Thursday, March 9, 2023

फ़रेब

फ़रेब


"आज फिर मालकिन रात को देर से आएंगी क्या साहिब?" कमला ने डिनर के बाद बर्तन उठाकर सिंक में रखते हुए बायीं आँख दबाकर होंठ का कोना दाँत से काटते हुए मुस्कुराकर पूछा.

उसकी इस अदा पर 'जितेंद्र' कुर्सी से उठा और उसे पीछे से बाहों में भरते हुए धीरे से उसके कान में बोला, "हाँ 'जानेमन' उसके बैंक में क्लोजिंग चल रही है, तो कुछ दिन देर रात तक ही लौटेगी. बहुत हिसाब-किताब करना होता है ना बैंक वालों को. और मैनेजर पर सबसे ज्यादा जिम्मेदारी होती है."

"अच्छा है साहिब, फिर हम भी कुछ हिसाब-किताब कर लेंगे. वैसे आप हिसाब बहुत अच्छा करते हैं साहिब, बस किसी दिन मेम साहब पूरी रात बाहर रहें तो मैं आपसे ब्याज भी वसूल कर लूँ." कमला ने जितेंद की ओर घूमते हुए कहा और उसके ऐसा करने से जितेंद्र के होंठ कमला के होंठों के सामने आ गए, जिन्हें कमला ने थोड़ा सा और आगे होकर अपने होंठों से चिपका लिया.

जितेंद की साँसे तेज़ होने लगी थीं, वह अब कमला से पूरी तरह चिपकने लगा था तभी कमला एक झटके से घूमकर जितेंद्र से अलग हो गयी और बोली, "छोड़िए साहब हमें, देखते नहीं  कितना काम पड़ा है. और फिर मुझे घर जाकर अपने मरद को भी हिसाब देना होता है. आपके साथ हिसाब करने लगी तो फिर मेरे मरद के हिसाब में कमी हो जाएगी और वह मुझ पर शक करेगा. ऐसे भी पिछली बार जब मैं आपके साथ चिपककर गयी थी तो वह सवाल कर रहा था कि ये जमीन में इतनी नमी क्यों है. वो तो मैंने किसी तरह उसे यह कहकर संभाल लिया कि बहुत दिन से कुछ हुआ नहीं तो आज तुम्हारे हाथ लगाने से ज्यादा ही जोश आ गया है, और वो मान गया  नहीं तो मेरा भेद खुल ही जाना था उस दिन." 

  जितेंद्र जोकि अब पूरी तरह मूड में आ चुका था कमला को ऐसे दूर जाते देखकर झटका खा गया. वह अब किसी भी हालत में कमला का साथ चाहता था तो वह आगे बढ़कर फिर से कमला को बाहों में भरते हुए बोला, "अरे कमला क्या तुम्हें मेरा प्यार कम लगता है, किसी को कुछ नहीं पता चलेगा बस तुम मुझसे दूर मत जाओ. कमला मैं सच में तुम्हें चाहता हूँ. तुम्हारा साथ मुझे बहुत अच्छा लगता है. तुम जैसे मुझे प्यार करती हो ना, ऐसा तो कभी तुम्हारी मेम साहब भी नहीं करती. सच कहूँ तो 'निर्मला' को प्यार करना आता ही नहीं है." जितेंद्र ने कमला को बाहों में भरकर उसके होंठो की तरफ होंठ ले जाते हुए कहा.

"नहीं साहब, आप झूठ बोलते हैं. आपको मुझसे कोई प्यार-व्यार नहीं है, आप तो बस अपनी जरूरत पूरी करते हो, मैं ही आपसे प्रेम करने लगी थी साहब. लेकिन मैं अब समझ गयी हूँ कि आप बस मेरे साथ फ़रेब करते हो.  आपको मेरे जिस्म से ज्यादा कुछ नहीं चाहिए, आपका प्रेम बस इतना सा ही है. अभी मैं आपके साथ बिस्तर पर चली जाऊँगी आपका काम हो जाएगा और आप मुझे भूल जाओगे बस." कमला फिर अपने आप को छुड़ाते हुए बोली.

"नहीं नहीं! ऐसा नहीं है कमला मैं तुमसे सच में प्यार करता हूँ. अच्छा बताओ मेरा प्यार सच्चा है इसे साबित करने के लिए मैं तुम्हें क्या दूँ?" जितेंद्र ने अब कमला को बाहों में उठा लिया था. वासना का जोश अब जितेंद्र के संभालने से बाहर हो रहा था.

जितेंद्र ने कमला को बिस्तर पर बिठाया और उसके सामने खड़े होकर अपनी शर्ट के बटन खोलते हुए बोला, "बताओ ना कमला क्या चाहिए तुम्हें?"

"साहिब आप सच कह रहे हैं? सच में आप मुझे प्रेम करते हैं?" कमला ने बिस्तर पर लेटकर अपने पैर से जितेंद्र के सीने के बालों को सहलाकर होंठ काटते हुए पूछा.

"हाँ सच कमला तुम एक बार माँगकर तो देखो, जो कहोगी मैं तुम्हें दे दूँगा." जितेंद्र ने आगे बढ़ते हुए कहा. उसकी आवाज वासना में बहक रही थी. कमला अपनी अदाओं से उसके जिस्म की आग को और बल दे रही थी.

"क्या आपको नहीं लगता कि ऐसे छुप-छुप कर मिलने से हमारे प्यार की अच्छे से पूर्ति भी नहीं हो पाती और हमारे पकड़े जाने का डर रहता है सो अलग. अब मान लो अभी हम प्यार शुरू ही कर रहे हैं और आपकी पत्नी आ जाये तब? या फिर मेरा मरद ही मुझे ढूंढता हुआ आ जाये तब? क्या ऐसे अच्छे से प्यार हो सकता है?" कमला ने एक-एक शब्द सोचकर बोला.

"नहीं हो सकता कमला तभी तो कह रहा हूँ कि आओ हम जल्दी से प्यार कर लें उसके बाद तुम आराम से काम खत्म करके अपने घर चली जाना." जितेंद्र ने कमला के ऊपर झुकते हुए कहा.

"कुछ ऐसा नहीं हो सकता साहब की हम लोग जब मन करे प्यार करें और हमें रोकने-टोकने वाला कोई ना हो?" कमला ने जितेंद्र के गले में बाहें डालकर उसकी आँखों में देखते हुए बहुत मीठे शब्दों में कहा.

"कैसे हो सकता है बताओ कमला? बताओ मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ." जितेंद्र ने अपनी उंगलियाँ कमला के ब्लाउज के बटनों में उलझाते हुए पूछा.

"आप अपना 'बोरीवली' वाला वन-रूम सेट मेरे नाम कर दो साहिब. फिर जब आपका मन करे दिन या रात कभी भी हम उस फ़्लैट में आराम से प्यार करेंगे वहाँ कोई हमें डिस्टर्ब नहीं करेगा साहिब.

"लेकिन तुम्हारा मरद?" जितेंद्र ने कमला का कंधा सहलाते हुए कहा.

"उसकी फिक्र आप ना करो साहिब. ऐसे तो वो बारह-बारह घण्टे गार्ड की नोकरी करता है साहिब कभी दिन कभी रात, हमारे पास बहुत समय होगा अकेले में मिलने का जब वह काम पर होगा. और फिर मैं उसे बतायेगी ही नहीं कि फ्लैट आपने अपुन के नाम पर किया है. मैं उसे कहेगी की मालिक ने तरस खाकर ये फ्लैट हमें रहने के वास्ते दिया है, इसलिए साहब जब चाहे यहाँ आ सकता है बस." कमला ने जितेंद्र की पीठ पर हाथ चलाते हुए कहा.

