डूबा हुआ खज़ाना
(ये कहानी एक परिकल्पना मात्र है, जिसे मनोरंजन के उद्देश्य से लिखा गया है।)
साल 2075, दुनिया में बहुत बदलाब हो चुके थे, जलप्रलय के बाद पृथ्वी रहने लायक नहीं रह गयी थी। दुनिया के विज्ञान के ज्ञान की सहायता से कुछ लोगों ने प्रलय का पहले ही पता लगा लिया था और कुछ लोग चन्द्रमा एवं मंगल ग्रह पर शिफ्ट कर गए थे। कुछ लोग ऐसे भी थे जिनके पास दूसरे ग्रहों पर जमीन लेने और अंतरिक्ष यात्रा पर खर्चा करने के लिए पैसे भी नहीं थे।
ऐसे में उन लोगों ने योग का सहारा लिया और खुद को पानी में साँस लेने और जल में रहने के अनुकूल बनाने के लिए कठिन अभ्यास किया।
अब दुनिया की स्थिति ये थी कि पृथ्वी बिल्कुल निर्जन एवं बंजर हो चुकी थी। पेड़ पौधे तो दूर की बात है जमीन पर घास का तिनका भी नज़र नहीं आता था। जीवन का कोई भी संकेत पृथ्वी के किसी भी भाग में सम्भव नहीं लगता था। जल प्रलय से पहले ही सारे धनी लोग दूसरे ग्रहों पर चले गए थे। बाकी योगी लोगों ने प्रलय का भी दिल खोलकर स्वागत किया था और पानी बढ़ते ही समुद्र की तलहटी में चले गए थे। उन्होंने समुद्र की तलहटी में पत्थरों से अपने लिए अच्छे भवन भी बना लिए थे और कुछ जलीय जीवों से मित्रता भी स्थापित कर ली थी।
समुद्र की गहराई में जल के भीतर मानव बस्तियां इतनी सहजता से नहीं बन गयी थीं बल्कि उसकी नीव में बहुत से जलीय जीवों की अस्थियां दफन हुई थीं।जिन्होंने मनुष्यों का समुद्र तल में बसना सहज स्वीकार नहीं किया था और उनके इसी विरोध के प्रतिरोध में हुए खूनी संघर्ष में कितने ही जीवों की जान चली गयी थी।
इसके अलावा कुछ जीव जो सुंदर एवं छोटे थे उनकी नृशंस हत्या मानवों ने अपने घर सजाने के लिए कर दी थी।
अब स्थिति ये थी कि समुद्र की तलहटी में मानवों की छोटी-छोटी बहुत सारी बस्तियां बसी हुई थीं। इनमें ज्यादातर एक दूसरे के विरोधी थे। मानव की महत्वाकांक्षा ने अभी भी मानव का पीछा नहीं छोड़ा था और वह अभी भी निरंतर अमानवीय व्यवहार कर रहा था।
ज्यादातर बस्तियों में आपस में संघर्ष होता रहता था जो अधिकतर समुद्र में पहले से डूबे जहाजों से मिलने वाले समान और ख़ज़ाने को लेकर होता था।
अभी भी मनुष्य की सोना इकट्ठा करने की भूख मिटी नहीं थी। जबकि समुद्र के नीचे मानव जीवन के लिए किसी धन की आवश्यकता ही नहीं थी। जल में ना तो वस्त्र थे और ना ही कोई ऐसा भोजन जिसके लिए मूल्य चुकाना पड़े लेकिन फिर भी मनुष्य खज़ाना इकट्ठा कर रहे थे, ये सोचकर कि कभी ना कभी तो हम लोग पृथ्वी पर वापस जाएँगे और वहाँ फिर से सोना, चाँदी, हीरे, जवाहरात का राज होगा।
जल में भोजन के लिए मानव जलीय जीवों पर निर्भर था और वस्त्रों के लिए बड़े जलीय जीवों की खाल पर।
ज्यादातर लोग मछली, सीप, घोंघे, सरिसृप एवं अन्य जलीय जीवों को कच्चा ही खा रहा था लेकिन धीरे-धीरे कुछ लोगों ने अपना भोजन पकाने की तकनीक भी निकाल ली थी। ऐसे ही धीरे-धीरे कुछ लोग जल के अंदर पृथ्वी जैसे अन्य सुख सुविधाओं के संसाधनों का अनुसंधान भी कर रहे थे।
अब हम चलते हैं अपनी कल्पनाओं में कहानी को जीने।
समुद्र तल के अंदर बहुत सारी बस्तियां थी और उनके अलग-अलग मुखिया भी खड़े हो गए थे। इनमें तीन मुख्य गुट थे। एक था गोरे लोगों का ग्रुप जिसमें थे अमरीकन, ब्रिटिश, पोलिश, आयरिश, आस्ट्रेलिया जर्मनी एवं दूसरे गोरे मुल्कों के लोग जिनका मुखिया था एंडरसन।
दूसरा ग्रुप था काले लोगों का अर्थात अफ्रीकन, कैरोवियन, नाइजीरिया एवं अन्य काले लोग। इनका मुखिया था वेराडो नामक व्यक्ति जो अफ्रीकी था।
और तीसरा ग्रुप जिसमें थे सारे एशियन,अरबी एवं भारतीय महादीप के लोग। इनका मुखिया था एक भरतीय जिसका नाम था शमशेर।
समुद्र के नीचे इन लोगों ने कई खरतनाक जीवों को भी पाल रखा था। हर मुखिया के पास व्हेल, शार्क, ऑक्टोपस और बड़े मगरमच्छ पल रहे थे जो इनकी सवारी भी थे और लड़ाके भी।
एंडरसन को कहीं से पता लगा कि पेसिफिक सागर में दूर कहीं गहराई में किसी बड़े जहाज के होने के संकेत मिले हैं। लेकिन पेसेफिक पर तो शमशेर का कब्जा है फिर कैसे खज़ाना हासिल किया जा सकता है। इससे पहके भी कई बार शमशेर और एंडरसन के बीच ऐसे हक खजानों को लेकर खूनी संघर्ष हो चुके थे। एंडरसन को डर था कि कहीं उससे पहले शमशेर उस जहाज को ढूंढ निकाले और खज़ाना प्राप्त कर ले। वह ये नहीं चाहता था कि खज़ाना शमशेर या वेराडो को मिले।
एंडरसन ने अपने कुछ खास लोग जो ऐसी खोज के विशेषज्ञ थे उन्हें गुप्त रूप से जहाज़ की पूरी जानकारी जुटाने के लिए भेजा।
इधर शमशेर के कुछ खोजी लोग भी उसी के आसपास कुछ छानबीन कर रहे थे। हालांकि उन्हें पता नहीं था कि उधर कोई पुराना जहाज डूबा हुआ है।
वे तो बस सामान्य दिनों की तरह ही अपना खोज अभियान चला रहे थे।
इन तीनों ही दलों ने तीनों मुख्य समुद्रों को आपस में बांट रखा था। और अपने-अपने समुद्री सीमा में इनके खोज अभियान चलते रहते थे।
लेकिन इतनी महामारी इतने विनाशकारी तूफान और अब महाप्रलय के बाद भी मानव सुधरा नहीं था। अभी भी उसकी सर्वशक्तिमान बनने की इच्छाएं मरी नहीं थी। अभी भी वह धन सम्पदा का मोह छोड़ नहीं पा रहा था।
इसी क्रम में समुद्री ख़ज़ाने को लेकर ये तीनों बड़े गुट अक्सर आमने-सामने आते रहते थे और इनके भीषण युद्ध में कई लोग मारे जाते थे। और लोगों से अधिक मरते थे इनके पाले हुए समुद्री जीव जो अब इनकी संगत में रहकर खुद को परम शक्तिशाली सिद्ध करने में लगे हुए थे।
इन बड़े कबीलों के अलावा कई अन्य गुटनिरपेक्ष समुदाय भी थे जो समुद्री तलहटी में बस गए थे और ये लोग समुद्र के नीचे जीवन को सामान्य और सुरक्षित बनाने की नही विद्याएँ खोजने के लिए अभी भी योग कर रहे थे। इनमें भी काफी सारे भारतीय, चीनी, रशियन और जर्मनी के लोग शामिल थे। ये लोग ऐसे तो बहुत शक्तिशाली थे लेकिन ये लोग कभी भी ख़ज़ाने के लालच में किसी से नहीं लड़ते थे। इनका कहना था कि समुद्र के नीचे हमें किसी ख़ज़ाने की नहीं बल्कि आत्मबल और योग की शक्तियों की आवश्यकता है जिससे हम अपने जीवन को पृथ्वी के जीवन जितना ही सरल बना सकें। ये लोग इन तीनों कबीलों को भी शान्ति का संदेश सुनाते रहते थे। और यही योगी लोग इन कबीलों की लड़ाइयाँ शान्त करवाकर इनके बीच सामंजस्य स्थापित करने का कार्य भी करते थे।
ऐसे तो योगी लोग कभी युद्ध नहीं करते थे किंतु इनके योग की शक्ति को सभी जानते थे और इनसे डरते थे। इसी लिए इनका पूरे जल क्षेत्र में सम्मान होता था।
एंडरसन के खोजी दस्ते ने अपनी खोज पूरी करके बताया कि, "प्रशांत महासागर में दक्षिण पूर्व के मध्य क्षेत्र में एक बहुत बड़ा जहाज डूबा हुआ है। जहाज बनाबट के हिसाब से उन्नीसवीं शताब्दी का लगता है और वह कोई मालवाहक व्यापारिक जहाज़ है।
एंडरसन ये सुनकर खुश हो गया उसने अपने कुछ चुनिंदा लड़ाके इकठ्ठे किये और चुपचाप इस अभियान पर जाने के लिए निकल पड़ा।
इस अभियान के लिए इन्होंने दो नीली व्हेल के मुर्दा शरीरों को अपनी पनडुब्बी बनाया हुआ था। इनके आगे दस घड़ियाल और चार शार्क इनको रास्ता दिखाते हुए सामने से आने वाले हर खतरे से निपटने को तैयार पूरी मुस्तेदी से आगे बढ़ रहे थे।
इनके इन पनडुब्बी व्हेलों को खेने का काम कुछ व्हेल और कुछ बड़े ऑक्टोपस कर रहे थे जो इनके बिल्कुल नीचे नीली व्हेल से चिपके हुए खुद को छिपाकर आगे बढ़ रहे थे।
लेकिन इन्हें इस बात का बिल्कुल भी अंदेशा नहीं था कि वेराडो को भी इस खजाने की भनक है और वह भी अपनी चार व्हेल भरकर सैनिक इधर भेज चुका है...
