प्रशांत पत्नी से लड़कर भुनभुनाता हुआ ऑफिस के लिए निकला। ऐसे तो ये उसका रोज का काम था, पत्नी से झगड़ना उसे मारना-पीटना और गन्दी गालियाँ देना।
शादी के कुछ ही महीनों बाद प्रशांत को साँवली सुधा नापसन्द आने लगी थी। प्रशांत अब सिर्फ उसकी कमियाँ ही ढूंढता रहता था; कभी खाने में कभी कपड़ों में और कभी उसके उठने-बैठने, हँसने-बोलने में।
सुधा ने कई बार प्रशांत के उस दुर्व्यवहार की शिकायत अपने घर में भी की थी लेकिन हर बार उसकी माँ और भाई उसे यही कहते कि, "ससुराल में थोडा तो एडजस्ट करना ही पड़ता है। अब तो तेरा वही घर है और समय के साथ सब ठीक हो जाएगा।" सुधा हमेशा ये सुनकर चुप हो जाती।
अब प्रशांत और सुधा घर से दूर दूसरे शहर में किराए के फ्लैट में रह रहे थे, क्योंकि प्रशांत का ट्रांसफर अब हेड ब्रान्च में हो गया था। पहले घर पर तो प्रशांत अपने मम्मी-पापा के सामने थोड़ा कम ही झगड़ता था, लेकिन जब से वह सुधा को लेकर यहाँ आया था उसका लगभग रोज़ ही सुधा से किसी न किसी छोटी-मोटी बात को लेकर झगड़ा होता ही था। जो छोटी बात से शुरू होकर सुधा के मायके वालों को गाली देते हुए दहेज़ के तानों पर खत्म होता।
जैसे की उस दिन, "तुम्हारे घर वालों ने मेरी किस्मत फोड़ दी एक तो बदसूरत लड़की से शादी कर दी ऊपर से दिया ही क्या है तेरे घर वालों ने।" और फिर गाली देते हुए घर से निकल गया।
अभी प्रशांत लिफ्ट से बाहर निकल ही रहा था कि वह उसके सामने एक बहुत सुंदर लड़की आ गयी झट से... वह तो सब कुछ भूलकर बस उसे देखता ही रह गया।
लंबी, गोरी, स्लीवलेस पिंक कलर की टॉप, ब्लैक मिनी स्कर्ट और पैरों में भी ब्लैक सैंडल पहने लहराती हुई सी..
प्रशांत की आँखें जैसे ही उसकी आँखों से मिलीं वह लड़की हल्का सा मुस्कुरा दी और प्रशांत को एकटक कुछ देर देखकर झटके से मुड़कर जाने लगी।
"हे… हएल्लो…!!", प्रशांत ने न जाने कैसे अटकते हुए उसे आवाज लगाई।
"यस..आपने मुझसे कुछ कहा मिस्टर…..?", लड़की ने पलटकर मुस्कुराते हुए सुरीली आवाज की खनक बिखेरी। उसका अंदाज़ कुछ ऐसा था जैसे परिचय पूछ रही हो।
"ज….जी माय सेल्फ प्रशांत.. यहीं फोर्थ फ़्लोर में रहता हूँ, आप?", प्रशांत ने भी सवालिया नज़रों से देखते हुए कहा।
"मैं हनी.. यहाँ नहीं रहती... , लेकिन रहना चाहती हूँ!", लड़की ने बायीं आँख धीरे से दबाते हुए मुस्कुरा कर जवाब दिया और अचानक खिलखिला कर हँसने लगी।
उसकी इस हरकत से प्रशांत झेंप गया और झपट कर स्टैंड से अपनी बाइक निकाल कर ऑफिस के लिए निकल गया।
एक सप्ताह बाद फिर प्रशांत ऑफिस के लिए निकलते समय उस लड़की (हनी) से टकरा गया। उसे देखते ही प्रशांत एक दम से खिल उठा। वह भूल गया कि अभी-अभी वह बेचारी सुधा को गालियां देते हुए बेल्ट से पीटकर आया है।
"हेल्लो.. हनी जी, कैसे हैं आप?", प्रशांत ने मुस्कुराते हुए पूछा।