"लेकिन कमला उसके लिए फ्लैट नाम करने की क्या ज़रूरत है? उसमें तो तुम ऐसे भी जाकर रह सकती हो?" जितेंद्र ने एक प्रश्न पूछा तभी कमला ने आगे बढ़कर उसके होंठों को अपने होंठो में दबकर एक लंबा सा चुम्बन किया और बोली, "तुम सोचता बहुत है साहिब, अभी तो कह रहे थे कि अपना प्यार साबित करने के लिए कुछ भी कर सकता है और अब कुछ पेपर पर तनिक सा पेन घिसने में तुम्हारे पेन का इंक खत्म होने लगा. फिर तुम हमारे प्यार की कहानी कैसे लिखेगा साहिब?" कमला ने जितेंद्र की आँखों में मुस्कुराते हुए देखा और अपने हाथ उसकी पेंट की ओर बढ़ा दिए.

उसकी इस हरकत पर जितेंद्र के मुँह से हल्की 'आह!' निकल गयी और आनन्द से उसकी आँखें बंद होने लगीं.

"आपका पेन तो एकदम तैयार है साहिब, तनिक इन पेपरों पर चलाकर देखिए तो क्या ये हमारे प्रेम की कहानी लिख पायेगा." कमला ने तकिए के नीचे से कुछ पेपर निकालकर जितेंद्र के सामने रखे और उसके हाथ में एक कलम देकर बोली "यहाँ दस्तखत करिए साहिब."ऐसा कहने के साथ ही कमला के हाथ जितेन्द्र की पेंट में हरकत करने लगे उससे जितेंद्र की आँखे बंद हो गयीं और वह बोला, "लेकिन कमला...?"

"ओहो!! आप कितना सोचते हो साहिब! बस जरा सा पेन ही तो चलाना है, फिर जी भरकर हम अपने प्यार की कहानी लिखेंगे. आप सोचिए मत बस दस्तख़त कीजिये तब तक मैं चेक करती हूँ क्या आपकी कलम मेरे प्रेम की किताब पर कोई कहानी लिख भी पाएगी या फिर...?" कहकर कमला ने अपने होंठ 'उधर' बढ़ा दिए.

अब जितेंद्र आगे कुछ नहीं कह पाया और उसने काँपती उंगलियों से उन पेपर्स पर साइन कर दिए. कमला को साइन होने के बाद जैसे जितेंद्र के अंदर उमड़ रहे तूफान को शांत करने की बहुत जल्दी थी. उसने अपनी हरकतों को और बढ़ा दिया और तीन-चार मिनट में ही जितेंद्र निढाल होकर बिस्तर पर लुढ़क गया.

कमला ने उठकर अपना मुँह साफ किया और अपने कपड़े ठीक करती हुई गेट बंद करके फ्लैट से बाहर निकल आयी.

"हो गया काम?" नीचे आते ही चौकीदार की वर्दी पहने खंबे की आड़ में खड़े एक व्यक्ति ने उससे पूछा.

जवाब में कमला ने मुस्कुराते हुए पेपर उसके हाथ में रख दिये. 

"वाह मेरी जान, खूब फ़रेब में फँसाया तुमने इस रईस को." वह चौकीदार कमला को गले लगाते हुए खुश होकर बोला.

"फ़रेब तो इसने किया था मेरे साथ, मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी कि अपने मरद के अलावा किसी को हाथ भी लगाने दूँगी लेकिन उस दिन पार्टी के बाद इस कमीने ने मुझे जूस में ना जाने क्या मिलाकर पिलाया कि मैं इसकी बाहों में गिर पड़ी और उस मदहोशी की हालत में इसकी किसी भी हरकत का विरोध ना कर सकी. बस आज मैंने भी वही किया और ये भी मदहोशी में मेरी किसी भी माँग का विरोध नहीं कर पाया. लेकिन इसने जो काम मुझे ड्रग्स देकर किया था वो मैंने केवल अपने हुस्न और अदाओं से कर दिया. अच्छा अब चलो यहाँ से किसी ने देख लिया तो गज़ब हो जाएगा. बस कल सुबह ही ये पेपर लेकर वकील के पास चले जाना, एक बार चालीस लाख का वो फ्लैट अपने नाम हो जाये फिर इसे लात मारकर भगा दूँगी." कमला ने हँसते हुए कहा और दोनों वहाँ से चले गए.


