मरने के बाद (उपन्यास)
1-
रमेश ने अपने कंधे पर एक बहुत ठंडा हाथ महसूस किया, रमेश ने कुर्ता और सदरी पहनी थी फिर भी ना जाने क्यों उसे उस हाथ की सुन्न, सख्त, एवं खुदरी उंगलियों की ठंडक सीधे अपनी हड्डियों तक महसूस की।
"क.. क.. को. कौन!!", रमेश चौंकते हुए पलटा।
"क्या देख रहे हो दोस्त? ये सब जो रो रहे हैं ये तुम्हारे परिजन हैं, जो तुम्हारे मरने पर बहुत दुखी हैं?
आएँ!! हा.. हाँ, देखो सब रो रहे हैं; लेकिन मैं अपने सभी दर्दो से मुक्ति पा गया दोस्त, मैं कई महीनों से बहुत बीमार था, मेरे पूरे परिवार ने मेरी बहुत देखभाल की लेकिन, अब मैं उस पीड़ा से मुक्त हूँ।" रमेश अपनी भीगी हुई आवाज में अपने आँसू पोंछने का उपक्रम करते हुए बोला।
किन्तु ये क्या इतना जार जार रोने के बाद भी उसकी आंखें बिल्कुल सूखी थीं।
"हा.. हा. हा. हा..!! क्या ढूंढ रहे हो, आँसू?
क्या यार अभी तो तुमने कहा कि हर दर्द से मुक्त हो गए हो; लेकिन आँसू अभी भी ढूंढ रहे हो।", वैसे मेरा नाम अजीत है; तीन साल पहले मेरी भी "बिल्कुल तुम्हारे जैसी हालत थी तब मुझे भी लगा था कि मैं दर्दों से मुक्त हो गया हूँ, किन्तु सच्चाई बाद में धीरे धीरे मेरे सामने आती गई, खैर तुम्हे भी आदत हो जाएगी रमेश भाई।" अजीत ने फिर मुस्कुरा कर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
"क्या कहा तुमने?!!, तीन साल पहले तुम्हारी मौत...तो क्या तुम भूत हो??" तभी तुम्हारे हाथ बर्फ जैसे ठंडे हैं।
रमेश घिघियाते हुए बोला।
"हा ..हा!! हा. हा!! अजीत जोर से हँसने लगा.. भूत.. हाँ रमेश भाई अब लोग हमें इसी नाम से जानते हैं, भूत, अब से यही हमारी पहचान है।
अभी जो लोग तुम्हरे लिए आँसू बहा रहे हैं, कल के बाद उनमे से किसी के सामने प्रकट हो जाओगे तो वह आपको इसी नाम से पुकारेगा.. ओह माफ करना भाई पुकारेगा नहीं डर से चीखेगा।
कहेगा," बचाओ!! भूत,, औऱ तुम लाख कहते रहोगे की तुम रमेश हो लेकिन कोई भी तुम्हारी आवाज नहीं सुन पायेगा।"
अजीत की आवाज में भी बहुत दर्द था।
"लेकिन अजीत भाई आपको मेरा नाम..?" रमेश कुछ सोचते हुए बोला।
"अरे यार ये इतने लोग चीख चीख कर कह रहे हैं कि रमेश का देहांत हो गया, भाई हम तो सबको सुन ही सकते हैं भले ही हमें सुनने के लिए लोगों के पास अच्छे कान ना हों।
तो आओ अब चलें तुम्हे अभी बहुत सारे काम यहाँ की भूतिया दुनिया में करने होंगे और मैं तुम्हे सच्चाई बता दूं की ये दुनिया तुम्हारी इस दुनिया से भी खतरनाक है यहाँ राह पाना उतना आसान नहीं है बाकी आगे खुद तुम्हे सब कुछ पता लग ही जायेगा।" अजीत अर्थपूर्ण मुस्कान लाते हुए कह रहा था।
"एक मिनट, अभी तुमने कहा कि हम दोनों एक जैसे है याने की भूत, फिर मुझे तुम्हारा हाथ एक दम ठंडा क्यों लग रहा है, या फिर मैं अभी भी जिंदा..?" रमेश अपने को छू कर देखने लगा।
"तुम अभी अभी मरे हो और मुझे तीन साल हो गए, धीरे धीरे तुम भी ठंडे हो जाओगे दोस्त", अजीत फिर से मुस्कुरा दिया।
"आओ अब चलें कई काम होते हैं यहाँ आने के बाद", अजीत उसका हाथ पकड़कर खींचने लगा।
"अजीत भाई कुछ देर देखने दीजिये देखिए कैसे मेरा परिवार मेरे लिए बिलख रहा है, औऱ मैं जिंदगी भर सोचता रहा कि ये लोग कितने बुरे हैं", रमेश अभी भी बहुत उदास था।
"रमेश भाई, ज्यादा मोह मत करो ये सब बस लोगों को दिखाने के लिए हो रहा है बस परम्परा निभाने के लिए की लोग क्या कहेंगे जबकि असलियत कुछ और ही होती है।" अजीत बराबर मुस्कुरा रहा था।
"मैं नहीं मानता अजीत भाई, देखिए ना इनके रोने को क्या तुम्हें इसमें भी बनाबट दिखाई देती है, अरे मेरी पत्नी और बेटा तो बेचारे कितनी बार रो रो कर बेहोश ही हो गए", रमेश भरपूर उदासी से बोला।
"अरे!, हां कहाँ गए तुम्हारी पत्नी और बेटा?, अजीत इधर उधर देखते हुए बनाबटी आश्चर्य से बोला।
"वे लोग बेहोश हो गए थे ना अजीत भाई लोग उन्हें अंदर ले गए",रमेश अपनी ही रौ में बोला।
"अंदर? अरे हां उन्हें तो अंदर ले जाया गया है, रमेश भाई आप बहुत बेमुरव्वत हो यार तुम्हारे जिंदा बेटे और पत्नी तुम्हारे गम में बेजार हो रहे हैं तुम्हारे लिए रो रो कर हलकान हो रहे हैं और तुम हो कि बस यहीं खड़े अपनी लाश को घूरे जा रहे हो जैसे कि अभी तुम्हारी लाश उठकर बैठ जाएगी और तुम्हे उसमें घुसने के लिए कोई दरवाजा मिल जाएगा।
जबकि सच्चाई ये है कि अब तुम्हे इस शरीर में घुसने के लिए दरवाज़ा तो दूर तुम एक खिड़की तक नहीं पा सकोगे और तो और अब तुम इस शरीर को छू तक नहीं पाओगे।
मेरी बात मानो मोह छोड़ो और चलो मेरे साथ अभी तुम्हे इस आत्मा लोक में जगह भी बनानी है और जैसा कि मैने तुम्हे बताया ये धरती की दुनिया से बहुत ज्यादा मुश्किल है।", अजीत ने रमेश का हाथ पकड़े पकड़े कहा।
"अजीत भाई ये क्या तुम मुझे बार बार यहाँ की दुनिया के नाम से डरा रहे हो आखिर ऐसा क्या है इस भूत नगरी में जो मुझे जगह बनाने में मुश्किल आएगी, आखिर हमें चाहिए ही क्या केवल हवा। औऱ रही बात मेरे परिवार की तो मैं अब दावे के साथ कह सकता हूँ कि वे लोग मुझे बहुत चाहते हैं और उनका ये विलाप दिखावा नहीं है", रमेश अब कुछ नाराज़ हो रहा था।
"अच्छा चलो एक बार तुम्हारे बेटे और पत्नी को देख आया जाए,कहीं ऐसा ना हो कि तुम्हारे वियोग में उनके प्राण.." अजीत अब रमेश का हाथ पकड़कर अंदर कमरे में ले गया जहां इसकी पत्नी और बेटा बैठ कर धीरे धीरे बातें कर रहे थे।
"आओ थोड़ा और नज़दीक चलते हैं जहां से हम इन्हें सुन सकें", अजीत उसका हाथ पकड़े उनके और नजदीक ले आया।
"अरे माँ पैसे हैं ही नहीं मेरे पास, सारे पैसे तो उनकी बीमारी पर खर्च हो गये अब ये अंतिम संस्कार के लिए बीस तीस हजार मैं कहाँ से लाऊं?" रमेश का बेटा गुस्से से कह रहा था।
"अरे, कल ही तो मेरी एफडी के दो लाख आये थे जो मैंने इसे दिए थे और इसने सामने अलमारी में.. अरे सुमित्रा इसने दो लाख अलमारी में रखे हैं", रमेश जोर से चिल्लाकर बोला किन्तु उसकी आवाज़ किसी का ध्यान नहीं खींच सकी।
"अरे सुमित्रा खोलो ये अलमारी, देखो इसमें", कहकर रमेश अलमारी पकड़कर हिलाने लगा किन्तु ये क्या रमेश तो अब हवा तक नहीं हिला पा रहा था।
वह उदासी से अजीत को देखने लगा जो सिर्फ इसकी हालत पर मुस्कुरा रहा था।
"अरे बेटा अंतिम संस्कार तो करना ही होगा वर्ना समाज क्या कहेगा लेकिन जितने कम में हो सके उतने में काम चलाओ, जरूरी नहीं कि लकड़ी पूरे तीन क्वेंटल ही आये अरे इनका शरीर है ही कितना जो तीन कुंतल लकड़ी में सिकेंगे।
और चंदन की सात समिधा की जगह एक ही.. उसी के छोटे छोटे सात टुकड़े ,अरे मरने वाले के साथ कुछ जाता है क्या, और घी भी एक किलो बहुत होगा अरे जिंदा पर हमने इन्हें इतना घी में नहलाया लकेकिन क्या कोई फायदा हुआ जो अब लाश के साथ पांच किलो घी जलाकर हो जाएगा।
ये तो जाते जाते भी हमें कंगाल कर गए, अब खुद तो मुक्ति पा गए और छोड गये हमे भुगतने को।
बेटा जा कर सामान जुटा जल्दी, देर हो रही है, मिट्टी जितनी जल्दी हो ठिकाने लग जानी चाहिए", रमेश की पत्नी सुमित्रा अपने बेटे को समझा रही थी।
"अरे!! दुष्टों मैं जिंदगी भर रात दिन तुम लोगों के सुख के लिए लड़ता रहा और तुम्हे मेरा शरीर मिट्टी..",रमेश झपटकर अपनी पत्नी को मारने की कोशिश करने लगा लेकिन पूरा जोर लगाने के बाद भी वह सुमित्रा के बाल तक ना हिला सका।
हा हा हा हा हा हा!!!!अजीत उसकी हालत देखकर हँस हँस कर लोटपोट हो रहा था।
"मेरी पत्नी, मेरा बेटा,, अरे रमेश भाई ये किस मिट्टी की बात हो रही थी"? अजीत बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोकते हुए बोला।
" कुछ नहीं अजीत भाई, चलो यहाँ से अब मुझे एक पल भी नहीं रहना इस नरक में।" रमेश गुस्से ओर घृणा से बोला और बाहर आ गया।
"क्या हुआ रमेश भाई इतना गुस्सा?" अरे ये तो तुम्हारा परिवार है भाई ये लोग तुमसे मोहब्बत करते हैं देखो तुम्हारे लिए कितना रो रहे थे इन्हें सच में बहुत फिक्र है लेकिन तुम्हारी नहीं मेरे दोस्त बल्कि तुम्हारी मिट्टी की, उन्हें उसे जल्द से जल्द ठिकाने जो लगाना है।