एंडरसन की सेना तेज़ी से किन्तु पूरी शान्ति के साथ खुद को छिपाती हुई आगे बढ़ रही थी। उधर वेराडो को भी पता लग गया था कि कोई जहाज पेसिफिक सागर में उसकी और शमशेर की सीमाओं के बीचोंबीच देखा गया है और उसने भी अपनी सेना चार पनडुब्बियों में भरकर उस ओर भेज दी थी।
इधर शमशेर के खेमें में कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी।
"शमशेर भाई क्या हम लोग इस जहाज का माल पाने के लिए कुछ नहीं करेंगे?" शमशेर का एक खास साथी उससे पूछ रहा था।
"झामयू! हमें पता है कि उस जहाज का पता वेराडो और एंडरसन दोनों को ही लग चुका है, और दोनों ही किसी झपटमारों की तरह उधर लपक चुके हैं।
लेकिन अभी हमें कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं है। इन्हें आपस में लड़ने भिड़ने दो, उसके बाद इनकी शक्ति खुद ही कम हो जाएगी और इनमें से जो भी जीतेगा उसके खिलाफ हारने वाले को हम अपने साथ मिलाकर जीतने वाले दल पर हल्ला बोल देंगे और फिर सारा माल...! हाहाहाहा!!!" शमशेर कुटिल अंदाज़ में हँसते हुए बोला।
"लेकिन सरदार वह जहाज तो हमारी सीमा में है। और उसका कोई पाँच परसेंट हिस्सा वेराडो की सीमा में!" तभी शमशेर का एक अन्य साथी बोल पड़ा।
"अरे पटेल, हर समय व्यापारी की तरह मत सोचा कर! अरे हमें भी पता है जहाज हमारी सीमा में है। और बाद में हम इसी बात को बेस बनाकर जीतने वाले कि पूंछ पकड़ेंगे की उसने हमारी सीमा में आकर अपने सैनिक लड़ाये, मतलब हम पर हमला किया। तुम्हें नहीं पता पटेल और झामयू कि हमारे अलावा एक और महाशक्ति समुद्र में रहती है। और वे हैं शांतिदूत योगी लोग। यदि हमने ऐसे सीधे किसी पर हमला
किया तो वे लोग हमारे खिलाफ हो जाएंगे और हम नहीं चाहते कि हम लोग एक महाशक्ति से पंगा लें।
लेकिन जब वेराडो और एंडरसन हमारी सीमा में आकर अपनी मच्छी लड़ायेंगे तो हम शान्ति स्थापित करने के नाम पर जिसे चाहे उसे पीट लेंगे। इस तरह हम माल भी पा जाएँगे और योगी लोगों की सहानुभूति भी।" शमशेर ने समझाया।
शमशेर की बात सुनकर झामयू और पटेल अपने सरदार की चालाकी पर खुद ही खुशी से फूल कर गुब्बारे बन गए।
"अच्छा सुनों! ऐसा नहीं है कि हम उधर से बिल्कुल लापरवाह रहेंगे। तुम दोनों अपनी दो-चार छोटी मच्छी उधर की सारी गतिविधियों पर निगरानी करने के लिए तैनात रखना। और तुम दोनों खुद बारी-बारी से उधर मौजूद रहना।" शमशेर ने कुछ सोचकर उन्हें आदेश सा दिया।
"जी सरदार, समझ गए।" दोनों ने मुस्कुराते हुए एक साथ कहा।
पेसेफिक की तलहटी में एक बहुत बड़ा जहाज पड़ा हुआ था। इसका आगे का हिस्सा बुरी तरह टूट चुका था जैसे ये किसी बड़े पर्वत से टकराया हो। जहाज की रंगत पानी की काई से बिगड़ चुकी थी। इसमें कई जंगली पेड़-पौधे कवक और शैवाल उग आए थे।
जहाज के चारों ओर इकट्ठे हुए पत्थर, बालू एवं सीप-घोंघों के मृत कवचों का ढेर देखकर लग रहा था की जहाज को डूबे बहुत समय गुजर चुका होगा।
एंडरसन की फौज जहाज से कोई दो सौ मीटर उत्तर-पश्चिम में स्थिर होकर उसपर नज़र रखे हुए थे कि कहीं ऐसा तो नहीं कोई पहले ही जहाज पर कब्जा करके बैठा हुआ हो।
"हम कब तक ऐसे दूर से बस इस सामने पड़े जहाज को देखते रहेंगे सेड्रिक?" एक व्यक्ति ने अपने मुखिया से पूछा।
"सामने देखो पहले, वेराडो की सेना हमसे पहले इधर पहुँच गयी है, जाओ जाकर सरदार को ये बात बताओ और फिर जो उनका आदेश हो आकर हमें बताओ।" सेड्रिक ने उस व्यक्ति को वापस जाने को कहा।
सेड्रिक एंडरसन की इस सैनिक टुकड़ी का मुखिया था और उसके साथ अलग-अलग व्हेलों में कोई सौ से अधिक मानव सैनिक मौजूद थे। इसके साथ ही छोटे-बड़े सब मिलाकर करीब सौ ही जलीय जीव भी इनकी सेना में सैनिक की भूमिका निभा रहे थे।
उधर वेराडो की सेना की कमान कैलिस के हाथ में थी जो कि एक काला कैरेबियन था। वह शरीरिक रूप से किसी दैत्य जितना बड़ा था और ताकतवर इतना कि एक ही मुक्के से शार्क को भी तारे दिखा देता था।
उसके साथ भी कोई सत्तर-अस्सी मनुष्य और सौ से अधिक खूँखार जलीय जीव थे।
वेराडो की सेना जहाज के दक्षिण पूर्व में कोई सौ मीटर पर डेरा जमाए बैठी हुई थी। ये लोग एंडरसन की सेना से पहले यहाँ पहुँचे थे और सामने से एंडरसन की सेना को आते हुए देखकर रुक गए थे वरना ये तो उस जहाज को बाप का माल समझकर ही उसे उठाने चले थे।
"कैलिस सर! ये तो एंडरसन की मछलियां हैं! इसका मतलब उसे भी जहाज की खबर लग गयी है। ये लोग तो संख्या में हमसे ज्यादा भी लग रहे हैं। अब हम क्या करेंगे?" कैलिस के एक साथी ने डरते हुए पूछा।
"तुम जाकर सारी बात सरदार को बताओ और फिर जो वे कहेंगे हम वही करेंगे।" कैलिस ने भी अपने साथी को वापस भेज दिया।
"क्या वहाँ शमशेर सिंह की ओर से कोई भी गतिविधि नहीं हो रही?" सारी बात सुनकर एंडरसन ने सन्देशवाहक से सवाल किया।
बिल्कुल यही प्रश्न वेराडो ने भी अपने सन्देशवाहक से पूछा और उनके मना करने पर दोनों ही सरदार गहरे आश्चर्य से भर गए।
"ऐसा कैसे हो सकता है कि शमशेर के क्षेत्र में कोई जहाज खोजा गया हो और शमशेर सिंह आराम से सो रहा हो। इसके पीछे अवश्य ही उसकी कोई गहरी चाल है। हमें सावधानी से पहले शमशेर की गतिविधियों की जानकारी लेनी होगी उसके बाद ही हम कोई भी ऐक्शन लेंगे। हम वेराडो से तो फिर भी निपट लेंगे लेकिन ये शमशेर सिंह...! हमें कोई ऐसा काम नहीं करना जिससे हम सीधे शमशेर गैंग के दुश्मन हो जाएँ।" वेराडो ने अपने आदमी को कहकर वापस भेज दिया।
उधर एंडरसन ने भी शमशेर की गतिविधियों की जानकारी लेने के लिए अपने सिखाये हुए चार मेंढक और दो पातर उधर भेज दिए।
एंडरसन और वेराडो दोनों ही जहाज के आस-पास एक दूसरे की उपस्थिति से परेशान हो गए थे। अभी तक जो दोनों उस जहाज को हलवा समझ कर हड़प कर जाना चाहते थे अब वही जहाज इन दोनों को लोहे के चने बनता दिखाई दे रहा था। दोनों को ही इस बात की भी हैरानी थी कि अभी तक शमशेर की ओर से कोई भी हरकत क्यों नहीं हुई। क्या उसे इस 'डूबे हुए ख़ज़ाने' में कोई दिलचस्पी नहीं है?? बड़ी विचित्र बात थी कि लूट में हमेशा आगे रहने वाला शमशेर इस इतने बड़े जहाज के उसके खुद के इलाके में होने पर भी बिल्कुल शांत बैठा हुआ था।
और इसी बात को पता करने के लिए एंडरसन और वेराडो दोनों ही अपने छोटे जासूस शमशेर की तरफ भेज चुके थे।
शमशेर भी बिना तैयारी के नहीं बैठा था, उसके जासूस हमेशा एंडरसन और वेराडो कि जासूसी में तैनात रहते थे। आज भी उसके जासूसों ने उसे खबर कर दी कि उनकी गतिविधियों पर निगरानी करने एंडरसन और वेराडो कि मेंढकी और पातर निकल पड़ी हैं।
शमशेर का दरबार सजा हुआ था उसके लोग उसके सिंहासन के नीचे जमा थे। शमशेर एक बड़े से कछवे की पीठ पर बैठा हुआ था। वह कछुआ इतना बड़ा था जैसे कोई बड़ी चट्टान ही वहाँ पड़ी हुई हो। शमशेर एक डाल्फिर का सहारा लिए अधलेटा सा हो रहा था। उसने मगरमच्छ की खाल से बने कपड़े पहने हुए थे। उसके सिर पर कछुए के कवच का ही मजबूत मुकुट था और हाथ में वालरस मछली का बहुत बड़ा दाँत हथियार के रूप में शोभित था। उस दाँत के निचले भाग को सोने और मोतियों से सजाया गया था। शमशेर का ये दरबार किसी महाराजा के दरबार से कम नहीं था।
"महाराज जहाज के बारे में क्या सोचा आपने जो पैसिफिक में पाया गया है?" किसी दरबारी में खड़े होकर पूछा।
"शम्भू, हमें उस जहाज में कोई दिलचस्पी नहीं है। तुम्ही बताओ एक सदी पुराने उस जहाज से हमें क्या मिल सकता है। और फिर धरती के जीवनकाल की कोई भी वस्तु और धन यहाँ हमारे किस काम की? उस जहाज से कुछ भी खोजना केवल समय और श्रम की बर्बादी मात्र है।" शमशेर सिंह ने बहुत बेपरवाही से कहा।
"लेकिन महाराज जहाज तो हमारी सीमा में है तो वह तो हमारा ही हुआ ना?" किसी अन्य दरबारी ने धीरे से खड़े होकर पूछा।
"अरे कुछ नहीं यदि कोई हमारी सीमा से उस कबाड़ को हटाता है तो वह तो हमारी सहायता ही करता है। बिना शुल्क हमारी सीमा की सफाई में।" शमशेर जोर से हँसते हुए बोला।
काफी देर शमशेर के दरबार में जहाज की चर्चा रही जिसका उद्देश्य केवल सारे जासूसों को ये दिखाना था कि शमशेर को जहाज और उसके माल से कोई मतलब नहीं है।
सारे जासूस सन्तुष्ट होकर चले गए और शमशेर का दरबार बर्खास्त हो गया।
"सरदार शमशेर को जहाज के किसी माल में कोई इन्टरेस्ट नहीं है। वह तो जहाज को वहाँ से हटने पर खुश है। वह कोई विरोध नहीं करेगा इस मामले में।" वेराडो का एक जासूस शमशेर के दरबार से लौटकर बता रहा था।
"हमें इस बात पर विश्वास तो नहीं है लेकिन तुम इस हिसाब से बता रहे हो हम तुम्हारी बात से इनकार भी नहीं कर सकते। हो सकता है शमशेर कोई और योजना बना रहा हो। फिर भी एंडरसन से सामने से लड़ते समय भी हमें पीछे से शमशेर से सावधान रहना होगा।" वेराडो ने अपने जासूस से कहा और खुद जहाज की ओर चलने की तैयारी करने लगा।
उधर एंडरसन का जासूस उसे शमशेर के दरबार की सारी कार्यवाही बता रहा था। और एंडरसन उसकी बातों को सुनकर शमशेर के बारे में विचार कर रहा था।
"जैकी, ये जो सारी बातें तुम बता रहे हो ये सब उस शमशेर के चरित्र से बिल्कुल उलट है।" एंडरसन कुछ सोचकर बोला।
"लेकिन बॉस हमने कई दिन से उसपर जासूसी की थी और सच में शमशेर की उस डूबे हुए जहाज में मोई रुचि नहीं है।" जैकी नाम का वह जसूस पूरे विश्वास से बोला।
"ठीक है हम सेड्रिक के पास जाते हैं और तुम अपने साथियों के साथ शमशेर पर नज़र रखो और उसकी जरा सी भी हरकत की सूचना तुरन्त हमें दो। और एक दो आदमी योगियों पर नज़र रखने के लिए भी भेज दो। शमशेर से तो एक बार को हम लड़ भी लेंगे, लेकिन योगियों से समुद्र में कोई भी प्राणी मुकाबला नहीं कर सकता इसलिए उनका विरोध इस मामले में जरा भी होता दिखे तो तुरंत हम अपनी गतिविधियों को रोक देंगे।" एंडरसन ने जैकी को समझाया और जैकी हाँ में सिर हिलाकर निकल गया।
उसके जाने के बाद एंडरसन भी अपने चुनिंदा लोगों के साथ हथियार बाँधे निकल पड़ा पेसिफिक की ओर।
पैसिफिक की अनन्त गहराइयों में एक विशाल जहाज पड़ा हुआ था एक लंबे समय से बिना किसी हलचल के। दूसरी ओर उसकी दो दिशाओं में बड़ी-बड़ी सेनाओं के जमघट लगा हुआ था।
उसके पीछे था वेराडो का सैन्य बल जो जहाज से कोई दो सौ मीटर दूर था और एंडरसन की सेना की गतिविधियों पर दृष्टि जमाये हुए था।
उधर एंडरसन की सेना भी जहाज के बिल्कुल नज़दीक पहुँच रही थी।
लगभग चार दिन से यही स्थिति बनी हुई थी। दोनों सेनाएं तिल-तिल करके आगे बढ़ रही थीं और इन दोनों के जसूस शमशेर पर नज़र रखे हुए थे।
पाँचवे दिन दोनों ही सेनाओं के सब्र टूट गया और दोनों सेनाएं एक साथ आगे बढ़ीं...!
"इस जहाज को सबसे पहले हमने देखा है इसलिए इसपर हमारा एकाधिकार है।" एक मूंगे की चट्टान का भोंपू पकड़े सेड्रिक जोर से चिल्लाकर बोला। भौंपू से उसकी आवाज और भारी होकर बिल्कुल किसी भैंसे जैसी निकल रही थी।
"लेकिन हम कैसे मान लें? जब हम यहाँ पहुंचे तब यहाँ हमारे अलावा अन्य कोई भी नहीं था।"कैलिस ने भी मुँह के आगे सीप का भौंपू लगाकर जवाब दिया।
"किसी के होने या ना होने से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। ये जहाज हमारा है और हम किसी को इसकी एक कील भी नहीं ले जाने देंगे। तो समझ लो जो भी हमारे और उस जहाज के बीच आएगा उसका टिकट हम गॉड के घर का काट देंगे।" एंडरसन ने भौंपू सेड्रिक से छीनते हुए गुस्से से भरकर कहा।
"कौन कितने पानी में है उसका फैसला भी हो ही जायेगा। लेकिन जहाँ तक सवाल जहाज और उसके माल का है तो वेराडो किसी को अपना कटा हुआ नाखून ना दे, फिर ये तो पूरा जहाज है और वेराडो इस तक सबसे पहले पहुँचा है। तो अब ये सब वेराडो का है। और तुम्हारे लिए फ्री की सलाह यही है कि लौट जाओ अपने-अपने घर जिंदा रहोगे नहीं तो फिर मत कहना कि बताया नहीं था और सीधे टपका दिया। ऐसे भी मेरे घड़ियाल बहुत समय से आदमी का मांस नहीं चखे हैं। और मेरे एक इशारे के बाद उन्हें रोक पाना खुद मेरे बस में भी नहीं होगा।" वेराडो ने भौंपू अपने हाथ में लेकर बहुत मजाकिया लहजे में ये बातें कहीं। लेकिन वेराडो को जानने वाले जानते थे कि वह बातें जितनी कॉमिक करता है उतना ही वह क्रूर भी है। किसी की लाश से खाल उतार कर उसकी शेरवानी बना लेना उसके लिए बच्चों का खेला है।
"कोई यहाँ ये ना समझे कि हम उसकी बातों से डर गए। बातें करना बहुत आसान होता है, लेकिन जब कान पर तलवार खनकती है तो अच्छी-अच्छी पतलून भीग जाती हैं। जहाज का माल हमारा है और हम इसे अपने साथ लेकर ही जाएंगे। बाकी किसी को अपनी और अपने साथियों की लाशें हमें सीढ़ी बनाने के लिए देनी हैं तो उनकी मर्जी। हमारे हथियार भी अपनी धार परखने को बेचैन हैं।" एंडरसन ने भी वेराडो के ही अंदाज़ में जवाब दिया।
"ठीक है फिर आ जाओ देख ही लेते हैं किसमें कितना है दम। आओ मेरे साथियों जीत लें ये जंग हम।" वेराडो ने शायराना अंदाज़ में कहा और दोनों सेनाएं धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगीं…
वेराडो ने कैलिस की इशारा किया और वह अपनी सेना के साथ धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। वेराडो की सेना अब पनडुब्बियों से बाहर आ गयी थी और उनके पास विचित्र हथियार दूर से ही चमक बिखेर रहे थे।
इस दल के आगे चार बहुत बड़ी शार्क थीं, उनके पीछे दस घड़ियाल थे और दोनों साइड में बहुत बड़े बड़े केकड़ों की कतारें थीं जो अपने दोनों बाजू आपस में टकरा चिंगारियां निकाल रहे थे। उस घेरे के बीच में कोई दो ढाई सौ हथियार बन्द सैनिक थे जिनके कवच घड़ियाल की मजबूत पीठ से बने थे और सिर पर कछुए की खोपड़ी से बने सुरक्षा कवच अर्थत टोपियां थीं। कैलिस एक बडी पातर पर सवार था। कैलिस के हाथ में किसी धातु की बनी बहुत बड़ी तलवार थी और दूसरे हाथ में ढाल के रूप में कछुए की खोपड़ी पकड़े हुए था। कैलिस एक बहुत बड़े डील-डौल वाला काला केरेबियन था। वह उस चट्टान जैसे बड़े पातर पर बैठा हुआ किसी खूँखार भैंसे जैसा ही लग रहा था।
कैलिस के पीछे चार कतार आत्मघाती सैनिकों की थीं जो वेराडो के सुरक्षा भित्ति के कमांडो थे जो ना मरने से डरते थे और ना ही मारने से। उनमें से हर एक इतना शक्तिशाली था कि मगरमच्छ को जबड़ों से पकड़कर चीर सकता था।
