Tuesday, February 5, 2019

#हॉरर/31 की पार्टी (16+)

2010 के 31 दिसंबर की कोहरे वाली रात थी, जगह जगह नए साल की पार्टी से शहर भर के होटल ढावे गेस्ट हाऊस रौनकमय होकर झूम रहे थे।
शहर तो शहर आसपास के फार्महाउस उससे भी ज्यादा रंगीनी में डूबे हुए थे।
युवाओं की पार्टी हो और शराब का दौर ना चले ऐसा होना असम्भव ही होता है ऐसे ही शहर से दूर सूनसान में एक बड़ा फार्म हाउस था उसके मालिक के बेटे रोहन ने अपने दोस्तों को न्यू ईयर पर्टी दी थी।
पार्टी में उसके पाँच दोस्त- विकास, प्रिया, रजनी, सुरेश और मनोज शामिल हुए, आधी रात तक शराब और नाच गाने का दौर चलने के बाद मनोज, प्रिया और रजनी के साथ वापस लौट आया लेकिन रोहन, विकास और सुरेश बची हुई शराब खत्म करते वहीं पर रुक गए।
कोई एक घण्टा लगातर पीने के बाद तीनों की आंखे मुंदने लगी, उन्हें नशे ने पूरी तह अपनी गिरफ्त में ले लिया अब उनकी बातों में बातें कम और गाली ज्यादा निकल रही थीं।
अरे यार सुरेश शराब हो गयी पार्टी खत्म हो गयी लेकिन 'मूड' नहीं बना, रोहन सिगरेट सुलगाते हुए बोला।
हाँ यार जब तक फड़कता हुस्न और शबाब ना हो पार्टी का मज़ा अधूरा ही रहता है भ,,,का विकास ने भी एक भद्दी सी गाली से उसकी बात का समर्थन किया।
आओ फिर चलते हैं शायद कोई मिल जाये, कोई आइटम हमारी तरह प्यासी पार्टी से लौटती हुई, क्यों सुरेश? रोहन हंसते हुए बोला।
नहीं!!, तुम लोग हर बार ऐसा ही करते हो अच्छी बात है क्या यार, ओर फिर इतनी रात में इतने कोहरे के बीच,,, सुरेश कुछ सहमते हुए बोला।
फट्टू साला, विकास हंसने लगा, अरे किस्मत आजमाने में क्या जाता है और कुछ नहीं तो कुछ हैंगओवर ही कम हो जाएगा, आओ चलते हैं यार एक राउंड मार कर आते हैं, विकास ने सुरेश को हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा और उसका दूसरा हाथ रोहन ने पकड़ लिया और उसे खींच कर बाहर ले आये।
मरोगे सालो तुम ठंड में अब भ**वालो इतने कोहरे में अपनी उंगलिया तक महसूस नहीं हो रही ऐसे में तुम्हे छमिया की सूझ रही है, जाने को र**तुम्हारा इन्तज़ार कर रही है इस कोहरे में बैठी की आओ राजा मुझे,,,सुरेश उन्हें लगातार लौटने को कह रहा था।
अबे ओ ग*** साले कभी तो अच्छा सोच लिया कर, क्या पता मिल ही जाए, ऐसे भी आज की रात कई कालगर्ल घूमती हैं फार्म हाउस के आसपास मोटे माल की उम्मीद में कोई मिल गयी तो साली जो मांगे हाँ कर देना हमें कौनसा कुछ देना है उसे सुबह ग** पर लात मारकर भगा देंगे भो**वाली र** को, रोहन गन्दी हंसी हँस रहा था।
अभी ये लोग कोई आधा किलोमीटर ही चले होंगे कि तभी इन्हें किसी मधुर धुन में निकलती मुंह से बजती हल्की हल्की सीटी की आवाज सुनाई दी।
इसस्सशः !!!कोई है आगे रोहन मुंह पर हाथ रखकर चुपचाप चलने का इशारा करते हुए बोला।
कोई लड़की है यार इतनी मीठी आवाज में सीटी बजा रही है खुद कितनी स्वाद होगी साली, विकास अपने होंठों पर जीभ फिराता हुआ वहशियाना हँसी धीरे से हँसा।
चलो जल्दी देखते हैं कौन है पक्का कोई चालू माल होगी यार काम बन गया अपना बस जितने भी मांगे एक दो बात करके मान लेना, रोहन की आंखों में कामुकता की चमक थी और होंठो पर वहशियत की हँसी।
थोड़े और आगे बढ़ने पर इन्होंने देखा एक पतली छरहरी अल्हड़ जवान लड़की जीन्स टॉप पहने उछलती गाती सीटी बजाती मस्ती में चल रही थी।
कौन है वहाँ विकास ने जोर से पुकारा।
तभी वह लड़की पलटी रात के अंधेरे और घने कोहरे में भी उसका गोरा रंग चान्दनी जैसा चमक रहा था और उसके गुलाबी होंठो पर खिली हंसी दूर से दिख रही थी।
कककोंन!!! हो आप? सुरेश घबराते हुए बोला क्योंकि उसने ज्यादा नहीं पी थी, ऐसे भी वह  हमेशा गलत काम का विरोध करता था लेकिन दोस्ती निभाना उसके स्वभाव में था।
मैं परी, उस लड़की ने मुस्कुरा कर कहा जो दिसम्बर की कड़क ठंड और घने कोहरे के बावजूद स्लीवलेस टॉप ओर चुस्त जीन पहनी थी, उसके आस पास जाने कैसा प्रकाश फैला था, जिसमें उसका गोरा रंग ज्यादा ही सफेद लग रहा था और उसकी आंखें बिल्ली जैसी चमक रही थीं।
उसके आने के बाद वातावरण में अजीब सी सिहरन महसूस हो रही थी, उल्लू ओर चमगादड़ बार बार उसके पैरों के पास से उड़ रहे थे, जैसे उसके पैर छू रहे हों।
चलो यार वापस चलते हैं, सुरेश वातावरण के संकेत समझकर विकास को कोहनी मारते हुए धीरे से बोला।
सुरेश उस वातावरण में ख़ौफ़  जदा हो रहा था उसने कोहनी मारकर विकास और रोहन को लौट चलने के लिए कहा लेकिन वे दोनों तो उसकी खूबसूरती में खोए थे तो उन्होंने सुरेश की बात पर ध्यान नहीं दिया।
आप किसके साथ हो ?? सुरेश ने परी से सवाल किया।
अकेली। उसने संक्षिप्त उत्तर दिया, और हँसने लगी।
आपको डर नहीं लगता इतनी रात में यूँ अकेले??
डर! किससे??
इंसानो से ??
कुछ लुटने का,??
जो मेरे पास था वो तो पहले ही तुम लोग,,,,परी का चेहरा गुस्से में लाल हो गया लेकिन अगले ही पल वह होंठो पर मुस्कान ला कर बोली, हम तो "उसे" बेचती हैं ,तो किसी को लूटने की क्या ज़रूरत और फिर कोई कोशिश भी करे लूटने की तो मैं ऐसे ही तैयार हो जाती हूँ।
बाकी रही जंगली जानवरों की बात तो वे हमला तो करते हैं लेकिन केवल पेट की भूख लगने पर, ऐसे वासना में अंधा होकर तो बस कोई इंसान,,,, नहीं नहीं कोई वहसी दरिंदा ही हो सकता है जो वासना की खातिर किसी मासूम लड़की को शिकार बनाये, वह घृणा से देख रही थी।
लेकिन तुम लोग?? वह उनकी और देखती हुई बोली।
हम भी वही खरीदने निकले हैं जो तुम बेचती हो, विकास उसे घूरते हुए बोला।
ओह्ह!! ठीक है चलो फिर, परी बोली।
लेकिन आप?? सुरेश ने कुछ बोलना चाहा।
लेकिन परी ने उसे चुप कराते हुए कहा," अरे चलो यहां से कोई और आ जायेगा तो मुश्किल हो जाएगी ऐसे भी आजकल पुलिस बहुत परेशान करती है बाकी तुम जो दोगे हो जाएगा, चलो मेरे साथ।
परी एक तरफ चल दी और  ये तीनों उसके पीछे चलने लगे।
लगभग बीस मिनट चल कर ये लोग एक ऐसी जगह आ गए जहां बहुत ऊंचे और घने पेड़ों के बीच आठ दस गज का एक गोल मैदान था जो चाँद की रोशनी में एकदम साफ दिखाई दे रहा था।
ये हमें कहाँ ले जा रही है यार इधर तो हमारा फार्म हाउस नहीं है, सुरेश रोहन का हाथ पकड़कर रोकते हुए बोला, मुझे तो बहुत डर लग रहा है यार देखो इसे,  लगता है जैसे इसे इस अंधेरे में इतना साफ दिखाई दे रहा है जितना हमें दिन के उजाले में।
अरे चुप कर डरपोक रोहन उसकी खिल्ली उड़ाते हुए बोला।
आओ दोस्तों तभी उसका खनकता स्वर गुंजा।
आसपास का वातावरण कुछ ज्यादा ही सर्द हो रहा, हवा के झोंके रह रह कर पेड़ों को झुका रहे थे , चमगादड़ ओर उल्लू भी उस लड़की से डर रहे थे ,उसका चेहरा ऐसे चमक रहा था जैसे चँदा अपनी सारी चान्दनी बस उसी पर लुटा रहा हो।
आस पास गहन अंधकार फैला था लेकिन उसकी देह दूध सी चमक रही थी और आंखे दिए सी जल रही थीं।
चारों ओर भयंकर डरावना शोर हो रहा था, सुरेश ने विकास और रोहन को इशारा करके समझाया।
रोहन उस लड़की के चेहरे को ध्यान से देखने लगा, उसके चेहरे की जगह बस एक काला घेरा था, उसमें उसकी डरावनी आंखें दिए कि लौ जैसे चमक रहीं थी,अभी रोहन विकास की ओर पलटा तभी, परी के मुंह से दो दांत लम्बे होकर बाहर आने लगे ,,,,
उफ़्फ़फ़!!! भागो चुड़ैल है ये धोखा देकर लायी है हमें यहाँ,  कहकर रोहन एक ओर दौड़ा लेकिन अचानक विकास और सुरेश की दर्दभरी चीत्कार सुनकर रुक गया।
उसने पलट कर देखा, सुरेश और विकास के सामने की जमीन फ़टी हुई थी और ये दोनों कमर तक जमीन में धँसे हुए थे।
नहीं!!! रोहन के हलक से भय चीख बन कर निकला और वह उनकी ओर दौड़ा ,अभी मुश्किल से दो कदम बढ़ाए होंगे कि बिछुओं की पूरी फ़ौज उन दोनों पर झपटी काले काले बड़े बड़े बिछु अपने डंक उठाये उधर लपक रहे थे।
ओ गॉड,,,, नहीं!! नहीं! कहता हुए वह नीचे बैठने लगा तभी परी ने अपने हाथ को घुमाया और जहाँ रोहन बैठ रहा था उसी जगह एक नुकीला खूंटा जमीन से निकला और रोहन के 'जिस्म' में घुसता चला गया,वह तड़फ उठा उसकी दर्दनाक चीख निकल गई।
कौन है तू क्या कर रही है हमारे साथ,, रोहन दर्द से तड़फते हुए चीखा।
अचानक परी उसके ठीक सामने आकर खड़ी हो गयी अब उसका  चेहरा बिल्कुल अलग लग रहा था बहुत मासूम पहले से भी बहुत ज्यादा खूबसूरत।
ले पहचान मुझे कुत्ते, उसने रोहन के सर पर हाथ रख कर थोड़ा नीचे दबाया जिससे खूंटा उसके अंदर सरकने लगा।
नही  मत करो छोड़ दो हमें हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है रोहन के हाथ आपस में जुड़ गए।
गौर से देख मुझे पहचान मुझे क्योंकि जब तक तू मुझे ना पहचाने तुझे तड़फते देखने में कतई मज़ा नहीं आएगा।
याद कर इस जगह को मा***द याद  कर 31 की रात आज ही का दिन यही जगह,,, पूरे एक साल इंतज़ार किइस मैंने तुम दरिन्दों का परी ने जोर से उसके सर को झटका दिया।
रोहन आंखे फाड़ कर उसे देखने लगा उसके चेहरे को देखते देखते वह पिछले साल की 31 की पार्टी की याद में चला गया ,,,
उस दिन भी ये तीनों आज ही की तरह नशे में डूबे किसी कालगर्ल की तलाश में घूम रहे थे, अचानक किसी ने इनकी गाड़ी को हाथ देकर रुकने का इशारा किया।
गाड़ी की लाइट की रौशनी में रोहन ने देखा सामने एक बहुत ही खूबसूरत लड़की खड़ी थी,उसे देखकर रोहन का पांव गाड़ी के ब्रेक पेर जम गया गाड़ी चरररर की जोरदार आवाज करती हुए घिसटकर एकदम उस लड़की के सामने जाकर रुकी।
कोन हो कहाँ जाना है? रोहन ने पूछा।
शहर ,उसने धीरे से कहा।
शहर तो नहीं जा रहे हम लेकिन आपको छोड़ देंगे, रोहन पास बैठे विकास को पीछे जाने का इशारा करते हुए बोला।
ओर वह लड़की आगे उसके पास आकर बैठ गई।
क्या नाम है आपका? रोहन ने मुस्कुरा कर पूछा।
परीधी, उसने धीरे से मुस्कुरा कर जबाब दिया।
वाओ परी धी,, ब्यूटीफुल नेम, बिल्कुल आपही की तरह स्वीट,,।
थैंक यू उसने मुस्कुरा कर जबाब दिया।
लेकिन इतनी रात को आप इस सुनसान में अकेले??,
नहीं मैं अपने दोस्त के साथ थी लेकिन साले ने पार्टी में ज्यादा पी ली और यहाँ सुनसान जंगल में मेरे साथ जबरदस्ती करने लगा मुझे बहुत गुस्सा आया तो मैने उसको थप्पड़ मार दिया और हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ने को कहा।
तब वो कमीना,, मुझे यहाँ अकेले छोड़कर भाग गया।
भड़वा साला, भ***का परी ने अजीब मुंह बनाकर एक भद्दी गली दी और गुस्से से थूकने लगी।
तो अब? रोहन ने मुस्कुरा कर पूछा।
मूड ऑफ हो गया यार अब घर जाकर सोऊंगी, परी गुस्से में बोली।
क्यों ना आप हमारे फॉर्म हाउस पर चलें ??जो नज़दीक ही है, वहाँ हम जल्दी पहुंच जाएंगे आप आराम से आराम करना और हम आपका साथ देंगे, रोहन ने अर्थपूर्ण शब्द कहे।
नहीं अब तो बस घर जाकर सोना है, अब मन नहीं है पार्टी का।
जितने कहेगी उतने पैसे दे देंगे यार आज रात हमारी पार्टी बना दे, रोहन गन्दी नज़रो से उसे घूरते हुए कहा।
नहीं, आयी अम नॉट आ प्रॉस्टिट्यूट  एंड नॉट आ कॉलगर्ल सो प्ल्ज़ डोंट टॉक लाइक आ डर्टी माइंड विध मी।
रेट बोल साली ज्यादा पवित्र मत बन तभी विकास ने उसे घूरते हुए कहा।
डोंट टॉक लाइक दिस, आयी एम ऑलरेडी हर्ट बैडली, प्ल्ज़ ड्राप मी इन सिटी आयी थिंक यू बोथ आर गुड़ फेलो, आयी नीड तो बे एट होम एज सून एज पॉसिबल,,उसने मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा।
चरररर अचानक रोहन ने गाड़ी रोक दी,उतर ,,चल नीचे आ, रोहन गाड़ी से उतरते हुये बोला।
य यहाँ!!, क्यों रोक दी गाड़ी, क्या तुम भी मुझे छोड़कर,,?? उसने आंखों में आंसू भरकर कहा।
हम उस लौंडे की तरह चूतिया नहीं हैं जो ऐसे माल की यूँही छोड़ कर चले जाएं, रोहन जोर से हंसते हुए बोला।
नहीं!!, हटो ,,, परी रोहन को धक्का मारकर एक तरफ भागी लेकिन विकास ने दौड़ कर उसे पकड़ कर जमीन पर पटक दिया और दोनों जोर जोर से हँसने लगे।
इसे जाने दो यार ऐसे जबरदस्ती करना ठीक नहीं,  सुरेश बहुत धीरे से बोला, ऐसे जबरदस्ती करके क्या मिलेगा हमें रोहन? सुरेश ने डरते हुए बोला।
ओ, फट्टू फिर फट गई तेरी? रोहन ने उसे झिड़का और परी का टॉप पकड़ कर खींच दिया जो चरररर कि आवाज करता फट गया और परिधि मुंह के बल जमीन पर गिर पड़ी।
तुम्हे भगवान का वास्ता मुझे जाने दो,मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है प्ल्ज़ छोड़ दो मुझे।
परी रोते हुए अपने हाथ सीने से चिपकाने लगी।
छोड़ देंगे परेशान क्यों हो रही है तू बस हमें खुश कर दे, विकास हँसते हुए बोला।
नहीं !!! परी जोर से चीखी, बचाओ बचाओ,, और विकास ने उसके मुंह पर हाथ रखकर उसकी आवाज दबा दी।
परिधि?? रोहन काँपती आवाज में बोला ,,
लेकिन तुम तो।
हाँ मर गई थी मैं तुमने मार दिया था मुझे तड़फा तड़फा कर, कितना रोई थी मैं लेकिन तुम दरिन्दों ने,,, कहते हुए परी ने रोहन के सर पर रखे हाथ को जोर से दबाया, जिससे खूंटा एक झटके में उसके अंदर सरकने लगा।
देख इस जगह को ध्यान से दरिंदे  यही वह जगह है जहाँ उस दिन तुमने मेरी इज्जत,,, परी क्रोध में जलने लगी उसका गोरा रंग क्रोधाग्नि से लाल हो गया उसने रोहन के सर को जोर से दबाया।
आहहहहहहह!! रोहन के मुँह से बहुत तेज़ चीख निकली, परी मुझे माफ़ कर दो मर जाऊंगा मैं बहुत पेन हो रहा है,, रोहन रोने लगा।
अर्रे यार कुछ नहीं होगा बस थोड़ा ही तो ओर है उसके बाद बहोत मज़ा आएगा मेरी जान,,, परी जोर से हँसी।
रोहन को फिर वह मंजर याद आ गया  जब वे लोग परिधि के साथ जबरदस्ती,,
मुझे छोड़ दो मर जाऊंगी मैं , परी अपने ऊपर से रोहन को धक्का देते हुए बोली।
चटाख!! साली नखरे करती है रोहन उसके गाल पर जोर से मार कर बोला, अरे बस थोड़ा और फिर तुझे भी मज़ा आएगा ऐसे भी कोई नहीं मरता इस खेल से और वह गन्दी हंसी हंसते हुए जबरदस्ती परी में समाने की कोशिश करने लगा।
नहीं!!!!, छोड़ दो कमीनो परी ने अपनी टांग पकड़े विकास के मुंह पर जोर से लात मारी जिससे वह चिढ़कर उसके मुंह पर नाखून गड़ा कर चिल्लाया, साली ज्यादा मर्द बन रही है, रोहन कर जल्दी साली बहुत उछल रही है,
और विकास ने उसके मुंह मे ****वह तड़फ उठी उसकी चीखें उसके गले में घुट कर रह गईं।
थोड़ा और,,, परी जोर से हंसते हुए रोहन को जोर से दबाने लगी।
रोहन दर्द से तड़फते हुए रोता रहा, तभी परी ने हाथ से इशारा किया उसका इशारा पाते ही सारे बिच्छू एक साथ विकास और सुरेश पर झपटे,,,
नहीं,,!!!,सुरेश और विकास एक साथ चीखे,,,
कई बिछु दौड़ कर एक साथ विकास के मुंह में घुस गए और उसके होंठों पर डंक मारने लगे।
कुछ बिछु सुरेश के पैरों पर चढ़ गए।
मैंने क्या किया??? सुरेश चीखा, मैं तो इन्हें मना कर रहा था परी और मैने तुम्हे हाथ भी नहीं लगाया था, सुरेश गिड़गिड़ाया।
हुँह!! बचाया भी तो नहीं था तूने मुझे कितना तड़फ रही थी मैं तू भी तो देख कितना दर्द होता है कहकर परी ने इशारा किया और एक बिच्छु ने उसके पैर पर अपना डंक गड़ा दिया
आहहहहहहहह नहीं ,,!!, सुरेश दर्द से तड़फ उठा।
इधर बिछुओं ने डंक मार मार कर विकास के होंठ सुजा दिए थे वह चीख रहा था रो रहा था उसकी आवाज गले में घुट रही थी, वह हाथ जोड़ कर इशारे से छोड़ देने की गुहार लगा रहा था।
ऐसा,!< बिल्कुल ऐसा ही लग रहा था मुझे भी उस वक्त जब तू मेरे मुंह मे,,, परी गुस्से से चीखी,अब समझ आया तुझे की कैसा लगता होगा जब  किसी की बिना मर्जी तुझ जैसे घिनोने लोग अपनी जबरदस्ती,  और परी ने इशारा किया तो सारे बिच्छू एक साथ विकास के मुँह, आँख, कान और नाक में घुंस गए और थोड़ी ही देर में दम घुटने से उसकी मौत हो गई, परी ने घृणा से मुँह बिगाड़ कर उसके मुंह पर थूक दिया।
अब तो तेरा बदला पूरा हो गया चुड़ैल अब हमें छोड़ दे, रोहन फिर गिड़गिड़ाया।
नही!!ं अभी नहीं कहते हुए परी ने भरपूर ताकत से उसके सर को दबाया जिससे खूँटा पूरा उसके पेट में घुस गया और उसकी आँते फट कर बाहर आ गयीं,उसी के साथ बाहर आ गई उसकी आखिरी सांस भी।
अब परी सुरेश की तरफ पलटी , सुरेश चेहरे पर दर्द लिए हाथ जोड़े कातर नजरों से उसे ही देख रहा था।
नहीं!! मुझे मत मारो ,मैने तो कई बार इनसे तुम्हे छोड़ने को कहा था लेकिन इन्होंने मेरी बात नहीं सुनी ।
लेकिन इन्होंने तुम्हे जान से तो नहीं मारा था फिर तुम कैसे मरी? सुरेश ने पूछा।
उस दुष्कर्म के बाद मैं क्या मुंह लेकर जीती??
तो मैंने पुल से कूद कर अपनी उस घिनोनी जिंदगी का अंत कर दिया और फिर जब मुझे मुक्ति नहीं मिली तो मेरे मन में अपना बदला लेने की चाहत होने लगी और आज मेरा बदला पूरा हुआ आज खत्म हुआ मेरी जिंदगी का आखिरी साल, अब आएगा मेरी मुक्ति का नया साल, और देखते ही देखते वह सफेद धुंआ बनकर उड़ गई, सुरेश भरी आंखों से उसे जाता देखता रहा।
समाप्त
©नृपेंद्र शर्मा'सागर'
नोट:-  मेरी नई किताब निकली है, तिलिशमी खजाना जिसकी बुकिंग शुरू हो चुकी है आप अपना ऑर्डर बुक करने के लिए नीचे दिया लिंक नोट करके गूगल में या किसी भी ब्राउज़र में खोल लें धन्यवाद।

