सागर का तूफान, आप सोच रहे होंगे ये क्या नाम हुआ । सागर और तूफान दो विपरीत गुण दो उलट शख्शियत ।
एक मे गंभीरता है, गहराई है ,शांति और प्रेम का द्योतक है।
वहीं दूसरा विध्वंसक, विनाशक ,भयावह अशांति का प्रतीक।
किन्तु क्या जो हमेशा शांत है गम्भीर है उसमें कभी क्रोध कभी असंतोष नही होता होगा।
खासकर पर्वत को अपनी ऊंचाई पर अभिमान करते ,या हवा को अपने वेग पर गर्व करते ,आत्ममुग्ध होते देख ।
आ जाता होगा सागर के हृदय सागर में भी अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करने का विचार।
या उनदोनो को अपनी शक्तिपरिचय से अवगत कराने का भाव।
और उठा देता होगा अपनी लहरों को ऊंचा पर्वत को खुद में समेटने के लिए।
उछाल देता हिगा अपनी अतुलनीय जलराशि को हवा को निज अंक में समेत लेने के लिए।
और फिर जो तबाही होती है उससे हम सभी परिचित हैं ।
इसी प्रकार मेरे हृदय सागर में भी उठते हैं तूफान। कभी सामाजिक कभी धार्मिक अस्थिरता को देख कर । उबल पड़ता है मेरा साहित्य क्रंदन।
और बन जाती है कोई नई शब्द रचना जिसे मैं कहता हूं सागर का तूफान।
मैं कौन?
मैं भी सगार की तरह शांत गम्भीर हुन मेरा ह्रदय भी सदा भावो से भरा है।
किन्तु मानवी अवगुण मुझमें भी बहुत हैं ।
मैं एक ऐंसा पौधा(केक्टस) हूँ जिसे प्यार करने के लिए भी हाथ बढ़ाओगे तब भी आपको चुभन ही दूँगा।
अब ज्यादा आपको भ्रमित न करते हुए मुद्दे पर आता हूं कि सागर का तूफान में आपको मेरी नए सामाजिक विषयों पर लिखी कहनिया पढ़ने को मिलेंगी।
प्रिय नृपेन्द्र---- आपने ब्लॉग के श्री गणेश पर आपको हार्दिक शुभकामनायें | देती हूँ | माँ सरस्वती आपके लेखन को असीम विस्तार प्रदान करे और लेखनी पर अपनी अपार कृपा बनाये रखे | और संगर पर जो आपमें मानस - मंतःन किया है वो बहुत ही शानदार है | आशा ही नहीं विस्वास भी है ब्लॉग जगत के लोग आपके लेखन से परिचित हो उसे भरपूर महत्व देंगे | और शब्द नगरी से शुरू हुआ आपका ये सफर नये सुखद पडाव की और अग्रसर हो मेरी यही कामना है |पुनः मेरी स्नेह भरी शुभकामनायें |
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