उसके पीछे खुद वेराडो एक दरियाई घोड़े को लगाम लगाए पालतू बनाकर अपनी सेना का हौसला बढ़ा रहा था। वेराडो खुद भी बहुत बड़े शरीर वाला काला अफ्रीकी मानस था। उसकी ताकत इतनी अधिक थी कि वह एक ही घूँसे में बड़े-बड़े कछुओं को भी फोड़ डालता था। वेराडो बहुत रंगीन तबियत का मालिक था और वह हमेशा एंडरसन की गोरी प्रेमिकाओं के सपने देखता रहता था। सुंदर और गोरी लड़कियां उसकी जितनी बड़ी कमजोरी थीं उतनी ही बड़ी ताकत था उसका गुस्सा। वह बातें जितनी मजाकिया करता था गुस्से में टक्करें भी उतनी ही खूँखार तरीके से मारता था। उसके घूँसे और सिर की टक्कर से कितनी ही व्हेल, मगर और सार्क धराशायी हो चुकी थीं। वेराडो के ये सुरक्षा मित्र भी उसकी ही जितनी ताकत रखते थे। वह इन सब के साथ हमेशा मल्ल युद्ध का अभ्यास करता था। वह स्त्रियों के मामले में जितना दिलफेंक था उससे अधिक बदकिस्मत भी। कोई भी सुंदर लड़की अभी तक उसे नहीं मिली थी। उसकी दोनों प्रेमिकाएं अफ्रीकी मूल की ही थीं। जिनमें एक थी सेलिना जो केन्याई लड़की थी। वह रँग में काली अवश्य थी लेकिन उसका चेहरा इतना आकर्षक था कि किसी की भी नज़र उसपर ठहरे बिना आगे नहीं बढ़ सकती थी। और दूसरी थी युगान्डा मूल की लैटिना कैरिटोस। लैटिना भी बहुत सुडौल और आकर्षक थी। लेकिन वेराडो का सपना था गोरा रँग। वह इस मामले में कई बार एंडरसन एवं उसके समूह की लड़कियों के हाथों अपमानित हो चुका था और वह इस बात का भी बदला एंडरसन एवं उसके समूह की लड़कियों से लेना चाहता था।
उधर एंडरसन की फौज थी, गोरे यूरोपियन समूह के लोग जो अभी भी खुद को सर्वश्रेष्ठ मानते थे। ये और बात थी कि पृथ्वी पर जीवन की तबाही के सबसे बड़े गुनहगार यही गोरे लालची लोग थे।
इन्ही की सर्वशक्तिमान बनने की लालसा ने विनाशक आविष्कार किये थे जो आगे चलकर धरती से जीवन समाप्त होने का कारण बने थे।
एंडरसन एक बहुत लम्बे कद का पतला किन्तु सुडौल, लगभग सफेद दिखने वाला अमेरिकी व्यक्ति था। वह दिखने में इतना आकर्षक था कि जो उसे देखता बस देखता ही रह जाता। उसके व्यक्तित्व के आकर्षण में ही उसकी प्रेमिकाओं की लिस्ट बहुत लंबी थी। उसकी इसी विशेषता के कारण वेराडो उससे जलता था। उसकी फौज का नेतृत्व सेड्रिक के हाथों में था। सेड्रिक खुद को शैतानों का मुखिया समझता था और क्रूर तरीकों से लोगों की हत्याएं करके खुश होता था। उसका प्रमुख हथियार था पिरहना मछली के तीखे दाँतों से बना बघनखा। उसके सिर से लेकर गर्दन और कंधों पर मगरमच्छ की पीठ का कवच था और सिर पर मजबूर घोंघे का बना मुकुटनुमा टोपा। सेड्रिक एक बहुत बड़े केकड़े पर बैठा हुआ था जिसके पंजे बिल्कुल किसी जे सी बी के हाथ की तरह थे।
उसके आगे उसकी सेना की सुरक्षा घेरे में थे विशाल मगरमच्छ और ऑक्टोपस। उनके पीछे सेड्रिक के साथ कुछ दो सौ हथियार बन्द सैनिक। उनके पीछे अपने सुरक्षा कमांडोज से घिरा एंडरसन जो एक एनाकोंडा के सिर पर सवार था और दो अन्य एनाकोंडा उनसे दोनों ओर से सुरक्षा घेरा बना रहे थे। एंडरसन के दाएं हाथ में किसी मगरमच्छ की खाल से बना हुआ एक हंटर नुमा हथियार था और दूसरे में एक तेज धार की तलवार जो शायद सोने से बनी हुई थी। एंडरसन के आदेश एवं
सेड्रिक के निर्देश में ये खूंखार सेना भी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी।
उधर वेराडो ने भी कैलिस को अपना दल आगे बढ़ाने का संकेत कर दिया था और उसके सैनिक जोश में भरे सदे हुए कदमों से आगे बढ़ रहे थे।
सेड्रिक ने अपने मगरमच्छों को हमले का संकेत किया और उसके सारे मगर मुँह खोले तेजी से दुश्मन पर लपके।
उधर कैलिस के निर्देश पर खूँखार भूखी शार्कों ने अपने जबड़े खोल दिये और सारे घड़ियाल भी गुस्से से भरे पानी में पूँछ फटकारने लगे।
सेड्रिक और कैलिस आमने सामने थे। उनकी सेनाएं युद्ध के लिए मचल रही थीं। बहुत समय से इन समुद्री कबीलों ने कोई लड़ाई नहीं लड़ी थी। दोनों सेनाओं के जांबाज पूरे जोश से भरे हुए थे और मुस्तेदी से सामने नज़र रहे हुए आगे बढ़ रहे थे।
तभी कैलिस के संकेत पर दो घड़ियाल पानी के अंदर मिट्टी में समा गए। ये इनकी एक घातक चाल थी। अचानक ये घड़ियाल सेड्रिक के बिल्कुल सामने उसकी घेराबंदी के बीचोबीच जमीन से बाहर निकले और एक साथ सेड्रिक पर झपट पड़े। सेड्रिक जो कि एक विशाल केकड़े पर सवार था उसने अपने पैर के इशारे से अपने केकड़े को ऊपर ना कर लिया होता तो वह निश्चित ही इन घड़ियालों के घातक जबड़ों में फँस कर पिस चुका होता। लेकिन सेड्रिक बहुत चालाक और खूंखार लड़ाका था उसने झट से झुककर अपनी तेज़ तलवार चलाई और कैलिस के एक घड़ियाल की गर्दन भेद दी। सेड्रिक के घातक बार से वह घड़ियाल एक जोर की हिचकी लेकर गिर गया। लेकिन जब तक सेड्रिक पलटता तब तक वह दूसरा घड़ियाल जमीन में गायब हो चुका था।
सेड्रिक अफसोसजनक चेहरा बनाकर अभी कैलिस की सेना की तरफ पलटा ही था कि अचानक उसे बहुत जोर का धक्का लगा जैसे किसी ने उसके केकड़े के पेट पर जोरदार बार किया हो। यह वही दूसरा घड़ियाल था जो मिट्टी में चला गया था और अब अपनी पूरी शक्ति लगाकर नीचे से सेड्रिक के केकड़े पर अपना घातक बार कर चुका था। ये टक्कर इतनी तेज थी कि सेड्रिक गिरते-गिरते बचा। लेकिन जल्दी ही सेड्रिक का केकड़ा सँभल गया और घूमकर फिर उस घड़ियाल के सामने आ गया। अबतक सेड्रिक को बहुत तेज़ गुस्सा आ गया था तो वह एक झटके से सरककर केकड़े के पंजे पर आ गया और उसने अपने दोनों हाथों से उस घड़ियाल के जबड़े पकड़ लिए। घड़ियाल ने छूटने के लिए काफी पूँछ पटकी लेकिन सेड्रिक के घातक बघबख की पकड़ में जो एक बार आ जाये उसका बच निकलने का कोई भी प्रयास सफल होना लगभग असंभव ही था। सेड्रिक घड़ियाल के जबड़े पकड़ कर अपना पूरा जोर लगाने लगा। घड़ियाल का मुँह खुलने लगा, उसके जबड़े फैलने लगे और वह दर्द से अपनी पूँछ पानी में पटखने लगा।
कुछ ही पलों में सेड्रिक उस घड़ियाल को बीच से चीर कर फेंक चुका था। ये देखकर एक बार तो कैलिस के आगे बढ़ते जांबाज ठिठक गए लेकिन फिर कैलिस के जोश दिलाने पर फिर से सेना हमले के लिए आगे बढ़ने लगी।
उधर सेड्रिक की सेना सेड्रिक की इस विजय पर उत्साहित होती हुई हो...! हो...! करके शोर मचाती हुई आगे बढ़ने लगी। सेड्रिक ने जोर से चीख कर कुछ कहा जिसके फलस्वरूप सेड्रिक की सेना के विशालकाय मगरमच्छ मुँह खोलकर तेजी से कैलिस के दल पर झपट पड़े उनके साथ ही सारे ऑक्टोपस भी अपनी खून चूसने वाली भुजाओं को फैलाये शिकार की तलाश में तेज़ी से झपटे।
इन्हें आता देखकर कैलिस ने अपनी शार्क सेना को सतर्क कर दिया और उन्होंने अपने जबड़े कुछ और बड़े कर लिए लेकिन ये मगरमच्छ इन भूखी शार्क मछलियों के मुँह तक पहुँचने से पहले ही जमीन की ओर मुड़ गए और तेजी से शार्कों के नीचे से निकलते हुए सेना के बीच पहुँचने लगे। जल्दी ही इन शार्कों और उनके पीछे की घड़ियाली सेना को ये बात समझ आ गयी और अब शार्कों ने अपने जबड़ों का एंगल बदल लिया। इस बार शार्क कामयाब रहीं और देखते ही देखते आठ-दस मगरमच्छ इन भूखी शार्कों के निवाले बन गए। उधर कैलिस के घड़ियाल सेड्रिक के मगरमच्छों को ऐसे शार्कों से बचकर सेना के बीच में आते देखकर जमीन में पूँछ धँसाये एक के ऊपर एक खड़े होकर सुरक्षा दीवार बनाकर खड़े हो गए और कैलिस के मगरमच्छ बहुत तेज़ी से इन घड़ियालों से टकराये।
अब समुद्र की गहराई में एक अलग ही नजारा था। दो सौतेले भाई मगर और घड़ियाल दो अलग-अलग मनुष्यों के लिए आपस में मल्लयुद्ध कर रहे थे। घड़ियालों और मगरमच्छों की ये कुश्ती अनोखी थी जो शायद ही पहले कभी किसी ने देखी होगी। मगरमच्छ अपने तेज़ पंजों से घड़ियालों के पेट की कोमल चमड़ी फाड़ डालना चाहते थे तो घड़ियाल अपने घातक जबड़ों से पीसकर मगरमच्छ का चूरा कर देने को उद्धत थे। इस घमासान में इनकी पूँछ पटकने से उछली बालू और मिट्टी से समुद्र के इस हिस्से का पानी गदला हो चुका था और अब ये अविस्मरणीय अकल्पनीय दृश्य धुँधला हो गया था।