फरिश्ता

आज रमेश का कॉलेज में आखिरी दिन था।
लेकिन उसने गांव न जाकर यहीं शहर में ही कोई नोकरी करने का फैसला किया था।
उसने एक दफ्तर में नोकरी की बात भी कर ली थी। कल से ही तो उसे नोकरी पर जाना है, अभी वो गांव नहीं जा पायेगा। v
गांव में बस उसकी बुड्ढी माँ के अलावा उसका कोई और सगा संबंधी नहीं है।
माँ के अलावा दुनिया में उसका और है ही कौन। दो चार महीने काम कर ले ,कुछ पैसा जमा हो जाये तो माँ को भी साथ ले आऊंगा , ।
सोचता हुआ रमेश अपनी मस्ती में चला जा रहा था। गांव में बैसे भी है ही क्या उसके पास दो ढाई बीघा जमीन एक कच्चा माकन बस यही संपत्ति जो उसे पुरखों से मिली थी।
नोकरी जम गई तो गांव जाकर करना भी क्या है? खुद से ही सवाल करता । और हाँ माँ की बीमारी का इलाज भी कहाँ गांव में हो पाता है। खुद ही जबाब दे देता ।
कभी हँसता कभी उदास होता बढ़ा जा रहा था।
तभी! सड़क किनारे कुछ जमा लोगों की भीड़ देख उसकी तन्द्रा भंग हुई।
कोई लड़की रो रही थी ।कोई तो मदद! करो खुदा के वास्ते,,,,,,
आवाज सुनकर रमेश भीड़ को चीरता उधर तेज़ी से लपका। तो देखा कि, एक बूढ़ा आदमी शरीर पर तमाम घाव लिए जमीन पर पड़ा तड़फ रहा है।
और एक 19/ 20 साल की सुन्दर लेकिन फटेहाल लड़की उसके पास बैठी रो रही है।
कोई मेरी मदद करो खुदा के वास्ते ,उन्हें घर पहुंचादो, कोई तो सुनो।
तभी एक आदमी भीड़ से बोला ,"अरे बेटी,इसको कोन हाथ लगाये, न जाने ये छूत की बीमारी हमें भी लग जाये तो।
अरे 'अहमद 'पर तो खुदा का कहर टूटा है। न जाने किस गुनाह की सजा मिली है उसे,जो ऐंसी नामुराद बीमारी लग गई बेचारे को।
अरे इसे तो जीते जी दोजख की आग में जलना पड रहा है। चलो भाइयों चलो यहाँ से, अरे ये छूत की बीमारी है लाइलाज,, हम कियूं इसके गुनाहों के साझीदार बने, अरे पता नहीं कोन से संगीन गुनाह किये इसने अपनी गुजस्त जिंदगी में, जो इतनी ख़ौफ़नाक सजा तारी हुई इसपर ।
ये कोढी है कोढ़ी।।।
ये सुनकर लड़की तड़फ कर बोली, ऐंसा न कहिये मोलवी साहब , खुदा के वास्ते ऐंसा कुफ्र न करिये,अरे लाचारों की मदद करना तो सबाब का काम है।
लेकि वहाँ जमा भीड़ अजीब सा मुह बनाती हुई धीरे -धीरे छंट गई।
और रह गए मियां अहमद और उनकी बेटी।
ये सब देख कर रमेश को बहुत अजीब लगा , उसने पास जा कर लड़की से पूछा ,"क्या हुआ है इन्हें"?
और ये सब लोग गुनाह ,सजा सब क्या क्या बातें कर रहे थे?
ये सुनकर उसने रमेश की और देखा ,और सिसकते  हुए बोली,"मेरा नाम सादिया है , ये मेरे अब्बू हैं । जिन्हें पिछले कुछ महीनो से अजीब बीमारी लग गई है जिसे ये लोग कोढ़ कहते हैं।
और इसे छूत की बीमारी कहकर हमारे साथ अछूतो सा वर्ताव करते हैं।
पिछले 2 महीने से इनकी बीमारी बहुत बढ़ गई है, ये अधिकतर घर मे ही पड़े रहते हैं।और खाना पीना भी बहुत कम कर दिया है। नतीज़ा कमज़ोरी बहुत बढ़ गई है।
अभी मैं जरा किसी काम से बाजार गई थी, लौटी तो ये यहाँ पड़े थे। न जाने कियूं घर से निकल आये और यहाँ आके बेहोश हो गए।
मै न आती तो अल्लाह जाने आज क्या हो जाता।
तब तक अहमद मियां को भी होश आया गया, उन्होंने धीरे से आँखे खोली और बोले , "अरे बेटी मैं अपनी इस जिल्लत भरी जिंदगी से आज़िज़ आ गया हूँ"।
और मेरी बजह से तुम्हारी जिन्दगी भी बेरंग ग़मगीन होती जा रही है।तुम्हे लोगों के रोज कितने ताने मेरी वजह से सुनने पड़ते हैं। यही सब सोचते हुए खुद को खत्म करने घर से निकला था, लेकिन ये भी शायद अल्लाह को मंज़ूर नहीं। जो मैं यहाँ गश खाके गिर गया और बेहोश हो गया।
तब रमेश बोला चलो बाबा अब घर चलो वहीँ बातें करेंगे।

