने ना में सर हिला दिया।
रश्मि भाग कर अपने कमरे में अस गई उदासी उसके चेहरे पर साफ दिख रही थी।
क्या उसे एक बार आना नही चाहिए था?? रश्मि ने गुस्से में गुलदस्ता फेंकते हुए कहा,समझता क्या है ये खुद को, लेकिन मैं जानती हूं आएगा जरूर रश्मि विस्वास से मुस्कुरादी।
लेकिन कब??, बच्चू सारा बदला लुंगी तुमसे देखना तुम ,रश्मि अभी भी गुस्से में थी; तभी गिरधारीलाल दौड़ते हुए आये," छोटी मालकिन आपसे कोई मिलने आया है"।
कौन? रश्मि ने अधीरता से पूछा।
कोई जवान लड़का है गोरा लंबा,, गिरधारी ने हुलिया बताया।
ओह्ह!! तो आ गए जनाब शायर साब, रश्मि खिल उठी, लेकिन अगले ही पल गम्भीर होकर बोली, "काका आप उन्हें बिठाओ चाय नास्ता कराओ और कहना मैं घर पर नहीं हूं बाकी एकाध घण्टे बाद बताऊंगी।
ठीक है बेटा जी, गिरधारी ने कहा और लौट आया।
आओ साब, गिरधारी सागर को गेस्ट रूम में ले आया जो नीचे ही था छोटा सा कमरा जो बाहरी लोगों के लिए बनाया गया था।
आप बैठिए मैं आपके लिए नास्ते का इंतज़ाम करता हूँ।
मैं यहां नास्ता करने नहीं आया चाचा जी मुझे बस रश्मि जी से दो मिनट बात करनी है।
साब छोटी मेम साब तो घर पर नहीं हैं आपको इंतज़ार करना पड़ेगा तब तक आप आराम कीजिये।
कोई दो घण्टे बीत गए सागर को आये इस बीच दो बार चाय आ चुकी थी बढ़िया नास्ते के साथ लेकिन रश्मि उसे मिलने नहीं आयी इस बीच गिरधारी 4 बार अंदर हो आया था और हर बार एक ही बात कहता छोटी मालकिन अभी लौटी नहीं हैं, जैसे ही आती हैं आपके बारे में बताता हूँ।
कोई और तो होगा घर में आप मुझे उनके पेरेंट्स से ही मिला दो मैं अपनी बात उन्हें ही बता कर चला जाऊंगा।
कोई नहीं है साब, हमारे साब ओर मालकिन तो दस साल पहले ही एक कार के एक्सीडेंट में,, गिरधारी उदास हो गया।
बड़े मालिक ने बहुत प्यार से पाला है रश्मि बिटिया को इसीलिए थोड़ी जिद्दी है हमारी रश्मि मेमसाब लेकिन दिल की बहुत अच्छी हैं साब जल्दी ही लोगों की बातों में आ जाती है, लोग कई बार उनकी इसी अच्छाई का फायदा उठाते हैं।
दादा जी भी कभी उनकी किसी बात को मना नहीं करते, आखिर ये सब रश्मि बिटिया का ही तो है।
लेकिन बेटा आज तक हमारी रश्मि को जो भी दोस्त मिले हैं मतलबी ही मिले हैं।
बैसे आप किस सिलसिले में आए हैं?"गिरधारी ने धीरे से पूछा।
जजजी!! नोकरी,, सागर कुछ अचकचा गया।
ओह!!जरूर दिला देंगी रश्मि बिटिया आपको नोकरी साब।
आप कहाँ से आए हो? घर में कौन-कौन हैं? गिरधारी ने पूछा 
जी यूपी से, वहां गांव में हमारी खेती है जिसे पिताजी देखते हैं माता जी और एक छोटी बहन है सब गांव में ही रिश्ते हैं।
अच्छा अच्छा, मैं बताता हूँ आपके बारे में बिटिया को आते ही
  आप आराम करो, कहते हुए गिरधारी बाहर निकल आया।
कोई नहीं है साब ,,,, गिरधारी की कही बातें सागर के कानों में गूंज रही थी,, थोड़ा जिद्दी है रश्मि बिटिया ,,, ।
बेटा जी कब तक बिठाना है उन्हें, नोकरी के लिए आये हैं कहीं दूर से अपने कभी कह दिया होगा, गिरधारी फिर से  रश्मि के पास आया।
हाँ काका जी लेकिन दादू से बात किये बिना कैसे मिलू उनसे समझ नहीं आ रहा रश्मि गंभीर होकर बोली।
आप उन्हें कल तक रोके रहिये रात को हम दादू से बात कर लेंगे फिर मिलेंगे इन से, रश्मि ने धीरे से कहा।
अरे बेटा आप इन्हें साब जी के दफ्तर भेज दो और सेठ जी को फोन पर बता दो वे देख लेंगे इन्हें क्या नोकरी देनी है।
अरे नही काका जी मैं बात कर लुंगी रात को दादू से आप जाओ और उन्हें कह दो कल मुलाकात होगी चाहे वह यहाँ रुके अगर ना चाहे तो बाहर कहीं इंतज़ाम कर ले, रश्मि ने गिरधारी को जबाब दिया।
जी रश्मि बिटिया मैं कह देता हूँ बेकार में इंतज़ार में परेशान हो रहे हैं।
आज तो आपकी मुलाकात नहीं हो पाएगी साब, आप कल मिल लेना रश्मि बिटिया से और सेठ जी से।
आपके रहने का इंतज़ाम यहीं करूँ या आप बाहर कहीं?? गिरधारी ने सागर को बताया।
जी शुक्रिया मैं होटल में रुक जाऊंगा बहुत मेहरबानी आपकी और आपकी रश्मि मेमसाब की, जो घर में होते हुए भी मुझे दो मिनट ना दे सके, सागर गुस्से में जाने लगा ।
जैसे आपकी मर्जी बैसे आप यहां भी रुक सकते थे, गिरधारी मुस्कुरा दिया।
लेकिन सागर बाहर निकल गया।
आजकल के नोजवान भी ना अब बताओ ये कोई बात हुई नोकरी मांगने आये है हमने इन्हें मेहमानों जैसे रखा लेकिन इन्हें तो लग रहा है ये हमपर एहसान कर रहे हैं, गिरधारी बड़बड़ा रहा था जिसे सुनकर रश्मि मुस्कुरा रही थी।
सागर को लौटे कोई दो घण्टे हो गए उसने पास ही एक सस्ते होटल में रात के लिए कमरा ले लिया और ढाबे से खाना खाकर कमरे में लेट गया।
कितनी नकचढ़ी लड़की है घर में ही थी लेकिन मुझे दो मिनट भी मिल नहीं सकी, किस मुंह से मिलती बिना बजह झूठा इल्ज़ाम जो मुझपर लगाया है, सागर सोच रहा है।
सोच रही होगी अकेली मुझे जबाब क्या देगी इसलिए नहीं मिली, सुबह दादा जी के सामने बात करेगी, लेकिन मैं भी इसके दादा जी को सारी बात बताकर उन्ही से अपनी गलती पूछूंगा, इतनी बड़ी चोरी का इल्जाम भगवान जाने कैसे लोग हैं।
इनसे तो इनके नोकर ज्यादा अच्छे हैं बेचारे ने मुझे अपने मेहमान जैसा रखा वह तो रात को भी  मुझे अपने पास,, सही कहा है गरीब हमेशा दिल से अमीर होता है, ओर ये अमीर लोग,,, सागर इसी उधेड़बुन में खोया थक कर सो गया।
कैसा इंसान है यहां नहीं रुक सकता था, यहाँ कोई उसे खा रहा था!! रश्मि गुस्से में बड़बड़ा रही थी।
उसे समझना चाहिए था ना कि हम आज उसे बस सता रही हैं।
हमने उसकी मेहमाननवाजी में क्या कमी की?? सेल्फिश कहीं का।
उसे पता था कि हम घर पर ही हैं और अकेली हैं लेकिन फिर भी चला गया, आज कहाँ चली गयी इसकी हमारे लिए फिक्र।
रश्मि परेशान होकर कमरे में चहलकदमी कर रही थी।
शायद बहुत नाराज है हमसे?? हमने भी तो कुछ ज्यादा ही कर दिया,,, रश्मि उदास हो गयी।
लेकिन उसने जो किया?? उस दिन हमें सम्भाल कर लाया हमारी ज्यादती बर्दास्त की लेकिन हमें ऐसे लावारिश की तरह घर के बाहर,,, हमारा चेन चुराकर ले गया और अपना अता-पता तक नहीं बता कर गया उसका क्या?? अगर हम ना खोज पाते तो ??
हमतो जिंदगी भर अफसोस ही करते रहते की जिंदगी में एक अच्छा और सच्चा इंसान मिला लेकिन अजनबी ही रह गया।
हुंह!!, अजनबी रश्मि फिर गुस्से में टहलने लगी,,,

सागर रश्मि के बारे में सोचता सोचता सो गया ।
इधर गोपालदास जी के आते ही रश्मि ने उन्हें कुछ बताया और वह मुस्कुरा दिए, उसके बाद दोनों कुछ देर गंभीरता से बातें करते रहे।
सुबह ठीक आठ बजे सागर ने गोपालदास जी का द्वार खटखटा दिया।
अरे आप? इतनी सुबह, गिरधारी ने दरवाजा खोलते हुए कहा।
जी मुझे बस दो मिनट बात करनी है उनसे आप बता दीजिए जाकर मुझे जल्दी ही लौटना है।
हाँ हाँ चले जाना आओ अंदर तो आओ मैं बताता हूं रश्मि बिटिया को।
जी काका जी ,ओर अपने सेठजी से भी मिलबा दीजिये,सागर धीरे से बोला।
अच्छा,, गिरधारी उसे गेस्ट रूम में बैठने का इशारा करके अंदर चला गया।
बिटिया वह कल वाला लड़का आया है मैने उसे बिठा दिया है वह सेठजी से भी बात करना चाहता है , गिरधारी ने अंदर आकर रश्मि से कहा ।
अच्छा काकू आप उन्हें नास्ता कराओ मैं आती हूँ दादा जी तो अभी नहाने गए हैं उनसे मैं बात कर लुंगी आप चलो।
जी बिटिया कहकर गिरधारी  लौट गया।
लीजिये जलपान कीजिये बिटिया आती हैं अभी, गिरधारी ट्रे लेकर अंदर आया।
मैं यहां चाय पानी के लिए नहीं आता हूँ काका जी मुझे बस दो मिनट बात करनी है इन लोगों से , सागर तनिक रोष में बोला।
अरे ऐसे कैसे बात कर रहे हो आप ? गिरधारी चोंकते हुए बोला, एक तो नोकरी मांगने आये हो ऊपर से हम आपसे मेहमानों की तरहा पेश आ रहे हैं, उसपर भी ऐसे बात कर रहे हो जैसे हम पर अहसान कर रहे हो।
मैं यहां नोकरी मांगने नही आया काका, सागर जोर से बोला।
अरे वाह कल तुमने नहीं कहा था कि नोकरी के लिए,, गिरधारी फिर से चोंका।
हाँ कहा था क्योंकि आपकी रश्मि मेम साब ने मुझे नोकरी से निकलवा दिया, मेरी खता सिर्फ इतनी थी काकू की मैंने एक अजनबी लड़की की मदद की थी।
सागर कुछ सोचते हुए उदास होकर बोला, ये अमीर लोग  कभी हम गरीबों को नही समझ सकते काकू, एक आप हैं जो मुझसे इतने अच्छे से बात करते है, मेरे लिए इतना कुछ करते है और एक आपके मालिक लोग जो दो मिनट बात भी नहीं करते मेरे साथ इतना बुरा करके भी, सागर धीरे से बोला।
ये क्या कह रहे हो बेटा, मुझे तो रश्मि बिटिया ने ही कहा था कि आप उनके खास दोस्त हो इसलिए आपका खास ख्याल रखूं और उन्होंने तो मुंझे ये भी कहा था कि तुम्हारे रात को रहने की व्यवस्था भी यहीं की जाए।
तुम्हारे यहां ना रुकने से कुछ उदास भी थी रश्मि बिटिया।
क्या!!!, सागर को जैसे अपने कानों पर विस्वास ही नहीं हुआ।
सच कह रहा हूँ बेटा मेरी अनुभवी आंखों ने उसकी उदासी देख ली थी जब मैंने बताया कि तुम आज रात होटल में रुकने वाले हो।
अच्छा मैं चलता हूँ बाद में आता हूँ,कहकर गिरधारी लौट गया।
सागर उदास बैठा था उसके कानों में गिरधारी की आवाज गूंज रही थी।
तो रश्मि मेरी खातिर कर रही थी,,, उसका खास दोस्त,,, रात रूकने को,,
ओह्ह!!, ये सब क्या हो रहा है मेरे साथ, पहले तो मुझे नोकरी से निकलवा आयी अब खास दोस्त भी कहती है और दो मिनट बात करने का टाइम भी नहीं उसके पास।
सागर को कुछ समझ  नहीं आ रहा था ,, मेरे होटल में रुकने से भला क्यों उदास हो गयी ये लडक़ी?
सागर का दिमाग चक्कर खा रहा था,, इसी उधेड़बुन में कोई दो घण्टे निकल गए इस बीच न गिरधारी आया न ही रश्मि या सेठ जी ,लेकिन सागर अपने ख्यालो में खोया था , उस रात से अब तक कि सारी घटनाएं उसके सामने घूम रही थी तभी गिरधारी ने आवाज लगाई, " आईये रश्मि बिटिया आपको ऊपर बुला रही हैं।
सागर बिना कुछ कहे गिरधारी के पीछे चल पड़ा, गिरधारी सागर को एक कमरे के बाहर छोड़ आता।
सागर ने हल्के से डोर नोक किया, ,,
आ जाओ उधर से रश्मि की बहुत हल्की आवाज सुनाई दी।
सागर ने बढ़ती धड़कनों के साथ कमरे में पैर रखा सामने रश्मि खड़ी थी, एक दम परी जैसी खिली खिली गोरी गुलाबी रश्मि, ब्लैक जीन्स औऱ गुलाबी टॉप पहने बिल्कुल किसी खिले गुलाब जैसी।
उसे देखकर सागर जैसे खुद को ही भूल गया।
जी कहिये, क्या बात करना चाहते हैं? रश्मि धीरे से बोली।
अअयह हाँ, सागर कुछ अचकचा गया।
जी मुझे नोकरी से निकाल दिया गया, सागर ने एक दम से कहा।
अच्छा!! क्यू?? रश्मि ने बहुत ही भोलेपन से पूछा।
आपके कारण, सागर थोड़ा गुस्से में बोला।
हाये राम, हमने क्या किया? रश्मि उसी भोलेपन से बोली।
ज्यादा भोली मत बनिये मेम साब अपने ही तो इलज़ाम लगाया था कि मैंने आपका हीरों का हार चुरा लिया, उसी इल्ज़ाम में निकाल दिया गया मुझे नोकरी से, सागर अभी भी गुस्से में था।
अच्छा तो वह आप थे? लेकिन हमें तो आपका नाम, आपका पता कुछ भी नही मालूम था फिर हमने कैसे? रश्मि ओर ज्यादा भोली बन गयी।
अच्छा उस दिन रात को जब आप नशे में उल्टियां कर रहीं थी तब मैंने आपकी मदद,, सागर चिढ़ कर बोला।
ओह्ह!! तो आप वह हो, लेकिन आप तो हमें अपना नाम अपना पता कुछ भी बता कर नहीं गए थे फिर हम कैसे आपको नोकरी से निकलवा सकते हैं? रश्मि उसी मुद्रा में बोली।
फिर आप उनको बोल दीजिये ना की हमने आपका हार नहीं चुराया, सागर धीरे से अपने गुस्से पर काबू पाने की कोशिश करता हुआ बोला।
आपने नहीं चुराया तो फिर आप चोरों की तरह बिना बताए क्यों चले गए हमें ऐसे रास्ते में छोड़कर, रश्मि भी अब थोड़ा गुस्से में बोली।
रास्ते में नहीं आपके घर के सामने गाड़ी पार्क करके गया था मैं,आप इस हालत में नहीं थीं की आपको आपके घर बालों को सौंप सकता, वह आपकी हालात देखकर जाने क्या सोचते आपके ओर मेरे बारे में इसलिए आपको छोड़ कर चला गया था, मेम साब।
हमारा नाम मेम साब नही रश्मि है, तो पहले तो ये मेम साब कहना बन्द कीजिये और ये बताईये की इतनी ही फिक्र थी हमारी तो ऐसे लावारिस छोड़कर जाने की क्या जरूरत थी हमारी हालात सुधरने तक रुक भी तो सकते थे, ऐसे रोड पर गाड़ी खड़ी कर गए ये भी नहीं सोचा कि कोई हमारा गाड़ी सहित किडनैप ही कर लेता तब?? रश्मि ओर ज्यादा चिढ़ गयी।
पक्का इन्तज़ाम करके गया था मैं रश्मि जी, पूरी गाड़ी अंदर से लॉक थी गाड़ी के सारे सेफ्टी अलार्म ऑन थे और हैंड ब्रेक लगे हुए थे, अगर कोई जरा सा भी टच करता आपकी गाड़ी को तो इतना शोर मचाती की आपके साथ साथ पूरा मोहल्ला जग जाता, सागर अब मुस्कुरा कर बोला।
लेकिन तुम्हे अपना नाम पता कुछ तो छोड़ना चाहिए था, या चलो कभी एक बार देखने ही आ जाते की हम ठीक हुए या मर गए, रश्मि अब भी बदस्तूर नाराज़ थी।
वो तो भला हो उस छोटी डायरी का जिस से हमें उस फेक्ट्री का पता मिल गया लेकिन फिर भी तुम्हे ढूंढना कितना मुश्किल था उफ्फ, लेमिन बच्चू हम जो चाहते हैं उसे हासिल करके ही रहते हैं।
ऑफ़ह!!, लेकिन उसके लिए हमें झूठी चोरी का इल्जाम लगाकर ऐसे नोकरी से निकलवाने की क्या जरूरत थी ?,
सजा थी आपकी, ऐसे हमे बिना नाम पता बताए जाने की, हम इस न करते तो क्या आप यूँ पागलो की तरह हमसे मिलने को तरसते, रश्मि मुस्कुरा कर बोली।
ये बदला था उस मेहनत का जो हमने आपको ढूंढने में की थी, क्योंकि आप ने हमारी सबसे कीमती चीज चुराई है, कहते हुए रश्मि थोड़ा शरमा गयी।
ओह्ह!!, फिर वही बात, भगवान कसम मैंने कुछ नही चुराया रश्मि जी,सागर फिर अचकचाकर बोला।
चुराया है जी आप ही ने चुराया है,  ओर उसकी सजा दादा जी आपको देंगे चलिए उनके ऑफिस, रश्मि पूरे विस्वास से बोली।
हाँ चलो, मुझे भी उनसे बात करनी है, सागर तुरंत तैयार हो गया।
रश्मि ने गाड़ी निकाली और थोड़ी ही देर में दोनों गोपालदास जी के सामने थे।
दादू इन्हें आपसे बात करनी है, रश्मि मुस्कुरा कर गोपालदास जी से बोली।
आओ आओ बरखुर्दार बैठो,तो आप हैं जिन्होंने हमारी जान की जान और इज्जत सही सलामत घर तक पहुंचाई, शुक्रिया  नोजवान, गोपालदास जी बहुत अपने पन से पेश आये।
लेकिन सेठ जी,
दादू अरे भाई दादू कहिये हमें सेठ जी तो सभी कहते है, बहुत पराया सा लगता है ये, गोपालदास जी ने सागर को बीच में ही टोक दिया।
जी दादू, सागर थोड़ा शर्मिंदा हो गया।
हाँ तो क्या कह रहे थे आप, गोपालदास जी ने पूछा।
जी दादू देखिए ना मैंने रश्मि जी की हेल्प की उन्हें घर पहुंचाया लेकिन उन्होंने मुझे चोरी का इल्जाम लगाकर नोकरी से निकलवा दिया, सागर उदास होकर बोला।
अच्छा ऐसा किया रश्मि ने?
दिस इस नॉट फेयर रश्मि आपको इतने भले नोजवान के साथ ऐसा बर्ताब नहीं करना चाहिए था, गोपालदास जी ने मुस्कुरा कर रश्मि को देखा।
दादू इन्होंने सच में मेरी बहुत कीमती चीज चुराई है, ओर चुरा कर बिना बताए गायब हो गए थे, ये तो मैने मजबूर किया इन्हें बरना जिंदगी भर अजनबी ही रहने वाले थे ये जनाब इन्हें सज़ा मिलनी ही चाहिए, रश्मि हठ से बोली।
अच्छा अच्छा समझ गया और अब मैं तुम दोनों को ही तुम्हारी ना समझी की सज़ा सुनाता हूँ, ये लो सागर बेटा आपकी सज़ा , गोपालदास जी ने एक लिफाफा उसकी तरफ बढाया।
सागर ने कांपते हाथों से लिफाफा खोला, उसमें एक लेटर था," यू आर ऑपोइंटेड एज जनरल मैनेजर इन अवर टेक्सटाइल एंड गारमेंट्स सेक्शन सेलेरी 70,000 विध थ्री रूम सेट।
क्या ये सच है?? हाँ बरखुरदार एक दम सच, गोपालदास जी मुस्कुरा कर बोले।
लेकिन इतनी बड़ी पोस्ट ऐसे बिना जाने बिना इंटरव्यू, सागर असमंजस में धीरे से बोला।
सब देख परख कर ही डिसीजन लिया है बरखुरदार आपकी पूरी फ़ाइल हमारे पास है और इंटरव्यू तो दो बार गिरधारी आपका ले ही चुका है आपके धैर्य की परीक्षा आपके चरित्र की परख सब हो चुकी है।
आप टेक्सटाइल से इंजीनियरिंग डिग्री लिए हो, प्रोडक्शन मैनेजमेंट में mba कर रहे हो आप पूरी तरह इस जॉब के लायक हो, ओर फिर हमें अपनी रश्मि की गलती भी तो सुधारनी है।
ओर रही बात उसका कुछ चुराने की तो आज से वही तुम्हारी बॉस होगी, इस कंपनी को मालकिन वही है तो अब तुम उसी के साथ रहोगे और वह अपनी चुराई चीज़ तुमसे लेगी या तुम्हारे पास छोड़ेगी वह खुद डिसाइड कर लेगी यही है तुम दोनों की सजा।
अब जाओ और कंपनी के काम के साथ साथ एक दूसरे को भी ओर ज्यादा समझ लो,  गोपालदास जी अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कुराए और रश्मि शरमाकर भाग गई।
सागर को अब कुछ कुछ समझ आ रहा था लेकिन वह रश्मि को अभी और सताने की सोच चुका था।
आईये छोटी मालकिन गुलाम हाजिर है, सागर गाड़ी का दरवाजा खोल कर बड़ी अदा से झुक कर बोला।
अच्छा जी रश्मि गाड़ी में बैठते हुए उसे घूंसा दिखाने लगी।
मेने कहा था न मेरा नाम रश्मि है मुंझे वही बुलाया करो।
लेकिन अब तो आप मेरी बॉस हो ओर मैं आपका अदना सा गुलाम, सागर इसकी आंखों में देखकर मुस्कुराने लगा, लेकिन जो चुराया है अब नहीं लौटाऊंगा वह ऐसे ही उसे एक टक देखते हुए बोला।
ऐसे क्या देख रहे हो? रश्मि ने शरमाकर नज़रे झुका लीं।
देख रहा हूँ चुराने को ओर क्या क्या रह गया , सागर ने हिम्मत करके अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया,मैं जिंदगी भर आपकी गुलामी करने को तैयार हूं मालिकाये हुस्न, सागर ने बड़ी अदा से सर झुका कर कहा।
तो वादा करो आगे से शायरी बस मेरे लिए ही लिखोगे, रश्मि ने होले से उसका हाथ दबा कर कहा।
कभी हुकुम उदूली नहीं होगी मलिका, सागर ने कहा और दोनों हंसने लगे।
समाप्त।
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Tuesday, February 5, 2019

