Tuesday, February 5, 2019

#हॉरर/31 की पार्टी (16+)

2010 के 31 दिसंबर की कोहरे वाली रात थी, जगह जगह नए साल की पार्टी से शहर भर के होटल ढावे गेस्ट हाऊस रौनकमय होकर झूम रहे थे।
शहर तो शहर आसपास के फार्महाउस उससे भी ज्यादा रंगीनी में डूबे हुए थे।
युवाओं की पार्टी हो और शराब का दौर ना चले ऐसा होना असम्भव ही होता है ऐसे ही शहर से दूर सूनसान में एक बड़ा फार्म हाउस था उसके मालिक के बेटे रोहन ने अपने दोस्तों को न्यू ईयर पर्टी दी थी।
पार्टी में उसके पाँच दोस्त- विकास, प्रिया, रजनी, सुरेश और मनोज शामिल हुए, आधी रात तक शराब और नाच गाने का दौर चलने के बाद मनोज, प्रिया और रजनी के साथ वापस लौट आया लेकिन रोहन, विकास और सुरेश बची हुई शराब खत्म करते वहीं पर रुक गए।
कोई एक घण्टा लगातर पीने के बाद तीनों की आंखे मुंदने लगी, उन्हें नशे ने पूरी तह अपनी गिरफ्त में ले लिया अब उनकी बातों में बातें कम और गाली ज्यादा निकल रही थीं।
अरे यार सुरेश शराब हो गयी पार्टी खत्म हो गयी लेकिन 'मूड' नहीं बना, रोहन सिगरेट सुलगाते हुए बोला।
हाँ यार जब तक फड़कता हुस्न और शबाब ना हो पार्टी का मज़ा अधूरा ही रहता है भ,,,का विकास ने भी एक भद्दी सी गाली से उसकी बात का समर्थन किया।
आओ फिर चलते हैं शायद कोई मिल जाये, कोई आइटम हमारी तरह प्यासी पार्टी से लौटती हुई, क्यों सुरेश? रोहन हंसते हुए बोला।
नहीं!!, तुम लोग हर बार ऐसा ही करते हो अच्छी बात है क्या यार, ओर फिर इतनी रात में इतने कोहरे के बीच,,, सुरेश कुछ सहमते हुए बोला।
फट्टू साला, विकास हंसने लगा, अरे किस्मत आजमाने में क्या जाता है और कुछ नहीं तो कुछ हैंगओवर ही कम हो जाएगा, आओ चलते हैं यार एक राउंड मार कर आते हैं, विकास ने सुरेश को हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा और उसका दूसरा हाथ रोहन ने पकड़ लिया और उसे खींच कर बाहर ले आये।
मरोगे सालो तुम ठंड में अब भ**वालो इतने कोहरे में अपनी उंगलिया तक महसूस नहीं हो रही ऐसे में तुम्हे छमिया की सूझ रही है, जाने को र**तुम्हारा इन्तज़ार कर रही है इस कोहरे में बैठी की आओ राजा मुझे,,,सुरेश उन्हें लगातार लौटने को कह रहा था।
अबे ओ ग*** साले कभी तो अच्छा सोच लिया कर, क्या पता मिल ही जाए, ऐसे भी आज की रात कई कालगर्ल घूमती हैं फार्म हाउस के आसपास मोटे माल की उम्मीद में कोई मिल गयी तो साली जो मांगे हाँ कर देना हमें कौनसा कुछ देना है उसे सुबह ग** पर लात मारकर भगा देंगे भो**वाली र** को, रोहन गन्दी हंसी हँस रहा था।
अभी ये लोग कोई आधा किलोमीटर ही चले होंगे कि तभी इन्हें किसी मधुर धुन में निकलती मुंह से बजती हल्की हल्की सीटी की आवाज सुनाई दी।
इसस्सशः !!!कोई है आगे रोहन मुंह पर हाथ रखकर चुपचाप चलने का इशारा करते हुए बोला।
कोई लड़की है यार इतनी मीठी आवाज में सीटी बजा रही है खुद कितनी स्वाद होगी साली, विकास अपने होंठों पर जीभ फिराता हुआ वहशियाना हँसी धीरे से हँसा।
चलो जल्दी देखते हैं कौन है पक्का कोई चालू माल होगी यार काम बन गया अपना बस जितने भी मांगे एक दो बात करके मान लेना, रोहन की आंखों में कामुकता की चमक थी और होंठो पर वहशियत की हँसी।
थोड़े और आगे बढ़ने पर इन्होंने देखा एक पतली छरहरी अल्हड़ जवान लड़की जीन्स टॉप पहने उछलती गाती सीटी बजाती मस्ती में चल रही थी।
कौन है वहाँ विकास ने जोर से पुकारा।
तभी वह लड़की पलटी रात के अंधेरे और घने कोहरे में भी उसका गोरा रंग चान्दनी जैसा चमक रहा था और उसके गुलाबी होंठो पर खिली हंसी दूर से दिख रही थी।
कककोंन!!! हो आप? सुरेश घबराते हुए बोला क्योंकि उसने ज्यादा नहीं पी थी, ऐसे भी वह  हमेशा गलत काम का विरोध करता था लेकिन दोस्ती निभाना उसके स्वभाव में था।
मैं परी, उस लड़की ने मुस्कुरा कर कहा जो दिसम्बर की कड़क ठंड और घने कोहरे के बावजूद स्लीवलेस टॉप ओर चुस्त जीन पहनी थी, उसके आस पास जाने कैसा प्रकाश फैला था, जिसमें उसका गोरा रंग ज्यादा ही सफेद लग रहा था और उसकी आंखें बिल्ली जैसी चमक रही थीं।
उसके आने के बाद वातावरण में अजीब सी सिहरन महसूस हो रही थी, उल्लू ओर चमगादड़ बार बार उसके पैरों के पास से उड़ रहे थे, जैसे उसके पैर छू रहे हों।
चलो यार वापस चलते हैं, सुरेश वातावरण के संकेत समझकर विकास को कोहनी मारते हुए धीरे से बोला।
सुरेश उस वातावरण में ख़ौफ़  जदा हो रहा था उसने कोहनी मारकर विकास और रोहन को लौट चलने के लिए कहा लेकिन वे दोनों तो उसकी खूबसूरती में खोए थे तो उन्होंने सुरेश की बात पर ध्यान नहीं दिया।
आप किसके साथ हो ?? सुरेश ने परी से सवाल किया।
अकेली। उसने संक्षिप्त उत्तर दिया, और हँसने लगी।
आपको डर नहीं लगता इतनी रात में यूँ अकेले??
डर! किससे??
इंसानो से ??
कुछ लुटने का,??
जो मेरे पास था वो तो पहले ही तुम लोग,,,,परी का चेहरा गुस्से में लाल हो गया लेकिन अगले ही पल वह होंठो पर मुस्कान ला कर बोली, हम तो "उसे" बेचती हैं ,तो किसी को लूटने की क्या ज़रूरत और फिर कोई कोशिश भी करे लूटने की तो मैं ऐसे ही तैयार हो जाती हूँ।
बाकी रही जंगली जानवरों की बात तो वे हमला तो करते हैं लेकिन केवल पेट की भूख लगने पर, ऐसे वासना में अंधा होकर तो बस कोई इंसान,,,, नहीं नहीं कोई वहसी दरिंदा ही हो सकता है जो वासना की खातिर किसी मासूम लड़की को शिकार बनाये, वह घृणा से देख रही थी।
लेकिन तुम लोग?? वह उनकी और देखती हुई बोली।
हम भी वही खरीदने निकले हैं जो तुम बेचती हो, विकास उसे घूरते हुए बोला।
ओह्ह!! ठीक है चलो फिर, परी बोली।
लेकिन आप?? सुरेश ने कुछ बोलना चाहा।
लेकिन परी ने उसे चुप कराते हुए कहा," अरे चलो यहां से कोई और आ जायेगा तो मुश्किल हो जाएगी ऐसे भी आजकल पुलिस बहुत परेशान करती है बाकी तुम जो दोगे हो जाएगा, चलो मेरे साथ।
परी एक तरफ चल दी और  ये तीनों उसके पीछे चलने लगे।
लगभग बीस मिनट चल कर ये लोग एक ऐसी जगह आ गए जहां बहुत ऊंचे और घने पेड़ों के बीच आठ दस गज का एक गोल मैदान था जो चाँद की रोशनी में एकदम साफ दिखाई दे रहा था।
ये हमें कहाँ ले जा रही है यार इधर तो हमारा फार्म हाउस नहीं है, सुरेश रोहन का हाथ पकड़कर रोकते हुए बोला, मुझे तो बहुत डर लग रहा है यार देखो इसे,  लगता है जैसे इसे इस अंधेरे में इतना साफ दिखाई दे रहा है जितना हमें दिन के उजाले में।
अरे चुप कर डरपोक रोहन उसकी खिल्ली उड़ाते हुए बोला।
आओ दोस्तों तभी उसका खनकता स्वर गुंजा।
आसपास का वातावरण कुछ ज्यादा ही सर्द हो रहा, हवा के झोंके रह रह कर पेड़ों को झुका रहे थे , चमगादड़ ओर उल्लू भी उस लड़की से डर रहे थे ,उसका चेहरा ऐसे चमक रहा था जैसे चँदा अपनी सारी चान्दनी बस उसी पर लुटा रहा हो।
आस पास गहन अंधकार फैला था लेकिन उसकी देह दूध सी चमक रही थी और आंखे दिए सी जल रही थीं।
चारों ओर भयंकर डरावना शोर हो रहा था, सुरेश ने विकास और रोहन को इशारा करके समझाया।
रोहन उस लड़की के चेहरे को ध्यान से देखने लगा, उसके चेहरे की जगह बस एक काला घेरा था, उसमें उसकी डरावनी आंखें दिए कि लौ जैसे चमक रहीं थी,अभी रोहन विकास की ओर पलटा तभी, परी के मुंह से दो दांत लम्बे होकर बाहर आने लगे ,,,,