उसने सहारा देकर उन्हें खड़ा किया, और सादिया की मदद से उनके घर ले आया ,जो की पास में ही था।
घर आके उसने लड़की से पूछा , तुमने इनका इलाज़ नहीं कराया कहीं? अरे ये अब लाइलाज बीमारी नहीं है । सही इलाज और देखभाल से ये पूरी तरह ठीक हो जाती है। और तो और सरकारी अस्पताल में इलाज भी एकदम मुफ्त होता है। ये सुनकर सादिया रोते -रोते बोली," मेरा दुनिया में अब्बा के इलावा कोई नहीं है।साल भर पहले जब इनके हाथ पर पहली दफा दाग देखा था , तो हम हाकिम जी के पास गए थे। लेकिन बीमारी बढ़ती ही गई, और धीरे धीरे पूरे जिस्म में फ़ैल गई"।
अब तो शरीर के घाव फूटने भी लगे हैं। लोग कहते हैं ये छूत की बीमारी है ,जो की गुनाहों की सज़ा की वज़ह से होती है। और अगर कोई उसे छू ले तो ये बीमारी उसे भी लग सकती है।
ये सुनकर रमेश अफ़सोस के साथ बोला, आप मुझे पढ़ी- लिखी समझदार लगती हो सादिया, फिर भी नीम हकीमो, और इन ज़ाहिल मोहल्लेबालों के कहने में आ गईं।
इन लोगों की बेशिरपैर की बातों को मानकर हिम्मत हार कर बैठ गई।
अरे तुम लोगों को बड़े अस्पताल जाना चाहिए था।
सादिया बोली लेकिन हमारे पास पैसे कहाँ हैं बाबुजी । कहाँ से कराती इलाज़?।
अरे पागल !!मुफ्त इलाज होता है सरकारी अस्पताल में कुष्ट का बताया था न मैंने। रमेश अपनेपन से उसे झिड़क कर बोला ।
कल सुबह मैं खुद इन्हें अस्पताल ले जाऊंगा।
अभी तुम इनकी साफ सफाई करके घावों पर तेल लगा देना। सुबह तैयार रहना इन्हें अस्पताल ले चलेंगे।
ये कहकर रमेश वहाँ से चल दिया। दोनों बाप बेटी उसे कृतज्ञता भरी नज़रों से देखते रहे।
अगले दिन सुबह 9 बजे रमेश उनके घर पहुंचा ,और बोला चलो बाबा अस्पताल वहाँ डाक्टर को दिखाना है।
आप तैयार हो जाओ मै रिक्शा ले आता हूँ।
अहमद मियां बोले अरे बेटा तुम तो हमारे लिए, "फ़रिश्ता" बनकर आये हो।
, यहाँ तो अपनों ने भी मुँह मोड़ लिए। बिरादरी तो बिरादरी सगे भी किनारा कर गए। तुम तो हमें जानते तक नहीं फिर भी!!!
अरे बाबा इंसानियत भी कोई चीज़ होती है ,रमेश बोला । अच्छा अब ज्यादा बातें न करो ,और जल्दी चलो मै रिक्शा लाता हूँ।
रमेश रिक्शा ले आया और तीनों लोग अस्पताल पहुँच गए। वहाँ रमेश उन्हें सीधे कुष्ट उनमूलन केंद्र ले कर पहुंचा। डॉक्टर ने मुआयना किया और पूछा, कब से है बीमारी?
साल हो गया साहब अहमद ने जबाब दिया।
बहुत देर कर दी आपलोगो ने आने में, बीमारी बहुत बढ़ गई है।
क्या अब मेरे अब्बू ठीक न हो सकेंगे डाक्टर साब,?? सादिया ने तड़फ कर पूछा।
ठीक तो हो जायेंगे लेकिन बहुत समय लगेगा अब। बीमारी बहुत ज्यादा बढ़ गई है।
मै दवाइयां दे देता हूँ लेकिन नियमित इलाज़ और देखभाल करनी होगी । और कुछ सावधानियां मैं सब लिख देता हूँ। इनको हर सप्ताह चेकअप के लिए लाना होगा। सब समझाकर डाक्टर ने उनको दवाइयां और आवश्यक निर्देश देकर घर भेज दिया।
घर पहुंचकर रमेश को याद आया आज उसे 10 बजे दफ्तर पहुंचना था ,अब 12 बज गए , आज पहले दिन ही छुट्टी हो गई।
लेकिन वह फिर भी दफ्तर चला गया, और वहाँ उसने कह दिया रस्ते में एक दुर्घटना हो गई थी। उसी में उसे देर हो गई।

लगातार इलाज़ उचित खुराक और बेहतर देखभाल से अहमद साहब की हालत में काफी सुधार आने लगा था। रमेश रोज़ दफ्तर जाने से पहले और दफ्तर से लौट कर अहमद मियां की खबर लेने जाता। इन रोज़ रोज़ की रमेश और सादिया की मुलाकातो  से दोनों के बीच मोहब्बत का जज़्बा सर उठाने लगा।
सादिया और अहमद दोनों ही रमेश की बहुत इज़्ज़त करते थे। धीरे धीरे सादिया और रमेश की नजदीकियां मोहल्लेबालों की आँखों में चुभने लगे।
कुछ लोगों ने रमेश से कहा भी कि, तुम एक कोढ़ी की देखभाल कर रहे हो अगर कहीं बीमारी तुम्हे लग गई तो?
तुम एक अच्छे घर के समझदार लड़के हो थोड़ा ध्यान रखो।

लेकिन रमेश सब अनसुना कर गया। अब अहमद मियां लगभग ठीक हो चले थे 6 महिने गुज़र गए देखते देखते।

एक दिन रमेश ने सादिया का हाथ पकड़कर कहा, "सादिया मै कई दिन से तुमसे कुछ कहना चाह रहा था ,लेकिन तुम्हारे अब्बा की बीमारी के चलते खामोश था। अब चूँकि उनकी हालत पहले से काफी बेहतर है , तो मुझे लगता है कि , मुझे अपने दिल की बात तुम्हे बता देनी चाहिए"।
कहो?? सादिया ने संक्षिप्त उत्तर दिया।
और उसकी आँखिन में झाँकने लगी।
बात ये है सादिया कि, हम काफी दिनों से रोज़ मिल रहे हैं , एक दूसरे को जान समझ रहे है ।और अब मुझे लगता है कि मेरे दिल में तुम्हारे लिए चाहत होने लगी है।
मुझे लगता है कि, हम दोनों जिंदगी साथ में बिता सकते हैं। क्या तुम मुझसे शादी करोगी?
ये सुनकर सादिया बोली हम आपकी बहुत इज़्ज़त करते हैं रमेश जी। और आपके जज्बातो की हमारे दिल में बहुत कदर है। हमें तो फख्र होगा अपने आप पर और नाज़ होगा अपनी किस्मत पर,जो हमें आप जैसे शोहर मिले,।।
लेकिन क्या समाज और बिरादरी हमें इसकी इज़ाज़त देंगे? क्या बो हमारे रिस्ते को क़ुबूल करेंगे?
समाज!! हाँ ये वही समाज !है न जो उस दिन तुम्हारे अब्बू को अछूत कहकर अपने से अलग कर रहा था?
और बिरादरी, कहाँ गए थे बिरादरी बाले उसदिन जब तुम मदद की गुहार लगा रही थीं?
क्या तुम भूल गई सब?
कुछ नहीं भूली मै रमेश। !!
सादिया तड़फ उठी।
तो फिर कियूं समाज और बिरादरी की दुहाई दे रही हो? रमेश ठीक कह रहा है सादिया बेटी, कहते हुए तभी अहमद मियां ने कमरे में कदम रखे।
अरे जब बिरादरी को हमारी फिक्र नहीं तो हम कियूं , जाती धर्म और समाज की परवाह करें?
और फिर रमेश तो हमारे लिए 'फ़रिश्ता' है जब मैं बीमारी से लड़ रहा था ,,अरे मर ही गया था अगर ये ' फ़रिश्ता ' न आया होता।
और अगर मैं मर जाता तो यहि समाज तुजसे हमदर्दी के बहाने तुझे बुरी नजरो से रोज मारता।
अरे मैंने कितनी कोशिशे की, कि मेरे जीते जी तेरा निकाह हो जाये।
कम से कम तेरी जिम्मेदारी तो मरने से पहले पूरी करता जाऊ।
लेकिन जहाँ कहीं भी बात चली ,सबने मेरी बीमारी का वास्ता देकर साफ इंकार कर दिया।
और तो और कई लोगों ने तुझे अपनी दूसरी बीबी बनाने की पेशकश रखी ,या मेरी उम्र के बुड्ढों ने तरस खाकर, तुझे अपनाने को कहा।
अरे सादिया ये सारा समाज गंदगी का ढेर बन चुका है। और तू इस समाज की परवाह कर रही है।
अरे मैं तो कहता हूँ बड़े खुशनसीव हैं हम लोग ,जो रमेश जैसे 'फ़रिश्ते' को अपनी ज़िंदगी में शामिल करने का मौका मिल रहा है हमें।
अरे ये तो खुदा का भेजा फ़रिश्ता है। और मैं सारी ज़िन्दगी चराग़ लेकर भी ढूँढू ,तो अपने लिए ऐंसा नेकदिल दामाद न ढूंढ पाउँगा।
इसलिए तू घबरा मत मेरी बच्ची सारी फिक्र छोड़ कर हाँ कर दे।
ये सुनकर सादिया ने रमेश का हाथ हौले से दबाया ,और उसकी आँखों में देखते हुए मुस्कुरा दी।
रमेश उसके मन की बात समझ गया और बोला , क्या सच सादिया? तो सादिया ने शर्म से नज़रें झुका ली ,और उठकर भाग गई।।
अहमद मियां और रमेश हंसने लगे।
रमेश गांव जाकर मा को ले आया ,और उन्हें अहमद मियाँ के घर ले जाकर सादिया और अहमद मिया से मिलते हुए सारी बात बताई।
मां को सादिया बहुत पसंद आई , और साथ ही अपने बेटे की नेकदिली पर फख्र भी हुआ।
और उन्होंने रमेश ओर सादिया की शादी को मान लिया।
रमेश ने अपने लिए एक अच्छा मकान किराए पर ले लिया।
हाँलाकि अहमद मियां ने बार बार कहा कि इतने बड़े मकान में वे अकेले क्या करेंगे सब यहीं रहो।
लेकिन रमेश और सादिया दोनो ही इस मोहल्ले में नही रहना चाहते थे।
आज सादिया और रमेश की शादी है दोस्तों , मुझे वहाँ जाने की जल्दी है, इसलिए ज्यादा बात नहीं कर सकता। तो अब चलता हूँ।
आएँ !!क्या कहा मैं कियूं जा रहा हूँ?? अरे भाई दोस्त हूँ रमेश का। लेकिन बो सच में 'फ़रिश्ता' है।

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Tuesday, August 7, 2018

दास्ताने दावत,,,

ठाकुर संग्राम सिंह बहुत उदार जमींदार थे।
सारे गांव में उनको बहुत आदर सम्मान मिलता था।संग्राम सिंह जी भी सारे गांव के सुख दुख में विशेष ध्यान रखते।
उसी गांव के बाहर कुछ दिन से एक गरीब परिवार आकर ,झोंपडी बना कर रह रहा है ,पता नहीं कहाँ से किन्तु बहुत दयनीय अवस्था मे थे सब।
परिवार में एक बीमार आदमी रग्घू उसकी पत्नी रधिया , दो बेटियां छुटकी और झुमकी।
बेचारी रधिया गांव के कूड़े से प्लास्टिक धातु ओर अन्य बेचने योग्य बस्तुएं बीन कर कबाड़ी को बेचती थी।
बामुश्किल एक समय का बाजरा, जुआर अथवा संबई कोदो जुटा पाती और उसे उबालकर पीकर सभी परिवार सो जाता।
बच्चों ने कभी पकवानों के नाम भी नहीं सुने थे ,चखने की तो बात ही स्वप्न थी।
आज संग्राम सिंह जी के घर उनका वंश दीप जन्मा था उनका पोता।
उसके जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में उन्होंने सारे गांव को दावत दी थी।
उन्होंने वारी(न्योता देने वाला) से कहा था कि, ध्यान रहे आज गांव में किसी के भी घर चूल्हा न जले सब हमारे घर ही भोजन करेंगे।
तो वारी इस परिवार में भी न्योता दे आया।
दावत का नाम भी बेचारे बच्चों ने कभी नही सुना था, अतः उन्होंने सवाल पूछ पूछ रधिया को हलकान कर दिया,,,,
अम्मा, यो दावत क्या होवे है? छोटी छुटकी ने पूछा।
अम्मा लोग कहते हैं हुँआ पकवान बनेगा ,,यो पकवान क्या होवे है ,,?
झुमकी ने दूसरी तरफ से उसका आँचल खींचा।
दावत में बहोत सारा खाना बनेगा जितना मन करे खाओ कोई रोकेगा नई लल्ली।
रधिया ने जबाब दिया,, पर हमारी दावत कैसे कर दी जमींदार ने।
अर्रे अम्मा सारा गाम उनके घर जावेगा खाने हम तो जरुरी जानगे अम्मा ।
अम्मा पकवान बहोत मीठा होवे है का?
गुड़ से भी जादा मिट्ठा?? झुमकी ने चहक कर पूछा।
उन वेचारे बच्चों ने लड्डू पूड़ी रायता के नाम भी नहीं सुने थे।
अगले दिन डरते डरते रधिया दोनो बच्चियों को लेकर दावत में गई और एक कोने में ज़मीन पर बैठ गई ।
तभी संग्राम सिंह उधर आये उन्हें यूं नीचे बैठे देख बोले अरे आप लोग ऐंसे कैसे बैठ गए??
रधिया बेचारी डर गई कि कहीं जमींदार उसे घुड़क कर भगा न दे।
वह अपने फटे मैले कपड़े समेटते हुए आदर से उन्हें नमस्ते करके बोली ,मालिक कोनो भूल हुई गई हो तो माफ करदो।
आपका आदमी दावत कर आया था तो,,,, कह कर बड़ी कातर दृष्टि से उनकी ओर देखने लगी।
अरे नही कोई भूल नहीं हुई बेटा लेकिन यूं सबसे अलग ज़मीन पर कियूं??
उधर बिछावन पर बैठ कर आराम से खाना खाओ।
और कोई रह तो नही गया घर?
मालिक इनके बापू हैं बीमार हैं तो,,,,, रधिया रोनी सी हो गई।
ठीक है खाना खाकर उनके लिए बंधवा लेना ।
ठीक है मालिक आपका जस बना रहे, कह कर रधिया सबके साथ खाना खाने बैठ गई,
पत्तल में दो सब्जी पूड़ी दोने में रायता और लड्डू परोसे गए।
झुमकी ने लड्डू हाथ मे लेकर फिर राधिया से पूछा यो के है अम्मा।??
चुप कर खाले लड्डू है।
पहले बाकी सब चीज़े खा इसे बाद में खाइयो यो मीठा है खाने के बाद खाया जाबे है।
सब खाना खाने लगे। बच्चीयों ने ऐंसे पकवान कभी नही खाये थे अतः वह जल्दी जल्दी पूड़ी तोड़ने लगीं।
उनके पीछे बैठा कोई कह रहा था ,,
साहब जमींदार ने इतना सब गांव नोत दिया और खाने में कंजूसी कर गया, सब्जी में मसाला पता नहीं लग रहा और लड्डू इतना मीठा की एक में ही मन भर जाए।
खर्च बचाने के लिए स्वाद से समझौता कर लिया ठाकुर ने।
इधर छुटकी रधिया से कह रही थी ,,
अम्मा लड्डू इतने बढिया इतने मीठे होबे है।
गुड़ से भी अच्छे और पूड़ी कितनी स्वाद, अम्मा जमींदार के घर रोज़ पोता कियूं नही पैदा होतता।
रोज़ कियूं?? रधिया ने मुस्कुरा कर पूछा।
अम्मा रोज़ होगा तो रोज दावत मिलेगी ना।
अरे तो रोज़ किसी के घर बच्चा थोड़ो होवे है ,झुमकी ने अपना मासूम ज्ञान बखाना।
तो अम्मा ओर दावत कब कब होवे है??
जब कोई खुशि होबे है किसी के घर।
छुटकी और झुमकी एक साथ आंख बंद कर हाथ जोड़ बैठ गईं।
अरे क्या करने लगीं तुम दोनों।
अम्मा भगवान से दुआ मना रई हैं कि, जमींदार जी के घर रोज़ कोई ना कोई खुशी आवे ओर हमे रोज़ ऐंसे अच्छी दावत खाने कु मिले।
ये सुनकर रधिया ने भी ऊपर की ओर हाथ जोड़ कर सर झुका लिया।

संग्राम सिंह जी दोनो ओर की बात सुन रहे थे और सोच रहे थे  कि असली दावत किसकी हुई।
दावत के बाद संग्राम सिंह जी ने रधिया को अगले दिन घर आकर मिलने को कहा।
अगले दिन जब रधिया हवेली पर आई तो उन्होंने उस से पूछा ,, कियूं रधिया अपनी मालकिन की सेवा करेगी ??
बदले में खाना कपड़े बच्चियों की पढ़ाई के साथ एक हज़ार रुपये भी मिलेंगे।
बदले में घर की साफ सफाई और अपनी मालकिन की सेवा।
ये सुनते ही रधिया उनके पैरों में पड़ गई,, मालिक ईश्वर आपका भला करे सारे सुख पहले आपके कदम चूमे।
काम कब से शुरू करना है मालिक।
अभी से। संग्राम सिंह ने संक्षिप्त उत्तर दिया ।
और राधिया ने फिर ऊपर की ओर हाथ जोड़ कर सिर झुका लिया।
और मन ही मन कहने लगी।
हे ईश्वर! आज हुई मेरी असली दावत।।
।।।नृपेंद्र।।।