उधर चार मगरमच्छ जो इस सब बवाल से बचकर कैलिस के सामने पहुँचने में कामयाब रहे थे अब कैलिस की पातर (एक बहुत बड़े आकार का कछुआ की प्रजाति का ही प्राणी जिसकी पीठ किसी परात जैसी बड़ी और चिकनी होती है। इसपर आराम से बैठकर सवारी की जा सकती है।) पर टक्कर मार रहे थे। ये मगरमच्छ उस पातर को उल्टा कर देना चाहते थे ताकि केलिश नीचे गिर जाए और ये भूखे दरिंदे उसको अपना भोजन बना सकें।
ये देखकर कैलिस ने अपनी पातर को ठोकर मारी और वह उसका इशारा समझ कर पानी की गहराई में नीचे हो गयी। तभी दो मगरमच्छ बहुत जोश से भरे कैलिस पर झपटे ठीक उसी समय कैलिस ने अपने दोनों घूँसों का भरपूर बार उनपर किया और दोनों ही मगरमच्छों की कमर टूट गयी। अब वे दोनों अधमरे होकर पानी की तलहटी में गिरते जा रहे थे। ये देखकर बाकी दोनों मगरमच्छ वापस भागने के लिए पलटे लेकिन कैलिस के इशारे पर उसकी चतुर पातर ने एकदम से पैंतरा बदला और कैलिस ने झपटकर उनमें से एक मगरमच्छ की पूँछ पकड़ ली।
कैलिस ने अपने दोनों हाथों से उस मगरमच्छ को इतने जोर से दबाया की दर्द से उसकी जीभ बाहर निकल आयी। बस यही उस बेचारे की सबसे बड़ी भूल साबित हुई। कैलिस ने उस मगरमच्छ की जीभ पकड़कर पूरी शक्ति से खींची और अब वह मगरमच्छ अपनी जीभ से मुँह धो बैठा। कैलिस मगरमच्छ की जीभ हाथ में पकड़े उसे घुमाते हुए बहुत बीभत्स हँसी हँस रहा था और उसके इस रूप को देखकर सेड्रिक की आगे बढ़ती सेना के पाँव जैसे जाम हो गए थे।
सेड्रिक और कैलिस की शक्ति देखकर उनके साथी बहुत खुश हो रहे थे और दूसरी तरफ दोनों के ही विपक्षी सैनिक डरे हुए थे कि कहीं उनकी गर्दन इन शैतानों के पंजे में ना फँस जाए।
अब सेड्रिक के मगर और कैलिस के घड़ियाल भी सीधे इनके सामने आने से बच रहे थे।
अब सेड्रिक ने सीधे कैलिस को ललकारा,"इन जानवरों को मारकर खुद को अगर बहुत बहादुर समझ रहा है कैलिस तो ये तेरी भूल है। इस आत्ममुग्धता को छोड़ और वीरों की तरह सीधे-सीधे मेरा मुकाबला कर।"
"मुकाबला!! हाहाहाहा!!, तू करेगा मेरा मुकाबला सेड्रिक? अरे कायर तू खुद अपने मगरमच्छ की फौज के पीछे ही सुरक्षित है। जा अपने मालिक एंडरसन को भेज, तेरे नाज़ुक बदन से मेरे वार नहीं झिलेंगे!", कैलिस ने जोर से हँसते हुए कहा।
"सेड्रिक हूँ मैं...! मेरे जीवित रहते मेरे बॉस को तुझ जैसे कायर के सामने आना पड़े तो लानत है मुझपर। आ चल आज तुझे अहसास करा ही देता हूँ कि असली वीर क्या होता है।" सेड्रिक गरजा और उसने अपना केकड़ा कैलिस की ओर बढ़ा दिया।
सेड्रिक को बढ़ता देखकर उसके साथी भी उत्साह से भरे नारे लगाते हुए उसके पीछे हो लिए। उधर सेड्रिक को आता देखकर कैलिस के साथी और घड़ियाल घबराकर कर एक ओर हटते हुए सेड्रिक को रास्ता देने लगे।
"ले संभाल मेरा वार", सेड्रिक ने एक लम्बी चेन में बंधा हुआ काँटों वाला गोला हवा में घुमाकर कैलिस की ओर उछालते हुए कहा।
कैलिस ने उसे देखकर बिना विचलित हुए अपनी जेब से चाँदी जैसी चमकदार एक चकरी निकाली और उसे घुमाकर एक विशेष कोण पर फेंक दिया। आश्चर्य की उस चकरी ने सेड्रिक की चेन और गोले को अलग-अलग कर दिया।
अभी वह गोला छिटकता हुआ कैलिस की तरफ आ ही रहा था कि कैलिस के इशारे पर उसकी पातर नीचे जाकर झटके से ऊपर आयी और सेड्रिक की ओर बढ़ी। इसी फुर्ती के बीच कैलिस गोले से बचते हुए उसकी चेन पकड़ चुका था।
कैलिस ने उस चेन को इतनी शक्ति से झटका की उस से सेड्रिक अपना संतुलन खो बैठा और अपने केकड़े की पीठ से आगे की ओर गिरा गया। लेकिन गिरते-गिरते भी उसने केकड़े की एक भुजा पकड़ ली और अपने हाथ में लिपटी चेन छोड़ दी। इससे वह खुद को तो संभाल ही लिया साथ ही चेन के झटके से कैलिस भी चोट खा गया।
इस बात से चिढ़कर कैलिस ने अपनी पातर आगे बढ़ा दी। और अब भयंकर युद्ध शुरू हो गया। घड़ियाल और मगर आपस में उलझ गए। केकड़े और ऑक्टोपस आपस में भिड़ गए। ऐसे ही बाकी सारे सैनिक और जानवर भी अपने-अपने जोड़ के योद्धाओं से लड़ने लगे।
सेड्रिक और कैलिस भी अब आमने-सामने की लड़ाई लड़ रहे थे और अपने अस्त्र-शस्त्र ज्ञान का भरपूर प्रदर्शन कर रहे थे। दोनों ही योद्धा युद्धकला और बल में एक से बढ़कर एक साबित हो रहे थे। दोनों ही एक दूसरे के वारों को काट रहे थे और घातक वार अपने विपक्षी पर कर रहे थे। इधर युद्ध की भयावहता देखकर वेराडो और एंडरसन भी युद्व क्षेत्र की ओर बढ़ने लगे।
अभी कैलिस ने सेड्रिक के केकड़े के दोनों बाजू पकड़कर एक जोर का झटका मारा था जिससे उस केकड़े को बहुत चोट आई थी और सेड्रिक नीचे गिर गया था। सेड्रिक के गिरते ही कैलिस ने भी अपनी पातर पर से जम्प लगा दी और सेड्रिक का गला पकड़कर झूल गया।
सेड्रिक इस अप्रत्याशित हमले के लिए तैयार नहीं था फिर भी उसने अपने बचाव में अपने बघबख कैलिस की बाजू में गढ़ा दिए और उसके हाथों से अपना गला छुड़ाने का प्रयास करने लगा। सेड्रिक को पता था कि कैलिस की बाजूओं की शक्ति किसी चट्टान को भी मसल सकती है अतः उसने शीघ्र ही खुद को छुड़ाने के लिए कुछ नहीं किया तो ये युद्ध उसके जीवन का अंतिम युद्ध बन जायेगा।
सेड्रिक के बघबख कैलिस के हाथों में धँसकर उसका खून बहा रहे थे लेकिन इससे कैलिस की पकड़ पर कोई असर नहीं हो रहा था। वह आज अपनी पूरी शक्ति लगाकर सेड्रिक को खत्म कर देना चाहता था।
अभी ये जोर आजमाइश चल ही रही थी कि एंडरसन की इशारे पर उसके एनाकोंडा ने अपनी पूँछ बढ़कर कैलिस को लपेट लिया और उसे दबाकर खींचने लगा। ये देखकर वेराडो को बहुत गुस्सा आया और वह चीखकर बोला, "एंडरसन!! जब दो योद्धा आपस में मल्ल युद्ध लड़ रहे हों और दोनों जिंदा हों तो किसी तीसरे को उनके बीच नहीं आना चाहिए अन्यथा अंजाम अच्छा नहीं होता।",
और ये कहकर वेराडो ने अपना दतियाई घोड़ा उधर बढ़ाते हुए एक कछुए को उठाकर पूरी ताकत लगाकर इस एनाकोंडा के सर पर दे मारा। इस मार से बेचारे एनाकोंडा को पानी में आसमान के दर्शन हो गए और उसके आगे सितारे झिलमिलाने लगे।
लेकिन उसकी पूँछ के दबाब और सेड्रिक के बघबख के घाव से कैलिस की पकड़ पलभर को कमज़ोर पड़ी और इसी जस लाभ उठाकर कैलिस के हाथों को झटकते हुए सेड्रिक उसकी पकड़ से छूटकर एक मगरमच्छ की पीठ पर सवार हो गया और खुद को संभालने लगा।
कैलिस के बाजू भी बुरी तरह जख्मी हो गए थे तो वह भी कछुए की पीठ पर बैठकर अपनी सेना के बीच पहुँच गया और उसके साथी उसके घावों पर पट्टी बांधने लगे।
इस घटना से वेराडो बहुत गुस्सा हो गया था और अब वेराडो और उसका दरियाई घोड़ा मौत बनकर एंडरसन की सेना पर टूट पड़े।
वेराडो की तबाही देखकर एंडरसन भी अपने तीनों एनाकोंडा बढ़ाते हुए वेराडो की ओर लपका।
इधर कैलिस फिर से अपनी पातर पर बैठकर तलवार घुमाते हुए अपनी सेना के साथ एंडरसन की ओर बढ़ने लगा।
सेड्रिक की गर्दन कैलिस की पकड़ से बुरी तरह जख्मी हो गयी थी और वह अभी भी संभल नहीं पा रहा था तो उसे उसके साथी सुरक्षित स्थान पर ले गए।
वेराडो और कैलिस दोनों ओर से एंडरसन की तरफ बढ़ रहे थे। एंडरसन के विशालकाय साँप फुफकारते हुए इनपर हमले के लिए घात लगा रहे थे।
7.
