Tuesday, August 7, 2018

दास्ताने दावत,,,

ठाकुर संग्राम सिंह बहुत उदार जमींदार थे।
सारे गांव में उनको बहुत आदर सम्मान मिलता था।संग्राम सिंह जी भी सारे गांव के सुख दुख में विशेष ध्यान रखते।
उसी गांव के बाहर कुछ दिन से एक गरीब परिवार आकर ,झोंपडी बना कर रह रहा है ,पता नहीं कहाँ से किन्तु बहुत दयनीय अवस्था मे थे सब।
परिवार में एक बीमार आदमी रग्घू उसकी पत्नी रधिया , दो बेटियां छुटकी और झुमकी।
बेचारी रधिया गांव के कूड़े से प्लास्टिक धातु ओर अन्य बेचने योग्य बस्तुएं बीन कर कबाड़ी को बेचती थी।
बामुश्किल एक समय का बाजरा, जुआर अथवा संबई कोदो जुटा पाती और उसे उबालकर पीकर सभी परिवार सो जाता।
बच्चों ने कभी पकवानों के नाम भी नहीं सुने थे ,चखने की तो बात ही स्वप्न थी।
आज संग्राम सिंह जी के घर उनका वंश दीप जन्मा था उनका पोता।
उसके जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में उन्होंने सारे गांव को दावत दी थी।
उन्होंने वारी(न्योता देने वाला) से कहा था कि, ध्यान रहे आज गांव में किसी के भी घर चूल्हा न जले सब हमारे घर ही भोजन करेंगे।
तो वारी इस परिवार में भी न्योता दे आया।
दावत का नाम भी बेचारे बच्चों ने कभी नही सुना था, अतः उन्होंने सवाल पूछ पूछ रधिया को हलकान कर दिया,,,,
अम्मा, यो दावत क्या होवे है? छोटी छुटकी ने पूछा।
अम्मा लोग कहते हैं हुँआ पकवान बनेगा ,,यो पकवान क्या होवे है ,,?
झुमकी ने दूसरी तरफ से उसका आँचल खींचा।
दावत में बहोत सारा खाना बनेगा जितना मन करे खाओ कोई रोकेगा नई लल्ली।
रधिया ने जबाब दिया,, पर हमारी दावत कैसे कर दी जमींदार ने।
अर्रे अम्मा सारा गाम उनके घर जावेगा खाने हम तो जरुरी जानगे अम्मा ।
अम्मा पकवान बहोत मीठा होवे है का?
गुड़ से भी जादा मिट्ठा?? झुमकी ने चहक कर पूछा।
उन वेचारे बच्चों ने लड्डू पूड़ी रायता के नाम भी नहीं सुने थे।
अगले दिन डरते डरते रधिया दोनो बच्चियों को लेकर दावत में गई और एक कोने में ज़मीन पर बैठ गई ।
तभी संग्राम सिंह उधर आये उन्हें यूं नीचे बैठे देख बोले अरे आप लोग ऐंसे कैसे बैठ गए??
रधिया बेचारी डर गई कि कहीं जमींदार उसे घुड़क कर भगा न दे।
वह अपने फटे मैले कपड़े समेटते हुए आदर से उन्हें नमस्ते करके बोली ,मालिक कोनो भूल हुई गई हो तो माफ करदो।
आपका आदमी दावत कर आया था तो,,,, कह कर बड़ी कातर दृष्टि से उनकी ओर देखने लगी।
अरे नही कोई भूल नहीं हुई बेटा लेकिन यूं सबसे अलग ज़मीन पर कियूं??
उधर बिछावन पर बैठ कर आराम से खाना खाओ।
और कोई रह तो नही गया घर?
मालिक इनके बापू हैं बीमार हैं तो,,,,, रधिया रोनी सी हो गई।
ठीक है खाना खाकर उनके लिए बंधवा लेना ।
ठीक है मालिक आपका जस बना रहे, कह कर रधिया सबके साथ खाना खाने बैठ गई,
पत्तल में दो सब्जी पूड़ी दोने में रायता और लड्डू परोसे गए।
झुमकी ने लड्डू हाथ मे लेकर फिर राधिया से पूछा यो के है अम्मा।??
