Thursday, August 26, 2021

अच्छे लगने लगे

"तुम्हें डर नहीं लगता ऐसे आधी रात एकांत में मुझसे मिलने आते हो? क्या ये श्मशान, ये जलती चिताएं, ये बरगद पर लटके मुर्दों की अस्थियों के कलश कुछ भी तुम्हें यहाँ आने से नहीं रोकते? और तुम्हारे घर वाले...! क्या उन्हें भी तुम्हारे आधी रात एकांत में श्मशान में आना बुरा नहीं लगता? कपिल की गोद में सर रखे लेटी हुई राजबाला ने उसकी आँखों में देखते हुए पूछा।
"अरे राज!! कितने सवाल करती हो तुम। अरे जल्दी ही सुबह होने लगेगी और फिर तुम्हें अपनी दुनिया में वापस जाना पड़ेगा। जब तक हो तब तक तो कम से कम मोहब्बत की बातें कर लो! तुमसे मिलना अच्छा लगता है", कपिल ने उसके बालों में उँगलियाँ घुमाते हुए धीरे से कहा और राजबाला जोर से हँसने लगी।
"अब इसमें हँसने वाली कौन बात कह दी मैंने जो मेरा मज़ाक उड़ा रही हो।
"ना...ना मैं मज़ाक नहीं उड़ा रही कपिल! मैं तो बस तुम्हारे बारे में सोच कर हँस रही हूँ। याद है जब मैं जिंदा थी और एक हसीन जिस्म की मालकिन भी, तब कितनी बार मैं खुद तुम्हे प्यार में आगे बढ़ने के इशारे देती थी लेकिन तुम बुद्धूराम!! कभी गलती से हाथ भी छू जाता था तो ऐसे चिहुँक जाते थे जैसे करंट लग गया हो। और अब तुम्हारी मोहब्बत की बातों की प्यास मिटती ही नहीं। अब मेरे पास क्या बचा है कपिल जो मैं तुम्हें दे सकूँ। अरे अब तो मैं बस एक हवा हूँ। तुम मुझे भूल जाओ कपिल और अब किसी सुंदर सी लड़की से शादी कर लो। वैसे वो रानी... उसके बारे में क्या ख्याल है? बेचारी मरती थी तुमपर और मैं ... खैर छोड़ो मैं तो अब सच में मर गयी हूँ तो तुम उस रानी से ही...?" राजबाला ने गम्भीर होकर कहा।
"चुप रहो! मैं किसी रानी को नहीं जानता और अगर तुम्हें मेरा इधर आना इतना ही बुरा लगता है तो नहीं आऊँगा कल से।" कपिल तनिक गुस्से से बोला और राजबाला को अपनी गोद से उठा दिया।
"अर्रे!! ऐसा गज़ब मत करना नहीं तो मैं फिर से मर जाऊँगी। मैं तो बस ऐसे ही कह रही थी।" राजबाला तड़फ कर बोली।
"तो फिर प्यार की बातें करो।" कपिल ने मुस्कराते हुए कहा और राजबाला को खींच कर गले लगा लिया।
राजबाला भी उससे और कस कर लिपटते हुए बोली, "कपिल काश ये सब तुम पहले करते जब मैं जिंदा थी तो शायद हमें प्यार का ज्यादा मज़ा आता।
"राज! मेरा प्रेम पवित्र था और है जिसमें जिस्मों का कहीं कोई सम्बंध ना पहले  था और ना अब है। मैंने तो तुम्हारी रूह से ही मोहब्बत की थी और अब भी कर रहा हूँ। और शायद मेरे इसी प्रेम बन्धन के कारण तुम शरीर से मुक्त होकर भी मुक्त ना हो सकीं।
लेकिन राज! अब मैं सोचता हूँ कि ये हवा की योनि तुम्हें मेरे ही कारण मिली है। और अब तुम्हारी मुक्ति की राह भी मुझे ही खोजनी होगी।
"चुप रहो तुम! ज्यादा पंच मत बनो। मुझे नहीं चाहिए कोई मुक्ति और ऐसी मुक्ति तो कतई नहीं जिसमें तुम्हारा साथ ना हो।" राजबाला ने कपिल के होठों पर अपने होंठ रखकर उसे चुप करा दिया।
"फिर हमेशा ये पंचायती लेकर क्यों बैठ जाती हो कि यहाँ मत आया करो, डर तो नहीं लगता?, लोग क्या कहेंगे? अरे हम प्यार करते हैं और लोगों को जो करना था कर चुके। ऐसे भी मुझे भी इस जिस्म का कोई मोह नहीं है तो लोग मुझे मार भी देंगे तो भी हमपर उपकार ही करेंगे।" कपिल ने राजबाला को हटाते हुए कहा।
"जाओ तुम, तुम्हारा प्यार झूठ है" राजबाला तुनक कर बोली।
"अब क्या हुआ राज? अरे तुम तो मेरी आत्मा हो तुम्ही मेरा सच्चा प्यार हो।" कपिल उदास होकर पूछने लगा।
"तुम हमेशा ऐसा ही करते हो, पहले भी ऐसे ही मुझे खुद से दूर हटा देते थे और आज भी। अरे दो पल का सुकून मिलता है तुम्हारे गले लग कर और तुम्हें वह भी बर्दाश्त नहीं होता। और ये मुक्ति की बात कहाँ से बीच में आ गयी? मेरी मुक्ति का मार्ग खोज रहे हो यानी के अब तुम मेरे साथ से भी उकता गए हो। मुझे हमेशा के लिए खुद से दूर कर देना चाहते हो। बोलो ऐसा क्यों कर रहे हो? क्या कोई दूसरी लड़की... ओह्ह अब समझी, आखिर वह रानी अपने प्लान में कामयाब हो ही गयी। उस दिन भी जब हम बगीचे में मिले थे तब ठाकुरों को उसने ही हमारी मुखबिरी की थी। और ... और ठाकुरों ने ये कहकर की मैं नीच जात एक ठाकुर को गंदा कर रही हूँ। मुझे नोच खसोट कर मार डाला।
उस समय मेरे मुँह में मुँह और जिस्म में... उस समय तो उनमें से कोई ठाकुर गन्दा नहीं हुए कपिल... अरे जिस जिस्म को तुमने कभी नज़र भर कर भी नहीं देखा उसी को तार-तार कर दिया था उन ऊंची जात वालों ने। लेकिन तुम्हारे प्यार ने मरकर भी मुझे इस श्मशान से दूर कभी जाने नहीं दिया कपिल। और अब तुम खुद ही मुझे दूर...!" राजबाला रोते हुए बोली।
"ओह्ह!! चुप हो जाओ। क्या मुझे भी रुलाओगी। और ये बार-बार रानी का नाम बीच में कैसे आ जाता है। मैंने कितनी बार कहा तुमसे की मैं तुम्हारे अलावा कभी किसी से प्यार नहीं कर सकता।" कपिल राजबाला को खींचकर गले लगाते हुए बोला।
राजबाला जोर-जोर से रो रही थी। और इस बार कपिल ने भी राजबाला की तरकीब आजमाई और अपने होठों से उसे चुप करा दिया।
"अच्छा राज! क्या कह रही थीं तुम की ठाकुरों ने तुम्हारे साथ?? तुमने पहले कभी मुझे वो बात क्यों नहीं बतायी। गांव में तो तुम्हारी मौत का कारण तुम्हारी बीमारी...? और फिर तुम्हारे अम्मा बाबू ने भी तो यही कहा था।" कपिल कुछ सोचकर बोला।
"ऐसा नहीं कहते तो क्या कहते कपिल बाबू, उन्हें तो आखिर इसी समाज में रहना था। और फिर मैं तो मर ही चुकी थी। ऐसे भी एक गरीब बाप और कर भी क्या सकता था।" राजबाला ने उदास होकर कहा।
"अच्छा क्या तुम मुझे बता सकती हो कि कौन लोग थे वे? क्या मेरे परिवार के?" कपिल ने गम्भीर होकर पूछा।
"क्या करोगे जानकर?" राजबाला एकदम से डरकर बोली।
"कुछ नहीं बस उनसे सावधान रखना चाहूँगा और क्या" कपिल ने नज़रें बचाकर कहा जिससे राजबाला उसके गुस्से से लाल हुई आँखें नहीं देख पायी।
"फिर ठीक है वो पाँच थे जिन्होंने मेरे साथ...!" राजबाला ने कपिल को उन सभी के नाम बता दिए।

