Friday, June 29, 2018

एक कॉफी का मग,,,,

एक लड़का एक लड़की एक दूजे को बहुत प्यार करते थे, अपने आप से ज्यादा प्यार का हर दम दम भरते थे। खोये रहते थे घंटों एक दूजे की आंखों में ,जब भी अकेले में मिलते थे। प्यार के मधुर क्षणों में जीवन की ,सदियों को जीते हुए ,सुख लेते हुए, प्रेमी युगल निज स्वप्न संसार मे सुखी थे। अपनी जीवन सांसों को एक दूजे से बांटने का वादा करते सिकड़ों बार एक दूजे के लिए जान देने को तैयार थे। एक दिन सर्दी की शाम कोहरे की घनी चादर ओढ़े खुद में लिपटी सिमटी सांय सांय चलती हवा से डरती । ख़ौफ़नाक लगती जान लेती ठंड जैसे खुद गर्माहट ढूंढ रही थी। ऐंसे में लड़के को एक मग गर्म कॉफी की हड़क बहुत शिद्दत से महसूस हुई। उसने देखा उसकी प्रेमिका अभी कॉफी का मग लेकर बैठी है। मग से निकलता भाप उसको बर्बस अपनी ओर खींच रही थी। लड़के को पार करनी थी बस 3 फीट ऊंची बाउंड्री जो उन दोनो के घरो के बीच थी। और वह अपनी धुन में या कहो कि इस डरावनी कंपावनी हड्डियों को हारमोनियम बनाती सर्दी में एक आवश्यक्ता के लिए, उस दीवार को पार कर गया। उसने बहुत अनुनय वहुत आत्मीयता बहुत विस्वास से कहा, "जानू क्या मुझे अपने मग से एक घूंट काफ़ी दोगी"?? नो,,,, लड़की ने बिना एक पल विचारने में गंवाए सीधा सपाट उत्तर दिया। कियूं?? प्रेमी ने एक चिर परिचित सवाल दागा। दूध खत्म है , और इस जानलेवा सर्दी में जिंदा रहने के लिए मुझे बस इस गर्म काफी का ही सहारा है। क्या !!और जो तुम मुझे कहती थी कि जान माँगलेना कभी यूँही झूठे आजमाने को,,,,,? हाँ तो मांग लेना जान मेने कब मन किया। एक कॉफी का सिप तो दे नही रही ,,, तुम जान मांग लो कमसे कम ठंड से तड़फ कर मरने से तो अच्छा होगा। और मैं जो ठंड से तड़फ कर मर रहा हूँ। मुझे नही पता, मैं नही दूंगी मतलब नहीं दूंगी। क्या इशी को प्यार कहते हैं? पता नहीं। क्या इस तुच्छ कॉफी मग के लिए तुम अपना वर्षो का प्यार भुला दोगी? शायद , तुम्हे भी तो समझना चाहिए कब से काफी के लिए अड़े हो, तुम्हे मेरी तनिक परवाह नहीं। इस सर्दी से मुझे चाहे कुछ हो जाये , तुम्हे बस काफी पीनी है। जाओ तुम यहाँ से झूंठा प्यार ह तुम्हारा सभी लड़के ऐंसे ही होते हैं उन्हहः उन्हहः सूं ऊँ ऊँ। अब ऐंसा क्या मांग लिया मैंने जो रोना भी शुरू हो गया। तुम लड़किओं का भी न बस हर बात पर रोना ,,,, तुम्ही कोनसा प्यार निभा रही हो मेरी तनिक भी परवाह है तुम्हे। मैं रो नही रही हूँ, दुखी हूं तुम्हारी बातों से और हाँ नही है परवाह मुझे , और कियूं हो तुम्ही कोनसा मेरी परवाह करते हो । तो क्या मैं ये समझूँ की हमारा साथ यहीं तक था ? तुम्हे जो समझना है समझो जाओ यहां से मुझे नही करनी तुमसे कोई बात, सेल्फिश कहीं के। और तुम क्या हो? मुझे सेल्फिश कह रही हो,,, अरे ये क्या हो गया मेरे कारण बेजान भावना रहित तुच्छ कॉफी मग में जैसे आत्मा -प्राण का संचार हुआ हो। वह कांप उठा , वाह रे इंसान क्या मोहब्बत है तेरी। जुड़ने में जतन लगते हैं जुग लगते हैं,,, और टूटने में,,, पल और कारण तुच्छ निर्जीव वस्तुएँ। कभी टीवी कभी मोबाइल कभी लाइट कभी कोई और आदत और आज एक तुच्छ काफी मग। तुम्हे तो सिर्फ बहाना चाहिए,, लेकिन नही आज ये काफी मग एक रिश्ते के अंतिम अंजाम का कारण नही बनेगा। मग दुख से चक्कर खाकर गिर पड़ा। टूट कर चकनाचूर हो गया , कुर्बान कर दिया उसने एक रिश्ते को बचाने के लिए अपना जीवन। और एक गंभीर आवाज खनन्न के साथ जैसे कह गया हो, कि ओ मानव हम निर्जीव तुच्छ चीजों के लिए अपने रिश्तों को तोड़ना बैंड कर अपने भावों को यूं मत मार यूं भावना रहित मत बन। और इन दोनों ने जैसे उसकी मूक आवाज को सुन समझ लिया। दोनो गले लगकर भीगे स्वरों में,मुझे माफ़ करदो मुझे ऐंसा नही करना चाहिए था।कह कर मुस्कुराते हुए कॉफी पीने के लिए कॉफी शॉप चल दिये। और मग अपने सारे टुकड़ों से उन्हें एक होते देख मुस्कुरा रहा है कि उसका बलिदान व्यर्थ नही गया।

हमारी बद्रीनाथ यात्रा।

आज दिनांक,19 मई 2018 , मैं और मेरे 4 मित्र बद्रीनाथ यात्रा पर निकले हैं।
उमंगित ,उल्लासित, भक्तिरस में डूबे।
सुबह 4 बजे है, मैं , योगेश, मनोज, प्रियांक, और रजत, हमने काशीपुर , उत्तराखंड से जो कि कुमाऊं और गढ़वाल का प्रवेश द्वार है।
से अपनी आल्टो कार से  बद्रीविशाल की हैघिस के साथ हमने अपनी यात्रा प्रारंभ की।
40 मिनट में हम रामनगर पहुंच गए, जहां से शिवालिक पर्वत श्रंखला शुरू होती है।
रामनगर व्यापार का नगर है, और जिम कर्वेट पार्क का केन्द्रविन्दु।
जिन कार्बेट को नेशनल टाइगर रिजर्व भी कहा जाता है।
हर भर सुंदर नगर, जहां से सात आठ किमी चलने पर कोशी नदी की बीच धारा में माता गर्जिया देवी का प्राचीनतम मंदिर है।
जो एक पर्वत खंड की बहुत छोटी सी चोटी पर स्थापित है। माता गर्जिया के दर्शन को बर्ष भर श्रद्धालु भारी संख्या में आते रहते हैं।
वहाँ से आगे हमे सड़क के एक ओर शिवालिक पर्वत एवं दूसरी  ओर गहरी कोसी नदी के बीच से गुजरना था , ऐंसा लग रहा था कि सड़क नही एक बड़ा मोटा अजगर लेटा है और हम उसके ऊपर चल रहे हैं।
ऐंसे ही टेढ़े मेढ़े रास्ते से चलते हम मोहान पहुंच गए।
वहां हमने कुछ जलपान किया, और बढ़ गए अपनी धर्म यात्रा पर।
आगे, सुराल, टोटाम ,मझोड़ होते हुए हम भतरोज खान पहुंचे, जहां से एक रास्ता वाई ओर रानीखेत को जाता है।
वहाँ से सीधे चलकर हम भिकिसेन जेनल मासी होते हुए चौखुटिया पहुंचे।
चौखुटिया अच्छा बाजार है और प्रकीर्तिक द्रश्य से शोभित ।
उस से थोड़ा आगे  एक रास्ता द्वाराहाट को जाता है जहां से दुनागिरी माता के मंदिर को जाते हैं।
आगे पांडुवाखाल से निकल कर हम , ग़ैरसैंड पहुंचे यहां पहाड़ो के बीच सुंदर समतल मैदान है।
गैर मतलब गहरा एव सेड मतलब समतल।
उसके आगे कर्ण प्रयाग है जो पांच प्रयाग में एक है।
कर्ण प्रयाग एक प्राचीन तीर्थस्थल है, जहां पिंडर जिसे कर्ण गंगा भी कहते हैं , और अलकनंदा नदियों का पवित्र संगम है।