"जी सर हम तो ठीक हैं! आप अपनी सुनाइये?", हनी ने मुस्कान होंठों पर सजाते हुए बेधड़क हाथ प्रशान्त की तरफ बढ़ा दिया जिसे प्रशांत ने नदीदों की तरह दोनों हाथों में लपक लिया और उसके हाथ को पकड़ कर बूत सा जम गया जैसे हनी ने मन ही मन उसे स्टैच्यू बोल दिया हो और वह उसके ओवर बोलने का इंतजार कर रहा हो।
हनी का नर्म नाजुक गोरा हाथ उसे अपने हाथों में किसी गुनगुने स्पंज के होने का सुख दे रहा था। प्रशांत का खून हनी के हाथ की उस गर्माहट को प्रशांत के दिल तक बड़ी तेजी से ले जा रहा था तभी,
"अब छोड़िये भी सर हमें भी काम पर जाना है", ये शहद में लिपटा हुआ वाक्य प्रशांत के कानों में पड़ा।
और उसने शर्मिंदा होते हुए धीरे से अपने हाथ खींच लिए।
हनी अपनी मुस्कान को मधुर हँसी में बदलती हुई आगे बढ़ गयी और प्रशांत उसके नज़रों से ओझल होने तक उसके बैक पर नजरें गढ़ाए रहा।
आज हनी ने टाइट येल्लो जीन्स और ब्लैक टीशर्ट पहनी थी।
अब दिन प्रति दिन प्रशांत का सुधा के साथ झगड़ा बढ़ता ही जा रहा था। वह हर समय उसे गन्दी गालियां देकर बात करता और बिना वजह भी उसपर हाथ उठा देता।
सुधा को कुछ समझ नहीं आ रहा थी कि प्रशांत का ये व्यवहार क्यों है।
"क्या असली वजह दहेज है या सुधा की सुंदरता??", लेकिन सुधा तो बदसूरत बिल्कुल भी नहीं है। माना उसका रंग थोड़ा दबा हुआ है, तो क्या हुआ सुधा के नयन-नक्श उसे किसी फिल्मी हीरोइन से कहीं कम नहीं रखते।
कॉलेज में सारी सहेलियां कहती थीं कि "सुधा तू बिल्कुल मधुबाला जैसी दिखती है, देखना कोई राजकुमार खुद तेरा हाथ माँगने आएगा।"
उनकी बात सुनकर सुधा हमेशा आत्ममुग्ध हो जाती और अपने भावी राजकुमार की छवि अपने विचारों से हृदय में बनने लगती।
सुधा पढ़ने-लिखने में हमेशा बहुत तेज़ थी उसने अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र से परास्नातक की परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में पास की थीं।
सुधा हमेशा टीचर बनना चाहती थी लेकिन… अब शादी के बाद उसके सारे सपने ही धूल में मिल गए थे।
सुधा जब भी प्रशांत से किसी स्कूल में टीचर की जॉब की बात करने जाने को कहती प्रशांत उसे बुरी तरह पीटता और उसके चरित्र को लेकर झूठे लांछन लगाता।
सुधा अब बहुत परेशान हो गयी थी। उसने अपनी मम्मी को सारी बात बताकर कहा कि अब वह और प्रशांत के साथ नहीं रह सकती वह तलाक चाहती है। तो उसकी मम्मी ने उल्टा सुधा को ही डाँट दिया कि, "दिमाग तो ठीक है तेरा? तलाक लेकर खानदान के नाम पर कालिख मलेगी!! अरे लोग क्या कहेंगे.. तेरे बाप दादा ने जो इज़्ज़त कमाई है उसे मिट्टी में मिला दे तू। देख सुधा हम लोग गरीब ज़रूर हैं लेकिन हमारे पास समाज में नाम और सम्मान की दौलत बहुत है। तो हम पर थोड़ा रहम कर बेटी: हमसे हमारी ये दौलत मत छीन। तलाक लेने की बात मुँह से फिर मत निकालना।
अब सुधा ने घर पर फोन करना भी बंद कर दिया था। बस अंदर ही अंदर घुट रही थी और रो रही थी।
सुधा और प्रशांत के बीच दुश्मनी के अलावा अब कुछ नहीं था। दो ऐसे दुश्मन जो एक ही घर में रह रहे थे। और जब कोई सम्बन्ध ही नहीं था तो बच्चा…!! फिर इन दोनों के बीच की मिसिंग कड़ी को जोड़ता भी तो कौन?