Thursday, August 2, 2018

भूल,,,

मनोहर , पच्चीस वर्ष का मेहनती किसान है, सांवला मज़बूत दरमियाना कद ऊंचे चौड़े मज़बूत कंधों बाला आकर्षक युवक।
अभी पिछले साल ही उसकी शादी हुई है मालती के साथ।
मालती एक सीधी शादी गांव की मेहनती लड़की है , बहुत सुंदर तो नहीं किन्तु सांवली सलोनी आकर्षक अवश्य है।
माध्यम कद और पतली सी  मालती, जब लहरा कर चलती तो मनोहर का दिल जैसे उसकी पायल के घुंघरू की आवाज के साथ ताल मिला कर धड़कने लगता है।।
शादी के चार महीने बाद ही खूब सिंह ने दोनो बेटों को उनके खेत मकान बांट कर, खुद मुख्तयार कर दिया।
और एक हिस्सा अपने पास रख जिम्मेदारी सीमित कर ली।
उनकी पत्नी ने कहा भी की,अभी से कियूं????
किन्तु उन्होंने कहा कि इनके लिए यही सही है कि, अपना कमाएं अपना बचाएं।
मनोहर मेहनती तो था ही, मालती के साथ ने उसे भाग्यशाली भी बना दिया।
दोनो की मेहनत रंग लाई और एक ही दिन उनके घर बेटी राधा ओर ट्रेक्टर आ गया।
जमीन तो ज्यादा नही थी लेकिन उनकी मेहनत से तीस बीघा जमीन पचास बीघा वाले किसानों से ज्यादा अनाज छोड़ती थी।
और साथ ही बीस तीस बीघा मनोहर ठेके बटाई पर भी ले लेता था।
दो साल की अथक मेहनत से उनके घर मे सारी सुख सुबिधा सारी खुशियां आ गईं थीं।
सुबह ही मनोहर ने कुछ जमा कुछ कर्ज से ट्रैक्टर खरीदा था , ओर शाम को उनके घर एक पुत्री ने जन्म लिया , उसका नाम राधा रखा गया।
समय अच्छा था फसल सोना उगल रही थी।
मनोहर की मेहनत भी बरकार थी ।
सारे गांव में मनोहर और मालती मिशाल थे।
बेटी के जन्म के बाद मालती का समय खेत खलिहान में कुछ कम होने लगा। मनोहर भी ट्रेक्टर आने के वाद से ट्रेक्टर की कमाई के चक्कर मे खेतो में कुछ कम ध्यान देने लगा ।
नतीजा इस बार उनकी फसल पर दिखाई दिया।
मालती ने मनोहर को समझाया कि, ऐंसे काम नहीं चलेगा जी, ट्रेक्टर पर कोई आदमी रख लो और खेती पर खुद ध्यान दो।
खेती बिल्कुल बच्चों जैसी होती है , जैसे मां बाप के ध्यान न देने से बच्चे बिगड़ जाते हैं , वैसे ही मालिक के ध्यान न देने से खेती भी खराब हो जाती है।
मनोहर को बात जँच गई, उसने गांव में मज़दूरों से कहा कि अगर कोई ट्रेक्टर चलाना जानता हो और काम करने का इच्छुक हो तो उसके साथ काम करले।।
गांव का डालचंद ट्रेक्टर चलाया करता था , उसके पास खुद की जमीन न के बराबर थी उसने मनोहर के साथ काम करना शुरू कर दिया।
ऐंसे ही साल बीत गया मनोहर के घर बेटे का जन्म हुआ, डालचंद अपने घर से शराब की बोतल ले आया और बोला आओ मनोहर आज बेटे के जन्म की खुशी में दावत करते हैं।
मनोहर बोला , न भाई डालल्लू मैं नही पीता यार।
अरे यार यूं कोन रोज़ पीता है , आज तो  मौका है, फिर थोड़ी सी से क्या होता है।
लो पीओ हमारे साथ हम कोनसा रोज़ रोज़ कहते हैं।
और ये कह कर उसने गिलास मनोहर को थमा दिया।
और मनोहर न जाने कियूं उसे मना नही कर पाया।
किन्तु ये सिलसिला यहीं खत्म नहीं हुआ और आये दिन ऐंसी दावतें होने लगीं।
मालती दो छोटे बच्चों की देखरेख में मनोहर की ओर थोड़ा कम ध्यान देती थी, उधर मनोहर ये कमी शराब पीकर पूरी करने लगा।
डालचंद गांव में छिप कर शराब का अबैध धन्धा करता था और घर पर उसकी पत्नी भूरी भी शराब बेचने में मदद करती थी।
एक दिन शाम को  डालचंद शराब लेकर नही आया, तो मनोहर उसके घर चला गया।
डालचंद का घर गांव के बाहर एक छोर पर तालाब के किनारे था।
कच्चा छोटा सा लेकिन सुंदर।
मनोहर ने आवाज लगाई," डालु,,,,, ओ डाल्लू,,,!!
कौन है???? भूरी ने दरवाजा खोल कर पूछा,,,।
अर्रे मालिक आप आओ आओ अंदर आओ,,,,।
कह कर भूरी अंदर हो गई,,,
मनोहर भूरी को देख,, देखता ही रह गया,,, जैसा नाम बैसा ही रूप रंग।
भूरी तीस वर्ष की गोरी लंबी चंचल औरत है।
उसकी सुंदरता किसी को भी दीवाना करने के लिए पर्याप्त है।
क्या देख रहे हो मालिक,,?? भूरी ने अदा से मुस्कुरा कर पूछा।।
आयें,,,,,!!! कु,, कुछ। भी नहीं।।।।
डालचंद कहाँ है आया नही आज;;;?
ये तो दो तीन दिन के लिए बाहर गए हैं,, कोई काम था मालिक।??
न ना!! का,,,,,म!!
कोई काम नही था भाभी बस ऐंसे ही ,,,,।
अच्छा चलता हूं , मनोहर भूरी को एकटक देखते हुए अचकचा कर बोला।
मालिक कोई काम हो तो हमसे बता दो हम भी आपकी ही हैं कोई कमी नहीं छोड़ेंगे सेवा मे,,,,
कहते हुए भूरी अदा से आंख दबाकर उठी और बोतल उठा लाई।
लो मालिक कुछ जलपान तो कर लो चले जाना मैं कोनसा आपको खा जाऊँगी ,,,,
खा जाऊंगी पर जोर देते हुए भूरी ने शराब गिलास में उड़ेल दी।
लो मालिक आज मेरे हाथ से पीओ।
कह कर भूरी भेद भरी मुस्कान से मनोहर को देखने लगी।
मनोहर बैठ कर पीने लगा और भूरी उसके सामने नीचे जमीन पर बैठ गई।
भूरी का आँचल यँ ही सरका या किसी मतलब से सरकाया गया मनोहर समझ ना पाया किन्तु भूरी के योवन पुष्पों का इतने करीब से यूं दीदार उसे मदहोश करने लगा,,।
अब ये नशा  शराब का था या भूरी के जवान जिस्म का ,,, जो भी हो मनोहर के होश पूरी तरह उड़े हुए थे।
तभी भूरी ने पूछा मालिक,, मालकिन आपको अब समय नहीं दे पाती होंगी,
दो दो छोटे बच्चे हैं कहाँ समय मिलता होगा ,थक जाती होगी बेचारी।
बस रात को ही बच्चों को सुलाने के वाद,,,,,??
मनोहर भाबुक हो गया,, अरे नही भूरी उसे सच मे टाइम नहीं मिलता अब ,ना रात को ना दिन को,,, बस खुद में ही मस्त है।
मुझसे तो जैसे उसे अब कोई सरोकार ही नहीं है,,,
रात को हाथ लगाऊं तो कहती है ,, दो दो बच्चे हो गए अब ये सब,,,,,,,!!! अच्छा लगता है क्या।।।।
ये तो गलत है मालिक प्यास तो प्यास है ,, भूरी ने बडी अदा से कहा।
तो क्या करूँ भूरी ,,, कहाँ प्यास बुझाऊँ बस ये शराब ही एक सहारा है।।।
कहीं और हाथ लगा कर देख लो मालिक ,,, भूरी उसके सामने थोड़ा और झुकते हुए बोली,,,, शायद कोई और भी आपकी तरह प्यासा हो।
और न जाने जान कर या अनजाने मनोहर का हाथ भूरी के वक्ष से टकरा गया।
उन दोनों के बीच वो सब हो गया जो शायद नही होना चाहिए था। महीनों के प्यासे मनोहर को भूरी ने भरपूर शबाब का रस पिलाया।
मनोहर को डाल्लू के घर शराब और शबाब दोनो मिलने लगे।
मालती की लापरवाही और भूरी के रंग रूप ने मनोहर को भूरी का ही बना दिया।
मनोहर का पैसा भूरी के घर जाने लगा कुछ शराब के मूल्य के तौर पर। कुछ भूरी की ज़रूरतो और उसके प्यार के हक के नाम पर।
इधर खेती पर ध्यान न देने से फसलें चौपट होने लगीं,, उधर रोज ट्रेक्टर बिगड़ने लगा और मरम्मत के नाम पर अच्छी खासी रकम जाने लगी।
मनोहर के घर के हालात बिगड़ने लगे,,,, उधर डालचंद का पक्का और बड़ा मकान बन गया।
मालती जब तक समझ पाती बहुत देर हो चली थी।
अब तो उसके समझने के दिन गए थे।
आर्थिक कमज़ोरी से ट्रेक्टर की कर्ज़ की किस्तें भी जानी बन्द हो गईं,,, बैंक से नोटिस आने लगे।
तब भूरी और डालचंद्र ने उसे सुझाया की ट्रेक्टर बेच दो नहीं तो  बैंक ट्रेक्टर और ज़मीन दोनो ले लेगी।
और डालचंद ने मात्र दस हज़ार रुपए और कर्ज चुकाने के बदले ट्रेक्टर अपने नाम कर लिया।
उस समय भूरी ने बड़ी अदा से कहा था कि, मालिक ये ना समझना कि ट्रेक्टर पराया हो गया, हम आपके हैं हमारी हर चीज आपकी है।
जैसे आपकी हर चीज़ हमारी है।।कियूं है ना मालिक???।।।
और ये कहते हुए उसके चेहरे पर एक अर्थ पूर्ण  कुटिल!! मुस्कान थी ,,,,,,और वैसी ही मुस्कान के साथ डालचंद उसका समर्थन कर रहा था।
मालती रो रही थी खुद की लापरवाही को कोष रही थी,,, अपनी बर्बादी पर सर पीट रही थी कि कियूं वह मनोहर का ध्यान नहीं रख पाई कियूं वह पति पत्नी के स्वाभाविक संबंधों से उदासीन हो गई।
इधर मनोहर की शराब की आदत में उसके खेत भी बिकने लगे,,,,,,, मुश्किल से दस बीघा खेत बचे थे अब घर मे भुखमरी के हालात पैदा होने लगे,, ,,,
मनोहर उस खेत का भी सौदा करने की बात कर रहा था कि, मालती रोते हुए उसके पैरों में गिर गईं कहने लगी आपका दोष नही है ,,, मैं ही अपने घर गृहस्ती और आपके प्यार को संभाल नही पाई ,,,,।।
सब मेरी भूल है मुझे माफ़ कर दो।
अब से आप बस मेरे वही मनोहर बन जाओ वह रोती जाती थी और कहती जाती थी।
हम फिर से मेहनत करेंगे फिर से सुखी जीवन जिएंगे बस आप शराब छोड़ दो,,,
उस दिन मनोहर ने शराब नही पी थी वह भी थक गया था उधर भूरी भी अब इस से सीधे मुंह बात नहीं करती थी।
उसने रोती हुई मालती को उठा कर गले लगा लिया।
प्यार का दरिया पूरे वेग से बहा जिसके साथ दोनों के मन की प्यास बुझने के साथ ही सारे गीले शिकवे वह गए।
मनोहर अब शराब नही पीता , वो फिर से मेहनती किसान बन गया है।
मालती अब इसे बिल्कुल अकेला नही छोड़ती। रात को भी उसे पूर्ण प्यार का अहसास कराती है ।
मनोहर इसके साथ पूर्ण सन्तुष्ट और खुश है।
कभी कभी वह अपने यानी डालचंद के ट्रैक्टर पर मज़दूरी करता है जिसकी एवज में उसे अपना खेत जोतने का पैसा भी नही देना पड़ता और कुछ पैसे भी कमा लेता है।
मालती अपने बच्चों और खेतों की समान देखभाल करती है उसे डर है कि कहीं फिर कोई भूल ना हो ओर फिर कोई ना बिगड़ जाए।
भूरी अब मनोहर को देखती भी नही किन्तु मनोहर उस से भी खुश है।

वह कभी - कभी अकेला बैठ कर सोचता है कि उसकी शुरुआती भूल क्या थी।
शराब पीना या भूरी की ओर आकर्षण।
और वह पाता है कि वास्तविक भूल शराब पीना है ,
किउंकि न उसे शराब की लत होती और न वह भूरी के घर जाने की भूल करता।।

Friday, June 29, 2018

एक कॉफी का मग,,,,

एक लड़का एक लड़की एक दूजे को बहुत प्यार करते थे, अपने आप से ज्यादा प्यार का हर दम दम भरते थे। खोये रहते थे घंटों एक दूजे की आंखों में ,जब भी अकेले में मिलते थे। प्यार के मधुर क्षणों में जीवन की ,सदियों को जीते हुए ,सुख लेते हुए, प्रेमी युगल निज स्वप्न संसार मे सुखी थे। अपनी जीवन सांसों को एक दूजे से बांटने का वादा करते सिकड़ों बार एक दूजे के लिए जान देने को तैयार थे। एक दिन सर्दी की शाम कोहरे की घनी चादर ओढ़े खुद में लिपटी सिमटी सांय सांय चलती हवा से डरती । ख़ौफ़नाक लगती जान लेती ठंड जैसे खुद गर्माहट ढूंढ रही थी। ऐंसे में लड़के को एक मग गर्म कॉफी की हड़क बहुत शिद्दत से महसूस हुई। उसने देखा उसकी प्रेमिका अभी कॉफी का मग लेकर बैठी है। मग से निकलता भाप उसको बर्बस अपनी ओर खींच रही थी। लड़के को पार करनी थी बस 3 फीट ऊंची बाउंड्री जो उन दोनो के घरो के बीच थी। और वह अपनी धुन में या कहो कि इस डरावनी कंपावनी हड्डियों को हारमोनियम बनाती सर्दी में एक आवश्यक्ता के लिए, उस दीवार को पार कर गया। उसने बहुत अनुनय वहुत आत्मीयता बहुत विस्वास से कहा, "जानू क्या मुझे अपने मग से एक घूंट काफ़ी दोगी"?? नो,,,, लड़की ने बिना एक पल विचारने में गंवाए सीधा सपाट उत्तर दिया। कियूं?? प्रेमी ने एक चिर परिचित सवाल दागा। दूध खत्म है , और इस जानलेवा सर्दी में जिंदा रहने के लिए मुझे बस इस गर्म काफी का ही सहारा है। क्या !!और जो तुम मुझे कहती थी कि जान माँगलेना कभी यूँही झूठे आजमाने को,,,,,? हाँ तो मांग लेना जान मेने कब मन किया। एक कॉफी का सिप तो दे नही रही ,,, तुम जान मांग लो कमसे कम ठंड से तड़फ कर मरने से तो अच्छा होगा। और मैं जो ठंड से तड़फ कर मर रहा हूँ। मुझे नही पता, मैं नही दूंगी मतलब नहीं दूंगी। क्या इशी को प्यार कहते हैं? पता नहीं। क्या इस तुच्छ कॉफी मग के लिए तुम अपना वर्षो का प्यार भुला दोगी? शायद , तुम्हे भी तो समझना चाहिए कब से काफी के लिए अड़े हो, तुम्हे मेरी तनिक परवाह नहीं। इस सर्दी से मुझे चाहे कुछ हो जाये , तुम्हे बस काफी पीनी है। जाओ तुम यहाँ से झूंठा प्यार ह तुम्हारा सभी लड़के ऐंसे ही होते हैं उन्हहः उन्हहः सूं ऊँ ऊँ। अब ऐंसा क्या मांग लिया मैंने जो रोना भी शुरू हो गया। तुम लड़किओं का भी न बस हर बात पर रोना ,,,, तुम्ही कोनसा प्यार निभा रही हो मेरी तनिक भी परवाह है तुम्हे। मैं रो नही रही हूँ, दुखी हूं तुम्हारी बातों से और हाँ नही है परवाह मुझे , और कियूं हो तुम्ही कोनसा मेरी परवाह करते हो । तो क्या मैं ये समझूँ की हमारा साथ यहीं तक था ? तुम्हे जो समझना है समझो जाओ यहां से मुझे नही करनी तुमसे कोई बात, सेल्फिश कहीं के। और तुम क्या हो? मुझे सेल्फिश कह रही हो,,, अरे ये क्या हो गया मेरे कारण बेजान भावना रहित तुच्छ कॉफी मग में जैसे आत्मा -प्राण का संचार हुआ हो। वह कांप उठा , वाह रे इंसान क्या मोहब्बत है तेरी। जुड़ने में जतन लगते हैं जुग लगते हैं,,, और टूटने में,,, पल और कारण तुच्छ निर्जीव वस्तुएँ। कभी टीवी कभी मोबाइल कभी लाइट कभी कोई और आदत और आज एक तुच्छ काफी मग। तुम्हे तो सिर्फ बहाना चाहिए,, लेकिन नही आज ये काफी मग एक रिश्ते के अंतिम अंजाम का कारण नही बनेगा। मग दुख से चक्कर खाकर गिर पड़ा। टूट कर चकनाचूर हो गया , कुर्बान कर दिया उसने एक रिश्ते को बचाने के लिए अपना जीवन। और एक गंभीर आवाज खनन्न के साथ जैसे कह गया हो, कि ओ मानव हम निर्जीव तुच्छ चीजों के लिए अपने रिश्तों को तोड़ना बैंड कर अपने भावों को यूं मत मार यूं भावना रहित मत बन। और इन दोनों ने जैसे उसकी मूक आवाज को सुन समझ लिया। दोनो गले लगकर भीगे स्वरों में,मुझे माफ़ करदो मुझे ऐंसा नही करना चाहिए था।कह कर मुस्कुराते हुए कॉफी पीने के लिए कॉफी शॉप चल दिये। और मग अपने सारे टुकड़ों से उन्हें एक होते देख मुस्कुरा रहा है कि उसका बलिदान व्यर्थ नही गया।