चुप कर खाले लड्डू है।
पहले बाकी सब चीज़े खा इसे बाद में खाइयो यो मीठा है खाने के बाद खाया जाबे है।
सब खाना खाने लगे। बच्चीयों ने ऐंसे पकवान कभी नही खाये थे अतः वह जल्दी जल्दी पूड़ी तोड़ने लगीं।
उनके पीछे बैठा कोई कह रहा था ,,
साहब जमींदार ने इतना सब गांव नोत दिया और खाने में कंजूसी कर गया, सब्जी में मसाला पता नहीं लग रहा और लड्डू इतना मीठा की एक में ही मन भर जाए।
खर्च बचाने के लिए स्वाद से समझौता कर लिया ठाकुर ने।
इधर छुटकी रधिया से कह रही थी ,,
अम्मा लड्डू इतने बढिया इतने मीठे होबे है।
गुड़ से भी अच्छे और पूड़ी कितनी स्वाद, अम्मा जमींदार के घर रोज़ पोता कियूं नही पैदा होतता।
रोज़ कियूं?? रधिया ने मुस्कुरा कर पूछा।
अम्मा रोज़ होगा तो रोज दावत मिलेगी ना।
अरे तो रोज़ किसी के घर बच्चा थोड़ो होवे है ,झुमकी ने अपना मासूम ज्ञान बखाना।
तो अम्मा ओर दावत कब कब होवे है??
जब कोई खुशि होबे है किसी के घर।
छुटकी और झुमकी एक साथ आंख बंद कर हाथ जोड़ बैठ गईं।
अरे क्या करने लगीं तुम दोनों।
अम्मा भगवान से दुआ मना रई हैं कि, जमींदार जी के घर रोज़ कोई ना कोई खुशी आवे ओर हमे रोज़ ऐंसे अच्छी दावत खाने कु मिले।
ये सुनकर रधिया ने भी ऊपर की ओर हाथ जोड़ कर सर झुका लिया।

संग्राम सिंह जी दोनो ओर की बात सुन रहे थे और सोच रहे थे  कि असली दावत किसकी हुई।
दावत के बाद संग्राम सिंह जी ने रधिया को अगले दिन घर आकर मिलने को कहा।
अगले दिन जब रधिया हवेली पर आई तो उन्होंने उस से पूछा ,, कियूं रधिया अपनी मालकिन की सेवा करेगी ??
बदले में खाना कपड़े बच्चियों की पढ़ाई के साथ एक हज़ार रुपये भी मिलेंगे।
बदले में घर की साफ सफाई और अपनी मालकिन की सेवा।
ये सुनते ही रधिया उनके पैरों में पड़ गई,, मालिक ईश्वर आपका भला करे सारे सुख पहले आपके कदम चूमे।
काम कब से शुरू करना है मालिक।
अभी से। संग्राम सिंह ने संक्षिप्त उत्तर दिया ।
और राधिया ने फिर ऊपर की ओर हाथ जोड़ कर सिर झुका लिया।
और मन ही मन कहने लगी।
हे ईश्वर! आज हुई मेरी असली दावत।।
।।।नृपेंद्र।।।

Thursday, August 2, 2018

भूल,,,

मनोहर , पच्चीस वर्ष का मेहनती किसान है, सांवला मज़बूत दरमियाना कद ऊंचे चौड़े मज़बूत कंधों बाला आकर्षक युवक।
अभी पिछले साल ही उसकी शादी हुई है मालती के साथ।
मालती एक सीधी शादी गांव की मेहनती लड़की है , बहुत सुंदर तो नहीं किन्तु सांवली सलोनी आकर्षक अवश्य है।
माध्यम कद और पतली सी  मालती, जब लहरा कर चलती तो मनोहर का दिल जैसे उसकी पायल के घुंघरू की आवाज के साथ ताल मिला कर धड़कने लगता है।।
शादी के चार महीने बाद ही खूब सिंह ने दोनो बेटों को उनके खेत मकान बांट कर, खुद मुख्तयार कर दिया।
और एक हिस्सा अपने पास रख जिम्मेदारी सीमित कर ली।
उनकी पत्नी ने कहा भी की,अभी से कियूं????
किन्तु उन्होंने कहा कि इनके लिए यही सही है कि, अपना कमाएं अपना बचाएं।
मनोहर मेहनती तो था ही, मालती के साथ ने उसे भाग्यशाली भी बना दिया।
दोनो की मेहनत रंग लाई और एक ही दिन उनके घर बेटी राधा ओर ट्रेक्टर आ गया।
जमीन तो ज्यादा नही थी लेकिन उनकी मेहनत से तीस बीघा जमीन पचास बीघा वाले किसानों से ज्यादा अनाज छोड़ती थी।
और साथ ही बीस तीस बीघा मनोहर ठेके बटाई पर भी ले लेता था।
दो साल की अथक मेहनत से उनके घर मे सारी सुख सुबिधा सारी खुशियां आ गईं थीं।
सुबह ही मनोहर ने कुछ जमा कुछ कर्ज से ट्रैक्टर खरीदा था , ओर शाम को उनके घर एक पुत्री ने जन्म लिया , उसका नाम राधा रखा गया।
समय अच्छा था फसल सोना उगल रही थी।
मनोहर की मेहनत भी बरकार थी ।
सारे गांव में मनोहर और मालती मिशाल थे।
बेटी के जन्म के बाद मालती का समय खेत खलिहान में कुछ कम होने लगा। मनोहर भी ट्रेक्टर आने के वाद से ट्रेक्टर की कमाई के चक्कर मे खेतो में कुछ कम ध्यान देने लगा ।
नतीजा इस बार उनकी फसल पर दिखाई दिया।
मालती ने मनोहर को समझाया कि, ऐंसे काम नहीं चलेगा जी, ट्रेक्टर पर कोई आदमी रख लो और खेती पर खुद ध्यान दो।
खेती बिल्कुल बच्चों जैसी होती है , जैसे मां बाप के ध्यान न देने से बच्चे बिगड़ जाते हैं , वैसे ही मालिक के ध्यान न देने से खेती भी खराब हो जाती है।
मनोहर को बात जँच गई, उसने गांव में मज़दूरों से कहा कि अगर कोई ट्रेक्टर चलाना जानता हो और काम करने का इच्छुक हो तो उसके साथ काम करले।।
गांव का डालचंद ट्रेक्टर चलाया करता था , उसके पास खुद की जमीन न के बराबर थी उसने मनोहर के साथ काम करना शुरू कर दिया।
ऐंसे ही साल बीत गया मनोहर के घर बेटे का जन्म हुआ, डालचंद अपने घर से शराब की बोतल ले आया और बोला आओ मनोहर आज बेटे के जन्म की खुशी में दावत करते हैं।
मनोहर बोला , न भाई डालल्लू मैं नही पीता यार।
अरे यार यूं कोन रोज़ पीता है , आज तो  मौका है, फिर थोड़ी सी से क्या होता है।
लो पीओ हमारे साथ हम कोनसा रोज़ रोज़ कहते हैं।
और ये कह कर उसने गिलास मनोहर को थमा दिया।
और मनोहर न जाने कियूं उसे मना नही कर पाया।
किन्तु ये सिलसिला यहीं खत्म नहीं हुआ और आये दिन ऐंसी दावतें होने लगीं।
मालती दो छोटे बच्चों की देखरेख में मनोहर की ओर थोड़ा कम ध्यान देती थी, उधर मनोहर ये कमी शराब पीकर पूरी करने लगा।
डालचंद गांव में छिप कर शराब का अबैध धन्धा करता था और घर पर उसकी पत्नी भूरी भी शराब बेचने में मदद करती थी।
एक दिन शाम को  डालचंद शराब लेकर नही आया, तो मनोहर उसके घर चला गया।
डालचंद का घर गांव के बाहर एक छोर पर तालाब के किनारे था।
कच्चा छोटा सा लेकिन सुंदर।
मनोहर ने आवाज लगाई," डालु,,,,, ओ डाल्लू,,,!!