वेराडो दायीं ओर से और कैलिस बायीं ओर से घात लगाए एंडरसन की ओर बहुत सावधानी से आगे बढ़ रहे थे। वेराडो के हाव-भाव देखकर लगता था मानों आज वह एंडरसन को मारकर उसके साम्राज्य का अधिपति बन ही जायेगा इधर कैलिस भी अपनी बहादुरी और स्वामिभक्ति दिखाने के लिए पूरी तरह समर्पित था।
इधर एंडरसन के विशालकाय समुद्री साँप अपना चट्टान जैसा बड़ा सिर इधर उधर घुमाते हुए फूं-फूं करके अपना गुस्सा ज़ाहिर कर रहे थे।
एंडरसन बीच में जिस एनाकोंडा के गर्दन पर बैठा हुआ था वह कुछ सावधान और ज्यादा ही चतुर मालूम होता था। वह बाकी दोनों राइट एवं लेफ्ट की तरह अपने सर को तेजी से इधर-उधर नहीं लहरा रहा था बल्कि अपने सर को स्थिर रखकर अपनी आंखों की तेजी से इधर उधर घुमाते हुए दोनों ओर बराबर नज़र रखता हुआ आगे बढ़ रहा था। उसने अपनी पूँछ को हथियार बनाया हुआ था और जितना सावधानी से उसने अपने सर को साध रखा था उतनी ही लापरवाही से वह अपनी पूँछ को पटक रहा था।
उधर वेराडो ने अपने दरियाई घोड़े को कुछ इशारा किया और पलभर के लिए उसकी नज़र कैलिस की नज़रों से मिलीं बस इसी पल में इन दोनों की आंखों में कुछ सांकेतिक बात हुई और कैलिस ने भी कुछ कहते हुए अपने कछुए की पीठ थपथपा दी।
अभी एंडरसन इन्हें देखकर कुछ समझने का प्रयास कर ही रहा था तभी ये दोनों अचानक एंडरसन के राइट लेफ्ट के सामने आकर तेज़ी से पीछे मुड़ गए। एंडरसन के दोनों एनाकोंडा इन्हें आसान चारा समझकर इनके पीछे लपके लेकिन तभी इन दोनों ने तेज़ी से दिशा परिवर्तन किया और फिर एक दूसरे की ओर तेज़ी से बढ़े। एंडरसन के दोनों समुद्री साँप अपने मुँह को गुफा बनाते हुए इनके पीछे लपके और जैसे ही ये दोनों एकदम पास आये इन्होंने अपनी गति बढ़ा दी और उसी तेजी से नीचे बैठ गए।
बस उसी रफ्तार के जाल में एंडरसन के दोनों साँप फँस गए और जो मुँह उन्होंने वेराडो और कैलिस को निगलने के लिए फाडे थे वे आपस में ही एक दूसरे में उलझकर बुरी तरह घायल हो गए।
ये टक्कर इतनी जोरदार थी कि तेज़ 'धड़ाम' की आवाज दूर तक सुनाई दी और जब वे दोनों अलग हुए तो दोनों के मुँह खून से धुले हुए थे और दोनों ही अपने सामने के दाँतों से हाथ धो बैठे थे।
इस टक्कर के बाद उन दोनों का लड़ना तो दूर अब वे दोनों ठीक से उठ भी नहीं पा रहे थे तो एंडरसन के संकेत पर उसके घोडा बने एनाकोंडा ने अपनी पूँछ से उन दोनों को पीछे धकेल दिया। अब इस लड़ाई में सारी जिम्मेदारी उस बेचारे पर ही आ गयी थी। ऐसा वह समझ रहा था कि अब इस लड़ाई और एंडरसन इन दोनों का बोझ उसके कंधों पर है।
और उसी बोझ के तले दबा वह बेचारा अपना दिमागी संतुलन खो बैठा और एंडरसन के संकेत को अनदेखा करता हुए वेराडो पर झपट पड़ा।
वेराडो उसे आता देखकर सावधान हो गया और उसने पैंतरा बदल कर तेजी से अपनी चकरी उसकी तरफ उछाल दी। वेराडो कि तेज़ चकरी के वार से उस बेचारे एनाकोंडा की गर्दन लगभग आधी कट गई और उसका सिर एक ओर झूल गया।
अब एंडरसन बिना सवारी का हो गया। और नीचे गिरने लगा। एंडरसन की उसी हालत का फायदा उठाते हुए कैलिस ने आगे बढ़कर अपनी तलवार का भरपूर बार एंडरसन की पूँछ पर किया और उसकी पूँछ चिंगारियां निकलती हुई एंडरसन से अलग हो गयी। उसी के साथ ही एंडरसन को साँस लेने में तकलीफ होने लगी और वह मुँह से बुलबुले निकलने लगा। एंडरसन ने अपने सीने पर बंधा हुआ उस पूँछ से जुड़ा एक गुब्बारेनुमा जैकेट उतार फैंका और बार-बार अपनी छाती की ठोकने लगा जैसे उसका दम घुट रहा हो।
अभी एंडरसन तड़फकर नीचे गिरा ही था तभी अचानक बहुत तेज़ शोर होने लगा। उस आवाज़ को सुनकर दोनों सेनाएं विश्राम की अवस्था में आ गयीं और सारे योद्धा सम्मान में झुककर खड़े हो गए। वेराडो और कैलिस के चेहरे अचानक ऐसे लटक गई जैसे किसी बच्चे से किसी ने उसकी चिज्जी छीन ली हो।
"क्या हुआ यहाँ? क्या यही युद्ध के नियम हैं कि किसी का श्वशनतन्त्र की निष्क्रिय कर दिया जाए।
योगी श्रीनन्द आप शीघ्र एंडरसन को दूसरा श्वशनतन्त्र लगाइए और इस लड़ाई के लिए जिम्मेदार सभी लोगों और जल में निवास करने वाले सभी समूहों के मुखियाओं की एक सभा बुलाइये। हम उस तरह नियम तोड़ने और अकारण युद्ध करके समुद्री जीवों के जीवन से खिलवाड़ करने वालों को कभी क्षमा नहीं करेंगे। अति शीघ्र ये सारा कचरा साफ करवाइए और सभा में सभी के उपस्थित होते ही हमें सूचना दीजिए", एक मजबूत कदकाठी का बलिष्ठ साधु वेशधारी अधेड़ गरजकर कह रहा था और सभी लोग उसकी आवाज से ही थर थर कांप रहे थे।
"सब ही जायेगा गुरुदेव, आप निश्चिंत रहें", योगी श्रीनन्द ने आगे आकर हाथ जोड़कर झुकते हुए जवाब दिया।
"इन लोगों को किसने बुलाया, हम आज ये लड़ाई जीतने ही वाले थे। उसके बाद जो कुछ भी एंडरसन का है वह सब मेरा होता, और तुम्हारा भी" वेराडो ने दबी जुबान में कैलिस से पूछा।
"मुझे लगता है ये काम जरूर शनशेर और उसके आदमियों का है। वे कभी नहीं चाहते कि कोई भी ताकत उनसे ज्यादा आगे बढ़े।" कैलिस ने जवाब दिया।
तब तक योगी श्रीनन्द ने एंडरसन को नई जैकेट पहनकर उसकी पूँछ फिर से एंडरसन को लगाकर कुछ बटन दबा दिए। कुछ ही पलों में अपनी गर्दन को सहलाता हुआ एंडरसन उठ खड़ा हुआ।
"जैसा कि आप सभी ने स्वामी जी की बात सुनी, मैं फिर वही बात दोहरा रहा हूँ कि आज यहाँ जो भी हुआ वह मनुष्यों के समुद्र में बसने से लेकर आज तक कभी भी नहीं हुए। आज उस नियम को तोड़ा गया है जो बहुत पहले आपसी सहमति से बनाया गया था कि किसी भी लड़ाई में कोई भी पक्ष किसी कर साँस लेने के यंत्र को नुकसान नहीं पहुंचायेगा। आप लोगों को क्या लगता है कि हम योगी लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं। हमें पता नहीं चलता कि यहाँ कौन क्या खिचड़ी पका रहा है। अरे हम लोग मनुष्यों के जीवन को बचाये रखने के लिए नित कितने अनुसंधान कर रहे हैं और तुम लोग अपने स्वार्थ के चलते मनुष्य जीवन को ही मिटा रहे हो।
क्या सोचा था एंडरसन और वेराडो? क्या समुद्र में डूबे इस जहाज का हमें नहीं पता था? लेकिन हम सोचते थे कि तुम लोग आपस में सुलह कर लोगे और ये सारा सामान जो भी इस जहाज में है उसे मानव जीवन के कल्याण नें लगाओगे। लेकिन नहीं!! तुम लोग तो एक दूसरे को ही मिटाने पर जुटे हो।
अब जैसा कि गुरुजी ने कहा है यहाँ जो भी नुकसान हुआ है तुम लोग उसकी भरपाई करो और तुम्हारी लड़ाई में जो ये कचरा फैला है उसे साफ करो। बाकी लोग ध्यान से सुनें, जितने भी समूह समुद्र में हैं उन सभी के मुखिया अब से ठीक आठ घण्टे बाद हमारे आश्रम के सभाभवन में उपस्थित हों। सभी को ये संदेश पहुँच जाना चाहिए ", योगी श्रीनन्द ने तेज़ आवाज में कहा और फिर वह अपने साथियों के साथ वापस लौट गए।
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सभा जुड़ चुकी थी, योगी गुरु 'अखण्ड' एक ऊँचे पत्थर पर बैठे हुए थे। योगी अखण्ड के पीछे एक कतार में उनके साथी योगी लोग खड़े हुए थे। महाराज अखण्ड के चेहरे पर अद्भुत तेज़ था और उनकी आंखों की चमक सम्मोहित से करती प्रतीत होती थी।
योगी श्रीनन्द उनके ठीक दायीं ओर खड़े हुए थे और उनके पीछे दो अति बलिष्ठ विशलकाय पहलवान जैसे व्यक्ति खड़े हुए थे। उन दोनों की आँखे कैमरे के समान सामने की स्थिति पर जमी हुई थीं। उन दोनों के चेहरे भावविहीन थे किन्तु फिर भी एक सजग प्रहरी के भाव उनके चेहरे पर ना सही हावभाव में अवश्य झलक रहे थे।