उफ़्फ़फ़!!! भागो चुड़ैल है ये धोखा देकर लायी है हमें यहाँ,  कहकर रोहन एक ओर दौड़ा लेकिन अचानक विकास और सुरेश की दर्दभरी चीत्कार सुनकर रुक गया।
उसने पलट कर देखा, सुरेश और विकास के सामने की जमीन फ़टी हुई थी और ये दोनों कमर तक जमीन में धँसे हुए थे।
नहीं!!! रोहन के हलक से भय चीख बन कर निकला और वह उनकी ओर दौड़ा ,अभी मुश्किल से दो कदम बढ़ाए होंगे कि बिछुओं की पूरी फ़ौज उन दोनों पर झपटी काले काले बड़े बड़े बिछु अपने डंक उठाये उधर लपक रहे थे।
ओ गॉड,,,, नहीं!! नहीं! कहता हुए वह नीचे बैठने लगा तभी परी ने अपने हाथ को घुमाया और जहाँ रोहन बैठ रहा था उसी जगह एक नुकीला खूंटा जमीन से निकला और रोहन के 'जिस्म' में घुसता चला गया,वह तड़फ उठा उसकी दर्दनाक चीख निकल गई।
कौन है तू क्या कर रही है हमारे साथ,, रोहन दर्द से तड़फते हुए चीखा।
अचानक परी उसके ठीक सामने आकर खड़ी हो गयी अब उसका  चेहरा बिल्कुल अलग लग रहा था बहुत मासूम पहले से भी बहुत ज्यादा खूबसूरत।
ले पहचान मुझे कुत्ते, उसने रोहन के सर पर हाथ रख कर थोड़ा नीचे दबाया जिससे खूंटा उसके अंदर सरकने लगा।
नही  मत करो छोड़ दो हमें हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है रोहन के हाथ आपस में जुड़ गए।
गौर से देख मुझे पहचान मुझे क्योंकि जब तक तू मुझे ना पहचाने तुझे तड़फते देखने में कतई मज़ा नहीं आएगा।
याद कर इस जगह को मा***द याद  कर 31 की रात आज ही का दिन यही जगह,,, पूरे एक साल इंतज़ार किइस मैंने तुम दरिन्दों का परी ने जोर से उसके सर को झटका दिया।
रोहन आंखे फाड़ कर उसे देखने लगा उसके चेहरे को देखते देखते वह पिछले साल की 31 की पार्टी की याद में चला गया ,,,
उस दिन भी ये तीनों आज ही की तरह नशे में डूबे किसी कालगर्ल की तलाश में घूम रहे थे, अचानक किसी ने इनकी गाड़ी को हाथ देकर रुकने का इशारा किया।
गाड़ी की लाइट की रौशनी में रोहन ने देखा सामने एक बहुत ही खूबसूरत लड़की खड़ी थी,उसे देखकर रोहन का पांव गाड़ी के ब्रेक पेर जम गया गाड़ी चरररर की जोरदार आवाज करती हुए घिसटकर एकदम उस लड़की के सामने जाकर रुकी।
कोन हो कहाँ जाना है? रोहन ने पूछा।
शहर ,उसने धीरे से कहा।
शहर तो नहीं जा रहे हम लेकिन आपको छोड़ देंगे, रोहन पास बैठे विकास को पीछे जाने का इशारा करते हुए बोला।
ओर वह लड़की आगे उसके पास आकर बैठ गई।
क्या नाम है आपका? रोहन ने मुस्कुरा कर पूछा।
परीधी, उसने धीरे से मुस्कुरा कर जबाब दिया।
वाओ परी धी,, ब्यूटीफुल नेम, बिल्कुल आपही की तरह स्वीट,,।
थैंक यू उसने मुस्कुरा कर जबाब दिया।
लेकिन इतनी रात को आप इस सुनसान में अकेले??,
नहीं मैं अपने दोस्त के साथ थी लेकिन साले ने पार्टी में ज्यादा पी ली और यहाँ सुनसान जंगल में मेरे साथ जबरदस्ती करने लगा मुझे बहुत गुस्सा आया तो मैने उसको थप्पड़ मार दिया और हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ने को कहा।
तब वो कमीना,, मुझे यहाँ अकेले छोड़कर भाग गया।
भड़वा साला, भ***का परी ने अजीब मुंह बनाकर एक भद्दी गली दी और गुस्से से थूकने लगी।
तो अब? रोहन ने मुस्कुरा कर पूछा।
मूड ऑफ हो गया यार अब घर जाकर सोऊंगी, परी गुस्से में बोली।
क्यों ना आप हमारे फॉर्म हाउस पर चलें ??जो नज़दीक ही है, वहाँ हम जल्दी पहुंच जाएंगे आप आराम से आराम करना और हम आपका साथ देंगे, रोहन ने अर्थपूर्ण शब्द कहे।
नहीं अब तो बस घर जाकर सोना है, अब मन नहीं है पार्टी का।
जितने कहेगी उतने पैसे दे देंगे यार आज रात हमारी पार्टी बना दे, रोहन गन्दी नज़रो से उसे घूरते हुए कहा।
नहीं, आयी अम नॉट आ प्रॉस्टिट्यूट  एंड नॉट आ कॉलगर्ल सो प्ल्ज़ डोंट टॉक लाइक आ डर्टी माइंड विध मी।
रेट बोल साली ज्यादा पवित्र मत बन तभी विकास ने उसे घूरते हुए कहा।
डोंट टॉक लाइक दिस, आयी एम ऑलरेडी हर्ट बैडली, प्ल्ज़ ड्राप मी इन सिटी आयी थिंक यू बोथ आर गुड़ फेलो, आयी नीड तो बे एट होम एज सून एज पॉसिबल,,उसने मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा।
चरररर अचानक रोहन ने गाड़ी रोक दी,उतर ,,चल नीचे आ, रोहन गाड़ी से उतरते हुये बोला।
य यहाँ!!, क्यों रोक दी गाड़ी, क्या तुम भी मुझे छोड़कर,,?? उसने आंखों में आंसू भरकर कहा।
हम उस लौंडे की तरह चूतिया नहीं हैं जो ऐसे माल की यूँही छोड़ कर चले जाएं, रोहन जोर से हंसते हुए बोला।
नहीं!!, हटो ,,, परी रोहन को धक्का मारकर एक तरफ भागी लेकिन विकास ने दौड़ कर उसे पकड़ कर जमीन पर पटक दिया और दोनों जोर जोर से हँसने लगे।
इसे जाने दो यार ऐसे जबरदस्ती करना ठीक नहीं,  सुरेश बहुत धीरे से बोला, ऐसे जबरदस्ती करके क्या मिलेगा हमें रोहन? सुरेश ने डरते हुए बोला।
ओ, फट्टू फिर फट गई तेरी? रोहन ने उसे झिड़का और परी का टॉप पकड़ कर खींच दिया जो चरररर कि आवाज करता फट गया और परिधि मुंह के बल जमीन पर गिर पड़ी।
तुम्हे भगवान का वास्ता मुझे जाने दो,मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है प्ल्ज़ छोड़ दो मुझे।
परी रोते हुए अपने हाथ सीने से चिपकाने लगी।
छोड़ देंगे परेशान क्यों हो रही है तू बस हमें खुश कर दे, विकास हँसते हुए बोला।
नहीं !!! परी जोर से चीखी, बचाओ बचाओ,, और विकास ने उसके मुंह पर हाथ रखकर उसकी आवाज दबा दी।
परिधि?? रोहन काँपती आवाज में बोला ,,
लेकिन तुम तो।
हाँ मर गई थी मैं तुमने मार दिया था मुझे तड़फा तड़फा कर, कितना रोई थी मैं लेकिन तुम दरिन्दों ने,,, कहते हुए परी ने रोहन के सर पर रखे हाथ को जोर से दबाया, जिससे खूंटा एक झटके में उसके अंदर सरकने लगा।
देख इस जगह को ध्यान से दरिंदे  यही वह जगह है जहाँ उस दिन तुमने मेरी इज्जत,,, परी क्रोध में जलने लगी उसका गोरा रंग क्रोधाग्नि से लाल हो गया उसने रोहन के सर को जोर से दबाया।
आहहहहहहह!! रोहन के मुँह से बहुत तेज़ चीख निकली, परी मुझे माफ़ कर दो मर जाऊंगा मैं बहुत पेन हो रहा है,, रोहन रोने लगा।
अर्रे यार कुछ नहीं होगा बस थोड़ा ही तो ओर है उसके बाद बहोत मज़ा आएगा मेरी जान,,, परी जोर से हँसी।
रोहन को फिर वह मंजर याद आ गया  जब वे लोग परिधि के साथ जबरदस्ती,,
मुझे छोड़ दो मर जाऊंगी मैं , परी अपने ऊपर से रोहन को धक्का देते हुए बोली।
चटाख!! साली नखरे करती है रोहन उसके गाल पर जोर से मार कर बोला, अरे बस थोड़ा और फिर तुझे भी मज़ा आएगा ऐसे भी कोई नहीं मरता इस खेल से और वह गन्दी हंसी हंसते हुए जबरदस्ती परी में समाने की कोशिश करने लगा।
नहीं!!!!, छोड़ दो कमीनो परी ने अपनी टांग पकड़े विकास के मुंह पर जोर से लात मारी जिससे वह चिढ़कर उसके मुंह पर नाखून गड़ा कर चिल्लाया, साली ज्यादा मर्द बन रही है, रोहन कर जल्दी साली बहुत उछल रही है,
और विकास ने उसके मुंह मे ****वह तड़फ उठी उसकी चीखें उसके गले में घुट कर रह गईं।
थोड़ा और,,, परी जोर से हंसते हुए रोहन को जोर से दबाने लगी।
रोहन दर्द से तड़फते हुए रोता रहा, तभी परी ने हाथ से इशारा किया उसका इशारा पाते ही सारे बिच्छू एक साथ विकास और सुरेश पर झपटे,,,
नहीं,,!!!,सुरेश और विकास एक साथ चीखे,,,