और उसके बाद इन्हें एक और फिक्र लगेगी तुम्हारी जायदाद अपने नाम लिखाने की", अजीत अभी भी चुटकी ले रहा था।
"चलो अजीत भाई अब मैं और कुछ नहीं देख पाऊंगा,मैं आत्महत्या कर लूंगा इन लोगों ऐसे व्यभार से ले चलो मुझे इस नरक से दूर", रमेश फिर से अपनी आंखें पोंछने लगा।
"अच्छा उदास मत हो रमेश यार, अभी असली नरक तो यहाँ अभी तुम्हे देखना है, आओ चलो सबसे पहले जन्म रजिस्टर में तुम्हरा नाम लिखा कर तुम्हारा भूत नम्बर लेना होगा उसके बाद मैं तुम्हे इस दुनिया की बाकी बातें भी बता दूंगा और तुम्हे सारा भूत लोक जो हमारे सीमा क्षेत्र में है, दिखा भी दूंगा।" अजीत उसके साथ चलते हुए बोला।
"क्या कहा रजिस्ट्रेशन??"रमेश को तो जैसे विश्वास ही नहीं हुआ।
"हां भाई नामांकन यहाँ की सबसे पहली प्रकिर्या है जो हर नए आने वाले भूत के लिए बहुत जरूरी है।
इस नामांकन के साथ ही नए भूतों को यहाँ मौजूद भूत गैंग्स का सदस्य बना दिया जाता है इसके बाद उन्हें अपने गैंग के हिसाब से आगे मरना होता है, किंतु यदि हम चाहें तो अपने मनचाहा गैंग चुन सकते हैं जैसे कि अब मैं तुम्हे अपने गैंग में जुडवा दूंगा ताकि हम आराम से साथ रह सकें", अजीत ने रमेश का हाथ कसकर पकड़ा और दोनों उड़ने लगे।
अभी ये लोग भूत लैंड में लैंडिंग कर ही रहे थे कि सामने ही एक बड़े बड़े दांतो वाली माँस रहित डरावनी मूर्ति प्रकट हो गई।
"क्या रे अजीत फिर कोई नया बकरा लाया अपने गैंग के लिए, अरे कभी किसी को अपुन के गैंग में भी आने दे देख ना सारी बदसूरत जली हुई सुन्दरियों से भरा है पूरा गैंग बस तेरे ओर इसके जैसे चिकने छोरों की कमी रहती है", वह बड़े दांतों वाली डरावनी शक्ल जोर जोर से हँसने लगी जिससे इसका चेहरा ओर डरावना लगने लगा जिससे घबराकर रमेश अजीत के पीछे छिप गया।
"क्या रे लाडली क्यों हमेशा लोगों को डराती रहती है, अब देख न अभी अभी तो हम आये हैं और तुमने मेरे नए दोस्त को डरा दिया। ये भी कोई तरीका है परिचय करने का", अजीत थोड़ा गुस्से से बोला।
"क्या करें अजीत, काश हमारे जिंदा रहते लोग हमसे डर जाते तो हमें यूँ आग में जिंदा तो ना जलाते", अब लाडली बहुत उदास होकर बोली।
"अरे लाडली दुखी क्यों होती हो आखिर हम यहाँ दोस्त हैं ना, अच्छा मिलता हूँ रमेश भाई का नामकरण करवा कर", और अजीत रमेश का हाथ पकड़े आगे चल दिया,,,
2-"आओ रमेश भाई चलो जल्दी नामांकन करवा लिया जाए, कहीं ऐसा न हो कि कोई प्रेत, जिन्न या ब्रह्म बाबा हमें देख लें, और हम किसी मुश्किल में पड़ जाएं",
अजीत ने रमेश का हाथ पकड़ कर उसे खींचते हुए कहा।