इधर पिछले पंद्रह दिन से प्रशांत को हनी कहीं नजर नहीं आयी थी।
प्रशांत का मन ना जाने क्यों अशांत था, वह हनी को देखना चाहता था। हालांकि इनके बीच कभी हाय; हेल्लो से ज्यादा कुछ नहीं हुआ था लेकिन प्रशांत अक्सर हनी के सपने देखने लगा था। वह उसकी अदाओ उसकी खूबसूरती का दीवाना होने लगा था।
वह ना जाने क्यों उसका इंतजार करने लगा था।
शायद इसी झुंझलाहट को वह सुधा पर निकाल कर धड़धड़ाते हुए घर से निकला तो देखा कि हनी बाइक स्टैंड पर ही स्कूटी पार्क कर रही थी।
उसे देखकर प्रशांत की आंखों में चमक आ गयी।
वह तेज़ कदमों से स्टैंड की ओर बढ़ा और प्रशन्नता भरी आवाज में बोल, "हाय हनी कैसे हो? कई दिन दिखे नहीं?"
"हेल्लो मिस्टर प्रशांत, मैं अच्छी हूँ.. आप कैसे हैं?", हनी ने जवाब के साथ ही सवाल किया।
"हम भी ठीक हैं जी।", प्रशान्त ने मुस्कुराते हुए कहा।
"अरे… वो क्या है ना मैं एक एन. जी. ओ. में सर्वे मैनेजर की जॉब करती हूँ तो अलग अलग जगहों पर जाना होता रहता है " हनी ने प्रशांत से हाथ मिलाते हुए कहा। और जब हनी ने प्रशांत का हाथ छोड़ा तो उसके हाथ नें छूटा था एक चमकता हुआ कार्ड जिसपर किसी एन. जी.ओ. के नाम के नीचे हनी माथुर लिखा था और नीचे एक मोबाइल नम्बर।
कार्ड देखकर प्रशांत की आंखों में चमक आ गयी और वह थेंक्स बोलकर अपनी बाइक निकालने लगा।
शाम को ऑफिस से लौटकर फ्रेस होने के बाद प्रशांत ने कार्ड निकाला और उसपर लिखा नम्बर डायल कर दिया..
"हेल्लो.. कौन?" उधर से सुरीली आवाज आई।
"जी मैं प्रशांत..! सुबह आपने कार्ड दिया था ना वाटिका पैलेस के सामने।", प्रशांत ने आवाज में मिश्री घोलते हुए कहा।
"ओह्ह!! आप! कैसे हैं आप? अच्छा अभी मैं थोड़ा बिजी हूँ तो क्या हम रात में बात करें?" कहकर हनी ने कॉल कट कर दी।
अब प्रशांत बेसबरी से रात होने का इंतज़ार करने लगा। उसके दिल में बार-बार हनी के ख्याल आ रहे थे और उसके कानों में हनी की हँसी की खनकती आवाज गूंज रही थी।
रात को कोई 9 बजे प्रशांत ने हनी का नम्बर डायल किया और दो रिंग के बाद कॉल कट कर दी।
सुधा और प्रशान्त तो हमेशा अलग ही सोते थे तो उसे कुछ पता चले इसकी सम्भावना नहीं थी। ऐसे भी प्रशांत को सुधा के होने ना होने से कोई फर्क पड़ने वाला नहीं था।
प्रशांत को पता था कि हनी ने उसका नम्बर जरूर सेव किया होगा, तो अब बस उसे इंतज़ार था उसकी मिस्डकॉल के रिप्लाय का।
कोई 20 मिनट बाद प्रशांत का फ़ोन बजा। उसने डिसप्ले पर नम्बर देखा तो उसके दिल की धड़कने अनायास ही बढ़ गयीं, नम्बर हनी का ही था।
प्रशांत ने काल रिसीव करके कान से लगाया और धीरे से धड़कते दिल से हेल्लो बोला।
"हेल्लो, प्रशांत जी कैसे हैं आप?" उधर से खनकता धीमा स्वर उसके कानों में पड़ा।