हमारी बद्रीनाथ यात्रा।

आज दिनांक,19 मई 2018 , मैं और मेरे 4 मित्र बद्रीनाथ यात्रा पर निकले हैं।
उमंगित ,उल्लासित, भक्तिरस में डूबे।
सुबह 4 बजे है, मैं , योगेश, मनोज, प्रियांक, और रजत, हमने काशीपुर , उत्तराखंड से जो कि कुमाऊं और गढ़वाल का प्रवेश द्वार है।
से अपनी आल्टो कार से  बद्रीविशाल की हैघिस के साथ हमने अपनी यात्रा प्रारंभ की।
40 मिनट में हम रामनगर पहुंच गए, जहां से शिवालिक पर्वत श्रंखला शुरू होती है।
रामनगर व्यापार का नगर है, और जिम कर्वेट पार्क का केन्द्रविन्दु।
जिन कार्बेट को नेशनल टाइगर रिजर्व भी कहा जाता है।
हर भर सुंदर नगर, जहां से सात आठ किमी चलने पर कोशी नदी की बीच धारा में माता गर्जिया देवी का प्राचीनतम मंदिर है।
जो एक पर्वत खंड की बहुत छोटी सी चोटी पर स्थापित है। माता गर्जिया के दर्शन को बर्ष भर श्रद्धालु भारी संख्या में आते रहते हैं।
वहाँ से आगे हमे सड़क के एक ओर शिवालिक पर्वत एवं दूसरी  ओर गहरी कोसी नदी के बीच से गुजरना था , ऐंसा लग रहा था कि सड़क नही एक बड़ा मोटा अजगर लेटा है और हम उसके ऊपर चल रहे हैं।
ऐंसे ही टेढ़े मेढ़े रास्ते से चलते हम मोहान पहुंच गए।
वहां हमने कुछ जलपान किया, और बढ़ गए अपनी धर्म यात्रा पर।
आगे, सुराल, टोटाम ,मझोड़ होते हुए हम भतरोज खान पहुंचे, जहां से एक रास्ता वाई ओर रानीखेत को जाता है।
वहाँ से सीधे चलकर हम भिकिसेन जेनल मासी होते हुए चौखुटिया पहुंचे।
चौखुटिया अच्छा बाजार है और प्रकीर्तिक द्रश्य से शोभित ।
उस से थोड़ा आगे  एक रास्ता द्वाराहाट को जाता है जहां से दुनागिरी माता के मंदिर को जाते हैं।
आगे पांडुवाखाल से निकल कर हम , ग़ैरसैंड पहुंचे यहां पहाड़ो के बीच सुंदर समतल मैदान है।
गैर मतलब गहरा एव सेड मतलब समतल।
उसके आगे कर्ण प्रयाग है जो पांच प्रयाग में एक है।
कर्ण प्रयाग एक प्राचीन तीर्थस्थल है, जहां पिंडर जिसे कर्ण गंगा भी कहते हैं , और अलकनंदा नदियों का पवित्र संगम है।
यहां पर कहते  हैं कि कर्ण ने भगवान शिव और माता उमा भगवती की तपस्या की थी जिन्होंने प्रकट होकर कर्ण को वरदान दिया था।
यहां पर उमा मंदिर और कर्ण मंदिर दर्शनीय स्थल हैं।
एक किवदंती के अनुसार श्रीक्रष्ण ने एक पर्वत  की नोक(करणशीला)जो जल के बाहर निकली हुई थी उसी पर कर्ण का अंतिम संस्कार किया था।
वहाँ से थोड़ा आगे हमने नदी के किनारे भोजन किया। थोड़ा विश्राम कर पुनः आगे यात्रा प्रारंभ की।
उसके आगे हम नंदप्रयाग पहुंचे जहां गंगा की 12 सहायक नादियीं में एक नंदाकिनी और अलखनन्दा का पावन संगम है।नंदाकिनी का एक प्राचीन नाम कंदसू भी है।
यहीं पुराण कंडव हृषी का आश्रम था, यहीं पर शकुंतला के गर्भ से भारत के प्रतापी सम्राट भारत का जन्म हुआ था।
कर्ण प्रयाग से 17 किमी आगे प्राचीन मंदिरों का समूह है जिसे आदि बद्री कहा जाता है। ये पांच बद्री में एक है।
देव भूमि में पंचकेदार पंच बद्री और पंच प्रयाग हैं।
आदि बद्री के बारे में कहा जाता है कि पांडवो बे अपने स्वर्गारोहण के मार्ग में इन मन्दिरो का निर्माण स्वम् किया था। यहां पर कभी 16 मंदिर थे अभी 14 मन्द्रिर ठीक स्थिति में हैं।
सारे मंदिर पत्थरो के एक विशेष शैली में बनाये गये हैं।
मुख्य मंदिर श्री विष्णु भगवान का है और इसके ठीक द्वार पर उनके वाहन गरुण विराजमान हैं।
बाकी में शिव पार्वती हनुमान गणेश इत्यादि के विग्रह हैं। मन्दिरसमूह बहुत आकर्षक और दर्शनीय है।
उसके आगे चमोली जो एक जिला है। वहां से एक रास्ता गोपेश्वर होकर श्री केदारनाथ धाम को जाता है।
केदार बात धाम को एक रास्ता कर्ण प्रयाग से रुद्र प्रयाग होकर भी जाता है।
रुद्र प्रयाग भी वहुत प्रसिद्ध स्थल है। यहां पर श्री केदारनाथ से आने वाली मंदाकिनी और श्री बद्रीनाथ धाम से आने बाली अलखनंदा नदियों का पावन संगम है।
इसही रुद्रप्रयाग में नारद जी ने कठिन तपस्या की थी यहीं उन्हें महती नामक वीणा प्राप्त हुई थी। रुद्रप्रयाग में रुद्रेश्वर महादेव चामुंडा देवी के मंदिर हैं। यहाँ से ऋर्षिकेश की दूरी 139 किमी है।
उस से आगे चल कर हम जोशी मठ पहुंचे इसे ज्योतिर्मठ या ज्योतिष मठ भी कहा जाता है।
ये कतुरी राज्यवंश की राजधानी था इस का प्राचीन नाम कार्तिकेयपुर भी बताया जाता है।
यहीं पर 8वी शताव्दी में श्री आदि शंकराचार्य ने नरसिंग भगवान के मंदिर की स्थापना की , जो कि विष्णुजी के नरसिंग रूप को समर्पित है।
यहां नरसिंह भगवान को दूधाधारी नरसिंग भी कहा जाता है।
कहते हैं नर्सिंग  भगवान की वायी कलाई प्रतिदिन क्षीर्ण होती जा रही है।
जिसदिन उनका हाथ गिर जाएगा उसी दिन , जय और विजय पर्वत गिर कर बद्रीनाथ धाम का रास्ता बंद कर देंगे।
जोशी मठ से 13 किमी आगे विष्णु प्रयाग है।यहां पर अलखनंदा और विष्णुगंगा(धौलीगंगा) का पवित्र संगम है।यहां पर अलखनंदा में 5 और विष्णु गंगा  5 कुंड बने हैं।
इसी के दोनों ओर विसनुजी के द्वारपाल जय और विजय पर्वत रूप में विराजित हैं।
कहते हैं यही पर नर और नारायण ने तप किया था।
उसके आगे हनुमान चट्टी में श्री हनुमान जी के पावन दर्शन होते हैं। हनुमान चट्टी मुख्यमार्ग पर ही स्थित है।
यहां पहुंचते पहुंचते हमे शाम हो गई।
वहां से थोड़ा ही आगे थी हमारी मंजिल श्री बद्रीनाथ धाम।
शाम 7 वजे हम बद्रीनाथ पहुंच गए मन अपार प्रसन्न और यात्रा की सारी थकावट गायब।
वहां हमने श्रीमस्तनाथ जी की धर्मशाला में ठहरने की व्यवस्था की। और चले गए श्रीबद्रीनाथ जी की संध्या आरती में दर्शन करने।
हमने दो बार श्री बद्रीनाथ के दर्शन किये। और उनकी दया को महसूस किया।
बद्रीनाथ धाम में श्री विष्णुजी का चतुर्भुजी रूप विग्रह शालिग्राम शिला से निर्मित है। उनका सरंगार देखते ही बनता है।
कहते हैं यहां पर शिव का ही स्थान था, एक दिन विष्णु जी अपने ये तपस्थली खोजने निकले, उन्हें ये स्थान भा गया।
विष्णु जी एक वाल रूप लेकर क्रन्दन करने लगे रोने लगे। माता पार्वती का ह्रदय उनके ऋण से द्रवित हो गया । और उन्होंने पूछ लिया कि अपको क्या चाहिये वस्तु विष्णु जी ने ये स्थान उनसे अपने लिए मांग लिया।
जहाँ विष्णु जी ने अपने चरण रखे थे वहां पर उसके चिन्ह बन गए, इस स्थान की चारने पादुका कहते हैं।
वहीं पर शेषनाग का चिन्ह भी है।
बद्रीनाथ नाम पड़ने की कथा इस प्रकार कही जाती गई कि,
जब श्री हरि गहन तपस्या में लीन हो गए तो वहां पर भारी हिमपात होने लग गया।
माता लक्ष्मी ने ये देखा तो एक बेर (बदरी)वृक्ष बन कर उनकी छाया बन गईं।
जब विष्णु जी तप से जागे तसभ उन्होंने म लक्ष्मी से कहा कि, आज से तुम बद्री और मैं बद्री का नाथ हुआ अब ये स्थान बद्रीनाथ नाम से जाना जाएगा।
जहां विष्नु जी ने तप किया था वह स्थान अब तप्तकुंड कहा जाता है जहां पर हमेशा गर्म जल उपलब्ध रहता है।
बद्रीनाथ मंदिर से श्री नीलकंठ पर्वत के दर्शन होते हैं जिसपर बर्फ की अनेक सरंखलाये शेसनाग का स्पस्ट रूप बनाती हैं।
हमने तो वहाँ पर पर्वत पर ओम की भी आकृति स्पस्ट देखी।
अगले दिन हम माना गांव गए जो भारत तिब्बत सीमा पर भारत का अंतिम गांव है।
ये स्थान बद्रीनाथ से 3 किमी आगे है।
वहां पर गणेश गुफा व्यास गुफा हैं यहां पर व्यासदेव जी ने महाभारत की रचना की थी।
जिसको कलमबद्ध श्री गणेश जी ने किया था।
यहाँ पर सरस्वती नदी को स्पस्ट देखा जा सकता है।
यही एक बड़ी चट्टान से सरस्वती के ऊपर पूल बना हुआ है जिसे भीमपुल कहा जाता है।
कहते हैं जब पांडव यहाँ आये थे तब नदी पार करने के लिए भीम ने ये पत्थर रखा था।
यहां पर सरस्वती का एक मंदिर भी है।
कहते हैं माणा नाम शिव भक्त मणिभद्रवीर के नाम पर पड़ा है।
जिन्हीने यह वरदान मंगा था कि यहाँ उसने बाला कभी दरिद्र ना रहे।
यहाँ से 4 -5 किमी आगे वसुधारा नामक स्थान है जहां पर वसुओं ने तप किया था।
कहते हैं इस जल के छींटे पड़ने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
बोलो जय श्री बद्रीनाथ।

Thursday, June 28, 2018

ईस्वर का न्याय।

फिलीपींस के एक शहर सेबु में एक छीटे परिवार रहता था।
बांस और लकड़ी के बने छोटे से घर में अपनी काम आय में भी सुखी प्रसन्न।
परिवार में , श्री अल्बर्ट उनकी पत्नी नेनेथ तथा हुनका 8 वर्ष का बेटा ऐरिल।
समय अच्छा बीत रहा था। ऐरिल का 11 जन्मदिन दो दिन पहले ही मनाया गया था , लेकिन नेनेथ को कहा पता था कि उसकी खुशी के आखिरी पल थे। श्री अल्बर्ट को सुबह सुबह ही सीने में दर्द हुआ नेनेथ आनन -फानन में उनको अस्पताल  लेकर गईं। जहां पता लगा कि उनको मेजर हार्ट अटेक आया है।
शाम तक नेनेथ कि दुनिया उजङ चुकी थी।
अल्बर्ट का वो अटेक उन्हें अपने साथ  ही ले गया।
पीछे रह गए रोते विलखते नेनेथ और ऐरिल।
नेनेथ ने अपने बेटे को सम्भालने का निश्चय किया और जुट गई अपने काम में।
ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी तो एक बड़े घर मे काम वाली बाई बन गई।
उस समय उनकी उम्र कोई 33 साल ही थी। इस उम्र में फिलीप में लोग दूसरी , तीसरी शादी आराम से कर लेते हैं।
किन्तु नेनेथ ने अपने बेटे के लिए अकेले रहने का निश्चय कर लिया।
उनकी लगन एयर ईमानदारी से उनके मालिक लीग भी बहुत खुश थे।
समय बीत ता गया , नेनेथ ने अपनी बचत से अपना मकान बहुत सुंदर ढंग से बना लिया उसकी दूसरी मंजिल बनाकर वह बहुत किश थी कि उसमे इसकी बहु आएगी ओर नेनेथ काम से छुट्टी लेकर पोते पोती खिलाएगी।
ऐरिल 26 साल का है ओर एक कंपनी में काम करता है। वही उसकी मुलाकात रेसेप्सनिस्ट अन्नाबेल से होती है। धेरे धेरे दोनो करीब आजाते हैं। एनाबेल एक नाजुक सी पतली सी गोरी लड़की है। ऐरिल उसपर फिदा है।
एक दिन ऐरिल नेनेथ को बता देता है।
नेनेथ ने खुशी खुशी दोनो की शादी करा दी।
समय तेज़ी से गुज़रा अन्नाबेल 3 बच्चों के मा बन गईं नेनेथ बच्चों के साथ बहुत खुश थी। हालांकि अन्नाबेल शुरू से ही नेनेथ के साथ दुर्व्यभार करती थी किन्तु अब उसकी ज्यादतियां बढ़ती जा रही थीं।
एक दिन उसने झगड़ा करके साफ कह दिया कि वह नेनेथ के साथ नही रहेगी।
और ऐरिल भी कुछ नही कर पाया , नेनेथ अपने ही सपनो के घर से निकल दी गई।
नेनेथ ने घर से 400 किलोमीटर दूर मनिला में नौकरी कर ली।
कुछ दिन अन्नाबेल ओर ऐरिल खुशी से रहे,किन्तु जल्दी ही ऐरिल को अपने किये पर पश्चताप होने लगा।
अन्नाबेल ने एक प्रेमी बना लिया और ऐरिल को परेशान करने लगी।
एक दिन वह बच्चों को उसकी माँ के घर छोड़कर अपने नए प्रेमी के साथ फरार हो गई।
आज नेनेथ मनिला में अपनी नोकरी में खुश है , गहालांकि उसे सुबह 6 बजे से रात 11 बजे तक व्यस्त रहना पड़ता है , लेकिन यह व्यस्तता ही उसकी शांति पूर्ण जीवन की कुंजी है।
ऐरिल आज बहुत शर्मिंदा है, वह अपनी मां के पास भी नही जाता । 38 कि उम्र में ही 50 का दिखने लगा है।
नेनेथ कभी कभी कुछ कपड़े पैसे मिठाई , अपने पोते पोतियों को भेज देती।
उसे इसमे भी बहुत खुशी होती है नेनेथ को।
कहानी रियल है सारे पात्र अभी हैं।
नेनेथ जी से मेरी बात होती रहती है। वह अभी 68 साल की हैं।
कहानी का तात्पर्य ये है कि वृद्ध भारत मे ही नही दुनिया भर में एक ही परेशानी से जूझ रहे हैं।