"अरे आज दिन में! और दिन में तुमने मुझे कैसे ढूंढा?" कपिल को दोपहर में अपनी और आता देखकर राजबाला चौंकते हुए बोली।
"तुमसे मिलना अच्छा लगता है" कपिल ने मुस्कुराते हुए कहा और उसका हाथ पकड़कर एक और ले चला।
"अरे कहाँ ले जा रहे हो मुझे...? ओहो रुको तो।" राजबाला कहती रही और कपिल उसे खींचते हुए ट्यूबबेल की ओर ले चला। हड़बड़ी में राजबाला ये भी नहीं देख पायी की आज कपिल भी उसके जैसे ही हवा में तैर रहा था।
ट्यूबबेल पर छः लहूलुहान लाशें पड़ी हुई थीं मानों वहाँ कोई भीषण युद्ध लड़ा गया हो।
उन छः में पाँच तो राजबाला के अपराधी थे और एक खुद कपिल की मृत देह।
"हे भगवान!!! ये क्या किया तुमने कपिल।" राजबाला कपिल को देकर चीख पड़ी और उसे गौर से देखने लगी।
"प्यार का कर्ज चुका दिया पगली, बदला ले लिया तेरे साथ हुए ज़ुर्म का।" कपिल ने मुस्कुराते हुए कहा और राजबाला को गले लगा लिया।
"लेकिन ऐसे अपनी जान पर खेलकर?? ये आपने अच्छा नहीं किया कपिल।" राजबाला फिर उदास होकर कहने लगी।
"क्या करता राज! आपसे हमेशा के लिए मिलन का कोई और रास्ता था मेरे पास? मैं सदा तुम्हारे साथ रहूँगा अब और हमारे बीच कोई रानी कभी नहीं आएगी।" कपिल ने मुस्कुराते हुए कहा।
"चुप रहो", कहते हुए राजबाला ने उसके होंठों को अपने होंठों से बंद कर दिया और दोनों एक दूजे में समाने लगे।
लाशों के पास इकट्ठा होते लोगों ने देखा ऊपर धुएँ की आकृति क्षतिज की ओर जा रही थी।
समाप्त

©नृपेंद्र शर्मा "सागर"