#हॉरर/31 की पार्टी (16+)

2010 के 31 दिसंबर की कोहरे वाली रात थी, जगह जगह नए साल की पार्टी से शहर भर के होटल ढावे गेस्ट हाऊस रौनकमय होकर झूम रहे थे।
शहर तो शहर आसपास के फार्महाउस उससे भी ज्यादा रंगीनी में डूबे हुए थे।
युवाओं की पार्टी हो और शराब का दौर ना चले ऐसा होना असम्भव ही होता है ऐसे ही शहर से दूर सूनसान में एक बड़ा फार्म हाउस था उसके मालिक के बेटे रोहन ने अपने दोस्तों को न्यू ईयर पर्टी दी थी।
पार्टी में उसके पाँच दोस्त- विकास, प्रिया, रजनी, सुरेश और मनोज शामिल हुए, आधी रात तक शराब और नाच गाने का दौर चलने के बाद मनोज, प्रिया और रजनी के साथ वापस लौट आया लेकिन रोहन, विकास और सुरेश बची हुई शराब खत्म करते वहीं पर रुक गए।
कोई एक घण्टा लगातर पीने के बाद तीनों की आंखे मुंदने लगी, उन्हें नशे ने पूरी तह अपनी गिरफ्त में ले लिया अब उनकी बातों में बातें कम और गाली ज्यादा निकल रही थीं।
अरे यार सुरेश शराब हो गयी पार्टी खत्म हो गयी लेकिन 'मूड' नहीं बना, रोहन सिगरेट सुलगाते हुए बोला।
हाँ यार जब तक फड़कता हुस्न और शबाब ना हो पार्टी का मज़ा अधूरा ही रहता है भ,,,का विकास ने भी एक भद्दी सी गाली से उसकी बात का समर्थन किया।
आओ फिर चलते हैं शायद कोई मिल जाये, कोई आइटम हमारी तरह प्यासी पार्टी से लौटती हुई, क्यों सुरेश? रोहन हंसते हुए बोला।
नहीं!!, तुम लोग हर बार ऐसा ही करते हो अच्छी बात है क्या यार, ओर फिर इतनी रात में इतने कोहरे के बीच,,, सुरेश कुछ सहमते हुए बोला।
फट्टू साला, विकास हंसने लगा, अरे किस्मत आजमाने में क्या जाता है और कुछ नहीं तो कुछ हैंगओवर ही कम हो जाएगा, आओ चलते हैं यार एक राउंड मार कर आते हैं, विकास ने सुरेश को हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा और उसका दूसरा हाथ रोहन ने पकड़ लिया और उसे खींच कर बाहर ले आये।
मरोगे सालो तुम ठंड में अब भ**वालो इतने कोहरे में अपनी उंगलिया तक महसूस नहीं हो रही ऐसे में तुम्हे छमिया की सूझ रही है, जाने को र**तुम्हारा इन्तज़ार कर रही है इस कोहरे में बैठी की आओ राजा मुझे,,,सुरेश उन्हें लगातार लौटने को कह रहा था।
अबे ओ ग*** साले कभी तो अच्छा सोच लिया कर, क्या पता मिल ही जाए, ऐसे भी आज की रात कई कालगर्ल घूमती हैं फार्म हाउस के आसपास मोटे माल की उम्मीद में कोई मिल गयी तो साली जो मांगे हाँ कर देना हमें कौनसा कुछ देना है उसे सुबह ग** पर लात मारकर भगा देंगे भो**वाली र** को, रोहन गन्दी हंसी हँस रहा था।
अभी ये लोग कोई आधा किलोमीटर ही चले होंगे कि तभी इन्हें किसी मधुर धुन में निकलती मुंह से बजती हल्की हल्की सीटी की आवाज सुनाई दी।
इसस्सशः !!!कोई है आगे रोहन मुंह पर हाथ रखकर चुपचाप चलने का इशारा करते हुए बोला।
कोई लड़की है यार इतनी मीठी आवाज में सीटी बजा रही है खुद कितनी स्वाद होगी साली, विकास अपने होंठों पर जीभ फिराता हुआ वहशियाना हँसी धीरे से हँसा।
चलो जल्दी देखते हैं कौन है पक्का कोई चालू माल होगी यार काम बन गया अपना बस जितने भी मांगे एक दो बात करके मान लेना, रोहन की आंखों में कामुकता की चमक थी और होंठो पर वहशियत की हँसी।
थोड़े और आगे बढ़ने पर इन्होंने देखा एक पतली छरहरी अल्हड़ जवान लड़की जीन्स टॉप पहने उछलती गाती सीटी बजाती मस्ती में चल रही थी।
कौन है वहाँ विकास ने जोर से पुकारा।
तभी वह लड़की पलटी रात के अंधेरे और घने कोहरे में भी उसका गोरा रंग चान्दनी जैसा चमक रहा था और उसके गुलाबी होंठो पर खिली हंसी दूर से दिख रही थी।
कककोंन!!! हो आप? सुरेश घबराते हुए बोला क्योंकि उसने ज्यादा नहीं पी थी, ऐसे भी वह  हमेशा गलत काम का विरोध करता था लेकिन दोस्ती निभाना उसके स्वभाव में था।
मैं परी, उस लड़की ने मुस्कुरा कर कहा जो दिसम्बर की कड़क ठंड और घने कोहरे के बावजूद स्लीवलेस टॉप ओर चुस्त जीन पहनी थी, उसके आस पास जाने कैसा प्रकाश फैला था, जिसमें उसका गोरा रंग ज्यादा ही सफेद लग रहा था और उसकी आंखें बिल्ली जैसी चमक रही थीं।
उसके आने के बाद वातावरण में अजीब सी सिहरन महसूस हो रही थी, उल्लू ओर चमगादड़ बार बार उसके पैरों के पास से उड़ रहे थे, जैसे उसके पैर छू रहे हों।
चलो यार वापस चलते हैं, सुरेश वातावरण के संकेत समझकर विकास को कोहनी मारते हुए धीरे से बोला।
सुरेश उस वातावरण में ख़ौफ़  जदा हो रहा था उसने कोहनी मारकर विकास और रोहन को लौट चलने के लिए कहा लेकिन वे दोनों तो उसकी खूबसूरती में खोए थे तो उन्होंने सुरेश की बात पर ध्यान नहीं दिया।
आप किसके साथ हो ?? सुरेश ने परी से सवाल किया।
अकेली। उसने संक्षिप्त उत्तर दिया, और हँसने लगी।
आपको डर नहीं लगता इतनी रात में यूँ अकेले??
डर! किससे??
इंसानो से ??
कुछ लुटने का,??
जो मेरे पास था वो तो पहले ही तुम लोग,,,,परी का चेहरा गुस्से में लाल हो गया लेकिन अगले ही पल वह होंठो पर मुस्कान ला कर बोली, हम तो "उसे" बेचती हैं ,तो किसी को लूटने की क्या ज़रूरत और फिर कोई कोशिश भी करे लूटने की तो मैं ऐसे ही तैयार हो जाती हूँ।
बाकी रही जंगली जानवरों की बात तो वे हमला तो करते हैं लेकिन केवल पेट की भूख लगने पर, ऐसे वासना में अंधा होकर तो बस कोई इंसान,,,, नहीं नहीं कोई वहसी दरिंदा ही हो सकता है जो वासना की खातिर किसी मासूम लड़की को शिकार बनाये, वह घृणा से देख रही थी।
लेकिन तुम लोग?? वह उनकी और देखती हुई बोली।
हम भी वही खरीदने निकले हैं जो तुम बेचती हो, विकास उसे घूरते हुए बोला।
ओह्ह!! ठीक है चलो फिर, परी बोली।
लेकिन आप?? सुरेश ने कुछ बोलना चाहा।
लेकिन परी ने उसे चुप कराते हुए कहा," अरे चलो यहां से कोई और आ जायेगा तो मुश्किल हो जाएगी ऐसे भी आजकल पुलिस बहुत परेशान करती है बाकी तुम जो दोगे हो जाएगा, चलो मेरे साथ।
परी एक तरफ चल दी और  ये तीनों उसके पीछे चलने लगे।
लगभग बीस मिनट चल कर ये लोग एक ऐसी जगह आ गए जहां बहुत ऊंचे और घने पेड़ों के बीच आठ दस गज का एक गोल मैदान था जो चाँद की रोशनी में एकदम साफ दिखाई दे रहा था।
ये हमें कहाँ ले जा रही है यार इधर तो हमारा फार्म हाउस नहीं है, सुरेश रोहन का हाथ पकड़कर रोकते हुए बोला, मुझे तो बहुत डर लग रहा है यार देखो इसे,  लगता है जैसे इसे इस अंधेरे में इतना साफ दिखाई दे रहा है जितना हमें दिन के उजाले में।
अरे चुप कर डरपोक रोहन उसकी खिल्ली उड़ाते हुए बोला।
आओ दोस्तों तभी उसका खनकता स्वर गुंजा।
आसपास का वातावरण कुछ ज्यादा ही सर्द हो रहा, हवा के झोंके रह रह कर पेड़ों को झुका रहे थे , चमगादड़ ओर उल्लू भी उस लड़की से डर रहे थे ,उसका चेहरा ऐसे चमक रहा था जैसे चँदा अपनी सारी चान्दनी बस उसी पर लुटा रहा हो।
आस पास गहन अंधकार फैला था लेकिन उसकी देह दूध सी चमक रही थी और आंखे दिए सी जल रही थीं।
चारों ओर भयंकर डरावना शोर हो रहा था, सुरेश ने विकास और रोहन को इशारा करके समझाया।
रोहन उस लड़की के चेहरे को ध्यान से देखने लगा, उसके चेहरे की जगह बस एक काला घेरा था, उसमें उसकी डरावनी आंखें दिए कि लौ जैसे चमक रहीं थी,अभी रोहन विकास की ओर पलटा तभी, परी के मुंह से दो दांत लम्बे होकर बाहर आने लगे ,,,,
उफ़्फ़फ़!!! भागो चुड़ैल है ये धोखा देकर लायी है हमें यहाँ,  कहकर रोहन एक ओर दौड़ा लेकिन अचानक विकास और सुरेश की दर्दभरी चीत्कार सुनकर रुक गया।
उसने पलट कर देखा, सुरेश और विकास के सामने की जमीन फ़टी हुई थी और ये दोनों कमर तक जमीन में धँसे हुए थे।
नहीं!!! रोहन के हलक से भय चीख बन कर निकला और वह उनकी ओर दौड़ा ,अभी मुश्किल से दो कदम बढ़ाए होंगे कि बिछुओं की पूरी फ़ौज उन दोनों पर झपटी काले काले बड़े बड़े बिछु अपने डंक उठाये उधर लपक रहे थे।
ओ गॉड,,,, नहीं!! नहीं! कहता हुए वह नीचे बैठने लगा तभी परी ने अपने हाथ को घुमाया और जहाँ रोहन बैठ रहा था उसी जगह एक नुकीला खूंटा जमीन से निकला और रोहन के 'जिस्म' में घुसता चला गया,वह तड़फ उठा उसकी दर्दनाक चीख निकल गई।
कौन है तू क्या कर रही है हमारे साथ,, रोहन दर्द से तड़फते हुए चीखा।
अचानक परी उसके ठीक सामने आकर खड़ी हो गयी अब उसका  चेहरा बिल्कुल अलग लग रहा था बहुत मासूम पहले से भी बहुत ज्यादा खूबसूरत।
ले पहचान मुझे कुत्ते, उसने रोहन के सर पर हाथ रख कर थोड़ा नीचे दबाया जिससे खूंटा उसके अंदर सरकने लगा।
नही  मत करो छोड़ दो हमें हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है रोहन के हाथ आपस में जुड़ गए।
