सूखा गुलाब
आज बहुत दिन बाद अलमारी साफ करते समय रश्मि को अपनी पुरानी डायरी मिली।
रश्मि को शादी से पहले डायरी लिखने का शौक था, यह उसकी वही पुरानी डायरी थी।
रश्मि ने जैसे ही वह डायरी खोली तो उसमें से एक सूखा हुआ गुलाब नीचे गिर गया।
रश्मि ने गुलाब उठाया और उसे देखने लगी, उस गुलाब की सूखी महक के साथ उसे उससे जुड़ी पुरानी यादें भी आने लगीं।
"हमारी शादी ऐसे नहीं हो सकती रश्मि, पिताजी का कहना है कि दहेज में पच्चीस लाख रुपये लाओ चाहे जिससे शादी करो। ऐसा नहीं है तो हमारी पसन्द से शादी करो, वह लोग तीस लाख देने को तैयार हैं। हम तो तुम्हारे प्यार की खातिर पाँच लाख का नुकसान सह लेंगे लेकिन उससे अधिक नहीं। अब तुम ही बताओ क्या तुम्हारे पिताजी पच्चीस लाख दे पाएंगे।" ललित ने रश्मि का हाथ पकड़कर बनावटी उदासी के साथ कहा था।
"पच्चीस लाख!! क्या कह रहे हो ललित? ये हमारे प्रेम के बीच दहेज कहाँ से आ गया?" रश्मि ने चौंकते हुए कहा।
"मैं मजबूर हूँ रश्मि, यदि मैंने पिताजी की बात नहीं मानी तो वे मुझे बेदखल कर देंगे।" ललित ने कहा और उठकर चला गया।
रश्मि को अब यह गुलाब जहरीला लग रहा था, उसकी खुश्बू उसे असहनीय हो रही थी। कल ही तो ललित ने रश्मि को प्रेम से यह गुलाब दिया था और उसे 'बेपर्दा' कर दिया था। रश्मि को लगा कि ये गुलाब ही शापित था जिसे लेने के बाद उसका सब कुुुछ लुट गया और उसका दो साल पुराना रिश्ता भी खत्म हो गया।
"ललित!" रश्मि का चेहरा गुस्से से तन गया और उसकी पकड़ से वह जहरीला गुलाब चूरा-चूरा होकर मिट्टी में मिल गया।
नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद