Saturday, April 25, 2020

अहिल्या का स्वयंवर

परमपिता ब्रह्मा की आज्ञा और निर्देशों में, महृषि गौतम के आश्रम में 'देवी अहिल्या' के स्वयंवर का आयोजन हो रहा था।

देवी अहिल्या खुद परमपिता ब्रह्मा की ही मानस पुत्री थीं, जिन्हें उन्होंने बचपन में ही उचित पालन-पोषण और शिक्षा के लिए 'ऋषि गौतम' के आश्रम में छोड़ दिया था।
ऋषि गौतम की गिनती सप्त महाऋषियों में होती है; उनके ज्ञान-विज्ञान और योग साधना की किसी से कोई तुलना नहीं थी।
वे उस समय के महान शस्त्र निर्माता थे और केवल आर्य या देवता ही नहीं बल्कि असुर और दैत्य भी उनसे शस्त्र ज्ञान लेने आते थे।

देवी अहिल्या उस समय की सर्वश्रेष्ठ सुंदरी थी, उनका जन्म ब्रह्मलोक में हुआ था इसलिए उनमें देवत्व का अलौकिक तेज़ था और उनका पालन-पोषण आर्य ऋषि गौतम के यहां हुआ था, इसलिए उनमें आर्यों के योग-साधना के गुणों के साथ ही अद्भुत ज्ञान भी था।

देवी अहिल्या की सुंदरता एवं गुणों की चर्चा उस समय देवलोक से लेकर पाताल लोक तक फैली हुई थी।

इसीलिए जब ब्रह्मा जी ने उनके स्वयंवर का आयोजन किया, तो उसमें बड़े-बड़े आर्य राजाओं के साथ ही कई महा दैत्य, राक्षस, और यक्षों-गंधर्वों के साथ ही  कई देवता भी सम्मिलित हुए थे।

महृषि गौतम ने उस समय के कई सर्वश्रेष्ठ ऋषियों को भी निमंत्रण दिया था, इसलिए आश्रम में आस-पास के ही नहीं पूरे आर्यवर्त के ऋषि-महृषि भी वहां उपस्थित थे।

सोलह वर्ष की अहिल्या, फूलों से श्रृंगार किये रेशमी वस्त्र और अलंकार से सुसज्जित होकर जब स्वयंवर सभा में आईं तो उनके तेज़ से स्वम् सूर्यदेव की आंखें भी चुंधिया गयीं;
उनके  सौम्य, शीतल उजले मुख को देखकर स्वम् चन्द्रमा को भी ईर्ष्या होने लगी।
उनके रूप-लावण्य को देखकर कितने ही असुर और आर्य राजा गश खाकर गिरने लगे।

उनके रूप के तेज से कई ब्रह्मचारी ऋषियों का तेज भी काम में परिवर्तित होकर बहने लगा और वे शर्मिन्दा होकर आश्रम छोडकर चले गए।

सभा में उपस्थित आर्यों को जहाँ अपने पराक्रम पर घमंड था, वहीं असुरों को अपनी शारीरिक शक्ति पर।

लेकिन देवताओं को पूरा विश्वास था कि उनके रूप और ऐश्वर्य के चलते अहिल्या उन्ही में से किसी को पति के रूप में वरण करेगी।
देवराज इंद्र और चन्द्रदेव तो पहले ही अहिल्या के रूप-सौंदर्य पर मोहित थे।
और चाहते थे कि अहिल्या उनमें से ही किसी का चुनाव करके स्वर्ग में आये।

निश्चित समय पर स्वयंवर शुरू हुआ; देवी अहिल्या हाथों में लाल पुष्पों की माला लिए, अपनी कुछ सखियों के साथ आगे बढ़ी।
आश्रम परिसर में पत्थर की शिलाओं पर पहली पंक्ति में सभी देवगण और यक्ष गन्धर्वादी बैठे हुए थे।
ये सब जैसे पूर्ण आश्वस्त थे कि देवी अहिल्या का चुनाव और ये स्वयंवर दोनों ही इसी पंक्ति में समाप्त हो जाएगा, किन्तु ये क्या!? देवी अहिल्या इन्हें कुछ पल रुक कर देखने के उपरांत आगे बढ़ गयी। देवता बस आह भरकर रह गए।

उसके बाद कि पंक्ति में आर्यवर्त के महान पराक्रमी राजा बैठे हुए थे जिनमें कई तो इतने सामर्थ्यवान थे कि खुद देवराज इंद्र उनसे असुरों के विरुद्ध उनके युद्धों में सहायता लेते थे।
देवी अहिल्या ने उन सब को भी देखा और कुछ पल रुक कर फिर आगे बढ़ गयीं, ये सभी आर्य राजा भी बस ठंडी साँस छोड़कर रह गए।

उसकी अगली पंक्ति थी दैत्यों और महाअसुरों की, ऐसे-ऐसे परम् शक्तिशाली असुर जिनसे खुद देवताओं के राजा इंद्र भी भयभीत रहते थे।
देवों और आर्यों को ना चुनने पर अब ये असुर लोग पूर्ण निश्चिंत थे की अब अहिल्या से विवाह का सौभाग्य उन्ही में से किसी को मिलेगा।

अहिल्या ने पल भर को असुरों की तरफ देखा और चेहरे पर घृणा के भाव लिए फिर आगे बढ़ गयी।

उसके इस प्रकार असुरों के तिरस्कार से, जहां असुरों के चेहरे क्रोध से तमतमा उठे थे वहीं देवों में फिर एक बार आशा की किरण जाग गयी थी कि हो सकता है अब देवी अहिल्या उनमें से ही किसी का चुनाव करेंगी।

लेकिन अहिल्या अब, अपने पिता ब्रह्मा जी और महृषि गौतम के साथ बैठे अन्य ऋषियों की ओर बढ़ गयीं।

पिता ब्रह्मा और गौतम के साथ ही अन्य ऋषि भी आश्चर्य से अहिल्या को देख रहे थे।

अहिल्या ऋषि पंक्ति के सामने आकर कुछ पल रुकी और फिर  उसने कुछ निर्णय करके, वरमाला महृषि गौतम के गले में डाल दी।

उनके ऐसा करते ही सारा जनसमूह आश्चर्य चकित रह गया, उनमें से किसी को भी ऐसी आशा नहीं थी।
किसी अन्य को क्या, स्वम् परमपिता ब्रह्मा और ऋषि गौतम ने भी नहीं सोचा था कि अहिल्या ऐसा कुछ करेगी।

अचानक सारे उम्मीदवार एक स्वर में चीखने लगे, "धोखा है ये तो, जब अहिल्या को अपने पालक को ही पति के रूप में चुनना था तो फिर ये सब आडम्बर क्यों?
क्या इस आश्रम में खण्डित होती सम्बन्धों की परिभाषाओं को दिखाने के लिए हमें यहाँ बुलाया गया था?
क्या ऋषि गौतम, देवी अहिल्या के पालक होने के नाते उसके पिता समान नहीं हैं?
ये पाप है, हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे, ये दुष्कृत्य हम नहीं होने देंगे", परस्पर  विरोधी, देव और दानव भी एक स्वर में विरोध प्रदर्शन कर रहे थे और आर्य राजा अपने अस्त्र उठाकर बलप्रयोग के पक्ष में आ गए थे।

तभी कुछ ऋषि उठकर बोले, "परमपिता ब्रह्माजी ये सब आखिर हो क्या रहा है? जब अहिल्या को ऋषि गौतम ही पसन्द थे और वे उनके साथ एक आश्रम में पहले से ही रह रहीं थी, तो फिर स्वयंवर के इस आयोजन का प्रयोजन ही क्या था?
हम समझते हैं की ऐसी रूपवान स्त्री के पास में होने पर, जिसे पाने के लिए ये देव और दानव तक परस्पर शत्रुता भुलाते हुये एक मत हो गए; ऋषि गौतम का आसक्त हो जाना स्वभाविक ही था और वह भी तब, जब वे उन्हें सहज सुलभ थी।
किंतु जब उनके बीच ऐसे प्रेम सम्बन्ध थे, तो वे दोनों आपको बताकर भी तो विवाह कर सकते थे।
फिर ये पिता पुत्री जैसे पवित्र  सम्बन्धो, (जो इनके बीच कई द्रष्टि से बनते हैं, जैसे पालक और गुरु-शिष्या ) को ऐसे सबके सामने खण्डित करते हुए अन्य कृत्य करने की क्या आवश्यकता थी।"

"किन्तु हमें नहीं लगता कि इनके बीच कोई पूर्व प्रेम सम्बन्ध थे", ब्रह्मा जी कुछ सोचते हए बोले।

"सम्बन्ध नहीं थे तो फिर आपकी कन्या ने हम सबका परिहास करते हुए, ऋषि गौतम को ही पति के रूप में क्यों चुना पितामह? आप पुत्री के मोह में उसके पक्षधर हो रहे हैं ब्रह्मदेव, इसलिए वास्तविकता को समझने का प्रयत्न ही नहीं कर रहे हैं", कई ऋषियों ने एक साथ कहा। ये ऋषि  भी अब उपस्थित प्रतिभागियों का प्रतिनिधित्व करने लगे थे।

"हमारे बीच कभी कोई अमान्य सम्बन्ध नहीं रहे हैं , और ना ही हमने कभी देवी अहिल्या को उस दृष्टि से देखा है; बाकी आज जो भी हुआ वह हमारे लिए भी अप्रत्याशित ही है।
हम खुद आश्चर्य में हैं कि देवी अहिल्या ने ऐसा क्यों किया? हम तो स्वयं उनके सुखी और स्मृद्ध भविष्य की कामना कर रहे थे और उसी को दृष्टि में रखते हुए आप लोगों को चुनकर यहाँ स्वयंवर के लिए आमंत्रित किया था", अचानक गौतम ऋषि उठकर अपने गले से माला उतारते हुए बोले।

फिर सारे जनसमूह की दृष्टि अहिल्या की तरफ उठ गई देवी अहिल्या के मुख पर उनके निर्णय की अडिगता और अपने चुनाव की प्रसन्नता स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी वे मन्द-मन्द मुस्कुरा रही थीं।

"हम अहिल्या से बात करते हैं की उनके इस निर्णय के पीछे क्या कारण है; बेटी अहिल्या जरा  हमारे साथ कुटिया में आना", ब्रह्मा जी कुटिया की ओर बढ़ते हुए बोले।

कुटिया में आकर ब्रह्मा जी ने अहिल्या से प्रश्न किया,
" बेटी जब तुम्हे ऋषि गौतम ही पति रूप में स्वीकार थे, तब तुमने हमें पहले ही क्यों नहीं बताया? क्या तुम्हें लगा कि हम तुम्हारे प्रेम को अस्वीकार कर देंगे?"

"नहीं पिताजी ऐसी तो कोई बात ही नहीं थी, हमें किसी से प्रेम नहीं हुआ है, और न ही ऋषिवर और मेरे बीच कभी कोई गलत सम्बन्ध ही बने हैं; ये तो मैंने सबको देख-परख कर ही निर्णय लिया है पिता जी", अहिल्या ने उत्तर दिया।

"लेकिन पुत्री एक ऋषि की पत्नी बनकर तुम्हे क्या मिलेगा, तुम देवताओं को चुनकर स्वर्ग के सुखों का भोग कर सकती थीं,  किसी प्रतापी आर्य राजा को चुनकर बसुधा के रसों का भोग कर सकती थी, या फिर किसी महादानव को चुनकर महाशक्तिशाली पुरुष की पत्नी होने का गौरव प्राप्त कर सकती थी; फिर बेटी तुमने एक अभावग्रस्त, वनवासी ऋषि को ही क्यों चुना?" ब्रह्मा जी ने अहिल्या से पूछा।