गौर से देख मुझे पहचान मुझे क्योंकि जब तक तू मुझे ना पहचाने तुझे तड़फते देखने में कतई मज़ा नहीं आएगा।
याद कर इस जगह को मा***द याद  कर 31 की रात आज ही का दिन यही जगह,,, पूरे एक साल इंतज़ार किइस मैंने तुम दरिन्दों का परी ने जोर से उसके सर को झटका दिया।
रोहन आंखे फाड़ कर उसे देखने लगा उसके चेहरे को देखते देखते वह पिछले साल की 31 की पार्टी की याद में चला गया ,,,
उस दिन भी ये तीनों आज ही की तरह नशे में डूबे किसी कालगर्ल की तलाश में घूम रहे थे, अचानक किसी ने इनकी गाड़ी को हाथ देकर रुकने का इशारा किया।
गाड़ी की लाइट की रौशनी में रोहन ने देखा सामने एक बहुत ही खूबसूरत लड़की खड़ी थी,उसे देखकर रोहन का पांव गाड़ी के ब्रेक पेर जम गया गाड़ी चरररर की जोरदार आवाज करती हुए घिसटकर एकदम उस लड़की के सामने जाकर रुकी।
कोन हो कहाँ जाना है? रोहन ने पूछा।
शहर ,उसने धीरे से कहा।
शहर तो नहीं जा रहे हम लेकिन आपको छोड़ देंगे, रोहन पास बैठे विकास को पीछे जाने का इशारा करते हुए बोला।
ओर वह लड़की आगे उसके पास आकर बैठ गई।
क्या नाम है आपका? रोहन ने मुस्कुरा कर पूछा।
परीधी, उसने धीरे से मुस्कुरा कर जबाब दिया।
वाओ परी धी,, ब्यूटीफुल नेम, बिल्कुल आपही की तरह स्वीट,,।
थैंक यू उसने मुस्कुरा कर जबाब दिया।
लेकिन इतनी रात को आप इस सुनसान में अकेले??,
नहीं मैं अपने दोस्त के साथ थी लेकिन साले ने पार्टी में ज्यादा पी ली और यहाँ सुनसान जंगल में मेरे साथ जबरदस्ती करने लगा मुझे बहुत गुस्सा आया तो मैने उसको थप्पड़ मार दिया और हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ने को कहा।
तब वो कमीना,, मुझे यहाँ अकेले छोड़कर भाग गया।
भड़वा साला, भ***का परी ने अजीब मुंह बनाकर एक भद्दी गली दी और गुस्से से थूकने लगी।
तो अब? रोहन ने मुस्कुरा कर पूछा।
मूड ऑफ हो गया यार अब घर जाकर सोऊंगी, परी गुस्से में बोली।
क्यों ना आप हमारे फॉर्म हाउस पर चलें ??जो नज़दीक ही है, वहाँ हम जल्दी पहुंच जाएंगे आप आराम से आराम करना और हम आपका साथ देंगे, रोहन ने अर्थपूर्ण शब्द कहे।
नहीं अब तो बस घर जाकर सोना है, अब मन नहीं है पार्टी का।
जितने कहेगी उतने पैसे दे देंगे यार आज रात हमारी पार्टी बना दे, रोहन गन्दी नज़रो से उसे घूरते हुए कहा।
नहीं, आयी अम नॉट आ प्रॉस्टिट्यूट  एंड नॉट आ कॉलगर्ल सो प्ल्ज़ डोंट टॉक लाइक आ डर्टी माइंड विध मी।
रेट बोल साली ज्यादा पवित्र मत बन तभी विकास ने उसे घूरते हुए कहा।
डोंट टॉक लाइक दिस, आयी एम ऑलरेडी हर्ट बैडली, प्ल्ज़ ड्राप मी इन सिटी आयी थिंक यू बोथ आर गुड़ फेलो, आयी नीड तो बे एट होम एज सून एज पॉसिबल,,उसने मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा।
चरररर अचानक रोहन ने गाड़ी रोक दी,उतर ,,चल नीचे आ, रोहन गाड़ी से उतरते हुये बोला।
य यहाँ!!, क्यों रोक दी गाड़ी, क्या तुम भी मुझे छोड़कर,,?? उसने आंखों में आंसू भरकर कहा।
हम उस लौंडे की तरह चूतिया नहीं हैं जो ऐसे माल की यूँही छोड़ कर चले जाएं, रोहन जोर से हंसते हुए बोला।
नहीं!!, हटो ,,, परी रोहन को धक्का मारकर एक तरफ भागी लेकिन विकास ने दौड़ कर उसे पकड़ कर जमीन पर पटक दिया और दोनों जोर जोर से हँसने लगे।
इसे जाने दो यार ऐसे जबरदस्ती करना ठीक नहीं,  सुरेश बहुत धीरे से बोला, ऐसे जबरदस्ती करके क्या मिलेगा हमें रोहन? सुरेश ने डरते हुए बोला।
ओ, फट्टू फिर फट गई तेरी? रोहन ने उसे झिड़का और परी का टॉप पकड़ कर खींच दिया जो चरररर कि आवाज करता फट गया और परिधि मुंह के बल जमीन पर गिर पड़ी।
तुम्हे भगवान का वास्ता मुझे जाने दो,मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है प्ल्ज़ छोड़ दो मुझे।
परी रोते हुए अपने हाथ सीने से चिपकाने लगी।
छोड़ देंगे परेशान क्यों हो रही है तू बस हमें खुश कर दे, विकास हँसते हुए बोला।
नहीं !!! परी जोर से चीखी, बचाओ बचाओ,, और विकास ने उसके मुंह पर हाथ रखकर उसकी आवाज दबा दी।
परिधि?? रोहन काँपती आवाज में बोला ,,
लेकिन तुम तो।
हाँ मर गई थी मैं तुमने मार दिया था मुझे तड़फा तड़फा कर, कितना रोई थी मैं लेकिन तुम दरिन्दों ने,,, कहते हुए परी ने रोहन के सर पर रखे हाथ को जोर से दबाया, जिससे खूंटा एक झटके में उसके अंदर सरकने लगा।
देख इस जगह को ध्यान से दरिंदे  यही वह जगह है जहाँ उस दिन तुमने मेरी इज्जत,,, परी क्रोध में जलने लगी उसका गोरा रंग क्रोधाग्नि से लाल हो गया उसने रोहन के सर को जोर से दबाया।
आहहहहहहह!! रोहन के मुँह से बहुत तेज़ चीख निकली, परी मुझे माफ़ कर दो मर जाऊंगा मैं बहुत पेन हो रहा है,, रोहन रोने लगा।
अर्रे यार कुछ नहीं होगा बस थोड़ा ही तो ओर है उसके बाद बहोत मज़ा आएगा मेरी जान,,, परी जोर से हँसी।
रोहन को फिर वह मंजर याद आ गया  जब वे लोग परिधि के साथ जबरदस्ती,,
मुझे छोड़ दो मर जाऊंगी मैं , परी अपने ऊपर से रोहन को धक्का देते हुए बोली।
चटाख!! साली नखरे करती है रोहन उसके गाल पर जोर से मार कर बोला, अरे बस थोड़ा और फिर तुझे भी मज़ा आएगा ऐसे भी कोई नहीं मरता इस खेल से और वह गन्दी हंसी हंसते हुए जबरदस्ती परी में समाने की कोशिश करने लगा।
नहीं!!!!, छोड़ दो कमीनो परी ने अपनी टांग पकड़े विकास के मुंह पर जोर से लात मारी जिससे वह चिढ़कर उसके मुंह पर नाखून गड़ा कर चिल्लाया, साली ज्यादा मर्द बन रही है, रोहन कर जल्दी साली बहुत उछल रही है,
और विकास ने उसके मुंह मे ****वह तड़फ उठी उसकी चीखें उसके गले में घुट कर रह गईं।
थोड़ा और,,, परी जोर से हंसते हुए रोहन को जोर से दबाने लगी।
रोहन दर्द से तड़फते हुए रोता रहा, तभी परी ने हाथ से इशारा किया उसका इशारा पाते ही सारे बिच्छू एक साथ विकास और सुरेश पर झपटे,,,
नहीं,,!!!,सुरेश और विकास एक साथ चीखे,,,
कई बिछु दौड़ कर एक साथ विकास के मुंह में घुस गए और उसके होंठों पर डंक मारने लगे।
कुछ बिछु सुरेश के पैरों पर चढ़ गए।
मैंने क्या किया??? सुरेश चीखा, मैं तो इन्हें मना कर रहा था परी और मैने तुम्हे हाथ भी नहीं लगाया था, सुरेश गिड़गिड़ाया।
हुँह!! बचाया भी तो नहीं था तूने मुझे कितना तड़फ रही थी मैं तू भी तो देख कितना दर्द होता है कहकर परी ने इशारा किया और एक बिच्छु ने उसके पैर पर अपना डंक गड़ा दिया
आहहहहहहहह नहीं ,,!!, सुरेश दर्द से तड़फ उठा।
इधर बिछुओं ने डंक मार मार कर विकास के होंठ सुजा दिए थे वह चीख रहा था रो रहा था उसकी आवाज गले में घुट रही थी, वह हाथ जोड़ कर इशारे से छोड़ देने की गुहार लगा रहा था।
ऐसा,!< बिल्कुल ऐसा ही लग रहा था मुझे भी उस वक्त जब तू मेरे मुंह मे,,, परी गुस्से से चीखी,अब समझ आया तुझे की कैसा लगता होगा जब  किसी की बिना मर्जी तुझ जैसे घिनोने लोग अपनी जबरदस्ती,  और परी ने इशारा किया तो सारे बिच्छू एक साथ विकास के मुँह, आँख, कान और नाक में घुंस गए और थोड़ी ही देर में दम घुटने से उसकी मौत हो गई, परी ने घृणा से मुँह बिगाड़ कर उसके मुंह पर थूक दिया।
अब तो तेरा बदला पूरा हो गया चुड़ैल अब हमें छोड़ दे, रोहन फिर गिड़गिड़ाया।
नही!!ं अभी नहीं कहते हुए परी ने भरपूर ताकत से उसके सर को दबाया जिससे खूँटा पूरा उसके पेट में घुस गया और उसकी आँते फट कर बाहर आ गयीं,उसी के साथ बाहर आ गई उसकी आखिरी सांस भी।
अब परी सुरेश की तरफ पलटी , सुरेश चेहरे पर दर्द लिए हाथ जोड़े कातर नजरों से उसे ही देख रहा था।
नहीं!! मुझे मत मारो ,मैने तो कई बार इनसे तुम्हे छोड़ने को कहा था लेकिन इन्होंने मेरी बात नहीं सुनी ।
लेकिन इन्होंने तुम्हे जान से तो नहीं मारा था फिर तुम कैसे मरी? सुरेश ने पूछा।
उस दुष्कर्म के बाद मैं क्या मुंह लेकर जीती??
तो मैंने पुल से कूद कर अपनी उस घिनोनी जिंदगी का अंत कर दिया और फिर जब मुझे मुक्ति नहीं मिली तो मेरे मन में अपना बदला लेने की चाहत होने लगी और आज मेरा बदला पूरा हुआ आज खत्म हुआ मेरी जिंदगी का आखिरी साल, अब आएगा मेरी मुक्ति का नया साल, और देखते ही देखते वह सफेद धुंआ बनकर उड़ गई, सुरेश भरी आंखों से उसे जाता देखता रहा।
समाप्त
©नृपेंद्र शर्मा'सागर'
नोट:-  मेरी नई किताब निकली है, तिलिशमी खजाना जिसकी बुकिंग शुरू हो चुकी है आप अपना ऑर्डर बुक करने के लिए नीचे दिया लिंक नोट करके गूगल में या किसी भी ब्राउज़र में खोल लें धन्यवाद।