कई बिछु दौड़ कर एक साथ विकास के मुंह में घुस गए और उसके होंठों पर डंक मारने लगे।
कुछ बिछु सुरेश के पैरों पर चढ़ गए।
मैंने क्या किया??? सुरेश चीखा, मैं तो इन्हें मना कर रहा था परी और मैने तुम्हे हाथ भी नहीं लगाया था, सुरेश गिड़गिड़ाया।
हुँह!! बचाया भी तो नहीं था तूने मुझे कितना तड़फ रही थी मैं तू भी तो देख कितना दर्द होता है कहकर परी ने इशारा किया और एक बिच्छु ने उसके पैर पर अपना डंक गड़ा दिया
आहहहहहहहह नहीं ,,!!, सुरेश दर्द से तड़फ उठा।
इधर बिछुओं ने डंक मार मार कर विकास के होंठ सुजा दिए थे वह चीख रहा था रो रहा था उसकी आवाज गले में घुट रही थी, वह हाथ जोड़ कर इशारे से छोड़ देने की गुहार लगा रहा था।
ऐसा,!< बिल्कुल ऐसा ही लग रहा था मुझे भी उस वक्त जब तू मेरे मुंह मे,,, परी गुस्से से चीखी,अब समझ आया तुझे की कैसा लगता होगा जब  किसी की बिना मर्जी तुझ जैसे घिनोने लोग अपनी जबरदस्ती,  और परी ने इशारा किया तो सारे बिच्छू एक साथ विकास के मुँह, आँख, कान और नाक में घुंस गए और थोड़ी ही देर में दम घुटने से उसकी मौत हो गई, परी ने घृणा से मुँह बिगाड़ कर उसके मुंह पर थूक दिया।
अब तो तेरा बदला पूरा हो गया चुड़ैल अब हमें छोड़ दे, रोहन फिर गिड़गिड़ाया।
नही!!ं अभी नहीं कहते हुए परी ने भरपूर ताकत से उसके सर को दबाया जिससे खूँटा पूरा उसके पेट में घुस गया और उसकी आँते फट कर बाहर आ गयीं,उसी के साथ बाहर आ गई उसकी आखिरी सांस भी।
अब परी सुरेश की तरफ पलटी , सुरेश चेहरे पर दर्द लिए हाथ जोड़े कातर नजरों से उसे ही देख रहा था।
नहीं!! मुझे मत मारो ,मैने तो कई बार इनसे तुम्हे छोड़ने को कहा था लेकिन इन्होंने मेरी बात नहीं सुनी ।
लेकिन इन्होंने तुम्हे जान से तो नहीं मारा था फिर तुम कैसे मरी? सुरेश ने पूछा।
उस दुष्कर्म के बाद मैं क्या मुंह लेकर जीती??
तो मैंने पुल से कूद कर अपनी उस घिनोनी जिंदगी का अंत कर दिया और फिर जब मुझे मुक्ति नहीं मिली तो मेरे मन में अपना बदला लेने की चाहत होने लगी और आज मेरा बदला पूरा हुआ आज खत्म हुआ मेरी जिंदगी का आखिरी साल, अब आएगा मेरी मुक्ति का नया साल, और देखते ही देखते वह सफेद धुंआ बनकर उड़ गई, सुरेश भरी आंखों से उसे जाता देखता रहा।
समाप्त
©नृपेंद्र शर्मा'सागर'
नोट:-  मेरी नई किताब निकली है, तिलिशमी खजाना जिसकी बुकिंग शुरू हो चुकी है आप अपना ऑर्डर बुक करने के लिए नीचे दिया लिंक नोट करके गूगल में या किसी भी ब्राउज़र में खोल लें धन्यवाद।

फरिश्ता

आज रमेश का कॉलेज में आखिरी दिन था।
लेकिन उसने गांव न जाकर यहीं शहर में ही कोई नोकरी करने का फैसला किया था।
उसने एक दफ्तर में नोकरी की बात भी कर ली थी। कल से ही तो उसे नोकरी पर जाना है, अभी वो गांव नहीं जा पायेगा। v
गांव में बस उसकी बुड्ढी माँ के अलावा उसका कोई और सगा संबंधी नहीं है।
माँ के अलावा दुनिया में उसका और है ही कौन। दो चार महीने काम कर ले ,कुछ पैसा जमा हो जाये तो माँ को भी साथ ले आऊंगा , ।
सोचता हुआ रमेश अपनी मस्ती में चला जा रहा था। गांव में बैसे भी है ही क्या उसके पास दो ढाई बीघा जमीन एक कच्चा माकन बस यही संपत्ति जो उसे पुरखों से मिली थी।
नोकरी जम गई तो गांव जाकर करना भी क्या है? खुद से ही सवाल करता । और हाँ माँ की बीमारी का इलाज भी कहाँ गांव में हो पाता है। खुद ही जबाब दे देता ।
कभी हँसता कभी उदास होता बढ़ा जा रहा था।
तभी! सड़क किनारे कुछ जमा लोगों की भीड़ देख उसकी तन्द्रा भंग हुई।
कोई लड़की रो रही थी ।कोई तो मदद! करो खुदा के वास्ते,,,,,,