यहां पर कहते  हैं कि कर्ण ने भगवान शिव और माता उमा भगवती की तपस्या की थी जिन्होंने प्रकट होकर कर्ण को वरदान दिया था।
यहां पर उमा मंदिर और कर्ण मंदिर दर्शनीय स्थल हैं।
एक किवदंती के अनुसार श्रीक्रष्ण ने एक पर्वत  की नोक(करणशीला)जो जल के बाहर निकली हुई थी उसी पर कर्ण का अंतिम संस्कार किया था।
वहाँ से थोड़ा आगे हमने नदी के किनारे भोजन किया। थोड़ा विश्राम कर पुनः आगे यात्रा प्रारंभ की।
उसके आगे हम नंदप्रयाग पहुंचे जहां गंगा की 12 सहायक नादियीं में एक नंदाकिनी और अलखनन्दा का पावन संगम है।नंदाकिनी का एक प्राचीन नाम कंदसू भी है।
यहीं पुराण कंडव हृषी का आश्रम था, यहीं पर शकुंतला के गर्भ से भारत के प्रतापी सम्राट भारत का जन्म हुआ था।
कर्ण प्रयाग से 17 किमी आगे प्राचीन मंदिरों का समूह है जिसे आदि बद्री कहा जाता है। ये पांच बद्री में एक है।
देव भूमि में पंचकेदार पंच बद्री और पंच प्रयाग हैं।
आदि बद्री के बारे में कहा जाता है कि पांडवो बे अपने स्वर्गारोहण के मार्ग में इन मन्दिरो का निर्माण स्वम् किया था। यहां पर कभी 16 मंदिर थे अभी 14 मन्द्रिर ठीक स्थिति में हैं।
सारे मंदिर पत्थरो के एक विशेष शैली में बनाये गये हैं।
मुख्य मंदिर श्री विष्णु भगवान का है और इसके ठीक द्वार पर उनके वाहन गरुण विराजमान हैं।
बाकी में शिव पार्वती हनुमान गणेश इत्यादि के विग्रह हैं। मन्दिरसमूह बहुत आकर्षक और दर्शनीय है।
उसके आगे चमोली जो एक जिला है। वहां से एक रास्ता गोपेश्वर होकर श्री केदारनाथ धाम को जाता है।
केदार बात धाम को एक रास्ता कर्ण प्रयाग से रुद्र प्रयाग होकर भी जाता है।
रुद्र प्रयाग भी वहुत प्रसिद्ध स्थल है। यहां पर श्री केदारनाथ से आने वाली मंदाकिनी और श्री बद्रीनाथ धाम से आने बाली अलखनंदा नदियों का पावन संगम है।
इसही रुद्रप्रयाग में नारद जी ने कठिन तपस्या की थी यहीं उन्हें महती नामक वीणा प्राप्त हुई थी। रुद्रप्रयाग में रुद्रेश्वर महादेव चामुंडा देवी के मंदिर हैं। यहाँ से ऋर्षिकेश की दूरी 139 किमी है।
उस से आगे चल कर हम जोशी मठ पहुंचे इसे ज्योतिर्मठ या ज्योतिष मठ भी कहा जाता है।
ये कतुरी राज्यवंश की राजधानी था इस का प्राचीन नाम कार्तिकेयपुर भी बताया जाता है।
यहीं पर 8वी शताव्दी में श्री आदि शंकराचार्य ने नरसिंग भगवान के मंदिर की स्थापना की , जो कि विष्णुजी के नरसिंग रूप को समर्पित है।
यहां नरसिंह भगवान को दूधाधारी नरसिंग भी कहा जाता है।
कहते हैं नर्सिंग  भगवान की वायी कलाई प्रतिदिन क्षीर्ण होती जा रही है।
जिसदिन उनका हाथ गिर जाएगा उसी दिन , जय और विजय पर्वत गिर कर बद्रीनाथ धाम का रास्ता बंद कर देंगे।
जोशी मठ से 13 किमी आगे विष्णु प्रयाग है।यहां पर अलखनंदा और विष्णुगंगा(धौलीगंगा) का पवित्र संगम है।यहां पर अलखनंदा में 5 और विष्णु गंगा  5 कुंड बने हैं।
इसी के दोनों ओर विसनुजी के द्वारपाल जय और विजय पर्वत रूप में विराजित हैं।
कहते हैं यही पर नर और नारायण ने तप किया था।
उसके आगे हनुमान चट्टी में श्री हनुमान जी के पावन दर्शन होते हैं। हनुमान चट्टी मुख्यमार्ग पर ही स्थित है।
यहां पहुंचते पहुंचते हमे शाम हो गई।
वहां से थोड़ा ही आगे थी हमारी मंजिल श्री बद्रीनाथ धाम।
शाम 7 वजे हम बद्रीनाथ पहुंच गए मन अपार प्रसन्न और यात्रा की सारी थकावट गायब।
वहां हमने श्रीमस्तनाथ जी की धर्मशाला में ठहरने की व्यवस्था की। और चले गए श्रीबद्रीनाथ जी की संध्या आरती में दर्शन करने।
हमने दो बार श्री बद्रीनाथ के दर्शन किये। और उनकी दया को महसूस किया।
बद्रीनाथ धाम में श्री विष्णुजी का चतुर्भुजी रूप विग्रह शालिग्राम शिला से निर्मित है। उनका सरंगार देखते ही बनता है।
कहते हैं यहां पर शिव का ही स्थान था, एक दिन विष्णु जी अपने ये तपस्थली खोजने निकले, उन्हें ये स्थान भा गया।
विष्णु जी एक वाल रूप लेकर क्रन्दन करने लगे रोने लगे। माता पार्वती का ह्रदय उनके ऋण से द्रवित हो गया । और उन्होंने पूछ लिया कि अपको क्या चाहिये वस्तु विष्णु जी ने ये स्थान उनसे अपने लिए मांग लिया।
जहाँ विष्णु जी ने अपने चरण रखे थे वहां पर उसके चिन्ह बन गए, इस स्थान की चारने पादुका कहते हैं।
वहीं पर शेषनाग का चिन्ह भी है।
बद्रीनाथ नाम पड़ने की कथा इस प्रकार कही जाती गई कि,
जब श्री हरि गहन तपस्या में लीन हो गए तो वहां पर भारी हिमपात होने लग गया।
माता लक्ष्मी ने ये देखा तो एक बेर (बदरी)वृक्ष बन कर उनकी छाया बन गईं।
जब विष्णु जी तप से जागे तसभ उन्होंने म लक्ष्मी से कहा कि, आज से तुम बद्री और मैं बद्री का नाथ हुआ अब ये स्थान बद्रीनाथ नाम से जाना जाएगा।
जहां विष्नु जी ने तप किया था वह स्थान अब तप्तकुंड कहा जाता है जहां पर हमेशा गर्म जल उपलब्ध रहता है।
बद्रीनाथ मंदिर से श्री नीलकंठ पर्वत के दर्शन होते हैं जिसपर बर्फ की अनेक सरंखलाये शेसनाग का स्पस्ट रूप बनाती हैं।
हमने तो वहाँ पर पर्वत पर ओम की भी आकृति स्पस्ट देखी।
अगले दिन हम माना गांव गए जो भारत तिब्बत सीमा पर भारत का अंतिम गांव है।
ये स्थान बद्रीनाथ से 3 किमी आगे है।
वहां पर गणेश गुफा व्यास गुफा हैं यहां पर व्यासदेव जी ने महाभारत की रचना की थी।
जिसको कलमबद्ध श्री गणेश जी ने किया था।
यहाँ पर सरस्वती नदी को स्पस्ट देखा जा सकता है।
यही एक बड़ी चट्टान से सरस्वती के ऊपर पूल बना हुआ है जिसे भीमपुल कहा जाता है।
कहते हैं जब पांडव यहाँ आये थे तब नदी पार करने के लिए भीम ने ये पत्थर रखा था।
यहां पर सरस्वती का एक मंदिर भी है।
कहते हैं माणा नाम शिव भक्त मणिभद्रवीर के नाम पर पड़ा है।
जिन्हीने यह वरदान मंगा था कि यहाँ उसने बाला कभी दरिद्र ना रहे।
यहाँ से 4 -5 किमी आगे वसुधारा नामक स्थान है जहां पर वसुओं ने तप किया था।
कहते हैं इस जल के छींटे पड़ने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
बोलो जय श्री बद्रीनाथ।

Thursday, June 28, 2018

ईस्वर का न्याय।

फिलीपींस के एक शहर सेबु में एक छीटे परिवार रहता था।
बांस और लकड़ी के बने छोटे से घर में अपनी काम आय में भी सुखी प्रसन्न।