"पिता जी एक स्त्री का सच्चा गौरव होता है इसके पति का सर्वस्य समर्पण और उसके प्रति सच्चा पत्नीव्रत; एक स्त्री अभाव में प्रसन्नता से जीवन व्यतीत कर सकती है किंतु अपने पति को किसी अन्य स्त्री के साथ साझा करना उसे मृत्यु से भी अधिक कष्ट देता है। अभाव धन-सम्पत्ति या ऐश्वर्य का अधिक महत्व नहीं रखता पिताजी किन्तु यदि उसका पति उसके प्रति सच्चा समर्पित नहीं  तो उससे बड़ी अभागी और अभवग्रस्त स्त्री संसार में कोई हो ही नहीं सकती।
किन्तु पिताजी ऋषि गौतम के अतिरिक्त किसी भी अन्य का चुनाव मुझे ये गौरव नहीं दे सकता था।
पिताजी देवराज इंद्र के पास पहले से ही उनकी पत्नी इंद्राणी और अनेकों अप्सराएं हैं, फिर भी उन्हें मुझसे विवाह करना है; इसका अर्थ है उन्हें पत्नी  नहीं एक सुंदर शरीर चाहिए भोगने के लिए। और पिताजी अन्य देवताओं की स्थिति भी भिन्न नहीं है; चन्द्र देव भी पहले से ही सत्ताईस नक्षत्र कन्याओं के पति हैं, इसका अर्थ भी वही है कि ये पत्नी नहीं भोग्या के लिए यहां उपस्थित हैं।
ऐसे ही पिताजी आर्य राजाओं की स्थिति है , ये लोग तो युद्ध के विजय में भी स्त्रियां प्राप्त कर लेते हैं और कई बार तो स्त्रियों के लिए ही युद्ध भी करते हैं ये भी स्त्री को बस्तु के अतिरिक्त कुछ नहीं समझते नहीं तो आप ही बताइए पिता जी युद्ध की विजय के बाद लूट में स्त्रियों का क्या काम?
और अनेक पत्नियों एवं उप-पत्नियों को आर्य राजाओं की समृद्धि की निशानी माना जाता है, तो पिताजी आप ही बताइए वहाँ क्या मुझे वह गौरव वह सम्मान मिल सकता था?

और दैत्य ..असुर.. इनके तो मनोरंजन ही मदिरा और मद अर्थात स्त्रियों के भोग से होते हैं, तो ये भला किसी स्त्री का सम्मान क्या करेंगे।

अब आप ही बताइए पिता जी मैंने ऋषि गौतम को चुनकर क्या गलत किया? वे ऋषि जिन पर आपने भी पूर्ण विश्वास करके मेरे लालन-पालन का भार सौंप दिया था, वे ऋषि गौतम जिनको मैंने आश्रम में किसी भी स्त्री को माता या पुत्री के अलावा कोई और सम्बोधन करते नहीं देखा।
वे ऋषि गौतम जिन्हें मैं लाख  चेष्टाओं के बाद भी प्रेम पथ पर ना ले जा सकी, उन्होंने इतने पास रहकर भी मेरी ओर कभी कुदृष्टि से नहीं देखा जबकि मैंने कई बार उन्हें इसका गुप्त निमंत्रण देने की धृष्टता की।
बल्कि जब भी मैं ऐसी कोई चेष्टा करती वे सदा मुस्कुरा कर यही कहते, "ये शतारतें भली कन्याओं को शोभा नहीं देती अहिल्ये" उनका चरित्र ही मेरे सुख और गौरव की  निश्चिंतता है पिता जी",अहिल्या गर्व से बोली।