सामने शमशेर अपने चारों विश्वासपात्र साथियों के साथ बैठा हुआ था। उसके दायीं ओर वेराडो एवं कैलिस थे। तथा दायीं ओर एंडरसन एवं सेड्रिक को सहारा दिए हुए चार अमेरिकी ब्रिटिश मूल के योद्धा थे। उनके पीछे अन्य समूहों के लोग और उनके सहयोगी भी थे।
ये सभाभवन समुद्र के अंदर होने पर भी बिल्कुल किसी मंदिर के प्रांगण जैसा दिखाई देता थ। पानी इसके अंदर लेशमात्र भी नहीं था। बिल्कुल ऐसा लग रहा था मानो जमीन पर बना कोई आलीशान भवन हो। प्रकाश के लिए पुराने समय के केरोसिन के लेम्प की तरह की काँच की बन्द चिमनियाँ लगी हुई थीं जिनके अंदर आग जलती दिखाई देती थी लेकिन धुआँ कहीं नहीं दिख रहा था। इन चिमनियों के अंदर साइड अर्धगोलाकार में जैसे चाँदी का लेप किया गया था। उस व्यवस्था से ये चिमनियाँ बहुत तेज़ प्रकाश उत्सर्जित कर रही थीं।
शमशेर के मुख पर अनजानी खुशी की झलक थी जबकि वेराडो और एंडरसन की पार्टी के मुँह लटके हुए थे।
महात्मा अखण्ड बहुत क्रोध में नज़र आ रहे थे और उनके पीछे की कतार के योगी लोग भी बहुत नाखुश ही दिखाई दे रहे थे। उनकी आँखों में ये नाराज़गी देखकर एंडरसन और वेराडो को और भय लग रहा था। सबसे अधिक डरा हुआ था कैलिस जिसने प्रत्यक्ष रूप में नियम को तोड़ा था।
"हम सभी यहाँ क्यों उपस्थित हुए हैं आप में से बहुत सारे लोगों को पहले से पता है, और बाकी भी बहुत लोगों को अनुमान अवश्य है किंतु फिर भी हो सकता है कि कुछ लोगों को ना पता हो। तो आप लोगों को बता दें कि पेसिफिक समुद्र में हलचल होने के बाद एक पुराने डूबे हुए जहाज़ का पता लगा जो शमशेर और वेराडो की सीमा में है। तो नियमानुसार उस जहाज के माल पर पहला हक़ उन दोनों का हुआ और बाकी जहाज अपने कलपुर्जों सहित समाजकल्याण विभाग के अधिकार में दिया जाना चाहिए था। समाजकल्याण विभाग के वैज्ञानिक उसमें से अनेक काम के पुर्जे निकालकर श्वशनतन्त्र प्रणाली के यंत्र, हमारे शक्तियन्त्रों के लिए आवश्यक उपकरण और अन्य भी जो उनके काम की बस्तुएँ होती उसे लेने के बाद बाकी बची धातु आपलोगों को अपने उपयोग के यंत्र बनाने के लिए दे देते। किन्तु ऐसा हुआ नहीं और हमेशा की तरह एंडरसन और वेराडो के लालच ने इस बंटबारे को खूनी संघर्ष का रूप दे दिया। इस खूनी संघर्ष में इस बार एक और असमान्य बात हुई और वो ये की हनारे समुद्र वास के इतिहास में पहली बार किसी ने युद्ध के नियमों का उलंघन करके श्वशनतन्त्र को निष्क्रिय कर प्रतिद्वंद्वी को मारने जा कायरतापूर्ण प्रयास किया। आप लोगों को क्या लगता है कि क्या ये कृत्य क्षमायोग्य है?" योगी श्रीनन्द ने सबको सम्बोधित करते हुए कहा।
"अक्षम्य है! सक्षम है!", पीछे से एक तेज़ शोर उठा।
"आप लोगों को क्या लगता है, समुद्र का जीवन इतना सरल था जितना आप लोग जी रहे हो? समान्य मनुष्य पानी में दो मिनट से ज्यादा बिना साँस के जीवित नहीं रह सकता था। ये तो हमारे योगी लोग थे जिन्होंने अपने योगबल से पानी में तीस-चालीस मिनट तक साँस रोकने का अभ्यास किया और अपने उन्नत विज्ञान से इन छोटे श्वशनतन्त्र यंत्रो का निर्माण किया। आप जिन पूंछो को सामान्य समझकर मस्ती से इधर-उधर लहराते हुए जलविहार करते रहते हो, आप लोगों को पता है इसके अंदर कितने उच्च कोटि के विज्ञान और आधारित संयन्त्र लगे हुए हैं? पहले ये यंत्र इस समुद्र के खारे पानी से नमक अर्थात सोडियम क्लोराइड निकालता है जिससे पानी हल्का हो जाता है जो पीने के पानी की पूर्ति करता है और आगे प्रोसेसिंग में काम आता है। आगे उस सोडियम से अन्य उत्प्रेरक बनाकर फिर उसके अगले खण्ड में इलेक्ट्रोड्स की मदद से इस पानी से ऑक्सीजन निकालकर श्वशनतन्त्र के माध्यम से आपको प्राणवायु मिलती है। और सबसे महत्वपूर्ण है हाड्रोजन जो आपके इस संयन्त्र में लगे ईंजन को चलाने में ईंधन का काम करती है। बची हुई हाइड्रोजन आप लोगों की पीठ पर लगे सिलेंडरों में इकट्ठी होती है जिसे बाद में आप लोग बड़े संयन्त्र पर जमा कराते हो। इसी से आपने घर और भोजन का ईंधन मिलता है। सभी को ये बात पता है फिर भी इस जीवनचक्र को चलाये रखने के लिए साधन जुटाने के स्थान पर लुटेरों की भाँति टूट पड़ते हो समुद्र में मिले किसी भी माल पर।
आपको पता है इन संयंत्रों को बनाने में कितने इलेक्ट्रॉनिक पुर्जे लगते हैं। और इसके अलावा ये जलीय जीव? अरे मूर्खों अगर पहली बार इन विद्युत मछलियों ने संयन्त्र चलाने के लिए अपनी पॉवर ना दी होती तो तुम्हारा अंश भी जीवित ना होता। तुम लोग अपने स्वार्थ में इन मासूम जीवों की भी बलि चढ़ा देते हो। शर्म आनी चाहिए तुम लोगों को", इस बार महात्मा अखण्ड ने ये बात कही उनकी आवाज में क्रोध के साथ ही दुःख का भी प्रभाव था।
समाने सभी लोग बिल्कुल शान्त बैठे हुए थे जैसे सभी ने जघन्य पाप किया हो। और किया भी था क्योंकि जैसा कि बताया गया समुद्र में उनका अस्तित्व केवल उनकी पूँछ अर्थात श्वशनतन्त्र से था और उन्होंने उसी को खिलौना बनाकर रख दिया था।
"खामोश क्यों हो मूर्खो अब कुछ कहने के लिए नहीं बचा?", श्रीनन्द की तेज आवाज गूँजी।
"कहना क्या है श्रीमंत, इन दोनों से पाप हुआ है किंतु मैं इन दोनों की ओर से क्षमा मांग रहा हूँ और वचन देता हूँ कि आप लोग इस जहाज को जैसे बाँटेंगे हम सभी अपने हिस्से में आये माल से पूर्ण सन्तुष्ट रहेंगे। आप लोग जैसे चाहें उस जहाज और उसके माल को बाँटें और उपयोग करें", शमशेर ने खड़े होकर धीरे से कहा।
"हमें पता है शमशेर की तुम्हारी योजना क्या थी। यही ना कि इन दो बिल्लियों की लड़ाई में जो जीतेगा तुम उसपर हमला करोगे हारे हुए को अपने साथ मिलकर और फिर जीते हुए को खत्म करके हारे हुए को मिटाना तुम्हारे लिए कोई मुश्किल नहीं होगा। इस तरह तुम समुद्र में बादशाही के ख्वाब देख रहे थे। किंतु अब तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा। अब उस जहाज का माल समाजकल्याण विभाग के पास जमा होगा और सभी के काम आएगा।", बाबा अखण्ड ने गर्जकर कहा और सभी ने सहमति नें सिर हिला दिया।
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डूबे हुए जहाज के चारों ओर बहुत सारे लोग जमा थे। इनमें योगी समूह, वेराडो के लोग, एंडरसन के लोग एवं शमशेर की सेना भी थी। सभी समूहों में से दो-दो लोग चुनकर योगियों की निगरानी में जहाज को खोलकर उसके अंदर के समान की जाँच करने पर सहमति बनी थी। योगियों के आगे ऐसे भी किसी की कुछ चलने वाली नहीं थी।
कोई आठ-दस लोगों का एक दल जहाज के अंदर प्रवेश कर गया और उसके अंदर के सामान की जांच करके सूची बननने लगे। जहाज के अंदर बहुत सारे कीमती सामान और भोजन सामग्री के पैकेट भरे हुए थे। ये उन्नीसवीं शताब्दी का पुराना जहाज था जिसकी टेक्नोलॉजी भी ज्यादा उन्नत नहीं थी। जहाज के कलपुर्जे बहुत भारी थे। जहाज़ में भारी मात्रा में धातु उपलब्ध थी। लेकिन एक बात जो सबसे अलग थी वह ये की एक पूरा कन्टेनर कुछज पैकेट्स से भरा हुआ था जिनपर अलग-अलग वनस्पतियों के चित्र बने हुए थे। इन लोगों ने बाहर आकर सभी को उन पैकेट के बारे में बताया।