फरिश्ता

आज रमेश का कॉलेज में आखिरी दिन था।
लेकिन उसने गांव न जाकर यहीं शहर में ही कोई नोकरी करने का फैसला किया था।
उसने एक दफ्तर में नोकरी की बात भी कर ली थी। कल से ही तो उसे नोकरी पर जाना है, अभी वो गांव नहीं जा पायेगा। v
गांव में बस उसकी बुड्ढी माँ के अलावा उसका कोई और सगा संबंधी नहीं है।
माँ के अलावा दुनिया में उसका और है ही कौन। दो चार महीने काम कर ले ,कुछ पैसा जमा हो जाये तो माँ को भी साथ ले आऊंगा , ।
सोचता हुआ रमेश अपनी मस्ती में चला जा रहा था। गांव में बैसे भी है ही क्या उसके पास दो ढाई बीघा जमीन एक कच्चा माकन बस यही संपत्ति जो उसे पुरखों से मिली थी।
नोकरी जम गई तो गांव जाकर करना भी क्या है? खुद से ही सवाल करता । और हाँ माँ की बीमारी का इलाज भी कहाँ गांव में हो पाता है। खुद ही जबाब दे देता ।
कभी हँसता कभी उदास होता बढ़ा जा रहा था।
तभी! सड़क किनारे कुछ जमा लोगों की भीड़ देख उसकी तन्द्रा भंग हुई।
कोई लड़की रो रही थी ।कोई तो मदद! करो खुदा के वास्ते,,,,,,
आवाज सुनकर रमेश भीड़ को चीरता उधर तेज़ी से लपका। तो देखा कि, एक बूढ़ा आदमी शरीर पर तमाम घाव लिए जमीन पर पड़ा तड़फ रहा है।
और एक 19/ 20 साल की सुन्दर लेकिन फटेहाल लड़की उसके पास बैठी रो रही है।
कोई मेरी मदद करो खुदा के वास्ते ,उन्हें घर पहुंचादो, कोई तो सुनो।
तभी एक आदमी भीड़ से बोला ,"अरे बेटी,इसको कोन हाथ लगाये, न जाने ये छूत की बीमारी हमें भी लग जाये तो।
अरे 'अहमद 'पर तो खुदा का कहर टूटा है। न जाने किस गुनाह की सजा मिली है उसे,जो ऐंसी नामुराद बीमारी लग गई बेचारे को।
अरे इसे तो जीते जी दोजख की आग में जलना पड रहा है। चलो भाइयों चलो यहाँ से, अरे ये छूत की बीमारी है लाइलाज,, हम कियूं इसके गुनाहों के साझीदार बने, अरे पता नहीं कोन से संगीन गुनाह किये इसने अपनी गुजस्त जिंदगी में, जो इतनी ख़ौफ़नाक सजा तारी हुई इसपर ।
ये कोढी है कोढ़ी।।।
ये सुनकर लड़की तड़फ कर बोली, ऐंसा न कहिये मोलवी साहब , खुदा के वास्ते ऐंसा कुफ्र न करिये,अरे लाचारों की मदद करना तो सबाब का काम है।
लेकि वहाँ जमा भीड़ अजीब सा मुह बनाती हुई धीरे -धीरे छंट गई।
और रह गए मियां अहमद और उनकी बेटी।
ये सब देख कर रमेश को बहुत अजीब लगा , उसने पास जा कर लड़की से पूछा ,"क्या हुआ है इन्हें"?
और ये सब लोग गुनाह ,सजा सब क्या क्या बातें कर रहे थे?
ये सुनकर उसने रमेश की और देखा ,और सिसकते  हुए बोली,"मेरा नाम सादिया है , ये मेरे अब्बू हैं । जिन्हें पिछले कुछ महीनो से अजीब बीमारी लग गई है जिसे ये लोग कोढ़ कहते हैं।
और इसे छूत की बीमारी कहकर हमारे साथ अछूतो सा वर्ताव करते हैं।
पिछले 2 महीने से इनकी बीमारी बहुत बढ़ गई है, ये अधिकतर घर मे ही पड़े रहते हैं।और खाना पीना भी बहुत कम कर दिया है। नतीज़ा कमज़ोरी बहुत बढ़ गई है।
अभी मैं जरा किसी काम से बाजार गई थी, लौटी तो ये यहाँ पड़े थे। न जाने कियूं घर से निकल आये और यहाँ आके बेहोश हो गए।
मै न आती तो अल्लाह जाने आज क्या हो जाता।
तब तक अहमद मियां को भी होश आया गया, उन्होंने धीरे से आँखे खोली और बोले , "अरे बेटी मैं अपनी इस जिल्लत भरी जिंदगी से आज़िज़ आ गया हूँ"।
और मेरी बजह से तुम्हारी जिन्दगी भी बेरंग ग़मगीन होती जा रही है।तुम्हे लोगों के रोज कितने ताने मेरी वजह से सुनने पड़ते हैं। यही सब सोचते हुए खुद को खत्म करने घर से निकला था, लेकिन ये भी शायद अल्लाह को मंज़ूर नहीं। जो मैं यहाँ गश खाके गिर गया और बेहोश हो गया।
तब रमेश बोला चलो बाबा अब घर चलो वहीँ बातें करेंगे।