आवाज सुनकर रमेश भीड़ को चीरता उधर तेज़ी से लपका। तो देखा कि, एक बूढ़ा आदमी शरीर पर तमाम घाव लिए जमीन पर पड़ा तड़फ रहा है।
और एक 19/ 20 साल की सुन्दर लेकिन फटेहाल लड़की उसके पास बैठी रो रही है।
कोई मेरी मदद करो खुदा के वास्ते ,उन्हें घर पहुंचादो, कोई तो सुनो।
तभी एक आदमी भीड़ से बोला ,"अरे बेटी,इसको कोन हाथ लगाये, न जाने ये छूत की बीमारी हमें भी लग जाये तो।
अरे 'अहमद 'पर तो खुदा का कहर टूटा है। न जाने किस गुनाह की सजा मिली है उसे,जो ऐंसी नामुराद बीमारी लग गई बेचारे को।
अरे इसे तो जीते जी दोजख की आग में जलना पड रहा है। चलो भाइयों चलो यहाँ से, अरे ये छूत की बीमारी है लाइलाज,, हम कियूं इसके गुनाहों के साझीदार बने, अरे पता नहीं कोन से संगीन गुनाह किये इसने अपनी गुजस्त जिंदगी में, जो इतनी ख़ौफ़नाक सजा तारी हुई इसपर ।
ये कोढी है कोढ़ी।।।
ये सुनकर लड़की तड़फ कर बोली, ऐंसा न कहिये मोलवी साहब , खुदा के वास्ते ऐंसा कुफ्र न करिये,अरे लाचारों की मदद करना तो सबाब का काम है।
लेकि वहाँ जमा भीड़ अजीब सा मुह बनाती हुई धीरे -धीरे छंट गई।
और रह गए मियां अहमद और उनकी बेटी।
ये सब देख कर रमेश को बहुत अजीब लगा , उसने पास जा कर लड़की से पूछा ,"क्या हुआ है इन्हें"?
और ये सब लोग गुनाह ,सजा सब क्या क्या बातें कर रहे थे?
ये सुनकर उसने रमेश की और देखा ,और सिसकते  हुए बोली,"मेरा नाम सादिया है , ये मेरे अब्बू हैं । जिन्हें पिछले कुछ महीनो से अजीब बीमारी लग गई है जिसे ये लोग कोढ़ कहते हैं।
और इसे छूत की बीमारी कहकर हमारे साथ अछूतो सा वर्ताव करते हैं।
पिछले 2 महीने से इनकी बीमारी बहुत बढ़ गई है, ये अधिकतर घर मे ही पड़े रहते हैं।और खाना पीना भी बहुत कम कर दिया है। नतीज़ा कमज़ोरी बहुत बढ़ गई है।
अभी मैं जरा किसी काम से बाजार गई थी, लौटी तो ये यहाँ पड़े थे। न जाने कियूं घर से निकल आये और यहाँ आके बेहोश हो गए।
मै न आती तो अल्लाह जाने आज क्या हो जाता।
तब तक अहमद मियां को भी होश आया गया, उन्होंने धीरे से आँखे खोली और बोले , "अरे बेटी मैं अपनी इस जिल्लत भरी जिंदगी से आज़िज़ आ गया हूँ"।
और मेरी बजह से तुम्हारी जिन्दगी भी बेरंग ग़मगीन होती जा रही है।तुम्हे लोगों के रोज कितने ताने मेरी वजह से सुनने पड़ते हैं। यही सब सोचते हुए खुद को खत्म करने घर से निकला था, लेकिन ये भी शायद अल्लाह को मंज़ूर नहीं। जो मैं यहाँ गश खाके गिर गया और बेहोश हो गया।
तब रमेश बोला चलो बाबा अब घर चलो वहीँ बातें करेंगे।

उसने सहारा देकर उन्हें खड़ा किया, और सादिया की मदद से उनके घर ले आया ,जो की पास में ही था।
घर आके उसने लड़की से पूछा , तुमने इनका इलाज़ नहीं कराया कहीं? अरे ये अब लाइलाज बीमारी नहीं है । सही इलाज और देखभाल से ये पूरी तरह ठीक हो जाती है। और तो और सरकारी अस्पताल में इलाज भी एकदम मुफ्त होता है। ये सुनकर सादिया रोते -रोते बोली," मेरा दुनिया में अब्बा के इलावा कोई नहीं है।साल भर पहले जब इनके हाथ पर पहली दफा दाग देखा था , तो हम हाकिम जी के पास गए थे। लेकिन बीमारी बढ़ती ही गई, और धीरे धीरे पूरे जिस्म में फ़ैल गई"।
अब तो शरीर के घाव फूटने भी लगे हैं। लोग कहते हैं ये छूत की बीमारी है ,जो की गुनाहों की सज़ा की वज़ह से होती है। और अगर कोई उसे छू ले तो ये बीमारी उसे भी लग सकती है।
ये सुनकर रमेश अफ़सोस के साथ बोला, आप मुझे पढ़ी- लिखी समझदार लगती हो सादिया, फिर भी नीम हकीमो, और इन ज़ाहिल मोहल्लेबालों के कहने में आ गईं।
