चोर बाजार
यह घटना साल 1988 की है, रहमत अली दिल्ली के बड़े व्यापारी थे। एक दिन रहमत अली अपने स्कूटर से किसी काम से दिल्ली के चोर बाजार में गए थे, उन्होंने अपना स्कूटर एक दुकान के सामने खड़ा किया और दुकान की सीढ़ियां चढ़ने लगे। अभी रहमत मियाँ आधी दूरी तक ही पहुँचे थे कि एक आदमी उनके स्कूटर को घसीटकर ले जाने लगा जिसका हैंडल लॉक लगाना रहमत अली भूल गए थे।
"अरे क्या करता है? ये मेरी गाड़ी है, छोड़ उसे चोर कहीं के।" कहते हुए रहमत अली उस चोर के पीछे भागे, वह चोर बहुत तेजी से उनकी स्कूटर घसीटता हुआ जा रहा था और अचानक वह एक कबाड़ी की दुकान के सामने स्कूटर पटककर उसे 'दो' उंगली दिखाकर वहाँ से भाग गया।
रहमत अली हाँफते-हाँफते अपने स्कूटर के पास पहुँचे और उसे उठाने लगे तो एक भारी-भरकम हाथ ने उनका हाथ पकड़ लिया।
"अमाँ क्या करते हो? इस गाड़ी को हाथ केसे लगा रहे हो?" रहमत अली के कानों में एक भारी आवाज पड़ी तो उन्होंने गर्दन उठाकर ऊपर देखा, उनके सामने एक तगड़ा आदमी खड़ा था जिसने कुर्ता और तहमद पहना हुआ था।
"ये गाड़ी हमारी है जनाब, वह आदमी हमारी गाड़ी दुकान के सामने से घसीटकर यहाँ फेंक गया है तो बस हम अपनी गाड़ी ले रहे हैं। देखिये इसकी चाबी हमारे पास है और कागजात भी।" रहमत मियाँ उस आदमी की डील-डौल देखकर थोड़े नम्र स्वर में बोले।
"अमाँ रही होगी गाड़ी आपकी लेकिन अब ये हमारी है, वह आदमी इसे पूरे दो हजार में हमें बेचकर गया है।" वह आदमी फिर उसी कड़क आवाज में बोला और रहमत अली का हाथ झटक दिया।
रहमत अली को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें, वह माथे पर बल डाले कुछ सोच रहे थे।
"देखो मियाँ! ये चोर बाजार है और यहाँ धंधा ऐसे ही चलता है। अगर तुम पुलिस के पास जाने की सोच रहे हो तो बस अपना टेम खराब करोगे क्योंकि पहले तो पुलिस यहाँ आती नहीं है और अगर आयी भी तो जब तक पुलिस यहाँ आयेगी ये गाड़ी खत्म हो चुकी होगी और पुलिस को इसका एक पुर्जा तक नहीं मिलेगा। अच्छा ये रहेगा कि आप तीन हजार रुपये दो और ये गाड़ी हमसे खरीद लो।" वह आदमी इस बार थोड़ा नर्म आवाज में बोला।
"लेकिन मैं भला अपनी ही गाड़ी क्यों खरीदूँ और वह भी तीन हजार रुपयों में यह गाड़ी ढाई हजार से ज्यादा में कोई भी नहीं लेगा, बहुत पुरानी गाड़ी है ये तो।" रहमत अली झुंझलाते हुए बोले।
"आपकी मर्जी मियाँ, मत लो लेकिन अब यहाँ से जाओ और धंधे के टाइम मेरा दिमाग खराब मत करो।" वह आदमी फिर झिड़की देते हुए बोला।
रहमत अली देख रहे थे कि धीरे-धीरे चोर बाजार के बाकी कबाड़ी भी इनके चारों ओर इकठे हो गए थे और रहमत अली को घूर रहे थे। रहमत अली समझ गए थे कि ये अंधेर नगरी है और यहाँ उनकी कोई भी नहीं सुनेगा।
रहमत अली धीमे से मुस्कुराए और बोले, "अच्छा मियाँ पच्चीस सौ ले लो, हमारा तो बड़ा नुकसान ही गया आज अपनी ही गाड़ी दोबारा खरीदनी पड़ रही है।
"चलो सत्ताईस सौ निकालो।" वह आदमी जैसे फाइनल दाम बोला और दुकाब के अंदर जाने लगा।
"ठीक है मियाँ सत्ताईस ही ले लो, अब तो मैं अपनी गाड़ी ले लूँ?" रहमत अली जैसे हथियार डालते हुए बोले।
"ठीक है ले लो और सत्ताईस सौ रुपये ढीले करो।" वह आदमी हाथ फैलाते हुए बोला।
"अभी देता हूँ।" कहकर रहमत अली ने स्कूटर सीधा करके खड़ा किया और उसकी डिक्की खोल कर उसमें से सौ के नोट की दो गड्डी निकाली, अपने पैसे सही सलामत देखकर रहमत अली के चेहरे पर मुस्कान थी उन्होंने एक गड्डी में से पैसे गिने और कबाड़ी के हाथ पर रखकर स्कूटर स्टार्ट कर ली।
कबाड़ी और दूर खड़े चोर के चेहरे देखने लायक थे।
नृपेंद्र शर्मा
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
No comments:
Post a Comment