उसने सहारा देकर उन्हें खड़ा किया, और सादिया की मदद से उनके घर ले आया ,जो की पास में ही था।
घर आके उसने लड़की से पूछा , तुमने इनका इलाज़ नहीं कराया कहीं? अरे ये अब लाइलाज बीमारी नहीं है । सही इलाज और देखभाल से ये पूरी तरह ठीक हो जाती है। और तो और सरकारी अस्पताल में इलाज भी एकदम मुफ्त होता है। ये सुनकर सादिया रोते -रोते बोली," मेरा दुनिया में अब्बा के इलावा कोई नहीं है।साल भर पहले जब इनके हाथ पर पहली दफा दाग देखा था , तो हम हाकिम जी के पास गए थे। लेकिन बीमारी बढ़ती ही गई, और धीरे धीरे पूरे जिस्म में फ़ैल गई"।
अब तो शरीर के घाव फूटने भी लगे हैं। लोग कहते हैं ये छूत की बीमारी है ,जो की गुनाहों की सज़ा की वज़ह से होती है। और अगर कोई उसे छू ले तो ये बीमारी उसे भी लग सकती है।
ये सुनकर रमेश अफ़सोस के साथ बोला, आप मुझे पढ़ी- लिखी समझदार लगती हो सादिया, फिर भी नीम हकीमो, और इन ज़ाहिल मोहल्लेबालों के कहने में आ गईं।
इन लोगों की बेशिरपैर की बातों को मानकर हिम्मत हार कर बैठ गई।
अरे तुम लोगों को बड़े अस्पताल जाना चाहिए था।
सादिया बोली लेकिन हमारे पास पैसे कहाँ हैं बाबुजी । कहाँ से कराती इलाज़?।
अरे पागल !!मुफ्त इलाज होता है सरकारी अस्पताल में कुष्ट का बताया था न मैंने। रमेश अपनेपन से उसे झिड़क कर बोला ।
कल सुबह मैं खुद इन्हें अस्पताल ले जाऊंगा।
अभी तुम इनकी साफ सफाई करके घावों पर तेल लगा देना। सुबह तैयार रहना इन्हें अस्पताल ले चलेंगे।
ये कहकर रमेश वहाँ से चल दिया। दोनों बाप बेटी उसे कृतज्ञता भरी नज़रों से देखते रहे।
अगले दिन सुबह 9 बजे रमेश उनके घर पहुंचा ,और बोला चलो बाबा अस्पताल वहाँ डाक्टर को दिखाना है।
आप तैयार हो जाओ मै रिक्शा ले आता हूँ।
अहमद मियां बोले अरे बेटा तुम तो हमारे लिए, "फ़रिश्ता" बनकर आये हो।
, यहाँ तो अपनों ने भी मुँह मोड़ लिए। बिरादरी तो बिरादरी सगे भी किनारा कर गए। तुम तो हमें जानते तक नहीं फिर भी!!!
अरे बाबा इंसानियत भी कोई चीज़ होती है ,रमेश बोला । अच्छा अब ज्यादा बातें न करो ,और जल्दी चलो मै रिक्शा लाता हूँ।
रमेश रिक्शा ले आया और तीनों लोग अस्पताल पहुँच गए। वहाँ रमेश उन्हें सीधे कुष्ट उनमूलन केंद्र ले कर पहुंचा। डॉक्टर ने मुआयना किया और पूछा, कब से है बीमारी?
साल हो गया साहब अहमद ने जबाब दिया।
बहुत देर कर दी आपलोगो ने आने में, बीमारी बहुत बढ़ गई है।
क्या अब मेरे अब्बू ठीक न हो सकेंगे डाक्टर साब,?? सादिया ने तड़फ कर पूछा।
ठीक तो हो जायेंगे लेकिन बहुत समय लगेगा अब। बीमारी बहुत ज्यादा बढ़ गई है।
मै दवाइयां दे देता हूँ लेकिन नियमित इलाज़ और देखभाल करनी होगी । और कुछ सावधानियां मैं सब लिख देता हूँ। इनको हर सप्ताह चेकअप के लिए लाना होगा। सब समझाकर डाक्टर ने उनको दवाइयां और आवश्यक निर्देश देकर घर भेज दिया।
घर पहुंचकर रमेश को याद आया आज उसे 10 बजे दफ्तर पहुंचना था ,अब 12 बज गए , आज पहले दिन ही छुट्टी हो गई।
लेकिन वह फिर भी दफ्तर चला गया, और वहाँ उसने कह दिया रस्ते में एक दुर्घटना हो गई थी। उसी में उसे देर हो गई।

लगातार इलाज़ उचित खुराक और बेहतर देखभाल से अहमद साहब की हालत में काफी सुधार आने लगा था। रमेश रोज़ दफ्तर जाने से पहले और दफ्तर से लौट कर अहमद मियां की खबर लेने जाता। इन रोज़ रोज़ की रमेश और सादिया की मुलाकातो  से दोनों के बीच मोहब्बत का जज़्बा सर उठाने लगा।
सादिया और अहमद दोनों ही रमेश की बहुत इज़्ज़त करते थे। धीरे धीरे सादिया और रमेश की नजदीकियां मोहल्लेबालों की आँखों में चुभने लगे।
कुछ लोगों ने रमेश से कहा भी कि, तुम एक कोढ़ी की देखभाल कर रहे हो अगर कहीं बीमारी तुम्हे लग गई तो?
तुम एक अच्छे घर के समझदार लड़के हो थोड़ा ध्यान रखो।

लेकिन रमेश सब अनसुना कर गया। अब अहमद मियां लगभग ठीक हो चले थे 6 महिने गुज़र गए देखते देखते।

एक दिन रमेश ने सादिया का हाथ पकड़कर कहा, "सादिया मै कई दिन से तुमसे कुछ कहना चाह रहा था ,लेकिन तुम्हारे अब्बा की बीमारी के चलते खामोश था। अब चूँकि उनकी हालत पहले से काफी बेहतर है , तो मुझे लगता है कि , मुझे अपने दिल की बात तुम्हे बता देनी चाहिए"।
कहो?? सादिया ने संक्षिप्त उत्तर दिया।
और उसकी आँखिन में झाँकने लगी।
बात ये है सादिया कि, हम काफी दिनों से रोज़ मिल रहे हैं , एक दूसरे को जान समझ रहे है ।और अब मुझे लगता है कि मेरे दिल में तुम्हारे लिए चाहत होने लगी है।
मुझे लगता है कि, हम दोनों जिंदगी साथ में बिता सकते हैं। क्या तुम मुझसे शादी करोगी?
ये सुनकर सादिया बोली हम आपकी बहुत इज़्ज़त करते हैं रमेश जी। और आपके जज्बातो की हमारे दिल में बहुत कदर है। हमें तो फख्र होगा अपने आप पर और नाज़ होगा अपनी किस्मत पर,जो हमें आप जैसे शोहर मिले,।।
लेकिन क्या समाज और बिरादरी हमें इसकी इज़ाज़त देंगे? क्या बो हमारे रिस्ते को क़ुबूल करेंगे?
समाज!! हाँ ये वही समाज !है न जो उस दिन तुम्हारे अब्बू को अछूत कहकर अपने से अलग कर रहा था?
और बिरादरी, कहाँ गए थे बिरादरी बाले उसदिन जब तुम मदद की गुहार लगा रही थीं?
क्या तुम भूल गई सब?
कुछ नहीं भूली मै रमेश। !!
सादिया तड़फ उठी।
तो फिर कियूं समाज और बिरादरी की दुहाई दे रही हो? रमेश ठीक कह रहा है सादिया बेटी, कहते हुए तभी अहमद मियां ने कमरे में कदम रखे।
अरे जब बिरादरी को हमारी फिक्र नहीं तो हम कियूं , जाती धर्म और समाज की परवाह करें?
और फिर रमेश तो हमारे लिए 'फ़रिश्ता' है जब मैं बीमारी से लड़ रहा था ,,अरे मर ही गया था अगर ये ' फ़रिश्ता ' न आया होता।
और अगर मैं मर जाता तो यहि समाज तुजसे हमदर्दी के बहाने तुझे बुरी नजरो से रोज मारता।
अरे मैंने कितनी कोशिशे की, कि मेरे जीते जी तेरा निकाह हो जाये।
कम से कम तेरी जिम्मेदारी तो मरने से पहले पूरी करता जाऊ।
लेकिन जहाँ कहीं भी बात चली ,सबने मेरी बीमारी का वास्ता देकर साफ इंकार कर दिया।
और तो और कई लोगों ने तुझे अपनी दूसरी बीबी बनाने की पेशकश रखी ,या मेरी उम्र के बुड्ढों ने तरस खाकर, तुझे अपनाने को कहा।
अरे सादिया ये सारा समाज गंदगी का ढेर बन चुका है। और तू इस समाज की परवाह कर रही है।
अरे मैं तो कहता हूँ बड़े खुशनसीव हैं हम लोग ,जो रमेश जैसे 'फ़रिश्ते' को अपनी ज़िंदगी में शामिल करने का मौका मिल रहा है हमें।
अरे ये तो खुदा का भेजा फ़रिश्ता है। और मैं सारी ज़िन्दगी चराग़ लेकर भी ढूँढू ,तो अपने लिए ऐंसा नेकदिल दामाद न ढूंढ पाउँगा।
इसलिए तू घबरा मत मेरी बच्ची सारी फिक्र छोड़ कर हाँ कर दे।
ये सुनकर सादिया ने रमेश का हाथ हौले से दबाया ,और उसकी आँखों में देखते हुए मुस्कुरा दी।
रमेश उसके मन की बात समझ गया और बोला , क्या सच सादिया? तो सादिया ने शर्म से नज़रें झुका ली ,और उठकर भाग गई।।
अहमद मियां और रमेश हंसने लगे।
रमेश गांव जाकर मा को ले आया ,और उन्हें अहमद मियाँ के घर ले जाकर सादिया और अहमद मिया से मिलते हुए सारी बात बताई।
मां को सादिया बहुत पसंद आई , और साथ ही अपने बेटे की नेकदिली पर फख्र भी हुआ।
और उन्होंने रमेश ओर सादिया की शादी को मान लिया।
रमेश ने अपने लिए एक अच्छा मकान किराए पर ले लिया।
हाँलाकि अहमद मियां ने बार बार कहा कि इतने बड़े मकान में वे अकेले क्या करेंगे सब यहीं रहो।
लेकिन रमेश और सादिया दोनो ही इस मोहल्ले में नही रहना चाहते थे।
आज सादिया और रमेश की शादी है दोस्तों , मुझे वहाँ जाने की जल्दी है, इसलिए ज्यादा बात नहीं कर सकता। तो अब चलता हूँ।
आएँ !!क्या कहा मैं कियूं जा रहा हूँ?? अरे भाई दोस्त हूँ रमेश का। लेकिन बो सच में 'फ़रिश्ता' है।