"अच्छा अजित भाई! मरने के बाद जैसा की सब जानते हैं कि सबको भूत बनना होता है।
फिर आप मुझे बार-बार ये प्रेत, जिन्न और ब्रह्म बाबा जैसे नामों से क्यों डरा रहे हो?" रमेश ने कुछ आश्चर्य से पूछा।
"सब बता दूंगा रमेश भाई! बस आप थोड़ा जल्दी चलो, कहीं ऐसा ना हो कि बहुत देर हो जाये", अजीत ने ये बात बहुत घबराते कुछ विशेष अर्थ में कही।
अब रमेश जैसे कुछ समझ गया हो इसलिए वह चुपचाप चलने लगा।
कुछ दूर चलने पर उन्हें हड्डियों की बनी एक ऊँची इमारत नज़र आने लगी, जिसका बड़े-बड़े दांतो वाला प्रवेश द्वार दूर से ही चमक रहा था।
उसे देखकर अजीत की आँखों में प्रसन्नता की चमक आ गयी।
"लो पहुंच गए रमेश भाई, अब हमें कोई डर नहीं है। इस सीमा में आकर कोई भी मनमानी नहीं कर सकता; और नामांकन के बाद फिर कोई किसी को परेशान नहीं करता, क्योंकि यहाँ के नियम बहुत कड़े हैं।
कोई भी यहाँ के नियमों का उलंघन नहीं कर सकता।" अजीत के स्वर में प्रसन्नता थी।
अब रमेश भी प्रसन्न था वैसे तो उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, लेकिन अजीत की बातें उसे ना जाने क्यों अपने लिए भले की लग रही थीं।
अतः वह भी जल्दी जल्दी कदम बढ़ाने लगा।
जैसे ही इन्होंने उस इमारत में प्रवेश किया अंदर का दृश्य देखकर रमेश बहुत डर गया।
सामने हड्डियों की बनी एक बड़ी सी मेज थी जिस पर एक मज्जा, त्वचा रहित,अस्थिशेष मानव खोपड़ी रखी थी जिसकी पलकविहीन बड़ी बड़ी आंखें बहुत तेज़ चमक रही थी।
सामने दीवार पर बड़ी-बड़ी डरावनी इंसानी आंखें लगी हुईं थीं।
और अंदर पूरी छत पर भी इंसानी आंखें लगी हुई थी।
ये दृश्य देखकर रमेश को अचनक डर लगने लगा, लेकिन तभी उसे याद आया कि वह तो मर चुका है और अब खुद एक भूत है तो फिर अब वह किससे डर रहा है।
तभी अचानक दीवार में से एक बिना सर का कंकाल प्रकट हुआ और उसने जल्दी से हाथ बढ़ा कर वह खोपड़ी अपनी गर्दन में पहन ली।
"हि..हि..हि.ही क्षमा करना मैं जरा अंदर व्योरा भेजने चला गया था और अपनी उपस्थिति दर्शाने के लिए इसे यहीं छोड़ गया था।
मैंने जैसे ही आपको आते देख तुरंत आ गया।" वह अपने बड़े बड़े गले सड़े दांत दिखाकर हँसते हुए बोला।
"नमस्ते, 'लिपिक महोदय' ये मेरा मित्र है रमेश आज ही यहाँ आया है।
आप इसका नाम हमारे समूह के साथ लिख दीजिये।" अजीत ने सामने खड़े भूत को प्रणाम करते हुए कहा।
"क्या तुमने इसे यहाँ के बारे में सब कुछ समझा दिया है, 'अजीत' क्या तुमने बता दिया है कि तुम्हारा समूह सबसे कमजोर भूत समूह है।
क्या तुमने इसे अन्य समूहों के विषय में बताया, जैसे कि पिशाच, ब्रह्मराक्षस, प्रेत और शक्तिशाली जिन्न समुदाय?