योगी गुरु अखण्ड महाराज जी ने उन लोगों से पैकेट बाहर लाने के लिए कहा।
कुछ ही देर में लोग पैकेट लेकर आ गए, "इन पैकेट्स में अनाज, सब्जियों और अन्य बनस्पतियों के बीज हैं। ये किसी सीड्स पैकिंग कम्पनी का माल है। इसका मिलना हमारे लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकता है।" अखण्ड बाबा ने एक पैकेट लेकर उसका अवलोकन करने के बाद कहा। उनके चेहरे पर बहुत खिली हुई मुस्कान थी।
"लेकिन इन बीजों का हम क्या करेंगे? कुछ भोजन, वस्त्र या अन्य मूल्यवान धातुयें मिलती तब तो कोई बात थी।" शमशेर के एक साथी ने कहा।
"हम लोग बिना कारण इस जहाज में ख़ज़ाना मिलेगा मनकर आपस में लड़े, इन बीजों के लिए?", कैलिस ने भी अफसोस में सिर हिलाते हुए कहा।
एंडरसन और उसके साथी चूपचाप खड़े बस सबको देख रहे थे।
"कितने बीज होंगे इस जहाज में?" अखण्ड जी ने प्रश्न किया।
"बहुत हैं स्वामी जी, भाँति भाँति के बीज हैं कुछ उर्वरक और अन्य रसायन भी हैं। लगता है ये सारा सामान किसी कृषि और बागवानी से सम्बंधित फार्म या एग्रीकल्चर कॉलेज के लिए जा रहा था। इसमें इतने बीज हैं जिनसे कई हज़ार हैक्टेयर जमीन पर खेती की जा सकती है।", योगी श्रीनन्द ने उत्तर दिया।
"क्या कह रहे थे आप लोग की इस जहाज पर कोई खज़ाना नहीं है?", स्वामी जी ने हँसते हुए व्यंग भरी आवाज में सभी उपस्थित लोगों से प्रश्न किया।
बदले में ज्यादातर लोगों ने नज़रें झुका लीं।
"आप लोग शायद ये नहीं जानते कि आज जो भी खज़ाना हमें मिला है ये केवल डूबा हुआ खज़ाना ही नहीं है बल्कि ये हम वर्षों से डूबे हुए मानव वंशियों के लिए फिर से जमीन पर स्थापित होने की कुंजी है।
आपलोगों को शायद नहीं पता है कि जलप्रलय के बाद कितने ही वर्षों तक पृथ्वी पूरी तरह से जलमग्न ही थी। किन्तु पीछे कई वर्षों से कुछ ठोस जमीन और चट्टाने पानी से बाहर भी निकल गयी हैं। अर्थात पृथ्वी पर फिर से भूमि बनने लगी है। किंतु जल के बाहर अभी तापमान इतना अधिक है कि भूमि पर कुछ भी जीवन असम्भव है। अभी सारी भूमि चट्टानों के रूप में है जिसपर जीवन का कोई अंश भी नहीं है। ऊपर से बाहर इतनी अधिक गर्मी है कि यदि हमने जल से बाहर उस सूखी जमीन पर जाने का प्रयास किया यो हम जलकर राख हो जाएंगे। पहले हमारे पास इस स्थिति का सामना करने का कोई मार्ग नहीं था।
किन्तु अब इन बीजों के भंडार का मिलना हमारे लिए ये संकेत है कि हम मानवों को अपने असली निवास अर्थात पृथ्वी को फिर से उसके पुराने स्वरूप में लाने के लिए प्रयास शुरू कर देने चाहियें। हम जानते हैं कि ये कोई आसान कार्य नहीं है। किंतु समुद्र में अथाह जल के नीचे छोटी-छोटी कृत्रिम पूँछो के सहारे जीवन के बारे में सोचने जितना असम्भव भी तो नहीं है। जरा सोचो अभी मनुष्यों के बच्चे पैदा होते हैं समाजकल्याण के शिशु-बाल ग्रह में जहाँ उन बच्चों को चौदह-पन्द्रह वर्ष एक ही स्थान पर रहना होता है। उसके बाद भी उसका बाहर निकलना कृत्रिम श्वशनतन्त्र की उपलब्धता पर निर्भर करता है। और यदि अधिक श्वशनतन्त्र बनाने के लिए हम लोग सामग्री ना जुटा सके तो वह भी सम्भावना नहीं होती। फिर इस बाल ग्रह की प्राणवायु की भी एक निश्चित सीमा है। उससे अधिक मात्रा में ऑक्सीजन का निर्माण हम नहीं कर सकते। और फिर कार्बनडाई ऑक्साइड का निरंतर उत्सर्जन और उसके निराकरण के लिए लगाए संयन्त्र भी एक सीमा तक ही काम कर सकते हैं। और फिर जल में लगातार कार्बन डाइऑक्साइड घुलने से पानी में कार्बोनिक एसिड की मात्रा भी लगातार बढ़ती जा रही है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो हमारे द्वारा निकाली गई इस अशुद्धि से जल इतना अधिक अम्लीय हो जाएगा कि हम लोग एक दिन उस अम्ल के प्रभाव से जल में घुलकर विलय हो जाएंगे और मानव जाति का इतिहास भी बताने वाला कोई नहीं रहेगा।
अब जबकि हमें पृथ्वी पर जीवन लौटने का एक संकेत मिला है तो क्यों ना हमें सामूहिक रूप से एक बार ये प्रयास करना चाहिए और मानवकल्याण के इस महायज्ञ में मिलकर अपने श्रम की आहुति देने के लिए एकजुट हो जाना चाहिए। क्या अब तुम सभी लोग पुराने आपसी मतभेद भुलाकर मानव बनने के लिए तैयार हो?" स्वामी अखण्ड जी ने सभी को समझाते हुए बहुत सधे शब्दों में अपनी बात कही।
पीछे सभी लोगों में आपस में कुछ खुसर-फुसर हो रही थी। ज्यादातर लोगों को समझ में ही नहीं आ रहा था कि स्वामी अखण्डजी क्या कहना चाहते हैं।
"हम तैयार हैं गुरुजी, आप जैसा कहेंगे हम करने के लिए तैयार हैं।" शमशेर ने आगे आकर हाथ जोड़ते हुए कहा। उसके साथ झामयू और पटेल भी थे।
"हम भी तैयार हैं योगी जी, आप ऑर्डर दीजिए कि क्या करना है", वेराडो ने भी आगे आकर कहा और शमशेर के पास आकर खड़ा हो गया।
"ठीक है हम वैज्ञानिकों और अन्य योगियों से बातचीत करके फिर कोई योजना बनाकर सभी लोगों को सूचित करते हैं। तबतक आप लोग इस जहाज की समाजकल्याण विभाग के साथ मिलकर उचित भंडारण की व्यवस्था करें और ध्यान रहें इन बीजों को किसी प्रकार की हानि ना पहुँचने पाए।" कहकर योगी अखण्ड महाराज उठ खड़े हुए। इसी के साथ वह सभा समाप्त हो गयी।
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योगियों की सभा जुड़ी हुई थी, इस सभा में सभी ज्ञानी-विज्ञानी लोग एकत्र थे। अखण्ड महाराज ने सभी से एक प्रश्न किया था कि, "क्या हम मानव लोग कभी वापस पृथ्वी पर पूर्व की भाँति निवास कर पाएँगे?"
सभी लोग इस प्रश्न पर मंथन कर रहे थे।
"पृथ्वी पर अब प्राणवायु बिल्कुल भी शेष नहीं है। ऊपर से तापमान इतना अधिक की कोई भी झुलसकर मर जाये। ऐसी परिस्थिति में हमारा पृथ्वी पर रखा गया कदम हमें मृत्यु की ओर ले जाने के लिए काफी होगा।" एक वैज्ञानिक ने कहा।
"यदि अभी परिस्थितियाँ विपरीत हैं तो क्या हम ऐसे हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहें? क्या हमें पृथ्वी पर जीवन वापस लाने के लिए कोई भी उपाय नहीं करने चाहियें? अभी तक हमारे सामने मुख्य समस्याएं थीं- प्रतिकूल वातावरण एवं जीवन के लिए आवश्यक पेड़ पौधे उगाने के लिए उनके बीज। किन्तु अब हमारे पास बीजों का पर्याप्त भंडार है। हमें अब ये देखना है कि डूबे हुए जहाज से मिला बीजों का यह खज़ाना क्या हमारे पृथ्वीवास की कड़ी बन सकता है।" अखण्ड महाराज ने बहुत गम्भीरता से कहा।
"स्वामी जी बीजों के भंडार से हमें एक दिशा तो मिली है लेकिन जैसा कि बताया गया कि पृथ्वी पर तापमान इतना अधिक है ऊपर से ऑक्सीजन भी बिल्कुल नहीं है। तो ऐसी परिस्थिति में हम बीजों को अंकुरित कैसे कर सकते हैं? और यदि कर भी लें तो क्या वे अंकुरण बृद्धि कर पाएँगे। दूसरी बात ये की अभी केवल समुद्री जल ही उपलब्ध है जिसमें कोई भी पौधा जीवित नहीं रह पाएगा जो पृथ्वी का अर्थात जमीन का होगा। और यदि हम यंत्रों से जल को शुद्ध करके पेड़ पौधों के लिए दें तो हमारे पास इसके लिए ना तो पर्याप्त यंत्र हैं और ना ही पर्याप्त ऊर्जा। तो अब आप ही बताइए कि हमें क्या करना चाहिए?", एक वैज्ञानिक ने खड़े होकर बहुत नकारात्मक स्वर में कहा।
"क्या करना चाहिए का उत्तर तो आपके इस वक्तव्य में ही छिपा हुआ है। अभी आपने कहा कि पृथ्वी के पौधे समुद्र के जल में जीवित नहीं रह सकते। किन्तु जब ये पौधे पृथ्वी पर रहते थे