Saturday, February 26, 2022

मरने के बाद

मरने के बाद (उपन्यास)



1-

रमेश ने अपने कंधे पर एक बहुत ठंडा हाथ महसूस किया, रमेश ने कुर्ता और सदरी पहनी थी फिर भी ना जाने क्यों उसे उस हाथ की सुन्न, सख्त, एवं खुदरी उंगलियों की ठंडक सीधे अपनी हड्डियों तक महसूस की।

"क.. क.. को. कौन!!", रमेश चौंकते हुए पलटा।

"क्या देख रहे हो दोस्त? ये सब जो रो रहे हैं ये तुम्हारे परिजन हैं, जो तुम्हारे मरने पर बहुत दुखी हैं?

आएँ!! हा.. हाँ, देखो सब रो रहे हैं; लेकिन मैं अपने सभी दर्दो से मुक्ति पा गया दोस्त, मैं कई महीनों से बहुत बीमार था, मेरे पूरे परिवार ने मेरी बहुत देखभाल की लेकिन, अब मैं उस पीड़ा से मुक्त हूँ।" रमेश अपनी भीगी हुई आवाज में अपने आँसू पोंछने का उपक्रम करते हुए बोला।

किन्तु ये क्या इतना जार जार रोने के बाद भी उसकी आंखें बिल्कुल सूखी थीं।


"हा.. हा. हा. हा..!! क्या ढूंढ रहे हो, आँसू?

क्या यार अभी तो तुमने कहा कि हर दर्द से मुक्त हो गए हो; लेकिन आँसू अभी भी ढूंढ रहे हो।", वैसे मेरा नाम अजीत है; तीन साल पहले मेरी भी "बिल्कुल तुम्हारे जैसी हालत थी तब मुझे भी लगा था कि मैं दर्दों से मुक्त हो गया हूँ, किन्तु सच्चाई बाद में धीरे धीरे मेरे सामने आती गई, खैर तुम्हे भी आदत हो जाएगी रमेश भाई।" अजीत ने फिर मुस्कुरा कर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

"क्या कहा तुमने?!!, तीन साल पहले तुम्हारी मौत...तो क्या तुम भूत हो??" तभी तुम्हारे हाथ बर्फ जैसे ठंडे हैं।

रमेश घिघियाते हुए बोला।


"हा ..हा!! हा. हा!! अजीत जोर से हँसने लगा.. भूत.. हाँ रमेश भाई अब लोग हमें इसी नाम से जानते हैं, भूत, अब से यही हमारी पहचान है।

अभी जो लोग तुम्हरे लिए आँसू बहा रहे हैं, कल के बाद उनमे से किसी के सामने प्रकट हो जाओगे तो वह आपको इसी नाम से पुकारेगा.. ओह माफ करना भाई पुकारेगा नहीं डर से चीखेगा।

कहेगा," बचाओ!! भूत,, औऱ तुम लाख कहते रहोगे की तुम रमेश हो लेकिन कोई भी तुम्हारी आवाज नहीं सुन पायेगा।"

अजीत की आवाज में भी बहुत दर्द था।

"लेकिन अजीत भाई आपको मेरा नाम..?" रमेश कुछ सोचते हुए बोला।


"अरे यार ये इतने लोग चीख चीख कर कह रहे हैं कि रमेश का देहांत हो गया, भाई हम तो सबको सुन ही सकते हैं भले ही हमें सुनने के लिए लोगों के पास अच्छे कान ना हों। 

तो आओ अब चलें तुम्हे अभी बहुत सारे काम यहाँ की भूतिया दुनिया में करने होंगे और मैं तुम्हे सच्चाई बता दूं की ये दुनिया तुम्हारी इस दुनिया से भी खतरनाक है यहाँ राह पाना उतना आसान नहीं है बाकी आगे खुद तुम्हे सब कुछ पता लग ही जायेगा।" अजीत अर्थपूर्ण मुस्कान लाते हुए कह रहा था।


"एक मिनट, अभी तुमने कहा कि हम दोनों एक जैसे है याने की भूत, फिर मुझे तुम्हारा हाथ एक दम ठंडा क्यों लग रहा है, या फिर मैं अभी भी जिंदा..?" रमेश अपने को छू कर देखने लगा।


"तुम अभी अभी मरे हो और मुझे तीन साल हो गए, धीरे धीरे तुम भी ठंडे हो जाओगे दोस्त", अजीत फिर से मुस्कुरा दिया।

"आओ अब चलें कई काम होते हैं यहाँ आने के बाद", अजीत उसका हाथ पकड़कर खींचने लगा।


"अजीत भाई कुछ देर देखने दीजिये देखिए कैसे मेरा परिवार मेरे लिए बिलख रहा है, औऱ मैं जिंदगी भर सोचता रहा कि ये लोग कितने बुरे हैं", रमेश अभी भी बहुत उदास था।


"रमेश भाई, ज्यादा मोह मत करो ये सब बस लोगों को दिखाने के लिए हो रहा है बस परम्परा निभाने के लिए की लोग क्या कहेंगे जबकि असलियत कुछ और ही होती है।"  अजीत बराबर मुस्कुरा रहा था।

"मैं नहीं मानता अजीत भाई, देखिए ना इनके रोने को क्या तुम्हें इसमें भी बनाबट दिखाई देती है, अरे मेरी पत्नी और बेटा तो बेचारे कितनी बार रो रो कर बेहोश ही हो गए", रमेश भरपूर उदासी से बोला।


"अरे!, हां कहाँ गए तुम्हारी पत्नी और बेटा?, अजीत इधर उधर देखते हुए बनाबटी आश्चर्य से बोला।


"वे लोग बेहोश हो गए थे ना अजीत भाई लोग उन्हें अंदर ले गए",रमेश अपनी ही रौ में बोला।

"अंदर? अरे हां उन्हें तो अंदर ले जाया गया है, रमेश भाई आप बहुत बेमुरव्वत हो यार तुम्हारे जिंदा बेटे और पत्नी तुम्हारे गम में बेजार हो रहे हैं तुम्हारे लिए रो रो कर हलकान हो रहे हैं और तुम हो कि बस यहीं खड़े अपनी लाश को घूरे जा रहे हो जैसे कि अभी तुम्हारी लाश उठकर बैठ जाएगी और तुम्हे उसमें घुसने के लिए कोई दरवाजा मिल जाएगा।

जबकि सच्चाई ये है कि अब तुम्हे इस शरीर में घुसने के लिए दरवाज़ा तो दूर तुम एक खिड़की तक नहीं पा सकोगे और तो और अब तुम इस शरीर को छू तक नहीं पाओगे।

मेरी बात मानो मोह छोड़ो और चलो मेरे साथ अभी तुम्हे इस आत्मा लोक में जगह भी बनानी है और जैसा कि मैने तुम्हे बताया ये धरती की दुनिया से बहुत ज्यादा मुश्किल है।", अजीत ने रमेश का हाथ पकड़े पकड़े कहा।


"अजीत भाई ये क्या तुम मुझे बार बार यहाँ की दुनिया के नाम से डरा रहे हो आखिर ऐसा क्या है इस भूत नगरी में जो मुझे जगह बनाने में मुश्किल आएगी, आखिर हमें चाहिए ही क्या केवल हवा। औऱ रही बात मेरे परिवार की तो मैं अब दावे के साथ कह सकता हूँ कि वे लोग मुझे बहुत चाहते हैं और उनका ये विलाप दिखावा नहीं है", रमेश अब कुछ नाराज़ हो रहा था।