"कमला तुम पिछले पाँच-छः दिन से काम पर क्यों नहीं आयीं. तुम्हारी तबियत तो ठीक है? तुम मेरा फोन भी उठा रहीं और ना ही तुम्हारा पति फोन उठा रहा है. क्या हुआ कोई बात है तो मुझे बताओ?" जितेंद्र ने सुबह-सुबह फ्लैट पर पहुँचकर कमला से प्रश्न किया.

"कुछ नहीं हुआ साहिब, मेरे मरद ने अब मुझे लोगों के घरों में जाकर काम करने से मना किया है तो आप दूसरी बाई ढूंढ लो मैं अब काम नहीं करेगी. अब मेरा मरद कमाएगा और मैं बैठकर खाएगी बस." कमला ने बहुत रूखे स्वर में जवाब दिया.

"कैसी बात करती हो कमला? मैं किसी के घर काम की नहीं कह रहा हूँ लेकिन हमारे अपने घर...? क्या तुम्हारा प्यार खत्म हो गया जो तुम मुझसे मिलने भी नहीं आयीं और जैसी की हमारी बात हुई थी कि इस फ्लैट में मैं और तुम साथ रहेंगे और प्यार करेंगे क्या तुम वो भी भूल गयीं?" जितेंद्र ने प्रश्न किया.

"कौन सा प्यार साहिब? वह तो बस एक सौदा था, उसमें कुछ मैंने अपना लुटाया और कुछ आपने अपना. सौदा पूरा हुआ साहब सब व्यापार खत्म." कमला ने उसी रूखेपन से कहा.

"तो क्या तुम्हारा प्यार सच में बस एक फ़रेब था कमला? क्या तुमने मेरा मकान हड़पने के लिए मुझसे प्रेम का नाटक किया था?" जितेंद्र ने गुस्से से भरकर पूछा.

"हाहाहा!! फ़रेब! हाँ साहब फ़रेब ही था वह. फ़रेब जो आपने मेरे साथ किया था मेरे जूस में ड्रग्स मिलाकर. फ़रेब जो आपने अपनी पत्नी के साथ किया था पत्नी होते हुए भी मेरे साथ सम्बन्ध बनाकर.

और फ़रेब जो अपने खुद के साथ किया था वासना में अँधे होकर ये मकान मेरे नाम करके. अब आप यहाँ से चले जाइये साहब, कहीं ऐसा ना हो कि मैं आपकी पत्नी को आपके फ़रेब के बारे में बता दूं और आप उन्हें भी खो दो. अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है साहब, रोक दो इस फ़रेब को और बचा लो अपने असली घर को, टूटने से. मुझे भी अपना घर बचाने दो साहिब मेरा मरद बस आता ही होगा और मैं नहीं चाहती कि वह फिर मेरी गीली होती हुई देखे, आँखें." कमला ने कहा और जितेंद्र के मुँह पर फ्लैट का दरवाजा बंद कर दिया. जितेंद्र खड़ा-खड़ा सोच रहा था कि फ़रेब किसने किया? फरेबी कौन है. वहाँ फ्लैट में कमला का पति उसके जिस्म से लिपट रहा था और वे दोनों जोर-जोर से हँस रहे थे.

  

 मैं प्रमाणित करता हूँ ये कहानी मौलिक है।


   © नृपेंद्र शर्मा

 मुरादाबाद उत्तरप्रदेश

 मोबाइल :-9045548008



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