"जी मैं अच्छा हूँ हनी जी, आप कैसे हैं?" प्रशांत ने स्वर में मिश्री घोलते हुए कहा।
"फिट एन्ड फाइन.. बोले तो एकदम मस्त!!" उधर से हनी की जोर से हँसने की आवाज आने लगी।
उझसे प्रशांत कुछ झेंप सा गया और चुप होकर उसकी हँसी सुनने लगा।
"अच्छा प्रशांत जी कोई काम था आपको?" हनी ने गम्भीर होकर सवाल किया।
"तो क्या मैं बिना काम के आपको कॉल नहीं कर सकता? क्या कोई काम होगा तभी आप बात करोगे हनी जी?" प्रशांत अचकचाते हुए हड़बड़ी में बोल गया।
"अरे नहीं जनाब ऐसा कुछ नहीं है, आप बिलकुल कर सकते हैं। आखिर हम मित्र हैं अब। लेकिन मुझे लगा कि आप बार-बार… कोई बेमतलब तो ऐसे किसी अजनबी को कॉल..!" हनी ने चिरपरिचित मधुरता के साथ जवाब दिया।
"क्या कहा आपने?? मित्र!!, तो क्या हम सच में मित्र हैं हनी जी? मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि इतनी खूबसूरत लड़की मेरी मित्र हैं।" प्रशांत एकदम खुश होते हुए बोला।
"हाँ हम दोस्त हैं अब सीरियसली, और आप अब मुझे हनी कह सकते हैं। ये जी का तकल्लुफ मुझे अच्छा नहीं लगता 'प्रशांत' बड़ा पराया सा लगने लगता है।" उधर से हनी की गम्भीरता भरी आवाज आयी।
"ठीक है ठीक है 'हनी'... कितना मीठा लगता है ना? अच्छा और बताओ, अब हम दोस्त हैं तो क्या इस दोस्ती की कोई लिमिट्स भी हैं? आयी मीन हमारी फ़्रेंडशिप में कोई लिमिट्स...??" प्रशांत ने धीरे से पूछा।
"कोई लिमिट्स नहीं हैं प्रशांत, लेकिन बस मर्यादित रहते हुए किसी भी लिमिट तक जा सकती है ये दोस्ती। क्योंकि मुझे नहीं पसन्द की कोई भी दोस्ती के नाम पर मुझसे फिजिकली…!! आयी होप की आप मेरी फीलिंग्स समझते हुए मुझे असुरक्षित फील नहीं होने दोगे।" उधर से हनी की बहुत गम्भीरता भरी आवाज आयी।
"मैं समझ गया हनी, आपकी इज्जत मेरी इज़्ज़त। आपको कभी भी शिकायत का मौका नही दूँगा।" प्रशांत ने कहा और दोनों हँसने लगे।
अब प्रशांत का ये रोज का काम हो गया था रात को आधी-आधी रात फोन पर हनी से बात करना। कई बार तो दिन में ऑफिस से भी वह हनी को कॉल कर लेता था।
छुट्टी के दिन तो दिन भर प्रशांत और हनी फोन पर बिजी रहते थे।
आजकल प्रशांत को सुधा से कोई मतलब नहीं था, वह उससे कोई भी बात नहीं करता था। उसे तो फुर्सत ही नहीं थी हनी के अलावा कुछ सोचने की.. कुछ करने की।
और इसी के चलते आजकल सुधा उसके कहर से बची हुई थी।
अब प्रशांत और हनी रेस्टोरेंट, पार्क के अलावा अन्य एकांत स्थानों पर भी मिलने लगे थे।
एक अनजाना अनकहा प्रेम सम्बन्ध सा इन दोनों के बीच स्थापित हो गया था।
शाम का समय था, प्रशांत ऑफिस से निकलकर सीधा शहर से बाहर गार्डन की तरफ़ आ गया था जहाँ हनी उसका इंतजार कर रही थी।
इन दोनों की आँखे जब मिली तो दोनों के चेहरे खिल उठे।