"अच्छा चलो एक बार तुम्हारे बेटे और पत्नी को देख आया जाए,कहीं ऐसा ना हो कि तुम्हारे वियोग में उनके प्राण.." अजीत अब रमेश का हाथ पकड़कर अंदर कमरे में ले गया जहां इसकी पत्नी और बेटा बैठ कर धीरे धीरे बातें कर रहे थे।

"आओ थोड़ा और नज़दीक चलते हैं जहां से हम इन्हें सुन सकें", अजीत उसका हाथ पकड़े उनके और नजदीक ले आया।

"अरे माँ पैसे हैं ही नहीं मेरे पास, सारे पैसे तो उनकी बीमारी पर खर्च हो गये अब ये अंतिम संस्कार के लिए बीस तीस हजार मैं कहाँ से लाऊं?" रमेश का बेटा गुस्से से कह रहा था।


"अरे, कल ही तो मेरी एफडी के दो लाख आये थे जो मैंने इसे दिए थे और इसने सामने अलमारी में.. अरे सुमित्रा इसने दो लाख अलमारी में रखे हैं", रमेश जोर से चिल्लाकर बोला किन्तु उसकी आवाज़ किसी का ध्यान नहीं खींच सकी।

"अरे सुमित्रा खोलो ये अलमारी, देखो इसमें", कहकर रमेश अलमारी पकड़कर हिलाने लगा किन्तु ये क्या रमेश तो अब हवा तक नहीं हिला पा रहा था।

वह उदासी से अजीत को देखने लगा जो सिर्फ इसकी हालत पर मुस्कुरा रहा था।

"अरे बेटा अंतिम संस्कार तो करना ही होगा वर्ना समाज क्या कहेगा लेकिन जितने कम में हो सके उतने में काम चलाओ, जरूरी नहीं कि लकड़ी पूरे तीन क्वेंटल ही आये अरे इनका शरीर है ही कितना जो तीन कुंतल लकड़ी में सिकेंगे।

और चंदन की सात समिधा की जगह एक ही.. उसी के छोटे छोटे सात टुकड़े ,अरे मरने वाले के साथ कुछ जाता है क्या, और घी भी एक किलो बहुत होगा अरे जिंदा पर हमने इन्हें इतना घी में नहलाया लकेकिन क्या कोई फायदा हुआ जो अब लाश के साथ पांच किलो घी जलाकर हो जाएगा।

ये तो जाते जाते भी हमें कंगाल कर गए, अब खुद तो मुक्ति पा गए और छोड गये हमे भुगतने को।

बेटा जा कर सामान जुटा जल्दी, देर हो रही है, मिट्टी जितनी जल्दी हो ठिकाने लग जानी चाहिए", रमेश की पत्नी सुमित्रा अपने बेटे को समझा रही थी।

"अरे!! दुष्टों मैं जिंदगी भर रात दिन तुम लोगों के सुख के लिए लड़ता रहा और तुम्हे मेरा शरीर मिट्टी..",रमेश झपटकर अपनी पत्नी को मारने की कोशिश करने लगा लेकिन पूरा जोर लगाने के बाद भी वह सुमित्रा के बाल तक ना हिला सका।

हा हा हा हा हा हा!!!!अजीत उसकी हालत देखकर हँस हँस कर लोटपोट हो रहा था।

"मेरी पत्नी,  मेरा बेटा,, अरे रमेश भाई ये किस मिट्टी की बात हो रही थी"? अजीत बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोकते हुए बोला।

" कुछ नहीं अजीत भाई, चलो यहाँ से अब मुझे एक पल भी नहीं रहना इस नरक में।" रमेश गुस्से ओर घृणा से बोला और बाहर आ गया।

"क्या हुआ रमेश भाई इतना गुस्सा?" अरे ये तो तुम्हारा परिवार है भाई ये लोग तुमसे मोहब्बत करते हैं देखो तुम्हारे लिए कितना रो रहे थे इन्हें सच में बहुत फिक्र है लेकिन तुम्हारी नहीं मेरे दोस्त बल्कि तुम्हारी मिट्टी की, उन्हें उसे जल्द से जल्द ठिकाने जो लगाना है।

और उसके बाद इन्हें एक और फिक्र लगेगी तुम्हारी जायदाद अपने नाम लिखाने की", अजीत अभी भी चुटकी ले रहा था।


"चलो अजीत भाई अब मैं और कुछ नहीं देख पाऊंगा,मैं आत्महत्या कर लूंगा इन लोगों ऐसे व्यभार से ले चलो मुझे इस नरक से दूर", रमेश फिर से अपनी आंखें पोंछने लगा।


"अच्छा उदास मत हो रमेश यार, अभी  असली नरक तो यहाँ अभी तुम्हे देखना है, आओ चलो सबसे पहले जन्म रजिस्टर में तुम्हरा नाम लिखा कर तुम्हारा भूत नम्बर लेना होगा उसके बाद मैं तुम्हे इस दुनिया की बाकी बातें भी बता दूंगा और तुम्हे सारा भूत लोक जो हमारे सीमा क्षेत्र में है, दिखा भी दूंगा।" अजीत उसके साथ चलते हुए बोला।


"क्या कहा रजिस्ट्रेशन??"रमेश को तो जैसे विश्वास ही नहीं हुआ।

"हां भाई नामांकन यहाँ की सबसे पहली प्रकिर्या है जो हर नए आने वाले भूत के लिए बहुत जरूरी है।

इस नामांकन के साथ ही नए भूतों को यहाँ मौजूद भूत गैंग्स का सदस्य बना दिया जाता है इसके बाद उन्हें अपने गैंग के हिसाब से आगे मरना होता है, किंतु यदि हम चाहें तो अपने मनचाहा गैंग चुन सकते हैं जैसे कि अब मैं तुम्हे अपने गैंग में जुडवा दूंगा ताकि हम आराम से साथ रह सकें", अजीत ने रमेश का हाथ कसकर पकड़ा और दोनों उड़ने लगे।


अभी ये लोग भूत लैंड में लैंडिंग कर ही रहे थे कि सामने ही एक बड़े बड़े दांतो वाली माँस रहित डरावनी मूर्ति प्रकट हो गई।

"क्या रे अजीत फिर कोई नया बकरा लाया अपने गैंग के लिए, अरे कभी किसी को अपुन के गैंग में भी आने दे देख ना सारी बदसूरत जली हुई सुन्दरियों से भरा है पूरा गैंग बस तेरे ओर इसके जैसे चिकने छोरों की कमी रहती है", वह बड़े दांतों वाली डरावनी शक्ल जोर जोर से हँसने लगी जिससे इसका चेहरा ओर डरावना लगने लगा जिससे घबराकर रमेश अजीत के पीछे छिप गया।

"क्या रे लाडली क्यों हमेशा लोगों को डराती रहती है, अब देख न अभी अभी तो हम आये हैं और तुमने मेरे नए दोस्त को डरा दिया। ये भी कोई तरीका है परिचय करने का", अजीत थोड़ा गुस्से से बोला।

"क्या करें अजीत, काश हमारे जिंदा रहते लोग हमसे डर जाते तो हमें यूँ आग में जिंदा तो ना जलाते", अब लाडली बहुत उदास होकर बोली।


"अरे लाडली दुखी क्यों होती हो आखिर हम यहाँ दोस्त हैं ना, अच्छा मिलता हूँ रमेश भाई का नामकरण करवा कर", और अजीत रमेश का हाथ पकड़े आगे चल दिया,,,

2-

"आओ रमेश भाई चलो जल्दी नामांकन करवा लिया जाए, कहीं ऐसा न हो कि कोई प्रेत, जिन्न या ब्रह्म बाबा हमें देख लें, और हम किसी मुश्किल में पड़ जाएं",

अजीत ने रमेश का हाथ पकड़ कर उसे खींचते हुए कहा।


"अच्छा अजित भाई! मरने के बाद जैसा की सब जानते हैं कि सबको भूत बनना होता है।

फिर आप मुझे बार-बार ये प्रेत, जिन्न और ब्रह्म बाबा जैसे नामों से क्यों डरा रहे हो?" रमेश ने कुछ आश्चर्य से पूछा।


"सब बता दूंगा रमेश भाई! बस आप थोड़ा जल्दी चलो, कहीं ऐसा ना हो कि बहुत देर हो जाये", अजीत ने ये बात बहुत घबराते कुछ विशेष अर्थ में कही।


अब रमेश जैसे कुछ समझ गया हो इसलिए वह चुपचाप चलने लगा।


कुछ दूर चलने पर उन्हें हड्डियों की बनी एक ऊँची इमारत नज़र आने लगी, जिसका बड़े-बड़े दांतो वाला प्रवेश द्वार दूर से ही चमक रहा था।

उसे देखकर अजीत की आँखों में प्रसन्नता की चमक आ गयी।

"लो पहुंच गए रमेश भाई, अब हमें कोई डर नहीं है। इस सीमा में आकर कोई भी मनमानी नहीं कर सकता; और नामांकन के बाद फिर कोई किसी को परेशान नहीं करता, क्योंकि यहाँ के नियम बहुत कड़े हैं। 

कोई भी यहाँ के नियमों का उलंघन नहीं कर सकता।" अजीत के स्वर में प्रसन्नता थी।


अब रमेश भी प्रसन्न था वैसे तो उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, लेकिन अजीत की बातें उसे ना जाने क्यों अपने लिए भले की लग रही थीं।

अतः वह भी जल्दी जल्दी कदम बढ़ाने लगा।

जैसे ही इन्होंने उस इमारत में प्रवेश किया अंदर का दृश्य देखकर रमेश बहुत डर गया।

सामने हड्डियों की बनी एक बड़ी सी मेज थी जिस पर एक मज्जा, त्वचा रहित,अस्थिशेष मानव खोपड़ी रखी थी जिसकी पलकविहीन बड़ी बड़ी आंखें बहुत तेज़ चमक रही थी।

सामने दीवार पर बड़ी-बड़ी डरावनी इंसानी आंखें लगी हुईं थीं।


और अंदर पूरी छत पर भी इंसानी आंखें लगी हुई थी।

ये दृश्य देखकर रमेश को अचनक डर लगने लगा, लेकिन तभी उसे याद आया कि वह तो मर चुका है और अब खुद एक भूत है तो फिर अब वह किससे डर रहा है।


तभी अचानक दीवार में से एक बिना सर का कंकाल प्रकट हुआ और उसने जल्दी से हाथ बढ़ा कर वह खोपड़ी अपनी गर्दन में पहन ली।


"हि..हि..हि.ही क्षमा करना मैं जरा अंदर व्योरा भेजने चला गया था और अपनी उपस्थिति दर्शाने के लिए इसे यहीं छोड़ गया था।

मैंने जैसे ही आपको आते देख तुरंत आ गया।" वह अपने बड़े बड़े गले सड़े दांत दिखाकर हँसते हुए बोला।


"नमस्ते, 'लिपिक महोदय' ये मेरा मित्र है रमेश आज ही यहाँ आया है।

आप इसका नाम हमारे समूह के साथ लिख दीजिये।" अजीत ने सामने खड़े भूत को प्रणाम करते हुए कहा।


"क्या तुमने इसे यहाँ के बारे में सब कुछ समझा दिया है, 'अजीत' क्या तुमने बता दिया है कि तुम्हारा समूह सबसे कमजोर भूत समूह है।

क्या तुमने इसे अन्य समूहों के विषय में बताया, जैसे कि पिशाच, ब्रह्मराक्षस, प्रेत और शक्तिशाली जिन्न समुदाय?

कहीं ऐसा न हो कि बाद में आकर ये कहे कि मुझे तो पिशाच या प्रेत बनना था।" लिपिक ने रमेश को घूरते हुए कहा।

"मुझे अजीत भाई ने सब समझा दिया है, और मैं साधारण भूत ही रहना चाहता हूँ मुझे नहीं चाहिये भूत-प्रेत लोक की काली शक्तियां।" रमेश ने ना जाने क्या सोचते हुए, लिपिक को प्रणाम करते हुए कहा।

"ठीक है आप अपने बारे में इस प्रारूप में बताइये, 

मृत्यु लोक में नाम-

पिता का नाम-

दादा का नाम

माँ का नाम- 

वंश या गोत्र का नाम-

जन्म स्थान-

जन्म तिथि (यदि याद हो)-

मृत्य तिथि-

मृत्यु समय-

मृत्यु का कारण-

वो इच्छाएं जो अधूरी रह गयी हो या जिन्हें आप दूसरा जन्म लेकर पूरी करना चाहें-"। आप क्रम से इसके उत्तर बताइये मैं आपकी आगे की गति के विषय में बता दूंगा।" लिपिक ने उसे सवालों की एक सूची देते हुए कहा।


"----

-----


----

----

---

--

मेरी कोई इच्छा अतृप्त नहीं है बस एक दुख है कि मैं जिनके मोह में सही गलत झूट सच करता रहा वे सब तो मतलबी निकले।" रमेश ने सारे प्रश्नों के उत्तर देते हुए उदास होकर कहा।

अब वह कंकाल (लिपिक) कुछ देर मेज पर लगे दर्पणों में उलझा रहा और फिर बोला, "जैसा कि अपने विवरण दिया, आपकी मृत्यु असमय नहीं हुई है।

अर्थात आपकी मृत्यु पूर्ण आयु भोग के बाद कि स्वाभाविक मृत्यु है।

किन्तु जैसा कि इस चराचर सृष्टि का नियम है, हर मरने वाले को मरते ही चार तत्व की सरल सौम्य भूत योनि मिलती है।

जिसमें रहकर उसे अपने जीवन के सभी अच्छे बुरे कर्मो को याद करना होता है; ताकि आगे यमलोक के मार्ग में ले जाते समय उसे याद रहे कि किस बुरे या भले कर्म के परिणाम स्वरूप उक्त रास्ता उसके लिए चुना गया है।

और इसलिए भी रखा जाता है ताकि वह अपने परिजनों के द्वारा दिये गए पिंडदान एवं यज्ञ से कुछ शक्ति प्राप्त कर ले ताकि आगे चलते समय उसे आसानी रहे।

बाकी यहाँ कुछ शक्तियां भी मिलती हैं, जिनके बारे में तुम अजीत से अन्य जानकारी ले सकते हो।

और यदि तुम्हे लगता है कि तुम्हें शक्तियां लेकर अन्य समूह में सम्मिलित होना है तो तुम चालीस दिन बाद यहाँ आकर बता सकते हो।" लिपिक ने अपने दांत दिखाते हुए कहा।


"किन्तु मुझे कब तक इस भूत योनि में भटकना होगा?" रमेश ने डरते डरते पूछा।


"ये बात भी मैं तुम्हे चालीस दिन के बाद ही बताऊंगा। देखो ये भूत योनि कमसे कम चालीस दिन लगभग सभी को मिलती है क्योंकि उसके पहले कोई भी मृतात्मा यम मार्ग पर नहीं चल सकती इसी लिए हर समुदाय में मृतक के तर्पण के लिए चालीस दिन तक के विधान बताए गए हैं।

जैसे सवा महीने का पत्ता या चालीसवाँ।

उसके बाद वह आत्मा आगे गति करती है, जहाँ मार्ग में बाइस प्रकार के महा नर्क एवं तीस प्रकार के समान्य अथवा अति सरल नरक हैं। जिन मार्गों पर यमलोक जाते समय जीवात्मा गति करती है।

बाकी उसके कर्मो पर ही निर्भर करता है की वह कितना शीघ्र धर्मराज के समक्ष प्रस्तुत होता है और कर्मफल के अनुसार दूसरा जन्म अथवा स्वर्ग या अन्य उच्च स्थान पर जाता है।" लिपिक ने उसे रहस्य बताया। तब तक दो और लोग आते दिखाई पड़े जिनमें एक भयंकर मोटा, काला, बड़े-बड़े बाहर निकले दांतों वाला, कुरूप, डरावना, राक्षस जैसा जीव था वहीं दूसरा, पतला मरियल सा जीव था, जो भय से थर थर कांप रहा था और घिसट-घिसट कर चल रहा था, या कहो की जबर्दस्ती चलाया जा रहा था।

रमेश ने थोड़ा ध्यान से देखा तो पाया कि वह कुरूप जीव दूसरे को कान से पकड़ कर खींच रहा है और उसका कान आधा उखड़ कर लटका हुआ है।

अभी वह पूरी तरह से अंदर आये भी नहीं थे कि लिपिक ने ऊंची आवाज में कहा, "कुम्भीपाक"। 

और वह यमदूत उस जीव को कान से पकड़े-पकड़े उल्टे पांव लौट गया।

रमेश अभी भी उस दृश्य से भयभीत था तभी लिपिक ने एक नम्बर उसकी ओर बढ़ाया जो लाखों में था, "लो इसे अपने पास रखो ये है तुम्हारा पंजीकरण अंक, अब तक तुम्हारे बताए पते से इतने रमेश यहाँ आ चुके हैं, इसे याद कर लेना। लिपिक ने कहा।

अजीत ने रमेश का हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा," चलो बाकी बातें मैं समझा दूँगा।",

और रमेश उसके साथ चल दिया।


"अरे यार अजीत ये कौन था? इतना डरावना जीव और उस बेचारे कमज़ोर से प्राणी को कैसे कान पकड़ कर घसीट रहा था। बेचारे का कान ही उखाड़ फिये निर्दयी ने क्या यही जिन्न अथवा पिशाच है।" रमेश अभी भी घबराते हुए धीरे से बोला। हालांकि उसके स्वर में क्रोध का भी हल्का पुट था।


"यमदूत था वह; और वह केवल अपना कार्य कर रहा था रमेश भाई ।

उसको उस प्राणी के कर्मो अनुसार नरक दण्ड देने का कार्य मिला होगा तो वह बस वही कर रहा था। अजीत धीरे से बोला।


"लेकिन ये 'कुम्भीपाक' क्या है  और इसे सुनते ही वह जीव इतना क्यों घबरा गया था।" रमेश ने फिर पूछा।


"कुम्भीपाक एक महा कष्टकारी महा नरक है।

इसमें मार्ग के दोनों ओर पिघली हुई धातु से भरे कुम्भ(घड़े) रखे होते हैं जो मार्ग पर उलटते रहते हैं।

उस धातु की तपन से जीव को बहुत कष्ट होता है।

अब उस जीवात्मा को उसी कुम्भीपाक के मार्ग से ले जाया जाएगा।" अजीत भी अफसोस के साथ बोला।


"लेकिन भाई उसे इतने दुर्गम मार्ग से क्यों ले जाया जा रहा है? और फिर ले जाने वाला यमदूत भी तो साथ ही होगा तो क्या वह पिघली धातु की अग्नि उसको नहीं जलायेगी।" रमेश को अब भय के साथ कौतुहल भी हुआ।


"कुम्भीपाक उसको अपने जीवन में चोरी, बेईमानी, धोखा देने अथवा ऐसे ही किसी दुष्कर्म के परिणाम स्वरूप मिला होगा।

और रही बार यमदूत की तो अब वह उसकी नाक में सांकल डालकर कर उसमें जँजीर बाँध कर ऊपर उड़ता हुआ जाएगा; इसलिए उसपर इस भीषण तपिश का प्रभाव नहीं होगा।

ऐसे भी यमदूतों के पास असीमित शक्तियां होती हैं, तो उनपर नरक की किसी भी क्रिया का प्रभाव नहीं पड़ता।

ये तो इनका सामान्य कार्य है।" अजीत ने समझाते हुए कहा।


"फिर भी यमदूतों का कार्य बहुत कठिन है भाई, चाहे प्रभाव हो या ना हो किन्तु नरक तो इन्हें सारे घूमने पड़ते हैं।" रमेश कुछ सहज होकर बोला।


"रमेश भाई ये यमदूत भी हम जेसी जीव आत्मा ही होते हैं। 

जो स्वेच्छा से इस कार्य को चुनते हैं जिसके बदले में इन्हें कुछ शक्तियां और नर्क के प्रभाव से मुक्ति मिल जाती है किंतु इन्हें उस नरक में अपनी सजा से तीन गुना अधिक समय गुजारना होता है।"अजीत ने रमेश की शंका का समाधन किया।

अभी ये लोग बातें करते हुए जा ही रहे थे कि तभी, लाडली फिर इनके सामने आकर खड़ी हो गयी।


"करा आये नामांकन, पता लगा तुमसे पहले कितने रमेश मर कर यहाँ आ चुके हैं?

क्या रे अजीत रस्ते में कोई खड़ूस प्रेत या जिन्न तो नहीं मिला?" लाडली मुस्कुराते हुए पूछने लगी।


"अरे नहीं रे लाडली सब आराम से हो गया,लेकिन ये खोपड़ी हमेशा अपनी खोपड़ी क्यों उतारे घूमता रहता है? आज तक समझ नहीं आया।

बेचारे रमेश भाई कितना डर गए थे उस बिना मुंडी के भूत को देखकर।" अजीत ने भी हँसते हुए उत्तर दिया।


"अरे तेरे कु तो मालूम ही है वो एक साथ कई काम करता है।

तुमने उसे बिना मुंडी का देखा और डर गया।

अरे ऐसे डरने का नई, अपुन ने तो कितनी बार उसे बिना मुंडी और बिना हाथ का बी देखा है", अब लाडली जोर से हँसी, जिससे उसके जले हुए चेहरे पर भयानक रंगत पनप गयी। लेकिन अब रमेश को उससे डर नहीं लग रहा था।


"अच्छा लाडली ये तुम्हारा जला हुआ शरीर? क्या तुम्हारी मृत्यु जलने से हुई थी?," रमेश ने लाडली को गौर से देखते हुए पूछा।


"सही पहचाना तूने रमेश! मुझे चार लड़कों ने बलात्कार करके जला कर मार डाला था।

मैं कितना गिड़गिड़ाई उनके आगे की भाई मुझे छोड़ दो मैने तुम लोग का क्या बिगाड़ा है, लेकिन उन एडा लोग ने मेरी एक भी बात नहीं सुनी।

वे मेरे को मारते रहे मेरे कपड़े फाड़ते रहे, मैं रोती रही मदद के वास्ते चिल्लाती रही; लेकिन किसी ने भी अपुन की आवाज नहीं सुनी।

अरे मैने तो उनसे हाथ जोड़कर यहाँ तक कहा की कोई एक जन प्यार से….

लेकिन उन दरिंदों ने बार-बार मेरे साथ नीच काम किया।

और इतने पर भी उनका दिल नहीं भरा तो बेहोशी की हालत में मेरे ऊपर पेट्रोल की पूरी बैरल ही लोट दी और फिर उनमें से एक ने अपने मुँह की सिगरेट... आह!! अभी तक उस तेज़ जलन को अपनी अंतरात्मा तक महसूस करती हूँ मैं रमेश बाबू!", लाडली की आवाज दर्द से भीग गयी किन्तु उसकी आँखें बिल्कुल सूखी थीं।


"उनमें से एक कमीना वही था रमेश भाई जो अभी  कुम्भीपाक में भेजा गया और जिसके लिए तुम सहानुभूति दिखा रहे थे", अजीत ने मुस्कुराते हुए बताया।


"बिल्कुल सही सजा मिल रही है फिर तो। मैं तो उसकी मासूमियत को देख कर...मुझे माफ़ कर दो अजीत भाई। लाडली जी मुझे पता नहीं था, आशा करता हूँ आप भी मुझे माफ़ कर दोगी। क्या हम दोस्त बन सकते हैं?"  कहकर रमेश ने अपना हाथ आगे बढ़ाय।

जिस पर अजीत और लाडली ने अपने हाथ रखे और तीनों मुस्कुरा दिए।


"आओ रमेश भाई आपको भूतलैंड की थोड़ी सैर  करा दी जाए बाकी की बाते हम घूमते हुए कर लेंगे; क्यों लाडली?" अजीत ने लाडली की ओर देखते हुए कहा और लाडली ने मुस्कुरा कर हाँ में सर हिला दिया।

अब ये तीनों चल पड़े भूतलैंड घूमने

तो आइए इनके पीछे हम भी चलते हैं 

किन्तु एक ब्रेक के बाद,,,



गुजारा भत्ता

प्रहसन

 

शीर्षक:- गुजारा भत्ता


पात्र-

1- पति (सुमेर सिंह) उम्र 35 साल

2-पत्नी(राधिका) उम्र 32 साल

3-मुख्य जज(महिला)

4-पुरुष जज-1

5-पुरुष जज-2

6-गवाह1 नाम चन्द्रावती (पड़ोसी वृद्व महिला उम्र 65 साल)

7-गवाह 2 पति की माँ उम्र 60 साल

8-गवाह3 पत्नी का मकान मालिक उम्र 45 साल

9-गवाह 4 मकान मालिक की पत्नी उम्र 40 साल

10-पेशकार (अदालत में केस के सम्बंध पैरवी करने वाला सरकारी व्यक्ति)

दृश्य -1 स्थान अदालत का कमरा


पर्दा उठता है सामने अदालत के कमरे का दृश्य है। सामने एक जज के स्थान पर जूरी के तीन सदस्य विराजमान हैं।

सामने ऊँचे लकड़ी के जंगले के पीछे एक महिला न्यायाधीश ऊँची कुर्सी पर काला कोट पहने बैठी हुई हैं। उनके दाएँ बाएँ लगभग वैसी ही लेकिन कुछ नीची कुर्सियों पर दो पुरुष न्यायाधीश बैठे हुए हैं।

 नीचे बैंचों पर कई लोग अदालत की इस कार्यवाही को देखने सुनने के लिए बैठे हुए हैं।

ज्यूरी के एक पुरूष सदस्य के संकेत पर पेशकार एक फ़ाइल उठाता है और आवाज लगाता है- 

पेशकार:-केस नम्बर सोलह सौ बत्तीस तलाक का मुकदमा वादी श्रीमती राधिका पत्नी प्रतिवादी श्री सुमेर सिंह हाज़िर हों। और फ़ाइल ज्यूरी के सदस्यों के सामने रखकर अपनी जगह बैठ जाता है।

 ज्यूरी के सदस्य पूरी तल्लीनता से दो मिनट फ़ाइल को देखते हैं। कमरे में इतनी शान्ति है कि पन्ने पलटने की आवाज़ साफ सुनाई देती है। फिर बायीं ओर बैठे ज्यूरी सदस्य की आवाज गूँजती है:- जैसा कि हमने इस केस को देखा और समझा, श्रीमती राधिका पत्नी श्री सुमेर सिंह अपने अपने पति से तलाक लेने के लिए अदालत में अर्जी लगाई थी किन्तु ना तो आप अदालत को तलाक लेने की वाजिब वजह ही बता पायीं थीं और ना ही आपके पति आपसे तलाक लेने को राजी हुए थे। और जैसा कि हमें पता लगा कि आप दोनों ने ही कोई भी वकील दलील पेश करने के लिए हायर नहीं किये थे। तब अदालत ने आपको अपनी पैरवी खुद ही करने की अनुमति दी थी। और दोनों पक्षों को सुनने के बाद उस समय अदालत ने आप दोनों को छः महीने साथ रहकर आपसी सम्बंध सुधारने का प्रयास करने और आपसी मतभेद मिलकर सुलझाने की सलाह देते हुए आपको छः महीने साथ रहने की सलाह दी थी। लेकिन अब जबकि छः महीने बीत चुके हैं और आप दोनों के विचार अभी भी एक दूसरे से जुदा ही हैं तो आपके मामले को फिर से देखने की सहमति अदालत ने आपको दी है। और पिछली बार की तरह इस बार भी आप लोग अपने वकील खुद ही हो। इस अदालत की पिछली तारीख पर हुई कार्यवाही और आप लोगों के वाद-विवाद को देखते हुए अदालत इस नतीजे पर पहुँची की आपका केस सामान्य केस नहीं है इस लिए अब आपके केस को सुनने के लिए कोई न्यायिक अदालत नहीं बल्कि पारिवारिक मामलों के विशेषज्ञ सदस्यों की इस ज्यूरी का गठन किया गया है जहाँ हम ज्यूरी सदस्य आपके वाद-विवाद को सुनकर कोई व्यवहारिक निर्णय लेने का प्रयास करेंगे। आप लोग यहाँ सामने आकर कुर्सियों पर बैठ जाइए। (नीचे आमने सामने कुछ दूरी पर रखी कुर्सियों की ओर संकेत करता है।

 दोनों पति-पत्नी ज्यूरी के सामने कुर्सियों पर बैठ जाते हैं।

 ज्यूरी के दायीं ओर के सदस्य:- हाँ तो राधिका जी आप अपना पक्ष रखिये और विश्वास रखिये की हम आपके हित में उचित निर्णय ही देंगे।

 

राधिका:- सम्मानित ज्यूरी मैं केवल और केवल अपने पति से तलाक लेकर अपने बच्चों के साथ अलग रहना चाहती हूँ और अदालत से दरख्वास्त करती हूँ कि इनसे मेरे बच्चों के लिए गुजारा भत्ते की रकम दिलाई जाए।

 ज्यूरी1- देखिये राधिका जी भारतीय संविधान के मैरिज एक्ट 1955 की धारा 13 में सभी पति-पत्नी को ये अधिकार दिए गए हैं कि यदि उन्हें लगता है कि वे अब साथ में नहीं निभा सकते तो उनका तलाक मंज़ूर करके उन्हें स्वतंत्र कर दिया जाए। किन्तु उसकी भी काफी शर्तें हैं। पहले तो आपको तलाक की कोई माकूल वजह अदालत को बतानी होगी। बिना किसी मज़बूत कारण के कोई भी अदालत किसी भी विवाह विच्छेद की स्वीकृति नहीं देती, इसलिए पहले आप वह कारण स्पष्ट करें जिसके आधार पर आप अपने पति से अलग होना चाहती हैं?