"लेकिन उनकी आयु पुत्री? ऋषि गौतम चालीस वर्ष से अधिक ही आयु के होंगे और तुम अभी अल्पवय..." ब्रह्मा ने कहा।
"आयु का क्या है पिता जी, ऋषि गौतम महायोगी हैं, सत्चरित्र हैं, और सत-आहारी हैं इसलिए आयुकाल का उनपर कभी कोई प्रभाव नहीं होता।
ऐसे भी इंद्र आदि देवगण क्या उम्र में मेरे समकक्ष हैं क्या यहाँ उपस्थित कोई भी आर्य, देव अथवा दैत्य आयु में मेरे अनुरूप हैं?
और रही बात सुख ऐश्वर्य की, तो पिताजी ऋषि गौतम अस्त्र-शस्त्र विशेषज्ञ हैं, परम् साधक हैं, बड़े-बड़े देव, दानव, आर्य और असुर उनसे अस्त्र सन्धान सीखने आते हैं; उनमें इतनी सामर्थ्य तो है पिताजी की वे जब चाहें ये स्वर्ग, ये पाताल या इस पृथ्वी का कोई भी राज्य अपने पुरुषार्थ से जीतकर मेरे चरणों में डाल दें", अहिल्या ने पूरे गर्व से कहा।

"ठीक है पुत्री हमें भी अब तुम्हारे चुनाव पर गर्व है", पिता ब्रह्मा ने अहिल्या के सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते हुए कहा।

"अहिल्या ने बिल्कुल सही  चुनाव किया है हम उनके तर्कों से पूर्ण सन्तुष्ट हैं और हम अहिल्या के साथ महृषि गौतम के विवाह को स्वीकार करते हैं। आप लोगों को जो कष्ट हुआ है हम उसके लिए क्षमा मांगते हुए अब आप लोगों से विदा माँगते हैं", ब्रह्मा जी ने उपस्थित लोगों से कहा।

ये सभी लोग ऋषि गौतम के सामर्थ्य को भली-भांति जनते थे इसलिए चुपचाप आश्रम से चले गए।

आश्रम से बाहर देवराज इंद्र और चन्द्रदेव आपस में बातें कर रहे थे, "देवराज ये तो आपका सरासर अपमान है जो अहिल्या ने आप जैसे देवाधिपति, रूपवान और पराक्रमी पुरुष के स्थान पर  उस बूढ़े ऋषि गौतम का चुनाव किया।" चन्द्रदेव ने इंद्र को उकसाया।

"सही कहते हो चन्द्र देव भला आपके समान सौंदर्य और गुण किसी अन्य पुरुष में हो सकते हैं? लेकिन फिर भी इस अहिल्या ने..." इंद्र भी गुस्से से दाँत चबाते हुए बोला।

"क्या करें देवेंद्र? ऐसा अपमान तो कभी नहीं हुआ", चन्द्र देव ने कहा।

"इस अपमान का प्रतिशोध हम अहिल्या से अवश्य लेंगे, हम भी देखेंगे कि वह हमें ठुकराकर कैसे उस गौतम के साथ सुखी  रह पाएगी;  हम ऐसा प्रतिशोध लेंगे की युगों तक लोग उसे याद करेंगे। आपको भी इसमें हमारा साथ देना होगा चन्द्र देव", इंद्र ने कोई योजना बनाते हुए कहा।

"अवश्य देवराज, अपमान तो हमारा भी हुआ है, अब हम इन दोनों को ऐसे ही नहीं छोड़ेंगे", चन्द ने कहा और ये दोनों किसी गुप्त योजना पर मन्त्रणा करते हुए स्वर्ग लौट गए।

इधर स्वम् ब्रह्मा जी ने बाकी सप्तऋषियों के साथ मिलकर, देवी अहिल्या और महृषि गौतम का विवाह वैदिक विधि-विधान से  सम्पन्न करा दिया।
"इति"

©नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
उत्तरप्रदेश 244601
9045548008

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