कहीं ऐसा न हो कि बाद में आकर ये कहे कि मुझे तो पिशाच या प्रेत बनना था।" लिपिक ने रमेश को घूरते हुए कहा।
"मुझे अजीत भाई ने सब समझा दिया है, और मैं साधारण भूत ही रहना चाहता हूँ मुझे नहीं चाहिये भूत-प्रेत लोक की काली शक्तियां।" रमेश ने ना जाने क्या सोचते हुए, लिपिक को प्रणाम करते हुए कहा।
"ठीक है आप अपने बारे में इस प्रारूप में बताइये,
मृत्यु लोक में नाम-
पिता का नाम-
दादा का नाम
माँ का नाम-
वंश या गोत्र का नाम-
जन्म स्थान-
जन्म तिथि (यदि याद हो)-
मृत्य तिथि-
मृत्यु समय-
मृत्यु का कारण-
वो इच्छाएं जो अधूरी रह गयी हो या जिन्हें आप दूसरा जन्म लेकर पूरी करना चाहें-"। आप क्रम से इसके उत्तर बताइये मैं आपकी आगे की गति के विषय में बता दूंगा।" लिपिक ने उसे सवालों की एक सूची देते हुए कहा।
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मेरी कोई इच्छा अतृप्त नहीं है बस एक दुख है कि मैं जिनके मोह में सही गलत झूट सच करता रहा वे सब तो मतलबी निकले।" रमेश ने सारे प्रश्नों के उत्तर देते हुए उदास होकर कहा।
अब वह कंकाल (लिपिक) कुछ देर मेज पर लगे दर्पणों में उलझा रहा और फिर बोला, "जैसा कि अपने विवरण दिया, आपकी मृत्यु असमय नहीं हुई है।
अर्थात आपकी मृत्यु पूर्ण आयु भोग के बाद कि स्वाभाविक मृत्यु है।
किन्तु जैसा कि इस चराचर सृष्टि का नियम है, हर मरने वाले को मरते ही चार तत्व की सरल सौम्य भूत योनि मिलती है।
जिसमें रहकर उसे अपने जीवन के सभी अच्छे बुरे कर्मो को याद करना होता है; ताकि आगे यमलोक के मार्ग में ले जाते समय उसे याद रहे कि किस बुरे या भले कर्म के परिणाम स्वरूप उक्त रास्ता उसके लिए चुना गया है।
और इसलिए भी रखा जाता है ताकि वह अपने परिजनों के द्वारा दिये गए पिंडदान एवं यज्ञ से कुछ शक्ति प्राप्त कर ले ताकि आगे चलते समय उसे आसानी रहे।
बाकी यहाँ कुछ शक्तियां भी मिलती हैं, जिनके बारे में तुम अजीत से अन्य जानकारी ले सकते हो।
और यदि तुम्हे लगता है कि तुम्हें शक्तियां लेकर अन्य समूह में सम्मिलित होना है तो तुम चालीस दिन बाद यहाँ आकर बता सकते हो।" लिपिक ने अपने दांत दिखाते हुए कहा।
"किन्तु मुझे कब तक इस भूत योनि में भटकना होगा?" रमेश ने डरते डरते पूछा।
"ये बात भी मैं तुम्हे चालीस दिन के बाद ही बताऊंगा। देखो ये भूत योनि कमसे कम चालीस दिन लगभग सभी को मिलती है क्योंकि उसके पहले कोई भी मृतात्मा यम मार्ग पर नहीं चल सकती इसी लिए हर समुदाय में मृतक के तर्पण के लिए चालीस दिन तक के विधान बताए गए हैं।
जैसे सवा महीने का पत्ता या चालीसवाँ।
उसके बाद वह आत्मा आगे गति करती है, जहाँ मार्ग में बाइस प्रकार के महा नर्क एवं तीस प्रकार के समान्य अथवा अति सरल नरक हैं। जिन मार्गों पर यमलोक जाते समय जीवात्मा गति करती है।
बाकी उसके कर्मो पर ही निर्भर करता है की वह कितना शीघ्र धर्मराज के समक्ष प्रस्तुत होता है और कर्मफल के अनुसार दूसरा जन्म अथवा स्वर्ग या अन्य उच्च स्थान पर जाता है।" लिपिक ने उसे रहस्य बताया। तब तक दो और लोग आते दिखाई पड़े जिनमें एक भयंकर मोटा, काला, बड़े-बड़े बाहर निकले दांतों वाला, कुरूप, डरावना, राक्षस जैसा जीव था वहीं दूसरा, पतला मरियल सा जीव था, जो भय से थर थर कांप रहा था और घिसट-घिसट कर चल रहा था, या कहो की जबर्दस्ती चलाया जा रहा था।
रमेश ने थोड़ा ध्यान से देखा तो पाया कि वह कुरूप जीव दूसरे को कान से पकड़ कर खींच रहा है और उसका कान आधा उखड़ कर लटका हुआ है।
अभी वह पूरी तरह से अंदर आये भी नहीं थे कि लिपिक ने ऊंची आवाज में कहा, "कुम्भीपाक"।
और वह यमदूत उस जीव को कान से पकड़े-पकड़े उल्टे पांव लौट गया।
रमेश अभी भी उस दृश्य से भयभीत था तभी लिपिक ने एक नम्बर उसकी ओर बढ़ाया जो लाखों में था, "लो इसे अपने पास रखो ये है तुम्हारा पंजीकरण अंक, अब तक तुम्हारे बताए पते से इतने रमेश यहाँ आ चुके हैं, इसे याद कर लेना। लिपिक ने कहा।
अजीत ने रमेश का हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा," चलो बाकी बातें मैं समझा दूँगा।",
और रमेश उसके साथ चल दिया।
"अरे यार अजीत ये कौन था? इतना डरावना जीव और उस बेचारे कमज़ोर से प्राणी को कैसे कान पकड़ कर घसीट रहा था। बेचारे का कान ही उखाड़ फिये निर्दयी ने क्या यही जिन्न अथवा पिशाच है।" रमेश अभी भी घबराते हुए धीरे से बोला। हालांकि उसके स्वर में क्रोध का भी हल्का पुट था।
"यमदूत था वह; और वह केवल अपना कार्य कर रहा था रमेश भाई ।
उसको उस प्राणी के कर्मो अनुसार नरक दण्ड देने का कार्य मिला होगा तो वह बस वही कर रहा था। अजीत धीरे से बोला।
"लेकिन ये 'कुम्भीपाक' क्या है और इसे सुनते ही वह जीव इतना क्यों घबरा गया था।" रमेश ने फिर पूछा।
"कुम्भीपाक एक महा कष्टकारी महा नरक है।
इसमें मार्ग के दोनों ओर पिघली हुई धातु से भरे कुम्भ(घड़े) रखे होते हैं जो मार्ग पर उलटते रहते हैं।
उस धातु की तपन से जीव को बहुत कष्ट होता है।
अब उस जीवात्मा को उसी कुम्भीपाक के मार्ग से ले जाया जाएगा।" अजीत भी अफसोस के साथ बोला।
"लेकिन भाई उसे इतने दुर्गम मार्ग से क्यों ले जाया जा रहा है? और फिर ले जाने वाला यमदूत भी तो साथ ही होगा तो क्या वह पिघली धातु की अग्नि उसको नहीं जलायेगी।" रमेश को अब भय के साथ कौतुहल भी हुआ।
"कुम्भीपाक उसको अपने जीवन में चोरी, बेईमानी, धोखा देने अथवा ऐसे ही किसी दुष्कर्म के परिणाम स्वरूप मिला होगा।
और रही बार यमदूत की तो अब वह उसकी नाक में सांकल डालकर कर उसमें जँजीर बाँध कर ऊपर उड़ता हुआ जाएगा; इसलिए उसपर इस भीषण तपिश का प्रभाव नहीं होगा।
ऐसे भी यमदूतों के पास असीमित शक्तियां होती हैं, तो उनपर नरक की किसी भी क्रिया का प्रभाव नहीं पड़ता।
ये तो इनका सामान्य कार्य है।" अजीत ने समझाते हुए कहा।
"फिर भी यमदूतों का कार्य बहुत कठिन है भाई, चाहे प्रभाव हो या ना हो किन्तु नरक तो इन्हें सारे घूमने पड़ते हैं।" रमेश कुछ सहज होकर बोला।
"रमेश भाई ये यमदूत भी हम जेसी जीव आत्मा ही होते हैं।
जो स्वेच्छा से इस कार्य को चुनते हैं जिसके बदले में इन्हें कुछ शक्तियां और नर्क के प्रभाव से मुक्ति मिल जाती है किंतु इन्हें उस नरक में अपनी सजा से तीन गुना अधिक समय गुजारना होता है।"अजीत ने रमेश की शंका का समाधन किया।
अभी ये लोग बातें करते हुए जा ही रहे थे कि तभी, लाडली फिर इनके सामने आकर खड़ी हो गयी।
"करा आये नामांकन, पता लगा तुमसे पहले कितने रमेश मर कर यहाँ आ चुके हैं?