"आ गए आप!" हनी ने मुस्कुराते हुए कहा और अपना हाथ उसकी ओर बढ़ा दिया।
प्रशांत ने हनी का हाथ पकड़ा और दोनों हाथ में हाथ डाले बगीचे के अंदर चले गए। बगीचे में अन्य प्रेमी जोड़े भी हाथों में हाथ डाले या तो घूम रहे थे या बैठे हुए थे।
ये दोनों भी एक सुरक्षित एकांत देखकर घास पर बैठ गए। प्रशांत रास्ते से कुछ अंगूर खरीद लाया था तो उसने वे निकालकर सामने रख लिए, "लो हनी इन्हें अपने होंठों से छूकर और मीठा कर दो।" प्रशांत ने बहुत मधुर आवाज में एक अदा के साथ कहा और हनी ने मुस्कुराते हुए एक अंगूर उठा कर अपने दांतों में दबा लिया।
दोनों कुछ देर चुपचाप एक दूसरे की आंखों में देखते हुए अंगूर खाते रहे।
"क्या देख रहे हो ऐसे? ऐसे करोगे तो प्यार हो जाएगा आपसे।" हनी ने मुस्कुराते हुए नज़र झुका कर कहा।
"अभी तक नहीं हुआ क्या?" प्रशांत धीरे से बोला और फिर हनी की आंखों में देखने लगा।
हनी अब चुप थी।
कुछ देर बाद प्रशांत धीरे से बोला, "आयी लव यू हनी"
"क्या!! क्या कहा आपने…? सोच लो मिस्टर आप शादीशुदा हो।" हनी ने हँसते हुए कहा।
"तो क्या हुआ हनी प्यार तो प्यार है अब हो गया तो हो गया बस। अगर आपको मंजूर नहीं तो कोई बात नहीं!" प्रशांत ने उदास होकर कहा।
"अरे बाबा टाँग खींच रही हूँ.. ऐसे उदास मत हो।" हनी जोर से हँसते हुए बोली।
"अच्छा जी..फिर ठीक है आयी लव यू।" प्रशांत ने फिर कहा और हाथ हनी की तरफ बढ़ाने लगा।
"प्यार तो ठीक है प्रशांत जी लेकिन ये टच नहीं प्लीज़, इसके लिए आपको अपनी पत्नी से तलाक लेकर मुझसे शादी करनी होगी।" हनी ने बहुत गम्भीर होकर कहा।
"बस इतनी ही बात ना..? मेरा तो सुधा से ऐसे भी पति पत्नी जैसा कोई सम्बन्ध नहीं है। मैं जल्दी ही वकील से मिलकर उसे तलाक दे दूँगा।" प्रशांत ने अंदर से खुश होते हुए जवाब दिया।
"फिर ठीक है प्रशांत जी, हमारा प्यार मंजिल पा जाएगा उसके बाद, अब हमें चलना चाहिए।" हनी ने उठते हुए कहा।
"मम्मी प्रशांत अब मुझे तलाक़ दे रहे हैं, अब मैं क्या करूँ?" सुधा रोते हुए अपनी मम्मी से फोन पर बात कर रही थी। तलाक का कानूनी नोटिस उसके सामने पड़ा हुआ था जो सरकारी डाक से कुछ देर पहले ही आया था।
"अब बेटा हम तो समझा ही सकते हैं इसके अलावा हम क्या कर सकते हैं। हम एक बार बात करेंगे दामाद जी से।" सुधा की माँ ने असहाय भाव से कहा। और सुधा फोन रखकर देर तक रोती रही। प्रशांत उसे रोते देखकर घर से बाहर निकल गया।
"आज मैंने अपने लॉयर से मिलकर सुधा को डिवोर्स जा नोटिस भेज दिया अब जल्दी ही मुझे उससे तलाक़ मिल जाएगा और हम दोनों हमेशा के लिए एक हो जाएंगे।" प्रशांत ने खुश होते हुए हनी को बताया।
"लेकिन इसमें तो छः से सात महीने लग जाएंगे क्योंकि कोर्ट ऐसे सीधे तलाक नहीं मंजूर करती। पहले कुछ समय साथ रहने को देती है।", हनी ने धीरे से कहा।