  

   राधिका:- मैं एक कम पढ़े लिखे और बेरोजगार व्यक्ति के साथ अब और नहीं रह सकती, इससे मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती है इसलिए मुझे डिवोर्स दिलाकर ससम्मान  जीवन जीने का अधिकार दिया जाए।

 ज्यूरी2- किन्तु अधिनियम 1955 की धारा 13 में ऐसे किसी भी कारण को विवाह विच्छेद का आधार नहीं माना जा सकता राधिका जी। 

 अभी ज्यूरी2 कुछ और कहने ही वाले होते हैं कि मुख्य न्यायाधीश महोदया उन्हें इशारे से रोक देती हैं।

  मुख्य न्यायाधीश महोदया:- तो राधिका जी आपको आपके पति कर कम पढ़े-लिखे और बेरोजगार होने से प्रॉब्लम है? तो क्या आप ज्यूरी को बताएंगी की ये प्रॉब्लम आपको शादी के 13 साल बाद अचानक क्यों होने लगी? क्या आप पहले से ये बात नहीं जानती थीं। अब जब आपके दो बच्चे हैं और शादी को एक लंबा अरसा गुज़र गया है तब अचानक आपको कैसे लगा कि आपके पति अनपढ़ हैं। ये तो आपके विवाह के वक्त भी इनके और आपके परिवार ने बताया होगा। फिर भी उस समय अपने विवाह के लिए सहमति दी  होगी। हाँ यदि आपके पति और उनके परिवार ने इनकी शिक्षा के विषय में आपसे झूठ कहा हो तब ये ज्यूरी आपके विवाह विच्छेद के विषय पर विचार अवश्य करेगी किन्तु ऐसे में भी आपके पति पर झूठ बोलने और तथ्य छिपाने का दोष सिद्ध होने के बाद। तो आप इस विषय पर क्या कहते हो मिस्टर सुमेर सिंह, क्या अपने और आपके परिवार ने इनसे और इनके परिवार से आपकी शिक्षा और रोजगार सम्बंधित तथ्य छिपाये थे।


 सुमेर:- सम्मानित ज्यूरी यदि आज्ञा दें तो मैं शुरू से सारी बात बताना चाहता हूँ?

 ज्यूरी के सदस्य आपस में इशारों में कुछ बात करने के बाद एक स्वर में:- बताइये किन्तु इतना ध्यान रहे कि जो भी बातें इस केस को साफ करती हों केवल वही बात कही जाय अनावश्यक चर्चा करके ज्यूरी का कीमती वक़्त बर्बाद ना किया जाए।

 

 सुमेर:- जी अवश्य, मैं इस बात का ध्यान रखूँगा।


 ज्यूरी1:-  ठीक है बताइये।


 सुमेर:- जब हमारी शादी हुई उस समय मैं बारहवीं पास था और राधिका दसवीं पास। हम दोनों के ही परिवार आर्थिक कारणों से हमें आगे पढ़ाने में असमर्थ थे। मैंने अपने घर की माली हालत देखते हुए एक मिल में नौकरी शुरू कर दी थी तभी हम दोनों के परिवार और हमारी आपसी सहमति से हमारा विवाह हो गया। सब बहुत अच्छा था हम दोनों भी बहुत खुश थे। शादी के कुछ दिन बाद राधि ने मुझसे आगे पढ़ने की इच्छा जाहिर की जिसे मैंने खुशी-खुशी मान लिया और इसका दाखिला कॉलेज में करा दिया। माननीय ज्यूरी मैने अपने खर्च में कटौती करके और इनके हिस्से का घर का काम खुद करके इन्हें ग्रेजुएशन फिर बी एड कराया। जब ये ग्रेजुएशन कर रहीं थीं तभी हमारे घर बेटे का जन्म हुआ। बेटे की देखभाल के चलते इन्हें पढ़ाई में परेशानी होती थी। इनकी ये बात जानकर मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी और घर में ही छोटी सी दुकान खोल ली। इससे मैं हर समय घर पर ही रहता था तो अब ये निश्चिंत होकर पढ़ाई पर ध्यान देती और कॉलेज भी चली जाती थीं। आदरणीय ज्यूरी जिन बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी ये माँग रही हैं उनका तो इन्हें ये भी नहीं पता कि वह रात में कितनी बार उठकर क्या-क्या माँग करते हैं। मैंने दुकान, घर और बच्चे सम्भालते हुए इन्हें पढ़ाया और नौकरी के एग्जाम और इंटरव्यू दिलवाए। हमारी मेहनत एक दिन सफल हुई जब ये राजकीय बालिका इंटर कॉलेज में लेक्चरार बनीं। इस बीच हमारे घर पर रख छोटी बेटी भी आ चुकी थी। अभी हमारा बेटा आठ साल का और बेटी पाँच साल की है जो दोनों शुरू से ही मेरे साथ रहते हैं और मेरी पत्नी अपनी जॉब के चलते शहर में किराए के मकान में रहती है।

 मैं ज्यूरी को स्पष्ट करना चाहूँगा की मैं अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता हूँ और तलाक जैसा अशुभ शब्द मैं उसके लिए सोच भी नहीं सकता किन्तु फिर भी यदि मेरी राधि मेरे साथ रहना नहीं चाहती तो वह शौक से अलग रहे लेकिन मेरे बच्चे मेरे साथ ही रहेंगे और जहाँ तक गुजारे भत्ते का सवाल है तो इसने खुद ही मुझपर इल्जाम लगाया है कि मैं बेरोजगार हूँ तो ऐसे में भत्ता मुझे और बच्चों को राधिका की तरफ से मिलना चाहिए। बस मेरी यही गुजारिश है कि राधि चाहे तो बेशक अलग रहे किन्तु बच्चे मैं खुद ही पालूंगा।


 ज्यूरी1:- हाँ तो राधिका जी क्या जो भी मिस्टर सुमेर सिंह ने कहा वह सब सही है?


 राधिका:- सच है कि इन्होंने मुझे आगे पढ़ाया लेकिन कोई एहसान नहीं किया, बल्कि इसमें इनका स्वार्थ था। इनका सोचना था कि खुद तो ये बेरोजगार हैं तो क्यों ना पत्नी से नौकरी करवाकर उसकी कमाई खाई जाए। और रही बच्चों की बात तो ऐसा नहीं है कि इन्होंने अकेले ही सब किया है। मैं भी घर पर रहती थी और काम करती थी। और फिर पिछले 3 साल से तो मैं अपनी कमाई भी इनपर लुटा रही हूँ। लेकिन इनका लालची मन अब मेरे बच्चों को मुझसे दूर करके उनके नाम पर मेरी कमाई लूटना चाहता है। मुझे अब इस आदमी से तलाक चाहिए, मैं अपने बच्चों को लेकर शहर में रहूँगी जहाँ के अच्छे स्कूल में पढ़कर वे आगे बढ़ सकें। मेरे बच्चे इस अनपढ़ आदमी के पास रहें ये अच्छी बात नहीं।

 

 सुमेर:- ये इल्ज़ाम सरासर गलत है योर ऑनर की मैंने कभी राधिका की कमाई रखने के बारे में सोचा भी हो। मैं तो इसके नौकरी करने की बात पर इसलिए तैयार हुआ था क्योंकि इससे राधिका को खुशी मिल रही थी। मैंने राधिका को उसकी खुशी के लिए बाप बनकर पढ़ाया। राधिका के आराम के लिए बच्चों को माँ बनकर पाला। किन्तु एक पति होने के नाते भी कभी उसपर किसी तरह का कोई अधिकार नहीं जमाया। फिर भी आज मेरे किये को कर्तव्य बताकर राधिका खुद के हर कर्तव्य से मुँह मोड़कर जाना चाहती है। यदि इसे किसी आभासी दुनिया में जाना भी है तो खुशी से जाए लेकिन मेरे बच्चे इसके साथ कभी खुश और सुरक्षित नहीं रह पाएंगे। मैं ज्यूरी से हाथ जोड़कर अपील करता हूँ कि मेरे बच्चों को मुझसे अलग ना किया जाय।


 मुख्य जज:- हमने आप दोनों की बातें सुनीं। बाकी की कार्यवाही लंच ब्रेक के बाद होगी। आप दोनों अपने-अपने पक्ष में जो भी गवाह पेश करना चाहें उनकी लिस्ट अदालत में जमा कर दें लंच बाद उनसे भी बात कर ली जाएगी और जो भी निर्णय होगा आज ही सुना दिया जाएगा। अभी के ये अदालत बर्खास्त होती है।

  

 दृश्य - 2 अदालत का ही एक छोटा कमरा है जहाँ ज्यूरी के तीनों सदस्य आपस में विचारविमर्श कर रहे हैं।

 ज्यूरी1:- क्या लगता है मैडम, क्या राधिका का पति सच में बच्चों के बहाने उससे पैसे ऐंठना चाहता है?

 ज्यूरी2:- मेरे विचार से तो इनके झगड़े के पीछे की असली वजह कुछ और ही है। हो सकता है शहर में रहते हुए महिला की दोस्ती किसी… और इसी लिए वह आज़ाद होना चाहती है।

 

  मैडम:- मेरे विचार से ऐसा कुछ नहीं है बस राधिका के मन में कोई ऐसी बात घर कर गयी है जिससे वह बाहर नहीं आ पा रही है। यदि उसके कहीं सम्बन्ध होते तो वह कभी बच्चो को अपने साथ रखने की ज़िद नहीं करती। और रही बात सुमेर की तो वह सच में अपनी पत्नी और बच्चों से प्रेम करता है। लेकिन फिर भी हमें इन दोनों को सच्चाई समझने के लिए कुछ लोगों से बात करनी होगी। मुझे पूरी उम्मीद है कि ये लोग सही रास्ते पर आ जाएंगे। हमसे पहले ये केस जिनके पास था उन्होंने भी इन दोनों की बातें ध्यान से सुनी थीं और इन्हें कहा था कि तुम लोगों को अदालत की नहीं किसी फेमिली काउंसल की ज़रूरत है। 

 

 ज्यूरी1:- लेकिन मेडम ये लोग किसी काउंसलर के पास तो गए ही नहीं?

 मेडम:- इसी लिए तो जज साहब के विशेष अनुरोध पर इनके मामले के लिए हम लोगों की ज्यूरी बनाई गई है। आपको तो पता ही है कि मैं एक फेमिली काउंसलर हूँ और आप दोनों भी तो वकील होने के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक भी हो। इसीलिए इनके केस के लिए हमे चुना गया है कि शायद एक परिवार बिखरने से बच जाए।

 

 तभी ज्यूरी1 घड़ी की ओर इशारा करता है और तीनों मुस्कुराते हुए उठ खड़े होते हैं।


      दृश्य- 3

  

   अदालत का वही कमरा जहाँ सुनवाई चल रही थी।

तीनों जजो के आते ही सारे लोग खड़े हो जाते हैं और उनके इशारा करने पर बैठ जाते हैं। 

 पेशकार एक पेपर ऊपर मेज पर रखता है जिसे बारी-बारी तीनों लोग देखते हैं। और फिर पेशकार को कुछ इशारा करते हैं।


  पेशकार:- केस 1632 राधिका सुमेर तलाक केस के गवाह सुमेर सिंह के गाँव की महिला श्रीमती चन्द्रावती देवी हाज़िर हों।


 वृद्व महिला आगे आती हैं और गवाह की कुर्सी पर बैठ जाती है।

 

 ज्यूरी1:- श्रीमती चन्द्रावती जी आप इन दोनों को कैसे जानती हैं?


 चन्द्रावती:- जज साहिबा ये हमारे गाँव में हमारे पड़ोसी हैं।


  ज्यूरी1:- तब तो आप इन दोनों को खूब अच्छी तरह जानती होंगी?

 चन्द्रावती:- जी जज साहिब ये सुमेर जब से पैदा हुआ इसे तब से जानती हूँ और ये बहु को विवाह के बाद से।


 ज्यूरी2:- क्या इन दोनों में कभी झगड़ा होता था या कोई अन्य ऐसी बात जिससे लगे कि ये दोनों एक साथ नहीं रह सकते?


 चन्द्रावती:- नहीं साहब इन दोनों में कभी कोई झगड़ा या कहासुनी नहीं हुई। ऊपर से सारे गाँव वाले यही कहते थे कि ये दोनों एक दूजे के लिए ही बने हैं। सुमेर घरवाली को इतना प्यार करता था कि उसे पढ़ाने के लिए खुद खरवाली बन गया। उसे घर का कोई काम करने ही नहीं देता था। और अगर कभी कोई गाँव वाला समझाता की सुमेर बीबी को ज्यादा पढ़ाकर मास्टरनी मत बना नहीं तो कल सर पर बैठेगी तो ये पगला हँसकर जवाब देता। मेरे ही तो बैठेगी किसी का क्या जाता है। मेरी बीबी है मैं पूरा का पूरा उसका हूँ वह जी चाहे जहाँ बैठे।


  ज्यूरी1:- तो क्या आप बता सकती हैं अब ऐसा क्या हुआ जो ये तलाक लेने अदालत तक आ गए?


चन्द्रावती:- क्या जाने साहब किसकी नज़र लग गयी इनके प्यार को। बहुरिया नोकरी करने शहर क्या गयी बेचारे सुमेर की जिंदगी की बहार ही चली गयी। और अब ना जाने राधा को क्या हुआ जो तलाक़ की जिद पर अड़ी है। मुझे तो लगता है दिमाग फिर गया है बहु का या फिर किसी ने कुछ करवा दिया है।


 दोनों ज्यूरी मेडम की ओर देखते हैं और फिर चन्द्रावती को जाने को कह देते हैं।


पेशकार:- अगला गवाह सुमेर की माताजी हाज़िर हों...



सुमेर की बूढ़ी मॉं जो कोई 60/62 साल की हैं लेकिन कमज़ोरी से और ज्यादा बूढ़ी लग रही हैं आकर गवाह की कुर्सी पर बैठ जाती हैं।


ज्यूरी1:- क्या आप इन दोनों के बारे में कोई भी ऐसी बात बता सकती हैं जिसके आधार पर अदालत मान ले कि ये लोग एक साथ नहीं रह सकते और इन्हें तलाक दे दे।


 सुमेर की माँ:- नहीं साहब मुझे ऐसी कोई बात नहीं पता।

 ज्यूरी2:- आपके साथ आपकी बहु का बर्ताव कैसा रहा है। क्या ये झगड़ालू या बदजबान हैं।


सुमेर की माँ:- नहीं साहब ऐसा भी कुछ नहीं है ऐसे भी पढ़ाई लिखाई में बहु को मेरे साथ रहने का टेम ही कहाँ मिला। ये यो वियाह के बाद पहले पढ़ने में और बाद में पढ़ाने में ही रह गयी। इसके तो बच्चे भी इसे बाहर की मास्टरनी माने हैं। उनके तो माँ भी सुमेर है और बाप भी। उसने कभी बच्चो का कोई काम नहीं किया।


ज्यूरी2:- ठीक है आप जा सकती हो।


पेशकार:- अगला गवाह राधिका के मकान मालिक हाज़िर हों।


 मकान मालिक आकर गवाह की कुर्सी पर बैठ जाता है।


ज्यूरी1:- आप इन दोनों को कब से जानते हो?


मकानमालिक:- दोनों को नहीं साहब मैं तो बस मास्टरनी जी को ही जनता हूँ, ये पिछले डेढ़ साल से हमारे मकान में किराएदार की हैसियत से रह रही हैं।


 ज्यूरी2:- क्या आप बता सकते हो इस बीच इनका व्यवहार कैसा रहा है? ऐसी कोई बात जो आपको असमान्य लगती हो?


मकानमालिक:-नहीं साहब ऐसा तो कुछ याद नहीं।


मुख्य जज:- क्या राधिका से मिलने कोई लोग आपके घर पर आते हैं? 


मकानमालिक:- ज्यादा तो नहीं क्योंकि राधिका मैडम अपने आप में ही रहने वाली महिला हैं। बस कभी कोई सहकर्मी अध्यापिका या कभी कोई छात्र छात्रा बाकी तो कोई नहीं।


 ज्यूरी2:- ठीक है आप जाइये।


पेशकार:- अगली गवाह राधिका की मकान मालकिन हाज़िर हों।


मकान मालकिन आकर कुर्सी पर बैठ जाती है।


 ज्यूरी1:- आप राधिका जी को कब से जानती हैं?


 मकान मालकिन:- यही कोई डेढ़ साल से।


ज्यूरी2:- आप इनके बारे में कोई ऐसी बात बताना चाहेंगी जिसके आधार पर इन्हें तलाक मिल सके।


मालकिन:-ऐसा तो कुछ नहीं है बताने को सिवाय इसके की जब से राधिका हमारे यहाँ आयी हैं ना तो कभी उनके पति और ना ही उनके बच्चे उनसे मिलने आये। हम लोग तो इनके पति को जानते तक भी नहीं हैं। आज पहली बार इन्हें इस अदालत में ही देख रहे हैं।


मुख्य जज साहिबा:- आप राधिका जी के चरित्र के बारे में क्या कहना चाहेंगीं?


मालकिन:- ऐसी कोई बात हमने कभी महसूस नही। की जिससे राधिका के चरित्र को खराब कहा जा सके लेकिन हर शनिवार शाम से रविवार शाम तक ये कहीं चली जाया करती हैं।


जज साहिब:- तो मिस्टर सुमेर क्या आप बता सकते हैं कि आप कभी राधिका से मिलने शहर क्यों नहीं जाते? क्या आप दोनों के बीच कोई झगड़ा चल रहा है?


सुमेर:- नहीं जज साहिबा, ऐसा इसलिए है क्योंकि मेरे ऊपर बच्चों, दुकान और माताजी की पूरी जिम्मेदारी है और फिर हर शनिवार को राधिका तो घर आती ही थी। लेकिन पिछले कुछ समय से राधिका भी हर शनिवार नहीं आयी और आती भी थी तो बस बच्चों से ही बात करती रही है।


जज साहिब:-सब ठीक है राधिका और सुमेर, आप दोनों के बीच ऐसा कोई कारण नहीं नज़र आ रहा जिसके बेस पर आपको तलाक दिया जाए। आपके गवाह भी ऐसा कोई कारण नहीं बता पाए फिर भी जब राधिका ने ठान ही लिया है कि उसे तलाक लेना ही है तो हम ज्यूरी सदस्य इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि राधिका अपने पति सुमेर को उनके द्वारा अपनी पढाई लिखाई पर खर्च की गई रकम के एवज में एक मुश्त पाँच लाख रुपये अदा करे जिससे सुमेर सिंह अपनी दुकान को बड़ा कर सके।

और दोनों बच्चों के भरण पोषण के लिए ज्यूरी राधिका पर हर महीने दस हज़ार रुपये देना तय करती है। और क्योंकि सुमेर बेरोजगार है और उसपर बूढ़ी माँ की जिम्मेदारी भी है तो राधिका हर महीने दस हज़ार रुपये सुमेर को गुजारा भत्ता के रूप में अदा करे। अदालत अधिनियम के आधार पर ये भी फैसला सुनाती है कि यदि सुमेर कहीं दूसरी शादी करता है तो तत्काल प्रभाव से उसका गुजारा भत्ता बन्द करके बच्चो की कस्टडी राधिका को दे दी जाय। और अगर कभी राधिका कहीं और शादी करती है तो गुजारा भत्ते की रकम को राधिका के वेतन का 60 प्रतिशत तक बढ़ा दिया जाए।

 आजकल लोगों में बिना कारण के ही गुस्सा, शक और अविश्वास बढ़ता ही जा रहा है। इस केस में भी कुछ ऐसा ही लगता है कि राधिका के मन में कहीं ना कहीं ये बात घर कर गयी है कि सुमेर या तो उसका जॉब करना पसंद नहीं करता या फिर केवल उसे पैसे के लिए नौकरी करने भेज रखा है, और इसका कारण कहीं ना कहीं यही नज़र आता है कि सुमेर कभी भी उससे मिलने नहीं आता। जबकि सुमेर की बातों से लगता है कि उसे इस बात का पता भी नहीं की राधिका इतना पढ़ लिखकर भी इतनी छोटी सी बात को तलाक का कारण बना देगी। बाकी इतने लोगों से बात करने और केस को समझने के बाद ज्यूरी को और कोई कारण नज़र नहीं आता।

  वैसे ज्यूरी की सलाह आप दोनों के लिए यही है कि आप लोग एक साथ ही रहें और ये बिना कारण का मनमुटाव खत्म कर दें। और अगर राधिका चाहे तो सुमेर को और पैसे देकर उसकी दुकान शहर में ही खुलवा दे और दोनों एक साथ ही रहें, सुमेर को भी राधिका के अकेलेपन और खाली दिमाग में उपजे बिना बजह के कारणों को खत्म करने के लिए राधिका के मन की बात समझते हुए यही प्रयास करना चाहिए कि जैसे भी सम्भव हो दोनों साथ ही रहें।

 अदालत की कार्यवाही अब खत्म होती है।


पर्दा गिरता है।।



लेखक- नृपेंद्र शर्मा

ठाकुरद्वारा जिला मुरादाबाद

मोबाइल 9045548008