नोट:-  मेरी नई किताब निकली है, तिलिशमी खजाना जिसकी बुकिंग शुरू हो चुकी है आप अपना ऑर्डर बुक करने के लिए नीचे दिया लिंक नोट करके गूगल में या किसी भी ब्राउज़र में खोल लें धन्यवाद।

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Tuesday, August 7, 2018

दास्ताने दावत,,,

ठाकुर संग्राम सिंह बहुत उदार जमींदार थे।
सारे गांव में उनको बहुत आदर सम्मान मिलता था।संग्राम सिंह जी भी सारे गांव के सुख दुख में विशेष ध्यान रखते।
उसी गांव के बाहर कुछ दिन से एक गरीब परिवार आकर ,झोंपडी बना कर रह रहा है ,पता नहीं कहाँ से किन्तु बहुत दयनीय अवस्था मे थे सब।
परिवार में एक बीमार आदमी रग्घू उसकी पत्नी रधिया , दो बेटियां छुटकी और झुमकी।
बेचारी रधिया गांव के कूड़े से प्लास्टिक धातु ओर अन्य बेचने योग्य बस्तुएं बीन कर कबाड़ी को बेचती थी।
बामुश्किल एक समय का बाजरा, जुआर अथवा संबई कोदो जुटा पाती और उसे उबालकर पीकर सभी परिवार सो जाता।
बच्चों ने कभी पकवानों के नाम भी नहीं सुने थे ,चखने की तो बात ही स्वप्न थी।
आज संग्राम सिंह जी के घर उनका वंश दीप जन्मा था उनका पोता।
उसके जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में उन्होंने सारे गांव को दावत दी थी।
उन्होंने वारी(न्योता देने वाला) से कहा था कि, ध्यान रहे आज गांव में किसी के भी घर चूल्हा न जले सब हमारे घर ही भोजन करेंगे।
तो वारी इस परिवार में भी न्योता दे आया।
दावत का नाम भी बेचारे बच्चों ने कभी नही सुना था, अतः उन्होंने सवाल पूछ पूछ रधिया को हलकान कर दिया,,,,
अम्मा, यो दावत क्या होवे है? छोटी छुटकी ने पूछा।
अम्मा लोग कहते हैं हुँआ पकवान बनेगा ,,यो पकवान क्या होवे है ,,?
झुमकी ने दूसरी तरफ से उसका आँचल खींचा।
दावत में बहोत सारा खाना बनेगा जितना मन करे खाओ कोई रोकेगा नई लल्ली।
रधिया ने जबाब दिया,, पर हमारी दावत कैसे कर दी जमींदार ने।
अर्रे अम्मा सारा गाम उनके घर जावेगा खाने हम तो जरुरी जानगे अम्मा ।
अम्मा पकवान बहोत मीठा होवे है का?
गुड़ से भी जादा मिट्ठा?? झुमकी ने चहक कर पूछा।
उन वेचारे बच्चों ने लड्डू पूड़ी रायता के नाम भी नहीं सुने थे।
अगले दिन डरते डरते रधिया दोनो बच्चियों को लेकर दावत में गई और एक कोने में ज़मीन पर बैठ गई ।
तभी संग्राम सिंह उधर आये उन्हें यूं नीचे बैठे देख बोले अरे आप लोग ऐंसे कैसे बैठ गए??
रधिया बेचारी डर गई कि कहीं जमींदार उसे घुड़क कर भगा न दे।
वह अपने फटे मैले कपड़े समेटते हुए आदर से उन्हें नमस्ते करके बोली ,मालिक कोनो भूल हुई गई हो तो माफ करदो।
आपका आदमी दावत कर आया था तो,,,, कह कर बड़ी कातर दृष्टि से उनकी ओर देखने लगी।
अरे नही कोई भूल नहीं हुई बेटा लेकिन यूं सबसे अलग ज़मीन पर कियूं??
उधर बिछावन पर बैठ कर आराम से खाना खाओ।
और कोई रह तो नही गया घर?
मालिक इनके बापू हैं बीमार हैं तो,,,,, रधिया रोनी सी हो गई।
ठीक है खाना खाकर उनके लिए बंधवा लेना ।
ठीक है मालिक आपका जस बना रहे, कह कर रधिया सबके साथ खाना खाने बैठ गई,
पत्तल में दो सब्जी पूड़ी दोने में रायता और लड्डू परोसे गए।
झुमकी ने लड्डू हाथ मे लेकर फिर राधिया से पूछा यो के है अम्मा।??
चुप कर खाले लड्डू है।
पहले बाकी सब चीज़े खा इसे बाद में खाइयो यो मीठा है खाने के बाद खाया जाबे है।
सब खाना खाने लगे। बच्चीयों ने ऐंसे पकवान कभी नही खाये थे अतः वह जल्दी जल्दी पूड़ी तोड़ने लगीं।
उनके पीछे बैठा कोई कह रहा था ,,
साहब जमींदार ने इतना सब गांव नोत दिया और खाने में कंजूसी कर गया, सब्जी में मसाला पता नहीं लग रहा और लड्डू इतना मीठा की एक में ही मन भर जाए।
खर्च बचाने के लिए स्वाद से समझौता कर लिया ठाकुर ने।
इधर छुटकी रधिया से कह रही थी ,,
अम्मा लड्डू इतने बढिया इतने मीठे होबे है।
गुड़ से भी अच्छे और पूड़ी कितनी स्वाद, अम्मा जमींदार के घर रोज़ पोता कियूं नही पैदा होतता।
रोज़ कियूं?? रधिया ने मुस्कुरा कर पूछा।
अम्मा रोज़ होगा तो रोज दावत मिलेगी ना।
अरे तो रोज़ किसी के घर बच्चा थोड़ो होवे है ,झुमकी ने अपना मासूम ज्ञान बखाना।
तो अम्मा ओर दावत कब कब होवे है??
जब कोई खुशि होबे है किसी के घर।
छुटकी और झुमकी एक साथ आंख बंद कर हाथ जोड़ बैठ गईं।
अरे क्या करने लगीं तुम दोनों।
अम्मा भगवान से दुआ मना रई हैं कि, जमींदार जी के घर रोज़ कोई ना कोई खुशी आवे ओर हमे रोज़ ऐंसे अच्छी दावत खाने कु मिले।
ये सुनकर रधिया ने भी ऊपर की ओर हाथ जोड़ कर सर झुका लिया।

संग्राम सिंह जी दोनो ओर की बात सुन रहे थे और सोच रहे थे  कि असली दावत किसकी हुई।
दावत के बाद संग्राम सिंह जी ने रधिया को अगले दिन घर आकर मिलने को कहा।
अगले दिन जब रधिया हवेली पर आई तो उन्होंने उस से पूछा ,, कियूं रधिया अपनी मालकिन की सेवा करेगी ??
बदले में खाना कपड़े बच्चियों की पढ़ाई के साथ एक हज़ार रुपये भी मिलेंगे।
बदले में घर की साफ सफाई और अपनी मालकिन की सेवा।
ये सुनते ही रधिया उनके पैरों में पड़ गई,, मालिक ईश्वर आपका भला करे सारे सुख पहले आपके कदम चूमे।
काम कब से शुरू करना है मालिक।
अभी से। संग्राम सिंह ने संक्षिप्त उत्तर दिया ।
और राधिया ने फिर ऊपर की ओर हाथ जोड़ कर सिर झुका लिया।
और मन ही मन कहने लगी।
हे ईश्वर! आज हुई मेरी असली दावत।।
।।।नृपेंद्र।।।