कौन है???? भूरी ने दरवाजा खोल कर पूछा,,,।
अर्रे मालिक आप आओ आओ अंदर आओ,,,,।
कह कर भूरी अंदर हो गई,,,
मनोहर भूरी को देख,, देखता ही रह गया,,, जैसा नाम बैसा ही रूप रंग।
भूरी तीस वर्ष की गोरी लंबी चंचल औरत है।
उसकी सुंदरता किसी को भी दीवाना करने के लिए पर्याप्त है।
क्या देख रहे हो मालिक,,?? भूरी ने अदा से मुस्कुरा कर पूछा।।
आयें,,,,,!!! कु,, कुछ। भी नहीं।।।।
डालचंद कहाँ है आया नही आज;;;?
ये तो दो तीन दिन के लिए बाहर गए हैं,, कोई काम था मालिक।??
न ना!! का,,,,,म!!
कोई काम नही था भाभी बस ऐंसे ही ,,,,।
अच्छा चलता हूं , मनोहर भूरी को एकटक देखते हुए अचकचा कर बोला।
मालिक कोई काम हो तो हमसे बता दो हम भी आपकी ही हैं कोई कमी नहीं छोड़ेंगे सेवा मे,,,,
कहते हुए भूरी अदा से आंख दबाकर उठी और बोतल उठा लाई।
लो मालिक कुछ जलपान तो कर लो चले जाना मैं कोनसा आपको खा जाऊँगी ,,,,
खा जाऊंगी पर जोर देते हुए भूरी ने शराब गिलास में उड़ेल दी।
लो मालिक आज मेरे हाथ से पीओ।
कह कर भूरी भेद भरी मुस्कान से मनोहर को देखने लगी।
मनोहर बैठ कर पीने लगा और भूरी उसके सामने नीचे जमीन पर बैठ गई।
भूरी का आँचल यँ ही सरका या किसी मतलब से सरकाया गया मनोहर समझ ना पाया किन्तु भूरी के योवन पुष्पों का इतने करीब से यूं दीदार उसे मदहोश करने लगा,,।
अब ये नशा  शराब का था या भूरी के जवान जिस्म का ,,, जो भी हो मनोहर के होश पूरी तरह उड़े हुए थे।
तभी भूरी ने पूछा मालिक,, मालकिन आपको अब समय नहीं दे पाती होंगी,
दो दो छोटे बच्चे हैं कहाँ समय मिलता होगा ,थक जाती होगी बेचारी।
बस रात को ही बच्चों को सुलाने के वाद,,,,,??
मनोहर भाबुक हो गया,, अरे नही भूरी उसे सच मे टाइम नहीं मिलता अब ,ना रात को ना दिन को,,, बस खुद में ही मस्त है।
मुझसे तो जैसे उसे अब कोई सरोकार ही नहीं है,,,
रात को हाथ लगाऊं तो कहती है ,, दो दो बच्चे हो गए अब ये सब,,,,,,,!!! अच्छा लगता है क्या।।।।
ये तो गलत है मालिक प्यास तो प्यास है ,, भूरी ने बडी अदा से कहा।
तो क्या करूँ भूरी ,,, कहाँ प्यास बुझाऊँ बस ये शराब ही एक सहारा है।।।
कहीं और हाथ लगा कर देख लो मालिक ,,, भूरी उसके सामने थोड़ा और झुकते हुए बोली,,,, शायद कोई और भी आपकी तरह प्यासा हो।
और न जाने जान कर या अनजाने मनोहर का हाथ भूरी के वक्ष से टकरा गया।
उन दोनों के बीच वो सब हो गया जो शायद नही होना चाहिए था। महीनों के प्यासे मनोहर को भूरी ने भरपूर शबाब का रस पिलाया।
मनोहर को डाल्लू के घर शराब और शबाब दोनो मिलने लगे।
मालती की लापरवाही और भूरी के रंग रूप ने मनोहर को भूरी का ही बना दिया।
मनोहर का पैसा भूरी के घर जाने लगा कुछ शराब के मूल्य के तौर पर। कुछ भूरी की ज़रूरतो और उसके प्यार के हक के नाम पर।
इधर खेती पर ध्यान न देने से फसलें चौपट होने लगीं,, उधर रोज ट्रेक्टर बिगड़ने लगा और मरम्मत के नाम पर अच्छी खासी रकम जाने लगी।