इन लोगों की बेशिरपैर की बातों को मानकर हिम्मत हार कर बैठ गई।
अरे तुम लोगों को बड़े अस्पताल जाना चाहिए था।
सादिया बोली लेकिन हमारे पास पैसे कहाँ हैं बाबुजी । कहाँ से कराती इलाज़?।
अरे पागल !!मुफ्त इलाज होता है सरकारी अस्पताल में कुष्ट का बताया था न मैंने। रमेश अपनेपन से उसे झिड़क कर बोला ।
कल सुबह मैं खुद इन्हें अस्पताल ले जाऊंगा।
अभी तुम इनकी साफ सफाई करके घावों पर तेल लगा देना। सुबह तैयार रहना इन्हें अस्पताल ले चलेंगे।
ये कहकर रमेश वहाँ से चल दिया। दोनों बाप बेटी उसे कृतज्ञता भरी नज़रों से देखते रहे।
अगले दिन सुबह 9 बजे रमेश उनके घर पहुंचा ,और बोला चलो बाबा अस्पताल वहाँ डाक्टर को दिखाना है।
आप तैयार हो जाओ मै रिक्शा ले आता हूँ।
अहमद मियां बोले अरे बेटा तुम तो हमारे लिए, "फ़रिश्ता" बनकर आये हो।
, यहाँ तो अपनों ने भी मुँह मोड़ लिए। बिरादरी तो बिरादरी सगे भी किनारा कर गए। तुम तो हमें जानते तक नहीं फिर भी!!!
अरे बाबा इंसानियत भी कोई चीज़ होती है ,रमेश बोला । अच्छा अब ज्यादा बातें न करो ,और जल्दी चलो मै रिक्शा लाता हूँ।
रमेश रिक्शा ले आया और तीनों लोग अस्पताल पहुँच गए। वहाँ रमेश उन्हें सीधे कुष्ट उनमूलन केंद्र ले कर पहुंचा। डॉक्टर ने मुआयना किया और पूछा, कब से है बीमारी?
साल हो गया साहब अहमद ने जबाब दिया।
बहुत देर कर दी आपलोगो ने आने में, बीमारी बहुत बढ़ गई है।
क्या अब मेरे अब्बू ठीक न हो सकेंगे डाक्टर साब,?? सादिया ने तड़फ कर पूछा।
ठीक तो हो जायेंगे लेकिन बहुत समय लगेगा अब। बीमारी बहुत ज्यादा बढ़ गई है।
मै दवाइयां दे देता हूँ लेकिन नियमित इलाज़ और देखभाल करनी होगी । और कुछ सावधानियां मैं सब लिख देता हूँ। इनको हर सप्ताह चेकअप के लिए लाना होगा। सब समझाकर डाक्टर ने उनको दवाइयां और आवश्यक निर्देश देकर घर भेज दिया।
घर पहुंचकर रमेश को याद आया आज उसे 10 बजे दफ्तर पहुंचना था ,अब 12 बज गए , आज पहले दिन ही छुट्टी हो गई।
लेकिन वह फिर भी दफ्तर चला गया, और वहाँ उसने कह दिया रस्ते में एक दुर्घटना हो गई थी। उसी में उसे देर हो गई।

लगातार इलाज़ उचित खुराक और बेहतर देखभाल से अहमद साहब की हालत में काफी सुधार आने लगा था। रमेश रोज़ दफ्तर जाने से पहले और दफ्तर से लौट कर अहमद मियां की खबर लेने जाता। इन रोज़ रोज़ की रमेश और सादिया की मुलाकातो  से दोनों के बीच मोहब्बत का जज़्बा सर उठाने लगा।
सादिया और अहमद दोनों ही रमेश की बहुत इज़्ज़त करते थे। धीरे धीरे सादिया और रमेश की नजदीकियां मोहल्लेबालों की आँखों में चुभने लगे।
कुछ लोगों ने रमेश से कहा भी कि, तुम एक कोढ़ी की देखभाल कर रहे हो अगर कहीं बीमारी तुम्हे लग गई तो?
तुम एक अच्छे घर के समझदार लड़के हो थोड़ा ध्यान रखो।

लेकिन रमेश सब अनसुना कर गया। अब अहमद मियां लगभग ठीक हो चले थे 6 महिने गुज़र गए देखते देखते।

एक दिन रमेश ने सादिया का हाथ पकड़कर कहा, "सादिया मै कई दिन से तुमसे कुछ कहना चाह रहा था ,लेकिन तुम्हारे अब्बा की बीमारी के चलते खामोश था। अब चूँकि उनकी हालत पहले से काफी बेहतर है , तो मुझे लगता है कि , मुझे अपने दिल की बात तुम्हे बता देनी चाहिए"।
कहो?? सादिया ने संक्षिप्त उत्तर दिया।
और उसकी आँखिन में झाँकने लगी।
बात ये है सादिया कि, हम काफी दिनों से रोज़ मिल रहे हैं , एक दूसरे को जान समझ रहे है ।और अब मुझे लगता है कि मेरे दिल में तुम्हारे लिए चाहत होने लगी है।
मुझे लगता है कि, हम दोनों जिंदगी साथ में बिता सकते हैं। क्या तुम मुझसे शादी करोगी?
ये सुनकर सादिया बोली हम आपकी बहुत इज़्ज़त करते हैं रमेश जी। और आपके जज्बातो की हमारे दिल में बहुत कदर है। हमें तो फख्र होगा अपने आप पर और नाज़ होगा अपनी किस्मत पर,जो हमें आप जैसे शोहर मिले,।।
लेकिन क्या समाज और बिरादरी हमें इसकी इज़ाज़त देंगे? क्या बो हमारे रिस्ते को क़ुबूल करेंगे?
समाज!! हाँ ये वही समाज !है न जो उस दिन तुम्हारे अब्बू को अछूत कहकर अपने से अलग कर रहा था?
और बिरादरी, कहाँ गए थे बिरादरी बाले उसदिन जब तुम मदद की गुहार लगा रही थीं?
क्या तुम भूल गई सब?
कुछ नहीं भूली मै रमेश। !!
सादिया तड़फ उठी।
तो फिर कियूं समाज और बिरादरी की दुहाई दे रही हो? रमेश ठीक कह रहा है सादिया बेटी, कहते हुए तभी अहमद मियां ने कमरे में कदम रखे।
अरे जब बिरादरी को हमारी फिक्र नहीं तो हम कियूं , जाती धर्म और समाज की परवाह करें?
और फिर रमेश तो हमारे लिए 'फ़रिश्ता' है जब मैं बीमारी से लड़ रहा था ,,अरे मर ही गया था अगर ये ' फ़रिश्ता ' न आया होता।
और अगर मैं मर जाता तो यहि समाज तुजसे हमदर्दी के बहाने तुझे बुरी नजरो से रोज मारता।
अरे मैंने कितनी कोशिशे की, कि मेरे जीते जी तेरा निकाह हो जाये।
कम से कम तेरी जिम्मेदारी तो मरने से पहले पूरी करता जाऊ।
लेकिन जहाँ कहीं भी बात चली ,सबने मेरी बीमारी का वास्ता देकर साफ इंकार कर दिया।
और तो और कई लोगों ने तुझे अपनी दूसरी बीबी बनाने की पेशकश रखी ,या मेरी उम्र के बुड्ढों ने तरस खाकर, तुझे अपनाने को कहा।
अरे सादिया ये सारा समाज गंदगी का ढेर बन चुका है। और तू इस समाज की परवाह कर रही है।
अरे मैं तो कहता हूँ बड़े खुशनसीव हैं हम लोग ,जो रमेश जैसे 'फ़रिश्ते' को अपनी ज़िंदगी में शामिल करने का मौका मिल रहा है हमें।
अरे ये तो खुदा का भेजा फ़रिश्ता है। और मैं सारी ज़िन्दगी चराग़ लेकर भी ढूँढू ,तो अपने लिए ऐंसा नेकदिल दामाद न ढूंढ पाउँगा।
इसलिए तू घबरा मत मेरी बच्ची सारी फिक्र छोड़ कर हाँ कर दे।
ये सुनकर सादिया ने रमेश का हाथ हौले से दबाया ,और उसकी आँखों में देखते हुए मुस्कुरा दी।
रमेश उसके मन की बात समझ गया और बोला , क्या सच सादिया? तो सादिया ने शर्म से नज़रें झुका ली ,और उठकर भाग गई।।
अहमद मियां और रमेश हंसने लगे।
रमेश गांव जाकर मा को ले आया ,और उन्हें अहमद मियाँ के घर ले जाकर सादिया और अहमद मिया से मिलते हुए सारी बात बताई।
मां को सादिया बहुत पसंद आई , और साथ ही अपने बेटे की नेकदिली पर फख्र भी हुआ।
और उन्होंने रमेश ओर सादिया की शादी को मान लिया।
रमेश ने अपने लिए एक अच्छा मकान किराए पर ले लिया।
हाँलाकि अहमद मियां ने बार बार कहा कि इतने बड़े मकान में वे अकेले क्या करेंगे सब यहीं रहो।
लेकिन रमेश और सादिया दोनो ही इस मोहल्ले में नही रहना चाहते थे।
आज सादिया और रमेश की शादी है दोस्तों , मुझे वहाँ जाने की जल्दी है, इसलिए ज्यादा बात नहीं कर सकता। तो अब चलता हूँ।
आएँ !!क्या कहा मैं कियूं जा रहा हूँ?? अरे भाई दोस्त हूँ रमेश का। लेकिन बो सच में 'फ़रिश्ता' है।

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