परिवार में , श्री अल्बर्ट उनकी पत्नी नेनेथ तथा हुनका 8 वर्ष का बेटा ऐरिल।
समय अच्छा बीत रहा था। ऐरिल का 11 जन्मदिन दो दिन पहले ही मनाया गया था , लेकिन नेनेथ को कहा पता था कि उसकी खुशी के आखिरी पल थे। श्री अल्बर्ट को सुबह सुबह ही सीने में दर्द हुआ नेनेथ आनन -फानन में उनको अस्पताल  लेकर गईं। जहां पता लगा कि उनको मेजर हार्ट अटेक आया है।
शाम तक नेनेथ कि दुनिया उजङ चुकी थी।
अल्बर्ट का वो अटेक उन्हें अपने साथ  ही ले गया।
पीछे रह गए रोते विलखते नेनेथ और ऐरिल।
नेनेथ ने अपने बेटे को सम्भालने का निश्चय किया और जुट गई अपने काम में।
ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी तो एक बड़े घर मे काम वाली बाई बन गई।
उस समय उनकी उम्र कोई 33 साल ही थी। इस उम्र में फिलीप में लोग दूसरी , तीसरी शादी आराम से कर लेते हैं।
किन्तु नेनेथ ने अपने बेटे के लिए अकेले रहने का निश्चय कर लिया।
उनकी लगन एयर ईमानदारी से उनके मालिक लीग भी बहुत खुश थे।
समय बीत ता गया , नेनेथ ने अपनी बचत से अपना मकान बहुत सुंदर ढंग से बना लिया उसकी दूसरी मंजिल बनाकर वह बहुत किश थी कि उसमे इसकी बहु आएगी ओर नेनेथ काम से छुट्टी लेकर पोते पोती खिलाएगी।
ऐरिल 26 साल का है ओर एक कंपनी में काम करता है। वही उसकी मुलाकात रेसेप्सनिस्ट अन्नाबेल से होती है। धेरे धेरे दोनो करीब आजाते हैं। एनाबेल एक नाजुक सी पतली सी गोरी लड़की है। ऐरिल उसपर फिदा है।
एक दिन ऐरिल नेनेथ को बता देता है।
नेनेथ ने खुशी खुशी दोनो की शादी करा दी।
समय तेज़ी से गुज़रा अन्नाबेल 3 बच्चों के मा बन गईं नेनेथ बच्चों के साथ बहुत खुश थी। हालांकि अन्नाबेल शुरू से ही नेनेथ के साथ दुर्व्यभार करती थी किन्तु अब उसकी ज्यादतियां बढ़ती जा रही थीं।
एक दिन उसने झगड़ा करके साफ कह दिया कि वह नेनेथ के साथ नही रहेगी।
और ऐरिल भी कुछ नही कर पाया , नेनेथ अपने ही सपनो के घर से निकल दी गई।
नेनेथ ने घर से 400 किलोमीटर दूर मनिला में नौकरी कर ली।
कुछ दिन अन्नाबेल ओर ऐरिल खुशी से रहे,किन्तु जल्दी ही ऐरिल को अपने किये पर पश्चताप होने लगा।
अन्नाबेल ने एक प्रेमी बना लिया और ऐरिल को परेशान करने लगी।
एक दिन वह बच्चों को उसकी माँ के घर छोड़कर अपने नए प्रेमी के साथ फरार हो गई।
आज नेनेथ मनिला में अपनी नोकरी में खुश है , गहालांकि उसे सुबह 6 बजे से रात 11 बजे तक व्यस्त रहना पड़ता है , लेकिन यह व्यस्तता ही उसकी शांति पूर्ण जीवन की कुंजी है।
ऐरिल आज बहुत शर्मिंदा है, वह अपनी मां के पास भी नही जाता । 38 कि उम्र में ही 50 का दिखने लगा है।
नेनेथ कभी कभी कुछ कपड़े पैसे मिठाई , अपने पोते पोतियों को भेज देती।
उसे इसमे भी बहुत खुशी होती है नेनेथ को।
कहानी रियल है सारे पात्र अभी हैं।
नेनेथ जी से मेरी बात होती रहती है। वह अभी 68 साल की हैं।
कहानी का तात्पर्य ये है कि वृद्ध भारत मे ही नही दुनिया भर में एक ही परेशानी से जूझ रहे हैं।