मनोहर के घर के हालात बिगड़ने लगे,,,, उधर डालचंद का पक्का और बड़ा मकान बन गया।
मालती जब तक समझ पाती बहुत देर हो चली थी।
अब तो उसके समझने के दिन गए थे।
आर्थिक कमज़ोरी से ट्रेक्टर की कर्ज़ की किस्तें भी जानी बन्द हो गईं,,, बैंक से नोटिस आने लगे।
तब भूरी और डालचंद्र ने उसे सुझाया की ट्रेक्टर बेच दो नहीं तो  बैंक ट्रेक्टर और ज़मीन दोनो ले लेगी।
और डालचंद ने मात्र दस हज़ार रुपए और कर्ज चुकाने के बदले ट्रेक्टर अपने नाम कर लिया।
उस समय भूरी ने बड़ी अदा से कहा था कि, मालिक ये ना समझना कि ट्रेक्टर पराया हो गया, हम आपके हैं हमारी हर चीज आपकी है।
जैसे आपकी हर चीज़ हमारी है।।कियूं है ना मालिक???।।।
और ये कहते हुए उसके चेहरे पर एक अर्थ पूर्ण  कुटिल!! मुस्कान थी ,,,,,,और वैसी ही मुस्कान के साथ डालचंद उसका समर्थन कर रहा था।
मालती रो रही थी खुद की लापरवाही को कोष रही थी,,, अपनी बर्बादी पर सर पीट रही थी कि कियूं वह मनोहर का ध्यान नहीं रख पाई कियूं वह पति पत्नी के स्वाभाविक संबंधों से उदासीन हो गई।
इधर मनोहर की शराब की आदत में उसके खेत भी बिकने लगे,,,,,,, मुश्किल से दस बीघा खेत बचे थे अब घर मे भुखमरी के हालात पैदा होने लगे,, ,,,
मनोहर उस खेत का भी सौदा करने की बात कर रहा था कि, मालती रोते हुए उसके पैरों में गिर गईं कहने लगी आपका दोष नही है ,,, मैं ही अपने घर गृहस्ती और आपके प्यार को संभाल नही पाई ,,,,।।
सब मेरी भूल है मुझे माफ़ कर दो।
अब से आप बस मेरे वही मनोहर बन जाओ वह रोती जाती थी और कहती जाती थी।
हम फिर से मेहनत करेंगे फिर से सुखी जीवन जिएंगे बस आप शराब छोड़ दो,,,
उस दिन मनोहर ने शराब नही पी थी वह भी थक गया था उधर भूरी भी अब इस से सीधे मुंह बात नहीं करती थी।
उसने रोती हुई मालती को उठा कर गले लगा लिया।
प्यार का दरिया पूरे वेग से बहा जिसके साथ दोनों के मन की प्यास बुझने के साथ ही सारे गीले शिकवे वह गए।
मनोहर अब शराब नही पीता , वो फिर से मेहनती किसान बन गया है।
मालती अब इसे बिल्कुल अकेला नही छोड़ती। रात को भी उसे पूर्ण प्यार का अहसास कराती है ।
मनोहर इसके साथ पूर्ण सन्तुष्ट और खुश है।
कभी कभी वह अपने यानी डालचंद के ट्रैक्टर पर मज़दूरी करता है जिसकी एवज में उसे अपना खेत जोतने का पैसा भी नही देना पड़ता और कुछ पैसे भी कमा लेता है।
मालती अपने बच्चों और खेतों की समान देखभाल करती है उसे डर है कि कहीं फिर कोई भूल ना हो ओर फिर कोई ना बिगड़ जाए।
भूरी अब मनोहर को देखती भी नही किन्तु मनोहर उस से भी खुश है।

वह कभी - कभी अकेला बैठ कर सोचता है कि उसकी शुरुआती भूल क्या थी।
शराब पीना या भूरी की ओर आकर्षण।
और वह पाता है कि वास्तविक भूल शराब पीना है ,
किउंकि न उसे शराब की लत होती और न वह भूरी के घर जाने की भूल करता।।