Thursday, August 2, 2018

भूल,,,

मनोहर , पच्चीस वर्ष का मेहनती किसान है, सांवला मज़बूत दरमियाना कद ऊंचे चौड़े मज़बूत कंधों बाला आकर्षक युवक।
अभी पिछले साल ही उसकी शादी हुई है मालती के साथ।
मालती एक सीधी शादी गांव की मेहनती लड़की है , बहुत सुंदर तो नहीं किन्तु सांवली सलोनी आकर्षक अवश्य है।
माध्यम कद और पतली सी  मालती, जब लहरा कर चलती तो मनोहर का दिल जैसे उसकी पायल के घुंघरू की आवाज के साथ ताल मिला कर धड़कने लगता है।।
शादी के चार महीने बाद ही खूब सिंह ने दोनो बेटों को उनके खेत मकान बांट कर, खुद मुख्तयार कर दिया।
और एक हिस्सा अपने पास रख जिम्मेदारी सीमित कर ली।
उनकी पत्नी ने कहा भी की,अभी से कियूं????
किन्तु उन्होंने कहा कि इनके लिए यही सही है कि, अपना कमाएं अपना बचाएं।
मनोहर मेहनती तो था ही, मालती के साथ ने उसे भाग्यशाली भी बना दिया।
दोनो की मेहनत रंग लाई और एक ही दिन उनके घर बेटी राधा ओर ट्रेक्टर आ गया।
जमीन तो ज्यादा नही थी लेकिन उनकी मेहनत से तीस बीघा जमीन पचास बीघा वाले किसानों से ज्यादा अनाज छोड़ती थी।
और साथ ही बीस तीस बीघा मनोहर ठेके बटाई पर भी ले लेता था।
दो साल की अथक मेहनत से उनके घर मे सारी सुख सुबिधा सारी खुशियां आ गईं थीं।
सुबह ही मनोहर ने कुछ जमा कुछ कर्ज से ट्रैक्टर खरीदा था , ओर शाम को उनके घर एक पुत्री ने जन्म लिया , उसका नाम राधा रखा गया।
समय अच्छा था फसल सोना उगल रही थी।
मनोहर की मेहनत भी बरकार थी ।
सारे गांव में मनोहर और मालती मिशाल थे।
बेटी के जन्म के बाद मालती का समय खेत खलिहान में कुछ कम होने लगा। मनोहर भी ट्रेक्टर आने के वाद से ट्रेक्टर की कमाई के चक्कर मे खेतो में कुछ कम ध्यान देने लगा ।
नतीजा इस बार उनकी फसल पर दिखाई दिया।
मालती ने मनोहर को समझाया कि, ऐंसे काम नहीं चलेगा जी, ट्रेक्टर पर कोई आदमी रख लो और खेती पर खुद ध्यान दो।
खेती बिल्कुल बच्चों जैसी होती है , जैसे मां बाप के ध्यान न देने से बच्चे बिगड़ जाते हैं , वैसे ही मालिक के ध्यान न देने से खेती भी खराब हो जाती है।
मनोहर को बात जँच गई, उसने गांव में मज़दूरों से कहा कि अगर कोई ट्रेक्टर चलाना जानता हो और काम करने का इच्छुक हो तो उसके साथ काम करले।।
गांव का डालचंद ट्रेक्टर चलाया करता था , उसके पास खुद की जमीन न के बराबर थी उसने मनोहर के साथ काम करना शुरू कर दिया।
ऐंसे ही साल बीत गया मनोहर के घर बेटे का जन्म हुआ, डालचंद अपने घर से शराब की बोतल ले आया और बोला आओ मनोहर आज बेटे के जन्म की खुशी में दावत करते हैं।
मनोहर बोला , न भाई डालल्लू मैं नही पीता यार।
अरे यार यूं कोन रोज़ पीता है , आज तो  मौका है, फिर थोड़ी सी से क्या होता है।
लो पीओ हमारे साथ हम कोनसा रोज़ रोज़ कहते हैं।
और ये कह कर उसने गिलास मनोहर को थमा दिया।
और मनोहर न जाने कियूं उसे मना नही कर पाया।
किन्तु ये सिलसिला यहीं खत्म नहीं हुआ और आये दिन ऐंसी दावतें होने लगीं।
मालती दो छोटे बच्चों की देखरेख में मनोहर की ओर थोड़ा कम ध्यान देती थी, उधर मनोहर ये कमी शराब पीकर पूरी करने लगा।
डालचंद गांव में छिप कर शराब का अबैध धन्धा करता था और घर पर उसकी पत्नी भूरी भी शराब बेचने में मदद करती थी।
एक दिन शाम को  डालचंद शराब लेकर नही आया, तो मनोहर उसके घर चला गया।
डालचंद का घर गांव के बाहर एक छोर पर तालाब के किनारे था।
कच्चा छोटा सा लेकिन सुंदर।
मनोहर ने आवाज लगाई," डालु,,,,, ओ डाल्लू,,,!!
कौन है???? भूरी ने दरवाजा खोल कर पूछा,,,।
अर्रे मालिक आप आओ आओ अंदर आओ,,,,।
कह कर भूरी अंदर हो गई,,,
मनोहर भूरी को देख,, देखता ही रह गया,,, जैसा नाम बैसा ही रूप रंग।
भूरी तीस वर्ष की गोरी लंबी चंचल औरत है।
उसकी सुंदरता किसी को भी दीवाना करने के लिए पर्याप्त है।
क्या देख रहे हो मालिक,,?? भूरी ने अदा से मुस्कुरा कर पूछा।।
आयें,,,,,!!! कु,, कुछ। भी नहीं।।।।
डालचंद कहाँ है आया नही आज;;;?
ये तो दो तीन दिन के लिए बाहर गए हैं,, कोई काम था मालिक।??
न ना!! का,,,,,म!!
कोई काम नही था भाभी बस ऐंसे ही ,,,,।
अच्छा चलता हूं , मनोहर भूरी को एकटक देखते हुए अचकचा कर बोला।
मालिक कोई काम हो तो हमसे बता दो हम भी आपकी ही हैं कोई कमी नहीं छोड़ेंगे सेवा मे,,,,
कहते हुए भूरी अदा से आंख दबाकर उठी और बोतल उठा लाई।
लो मालिक कुछ जलपान तो कर लो चले जाना मैं कोनसा आपको खा जाऊँगी ,,,,
खा जाऊंगी पर जोर देते हुए भूरी ने शराब गिलास में उड़ेल दी।
लो मालिक आज मेरे हाथ से पीओ।
कह कर भूरी भेद भरी मुस्कान से मनोहर को देखने लगी।
मनोहर बैठ कर पीने लगा और भूरी उसके सामने नीचे जमीन पर बैठ गई।
भूरी का आँचल यँ ही सरका या किसी मतलब से सरकाया गया मनोहर समझ ना पाया किन्तु भूरी के योवन पुष्पों का इतने करीब से यूं दीदार उसे मदहोश करने लगा,,।
अब ये नशा  शराब का था या भूरी के जवान जिस्म का ,,, जो भी हो मनोहर के होश पूरी तरह उड़े हुए थे।
तभी भूरी ने पूछा मालिक,, मालकिन आपको अब समय नहीं दे पाती होंगी,
दो दो छोटे बच्चे हैं कहाँ समय मिलता होगा ,थक जाती होगी बेचारी।
बस रात को ही बच्चों को सुलाने के वाद,,,,,??
मनोहर भाबुक हो गया,, अरे नही भूरी उसे सच मे टाइम नहीं मिलता अब ,ना रात को ना दिन को,,, बस खुद में ही मस्त है।
मुझसे तो जैसे उसे अब कोई सरोकार ही नहीं है,,,
रात को हाथ लगाऊं तो कहती है ,, दो दो बच्चे हो गए अब ये सब,,,,,,,!!! अच्छा लगता है क्या।।।।
ये तो गलत है मालिक प्यास तो प्यास है ,, भूरी ने बडी अदा से कहा।
तो क्या करूँ भूरी ,,, कहाँ प्यास बुझाऊँ बस ये शराब ही एक सहारा है।।।
कहीं और हाथ लगा कर देख लो मालिक ,,, भूरी उसके सामने थोड़ा और झुकते हुए बोली,,,, शायद कोई और भी आपकी तरह प्यासा हो।
और न जाने जान कर या अनजाने मनोहर का हाथ भूरी के वक्ष से टकरा गया।
उन दोनों के बीच वो सब हो गया जो शायद नही होना चाहिए था। महीनों के प्यासे मनोहर को भूरी ने भरपूर शबाब का रस पिलाया।
मनोहर को डाल्लू के घर शराब और शबाब दोनो मिलने लगे।
मालती की लापरवाही और भूरी के रंग रूप ने मनोहर को भूरी का ही बना दिया।
मनोहर का पैसा भूरी के घर जाने लगा कुछ शराब के मूल्य के तौर पर। कुछ भूरी की ज़रूरतो और उसके प्यार के हक के नाम पर।
इधर खेती पर ध्यान न देने से फसलें चौपट होने लगीं,, उधर रोज ट्रेक्टर बिगड़ने लगा और मरम्मत के नाम पर अच्छी खासी रकम जाने लगी।
मनोहर के घर के हालात बिगड़ने लगे,,,, उधर डालचंद का पक्का और बड़ा मकान बन गया।
मालती जब तक समझ पाती बहुत देर हो चली थी।
अब तो उसके समझने के दिन गए थे।
आर्थिक कमज़ोरी से ट्रेक्टर की कर्ज़ की किस्तें भी जानी बन्द हो गईं,,, बैंक से नोटिस आने लगे।
तब भूरी और डालचंद्र ने उसे सुझाया की ट्रेक्टर बेच दो नहीं तो  बैंक ट्रेक्टर और ज़मीन दोनो ले लेगी।
और डालचंद ने मात्र दस हज़ार रुपए और कर्ज चुकाने के बदले ट्रेक्टर अपने नाम कर लिया।
उस समय भूरी ने बड़ी अदा से कहा था कि, मालिक ये ना समझना कि ट्रेक्टर पराया हो गया, हम आपके हैं हमारी हर चीज आपकी है।
जैसे आपकी हर चीज़ हमारी है।।कियूं है ना मालिक???।।।
और ये कहते हुए उसके चेहरे पर एक अर्थ पूर्ण  कुटिल!! मुस्कान थी ,,,,,,और वैसी ही मुस्कान के साथ डालचंद उसका समर्थन कर रहा था।
मालती रो रही थी खुद की लापरवाही को कोष रही थी,,, अपनी बर्बादी पर सर पीट रही थी कि कियूं वह मनोहर का ध्यान नहीं रख पाई कियूं वह पति पत्नी के स्वाभाविक संबंधों से उदासीन हो गई।
इधर मनोहर की शराब की आदत में उसके खेत भी बिकने लगे,,,,,,, मुश्किल से दस बीघा खेत बचे थे अब घर मे भुखमरी के हालात पैदा होने लगे,, ,,,
मनोहर उस खेत का भी सौदा करने की बात कर रहा था कि, मालती रोते हुए उसके पैरों में गिर गईं कहने लगी आपका दोष नही है ,,, मैं ही अपने घर गृहस्ती और आपके प्यार को संभाल नही पाई ,,,,।।
सब मेरी भूल है मुझे माफ़ कर दो।
अब से आप बस मेरे वही मनोहर बन जाओ वह रोती जाती थी और कहती जाती थी।
हम फिर से मेहनत करेंगे फिर से सुखी जीवन जिएंगे बस आप शराब छोड़ दो,,,
उस दिन मनोहर ने शराब नही पी थी वह भी थक गया था उधर भूरी भी अब इस से सीधे मुंह बात नहीं करती थी।
उसने रोती हुई मालती को उठा कर गले लगा लिया।
प्यार का दरिया पूरे वेग से बहा जिसके साथ दोनों के मन की प्यास बुझने के साथ ही सारे गीले शिकवे वह गए।
मनोहर अब शराब नही पीता , वो फिर से मेहनती किसान बन गया है।
मालती अब इसे बिल्कुल अकेला नही छोड़ती। रात को भी उसे पूर्ण प्यार का अहसास कराती है ।
मनोहर इसके साथ पूर्ण सन्तुष्ट और खुश है।
कभी कभी वह अपने यानी डालचंद के ट्रैक्टर पर मज़दूरी करता है जिसकी एवज में उसे अपना खेत जोतने का पैसा भी नही देना पड़ता और कुछ पैसे भी कमा लेता है।
मालती अपने बच्चों और खेतों की समान देखभाल करती है उसे डर है कि कहीं फिर कोई भूल ना हो ओर फिर कोई ना बिगड़ जाए।
भूरी अब मनोहर को देखती भी नही किन्तु मनोहर उस से भी खुश है।

वह कभी - कभी अकेला बैठ कर सोचता है कि उसकी शुरुआती भूल क्या थी।
शराब पीना या भूरी की ओर आकर्षण।
और वह पाता है कि वास्तविक भूल शराब पीना है ,
किउंकि न उसे शराब की लत होती और न वह भूरी के घर जाने की भूल करता।।