क्या रे अजीत रस्ते में कोई खड़ूस प्रेत या जिन्न तो नहीं मिला?" लाडली मुस्कुराते हुए पूछने लगी।
"अरे नहीं रे लाडली सब आराम से हो गया,लेकिन ये खोपड़ी हमेशा अपनी खोपड़ी क्यों उतारे घूमता रहता है? आज तक समझ नहीं आया।
बेचारे रमेश भाई कितना डर गए थे उस बिना मुंडी के भूत को देखकर।" अजीत ने भी हँसते हुए उत्तर दिया।
"अरे तेरे कु तो मालूम ही है वो एक साथ कई काम करता है।
तुमने उसे बिना मुंडी का देखा और डर गया।
अरे ऐसे डरने का नई, अपुन ने तो कितनी बार उसे बिना मुंडी और बिना हाथ का बी देखा है", अब लाडली जोर से हँसी, जिससे उसके जले हुए चेहरे पर भयानक रंगत पनप गयी। लेकिन अब रमेश को उससे डर नहीं लग रहा था।
"अच्छा लाडली ये तुम्हारा जला हुआ शरीर? क्या तुम्हारी मृत्यु जलने से हुई थी?," रमेश ने लाडली को गौर से देखते हुए पूछा।
"सही पहचाना तूने रमेश! मुझे चार लड़कों ने बलात्कार करके जला कर मार डाला था।
मैं कितना गिड़गिड़ाई उनके आगे की भाई मुझे छोड़ दो मैने तुम लोग का क्या बिगाड़ा है, लेकिन उन एडा लोग ने मेरी एक भी बात नहीं सुनी।
वे मेरे को मारते रहे मेरे कपड़े फाड़ते रहे, मैं रोती रही मदद के वास्ते चिल्लाती रही; लेकिन किसी ने भी अपुन की आवाज नहीं सुनी।
अरे मैने तो उनसे हाथ जोड़कर यहाँ तक कहा की कोई एक जन प्यार से….
लेकिन उन दरिंदों ने बार-बार मेरे साथ नीच काम किया।
और इतने पर भी उनका दिल नहीं भरा तो बेहोशी की हालत में मेरे ऊपर पेट्रोल की पूरी बैरल ही लोट दी और फिर उनमें से एक ने अपने मुँह की सिगरेट... आह!! अभी तक उस तेज़ जलन को अपनी अंतरात्मा तक महसूस करती हूँ मैं रमेश बाबू!", लाडली की आवाज दर्द से भीग गयी किन्तु उसकी आँखें बिल्कुल सूखी थीं।
"उनमें से एक कमीना वही था रमेश भाई जो अभी कुम्भीपाक में भेजा गया और जिसके लिए तुम सहानुभूति दिखा रहे थे", अजीत ने मुस्कुराते हुए बताया।
"बिल्कुल सही सजा मिल रही है फिर तो। मैं तो उसकी मासूमियत को देख कर...मुझे माफ़ कर दो अजीत भाई। लाडली जी मुझे पता नहीं था, आशा करता हूँ आप भी मुझे माफ़ कर दोगी। क्या हम दोस्त बन सकते हैं?" कहकर रमेश ने अपना हाथ आगे बढ़ाय।
जिस पर अजीत और लाडली ने अपने हाथ रखे और तीनों मुस्कुरा दिए।
"आओ रमेश भाई आपको भूतलैंड की थोड़ी सैर करा दी जाए बाकी की बाते हम घूमते हुए कर लेंगे; क्यों लाडली?" अजीत ने लाडली की ओर देखते हुए कहा और लाडली ने मुस्कुरा कर हाँ में सर हिला दिया।
अब ये तीनों चल पड़े भूतलैंड घूमने
तो आइए इनके पीछे हम भी चलते हैं
किन्तु एक ब्रेक के बाद,,,