"हाँ लेकिन अगर सुधा भी राजी हो जाये तब कुछ कंपनसेशन के साथ हमें तलाक जल्दी भी मिल सकता है।" प्रशांत ने वकील का सुझाया रास्ता हनी को बताया।
"फिर आप सुधा से प्यार से पूछो की उसे क्या चाहिए और मनाकर जल्दी से इस मैटर को सॉल्व करो।" हनी ने उतावलेपन से कहा।
"ठीक है माई लव मैं पूछता हूँ उससे।" प्रशांत ने कहा और कुछ सोचने लगा।
आजकल प्रशांत सुधा से बहुत प्रेम से पेश आ रहा था वह ना उसे मरता पीटता और ना ही गालियां देता।
प्रशांत सुधा का नॉर्मल मूड देखकर बहुत मीठी आवाज में बोला, "देखो सुधा मुझे लगता है कि हम लोग साथ में कभी खुश नहीं रह पायेंगे, तो क्यों ना हम दोनों आपसी रजामंदी से अलग हो जाएं। इससे हमारा समय भी बचेगा और पैसा भी जो अदालत में खर्च होना है। मैं समझता हूँ कि आगे तुम्हे भी सैटल होने के लिए समय और पैसा चाहिए होगा तो तुम एक दो दिन में सोच समझकर मुझे बता दो की तुम्हे क्या चाहिए। और हाँ हम आगे से दोस्तों की तरह रह सकते हैं। तुम कभी भी अपनी कोई भी जरूरत मुझे कभी भी बता सकती हो।"
"ठीक है।" सुधा ने गहरी उदासी से भरी आवाज में कहा।
दो दिन में कमसे कम दस बार सुधा अपने मायके फोन कर चुकी थी। उसके भाइयों ने उसकी मदद करने से साफ मना कर दिया था और उसकी माँ ने अपनी बेटों पर आश्रिता होने की मजबूरी बता कर बात टाल दी थी। तो सुधा ने उन्हें याद दिलाया कि अब तलाक वह नहीं ले रही बल्कि प्रशांत उसे तलाक दे रहा है, तो क्या अब समाज में उसके परिवार का सम्मान सुरक्षित रहेगा। क्या समाज ये भी नहीं पूछेगा की आप लोगों ने अपनी बेटी के बुरे समय में उसका साथ क्यों नहीं दिया तो उसकी माँ ने फोन काट दिया था।
और अब मायके में उसका फोन ही नहीं उठ रहा था।
सुधा अब सब तरफ से निराश थी।
सुधा कोई आधे घण्टे से किसी से फोन पर बात कर रही थी, उसके चेहरे पर छिपी हुई मुस्कान थी लेकिन बाहर से वही उदासी जिसमें बनाबटी नकलीपन की हल्की रेखाएं अपनी झलक दिखा रही थीं।
तभी प्रशांत कहीं से गुनगुने हुए आया और उसकी आहत सुनकर सुधा ने फोन रख दिया।
"तो क्या सोचा तुमने सुधा?" प्रशांत ने धीमी आवाज में मधुरता लाते हुए पूछा।
"देखिए अगर हमारा तलाक कोर्ट से होता है तो आपको मुझे हर महीने गुजरा भत्ता देना होगा जो आपकी सैलेरी का यही कोई बीस पर्सेंट तक हो सकता है। और ये आपको हर महीने मुझे तब तक देना होगा जब तक मैं दूसरी शादी नहीं कर लेती। और अब जीवन में शादी करने का मेरा कोई विचार नहीं है।" सुधा सधी आवाज में धीरे से बोली।
"हाँ हो सकता है", प्रशांत ने उसकी बात सुनते हुए कहा।
"और ये भी तब होगा जब मैं तलाक के लिए मान जाऊं। और अगर मैं भी केस चलाऊं तो इस तलाक में वर्षों भी लग सकते हैं।" सुधा ने अब कुछ अर्थपूर्ण स्वर में कहा।
"तो क्या तुम मुकदमा लड़ने वाली हो?" प्रशांत ने चौंकते हुए कहा।
"नहीं!! मैं तो बस ये कह रही हूँ कि आप अपनी बस पर्सेंट सैलेरी का हिसाब लगाकर मुझे दस साल के पैसे इकट्ठा देकर मुझसे अलग हो जाएं और जियें अपनी जिंदगी। मैं उन बीस लाख रुपयों से अपनी जिंदगी आसानी से जी लूंगी।" सुधा ने मुस्कुराते हुए कहा।
"ठीक है मैं सोचकर बताऊँगा।" प्रशांत ने कहा और बाहर चला गया।
"ठीक ही तो कह रही है सुधा। और फिर सोचो ये अदालतों के चक्कर काटने और फिर कानूनन बिना उसकी मर्जी के तलाक लेते लेते हम बूढ़े हो जाएंगे।" प्रशांत की सारी बात सुनकर हनी ने कहा।
"तो क्या मैं उसे बीस लाख रुपये?" प्रशांत ने कुछ सोचते हुए सवाल सा किया।
"अरे डार्लिंग ये तो हमारे प्यार के आगे बहुत छोटा सा अमाउंट है। मैं अब आपसे अधिक दूर नहीं रह सकती। जल्दी और जैसे भी हो सुधा से वह घर खाली करवाओ। मैं कब से वहाँ रहना चाहती हूँ।" हनी ने उसके गले में बाहें डालते हुए कहा।
बीस लाख रुपये का चेक प्रशांत अदालत के माध्यम से सुधा को दे चुका था। सुधा ने शर्त रखी थी कि पैसे उसके खाते में ट्रांसफर होते ही वह तलाक के कागजों पर अदालत के सामने दस्तख़त कर देगी और फिर हमेशा के लिए प्रशांत और सुधा के रास्ते अलग हो जाएंगे।
आज सुधा और प्रशांत दस्तखत करके अदालत से बाहर निकले तो सामने हनी माला लेकर खड़ी थी।
उसे देखकर प्रशांत बहुत खुश हुआ और झपट कर आगे बढ़ा लेकिन हनी उसे नज़रंदाज़ करती हुई सुधा की ओर बढ़ चली।
"आज़ादी मुबारक हो सुधा।" हनी सुधा के गले में फूल माला डालकर हँसते हुए बोली और कसकर उसके गले लग गयी।
प्रशांत दूर खड़ा आँखें फाड़े उन दोनों को देख रहा था।
"अरे प्रशांत जी.. इससे मिलो, मेरे बचपन की सहेली एडवोकेट 'मधुबाला' इस मामले में इसने मेरी बहुत हेल्प की नहीं तो मैं तो अभी भी तुम्हारी गालियाँ और मार खा रही होती।" सुधा मुस्कुराते हुए बोली।
"लगता है तेरे पति.. आयी मीन एक्स हसबैंड को अभी भी कुछ समझ नहीं आया। ठीक है माय डार्लिंग प्रशांत मैं आपको समझाती हूँ।
वो क्या हुआ ना एक दिन मार्केट में अचानक सुधा से मेरी मुलाकात हो गयी जहाँ इसने मुझे तुम्हारे जुल्मों की दास्तां और अपने परिवार की बेरुखी की कहानी सुनाई। और बस फिर क्या था मैंने उसी समय ये नाटक लिख दिया जिसका पर्दा गिराकर हम लोग अभी-अभी अदालत से बाहर निकले हैं।
और ये सब कैसे हुआ शायद वो सब अब आपको बताने की जरूरत नहीं है।
आओ सुधि चलो अभी तुम्हारे आगे की लाइफ की प्लानिंग भी करनी है।" मधुबाला उर्फ हनी ने सुधा की कमर में हाथ डाला और हँसते हुए उसे खींचती हुई एक ओर चली गयी।
प्रशांत हारे हुए जुआरी की तरह देर तक उन्हें जाते देखता रहा…
समाप्त
नृपेंद्र शर्मा "सागर"