Sunday, August 23, 2020

एक हादसा

(एक कहानी यूँही)      
            #डर#

आधी रात बीत चुकी थी, देवेंद्र अपनी रेंजर से बहुत तेजी से पैडल मरते हुए घर लौट रहा था उसे आज अपनी प्रेमिका की बातों में समय का ध्यान ही नहीं रहा।
उसने पहले अपनी प्रेमिका को उसके घर छोड़ा और फिर अपने घर की ओर चल दिया।

आज की रात और दिनों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही अँधेरी थी ऊपर से  हवा की तेरी सूखे पत्तों को सहलाकर हँसा रही थी जिनकी हँसी की 
खर्र..! खर्र.. चकककक चरर्त्तत...!! 
की कर्कश ध्वनि वातावरण में अलग ही भय उतपन्न कर रही थी।

माहौल इतना डरावना था कि गर्मी में भी देवेंद्र के जिस्म का हर रोंया खड़ा था जैसे किसी डर को देखकर शेर की गर्दन के बाल खड़े ही जाते हैं साही के कांटे खड़े हो जाते हैं।

अभी देवेंद्र काली नदी के पुल के बीच में ही पहुँचा था कि उसे सामने किसी के होने का अहसास हुआ उसे डर तो पहले से ही लग रहा था लेकिन अब तो उसकी साँसे राजधानी  की रफ्तार से चलने लगीं।
देवेंद्र ने अपनी रेंजर की गति को बढ़ाने में अपने फेफड़ों की पूरी ताकत लगा दी तभी वह साया उसे ठीक सामने खड़ा नज़र आया, उसके हाथ ब्रेक लीवर पर केस गए, रेंजर चिर्रर.... र्रर!! की आवाज करती हुई उस साये से एक फुट की दूरी पर रुक गयी।

देवेंद्र समने खड़े अजनबी को देखने लगा उसकी बड़ी बड़ी आंखे थी सर पर टोपी पहने हुए था।
लेकिन उसके चेहरे का कोई भी हिस्सा नज़र नहीं आ रहा था वहां बिल्कुल स्याह अँधेरा था।
देवेंद्र उसे देखकर बहुत डर गया उसके मुंह से अचानक तेज चीख निकली, 
भ...उ...त...!

तभी उस साये ने कहा, कहाँ घूम रहे हो इतनी रात को? तुम्हे पता नही देश मे कोरोना के चलते इमरजेंसी के हालात हैं , पूरे देश में कर्फ्यू लगा हुआ है और तुम सायकल पर आधी रात को हवा खोरी कर रहे हो इस बार तो चेतावनी देकर छोड़ रहा हूँ।अगली बार दिखे तो 144 में अंदर कर दूंगा।

तब देवेंद्र ने ठीक से देखा वह साया एक काला मास्क पहने हुए पुलिस वाला था।

देवेंद्र भाई चुपचाप लौट आये क्योंकि वह जानते हैं कि भूतों को तो फिर भी समझाया जा सकता है किंतु पुलिस......😢😢😢
नृपेंद्र शर्मा "सागर"

Wednesday, August 19, 2020

शहीद

#लघुकथा
शीर्षक:-शहीद

"ये जवान जो बॉर्डर पर लड़ते हुए शहीद हुआ है, ये हमारे गाँव का गौरव है। हम इसके नाम पर गाँव के विकास के लिए योजनाएं लाएँगे।" एक नेता जी ने तिरंगे में लिपटे फौजी के शव की ओर इशारा करके कहा।

"ये  फौजी हमारी कौम का था, हमारी कौम का नाम रौशन किया है इसने। हम इसके नाम से बड़ा स्मारक बनवाएंगे।" तभी दूसरे नेताजी खड़े होकर बोले।

"अरे मंत्री जी आ गए...", तभी एक शोर उठा।

"ये जवान जो पड़ोसी मुल्क से की जा रही गोलाबारी का सामना बहादुरी से करते हुए शहीद हुआ है, ये हमारे क्षेत्र का है। जिसने हमारे क्षेत्र का मान बढ़ाया है।
मैं सरकार में मन्त्री होने के नाते ये घोषणा करता हूँ इनके घर की तरफ आने वाली सड़क को चौड़ा करके मुख्य मार्ग से जोड़ा जाएगा और इस रोड का नाम इस शहीद के नाम पर होगा।
और जैसा कि हमारे साथी विपक्षी नेता जी ने अभी कहा था तो मैं इनके घर को स्मारक बनाने के लिए फंड दिलाने का आश्वासन देता हूँ।" 

नेता जी की जय, मंत्रीजी जिंदाबाद के नारों के बीच बेटे के कफ़न-दफन का इंतज़ाम करता उसका बाप अब मन ही मन अपने रहने के इंतज़ार के बारे में भी सोच रहा था।

नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद